एक मुव्वकिल की पेशी के सिलसिले में आज गोहर कोर्ट को जाना हुआ। पेशी से जल्द ही निपट जाने पर लौटते समय ज्युणी घाटी देखने का विचार आया और इस घाटी को पहली बार देखने के लिए चल पड़ा। हर रास्ता, हर मोड़, हर जगह नयापन लिए हुए थी क्योंकि यहां से पहली बार गुजरना हो रहा था। सड़क की हालत अभी भी कई जगह खराब है हालांकि पता चला है कि पिछले कुछ समय से सड़क पर उखड गई टायरिंग के कारण बने गड्ढों को ठीक करने का काम चल रहा है। जिससे सड़क की हालत कई जगहों पर जहां पहले ज्यादा बुरी थी अब ठीक हो गई है। रास्ते में बडे-छोटे गांव आते रहे। जाछ के आगे से बर्फ से गुजरना शुरू हुआ। कई जगह तंग सडक पर पास लेने के लिए बर्फ पर टायर ले जाने से वाहन स्कीट हो रहा था। लेकिन यात्रा जारी रखते हुए एक कैंची मोड पर सडक में बर्फ ज्यादा होने के कारण वाहन ने आगे बढने की बजाय स्कीट ज्यादा मारना शुरू कर दिया तो आगे की यात्रा को रोक देने का तय करते हुए वाहन को वहां पार्क कर दिया। पता चला कि मैं इस समय में जहल पहुंच चुका हूं। साथ की चाय की दूकान में गया तो वहां एक महिला दूकानदार इस समय मौजूद थी। दूकानदार ने मुझे चाय पिलाई। यहां चाय पीते समय बच्चों के बर्फबारी में एक दूसरे पर बर्फ के गोले बनाकर हमला करने का खेल देखा। बच्चे छिपते-छिपाते आते और दूसरे बच्चों पर बर्फ के गोलों से हमला बोल देते। बच्चे अपने घरों तक पहुंच गई बर्फ का खूब आनंद उठा रहे थे। दरअसल खुश तो सभी थे दुकानदार, किसान, बागवान, टैक्सी वाले जो बर्फबारी में टूरिस्टों को सेवाएं दे रहे थे। बर्फबारी से परेशानी भी शुरू हो गई थी। जैसे बस अब जहल तक नहीं पहुंच रही थी और सिर्फ जाछ या धंगयारा तक ही जा रही थी। वहां से लौटते समय सामने ज्युणी घाटी के दूर-दूर तक फैले खेत दिखाई दिए तो कुछ देर के लिए धूप का आनंद लेता हुआ खेतों और दूर तक फैली ज्युणी घाटी और उसके बीचों बीच बर्फीले पानी के पिघलने से अपने बढ़े हुए स्वर में कलकल बहती ज्युणी खड्ड को निहारता रहा। तभी वहां पर छमतारण (धंगयारा) गांव के कौल राम आ पहुंचे। उनसे बातचीत शुरू हुई तो उन्होने बताया कि इस घाटी को चावल की घाटी कहा जाता है। यहां पर चावल पैदा होता है। जबकि सराज में लोगों की मुख्य फसल बागवानी यानी सेबों के बगीचे हैं। ज्युणी घाटी मंडी की चुनिंदा जगहों में से एक है जहां पर चावल की खेती होती है। उन्होने बताया कि यहां से बडा देयो कमरूनाग और शिकारी को जाने का रास्ता भी है। उन्होने यह भी बताया कि अब देवीदहड एक पर्यटन स्थल के उभरने लगा है। उन्होने यह भी जानकारी दी कि पंडोह-शिमला नेशनल हाईवे घोषित होने से इस रास्ते टनल के माध्यम से करसोग के बखरोट-ततापानी पहुंचा जा सकेगा। जिससे यहां पर्यटन की संभावनाएं बढ सकती है। कुछ और आगे जाने पर जाछ के पास एक जगह फिर से रूका और ज्युणी घाटी को निहारने लगा। वहां भी एक युवक बस के इंतजार में खडा हुआ तो उससे दूर-दूर तक फैले खेतों के बारे में पूछा तो उसने बताया कि जिनमें तने लगे हुए हैं यह मक्की के खेत हैं और वह जो खाली पडे हुए खेत हैं इनमें से मटर की फसल निकाली जा चुकी है और अब इनमें आलू बीजे जाएंगे। जब चावल की खेती के बारे में उससे पूछा तो उसने बताया कि अब चावल बहुत कम बोया जाता है और अधिकतर सब्जी ही बोई जाती है। हालांकि लोगों ने सेब के बगीचे भी लगाए हैं लेकिन उतनी मात्रा में नहीं है जितने सराज घाटी में। ज्युणी खड्ड मंडी जिला की दूसरी सबसे ऊंची चोटी शिकारी माता धार से निकलती है और लंबा सफर तय करके मंडी से 17 किमी दूर पंडोह में व्यास नदी में मिलती है। इस नदी घाटी की भी एक सभ्यता-संस्कृति है जिसे ज्युणी घाटी संस्कृति कहा जा सकता है। यह घाटी बड़ा देयो कमरूनाग की हार यानि क्षेत्र माना जाता है। घाटी के बारे में बातें अनेकों हैं लेकिन बाकि फिर कभी क्योंकि यह एक दिवसीय यात्रा ज्यादा लंबी खिंचती जा रही है।
...sameermandi.blogspot.com
No comments:
Post a Comment