मंडी। शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जन्मदिवस पर शहीद भगत सिंह विचार मंच की ओर से शुक्रवार को न्यायलय परिसर में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें शहीद भगत सिंह के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान और उनके विचारों की आज के समय में प्रासांगिकता को लेकर चर्चा की गई। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के पूर्व राज्य सचिव देशराज ने इस अवसर पर कहा कि फांसी पर लटकाए जाने से मात्र तीन दिन पुर्व शहीद भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव ने तात्कालीन गवर्नर को पत्र लिख कर कहा था कि उनके साथ युद्धबंदियों के तरह व्यवहार करके उन्हें फांसी पर चढाने की बजाय गोलियों से उडा देने की मांग की थी। इस पत्र से इन शहीदों के अंग्रेजों के समक्ष अपनी जान बचाने के लिए नतमस्तक हो जाने के बजाय अदम्य साहस के साथ देश के लिए कुर्बान होने का जज्बा और आदर्श देश के समक्ष प्रस्तुत हुआ था। शहीदों के इन बलिदानों के कारण ही अंग्रेजों को देश छोडकर भागने पर मजबूर होना पड़ा था। इस मौके पर शहीद भगत सिंह विचार मंच के संयोजक समीर कश्यप ने कहा कि भगत सिंह ने जिस गैरबराबरी और शोषण से मुक्त भारतवर्ष का सपना देखा था। वह अभी भी साकार नहीं हो पाया है। उन्होने कहा कि भगत सिंह ने अपने लेख में लिखा था कि गोरे अंग्रेजों के चले जाने और भूरे अंग्रेजों के आ जाने से भी उनका संघर्ष तब तक पूरा नहीं होगा जब तक असमानता और शोषण पर आधारित ढांचा समाप्त नहीं हो जाता। उन्होने कहा कि हमें भगत सिंह के इन शब्दों को हमेशा याद रखना चाहिए कि अगर कोई सरकार जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखती है तो जनता का यह अधिकार ही नहीं बल्कि आवश्यक कर्तव्य बन जाता है कि ऐसी सरकार को बदल दे या समाप्त कर दे। उन्होने भगत सिंह द्वारा अपने पिता केसर सिंह को 30 सितम्बर, 1930 को लिखे पत्र का पाठ भी किया जिसमें भगत सिंह ने पिता द्वारा बचाव पक्ष के लिए भेजे आवेदन का कडे शब्दों में विरोध किया गया था। गोष्ठी में रवि सिंह राणा, लवण ठाकुर, रूपिन्द्र सिंह, अमर चंद वर्मा, बी आर जसवाल, रवि बधान, ललित ठाकुर, प्रितम ठाकुर, विकास कालरा, धनदेव, सुरेन्द्र कुमार आर्य ने चर्चा में भाग लिया। इस मौके पर अधिवक्ता कमल सैनी, मनीष कटोच, विनोद ठाकुर, कुलदीप ठाकुर, ओम प्रकाश, तरूणदीप सिंह सहित मंच के सदस्यों व स्थानीयवासियों ने भाग लिया।
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