व्लादिमिर इलिच उलियानोफ़ का जन्म 22 अप्रैल 1870 में रूस के सिम्बिर्स्क (उलियानोव्स्क) में हुआ था। उन्होंने अगस्त 1879 में सिम्बिर्स्क हाई स्कूल में प्रवेश लिया और 22 जून 1887 में हाई स्कूल पास किया। इसके पश्चात उन्होंने इसी साल 25 अगस्त को कज़ान की यूनिवर्सिटी में क़ानून-कक्षा में प्रवेश लिया। यहां पर विद्यार्थियों की एक सभा में भाग लेने के कारण 17 दिसंबर को गिरफ्तार हुए और उन्हें यूनिवर्सिटी से निष्कासित कर दिया गया। इतना ही नहीं उन्हें 19 दिसंबर को कज़ान प्रांत के काकुश्किनो गांव में नज़रबंद कर दिया गया। नज़रबंदी के बाद कज़ान को वापिस लौटने पर उन्होंने 1888 की सर्दियों से मई 1989 के दौरान “कैपिटल” का अध्ययन किया और गुप्त मार्क्सवादी चक्र में प्रवेश लिया। फिर समारा में जाकर 1889-93 तक गुप्त तरूण संगठनों में मार्क्सवाद का प्रचार किया। लेनिन ने 27 नवम्बर 1891 को पीतरबुर्ग यूनिवर्सिटी से क़ानून की परीक्षा उतीर्ण की। उन्होंने पीतरबुर्ग में ही रह कर 1893 से 1895 तक फैक्टरी मज़दूरों में क्रान्तिकारी काम किया। यहीं पर उन्होंने 1893 की सर्दियों में “बाज़ार का तथाकथित प्रश्न” लेख गुप्त मार्क्सवादी चक्र में पढ़ा। अपनी पहली विदेश यात्रा के दौरान 7 मई 1895 में प्लेखानोफ़ आदि से सम्पर्क स्थापित हुआ। इसके बाद लेनिन ने अक्तूबर-दिसंबर में पीतरबुर्ग में मुक्ति-संघर्ष लीग की स्थापना की और 20 दिसंबर को उन्हें गिरफ्तार करके मास्को भेज दिया गया। जहां से उन्हें 6 मार्च 1897 को पूर्वी-साइबेरिया में निर्वासित कर दिया गया। लेनिन ने 1900 ई. तक शुशेन्स्कोये में निर्वासित जीवन बिताया। यहीं पर उन्होंने 11 फ़रवरी 1899 को “ रूस में पूंजीवाद का विकास” रचना लिखी। निर्वासन की अवधि 12 फरवरी 1900 को पूरी होने पर वह पीतरबुर्ग लौटे। लेकिन 3 जून को उन्हें फिर से 10 दिनों के लिए गिरफ्तार कर लिया गया। अंततः 29 जुलाई को उन्होंने राजनीतिक निर्वासित के रूप में विदेश को प्रस्थान कर दिया। इसी साल 24 दिसम्बर को उन्होंने म्यूनिख से “इस्क्रा” का प्रथम अंक प्रकाशित किया। मार्च 1902 में म्यूनिख़ से ही उन्होंने अपनी पुस्तक “क्या करें” को प्रकाशित किया। “इस्क्रा” का हेड-क्वार्टर बदलने से वह इसी साल 12 अप्रैल को म्यूनिख़ से लन्दन आ गये। लेकिन करीब एक साल बाद ही मई 1903 में “इस्क्रा” का हेड-क्वार्टर बदलने पर वह लन्दन से जनेवा आ गए। इसी साल उन्होंने जनेवा में “गांव के ग़रीबों से” पुस्तक प्रकाशित की। इसी वर्ष ही उन्होंने 30 जुलाई से 23 अगस्त तक ब्रुसेल्स व लन्दन में हुई रूसी समाजवादी जनतांत्रिक मज़दूर पार्टी की दूसरी कांग्रेस में भाग लिया। जिसमें उन्हें उपाध्यक्ष चुना गया तथा साथ ही “इस्क्रा” के सम्पादक-मंडल में निर्वाचित किया गया। लेकिन 1 नवंबर को उन्होंने सम्पादक-मंडल से इस्तीफ़ा दे दिया। अगले वर्ष 19 मई 1904 को उन्होंने अपनी पुस्तक “एक क़दम आगे, तो दो क़दम पीछे” प्रकाशित की। जबकि 4 जनवरी 1905 में उन्होंने जनेवा से ही अख़बार “व्पेयोर्द” का प्रकाशन किया। इसी साल 25 अप्रैल से 10 मई तक लन्दन में हुई तृतीय पार्टी कांग्रेस का पथ-प्रदर्शन किया। कांग्रेस से वापिस जनेवा लौटने पर उन्होंने 27 मई को “प्रोलेतारी” (सर्वहारा) पत्र का प्रकाशन किया। साल के अंत में 20 नवंबर को लेनिन स्वदेश लौटे। अगले ही साल 23 अप्रैल से 8 मई तक स्टाकहोम में आयोजित चतुर्थ पार्टी कांग्रेस में भाग लिया।
अगले साल 1906 में 23 अप्रैल से 8 मई तक स्टाकहोम में आयोजित चतुर्थ पार्टी कांग्रेस में भाग लिया। इस वर्ष उन्होंने पीतरबुर्ग से मई माह में क़ानूनी दैनिक बोल्शेविक पत्र “वोल्ना“, जून में “व्पेर्योद“, जुलाई में “इको (प्रतिध्वनि)“ और सितम्बर में “प्रोलेतारी“ पत्र का सम्पादन किया। तामरफ़ोर्स में 16 से 20 नवंबर तक आयोजित हुई रू.स.ज.म. (रूसी समाजवादी जनतांत्रिक मज़दूर पार्टी) पार्टी की दूसरी अखिल रूसी कान्फ्रेंस में सम्मिलित हुए। अगले वर्ष 1907 में 13 मई से 1 जून तक लन्दन में आयोजित रू.स.ज.म. पार्टी की पांचवीं कांग्रेस में भाग लिया। तीन अगस्त से पांच अगस्त तक कोतका (फिनलैंड) में हुई रू.स.ज.म. पार्टी की तीसरी अखिल रूसी कान्फ्रेंस में दूमा के बायकाट का विरोध किया। इसके बाद अगस्त में 18 से 24 तक स्टुटगार्ट में हुई द्वितीय इन्टर्नेशनल की कांग्रेस में सम्मिलित हुए। नवंबर में 18 से 25 तक हेलसिंगफ़ोर्स (फिनलैंड) में आयोजित रू.स.ज.म. पार्टी की चौथी अखिल रूसी कान्फ्रेंस में भाग लिया। अगले साल की शुरूआत में ही 7 जनवरी 1908 को दूसरी बार राजनीतिक निर्वासित के रूप में जनेवा के लिए प्रस्थान किया। अप्रैल महीने में कापरी द्वीप पर लेनिन की गोर्की से मुलाकात हुई। मई-जून में लन्दन के ब्रिटिश म्यूज़ियम में अध्ययन किया और दिसम्बर में वह पेरिस आए। जनवरी 1909 में उन्होंने पेरिस से रू.स.ज.म. पार्टी की पांचवीं अखिल रूसी कांग्रेस का पथ-प्रदर्शन किया। पेरिस में रहने के दौरान ही मई माह में उन्होंने “भौतिकवाद और अनुभव-सिद्ध आलोचना“ का प्रकाशन (मास्को में) किया। अगले वर्ष अगस्त 1910 में लेनिन कापरी द्वीप में गोर्की के पास गये। इसी साल अगस्त 28 से सितम्बर 3 तक कोपेनहैगेन (डेन्मार्क) में हुई द्वितीय इंटर्नेशनल की कांग्रेस में भाग लिया। नवम्बर-दिसम्बर में लियो ताल्सताय की मृत्यु पर उन्होने पेरिस से कई लेख लिखे। 29 दिसम्बर को “ज़्वेज़्दा“ का प्रथम अंक पीतरबुर्ग से प्रकाशित करवाया। अगली साल 5 से 17 जून 1911 में रू.सज.म. पार्टी के मेम्बरों की कई कान्फ्रेंसे की। गर्मियों में लोंगजूम्यो (फ्रांस) में रूस से आये पार्टी कर्मियों के स्कूल में भाषण दिया। जूरिच में 23-24 सितम्बर को इंटर्नेशनल समाजवादी ब्यूरो की बैठक में भाग लिया। अगली साल 1912 में जनवरी 18 से 30 तक प्राग में रू.स.ज.म. पार्टी की छठी अखिल रूसी कान्फ्रेंस का पथ प्रदर्शन किया। पांच मई को पीतरबुर्ग में “प्रावदा“ का प्रथम अंक प्रकाशित करवाया। जुलाई महीने में वह क्राको आये। यहां पर 1913 में 10 से 14 जनवरी तक रू.स.ज.म. पार्टी की केन्द्रीय कमिटी की कान्फ्रेंस की अध्यक्षता की। इसके बाद 5 से 14 अक्तूबर तक पोरोनिनो में रू.स.ज.म. पार्टी की केन्द्रीय कमिटी की कान्फ्रेंस में अध्यक्षता की। अगली साल 1914 की जनवरी-फ़रवरी में ब्रुसेल्स में हुई लेतावियाई स.ज. पार्टी की चौथी कांग्रेस में भाग लिया। प्रथम विश्वयुद्ध शुरू होने पर उन्हें रूसी होने के कारण 8 अगस्त को नोवी तार्ग (आस्ट्रिया) में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद 29 अगस्त को गिरफ्तारी से मुक्ति होने पर उन्होंने स्विज़रलैंड को प्रस्थान किया। नवंबर में जनेवा से “सोत्सियाल देमोक्रात“ का पुनः प्रकाशन किया। अगले साल 1915 में 5 से 8 सितम्बर तक ज़िमिरवाल्ड में अंतर्राष्ट्रीयतावादियों के सम्मेलन में भाग लिया।
अगले वर्ष जनवरी 1916 में उन्होंने “फोरबोटे” (संदेशवाहक) का प्रथम अंक प्रकाशित किया। किन्थल (स्विज़रलैंड) में 24 से 30 अप्रैल तक आयोजित अंतर्राष्ट्रीयतावादियों की कान्फ्रेंस में भाग लिया। जून माह में जूरिच में “साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था” पुस्तक का लेखन कार्य समाप्त किया। इसके बाद 9 अप्रैल 1917 को उन्होंने स्विज़रलैंड से रूस के लिए प्रस्थान किया। लेनिन 16 अप्रैल को राजधानी पेत्रोग्राद लौटे। अगले ही दिन 17 अप्रैल को उन्होंने प्रसिद्ध अप्रैल-थीसिस को बोल्शेविकों की एक सभा में पेश किया। उन्होंने 7 से 12 मई तक आयोजित हुई रू.स.ज.म. पार्टी की सातवीं (अप्रैल) कान्फ्रेंस का संचालन किया। इसके बाद उन्होंने 17 से 22 जून तक सोवियतों की पहली कांग्रेस में भाषण दिया। लेनिन 24 जुलाई से सितम्बर माह तक सेस्त्रोरेत्स्क, राज़लिव में अज्ञातवास पर चले गए। अगस्त से सितम्बर माह तक राज़लिव में “राजसत्ता और क्रान्ति” पुस्तक के लिए तैयारी की। रू.स.ज.म. पार्टी की छठी कांग्रेस के अनुपस्थित अध्यक्ष बने। सितम्बर के आरम्भ में गुप्त रूप से हेलसिंगफ़ोर्स आये। यहीं पर उन्होंने 25 से 27 सितम्बर तक “बोल्शेविक अवश्य शक्ति पर अधिकार करें” नारा देते हुए केन्द्रीय कमिटी को पत्र भेजे। 30 सितम्बर को लेनिन पेत्रोग्राद के और नज़दीक विबोर्ग आ गए। 20 अक्तूबर को वह गुप्त रीति से पेत्रोग्राद आये। 23 अक्तूबर को केन्द्रीय कमिटी ने सशस्त्र विद्रोह का निर्णय लिया। लेनिन ने 29 अक्तूबर को केन्द्रीय कमिटी की अध्यक्षता की और पार्टी केन्द्र का निर्वाचन किया। उन्होंने क्रान्ति का भेद खोलने पर 31 अक्तूबर को ज़िनोवियेफ़ और कामनेफ़ को पार्टी से निकालने के लिए पत्र लिखा।
इसके बाद 6 नवम्बर की रात को स्तालिन के ज़ोर देने पर केन्द्रीय कमिटी ने लेनिन को स्मोल्नी में बुलाकर उनके हाथ में नेतृत्व की बागडोर देने का निश्चय किया। लेनिन के वहां पहुंचने में देर नहीं हुई। स्तालिन ने सारी बातों की पूरी रिपोर्ट देकर बतलाया कि शरद् प्रासाद पर अधिकार करने की योजना कहां तक तैयार हो चुकी । लेनिन अब क्रान्तिकारी विद्रोह के सारथी थे। इतना योग्य सारथी इतिहास में बहुत दुर्लभ है। सात नवंबर (पुराना 25 अक्तूबर) को प्रातःकाल सारा पेत्रोग्राद विद्रोही सर्वहारा के हाथ में था और टेलीफोन-सम्बंध, सदर तारघर, रेडियो-स्टेशन, नेवा नदी के पुल, रेलवे के स्टेशन तथा अधिकांश महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालय अब करेन्सकी-सरकार के हाथ से निकल गये थे। विद्रोह ने एक सांस में भारी सफलता प्राप्त कर ली थी।
उसी दिन 10 बजे सबेरे सैनिक क्रान्तिकारी कमिटी ने लेनिन द्वारा तैयार किये हुए ”रूस के नागरिकों के नाम” ऐतिहासिक घोषणापत्र को जारी करते हुए कहा कि अस्थायी सरकार का तख्ता उलट दिया गया है और राज्यशक्ति सोवियतों के हाथ में आ गयी है।
अपराह्न में लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत की एक विशेष बैठक में भाषण दिया। अपने भाषण में लेनिन ने समाजवादी-क्रान्ति की विजय घोषित करते हुए बतलाया कि रूस में समाजवाद अवश्य विजयी होगा। अपने भाषण को समाप्त करते हुए उन्होंने कहा थाः “विश्व समाजवादी क्रान्ति ज़िन्दाबाद !”
शाम को वह सोवियतों की कांग्रेस के अधिवेशन के आरम्भ के समय भाषण देने गए तो कांग्रेस ने समाजवादी क्रान्ति के महान नेता का ज़बर्दस्त स्वागत किया। इतिहास के इस महान् नेता ने अब मानव इतिहास में एक नये युग की—सर्वहारा-क्रान्ति और सर्वहारा के अधिनायकत्व के युग की—घोषणा की।
लेनिन के प्रस्ताव पर सोवियत-कांग्रेस ने सोवियत-सरकार के पहले फ़रमान-शान्ति-सम्बंधी फ़रमान और भूमि-सम्बंधी फ़रमान—पास किये। ये युग प्रवर्तक अभिलेख सर्वहारा-अधिनायकत्व को मज़बूत करने और समाजवाद का निर्माण करने में अत्यन्त महत्वपूर्ण साबित हुए। इसी कांग्रेस में मज़दूरों और किसानों की पहली सोवियत सरकार—जन-कमीसारों की परिषद—बनायी गयी। लेनिन परिषद के प्रधान-मंत्री चुने गये।
लेनिन ने 16 नवम्बर को जातियों के अधिकारों की घोषणा की। 27 नवंबर से 1 दिसम्बर तक किसान डेपुटियों की सोवियतों की असाधारण कांग्रेस में भाषण दिया। अगले वर्ष 14 जनवरी 1918 को उन्होंने समाजवादी सेना की प्रथम टुकड़ियों में भाषण दिया। फिर 19 जनवरी को पूंजीवादी संविधान सभा को भंग करने के सम्बंध में अखिल रूसी केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति की मीटिंग में भाषण दिया। उन्होंने 23 से 31 जनवरी तक सोवियतों की तृतीय अखिल रूसी कांग्रेस का संचालन किय़ा। मार्च माह में 6 से 8 तक रू.स.ज.म. पार्टी की सातवीं कांग्रेस आयोजित की जिसमें पार्टी के नाम में परिवर्तन किया गया। 10-11 मार्च को मास्को नयी राजधानी बना। यहीं पर 14 मार्च से सोवियतों की चतुर्थ असाधारण कांग्रेस आयोजित हुई। जिसमें जर्मनी के साथ संधी स्वीकृत की गई। 20 अगस्त को उन्होंने अमरीकी मज़दूरों को पत्र लिखा। इसके पश्चात 30 अगस्त को वह एक आतंकवादी की गोली से घायल हो गए। उन्होंने 16 सितम्बर को पार्टी की केन्द्रीय कमिटी की बैठक में भाग लिया। इसी साल 6 से 9 नवम्बर तक आयोजित सोवियतों की छठी अखिल रूसी कांग्रेस का कार्य-संचालन किया। जबकि दिसम्बर के अन्त में उन्होंने “सर्वहारा क्रान्ति और ग़द्दार कॉट्स्की“ पुस्तक प्रकाशित की ।
अगली साल 1919 में 2 से 6 मार्च तक कम्युनिस्ट इन्टर्नेशनल की प्रथम कांग्रेस का कार्य-संचालन किया। मार्च में ही 18 से 23 तक उन्होंने आठवीं पार्टी कांग्रेस का संचालन किया। 21 मई को लेनिन ने पेत्रोग्राद की रक्षा के लिए स्तालिन को भेजा। 9 जुलाई को लेनिन ने नारा दिया “सब कुछ देनिकिन के विरूद्ध लगा दो!“ उन्होंने 24 अगस्त को कोलचक पर विजय के सम्बंध में मज़दूरों-किसानों को पत्र लिखा। दिसम्बर माह में 2 से 4 तक आयोजित पार्टी की आठवीं अखिल रूसी काफ्रेंस का संचालन किया। दिसम्बर में ही 5 से 9 तक आयोजित सोवियतों की सातवीं अखिल रूसी कांग्रेस का संचालन किया। 28 दिसम्बर को उन्होंने देनिकिन पर विजय के सम्बंध में उक्रेनी मज़दूरों-किसानों को पत्र लिखा।
अगली साल 29 मार्च से अप्रैल 1920 तक नवीं पार्टी कांग्रेस का संचालन किया। 22 अप्रैल को अपने नेता की 50वीं वर्षगांठ पर सारे देश में उत्सव मनाया गया। 5 मई को पोलैंड द्वारा युद्ध छेड़ने पर अ.रू. केन्द्रीय कार्यकारिणी के सामने भाषण दिया। जून में “’उग्रवादी‘ कम्युनिज्म, एक बचकाना मर्ज“ पुस्तक प्रकाशित की। 19 जुलाई-7 अगस्त तक पेत्रोग्राद-मास्को कम्युनिस्ट इन्टर्नेशनल की द्वितीय कांग्रेस का संचालन किया। 2 अगस्त को उन्होंने रेंगल की पराजय के लिए स्तालिन की नियुक्ति की। सितम्बर 22-25 तक हुई पार्टी की अ.रू. नवीं कान्फ्रेंस का कार्य संचालन किया। 2 अक्तबूर को तरूण कम्युनिस्ट संघ की तृतीय अखिल रूसी कांग्रेस में भाषण दिया। दिसम्बर में 22-29 तक सोवियतों की आठवीं कांग्रेस आयोजित की।
अगले वर्ष 2 मार्च 1921 में उन्होनें गुर्जी सोवियत गणराज्य के निर्माण पर
बधाई
दी। मार्च 8-16 तक आयोजित हुई पार्टी की दसवीं कांग्रेस का संचालन किया और “नवीन आर्थिक नीति“ आदि पर रिपोर्ट पेश की। मई 26-28 तक हुई पार्टी की दसवीं अखिल रूसी कान्फ्रेंस का संचालन किया। कम्युनिस्ट इन्टर्नेशनल की 22 जून से 12 जुलाई तक आयोजित तीसरी कांग्रेस का संचालन किया। 23 दिसंबर को सोवियतों की नवीं अखिल रूसी कांग्रेस में गृह और विदेश नीति पर रिपोर्ट पेश की।
अगले वर्ष 12 मार्च 1922 को उन्होनें “लड़ाकू भौतिकवाद का महत्व“ शीर्षक लेख लिखा।
उन्होनें 27 मार्च से 2 अप्रैल तक आयोजित पार्टी की ग्यारहवीं कांग्रेस का संचालन किया। मई के आरम्भ में ही सख्त बीमार पड़ जाने से वह गोर्की चले गए। यहीं से उन्होंने 5 अगस्त को पार्टी की बारहवीं अखिल रूसी कान्फ्रेंस का अभिनन्दन किया। 2 अक्तूबर को वह फिर मास्को में काम पर आ गये। उन्होंने 19 नवम्बर को कम्युनिस्ट इन्टर्नेशनल की चौथी कांग्रेस में रिपोर्ट पेश की। 20 नवम्बर को लेनिन ने मास्को-सोवियत की बैठक में अन्तिम भाषण दिया। दिसम्बर का आरम्भ होते ही वह फिर सख्त बीमार हो गए। 12 दिसम्बर को वह अन्तिम बार अपने क्रेमलिन आफिस में गये।
अगली साल जनवरी-मार्च 1923 में उन्होने अन्तिम लेख लिखवाये। मई के मध्य में उन्होंने मास्को से विदाई ली और गोर्की में आ गए। 21 जनवरी 1924 को शाम के 6 बजकर 50 मिनट पर उनका महाप्रयाण हो गया।
प्रस्तुति--समीर
साभारः लेनिन (एक जीवनी)—राहुल सांकृत्यायन, परिशिष्ट, वर्ष-पत्र (1870-1924 ई.)
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