मंडी। प्रदेश उच्च न्यायलय ने लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ओपीडी शुरू करने संबंधी याचिका पर प्रदेश सरकार को निर्देश देते हुए इसे प्रतिवेदन के रूप में विचार करने के निर्देश दिए हैं। उच्च न्यायलय ने इस प्रतिवेदन पर दो सप्ताह के भीतर सुनवाई करने व इसके निस्तारण के भी निर्देश दिये हैं। अब मामले में कार्यान्वयन से संबंधित सुनवाई 14 जुलाई को निर्धारित की गई है। सुंदरनगर के चांबी निवासी मोहन लाल गुप्ता और चांगर कलौनी निवासी कांता शर्मा ने इस बारे में प्रदेश उच्च न्यायलय में लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कालेज और अस्पताल में स्थापित कोविड-19 अस्पताल को कहीं अन्य जगह शिफ्ट करने और मेडिकल कालेज की सामान्य और इमरजेंसी इंडोर व आउटडोर मेडिकल सेवाएं तत्काल शुरू करने के लिए यह याचिका दायर की थी। याचिका के मुताबिक नेरचौक स्थित मेडिकल कॉलेज 2018 से कार्य कर रहा है। इसमें 500 बेड हैं और करीब 100 प्रशिक्षित और अनुभवी चिकित्सक रेडियोलोजी, कारडिओलोजी, पेडियाट्रिकस, साइकौलोजी, स्किन, ईएनटी और न्युरोलोजी आदि विभिन्न विभागों में कार्यरत हैं। इसके अलावा बडी संख्या में तकनीकी और पैरामैडिकल स्टाफ भी यहां पर कार्यरत है। इस मेडिकल कालेज से मंडी, कुल्लू, बिलासपुर और हमीरपुर जैसे साथ लगते जिलों के लोगों को स्वास्थय सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है। हर दिन यहां पर 1200 से 1500 रोगी उपचार के लिए आते हैं और करीब तीन-चार सौ रोगी इंडोर में रहते हैं। याचिकाकर्ताओं के अनुसार कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में इस अस्पताल को कोविड-19 अस्पताल घोषित कर दिया गया था। जिसके कारण नॉन कोविड रोगियों के लिए इस अस्पताल में सभी तरह की स्वास्थय सेवाएं अगले आदेश तक स्थाई रूप से निलंबित कर दी गई है। याचिकाकर्ता कारडिओलोजी, ओरथो, सुगर और स्किन की बीमारियों से जूझ रहे हैं और उनका मेडिकल कालेज में नियमित रूप से इलाज चल रहा था। लेकिन कोविड-19 अस्पताल की अधिसूचना हो जाने के कारण याचिकाकर्ता सहित हजारों रोगियों को स्वास्थय सुविधा से वंचित होना पडा है। याचिकाकर्ता सोहन लाल गुप्ता को मेडिकल कालेज में ओपीडी बंद होने के कारण पीजीआई में अपना इलाज करवाना पडा। जिसमें उन्हें भारी परेशानियां उठानी पडी और पीजीआई से वापिस आने पर 14 दिनों तक होम क्वारंटीन में रहना पडा। याचिकाकर्ताओं के अनुसार मेडिकल कालेज को कोविड-19 अस्पताल बनाने से आम जनता को घर द्वार पर स्वास्थय सुविधाओं से वंचित रहना पड रहा है और उन्हें आईजीएमसी, मेडिकल कालेज टांडा, पीजीआई या बाहरी राज्यों के निजी अस्पतालों में अपना इलाज करवाना पड रहा है। जिसमें लोगों को भारी खर्चा और परेशानियां झेलनी पड रही हैं। याचिकाकर्ताओं के अनुसार प्रदेश के अन्य हिस्सों में उप-मंडलीय या जिला अस्पतालों को कोविड-19 अस्पताल घोषित किया गया है और मेडिकल कालेजों को इससे बाहर रखा गया है। लेकिन मेडिकल कालेज नेरचौक को कोविड-19 अस्पताल घोषित करने से सारी स्वास्थय सुविधाओं के साथ-साथ प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे चिकित्सकों की पढाई भी बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। मेडिकल कालेज में करीब 10 अलग-अलग ब्लॉक हैं। लेकिन कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए सिर्फ 20 बिस्तरों वाले दो हॉल ही दिए गए हैं। जबकि मेडिकल कालेज के चिकित्सकों, तकनिशियनों, पैरामैडिकल व अन्य स्टाफ के ऊपर करोडों रूपये का खर्चा हर महीने उठाना पड रहा है। ओपीडी बंद होने से कोविड अस्पताल के स्टाफ के अलावा सारा स्टाफ पिछले तीन महीनों से बेकार बैठा हुआ है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार इस अस्पताल में पिछले तीन महीनों में कोविड-19 के सिर्फ 25 रोगी भर्ती किए गए हैं। जिनमें से 20 रोगी ठीक हो कर जा चुके हैं और इस समय यहां सिर्फ तीन रोगी ही कोविड-19 के भर्ती हैं। मेडिकल कालेज में ओपीडी शुरू करने के लिए स्थानीय जनता प्रदेश सरकार से समय-समय पर मांग कर रही है। इतना ही नहीं, स्थानीय विधायक ने भी सरकार से कोविड-19 अस्पताल को कहीं अन्यत्र शिफ्ट करने की मांग की है। इधर, उच्च न्यायलय ने याचिकाकर्ताओं की याचिका पर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि इस याचिका को वह प्रतिवेदन के रूप में स्वीकार करके दो सप्ताह में इसका निस्तारण करे। उच्च न्यायलय ने इस मामले में कार्यान्वयन संबंधी सुनवाई अब 14 जुलाई को निर्धारित की है।
पिक्चर साभारः-गुगल
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