मंडी। रविवार को यहां के उपायुक्त सभागार में भाषा एवं संस्कृति विभाग की ओर से यशपाल जयंती और वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण कुमार नूतन का 90वां जन्मदिन मनाया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष दीनू कश्यप ने की। वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण कुमार नूतन ने इस मौके पर कहा कि लेखक बिरादरी का आयोजन में जुटना और अपनी रचनाएं सुनाना एक टॉनिक का काम करता है। उन्होने कहा की नूतन कला मंदिर नवरचनाकारों के लिए एक मंच प्रदान करता रहा है और भविष्य में भी संस्थागत गतिविधियां नियमित रूप से जारी रखी जाएंगी। इस मौके पर आयोजित कवि सम्मेलन में प्रदेश की वरिष्ठ लेखिका रेखा वशिष्ठ, रूपेश्वरी शर्मा, हरिप्रिया, भगवान देव चैतन्य, अखिलेश भारती, कृष्णा ठाकुर, किरण गुलेरिया, कर्नज जे कुमार, पूर्णेश गौतम और समीर कश्यप सहित अन्य कवियों ने अपनी कविताएं सुनाई। जबकि अर्चना धीमान ने यशपाल जयंती के अवसर पर अपना पत्र पढ़ा। जिला भाषा एवं संस्कृति अधिकारी और वरिष्ठ अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा भी इस अवसर पर विशेष रूप से मौजूद रहे।
इस मौके पर दीनू कश्यप जी द्वारा पढ़ा गया पत्र
साहित्यकार श्री कृष्णकुमार नूतन इस समय हिमाचल की लेखक बिरादरी के वरिष्ठतम अगवा हैं। नूतन जी का सृजनकर्म उपन्यास, कविता, नाटक के साथ-साथ इतिहास और संस्कृति जैसी विधाओं में फैला हुआ है। नूतन जी जब युवा होने की दहलीज पर कदम रख रहे थे पारिवारिक वातावरण देश की आज़ादी की हवाओं से लवरेज़ था तथा जिसकी जानकारियाँ आज भी इनकी स्मृतियों में है।
सन 1 दिसंबर 1928 में पैदा हुये नूतन का लेखक अपने किस पूर्ववर्ती साहित्यकार से प्रभावित रहा यह शोध का विषय हो सकता है वैसे उस समय प्रेमचंद, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, राहुल सांकृत्यायन, जयशंकर प्रसाद, जैनेन्द्र कुमार, यशपाल, सुदर्शन तथा रांगेव राघव जैसे कई साहित्यकार हिन्दी साहित्य की चर्चा के केन्द्र में आ चुके थे तथा स्वर्गवासी भी हो गए थे।
नूतन जी के पूरे जीवन क्रम को उद्घाटित करना ना मेरी मंशा है और ना ही अभिष्ट और क्षमता। यहां सिर्फ उनके कहानी संग्रह “यादगार” की कहानियों की चर्चा करना चाहुँगा।
नूतन जी की किसान चेतना, दलित, अस्पृष्यता, या फिर मज़दूर संघर्ष व धर्म-जाति के विवादों के कथानक इस संग्रह में नहीं हैं। “यादगार” संग्रह में कुल पंद्रह कहानियां हैं। ज्यादातर कहानियों का परिवेश मध्यवर्गीय नागरीय सभ्याचार के आसपास का है तथा कुछ कहानियां प्रतीकों और ऐतिहासिक कथानकों के आसपास बुनी हुई हैं।
पहली कहानी “नये गाँधी की तलाश में” दफ्तर के साहब बहादुर की ज़्यादतियों और चपरासी मंगलसिंह के पस्ताहालात को बयान करती हैं। जहां साहब अपने घर पर पत्नी द्वारा बताये गये घर के भांडे-बर्तनों की साफ सफाई ना करने पर चपरासी मंगलसिंह पर गरियाता है। वहीं मंगलसिंह द्वारा भीष्ण ठंड में स्टोर बाबू की मेहरबानी से मिले थोडे से कोयले की चोरी पकड़े जाने पर साहब के गुस्से का और भी ज्यादा कोपभाजन होता है। इस पर लेखक अपरोक्ष रूप से स्टोर बाबू ने अपने चारों ओर देखा जैसे उसके भष्ट्राचारियों से थके हारे नयन किसी नये गाँधी की तलाश कर रहे थे।
लावारिस - ऐतिहासिक परिवेश का जिलाधीश कार्यालय। अफसर से चपरासी तक सफाई वाली से इश्क लड़ान अधिकार समझते थे। हजारी प्रसाद द्विवेदी – जिसे कहते हैं गल्प। बाणभट्ट की आत्मकथा एक ढहते हुए महल की व्यथा कथा, जिसे बचाने की जुगत में एक मेहतरानी का संघर्ष है।
इसी विषयवस्तु पर दूसरी कहानी “यादगार” है, जिसके चलते “गीत गाया पत्थरों ने” जैसी चर्चित फिल्म का छायांकन देश भर में विवाद का विषय बना था। रस कलश, अंतिम निर्णय, आधीरात, राखी, प्रथम पुरूस्कार, चरवाही आदि कहानियां मध्यमवर्गीय रिश्तों के बनने बिगड़ने, प्रेम व विद्रोह के रूमानी कथ्यों की फंतासी रचती दीखती हैं। नूतन के कहानी लेखन में अच्छी बात ये रही है कि इन्होंने अपनी कहानियों में भीरटी, काहिका, भूंडा, बाणमूठ, अधमसाणी राक्षस जैसे मायावी या फिर मिथकों के सहारे अंधविश्वास को अपने कथन से दूर रखा। नूतन ने ज्यादा लम्बी कहानयाँ कम लिखी हैं कुछ कहानियों का वितान तो इतना छोटा है कि उन्हें लघु कथाओं की श्रेणी में रखा जा सकता है।
“मैं और मेरा घर” भी एक छोटी कहानी है। प्रतीकों के माध्यम के कही गई यह कहानी अपने में अप्रतिम है जिसमें फालतू का विस्तार नहीं है तथा हिन्दी की प्रयोगात्मक कहानियों की श्रेणी में इसे रखा जा सकता है। ऐसे ही प्रयोग मुक्तिबोध, शमशेर बहादुर सिंह तथा निर्मल वर्मा की कहानियों में भी देखे जा सकते हैं।
अंत में कहना चाहूँगा कि यह मेरे लिए हर्ष व भाग्य का विषय है कि कल आने वाले को मैं कह पाऊँगा कि मैंने नूतन को बोलते, चलते देखा है ठीक अपने सामने। नूतन जी शतायु हों, इस कामना के साथ धन्यवाद।
---दीनू कश्यप
sameermandi.blogspot.com
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