मंडी। रियासतकालीन मंडी के राजा श्याम सेन (1664-1679 ए.डी.) ने अपनी राजधानी मंडी में समुद्रतल से करीब 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पहाडी की चोटी पर प्रसिद्ध श्यामाकाली मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर में कुछ वर्षों पहले तक हर साल सौज महिने (सितंबर-अक्तुबर) में 9 दिनों तक मेला आयोजित होता था। लेकिन विगत कई सालों से यह मेला अपना अस्तित्व खो चुका है। टारना मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है। मंदिर के निर्माण के संबंध में मंडी के इतिहास में रोचक जानकारियां उपलब्ध हैं। गजेटियर आफ द मंडी स्टेट 1920 और हिस्ट्री आफ मंडी स्टेट में मंदिर निर्माण के संबंध में उल्लेख मौजूद हैं। दरअसल, रियासत काल में मंडी और सुंदरनगर की राजधानियों के बीच स्थित करीब 10 मील लंबे और दो मील चौडे बल्ह के उपजाऊ मैदान पर कब्जा करने की प्रतिद्वंदिता इन दोनों रियासतों के बीच अनेकों युद्धों का कारण रहती थी। श्यामाकाली मंदिर के निर्माण से जुडी ऐसी ही एक कहानी मंडी रियासत के कसीदों में सुनायी जाती है। उस समय सुकेत का राजा जीत सेन था और वह मंडी के राजा के प्रति दुर्भावना रखता था। जीत सेन ने श्याम सेन का रंग काला होने के कारण उसे ठिकर (काले रंग का लोहे का बर्तन) नाथ उपनाम दे दिया था। मंडी रियासत का एक एजेंट पत्र लेकर सुकेत गया हुआ था। एक दिन उससे मजाक में पूछा गया कि ठिकर नाथ क्या कर रहा है। जिस पर उसने सुकेत राजा को तुरंत जवाब दिया कि ठिकर नाथ लाल और तपा हुआ है और अनाज को भूनने के लिए तैयार है। इस बेइज्जती के बारे में सुनकर श्याम सेन क्रोध से उतेजित हो गया और उसने सुकेत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। अपने राजकुमार गुर सिंह व भारी फौज के साथ वह बल्ह के मैदान की ओर बढ़ा और लोहारा के युद्ध में सुकेत प्रमुख को पूरी तरह से उखाड दिया। जीतसेन अपनी राजधानी की ओर भागा लेकिन कांगडा के एक कटोच जो मंडी में नौकरी करता था ने उसे पकड लिया। राजा के जीवन की भीख मांगने पर कटोच ने उसके शाही निशान छीन लिए और इन्हें श्याम सेन के समक्ष प्रस्तुत किया। राजा ने खुश होकर कटोच को द्रंग की खान से नमक की मात्रा पीढी दर पीढी देने का ऐलान किया। राजा श्याम सेन ने युद्ध पर जाने से पहले काली माता से प्रण किया था कि अगर विजयी हुआ तो वह माता का एक भव्य मंदिर बनाएगा। मंडी लौटकर उन्होने सबसे पहले श्यामाकाली का मंदिर बनाने का आदेश जारी किया था।
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