Friday, 11 April 2014

बिजली नहीं है




मुहल्ले में आज बिजली नहीं है

पगलाए न हैं बस यही कमी है

इतेफाक कि अभी गर्मी नहीं है

राहत मौसम की इतनी बडी है

अंधेरे से आज मुलाकात हुई है

लैंप, लालटेन की कमी खली है

मोमबती ने एक सहारा दिया है

जिंदगी का रंग बदलाव लिए है

भूमंडलीयता का पथ अवरोध है

इंटरनेट- टीवी भी निषेध सा है

बचपन कार्टूनों से मुक्त हुआ है

नारीत्व सोप आपेरा से बचा है

दफ्तरों का काम हराम हुआ है

तभी तो कविमन बेचैन हुआ है

11 घंटों बाद आठ बजने को है

रोशनियों ने सब ढांप लिया है

झांक इंसान में भांप लिया है

खोखला वो कितना हो गया है

जीवन फिर से शुरू हो गया है।

समीर कश्यप

11-4-2014 

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