मंडी। सर्किट बैंच के फैसले के खिलाफ संयुक्त संघर्ष समिति के आहवान पर जिला बार एसोसिएशन का अदालतों से बाहिष्कार जारी है। जिससे अदालतों का कामकाज बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। अधिवक्ताओं के कामकाज में भाग न लेने से अदालती कार्य प्रौक्सी अधिवक्ताओं के माध्यम से हो रहा है। अधिवक्ताओं के कार्य पर न रहने के कारण न्यायलय परिसर में दोपहर बाद सन्नाटा पसर जाता है। हालांकि कुछ झुंडों में बैठे अधिवक्तागण उच्च न्यायलय के इस फैसले पर गर्मागर्म चर्चा करते देखे जा सकते हैं। उच्च न्यायलय के उपमंडलों में सर्किट कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त संघर्ष समिति के उपाध्यक्ष और जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भारत भूषण शर्मा का कहना है कि यह जिला बार एसोसिएशन के सदस्यों के साथ चौबिस अठतालिस हुआ है। जिसके तहत जिला बार के अधिवक्ताओं के करीब 2000 मामले उनसे राय लिये बगैर अन्यत्र अदालतों को भेज कर उन्हे ब्रीफलैस करने के कोशीश की जा रही है। अगर सर्किट कोर्ट को मामले प्रेषित किये जाने थे तो इससे पहले विभिन्न पक्षों और अधिवक्ताओं से पूछ कर वही मामले उन उपमंडलों को भेजे जाने चाहिए थे जो वहां मामलों का निराकरण चाहते थे। लेकिन उपमंडलों के तहत आने वाले सभी मामलों को सर्किट में भेज देना न्यायसंगत नहीं है। अधिवक्ता लोकेन्द्र कुटलैहडिया का कहना है कि बार एसोसिएशन विकेन्द्रीकरण की विरोधी नहीं है लेकिन बिना मूलभूत सुविधाओं के सर्किट कोर्ट लगाने से न्यायलय की गरिमा को ठेस पहुंचेगी। अस्थाई व्यवस्था से न्यायिक व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होगी और गुणात्मक न्याय नहीं हो पाएगा। बार एसोसिएशन के उप प्रधान दिनेश सकलानी का कहना है कि विकेन्द्रीकरण के तहत प्रदेश उच्च न्यायलय की स्थाई खंडपीठ धर्मशाला और मंडी में भी शुरू की जानी चाहिए। जिससे क्षेत्र के लोगों को उच्च न्यायलय स्तर पर न्याय हासिल करना सुगम हो सके। अधिवक्ता महेश चंद्र शर्मा का कहना है कि सर्किट कोर्ट का फैसला लागू करने से पहले विधिक समुदाय और प्रभावित बार एसोसिएशनों से सुझाव ले कर व्यवहारिक दिक्कतों पर कार्य किया जाना चाहिए था। अगर अधिवक्ताओं के पास ब्रीफ ही नहीं रहे तो उनका इस व्यवसाय में रहना मुश्किल हो जाएगा। जबकि देश और समाज को लोगों तक न्याय पहुंचाने के लिए इस समय अधिवक्ताओं की भारी जरूरत है। Thursday, 31 October 2013
सर्किट बेंच का फैसला अधिवक्ताओं के लिए चौबिस- अठतालिसः भारत भूषण शर्मा
मंडी। सर्किट बैंच के फैसले के खिलाफ संयुक्त संघर्ष समिति के आहवान पर जिला बार एसोसिएशन का अदालतों से बाहिष्कार जारी है। जिससे अदालतों का कामकाज बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। अधिवक्ताओं के कामकाज में भाग न लेने से अदालती कार्य प्रौक्सी अधिवक्ताओं के माध्यम से हो रहा है। अधिवक्ताओं के कार्य पर न रहने के कारण न्यायलय परिसर में दोपहर बाद सन्नाटा पसर जाता है। हालांकि कुछ झुंडों में बैठे अधिवक्तागण उच्च न्यायलय के इस फैसले पर गर्मागर्म चर्चा करते देखे जा सकते हैं। उच्च न्यायलय के उपमंडलों में सर्किट कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त संघर्ष समिति के उपाध्यक्ष और जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भारत भूषण शर्मा का कहना है कि यह जिला बार एसोसिएशन के सदस्यों के साथ चौबिस अठतालिस हुआ है। जिसके तहत जिला बार के अधिवक्ताओं के करीब 2000 मामले उनसे राय लिये बगैर अन्यत्र अदालतों को भेज कर उन्हे ब्रीफलैस करने के कोशीश की जा रही है। अगर सर्किट कोर्ट को मामले प्रेषित किये जाने थे तो इससे पहले विभिन्न पक्षों और अधिवक्ताओं से पूछ कर वही मामले उन उपमंडलों को भेजे जाने चाहिए थे जो वहां मामलों का निराकरण चाहते थे। लेकिन उपमंडलों के तहत आने वाले सभी मामलों को सर्किट में भेज देना न्यायसंगत नहीं है। अधिवक्ता लोकेन्द्र कुटलैहडिया का कहना है कि बार एसोसिएशन विकेन्द्रीकरण की विरोधी नहीं है लेकिन बिना मूलभूत सुविधाओं के सर्किट कोर्ट लगाने से न्यायलय की गरिमा को ठेस पहुंचेगी। अस्थाई व्यवस्था से न्यायिक व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होगी और गुणात्मक न्याय नहीं हो पाएगा। बार एसोसिएशन के उप प्रधान दिनेश सकलानी का कहना है कि विकेन्द्रीकरण के तहत प्रदेश उच्च न्यायलय की स्थाई खंडपीठ धर्मशाला और मंडी में भी शुरू की जानी चाहिए। जिससे क्षेत्र के लोगों को उच्च न्यायलय स्तर पर न्याय हासिल करना सुगम हो सके। अधिवक्ता महेश चंद्र शर्मा का कहना है कि सर्किट कोर्ट का फैसला लागू करने से पहले विधिक समुदाय और प्रभावित बार एसोसिएशनों से सुझाव ले कर व्यवहारिक दिक्कतों पर कार्य किया जाना चाहिए था। अगर अधिवक्ताओं के पास ब्रीफ ही नहीं रहे तो उनका इस व्यवसाय में रहना मुश्किल हो जाएगा। जबकि देश और समाज को लोगों तक न्याय पहुंचाने के लिए इस समय अधिवक्ताओं की भारी जरूरत है।
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