Tuesday, 28 February 2017

चरस मामले में दोषी को दो साल का कारावास, जुर्माना



मंडी। चरस सहित पकडे जाने के आरोपी को अदालत ने दो साल के कठोर कारावास और 20 हजार रूपये जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया है। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश कृष्ण कुमार के न्यायलय ने मादक एवं नशीले पदार्थ अधिनियम की धारा 20 के तहत अभियोग साबित होने पर जिला कुल्लू के छलाल (कसोल) गांव निवासी खूबी राम पुत्र बुद्धी सिंह को उक्त सजा का फैसला सुनाया है। अभियोजन पक्ष के अनुसार राज्य गुप्तचर (अपराध) इकाई का दल निरिक्षक दुलो राम की अगुवाई में 12 जून 2012 को मणीकर्ण से वापिस लौट रहा था। इसी दौरान हणोगी माता मंदिर के नजदीक एक व्यक्ति पैदल आ रहा था। पुलिस दल को देख कर उक्त व्यक्ति ने पीछे मुडकर तेज कदमों से जाने लगा। पुलिस को संदेह होने पर उसका पीछा करके काबू किया गया और उसकी तलाशी लेने पर एक थैले में से 150 ग्राम चरस बरामद हुई थी। पुलिस ने आरोपी को मादक एवं नशीले पदार्थ अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर अदालत में अभियोग चलाया था। अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए लोक अभियोजक अनुज शर्मा ने 7 गवाहों के बयान कलमबंद करके आरोपी पर अभियोग साबित किया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपी के खिलाफ संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित हुआ है। जिसके चलते अदालत ने आरोपी से बरामदशुदा चरस व्यवसायिक मात्रा से कम होने के कारण उक्त कारावास और जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया है।
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भवनों को नियमित करने की दरें घटाई जाएंः संघर्ष समिति




मंडी। भवन नियमितीकरण संघर्ष समिति (मंडी) ने हाल ही में अधिसूचित किए गए टीसीपी अधिनियम में भवनों के नियमितीकरण की दरें घटाने की मांग की है। समिति का मानना है कि नियमितिकरण की इतनी भारी भरकम राशि बिल्डर तो अदा कर सकते हैं पर आम लोगों के लिए यह फीसें अदा करना संभव नहीं है। भवन नियमितिकरण संघर्ष समिति (मंडी) के उत्तम चंद सैनी, अमर चंद वर्मा, हितेन्द्र शर्मा, चंद्रमणी वर्मा, हरमीत सिंह बिट्टू, प्रदीप परमार और समीर कश्यप ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में प्रदेश सरकार तथा विपक्ष का प्रदेश विधानसभा में टीसीपी एक्ट पारित करने पर आभार व्यक्त किया है। हालांकि समिति का कहना है कि अभी भी टीसीपी एक्ट में नियमितीकरण की दरें बहुत ज्यादा निर्धारित की गई है। समिति की मांग है कि नक्शों में बदलाव के साथ बनाए गए चार बिस्वा तक के छोटे घरों व व्यवसायिक संस्थानों की दरें नगर परिषद क्षेत्र में 100 रूपये और नप क्षेत्र से बाहर 50 रूपये प्रति वर्ग मीटर तय की जाए। जबकि बिना योजना अनुमति के बनाए गए भवनों में यह दरें क्रमश: 200 रूपये और 100 रूपये की जाए। इसके अलावा चार बिस्वा से ज्यादा भूमी पर बने भवनों के लिए प्रस्तावित टीसीपी एक्ट के मुताबिक ही नियमितीकरण दरें वसूल की जाएं। समिति का कहना है कि एक्ट में दरें सामान्य शुल्क की दरों से 6000 से 12000 प्रतिशत अधिक तक निर्धारित की गई हैं। इन दरों को अदा करना गरीब तथा मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए संभव नहीं है। सरकार की ओर से प्रस्तावित पालिसी का लाभ सिर्फ बडे बिल्डर और निर्माता ही ले सकेंगे। समिति ने मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह से मांग की है कि टीसीपी एक्ट की मौजूदा दरों को निरस्त करके नियमितीकरण की आंशिक दरें वसूल की जाएं। तभी आम जनता इस एकमुश्त पालिसी का फायदा उठा पाएगी।
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Sunday, 26 February 2017

नरोल की देवियां और देव बूढ़ा बिंगल नहीं लेते देवसमागम में भाग




मंडी। शिवरात्रि महोत्सव के दौरान पड्डल में होने वाले देवसमागम में मंडी के सभी जनपद के देवी देवता भाग लेते हैं। लेकिन कुछ देवता ऐसे हैं जो पडडल नहीं जाते और उनके दर्शन रहने के ठिकानों पर ही करने होते हैं। जनपद के सबसे बुजुर्ग देवता बूढ़ा बिंगल, नरोल की देवियां, मारकंडे, शुकदेव आदि कुछ देवता राजमहल में ही रहते हैं और वह रोजाना देव समागम के लिए पडडल में नहीं जाते। उसी तरह बडा देव कमरूनाग भी सप्ताह भर टारना में ही विराजते हैं और श्रद्धालुओं को उनके दर्शन के लिए टारना मंदिर ही जाना होता है।
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मंडी की शिवरात्रि के कुछ दुर्लभ चित्र



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बजंतरी



बजंतरी

लौट आई है
शहनाई की मचलती
बारिक आवाज
ढोल नगाडों की
दीपचंदी ताल में
उठते कदमों के साथ।
सात दिनों तक
करनाल- नरसिंघे-बाम के
उदघोष से गुंजायमान
जनपद के सभी छोर
इन समवेत स्वर
लहरियों से
अब रहेंगे सरोबार।
बजंतरी उतर आए हैं
देवताओं के आदेश के
संवाहक बन
फिर देवभूमि के
उतंग शिखरों से
परंपरा का निर्वहन करने।
उनके बढते कदम
ब्यास नदी के
खामोश पानी में
हिलोरें उठाते हुए
रच रहे हैं
लोमहर्षक दृश्यों का
कैनवास
जिसके रंग अपनी
छटा बिखराते रहेंगे
जहनों के सुप्त संसार में।
तुम्हारा आना
अहसास दिलाता है
इतिहास के उन
काल खंडों का
जिनमें देवता के
साथ तुम भी रहे
होंगे उनके अंग-संग ही
हंसी-खुशी,
सुख-दुख के साथी बनकर।
प्रतिभाशाली, अनुठे पर
अस्पृश्यता, असमानता और
शोषण के शिकार बजंतरी
घोषित क्यों नहीं होते
लोक कलाकार
सवाल उठाता है तुम्हारा यहां आना।
पहचान को बनाने को
कब तक लडना होगा
गुंजायमान वाद्य यंत्रों से
उभर रही ध्वनियों का
मुल्यांकन कब होगा।
हाशिये में जी रहे
कला धर्मी की आपदाओं में
लुप्त होती लोक कला का
संरक्षण निर्वहन कैसे होगा।
कम होती जा रही हैं
शहनाई पर उंगलियां
कौन सीखेगा इसे,
कौन सिखाएगा इसे।
तब भी तुम लौटे हो
एक बार फिर
बदलते समय की
चुनौतियों में
देव परंपरा का
ताना बाना सुरक्षित रखने,
जनपद को अपने
पवित्र बाजे की
स्वर लहरियों में
स्पंदित और
सम्मोहित करने।
-समीर कश्यप
26-2-2017
पिक्चर साभार- चंदन भाटिया
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Tuesday, 21 February 2017

शिवरात्रि महोत्सव प्राधिकरण बनाने और फिजूल खर्च रोकने की मांग




मंडी। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव का प्राधिकरण बनाया जाए और मेले में होने वाली फिजूल खर्ची पर तत्काल रोक लगाई जाई। इस बारे में जिला परिषद के खलवाहण वार्ड के सदस्य संत राम की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह को उपायुक्त मंडी हरिकेश मीणा के माध्यम से ज्ञापन सौंपा है। प्रतिनिधिमंडल के सदस्य संत राम, इंडियन पीपलस थियेटर एसोसिएशन के संयोजक लवण ठाकुर, सचिव समीर कश्यप, बीडीसी सदस्य राजकुमार, एडवोकेट ललित ठाकुर, रतन लाल मिश्रा, जिप सदस्य श्याम सिंह चौहान, निर्मला चौहान, जयवंती चौहान, बबिता ठाकुर, बीडीसी अध्यक्ष सराज अमर सिंह व बीडीसी सदस्य खीरामणी ने बताया कि मंडी में हर वर्ष आयोजित होने वाला अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव अक्सर फिजूल खर्ची, बदइंतजामी और कुप्रबंधन का शिकार रहता है। संत राम ने बताया कि महोत्सव के बारे में सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से पता चला है कि गत वर्ष मेला प्रबंधन कमेटी को 2,40,96,637 रूपये की आय हुई है। जबकि इसमें से 2,22,19875 रूपये की राशि खर्च भी कर दी गई है। मेले का सबसे अधिक खर्चा सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर 82,44,712 रूपये की राशी खर्च की गई है। जो कि मेले की कुल आय का लगभग पैंतीस प्रतिशत बनता है। इस राशि में 70 फीसदी खर्चा स्टार नाइट व बाहरी कलाकारों पर खर्च कर दिया गया है जबकि हिमाचली व स्थानीय लोक कलाकारों को मात्र 30 प्रतिशत ही राशि खर्च की गई है। प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि शिवरात्रि में दो सौ से भी अधिक देवी देवता भाग लेने के लिए आते हैं। जिनके साथ हजारों देवलु, बजंतरी व देवी देवताओं के कारदार, गुर इत्यादि शामिल होते हैं। हैरानी की बात है कि मेला प्रबंधक कमेटी के आमंत्रण पर बुलाए जाने वाले इन विशेष मेहमान देवी देवताओं पर मात्र 49,38,430 रूपये खर्च किए जाते हैं। यानि मेले की कुल आय का मात्र 20 प्रतिशत ही देवी देवताओं पर खर्च किया जाता है। इतना ही नहीं सूचना से जाहिर हुआ है कि गत वर्ष मेले के दौरान खेल कूद पर 15,14,000 रूपये की राशि खर्च की गई। जो बजट का मात्र 6 प्रतिशत है। वहीं पर स्वागत कमेटी की फिजूल खर्ची पर इससे दुगुनी 30,39,475 रूपये की राशि खर्च की गई। इसके अलावा मिसलेनियस राशि के रूप में भी 34,74,493 रूपये खर्च किए गए दर्शाए गए हैं। जबकि ग्राउंड व विज्ञापन पर ही 9,58,765 रूपये की राशि खर्च कर दी गई। आलम यह है कि मेले के दौरान भारी फिजूल खर्ची करने के बावजूद भी करीब 18 लाख रूपये मेला प्रबंधन कमेटी के पास शेष बचा हुआ है जिससे जाहिर होता है कि कमेटी के पास साधनों की कमी नहीं है। लेकिन यहां सवाल खडा होता है कि अगर कमेटी के पास पर्याप्त राशि है तो फिर मेले में बदइंतजामी और कुप्रबंधन क्यों है। प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि मेले का मुखय आकर्षण यहां आने वाले दूरदराज के क्षेत्रों के देवी देवता और देवलू हैं। मंडी जिला के विभिन्न छोरों से अपने परंपरागत रथों पर आने वाले इन देवी देवताओं के साथ हजारों की संखया में लोग मंडी पहुंचते हैं। यहां पहुंचने पर माधो राव के दर्शन के बाद वह अपने अपने डेरों पर चले जाते हैं। इन देवी देवताओं के रहने के ठिकाने कुछ तो राजमहल में हैं जबकि अन्य स्थानीय लोगों के घरों, मंदिरों व स्कूलों आदि में हैं। लेकिन इन देवी देवताओं के ठहराव के लिए मेला प्रबंधन कमेटी की ओर से समुचित व्यवस्था नहीं की जाती। वहीं पर उन्हे कमेटी की ओर से दी जाने वाली धाम में खुले आसमान के नीचे बिठाया जाता है और उन्हे कडी धूप और बारिश में खाना खाने के लिए बाध्य होना पडता है। प्रतिनिधिमंडल के अनुसार मेला कमेटी की ओर से इन देवी देवताओं को नाममात्र का मानदेय भेदभावपूर्ण तरीके से दिया जाता है। इसके अलावा करीब तीन दर्जन देवी देवता ऐसे भी मेले में आते हैं जिन्हें आमंत्रित नहीं किया जाता है क्योंकि वह पंजीकृत नहीं हैं। लेकिन राज माधव राय व इस देव समागम के प्रति उनकी श्रद्धा के कारण वह सभी मुश्किलों का सामना करते हुए अनेकों सालों से मंडी आ रहे हैं। अति दुर्गम क्षेत्रों से आने वाले इन देवी देवताओं को कमेटी की ओर से न ही मानदेय दिया जाता है और न ही अन्य कोई सुविधा। जिससे इन देवी देवताओं के साथ आने वाले लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पडता है। इनमें से अधिकतम देवता दलितों के हैं लेकिन दलितों के देवता होने के कारण ही इनके साथ भेदभाव करके इन्हे पंजीकृत न करने की साजिश हर साल रची जाती है। इन सभी अपंजीकृत देवी देवताओं को पंजीकृत करके यह भेदभाव खत्म किया जाए और उन्हें भी अन्य देवी देवताओं के समान मानदेय व अन्य सुविधाएं मुहैया करवाई जाएं। देवी देवताओं को ठहरने के लिए प्रस्तावित देव सदन के निर्माण को जल्द से जल्द शुरू किया जाए। शिवरात्रि मेले की आय के कुल राशि का 50 प्रतिशत देव परंपरा पर खर्च किया जाए। प्रतिनधिमंडल ने बताया कि देव परंपरा के संवाहक बजंतरी वर्ग इस देव समागम को सबसे अनूठा हिस्सा होता है। जो अपने लोक वाद्यों की धुनों से सबको सरोबार करके देव समागम का माहौल लोमहर्षक बना देता है। लेकिन अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाला यह बजंतरी वर्ग अभी भी भारी असमानता और शोषण का शिकार है। उत्कृष्ठ लोक कलाकार होने के बावजूद वह अभी तक अपनी लोक कलाकार की पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है लेकिन उसकी कला का अभी तक सही-2 मूल्यांकन नहीं हो पाया है। दरअसल बजंतरी वर्ग ही हमारे पहाडी क्षेत्र का लोक कलाकार है और उसे लोक कलाकार का दर्जा दिया जाना बेहद आवश्यक है। अन्यथा लुप्त होती जा रही लोक कला के यह संवाहक अपना लोक कला धर्म भविष्य में भी जारी रखने में सक्षम नहीं होंगे। देखा गया है कि शहनाई वादकों की भारी कमी हो गई है और कई देवताओं को शहनाई वादक नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसे में बजंतरियों को संरक्षण देते हुए उन्हें लोक कलाकार का दर्जा दिया जाए और शिवरात्रि महोत्सव में भाग लेने वाले हर बजंतरी को प्रतिदिन के हिसाब से वाद्य यंत्रों के मुताबिक सममानजनक मानदेय दिया जाए। प्रतिनिधिमंडल के अनुसार सांस्कृतिक कार्यक्रमों में स्टार नाईटों व बाहरी कलाकारों पर किए जाने वाले फिजूल खर्च को कम किया जाए। जबकि हिमाचली व स्थानीय कलाकारों को अधिक से अधिक मंच पर स्थान दिया जाए और उनकी प्रोत्साहन राशि को भी बढाया जाए। जिससे वह अपनी कला में और निखार ला सकें। प्रतिनिधिमंडल की मांग है कि अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के आयोजन के लिए मेला प्राधिकरण का गठन किया जाए और इस प्राधिकरण के माध्यम से ही भविष्य में मेले का हर वर्ष आयोजन किया जाए। जिला प्रशासन की अध्यक्षता में बनी मेला प्रबंधन कमेटी के द्वारा मेला आयोजित करने से प्रशासनिक कार्यों में लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पडता है। मेले के दौरान जिला उपायुक्त कार्यालय में कार्यवश आने वाले लोगों को प्रशासनिक अधिकारियों के मेले में व्यस्त होने के कारण कई समस्याओं से जूझना पडता है। वहीं पर मेले के दौरान खेलकूद का जिममा पुलिस विभाग को सौंप दिया जाता है। यह कार्य जिला खेल विभाग सही ढंग से करवा सकता है लेकिन पुलिस विभाग को खेलों का जिममा देना उचित नहीं है क्योंकि वह कानून व्यवस्था का कार्य भी कर रहे होते हैं। प्रतिनिधिमंडल ने मांग की है कि इन विषयों को ध्यान में रखते हुए मेले के दौरान फिजूल खर्ची पर लगाम लगाने के लिए मेला प्राधिकरण का गठन किया जाए जिससे मेले का उचित प्रबंधन किया जा सके और इस सांस्कृतिक देव समागम की मूल आत्मा को बचाते हुए इसका संरक्षण किया जाए।
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Saturday, 18 February 2017

मूलभूत सुविधाओं से वंचित बंगाली समुदाय के लोग



मंडी। यहां के भयुली में रह रहे बंगाली समुदाय के लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में हाशिये का जीवन जीने को बाध्य हैं। सरकार की ओर से चलायी जा रही तमाम कल्याणकारी योजनाओं से इस समुदाय को वंचित रखा गया है। अपनी समस्याओं को लेकर इस समुदाय के एक प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार को उपायुक्त मंडी संदीप कदम को अधिवक्ता गीतांजली शर्मा की अगुवाई में एक ज्ञापन सौंपा है। इधर, उपायुक्त मंडी ने उनकी समस्याओं को हल करने का आश्वासन देते हुए आवश्यक कार्यवाई के निर्देश दिये हैं। अधिवक्ता गीतांजली शर्मा और प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने बताया कि भयुली में रहने वाले इस समुदाय के सभी लोग भूमीहीन हैं और समाज के सबसे गरीब तबके से संबंध रखते हैं। वह पिछले करीब सौ सालों से मंडी में रह रहे हैं और इस समय उनकी संखया करीब पांच सौ है। उन्होने बताया कि इस समुदाय के लोग अनेकों सालों से मतदाता के रूप में भी वोटर लिस्ट में दर्ज हैं और वह मतदान के जरिये लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बार भाग भी लेते हैं लेकिन उन्हे सरकार की ओर से चलाई जा रही किसी भी कल्याणकारी योजना का लाभ नहीं दिया जाता है। उनके नाम पर कोई जमीन न होने के कारण उन्हे न तो बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया हैं और न ही शौचालय की। कुछ लोगों के राशन कार्ड बने हैं पर उन्हे राशन नहीं दिया जाता। बच्चों को पंचायत में दर्ज नहीं किया जाता। बिजली के अस्थाई मीटर लगाए गए हैं जिनमें करीब तीन से चार हजार रूपये प्रति माह का बिल हो जाता है। कई बार बिजली के बिल इतने ज्यादा होते हैं कि इन्हे चुकाने पर परिवार की गुजर बसर मुश्किल हो जाती है। इस समुदाय के अधिकांश लोग मजदूरी, दिहाडी या कबाड व कचरा बीनने का काम करते हुए अति निर्धन जीवन बिता रहे हैं। इसके बावजूद वह अपने बच्चों को पढा रहे हैं। उनके बच्चे कालेज, दस जमा दो, मैट्रिक और विभिन्न कक्षाओं में पढ रहे हैं। लेकिन वह कालेज व आगे की पढाई जारी नहीं रख पाते क्योंकि न तो उनका नाम पंचायत में दर्ज होता है और न ही राजस्व विभाग में होता है। जिससे उन्हें बोनाफाइड हिमाचली तथा अन्य प्रमाण पत्र न मिल पाने के कारण आगे की पढाई बंद करके किसी कारोबार में लगना पडता है। झुगगी झोपडियों में रहने वाले इस समुदाय के लिए कोई फ्री मैडिकल सुविधा नहीं है। इतना ही नहीं भूमीहीन होने के बावजद भी उन्हे भूमीहीन लोगों को दो जाने वाली जमीन की स्कीम में भी शामिल नहीं किया जा रहा है और न ही मकान व शौचालय आदि बनाने की किसी योजना का हिस्सा बनाया जाता है। उनका कहना है कि पीढियों से उनके वंशज मंडी में रह रहे हैं। इस समय भयुली में रह रहे अधिकांश लोगों का जन्म मंडी में ही हुआ है। प्रतिनिधिमंडल ने मांग की है कि देश के मतदाता और नागरिक होने के नाते उनसे किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाए तथा अन्य नागरिकों की भांती उन्हें भी मूलभूत सुविधाएं दी जाएं जिससे वह भी सममान का जीवन जी सकें। इस प्रतिनिधिमंडल में भयुली निवासी महेन्द्र, कोमल, अनुबाला, संतोष, पिंकी, शकुंतला, रीतो, संजू, सुनीता, ममता, रंजीत, मणी, नीतू, निशू, नीमा, शांता, गौरी, कमला, कैंजु और दशा सहित अन्य लोग मौजूद थे।
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Tuesday, 7 February 2017

आखिर 105 फीट ऊंचे तिरंगे पर लौटी प्रकाश की किरणें




मंडी। प्रकाश व्यवस्था न हो पाने के कारण अक्सर अंधेरे में डूबे रहने वाले पडड्ल स्टेडियम स्थित 105 फीट ऊंचे राष्ट्रीय ध्वज पर प्रकाश की किरणें लौट आई हैं। इस बारे में अधिवक्ता समीर कश्यप ने उपायुक्त मंडी संदीप कदम को एक ज्ञापन प्रेषित किया था। अधिवक्ता ने बताया कि इस संदर्भ में उन्होने प्रैस को भी एक विज्ञप्ति जारी की थी। जिस दिन यह विज्ञप्ति जारी हुई उसी दिन प्रशासन हरकत में आया और एक दिन में ही राष्ट्रीय ध्वज की प्रकाश व्यवस्था ठीक कर दी गई। पता चला है कि किसी तकनीकी खराबी के कारण प्रकाश व्यवस्था फेल हो गई थी। लेकिन अब अच्छी किस्म की प्रकाश व्यवस्था की जा रही है जिससे राष्ट्रीय ध्वज को फिर से अंधेरे में न डूबने से रोका जाए। उल्लेखनीय है कि पडड्ल स्टेडियम स्थित राष्ट्रीय ध्वज अक्सर अंधेरे में डूबा रहता था। जिस पर अधिवक्ता ने तिरंगे के अपमान को रोकने के लिए जिला प्रशासन से गुहार लगाई थी। इधर, तिरंगे पर प्रकाश की व्यवस्था हो जाने पर अधिवक्ता ने उपायुक्त मंडी तथा सभी समाचार पत्रों व मीडिया का इस मामले के प्रति संजीदगी दिखाने के लिए आभार व्यक्तकिया है।
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Saturday, 4 February 2017

आखिर 105 फीट ऊंचे तिरंगे पर लौटी प्रकाश की किरणें



मंडी। प्रकाश व्यवस्था न हो पाने के कारण अक्सर अंधेरे में डूबे रहने वाले पडड्ल स्थित 105 फीट ऊंचे राष्ट्रीय ध्वज पर प्रकाश की किरणें लौट आई हैं। इस बारे में उपायुक्त मंडी संदीप कदम को अधिवक्ता समीर कश्यप ने एक ज्ञापन प्रेषित किया था। अधिवक्ता ने बताया कि इस संदर्भ में उन्होने प्रैस को भी एक विज्ञप्ति जारी की गई थी। जिस दिन यह विज्ञप्ति जारी हुई उसी दिन प्रशासन हरकत में आया और एक दिन में ही राष्ट्रीय ध्वज की प्रकाश व्यवस्था ठीक कर दी गई। पता चला है कि किन्ही तकनीकी खराबी के कारण प्रकाश व्यवस्था फेल हो गई थी। लेकिन अब अच्छी किस्म की प्रकाश व्यवस्था की जा रही है जिससे राष्ट्रीय ध्वज फिर से अंधेरे में न डूब जाए। उल्लेखनीय है कि पडड्ल स्थित राष्ट्रीय ध्वज अक्सर अंधेरे में डूबा रहता था। जिस पर अधिवक्ता ने तिरंगे के अपमान को रोकने के लिए जिला प्रशासन से गुहार लगाई थी। इधर, अधिक्ता  ने उपायुक्त मंडी तथा सभी समाचार पत्रों व मीडिया का इस मामले के प्रति संजीदगी दिखाने के लिए आभार व्यक्त किया है।
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मंडी में बनाया जाए आधुनिक पुस्तकालयः शहीद भगत सिंह विचार मंच

मंडी। प्रदेश की सांस्कृतिक और बौद्धिक राजधानी मंडी में आधुनिक और बेहतरीन पुस्तकालय के निर्माण की मांग की गई है। इस संदर्भ में शहर की संस्...