Tuesday 14 May 2019

अतिरिक्त मूल्य रा सिद्धान्त, कार्ल मार्क्सा री प्रसिद्ध खोज




पैहलकी व्यवस्था ले विपरीत पूँजीवादी व्यवस्था बिच माहणु री सम्पत्ति तेस कठे अधिकृत व्यक्तिगत सुविधा या उपभोगा री चीजा मंझ निहित नीं हुंदी। पूँजीवादी उत्पादना रा विशिष्ट लक्षण होर चरित्र ये हा भई चीजा उत्पादका होर मालिका री निजी जरूरता री सन्तुष्टि कठे नीं बल्कि मात्र विनमया कठे उत्पादित किती जाहीं। यों उत्पादित चीजा, सामग्री, व्यापारिक माल, या अर्थशास्त्रीय शब्दावली मंझ पण्य या कमोडिटी या बिकाऊ चीज हुआईं। होर क्योंकि पूँजीवादी समाजा मंझ सम्पत्ति बिकाऊ चीजा रे एकी विराट संचया रे रूपा मंझ साम्हणे आवाहीं। आसारा शोध बी बिकाऊ चीजा रे विश्लेषणा ले हे शुरू हुणा चहिए।
कार्ल मार्क्स बिकाऊ चीजा या पण्य (कमोडिटी) रा गैहरा विश्लेषण करदे हुए एस निष्कर्षा पर पौहचाहें भई पूँजीवादी व्यवस्था मंझ उपयोग मूल्य अर्थात उपभोगा कठे तेतारी उपयोगिता रे अलावा एतारा एक होर विशिष्ट लक्षण एतारा विनिमय मूल्य हुआं। कोई चीज तेबे तका बिकाऊ चीज रैहाईं जेबे तका तेतारा उपयोग मूल्य आपु जो प्रकट नीं करदा अर्थात जेबे तका ये केसी बी रूपा या अंशा मंझ उपभोक्ता रे उपयोगा मंझ नीं आई जांदी। केसी चीजा रा उपयोग मूल्य तेतारे उपभोक्ता रे संन्दर्भा मंझ आपु तेसा चीजा मंझ हे अन्तर्निहित रैहां जेबेकि तेतारा विनिमय मूल्य एकी सुनिश्चित आर्थिक सम्बन्ध, जरूरी रूपा के सामाजिक उत्पाद हुआं होर आपणे सभी विशिष्ट लछणा कठे तात्कालीन उत्पादन पद्धति पर निर्भर रैहां। गेहूँ रे स्वादा ले कोई ये नीं दसी सकदा भई से केसी रूसी भूदासे, फ्रांसीसी किसाने, या फेरी अंग्रेज पूँजीपतिए उगाईरा। चाहे जिहां बी उगाया गईरा हो एतारा उपयोग मूल्य से हे रैहां। पर केसी सामाजिक व्यवस्था मंझ एतारा विनिमय मूल्य तेस समाजा मंझ प्रचलित उत्पादन प्रणालियां ले निर्धारित हुआं। पूँजीवादी सम्पत्ति विनिमय मूल्या रा समुच्चय हुआईं होर पूँजीवादा जो समझणे कठे विनिमय मूल्या री प्रकृति होर बिकाऊ चीजा रे वितरणा री व्याख्या जरूरी हुई जाहीं। उदाहरणा कठे केसी बी फैक्टरी-उत्पादा जो लेई सकाहें जे पूँजीवादी समाजा मंझ उत्पादना रा लाक्षणिक स्वरूप हा। एतारा उत्पादन फैक्टरी मंझ मालिका रे द्वारा मजदूरी पर रखे गए मजदूरा री विशाला संख्या द्वारा कितेया गया। फेरी ये थोक व्यपारी, होर फेरी परचून व्यपारी बाल़े भेजया गया जिने एतारा विक्रय उपभोक्ता जो करी दिता। चीजा रे उत्पादन होर उपभोगा रे बीच भरा बिचौलियां री संख्या कम या ज्यादा रैहीरी हुई सकाहीं, पर उत्पादन होर वितरणा मंझ तिन्हां सभी रा योगदान तेसा वस्तु री आवश्यकता या तेतारे प्रति लगावा रे करूआं नीं बल्कि आपणे कठे मुनाफा कमाणे रे उद्देश्या के रैहीरा। तिन्हां सभी रे हिस्से रा ये मुनाफा आया किथी ले? आसे मनी लैहाएं भई स्यों सभ लोक बिल्कुल ईमानदार हे होर तिन्हां मंझा ले हरेके चीजा रा उचित बाजार-भावा पर मूल्य बी चुकाईरा। हरेके उपभोक्ता रे चुकाईरे क्रय मूल्य या तेसा चीजा रे विनिमय मूल्या मंझा ले आपणा हिस्सा प्राप्त कितेया। तेसा चीजा रा विनिमय मूल्य पैहले ता थोक व्यपारी री उत्पादका जो चुकाई गईरी कीमता मंझ अभिव्यक्त हुआ। इथी ये ध्याना मंझ रखणा पौणा भई मूल्य कीमता रा कारण हुआं, खुद कीमत नीं हुंदा, होर दोन्हों हमेशा मात्रा री दृष्टि ले समानुरूप बी नीं हुंदे। चीजा सस्ती या मैहंगी यानि आपणे मूल्य ले कम या ज्यादा कीमता बिच खरीदी जाई सकहाईं, क्योंकि जिथी मूल्य उत्पादना री सामाजिक परिस्थितियां के निर्धारित हुआं तिथी कीमत व्यक्तिगत उद्देश्या के तय हुआईं अर्थात माहणु द्वारा या तेस कठे चीजा रे मूल्या रा अनुमान, बजारा री सौदेबाजी, माँग होर आपूर्ती बगैरा-बगैरा। केसी चीजा री बाजार मंझ कीमत तेता कठे चुकायी गई कीमता रा औसत हुआईं होर ये सदा तेसा चीजा रे सामाजिक मूल्या ले तय हुआईं।
सभ बिकाऊ चीजा (कमोडिटी) मंझ निहित ये सामाजिक मूल्य हुआं क्या हा? ये हुआं मानवीय श्रम। केसी बी चीजा रा विनिमय मूल्य तेता मंझ निहित मानवीय श्रम-शारीरिक या मानसिका- रे बराबर हुआं। होर एतारा अर्थ केसी बी परिस्थिति मंझ कितेया गया श्रम नीं हा। चीजा रा मूल्य तेता मंझ निहित सामाजिक रूपा ले जरूरी श्रम हुआं यानि के तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियां मंझ तेतारे उत्पादना कठे आवश्यक श्रमा री औसत मात्रा। अगर कोई एताले कम या ज्यादा श्रमा रा उपयोग करे ता बी चीजा रा विनिमय मूल्य अपरिवर्तित रैहां क्योंकि से ता सामाजिक रूपा ले आवश्यक श्रमा ले हे तय हुआं। होर ये बी भई अगर विद्यमान सामाजिक परिस्थितियां मंझ वितरणा योग्य परिमाणा ले ज्यादा मात्रा मंझ चीजा रा उत्पादन कितेया जाहां ता तिन्हां चीजा रे विनिमय मूल्या मंझ गिरावट आई जाहीं। अगर उत्पादना रे उपकरणा मंझ सुधार हुआं ता संक्रमणा रे शुरूआती दौरा मंझ, जेबे तका उत्पादना रे पुराणे तरीके हे आम तौरा पर स्वीकार्य हुआएं, केसी चीजा रा मूल्य पुराणी उत्पादन पद्धति रे अनुसार सामाजिक रूपा ले आवश्यक मानवीय श्रमा रे परिणामा ले निर्धारित हुआं, पर नौवीं उत्पादन पद्धति रे लगातार प्रचलना मंझ आउणे रे सौगी-सौगी मूल्य रा निर्धारण बी नौवीं व्यवस्था रे अनुरूप हुंदा लगहां।
होर ये नियम सभी बिकणे लायक चीजा पर लागू हुआं जेता बिच से विशिष्ट बिकाऊ चीज-मानविय श्रम-बी सम्मलित हुआं जे माहणु रे स्वामित्व मंझ होर तेसले अवियोज्य हुंदे हुए बी पूँजीवादी उत्पादन पद्धति मंझ, पिछली सभी व्यवस्थावां रे विपरीत, अन्य केसी बी बिकाऊ चीजा रे हे साहीं बेचया होर खरीदेया जाई सकहां। बाकी बिकाऊ चीजा साहीं हे, पूँजीपति द्वारा खरीदे जाणे परा, श्रमिका री श्रम-शक्ति रे मूल्य रा भुगतान बी तेसरे पुनरूत्पादना कठे सामाजिक रूपा ले आवश्यक मानवीय श्रमा के हुआं। यानि के पूँजीपति जो मजदूरी रे रूपा मंझ तितनी मानराशि रा भुगतान करना हुआं जितनी मजदूरा रे आपणे भरण-पोषण होर आपणी वंश-वृद्धि कठे जीवना री तत्कालीन परिस्थितियां मंझ जरूरी हा। जीवन-स्तर, श्रमा री आपूर्ती होर मांग, होर आपणे साझा हिता कठे मजदूरा री एकजुटता रे स्तर बगैरा कारका रे मुताबिक ये मानराशि बी अलग-अलग हुई सकाहीं। पर जेबे तका समाजा रा मात्र एक हे हिस्सा उत्पादना के जुड़ीरा होर दूजा हिस्सा तेस श्रमा रे उत्पादा पर जीहां तेबे तका श्रमिक रे भरण-पोषणा कठे दिती जाणे वाल़ी मजदूरी तेस द्वारा उत्पादित चीजा रे मूल्य ले कम हे रैहणी। ये हा सार-तत्व उत्पादना री पूँजीवादी व्यवस्था रा। मजदूरा रा आपणी मजदूरी रे समतुल्य मूल्या रे उत्पादना मंझ लगाया जाणे वाल़ा श्रम “आवश्यक” श्रम हुआं, एतारा उत्पाद “आवश्यक” उत्पाद, होर एस उत्पादा रा मूल्य “आवश्यक” मूल्य। मजदूरी रे मूल्या रे पुनरूत्पादना कठे आवश्यक श्रमा ले अलावा लगाया जाणे वाल़ा श्रम “अतिरिक्त” श्रम, एस श्रमा रा उत्पाद “अतिरिक्त” उत्पाद होर एतारा मूल्य “अतिरिक्त” मूल्य हुआं। इथी आवश्यका रा मतलब तेस परिमाणा ले हा जितना तत्कालीन परिस्थितियां मंझ जीवन यापना कठे जरूरी हा।
इथी एकी-दो बिन्दुआं परा ध्यान देणा जरूरी हा। आपणी पूँजी मंझ वृद्धि होर संयन्त्रा होर मशीना मंझ सुधार करीके पूँजीपति आपणा मुनाफ़ा बधाई लैहां (हालांकि ध्यान रौहो भई मुनाफ़े री दर नीं बधदी पर एस विषया पर चर्चा अझी नीं करनी) । एताले ऊपरी तौरा पर ये लगी सकहां भई मशीनें तेसरा अतिरिक्त मूल्य कुछ सीमा तका बधाई दितीरा। पर पूँजीपति जो बिक्री कठे उत्पादित किती जाणे वाल़ी मशीन बी केसी बी होरी चीजा रे हे साहीं एक बिकाऊ चीज हे हुआईं होर एता मंझ निहित मूल्य बी एतारे उत्पादना कठे आवश्यक सामाजिक श्रमा रे बराबर हे हुआं। होर ये हे गल्ल केसी बी चीजा, उदाहरणा कठे कपड़े रे उत्पादना ले सम्बन्धित संयन्त्र, कच्चे माल, होर बाकी सहायक सामग्रियां पर लागू हुआईं। कुछ साल बीतणे रे सौगी-सौगी कच्चे माल, मशीना बगैरा रा ये मूल्य तैयार उत्पाद-कपड़े मंझ हस्तांतरित हुई जाहां। तैयार कपड़े मंझ कपास या सहायक सामग्री रा मूल्य नीं बधलदा, मशीन होर संयन्त्रा रा बी मूल्य नीं बधलदा सिवाय एतारे भई तेतारा एक अंश हस्तान्तरित हुआ जाहां जेता जो टूट-फूट या घिसाई रे नावां पर बट्टे खाते मंझ पाई दितेया जाहां।
अगर मुनाफ़ा अतिरिक्त श्रमा रा उत्पादित अतिरिक्त मूल्य रा परिणाम हा ता फेरी मशीना मंझ सुधारा रे सौगी-सौगी मुनाफ़ा बी किहां बधी जाहां? सीधा जेह जवाब हा- क्योंकि मशीना समय बचाणे रा यन्त्र हा। से मजदूरा जो आपणी मजदूरी रे समतुल्य मूल्य रा उत्पादन दिना रे होर बी कम घण्टेयां मंझ करने बिच समर्थ करी देहां होर इहां दिना रे होर बी ज्यादा घण्टे अतिरिक्त मूल्य रा उत्पादन करने कठे बची जाहें। अगर पैहले मजदूरा जो दिना रे बारा मंझा ले छैह घण्टे आपणी मजदूरी रे समतुल्य मूल्य रे उत्पादना मंझ लगाणे हुआएं थे ता परिष्कृत मशीना के से ये हे काम तीन घण्टे मंझ करी लैहां होर इहां से पूँजीपतियां जो आपणे नौ घण्टेयां रा श्रम निःशुल्क भेंट करी देहां। ये हे कारण हा भई उत्पादन प्रणाली मंझ हर प्रगति शोषणा री दरा जो बधाईं होर मजदूरा होर पूँजीपतियां रे वर्गीय वैरा जो होर बी तीखा करी देहाईं। एहड़ा हे परिणाम यानि के शोषणा री दरा मंझ वृद्धि कामा रे घण्टे बधाई के प्राप्त कितेया जाहां (हालांकि तेसा सीमा तक हे जिथी तका से मजदूरा री क्षमता पर कोई दुष्प्रभाव नीं पाओ)। शोषणा रा सीधा, खुला प्रयास हुणे रे करूआं एतारा प्रतिरोध हुआं होर पूँजीपतियां होर मजदूरा रे बीच कार्य-दिवसा जो लेई के संघर्ष शुरू हुई जाहां।
ये हे परिणाम मज़दूरा रा जीवन स्तर थाल्हे ल्याई के या जीविका री लागत कम करीके बी हासिल कितेया जाहां होर एताके एकी बखौ जनानेयां होर बच्चेयां जो कामा पर रखी लितेया जाहां जिन्हारा जीवन स्तर आमतौरा पर मर्धा री अपेक्षा थाल्हे हुआं, होर ज्यों अजही तका पुरूषा री अपेक्षा उत्पादना रे ज्यादा विनीत होर निरीह उपकरण हुआएं, होर दूजी बखौ मुक्त व्यपारा री स्थापना करीके, क्योंकि अजही तका इंग्लैण्डा रे सामहणे होरी देशा री प्रतिस्पर्धा ले भयभीत हुणे रा कोई कारण उपस्थित नीं हा, मजदूरा रे भोजना री लागत कम करीके। ये संयोग मात्र नीं हा भई जे औद्योगिक पूँजीपति भोजना री लागत घटाणे रे आपणे स्वघोषित लक्ष्या रे कठे मुक्त व्यपारा री स्थापना कठे मुख्यतया जिम्मेवार थे, स्यों हे परोपकारी कार्य-दिवसा जो छोटा करने होर नितान्त अमानवीय दशा मंझ बी जनानेयां होर बच्चेयां ले काम लेणे पर अंकुश लगाणे रे कट्टर विरोधी थे।
होर मर्धा, जनानेयां होर बच्चेया रे अतिरिक्त श्रमा ले पैदा हुईरा ये अतिरिक्त मूल्य, जेता कठे पूँजीपतिए कोई कीमत नीं चुकाईरी, हे तेसरी सम्पत्ति होर धन-दौलता रा स्त्रोत हा। एक समय था जेबे दास होर भूदासा रे स्वामी आपणी एसा चल सम्पत्ति रे उत्पादना जो सीधे-सीधे अधिग्रहित करी लैहाएं थे होर तिन्हारे खाणे-कपड़े बगैरा रा तेहड़ा हे ध्यान रखाहें थे जेहड़े आपणे मवेशियां रे खाणे-कपड़े बगैरा रा। पर अब माहणु बाहरी तौरा पर स्वतन्त्र हे होर अनुत्पादक वर्गा री सम्पत्ति एक रहस्य बणीरी। पर रहस्य मात्र ये हा-पूँजीपति रा मजदूरा रे अतिरिक्त श्रम या उत्पादित अतिरिक्त मूल्य रा अधिग्रहण। एकी वर्गा रा दूजे वर्गा रे स्वत्वहरणा रा ये एक विशिष्ट स्वरूप हा होर एस स्वरूपा पर पूँजीपति होर मजदूरा रा वर्गीय सम्बन्ध पूँजीवादी उत्पादन पद्धति रा सारतत्व हा। पूँजीवादी न्यायशास्त्रा रा पूरा ढांचा, सम्पत्ति रे पूँजीवादी कानून, पूँजीवादी आचार संहिता, एकी शब्दा मंझ बोलियें ता पूरी पूँजीवादी विचारधारा परा आधारित हुआं। होर कितने हे सुधार की नीं करी दिते जाये जेबे तका उत्पादना री पूँजीवादी पद्धति रैंहगी, मजदूरा रा शोषण जारी रैहणा होर पूंजीवादी आचार-विचार हे समाजा रे सामान्यतया स्वीकृत आचार-विचार रैहणे। देशा री विशाल बहुसंख्या- मजदूरा री शारीरिक होर मानसिक मुक्ति ता तेबे हे सम्भव हुणी जेबे “हस्तगतकर्ता रा हे हस्तगतीकरण” करी लितेया जांघा होर मुनाफे कठे उत्पादना री जगहा उपयोगा कठे उत्पादन लेई लैंघा।
---ज़ेल्डा काहन-कोटस लिखित कताब “कार्ल मार्क्स-जीवन और शिक्षाएं” रे मण्डयाल़ी नोट्स। ये कताब राहुल फाउण्डेशन, लखनऊ ले छपीरी।
...sameermandi.blogspot.com


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