मंडी। जाति-पाति की जडें समाज को अभी भी कितने गहरे से जकडे हुई हैं इसके प्रमाण अक्सर सामने आते रहते हैं। समाज में गहरी समाई परंपरागत जातिय विभाजन की सोच अक्सर सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्ति में प्रकट हो कर आपराधिक वर्जनाओं की उदघोषक बन उभरती हैं। जातिय समस्या भले ही शहरी क्षेत्रों में गौण होती जा रही हो लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक संबंधों में ज्यादा बदलाव न होने से यह समस्या अभी तक पूरी तरह से हल नहीं हुई है। प्रदेश के विभिन्न स्थानों से मंदिरों में शुद्रों को प्रवेश से निषेध करने के मामले प्रकाश में आते रहते हैं।
ऐसा ही एक जातिय वर्जनाओं का प्रमाण जिला बिलासपुर के जुखाला के समीप स्थित ऋषि मारकण्डेय मंदिर परिसर में स्थित शिव मंदिर में देखने को मिला। अधिवक्ता कमल सैनी हरिद्वार से वापिसी में वाया जुखाला होते हुए मंडी आ रहे थे। इसी दौरान वह जुखाला से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित ऋषि मारकण्डेय मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे। जब वह मंदिर परिसर में स्थित शिव मंदिर में दर्शन के लिए गए तो मंदिर की सीढियों के पास- सन्यासियों के मन्दिर में शुद्र प्रवेश न करें, सामाजिक व्यवस्था बनाए रखें- लाल पेंट से लिखा हुआ नोटिस देखा तो वह आहत हो उठे। अधिवक्ता होने के नाते उन्होने इस शब्दावली को कानूनी नजरिये से अनुचित समझते हुए इस प्रमाण को अपने कैमरे में संचित कर लिया।
क्या कहता है कानून
एस सी-एस टी (उत्पीड़न रोकथाम) अधिनियम, 1989 के अध्याय दो की धारा 3 (14) के अनुसार अगर अनुसूचित जाति और जनजाति के किसी सदस्य को किसी सार्वजनिक स्थान पर जाने के परंपरागत अधिकारों के अनुसार उसका प्रयोग करने व आने जाने के अधिकार से रोकता है तो इस अपराध के लिए इस धारा के तहत कम से कम छह महिने से लेकर पांच साल तक के कारावास और जुर्माने की सजा हो सकती है।
प्रसिध लेखक एस आर हरनोट की शिकायत पर उच्च न्यायलय ने लिया था संज्ञान
देश के प्रसिध साहित्यकार एस आर हरनोट ने इस मामले को प्रदेश उच्च न्यायलय को पत्र प्रेषित करके ध्यान में लाया था। जिस पर उच्च न्यायलय ने सू मोटो संज्ञान लेते हुए जिला बिलासपुर प्रशासन को नोटिस जारी किये थे। यह मामला उनके अनुसार अभी उच्च न्यायलय में विचाराधीन है। एस आर हरनोट ने बताया कि उन्हे यह जानकर हैरानी हो रही है कि यह नोटिस बोर्ड जिला प्रशासन की ओर से अभी तक हटाया नहीं जा सका है। उन्होने कहा कि मंदिर को लेकर कई बार आदेश किये जा चुके हैं लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। उन्होने कहा कि अन्याय होते देखा नहीं जा सकता। इसलिए साहित्यकार होने के नाते यह उनका दायित्व हो जाता है कि इन परिस्थितियों से लडा जाए।
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