मंडी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के फैसले के तहत हुई जांच में हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मंडी जिला के बालीचौकी क्षेत्र में अवैध रूप से चल रहे हॉट मिकसर प्लांट को बंद करवाने में असफल रहने पर क्षेत्रीय अधिकारी (बिलासपुर) को दोषी करार दिया है। बोर्ड ने ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के तहत उक्त क्षेत्रीय अधिकारी पर्यावरण अभियंता आर के नड्डा को याचिकाकर्ता के पक्ष में 10,000 रूपये बतौर कॉस्ट अदा करने का फैसला सुनाया है। कॉस्ट की यह राशि तत्काल अदा न करने पर उक्त अधिकारी के वेतन से इसे काट लिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष न्यायमुर्ति स्वतंत्र कुमार, न्यायिक सदस्य न्यायमुर्ति एम एस नांबियार, न्यायमुर्ति राघवेन्द्रा एस राठौर और विशेषज्ञ सदस्य बिक्रम सिंह सजवान की नयी दिल्ली स्थित प्रिंसिपल बेंच ने मंडी जिला की बालीचौकी तहसील के सुधराणी (खलवाहण) निवासी संत राम की याचिका को स्वीकारते हुए फैसला सुनाया था। आरटीआई एक्टिविस्ट और खलवाहण वार्ड के जिप सदस्य संत राम ने बालीचौकी क्षेत्र में वन भूमी पर अवैध रूप से चल रहे एक हॉट मिक्सर प्लांट को बंद करने के लिए विभिन्न विभागों को शिकायतें दी थी। लेकिन विभागों की विफलता को देखते हुए उन्होने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर करके इसे बंद करने की गुहार लगायी थी। ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा था कि यह बहुत खेदजनक है कि बिना अनुमति से प्लांट चलाने के तथ्यों के बावजूद भी हिमाचल प्रदेश प्रदुषण बोर्ड ने इसे बंद करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं। ट्रिब्यूनल ने इस मामले में प्लांट के मालिक के साथ प्रदूषण बोर्ड को भी अपने वैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन न करने के कारण जिममेवार माना था। ट्रिब्यूनल का कहना था कि अगर बोर्ड ने समय रहते प्लांट को बंद करने की कार्यवाही सुनिश्चित की होती तो याचिकाकर्ता को यह अपील दायर नहीं करनी पडती। ऐसे में ट्रिब्यूनल ने प्रदूषण बोर्ड को याचिककर्ता के पक्ष में 10 हजार रूपये की कॉस्ट अदा करने का फैसला सुनाते हुए कॉस्ट की यह राशि जांच के बाद दोषी साबित होने वाले अधिकारियों से वसूलने के आदेश दिए थे। इधर, बोर्ड ने ग्रीन ट्रिब्यूनल के फैसले की अनुपालना करते हुए इस मामले की जांच शुरू की थी। जिसमें क्षेत्रीय अधिकारी पर्यावरण अभियंता (बिलासपुर) आर के नड्डा की गल्ती सामने आयी है। बोर्ड ने अपनी जांच के आदेश में कहा है कि उक्त अधिकारी की प्राथमिक डयूटी थी कि वह प्लांट को बंद करने में कार्यवाही करे। जबकि उक्त अधिकारी ने प्लांट को बंद करने के लिए कोई कडी कार्यवाही न की और जिसके चलते याचिकाकर्ता को ग्रीन ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाना पडा। बोर्ड के अध्यक्ष ने उक्त अधिकारी को कॉस्ट की राशि तत्काल अदा करने के आदेश दिये हैं। ऐसा न करने पर यह राशि उनके वेतन में से काट ली जाएगी।
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