Sunday, 27 May 2018

मयूर प्रकाश बने मंडी बार एसोसिएशन के प्रधान



मंडी। जिला बार एसोसिएशन के चुनावों में मयूर प्रकाश शर्मा निर्विरोध प्रधान चुने गए। नवनिर्वाचित कार्यकारिणी का शपथ समारोह शनिवार को बार रूम में आयोजित किया गया। जिला बार एसोसिएशन के चुनाव इस वर्ष सर्वसम्मति से आयोजित हुए। जिसमें मयूर प्रकाश शर्मा को प्रधान, तिलक राज पठानिया को उपप्रधान, रूपेश उपाध्याय को महासचिव, सन्नी वर्मा को सहसचिव, शेर सिंह ठाकुर को कोषाध्यक्ष, डी के ठाकुर को लाइब्रेरियन, राज कुमार, संजय कुमार और विनायक शर्मा को सर्वसम्मति से कार्यकारिणी सदस्य चुना गया। चुनाव आयुक्त लोकेश कपूर ने शनिवार को नवनिर्वाचित कार्यकारिणी को शपथग्रहण समारोह में शपथ दिलाई। हालांकि बार एसोसिएशन के चुनाव 26 मई को निर्धारित थे। लेकिन एसोसिएशन की आम सभा में सर्वसम्मति से कार्यकारिणी के पदाधिकारी चुन लेने के कारण यह चुनाव नहीं हो पाया। जिसके चलते शनिवार को चुनाव की बजाय शपथ ग्रहण का समारोह आयोजित किया गया। नवनिर्वाचित प्रधान मयूर प्रकाश शर्मा ने बताया कि अधिवक्ताओं की मांगों को प्राथमिकता के अनुसार पूरा करने के प्रयास किए जाएंगे। उन्होने कहा कि लाइब्रेरी की व्यवस्था सुधारने, ई-लाइब्रेरी स्थापित करने, महिला अधिवक्ताओं के लिए बार रूम में बैठने की व्यवस्था करने, अधिवक्ताओं के बैठने की उचित व्यवस्था व चैंबर बनाने के कार्य उनकी प्राथमिकता होंगे। नवनिर्वाचित कार्यकारिणी की ओर से समीर कश्यप को प्रेस सचिव के रूप में मनोनीत किया गया है। शपथग्रहण समारोह के आयोजन में जिला न्यायलय के न्यायिक अधिकारी तथा बार एसोसिएशन के सदस्य मौजूद रहे।
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Sunday, 13 May 2018

शिकारी की यात्रा...






हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला का बाशिंदा होने के कारण बचपन से ही यहां के दुर्गम पहाड़ों पर स्थित शिकारी, कमरूनाग, पराशर, तुंगा और डायनासर के बारे में सुनता आया हूं। जब भी इन जगहों की यात्रा करके कोई लौटता था तो अपने अनुभवों को जरूर बांटता था। जिससे इनका दीदार अपनी आँखों से करने की इच्छा हमेशा बलवती हो उठती। हालांकि इन जगहों की तस्वीरें अक्सर देख कर आसानी से इन्हें चिन्हित कर लेता था। लेकिन इन्हें देख पाने से लंबे समय तक वंचित रहा। बहुत सालों के बाद सबसे पहले परासर जाने का मौका मिला तो फिर इसके बाद वहां पर तीन-चार बार जाना हुआ। कुछ ही साल पहले अचानक कमरूनाग भी जाने का मौका मिला। उन दिनों किसी प्रकार की ट्रैकिंग के लिए अनफिट महसूस कर रहा था। जब चढ़ना शुरू किया तो यहां की कठिन चढ़ाई ने पहले तो बहुत नकारात्मक भाव पैदा किए लेकिन जब गंतव्य तक पहुंचे तो मन प्रफुल्लित हो उठा। यहां का मनोरम वातावरण मानो दिलो दिमाग में बस कर रह गया। इन स्थलों की यात्रा से यह निष्कर्ष निकला कि भले ही पिक्चर या विडियो या गुगल मैप पर किसी स्थान के बारे में आप कल्पनाएं करने और कागज के फूलों में खूशबू खोजने के लिए स्वतंत्र हो सकते हैं लेकिन असलियत में इनकी मनोरमता का आनंद यहाँ पहुँच कर ही उठाया जा सकता है। उक्त दोनों स्थलों की यात्राएं जिस तरह आक्समिक हुई थी उसी तरह शिकारी की आक्समिक यात्रा का संयोग बना। पत्नी सोनाली ने शनिवार की छुट्टी पर एकतरफा ऐलान का फरमान जारी करते हुए शिकारी जाने का कार्यक्रम थोप दिया और मम्मी जी श्रीमती उज्जवलेश्वरी कश्यप ने भी बिना किसी आपत्ती के हामी भर दी। हालांकि किसी दुर्गम यात्रा के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था। लेकिन जब कार्यक्रम के टलने की कोई स्थिति सामने नजर नहीं आयी तो फिर इसे अंजाम तक पहुंचाने की तैयारी शुरू कर दी।


शनिवार, 12 मई 2018 को करीब नौ बजे मंडी से बाया तांदी, सरोआ, केलोधार, कांढा होते हुए जंजैहली के लिए रवाना हुए। पंडोह के राष्ट्रीय राजमार्ग से जैसे ही सरोआ सड़क पर आते हैं तो आपेक्षा से दूर सड़क बुरी तरह से टूटी हुई हालत में मिली। कुछ किलीमीटर चलने के बाद टारिंग की हुई सडक के आ जाने से राहत मिलती है। केलोधार में रूक कर घर से लाए परांठों के साथ एक दूकान में चाय पीने के बाद अगली यात्रा शूरू होती है। खूबसूरत देवदार, कैल के पेडों से आच्छादित घाटी आँखों की पुतलियों को भी मानो हरा कर देती हैं। कांढा से आगे तो मानो ऐसा लगता है कि स्वर्ग में आ गए हैं। सारी की सारी सराज घाटी इन दिनों सेब के पेडों पर डाली गई नेट के कारण आच्छादित है। बेटी चीनू और बेटे मितुल के पूछने पर उन्हें बताया जाता है कि यह नेट सेबों को ओलावृष्टि से बचाने के लिए लगाई जाती है। पूरी घाटी सेब के बागीचों से भरी हुई है। इसके अलावा गेहुं, धान और सब्जियों से ढंकी हुई है। जिसमें वहां के जनमानस की कड़ी मेहनत और पसीने की बूंदें मिली हुई है। हर जगह से गुजरते हुए वहां के बारे में सुनी या वहां से संबंधित चर्चाएं यात्रा के दौरान जारी रहती है। बगस्याड़ से गुजरते समय मम्मी जी की वर्षों पुरानी कई यादें उमडती हैं तो थुनाग के नजदीक आते ही आँखें हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के घर और गाँव को खोजना शुरू कर देती है। हालांकि सड़क ठीक है लेकिन अनेकों जगहों पर टारिंग उखड़ गई है। थुनाग के नजदीक ही सड़क की टारिंग का काम जोर शोर से चला है। हमारा वाहन भी टारिंग के कारण लगे जाम में रूक जाता है। टारिंग का यह काम मेरा दोस्त ठेकेदार महेन्द्र करवा रहा है। वयस्त सड़क होने के कारण वाहनों का जमघट बढ़ता जाता है। ऐसे में स्थानीय दबंद टैक्सी चालक टारिंग के उपर से वाहन ले जाने को आमदा हो जाता है। ठेकेदार के रोकने पर वह रूक जाता है लेकिन सबसे आगे अपनी गाडी लगा देता है। इस बीच टीपर पर से तारकोल मिश्रित बजरी लगातार मशीन में पड रही है जहां से यह सड़क पर गिर रही है जिसे बेलचा उठाए मजदूर बिना सांस लिए सडक पर बिखरा रहे हैं। ठेकेदार को तैयार तारकोल-बजरी को सड़क पर बिछाने की जल्दी है। जबकि वाहन चालकों को शीघ्र गंतव्य तक पहुंचने की। इस दोतरफा जल्दबाजी का सारा बोझ निरंतर बेलचा चला रहे मजदूरों के बाजूओं पर आ गया है।
थुनाग, लंबाथाच, पांडव शिला होते हुए जंजैहली की खुली घाटी में पहुंचते हैं। जंजैहली की खूबसूरती को शब्दों से बयां तो कर सकते हैं लेकिन उसे महसूस नहीं कर सकते। उसे महसूस करने के लिए तो वहां आना ही पड़ेगा। जंजैहली से शिकारी की कठिन यात्रा शूरू होती है। जंजैहली-शिकारी मार्ग पर करीब सात किलोमीटर दूर भुलाह नामक खूबसूरत पिकनिक स्थल आता है। हरी-भरी चारागाहें, सायं-2 करती हवाओं के बीच देवदार-कैल के पेड़, पहाड़ी नदियां यात्रा की थकान को छूमंतर कर देती है। शिकारी के लिए जीप योग्य सड़क है। लेकिन जहां से शिकारी करीब छह किलोमीटर दूर रह जाता है वहां तक बसें भी चली जाती हैं। सड़क मार्ग से मंदिर तक करीब साढे चार सौ सीढियां हैं। रास्ते में स्थानीय लोगों ने पर्यटकों की सुविधा के लिए चाय-पान व मंदिर में भेंट चढ़ाने की सामग्री के लिए दुकानें सजा रखी हैं। कुछ दूरी पर आईपीएच विभाग ने पीने के पानी टंकियां भी रखी है। पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर शिकारी माता का मंदिर बना हुआ है। जहां पर भिन्न-2 क्षेत्रों के श्रद्धालु पहुँचे हुए हैं। यहां आने वाले सभी श्रद्धालु और पर्यटक शिकारी माता को नमन करते हुए अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यहां पर बने मंदिर में छत नहीं है। मंदिर में महिषासुर मर्दिनी, दुर्गा, छिन्नमस्ता और योगिनियों की प्रतिमाएं हैं।
मंदिर परिसर के बाहर एक बोर्ड पर शिकारी माता का इतिहास बताया गया है। जिसके अनुसार हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी में समद्र तल से 3359 मीटर की ऊँचाई पर बना माता शिकारी देवी का मन्दिर आज भी लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है। आज तक कोई भी इस मन्दिर की छत नहीं लगवा पाया है। स्थानीय पौराणिक कथाकारों का कहना है कि मार्कण्डेय ऋषि ने यहां कई सालों तक तपस्या की थी। उन्ही की तपस्या से खुश होकर माँ दुर्गा शक्ति रूप में स्थापित हुई और बाद में पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान यहाँ मन्दिर का निर्माण किया। क्योंकि यह पूरा क्षेत्र वन्य जीवों से भरा पड़ा था। इसलिए शिकारी अक्सर यहां आने लगे। शिकार में सफलता के लिए शिकारी माता से प्रार्थना करते थे। जिसके कारण यह मंदिर शिकारी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मंदिर के बारे में सबसे हैरत करने वाली बात यह है कि इस पर छत नहीं लग पाई है। यहाँ हर साल भारी बरफ गिरती है लेकिन मंदिर में कभी बर्फ नहीं जमती। हालांकि अनेकों बार मंदिर पर छत लगाने की कोशीश की गई है लेकिन कभी भी छत नहीं लग पाई है।
मंदिर से वापसी की यात्रा में एक दूकान में बैठते हैं जहां पर एक ब्रिटिश दम्पति भी बैठे हैं। उनसे बातचीत चलती है तो वह बताते हैं कि पुरूष 68 साल का और महिला 63 साल की हैं। वह बताते हैं कि आठ-दस सीढ़ियां चढ़ने के बाद सांस फूलने लगती है इसलिए रूकना पड़ता है। उन्होने बताया कि यह स्थल बहुंत सुंदर है और वह इसका आनंद उठा रहे हैं। उनके साथ चंडीगढ़ में ट्रैवल एजेंसी चलाने वाला बल्ह क्षेत्र के खांदला गांव का एक युवक है। वह अभिवादन कर अपनी आगे की यात्रा शूरू करते हैं। इसके बाद टेंट से बनी दूकान के मालिक जंजैहली निवासी टेक चंद (काल्पनिक नाम) से बातचीत शुरू होती है। टेकचंद से पूछता हूँ कि जय राम के मुख्यमंत्री बनने के बाद सुना था कि मंदिर के लिए ट्राली (रोप वे) लग रहा है तो उसने पुष्टि करते हुए बताया कि यह थुनाग से लगने की उम्मीद है और इसके बारे में चर्चा चल रही है। टेक चंद ने बताया कि इस साल सर्दियों में बहुत कम बर्फ पड़ी है। यहां पर सिर्फ एक फुट ही बर्फ यहां पर गिरी है जबकि अक्सर यहां 8 से 10 फुट तक बर्फ गिरती थी। कम बर्फ के कारण उसने इस बार अपना टेंट भी लगा ही रहने दिया था। अन्यथा वह इसे हटा देता है। लेकिन वह खुद जंजैहली चला गया था। टेकचंद के मुताबिक मई महीने में होने वाले कुथाल मेले के समय नालों बगैरह में बरफ रहता था। लेकिन इस बार लोगों को यहां पर देखने को नसीब नहीं हो रहा है। टेकचंद ने स्थानीय विधायक और प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर से उम्मीद जाहिर की है कि वह शिकारी देवी को पर्यटन के लिहाज से विकसित करेंगे। जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार की उम्मीद बंध सके।
मंडी जिला की सरकारी साईट के अनुसार शिकारी देवी मंदिर जंजैहली से 18 किमी दूर है और जीपयोग्य वन मार्ग से जुड़ा हुआ है। यह 3359 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। शिकारी को जाने वाले रास्ते में घने जंगल बहुत खुबसूरत हैं। मंडी जिला की दूसरी सबसे ऊँची चोटी होने के कारण इसे मंडी का ताज (मुकुट) भी कहा जाता है। दूर-2 तक फैले घास के हरे चारागाह, चिताकर्षक सूर्योदय-सूर्यास्त, यहां से चारों ओर दिखने वाली बर्फ से ढंकी खूबूसरत पर्वतमालाएं इस स्थल को प्रकृति से प्रेम करने वालों की प्राथमिकता बना देता है। इस स्थल को करसोग से भी पहुँचा जा सकता है जो मात्र 21 किमी दूर है। शिकारी के लिए चिंढी, करसोग और जंजैहली के विभिन्न क्षेत्रों से ट्रैकिंग की जा सकती है। यहां से 16 किमी की ट्रैकिंग करके कमरूनाग भी पहुंचा जा सकता है। यह रास्ता पहाड़ की चोटी पर दूर-2 तक फैली चारागाहों की बेहद सुंदर दृश्यावली से होते हुए गुजरता है।
यहां कैसे पहुंचें-
मंडी- डडौर- चैलचौक-थुनाग-जंजैहली-शिकारी- 94 किमी.
मंडी-पंडोह-सरोआ-केलोधार-कांढा-थुनाग-जंजैहली
ट्रैक रूट-
शिकारी देवी-बखरोट-चिंढी- 18किमी.
शिकारी देवी-रायगढ़-शंकर देहरा-15किमी.
शिकारी-कमरूनाग-16किमी.
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मंडी में बनाया जाए आधुनिक पुस्तकालयः शहीद भगत सिंह विचार मंच

मंडी। प्रदेश की सांस्कृतिक और बौद्धिक राजधानी मंडी में आधुनिक और बेहतरीन पुस्तकालय के निर्माण की मांग की गई है। इस संदर्भ में शहर की संस्...