आपणी कताब “राजसत्ता और क्रान्ति” रे पैहले संस्करणा री भूमिका बिच लेनिन बोल्हाएं भई सिद्धान्त होर व्यवहार दोन्हों हे बखा ले देखणे ते राजसत्ता रा प्रश्न आज खास महत्व धारण करी करहां। सम्राज्यवादी युद्धे एकाधिकारी पूंजीवादा रे तेजी के राज्याधिकारी पूंजीवाद मंझ बदलणे री प्रक्रिया जो होर भी तेज होर गैहरा बनाई दितिरा। राजसत्ता के—जे कि सर्वशक्तिशाली पूंजीवादी गुटा रे सौगी ज्यादा ले ज्यादा मिलदी जाई करहाईं—मेहनतकश जनता रा राक्षसी उत्पीड़न दिन पर दिन होर बी ज्यादा भयंकर हुंदा जाई करहां। उन्नत देशा जो—इथी आसे तिन्हारी “पिछाड़ी” री गल्ल करी करहाएं—मज़दूरा रे फ़ौजी क़ैदखानेयां मंझ बदलेया जाई करहां।
लम्बे युद्धा री कल्पनातीत तकलीफा होर भयानकता जनता री स्थिति जो असह्य बणाई करहाईं होर तेसारी क्रोधाग्नि जो भड़काई करहाईं। एक अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर क्रान्ति साफ़ तौरा पर पकी करहाईं। राजसत्ता रे संबंधा मंझ तेसारा क्या कर्त्वय हा, ये प्रश्न एक असली महत्व धारण करी करहां।
पिछले दसियाँ साला रे अपेक्षाकृत शान्तिपूर्ण विकासा रे साला मंझ जे अवसरवादी तत्व इकट्ठा हुए थे तिन्हें सामाजिक-अंधराष्ट्रवादा री प्रवृति जो जन्म दितेया जे दुनिया री सारी अधिकृत सोशलिस्ट पार्टियां पर हावी हुई गईरी। शब्दा मंझ समाजवाद होर कामा मंझ अंधराष्ट्रवादा री ( रूसा मंझ प्लैखानोव, पात्रेसोव, ब्रेशकोव्स्काया, रूबानोबिच, और थोड़े छिपिरे रूपा बिच, सेरेतली, चेर्नोफ बगैरा, जर्मनी बिच शाइडमेन, लेगें, डेविड होर दूजे लोक, फ्रांस होर बेल्जियमा बिच रिनाडेल, गेस्दे, बांडरवेल्ड, इंगलैण्डा बिच हिण्डमैन होर फ़ेबियन-पंथी बगैरा, बगैरा री) एसा प्रवृति री विशेषता ये ही भई तिन्हारे “नेतेयां” “समाजवाद” ना सिर्फ नीच, गुलामी रे ढंगा के “आपणे” राष्ट्रीय पूंजीपति-वर्गा रे हिता रे, बल्कि, होर खास तौरा पर, “तिन्हारी” राजसत्ता रे बी हिता रे अनुकूल ढाल़ी लितिरा, क्योंकि ज्यादातर तथाकथित बड़ी ताकता बौहत दिना ले कितनी हे छोटी होर कमजोर जातियां जो आपणा गुलाम बनायी के तिन्हारा शोषण करदी आईरी। साम्राज्यवादी लड़ाई ठीक एहडी हे लूट-खसोटा री छीना-झपटी होर बँटवारे री हे लड़ाई ही। श्रमजीवी जनता जो आम पूंजीपति वर्गा रे, होर ख़ास तौरा पर साम्राज्यवादी पूंजीपतियाँ रे प्रभावा ले छुटकारा दुआणे री लड़ाई “राजसत्ता” रे सबंधा बिच अवसरवादी विद्वेषा रे खिलाफ़ संघर्षा रे बिना असंभव ही।
सभी थे पैहले आसे राजसत्ता रे संबंधा बिच मार्क्स होर एंगेल्सा रे सिद्धान्ता जो लैहाएं होर एस सिद्धान्ता रे तिन्हा पैहलुआं पर विशेष विस्तारा के विचार करहाएं जिन्हौ या ता भुलाई दितेया गइरा या अवसरवादी ढंगा के तोड़ी-मरोड़ी दितेया गइरा।
एता ले बाद आसे इन्हा तोड़-मरोड़ा रे मुख्य प्रतिनिधि, कार्ल काट्स्की रा विश्लेषणा करहाएं जे दूजे इण्टरनेशनला (1881-1914) रा—जेसरे दिवालियेपना जो दसी के वर्तमान युद्धे बुरी तरहा के मिट्टी पलीद करी दितिरी—सभी थे प्रसिद्ध नेता हा। आखरा बिच, आसे 1905 री, होर ख़ास तौरा पर 1917 री, रूसी क्रान्ति रे ख़ास-ख़ास अनुभवा रा सारांश देहाएं। ये साफ़ हा भई 1917 री क्रान्ति एस बक्त (अगस्त 1917 रे शुरू बिच) आपणे विकासा री पैहली मंजिला जो पूरा करी करहाईं, पर आम तौरा पर, एसा पूरी क्रान्ति जो साम्राज्यवादी युद्धा ले पैदा हुणे वाल़ी समाजवादी सर्वहारा क्रान्ति री श्रृंखला री एक कड़ी रे रूपा बिच हे देखया जाई सकहां। इधी कठे, राजसत्ता रे सौगी मज़दूरा री समाजवादी क्रान्ति रा क्या संबंध हा, ये प्रश्न अमली राजनीतिक महत्व रा हे नीं रैही जांदा, बल्कि ये आजा री एक बौहत जरूरी समस्या बणी जाहां, पूंजीवादी जुए ले निकट भविष्या मंझ छुटकारा पाणे कठे तेसौ क्या करना पौणा, जनता जो ये दसणे री समस्या बणी जाहां।
अध्याय 1.
वर्ग-समाज होर राजसत्ता
1. राजसत्ता रा जन्म मेल नीं हुई सकणे वाल़े वर्ग-विरोधा रे करूआं हुआं
मार्क्सा रे सिद्धान्ता सौगी आज जे कुछ हुई करहां मुक्ति-संघर्षा बिच लगीरे पीड़ित वर्गा रे दूजे क्रान्तिकारी विचारका होर नेतेयां रे सिद्धान्ता रे सौगी बी, इतिहासा बिच, अक्सर एहड़ा हे हुईरा। महान क्रान्तिकारियां रे जियुंदे-ज्युए उत्पीड़क वर्ग लगातार तिन्हारी जानी रे पीछे पईरे रैहाएं, तिन्हारे सिद्धान्ता पर ज्यादा ले ज्यादा बर्बरता-पूर्ण द्वेषा के हमले करहाएं, घृणा होर क्रोधा के पागल हुई के तिन्हारे ख़िलाफ़ झूठ होर बदनामियां रा नीचा ले नीच प्रचार करहाएं। पर जेबे स्यों मरी जाहें ता तिन्हौ हानि-रहित मूर्तियां का रूप देई देणे, तिन्हा रे नावां रा गुण-गान करिके, पीड़ित वर्गा जो “बैहलाणे” होर धोखा देणे कठे तिन्हौ ऋषि-मुनियां रा जामा पैहनाई देणे री कोशिश किती जाहीं। सौगी हे तिन्हारे सिद्धान्ता रे विप्लवी तत्वा जो ख़तम करी दितेया जाहां, तिन्हौ भ्रष्ट करी दितेया जाहां होर तिन्हारी क्रान्तिकारी धारा जो कुन्द करी दितेया जाहां। मार्क्सवादा रा संशोधन करने कठे पूंजीपति वर्ग होर मज़दूर आन्दोलना रे अवसरवादियां रे बीच आज पूरी एकता ही। मार्क्सवादा रे क्रान्तिकारी पहलू जो, तेतारी क्रान्तिकारी आत्मा जो स्यों छाडी देहाएं, तेतौ मिटाहें होर तोड़ाहें-मरोड़ाहें। स्यों तेसा हे चीजा जो सामहणे रखाहें होर प्रशंसा करहाएं जे पूँजीपति वर्ग जो मान्य ही, या लगहां भई तेजो मान्य हुणी। सभ सामाजिक अंध-राष्ट्रवादी एभे “ मार्क्सवादी” (हासा नीं) बणी गइरे।
एहड़ी परिस्थतियां बिच, जेबे मार्क्सवादा रे बारे बिच चहुँ बखौ एस हदा तका भ्रष्ट धारणा फैल्हीरी, आसारा पैहला कर्तव्य राजसत्ता रे बारे बिच मार्क्सा रे असली सिद्धान्ता री पुनःस्थापना करना हा। इधि कठे आसौ मार्क्स होर एंगेल्सा री रचनावां मंझा ले बौहत लंबे-लंबे उद्धरण देणे पौणे। एता बिच सन्देह नीं हा भई लम्बे-लम्बे उद्धरण देणे ले पाठय-सामग्री पढ़ने मंझ भारी हुई जाणी, तिन्हारा पढ़ना इतना सरल नीं रैही जाणा, पर तिन्हौ छाड़ी देणा बी संभव नीं हा। राजसत्ता रे प्रश्ना पर मार्क्स होर एंगेल्से जे कुछ बी लिखेया से सारा, या कमा ते कम तेतारे सभी ले महत्वपूर्ण हिस्सेयां जो, जिथि तका हुई सको पूरे रूपा मंझ देणा ज़रूरी हा जेता ले वैज्ञानिक समाजवादा रे जन्मदातेयां रे सारे विचार होर तिन्हा विचारा ले विकास रे सम्बंधा बिच पाठक खुद आपणी स्वतंत्र राय क़ायम करी सको।
एंगेल्स आपणी सभी थे प्रसिद्ध कताब, “परिवार, निजी सम्पत्ति और राजसत्ता रा जन्म” बिच आपणे ऐतिहासिक विश्लेषणा का सार दसदे हुए लिखाहेः
राजसत्ता कोई ऐहड़ी ताक़त नीं ही जेतौ समाजा पर बाहरा ले लादेया गया हो, होर ना हे से “नैतिक विचारा री वास्तविकता” या “कारणा रा प्रतिबिम्ब और वास्तविकता” ही जेहड़ा जे हीगले दसिरा। बल्कि, से समाजा रे विकासा री एक मंज़िला पर पहुँचणे परा तेताले पैदा हुणे वाल़ी एक चीज हीः से एसा गल्ला री स्वीकृति ही भई से समाज खुद आपणे सौगी हे एहड़े विरोधा बिच फस्सी गइरा जेता ले तेसरा छुटकारा नीं हुई सकदा, भई से एहड़े अन्तरविरोधा के छलणी-छलणी हुई गइरा जिन्हौ दूर नीं कितेया जाई सकदा, जिन्हौ दूर करने बिच से असमर्थ हा। पर, इधी कठे जे भई यों विरोध, विरोधी आर्थिक हिता वाल़े वर्ग, निर्रथक लड़ाई बिच आपु जो होर समाजा जो भस्म नीं करी देओ, एक एहड़ी ताकता री ज़रूरत हुई गई जे देखणे मंझ समाजा ले ऊपर हो होर जे एस संघर्षा जो मद्दम बणाये, तेता जो “व्यवस्था” री सीमा मंझ रखे। और से ताक़त जे समाजा ले पैदा हुआईं, पर जे आपणे जो तेताले ऊपर रखाहीं, होर तेताले अधिकाधिक जुदा हुंदी जाहीं, राजसत्ता ही।“
(छठा जर्मन संस्करण, पृ. 177-178).
राजसत्ता री ऐतिहासिक भूमिका होर एतारे अर्था रे बारे बिच ये मार्क्सवादा रे बुनियादी तथ्य जो पूरे तौरा पर सपष्ट करी देहां। राजसत्ता वर्ग-विरोधा रा फल ही होर ये ज़ाहिर करहाईं भई इन्हा विरोधा रा मेल नीं कराया जाई सकदा। राजसत्ता तेबे पैदा हुआईं जेबे वर्ग-विरोधा रा मेल नीं कराया जाई सकदा, से तिथि हे पैदा हुआईं जिथी तिन्हारा मेल असंभव हुई जाहां, होर से तेसा हदा तका बधाहीं जेसा हदा तका इन्हा विरोधा रा असलियता बिच मेल कराणा असंभव हुआं। होर एता जो हे उल्टे ढंगा के बी बोल्या जाई सकहां भई राजसत्ता री मौजूदगी ये साबित करहाईं भई वर्ग-विरोधा रा मेल हुई सकणा असम्भव हा।
2. हथियारबन्द लोका रे विशेष संगठन, जेल, बगैरा
एंगेल्स अग्गे बोल्हाएः
“प्राचीन क़बीलेयां रे संगठना रे मुकाबले मंझ राजसत्ता री पैहली खास पैहचाण ये ही भई तेतारी प्रजा रा बँटवारा प्रदेशा रे आधारा पर हुआं।“
ऐहड़ा बँटवारा आसौ “स्वाभाविक” लगहां, पर तेता जो कायम करने कठे पुराणे, क़बीलेयां री समाज-व्यवस्था रे ख़िलाफ़ एक लम्बे संघर्षा री जरूरत पई थी।
“...दूजी (पैहचाण) ही एक ऐहड़ी सार्वजनिक ताक़ता री स्थापना जे अब से चीज़ नीं रैही जांदी जे पैहले सशस्त्र शक्ति रे रूपा बिच संगठित पूरी आबादी हुआईं थी। ये विशेष सार्वजनिक ताकत जरूरी हुई जाहीं क्योंकि समाज रे वर्गा बिच बँडही जाणे रे करूआं अब पूरी आबादी रा आपणे आप काम करने वाल़ा सशस्त्र संगठन असंभव हुई गइरा। ...ये सार्वभौमिक ताक़त हर राज्य मंझ हुआईं, एता मंझ सिर्फ़ हथियारबन्द आदमी हे नीं रैंहदे, बल्कि तिन्हा सौगी-सौगी होर बी बौहत-सारा भौतिक तामझाम हुआं जिहां, जेल होर ज़ोर-जबरदस्ती री कई प्रकारा री दूजी बौहत सारी एहड़ी संस्था, जिन्हाल़े पुराणा, कबीलेयां रा समाज बिल्कुल अपरिचित था.....”
सभ्य समाज आज विरोधी वर्गा बिच, होर सच्यियो, ऐहड़े वर्गा मंझ बँड़ही गइरा, जिन्हां मंझ मेल असंभव हा, इन्हां वर्गा जो “स्वयं संचालित” बनाई के हथियार देई दिते जाओ ता तिन्हां बिच एक सशस्त्र संघर्ष छिड़ी जाणा। राजसत्ता रा उदय हुआं। हथियारबन्द लोका रे विशेष संगठना रे रूपा बिच एक विशेष शक्ति तैयार किती जाहीं, होर हरेक क्रान्ति, राजसत्ता री मशीना रा ध्वंस करीके, आसौ दसी देहाईं भई हथियारबन्द लोका रे तिन्हा विशेष संगठना जो ज्यों तेसरी रक्षा करहाएं, शासक वर्ग केस ढंगा के भी कने क़ायम करने री कोशिश करहां, होर केस ढंगा के पीड़ित वर्ग तेहड़ा हे एक नौवां संगठन आपणे कठे बनाणे री कोशिश करहां-ऐहड़ा संगठन जे शोषका री नीं, बल्कि शोषिता री सेवा करी सके।
“…..जिहां-जिहां राज्य मंझ वर्ग-विरोध बधाएं होर पड़ोसा रे दूजे राज्यां रे आकार होर तिन्हारी आबादी बिच इजाफ़ा हुआं, तिहां-तिहां, तेस हे अनुपाता मंझ, से (सार्वजनिक ताक़त) बी मजबूत हुंदी जाहीं। आसौ सिर्फ वर्तमान योरपा बखौ देखणे री जरूरत ही जिथी वर्ग-संघर्षे होर दूजे मुल्का पर कब्जा जमाणे री होड़े सार्वजनिक ताकता जो एस हदा तक बढ़ाई-चढ़ाई दितिरा भई से पूरे समाजा जो, इथी तका भई स्वयं राजसत्ता तका जो बी हड़पी लैणे री धमकी देई करहाईं.....”
एंगेल्से 1891 मंझ हे दसी दितेया था भई “दूजे मुल्का पर क़ब्जा जमाणे री होड़”- सभ बड़ी ताक़ता री विदेशी नीति रा एक सभी थे महत्वपूर्ण लक्षण बणी गइरी। पर, 1914-17 मंझ, जेबे एस होड़े कई गुणा बधी के, एक साम्राज्यवादी युद्धा जो जन्म दितिरा, ता धूर्त अंध-राष्ट्रवादी “आपणे-आपणे” पूंजीपति-वर्गा रे लुटेरे हिता री रक्षा करने की गल्ला जो “मातृभूमि री रक्षा,” “प्रजातंत्र होर क्रान्ति री रक्षा,” बगैरा रे शब्दजाला के लकोहणे री कोशिश करहाएं।
3. राजसत्ता—उत्पीड़ित वर्गा रे शोषणा रे अस्त्रा रे रूपा बिच
एंगेल्स लिखाएः
“सार्वजनिक ताक़ता रे मालिक बणी कने होर टैक्स उगाहणे रा अधिकार पाई के अफ़सर लोक एभे समाजा रे ऐहड़े अस्त्र बणी गइरे ज्यों समाजा ले ऊपर हे। तिन्हौ अगर से मुक्त होर स्वेच्छित आदर मिली भी जाओ जे प्राचीन कबीलेयां रे संगठना रे अधिकारियां जो प्राप्त था, ता भी तेताके तिन्हौ सन्तोष नीं हुंदा.....”
“…..चूँकि राजसत्ता रा जन्म वर्ग-विरोधा री रोक-थाम करने री जरूरता ले हुआ था और सौगी-सौगी चूंकि एसारा जन्म इन्हा वर्गा रे संघर्षा रे बिच हुआ था इधी कठे से हमेशा हे, सभी ले ताकतवर, आर्थिक रूपा ले प्रभुत्वशाली वर्गा री राजसत्ता हुआईं। ये वर्ग राजसत्ता रे जरिए राजनीतिक रूपा ले बी प्रभुत्वशाली वर्ग बणी गया होर एस तरीके कने पीड़ित वर्गा रे दमन होर शोषणा कठे नौवें साधन पाई जाहां......।“
कल्हे प्राचीन और सामन्ती राज्य हे दास होर अर्द्ध-दासा रे शोषण रे अस्त्र नहीं थे, बल्कि,
“……आजकी प्रतिनिधि राजसत्ता (बी) पूंजी रा मजूरी रे शोषण रा अस्त्र हा। पर, कधी-कधी, अपवादा रे रूपा मंझ, ऐहड़े वक्त बी आवहाएं जेबे लड़ाई मंझ गुथिरे वर्गा री ताकत इतनी बराबर-बराबर हुई जाहीं भई राजसत्ता तेस थोहडे जेह बक्ता कठे जाहिरा तौरा पर एक बीच-बचाव करने वाल़े रे रूपा मंझ, तिन्हां दोन्हो ले, केसी हदा तका स्वतंत्र हुई जाहीं...”
एंगेल्स अग्गे बोल्हाएं, “जनवादी प्रजातंत्रा मंझ धन आपणी ताकता रा इस्तेमाल अप्रत्यक्ष रूपा ले पर होर बी ज्यादा कारगर तरीके ले करहां,” एक ता “अफसरा जो सीधे-सीधे भ्रष्ट करीके” (अमरीका), दूजे, “सरकार होर स्टाक एक्सचेंजा रे बीच मित्रता कायम करीके” (फ्रांस और अमरीका)।
आपणी सभी थे मशहूर कताबा मंझ आपणे विचारा रा सार एंगेल्से निम्न शब्दा मंझ दितिराः-
“ राजसत्ता अनादि काला ले नीं रैहिरी। ऐहड़े बी समाज हुइरे ज्यों आपणा कामकाज तेतारे बिना चलाई लैहाएं थे, जिन्हौ राजसत्ता होर राज्यशक्ति री कोई कल्पना नीं थी। आर्थिक विकासा री एकी अवस्था मंझ, जे समाजा रे वर्गा मंझ बँडणे ले आवश्यक रूपा ले जुड़ीरी थी, एस विभाजना रे करुआं राजसत्ता एक आवश्यकता बणी गयी। एभे आसे तेजी कने उत्पादना रे विकासा री एक ऐहड़ी अवस्था मंझ पौंहची करहाएं जिथी इन्हा वर्गा रा अस्तित्व ना कल्हे एक आवश्यकता नीं रैही गइरा बल्कि उत्पादना रे रस्ते मंझ एक निश्चित बाधा बणी करहां। स्यों (वर्ग) तेस हे अनिवार्य रूपा बिच खत्म हुई जाणे जेस अनिवार्य रूपा बिच एक पैहलकी अवस्था मंझ स्यों पैदा हुए थे। तिन्हारे सौगी अनिवार्य रूपा बिच राजसत्ता बी खत्म हुई जाणी। तेबे समाजा, जे उत्पादना रा संगठन नौवें सिरे ले उत्पादका रे एक स्वतंत्र होर समान संघ रे द्वारा करना, राजसत्ता री पूरी मशीन जो चकी के तिथी रखी देंघा जिथी तेसारी तेबे जगहा हुंघीः पुराणी चीजा रे अजायब घरा मंझ- चर्खेपूंजीवादी राज्यसत्ता रा कल्हे क्रान्ति हे “अन्त करी सकाहीं”। आम राजसत्ता, यानी सभी ले पूर्ण जनतंत्र कल्हे “मुरझाई के ही खत्म हुई” सकहां।
एंगेल्सा री एसा हे कताबा बिच, जेतारा राजसत्ता रे “मुरझाई के खत्म हुई जाणे” वाल़ा तर्क हरेकी री ज़ुबानी पर चढ़ीरा, हिंसापूर्ण क्रान्ति रे महत्वा री पूरी-पूरी व्याख्या कीतीरी। एतारी भूमिका रा एंगेल्सा द्वारा कितेया गइरा ऐतिहासिक विश्लेषण हिंसापूर्ण क्रान्ति री प्रशंसा बिच लिखीरे एक बधिया गीता साहीं हा। एतारी “केसी जो याद नीं रैहंदी;” आधुनिक समाजवादी पार्टियों मंझ एस विचारा रे महत्वा के बारे बिच कुछ बोलणा, या सोचणा तक खरा नीं समझेया जांदा। होर जनता रे बिच तिन्हारे आन्दोलना होर प्रचार कार्या मंझ एतारी कोई भूमिका नीं हुंदी। पर फेरी बी, राजसत्ता रे “मुरझाई के खत्म हुई जाणे” के ये अभिन्न रूपा ले जुड़ीरा।
एंगेल्सा रा तर्क ये हाः-
“इतिहासा बिच बल (शैतानी ताकत के अलावा) एक होर बी भूमिका अदा करहां, एक क्रान्तिकारी भूमिका। मार्क्सा रे शब्दा बिच, नौवें जो गर्भा बिच धारण कितिरे हरेक पुराणे समाजा री से दायी ही। ये से अस्त्र हा जेतारी मददा ले सामाजिक प्रगति आपणा रस्ता बनाहीं होर मृत, ठठरी-साहीं राजनीतिक ढांचेयां जो चकनाचूर करी देहाईं-एतारे बारे बिच श्रीमान् ड्यूरिंग री कताबा मंझ एक शब्द भी नीं हा। कल्हे ठण्डे साह भरदे होर कराहंदे हुए हे स्यों मंजूर करहाएं भई हाँ, हुई सकहां भई शोषणा री आर्थिक व्यवस्था रा तख़्ता उलटणे कठे बला री जरूरत पौवो-दुर्भाग्या ले, क्योंकि बला रा हर प्रकारा रा प्रयोग, प्रयोग करने वाल़े रा नैतिक पतन करी देहां। ये गल्ल एतारे बावजूद बोली जाई करहाईं भई हरेक विजयी क्रान्ति ले लोका जो महान नैतिक होर आत्मिक शक्ति मिल्हीरी। होर से बी जर्मनी मंझ जिथी री अगर एक हिंसापूर्ण टक्कर हुई जाओ—जेता कठे जनता सच्चियो मजबूर हुई सकाहीं—ता एताले कमा ते कम ये फ़ायदा ता हुणा ही भई तीह साला रे युद्धा* मंझ हरने रे करुआं लोका री राष्ट्रीय चेतना मंझ दासता री जे भावना बैठी गईरी से ख़तम हुई जाणी। होर एस आदमी री विचार-पद्धति-ये जीवन-रहित, अरोचक और नपुंसक विचार-पद्धति, इतिहासा री सभी ले क्रान्तिकारी पार्टी रे ऊपर हावी हुणे रा दावा करहाईं।“ (तरीजा जर्मन संस्करण, चौथे परिच्छेद रा अंतिम अंश, भाग 2, पृ.193)
*इथी जर्मनी मंझ 1618 से 1648 तक हुणे वाल़े जर्मन शहंशाह री ताकता रे खिलाफ जर्मनी रे सामंती राजेयां रे युद्धा री तरफ़ इशारा हा। पर बाद बिच एस युद्धा मंझ यूरोपा रे अधिकांश देश बी उलझी गए थे जिताले तेतारा रूप अन्तराष्ट्रीय हुई गया था। तीह वर्षीय युद्धा ले जर्मनी री महान क्रान्ति ता हुई हे थी, सौगी हे राजनीतिक रूपा ले तेसरे कई टुकड़े बी हुई गए थे।–सं
पूँजीवादी राजसत्ता री जगहा सर्वहारा वर्गा री राजसत्ता री स्थापना हिंसापूर्ण क्रान्ति रे बिना असंभव ही। सर्वहारा वर्गा री राजसत्ता रा अन्त, अर्थात् आम राजसत्ता रा अन्त, “मुरझाई के खत्म हुई जाणे” री क्रिया रे बिना असंभव हा। होर काँसे री कुल्हाड़ी रे पासे बखौ।“
पूंजीवादी राज्यसत्ता रा कल्हे क्रान्ति हे “अन्त करी सकाहीं”। आम राजसत्ता, यानी सभी ले पूर्ण जनतंत्र कल्हे “मुरझाई के ही खत्म हुई” सकहां।
एंगेल्सा री एसा हे कताबा बिच, जेतारा राजसत्ता रे “मुरझाई के खत्म हुई जाणे” वाल़ा तर्क हरेकी री ज़ुबानी पर चढ़ीरा, हिंसापूर्ण क्रान्ति रे महत्वा री पूरी-पूरी व्याख्या कीतीरी। एतारी भूमिका रा एंगेल्सा द्वारा कितेया गइरा ऐतिहासिक विश्लेषण हिंसापूर्ण क्रान्ति री प्रशंसा बिच लिखीरे एक बधिया गीता साहीं हा। एतारी “केसी जो याद नीं रैहंदी;” आधुनिक समाजवादी पार्टियों मंझ एस विचारा रे महत्वा के बारे बिच कुछ बोलणा, या सोचणा तक खरा नीं समझेया जांदा। होर जनता रे बिच तिन्हारे आन्दोलना होर प्रचार कार्या मंझ एतारी कोई भूमिका नीं हुंदी। पर फेरी बी, राजसत्ता रे “मुरझाई के खत्म हुई जाणे” के ये अभिन्न रूपा ले जुड़ीरा।
एंगेल्सा रा तर्क ये हाः-
“इतिहासा बिच बल (शैतानी ताकत के अलावा) एक होर बी भूमिका अदा करहां, एक क्रान्तिकारी भूमिका। मार्क्सा रे शब्दा बिच, नौवें जो गर्भा बिच धारण कितिरे हरेक पुराणे समाजा री से दायी ही। ये से अस्त्र हा जेतारी मददा ले सामाजिक प्रगति आपणा रस्ता बनाहीं होर मृत, ठठरी-साहीं राजनीतिक ढांचेयां जो चकनाचूर करी देहाईं-एतारे बारे बिच श्रीमान् ड्यूरिंग री कताबा मंझ एक शब्द भी नीं हा। कल्हे ठण्डे साह भरदे होर कराहंदे हुए हे स्यों मंजूर करहाएं भई हाँ, हुई सकहां भई शोषणा री आर्थिक व्यवस्था रा तख़्ता उलटणे कठे बला री जरूरत पौवो-दुर्भाग्या ले, क्योंकि बला रा हर प्रकारा रा प्रयोग, प्रयोग करने वाल़े रा नैतिक पतन करी देहां। ये गल्ल एतारे बावजूद बोली जाई करहाईं भई हरेक विजयी क्रान्ति ले लोका जो महान नैतिक होर आत्मिक शक्ति मिल्हीरी। होर से बी जर्मनी मंझ जिथी री अगर एक हिंसापूर्ण टक्कर हुई जाओ—जेता कठे जनता सच्चियो मजबूर हुई सकाहीं—ता एताले कमा ते कम ये फ़ायदा ता हुणा ही भई तीह साला रे युद्धा* मंझ हरने रे करुआं लोका री राष्ट्रीय चेतना मंझ दासता री जे भावना बैठी गईरी से ख़तम हुई जाणी। होर एस आदमी री विचार-पद्धति-ये जीवन-रहित, अरोचक और नपुंसक विचार-पद्धति, इतिहासा री सभी ले क्रान्तिकारी पार्टी रे ऊपर हावी हुणे रा दावा करहाईं।“ (तरीजा जर्मन संस्करण, चौथे परिच्छेद रा अंतिम अंश, भाग 2, पृ.193)
*इथी जर्मनी मंझ 1618 से 1648 तक हुणे वाल़े जर्मन शहंशाह री ताकता रे खिलाफ जर्मनी रे सामंती राजेयां रे युद्धा री तरफ़ इशारा हा। पर बाद बिच एस युद्धा मंझ यूरोपा रे अधिकांश देश बी उलझी गए थे जिताले तेतारा रूप अन्तराष्ट्रीय हुई गया था। तीह वर्षीय युद्धा ले जर्मनी री महान क्रान्ति ता हुई हे थी, सौगी हे राजनीतिक रूपा ले तेसरे कई टुकड़े बी हुई गए थे।–सं
पूँजीवादी राजसत्ता री जगहा सर्वहारा वर्गा री राजसत्ता री स्थापना हिंसापूर्ण क्रान्ति रे बिना असंभव ही। सर्वहारा वर्गा री राजसत्ता रा अन्त, अर्थात् आम राजसत्ता रा अन्त, “मुरझाई के खत्म हुई जाणे” री क्रिया रे बिना असंभव हा।
राजसत्ता होर क्रान्ति
1848-51 रा अनुभव
1. क्रान्ति री पूर्व-बेला
परिपक्व मार्क्सवादा री पैहली कताबा-दर्शना री ग़रीबी होर कम्युनिस्ट घोषणा पत्र- 1848 री क्रान्ति ले ठीक पैहले निकल़ी। इधी कठे, संभवतः ये देखणा ज्यादा लाभदायक हुणा भई 1848-51 रे साला रे अनुभवा ले परिणाम निकालणे रे ठीक पैहले, इन्हां कताबा जो रचणे वाल़ेयां राजसत्ता रे संबंधा बिच क्या बोलिरा था।
दर्शना री ग़रीबी मंझ मार्क्से लिखेया थाः
“आपणे विकासा रे दौरान मज़दूर वर्ग पुराणे नागरिक-समाजा री जगहा एक ऐहड़े संघा री स्थापना करघा जेता बिच वर्ग होर तिन्हारे विरोध नीं हुंघे, होर तेबे सही मायने बिच कोई राजनीतिक शक्ति नीं रैही जाणी, क्योंकि राजनीतिक शक्ति नागरिक समाजा रे आन्तरिक वर्ग विरोधा री हे अधिकृत अभिव्यक्ति ही।“ (1884 रा जर्मन संस्करण, पृ. 182)
इन्हां वर्गो जो मिटाई देणे ले बाद राजसत्ता केस ढंगे मिटी जाणी एस सम्बंधा बिच एस आम वक्तव्य री तुलना अगर मार्क्स होर एंगेल्सा रे कुछ हे महीनेयां बाद, नवम्बर 1847 बिच, लिखे गइरे कम्युनिस्ट घोषणापत्रा रे अन्दर दितिरे वक्तव्या के करियें ता शिक्षा-प्रद हुणाः
“ सर्वहारा रे विकासा री सभी ले आम अवस्थावां रा चित्रण करदे बक्त आसे वर्तमान समाजा रे गर्भा बिच न्यूनाधिक मात्रा मंझ ढकीरे रूपा बिच चलणे वाल़े गृह-युद्धा रा तेस बिन्दु तका वर्णन कितिरा जिथी पौहुँची के से युद्ध खुली क्रान्ति रे रूपा बिच फूटी पौहां, होर पूंजीपति वर्गा रा हिंसापूर्वक खात्मा करीके सर्वहारा रे अधिपत्य री नींव पाई देहां...
“...ऊपर आसे देखी आइरे भई क्रान्ति मंझ मजदूर वर्गा रा पैहला कदम हा---सर्वहारा जो शासन वर्गा रे स्तरा तक चकणा, जनवादा री लडाई मंझ विजय हासिल करना।
“सर्वहारा आपणे राजनीतिक आधिपत्य रा इस्तेमाल करघा। पूंजीपति वर्गा रे हाथा ले सुले-सुले सारी पूंजी जो छीनणे कठे, उत्पादना रे सभी औज़ारा जो राजसत्ता रे, यानि शासक वर्गा रे रूपा मंझ संगठित सर्वहारा रे हाथा बिच केन्द्रित करने कठे, होर उत्पादना री कुल शक्तियां जो ज़्यादा ले ज़्यादा तेजी रे सौगी बधाणे कठे। (1906 रे सातवें जर्मन संस्करणा रे पृ. 31 होर 37 ले)
पूँजीपति वर्गा रे शासना जो उलटणे रा काम कल्हे मज़दूर वर्ग हे करी सकहां। क्योंकि से हे खास वर्गा हा जेसरे जीवना री आर्थिक परिस्थितियां तेजो एस कामा कठे शिक्षित करहाईं होर तेतौ पूरा करने रा तेजो अवसर होर शक्ति देहाईं। पूंजीपतिवर्ग किसाना होर सभ निम्न-पूंजीवादी स्तरा जो ता तोड़ी-फोड़ी के तितर-बितर करी देहां, पर सर्वहारा-वर्गा जो एक जगहा जमा करहां, एकता-बद्ध और संगठित करहां। कल्हे सर्वहारा वर्ग हे—बड़े पैमाने री उत्पादन-व्यवस्था मंझ आपणी विशेष आर्थिक भूमिका रे करूआं—तेसा सारी श्रमजीवी और शोषित जनता रा नेतृत्व करी सकहां, जिन्हारा पूंजीपति वर्ग शोषण, होर उत्पीड़न करहां, होर कुचली देहां। होर तेसरा शोषण, उत्पीडन होर दमन सर्वहारा-वर्गा रे शोषण, उत्पीडन और दमना ले कम नीं हुंदा, बल्कि अक्सर ज़्यादा हे हुआं, पर तेस बिच आपु इतनी क्षमता नीं ही जे आपणे उद्धारा कठे स्वतंत्र-रूपा ले संघर्ष चलाई सको।
राजसत्ता और समाजवादी क्रान्ति रे संबंधा बिच मार्क्सा रे वर्ग-संघर्षा रे सिद्धान्ता रा मतलब हा अनिवार्य रूपा बिच सर्वहारा वर्गा रे राजनीतिक शासना जो, तेसरी डिक्टेटरशिप जो मनणा, यानि तेसरी ऐहड़ी ताकता जो मनणा जेता बिच होर केसी रा हिस्सा बाँट ना हो होर जे सीधे-सीधे जनता री सशस्त्र शक्ति रे ऊपर आधारित हो। पूंजीपति वर्गा रे अनिवार्य होर घोरतम विरोधा जो कुचलणे री, होर नौवीं आर्थिक व्यवस्था री रचना कठे सभ श्रमजीवी होर शोषित जनता जो संगठित करी सकणे री क्षमता रखने वाल़े शासक वर्गा रे रूपा बिच बधली के ही सर्वहारा वर्ग पूंजीपति वर्गा रा तख़्ता उलटी सकहां।
मज़दूरा री पार्टी जो शिक्षित करीके मार्क्सवाद सर्वहारा वर्गा रे सभी ले अग्गे बधीरे तेस दस्ते जो शिक्षित करहां जेस बिच राजनीतिक सत्ता पर अधिकार करने री, सारी जनता जो समाजवादा बखौ लेई जाणे री, नौवीं व्यवस्था रा संचालन होर संगठन करने री होर पूंजीपति वर्गा री सहायता रे बगैर होर तेसरे विरूद्ध, सामाजिक जीवना रे निर्माण कार्या मंझ सभ श्रमजीवियां होर शोषका रे शिक्षक, पथ-प्रदर्शक होर नेता बणने री क्षमता ही। एतारे बरखिलाफ से अवसरवाद जेता रा आज दौरदौरा हा, मज़दूरा री पार्टी रे तिन्हां सदस्यां रे अन्दर बधहां-पनपां जे अच्छी मज़दूरी पानेवाल़े मज़दूरा रे प्रतिनिधि हे, जिन्हारा साधारण मज़दूरा ले संपर्क टूटी जाहां, जिन्हारी जिन्दगी पूंजीवादा रे अन्तर्गत काफी मज़े बिच “कटाहीं”, होर ज्यों आपणे जन्म-सिद्ध अधिकारा जो चन्द टुकड़ेयां कठे बेची देहाएं, यानि पूंजीपति वर्गा रे विरूद्ध जनता री लड़ाई मंझ क्रान्तिकारी नेतृत्व करने री आपणी भूमिका जो तिलांजलि देई देहाएं।
2. क्रान्ति रा सारांश
राजसत्ता रे जेस प्रश्ना पर आसे विचार करी करहाएँ एतारे संबंधा बिच 1848-51 री क्रान्ति रा संक्षिप्त सार मार्क्से आपणी कताब लुई बोनापार्टा रा अठारहवाँ ब्रूमेयर रे निम्न अंशा मंझ दितिराः
“…पर क्रान्ति पूर्णगामी हुई करहाईं। अझी तका से सफ़ाई-पुछाई री ही मंज़िला ले गुज़री करहाईं। आपणा काम से बड़े ढंगा के करी करहाईं। 2 दिसम्बर 1851 (लुइ बोनापार्टा रे सत्ता पर आकस्मिक क़ब्जे रे दिना) तक एसे आपणी तैयारी रा सिर्फ़ आधा काम कितेया था, अब से बाकी आधे जो पूरा करी करहाईं। एसे पैहले पार्लामेण्टी ताक़ता जो पूर्ण बणाया जेताले एतौ ख़तम कितेया जाई सके। एभे चूंकि ये काम एसे पूरा करी लितिरा, इधी कठे से कार्यकारिणी री ताक़ता जो पूर्ण बणाहीं, तेतौ तेतारे एकदम विशुद्ध रूपा बिच बदलाहीं, सभी थे जुदा करहाईं, आपणे जो एकमात्र निशाणा बणाई के तेतौ आपणे विरूद्ध खड़ा करी देहाईं, जेता के तेसारी सारी विनाशकारी ताक़ता जो से आपणे (क्रान्ति रे) खिलाफ़ केन्द्रित करी देयो। होर जेबे से आपणी तैयारी के एस बाक़ी आधे काम जो बी पूरा करी लैंघी ता योरप आपणी जगहा ले उटकी पौणा होर विजयोल्लासा के चिल्लाई उठघाः शाबाश, मेरे शेर खूब सफ़ाया कितेया।
“ आपणी विकराल नौकरशाही और फ़ौजी संगठना रे सौगी, जनता रे काफी बड़े स्तरा जो आपणे अन्दर समेटणे वाली राजसत्ता री आपणी कृत्रिम मशीना रे सौगी, पाँज लाखा री एक होर सेना रे अलावा पाँज लाखा तक पौहँचणे वाल़ी अफसरा री आपणी फ़ौजा रे भयानक रूपा बिच फैल्हीरी एसा जोंका रे सौगी—जेसे एक जाला रे साहीं सम्पूर्ण फ्रांसीसी समाजा आपणे अन्दर कसी लितिरा होर तेसरे शरीरा रे सारे रन्ध्रां जो अवरूद्ध करी करहाईं—कार्यकारिणी री से ताक़त निरंकुश एकराजतंत्रा रे दिना मंझ, सामन्तवादी व्यवस्था रे पतना रे सौगी-सौगी पैदा हुई गयी थी। सामन्तवादी व्यवस्था रा अन्त जल्दी करने मंझ एसे मदद दिती थी।” पैहली फ्रांसीसी क्रान्तिए केन्द्रीकरण ता बधाया था, “पर सौगी-सौगी एसे सरकारी अधिकारा री सीमा रे, एतारी विशेषतावां होर एतारे एजेण्ट भी बधाए थे राजसत्ता री एसा मशीना जो नेपोलियने पूर्णता तक पहुँचाई दितेया था।” लेजिटिमिस्टा* रे एकराजतंत्र और जूलाई रे एकराजतंत्रे “श्रम विभाजना जो बधाणे रे अलावा एता मंझ होर कोई इजाफ़ा नीं कितेया था।...”
*फ्रांसीसी लेजिटिमिस्ट-फ्रांसीसी सामन्तवादी अमीर-उमरा रे प्रतिनिधि।
“ पार्लामेण्टवादी प्रजातंत्रा जो बी आखिरा बिच, आपणे क्रान्ति-विरोधी संघर्षा मंझ जनता जो दबाणे री कार्रवाइयां रे सौगी-सौगी आपणे साधना जो बधाणे होर सरकारी ताक़ता जो केन्द्रित करने कठे मजबूर हुणा पया था। एसा मशीना रा ध्वंस करने रे बजाय सारी क्रान्तियें ये होर पूर्ण बणाई। आपणा शासन क़ायम करने कठे बारी-बारी कने जिन्हें पार्टियें ये संघर्ष कितिरा स्यों सभ राजसत्ता रे एस वृहतकाय भवना पर क़ब्ज़ा करने जो विजय री आपणी लूटा रा मुख्य भाग मन्हाईं थी।” (लुई बोनापार्टा रा अठारहवाँ ब्रूमेयर, पृ. 98-98, चौथा संस्करण, हैम्बर्ग, 1907)।
एस विलक्षण अवतरणा मंझ मार्क्सवाद, कम्युनिस्ट घोषणापत्र री तुलना बिच, एक बौहत बड़ा क़दम अग्गे चकी लैहां। कम्युनिस्ट घोषणापत्र मंझ राजसत्ता रे प्रश्ना री अतयन्त अमूर्त रूपा मंझ हे, बिल्कुल आम ढंगा ले होर आम शब्दा मंझ हे व्याख्या कीती गईरी। ऊपर उद्धृत अवतरणा मंझ प्रश्ना पर ठोस ढंग के विचार कितेया गइरा, परिणाम बिल्कुल शुद्ध, निश्चित, व्यावहारिक होर प्रत्यक्ष हाः आजा तक जितनी क्रान्तियाँ हुईरी तिन्हें राजसत्ता री मशीना जो पूर्ण बनाणे मंझ मदद दीतीरी, जब कि ज़रूरत ही भई एतारा ध्वंस करी दितेया जाए, एतौ तोड़ी दितेया जाय।
केन्द्रीकृत राजसत्ता री शक्ति, जे पूंजीवादी समाजा री विशेषता ही, निरंकुशता रे पतना रे युगा मंझ उत्पन्न हुई थी। राजसत्ता री एसा मशीना री सभी ले बड़ी विशेषता दो संस्थाएँ हुआईः नौकरशाही होर स्थायी फ़ौज।
नौकरशाही होर स्थायी फ़ौज पूंजीवादी समाजा रे शरीरा के चिपकीरी “जोंका” ही---यों जोंका तिन्हा आन्तरिक विरोधा ले पैदा हुआईं, जे तेस समाजा जो अन्दरा ले फाड़हाएं, पर यों जोंका ऐहड़ी ही ज्यों तेसरे जीवना रे “सारे रन्ध्रा जो अवरूद्ध करी करहाईं”। एस विचारा जो भई राजसत्ता समाजा रे आंतरिक विरोधा ले पैदा हुईरी एक जोंक ही अधिकृत सोशल-डिमौक्रेटिक क्षेत्रा मंझ फैल्हीरा आजकाले रा काट्स्कीपंथी अवसरवाद अराजकतावादा री खास होर अलग विशेषता समझां। स्वाभाविक हा भई मार्क्सवादा री ये तोड़-मरोड़ तिन्हां बाबूवादियों कठे बौहत उपयोगी ही जिन्हें साम्राज्यवादी युद्धा जो “मातृभूमि री रक्षा” बगैरा रे शब्दा के सजाई-बनाई कने न्यायोचित ठैहराई के समाजवादा जो इतनी बुरी तरहा के लांछित कितिरा, पर एता बिच सन्देह नीं हा भई ये तोड़-मरोड़ बिल्कुल पूरी ही।
नौकरशाही यंत्रा जो विभिन्न पूंजीवादी होर निम्न-पूँजीवादी पार्टियां रे बिच (रूसा रा उदाहरण लेइयें ता केडेटा, सोशलिस्ट-क्रान्तिकारियां होर मेन्शेविका रे बिच) जितनी हे ज्यादा बार “भी-भी के बाँडेया” जाहां, तितनी हे सपष्टता के सर्वहारा वर्गा रे नेतृत्वा मंझ उत्पीड़ित वर्गा रे लोक सम्पूर्ण पूंजीवादी समाजा रे प्रति आपणी अमिट शत्रुता री गल्ला को समझदे लगाहें। ये हे कारण हा भई सारी पूंजीवादी पार्टियां कठे---ज़्यादा ले ज़्यादा जनवादी होर “क्रन्तिकारी-जनवादी” पार्टियों कठे बी---ज़रूरी हुआं भई क्रन्तिकारी सर्वहारा वर्गा रे ऊपर दमना री आपणी कार्रवाइयां जो स्यों बधाओ, होर दमना रे आपणे यंत्रा जो, यानी राजसत्ता रे यंत्रा जो, जेतारे संबंधा बिच आसे इथी विचार करी करहाएं, होर मज़बूत करे। घटनावां रा ये प्रवाह क्रान्ति जो मजबूर करहां भई से राजसत्ता री शक्ति रे खिलाफ “ध्वंस करने री आपणी सारी शक्तियां जो एकी सौगी झौंकी दे” होर समझी लौ भई समस्या राजसत्ता री मशीना जो पूर्ण बनाणे री नीं हीं, बल्कि तेतौ तहस-नहस करने होर ख़तम करने री ही।
3. मार्क्से 1852 मंझ प्रश्ना जो किहां साम्हणे रखया था
1907 बिच मेहरिंगे न्यू ज़ीट नामक पत्रा मंझ वेडेमेयरा जो लिखिरे मार्क्सा रे 5 मार्च 1852 रे एकी पत्रा रे कुछ अंश प्रकाशित किते थे। एस पत्रा बिच, बाकी चीजा रे अलावा थाल्हे दीतीरी विलक्षण गल्ला बी मिल्हांईः-
“...होर एभे जिथी तका मेरी आपणी गल्ल ही---आधुनिक समाजा मंझ वर्गा रे अस्तित्वा जो या तिन्हारे बिचा रे संघर्षा जो तोपी काढ़णे रा श्रेय मुंजो नीं हा। पूंजीवादी इतिहासकार एस वर्ग संघर्षा रे ऐतिहासिक विकासा रा होर पूंजीवादी अर्थशास्त्री वर्गा री आर्थिक बनावटा रा मेरे ले बौहत पैहले वर्णन करी चुकीरे थे। जे चीज़ नौवीं मैं कीती से थी एस गल्ला जो साबित करना भईः 1. वर्गा रा अस्तित्व उत्पादना रे विकासा री खास ऐतिहासिक अवस्थावां ले हे जुड़ीरा 2. वर्ग संघर्षा रा जरूरी परिणाम सर्वहारा वर्गा री डिक्टेटरशिपा री स्थापना हुआं, 3. ये डिक्टेटरशिप आपु बी सभणी वर्गा रे खात्मे होर वर्ग-विहीन समाजा री स्थापना कठे एक परिवर्तन-काला री चीज़ ही”…
क्योंकि वर्ग-संघर्षा रे सिद्धान्ता री सृष्टि मार्क्से नीं, बल्कि मार्क्सा ले पैहले पूंजीपति वर्गे कीती थी, होर आम तौरा पर स्यों पूँजीपतियां जो मान्य हे। ज्यों लोक कल्हे वर्ग संघर्षा जो मन्हाएं स्यों अजही तका मार्क्सवादी नीं बणीरे, स्यों संभवतः अजही तका पूँजीवादी तर्क-प्रणाली होर पूँजीवादी राजनीति रे दायरेयां मंझ हे चक्कर काटी करहाएं। मार्क्सवादा जो वर्ग संघर्षा रे सिद्धान्ता तक हे सीमित करने रे मायने हे मार्क्सवादा री काट-छाँट करना, तेतारी तोड़-मरोड़ करना, तेतौ एक ऐहड़ी चीज़ बनाई देणा जे पूंजीपति वर्गा जो मान्य ही। मार्क्सवादी कल्हा से हे हा जे वर्ग-संघर्षा री मानता ले अग्गे बधी के सर्वहारा वर्गा री डिक्टेटरशिपा जो मनहां। मार्क्सवादी होर एक साधारण निम्न (या बड्डे) पूंजीवादी रे बीच गंभीर अंतर इथी हे हा। ये हे से कसौटी ही जेता पर मार्क्सवादा री वास्तविक समझ होर मान्यता री परीक्षा कीती जाणी चहिए।
होर ये कोई हैरानी री गल्ल नीं ही भई एस प्रश्ना जो योरपा रे इतिहासे जेबे व्यावहारिक रूपा बिच मज़दूर-वर्गा रे साम्हणे रखी दितेया ता कल्हे सारे अवसरवादी होर सुधारवादी, बल्कि सारे काट्स्कीवादी बी (स्यों लोक जे मार्क्सवाद होर सुधारवादा रे बिच कधी इथी कथी तिथी हिचकोले खादे रैहाएंं) तुच्छ टटपुंजिए बाबू होर निम्न-पूंजीवादी जनवादी साबित हुए, जिन्हें सर्वहारा वर्गा री डिक्टेटरशिपा जो मनणे ले इन्कार करी दितेया। काट्स्की री पुस्तिका, सर्वहारा–वर्गा री डिक्टेटरशिप---जे 1918 रे अगस्ता मंझ, यानि वर्तमान पुस्तिका रे पैहले संस्करणा ले बौहत दिनां बाद प्रकाशित हुई थी, शब्दां मंझ मार्क्सवादा जो स्वीकार करने रा ढोंग करदे हुए, व्यवहारा मंझ निम्न-पूंजीवादी ढंगा के एतौ तोड़ने-मरोड़ने होर एतारे सौगी घृणित ग़द्दारी करने रा एक उदाहरण हा (पेत्रोग्राद होर मास्को ले 1918 मंझ प्रकाशित मेरी पुस्तिका, मज़दूर क्रान्ति होर ग़द्दार काट्स्की जो देखा)।
राजसत्ता रे सम्बंधा बिच मार्क्सवादी सिद्धान्ता जो तिन्हें लोके अच्छी तरहा के समझीरा ज्यों मन्हाएं भई एकी वर्गा री डिक्टेटरशिप ना केवल आम तौरा पर वर्ग समाजा कठे ज़रूरी ही, से ना केवल सर्वहारा वर्गा रे कठे जिने पूंजीपति वर्गा रा तख्ता उलटी दितिरा, ज़रूरी ही, बल्कि से तेस पूरे ऐतिहासिक युगा कठे ज़रूरी ही जे पूंजीवादी होर “वर्ग-विहीन समाजा” रे, कम्युनिज़्मा रे बीच पौंहां। पूंजीवादी राजसत्ता रे रूप अनेक हे, पर आपणे सार-तत्वा मंझ स्यों सभ एक हे हएः केसी ना केसी ढंगा के आख़िरा बिच स्यों सभ अनिवार्यतः पूंजीपति वर्गा री डिक्टेटरशिप हे। पूंजीवादा रा कम्युनिज़्मा बिच संक्रमण निश्चित रूपा ले कई विभिन्न होर बौहत सारे राजनीतिक रूपा री सृष्टि करघा, पर तिन्हारा सार-तत्व जरूरी रूपा ले एक हे हुणाः सर्वहारा वर्गा री डिक्टेटरशिप।
अध्याय 3
राजसत्ता होर क्रान्ति। 1871 रे पैरिस कम्यूना रा अनुभव। मार्क्सा रा विश्लेषण
1. कम्यूनार्डां रे प्रयत्ना री वीरता केस गल्ला मंझ थी?
कम्युनिस्ट घोषणापत्रा मंझ जे एकमात्र “सुधार” करने री ज़रूरत मार्क्से समझी थी से तिन्हें पैरिस कम्यूना रे क्रान्तिकारी अनुभवा रे आधारा पर कितेया था। कम्युनिस्ट घोषणा पत्रा रे नौवें जर्मन संस्करणा री आखरी भूमिका पर, जेता मंझ एतारे दोन्हों लेखका रे दस्तख़त हे, 24 जून 1872 री तारीख ही। एसा भूमिका बिच एतारे लेखक, कार्ल मार्क्स होर फ्रेडरिक एंगेल्स बोल्हाएं भई कम्युनिस्ट घोषणापत्रा रा प्रोग्राम अब “ब्योरे री कुछ गल्ला मंझ पुराणा पई गइरा”, फेरी स्यों अग्गे बोल्हांएः
“कम्यूने एक गल्ल खास तौरा पर साबित करी दीती थी, से ये भई ‘मज़दूर वर्ग राजसत्ता री बणी-बणाई पुराणी मशीना पर इहां हे क़ब्ज़ा करीके आपणे कामा कठे एतारा इस्तेमाल नीं करी सकदा।‘’
12 अप्रैल 1871 जो, यानी ठीक कम्यूना रे हे ध्याड़ेयां बिच मार्क्से कुगेलमैना जो लिखेया थाः
“तुसे अगर मेरे अठारहवें ब्रुमेयर रे अन्तिम अध्याया जो पढ़ो ता तुसा देखणा भई एता मंझ मैं बोलिरा भई फ्रांसीसी क्रन्ति रा अगला प्रयत्न पैहले साहीं नौकरशाही फ़ौजी मशीना जो एकी रे हाथा ले दूजे रे हाथा मंझ देई देणा नीं, बल्कि तेतौ ध्वंस करी देणा हुणा (शब्दा पर आपु मार्क्से ज़ोर दितिरा, मूल शब्द हा ज़रब्रेखेन), होर ये योरपा मंझ जनता री हरेक वास्तविक क्रान्ति री सफलता री पैहली शर्त ही। होर पैरिसा मंझ आसारे वीर पार्टी कामरेड एसा चीज़ा जो करने री कोशिस करी करहाएं”।
उदाहरणा कठे, अगर आसे बीहवीं शताब्दी री क्रान्तियां जो लेई लेइयें ता निस्सन्देह आसौ मनणा पौणा भई पुर्तगाल होर तुर्की दोन्हों री क्रान्तियाँ पूंजीवादी क्रान्तियाँ ही।* पर “जनता” री क्रान्ति इन्हां मंझा ले कोई बी नी ही, क्योंकि इन्हां बिच केसी मंझ बी आम जनता, जनता रा विशाल बहुमत, आपणी आर्थिक होर राजनीतिक माँगा जो लेइ के क्रियात्मक ढंगा के, स्वतंत्र रूपा ले ज़रा भी उल्लेखनीय मात्रा मंझ हिस्सा नीं लैंदा। दूजे बखौ, जिहां रूसा री 1905-07 री पूंजीवादी क्रान्तिए एहड़ी एक बी “चमकदी-दमकदी” सफलता नीं पेश कीती थी जेहड़ी जे पुर्तगाल होर तुर्की री क्रान्तियां जो कधी-कधी हासिल हुई गयी थी, फेरी बी, निस्सन्देह, से क्रान्ति “जनता री एक वास्तविक” क्रान्ति थी, क्योंकि तेस बक्त शोषण और उत्पीड़ना ले से कुचल़ीरा जन-समूह, जनता रा बहुमत, “समाजा रा सभ थे थाल्हका वर्ग” स्वतंत्र रूपा के उठी खड़ा हुआ था होर क्रान्ति रे पूरे प्रवाहा रे ऊपर तिने आपणी माँगा री, पुराणे समाजा री जगहा मंझ जेतौ नष्ट कितेया जाई करहां था एक नौवें समाजा रा आपणे तरीक़े के निर्माण करने रे आपणे प्रयत्ना री छाप लगाई दीती थी।
1871 बिच, योरपा मंझ, एक बी देश ऐहड़ा नीं था जेसरे अन्दर मज़दूर वर्ग जनता रा बहुमत हो। “जनता” री क्रान्ति—जे आपणे प्रवाह मंझ सच्चियो जनता रे बहुमता जो खींची ल्याए ऐहड़ी-तेबे हे हुई सकाहीं थी जेबे एता मंझ मज़दूर होर किसान दोन्हों शामिल हों। तेस बक्त यों दोन्हों वर्ग हे “जनता” थे। यों दोन्हों वर्ग एक थे क्योंकि “राजसत्ता री नौकरशाही-फ़ौजी मशीन” तिन्हां दोन्हों रा हे उत्पीड़न करहाईं थी, कुचल़ाईं थी होर शोषण करहाईं थी। एसा मशीना जो ध्वंस करी देणा, एतौ तोड़ी देणा—ये “जनता” रे, जनता रे बहुमता रे, मज़दूरा होर अधिकांश किसाना रे हिता मंझ हा, एस तरहा री मित्रता रे बगैर जनतंत्र अस्थिर हुआं होर समाजवादा बिच परिवर्तन असंभव हुआं।
*इथी पुर्तगाला री (फरवरी 1908 री) होर तुर्की री (अगस्त 1908) री पूँजीवादी क्रान्तियां रा हवाला दितेया जाई करहां।
2. राजसत्ता री ध्वंस करी दीती गइरी मशीना री जगहा केसा चीज़ा लैणी?
मार्क्से कम्यूना रे अनुभवा रा, गोकि से बौहत थोड़ा हे था, आपणी कताब फ्रांसा रे गृह-युद्धा मंझ अत्यधिक सावधानी के विश्लेषण कितिरा। एसा कताबा रे सभी ले महत्वपूर्ण अंशा जो आसे थाल्हे उद्धृत करहांए।
मध्य युगा रे दिनां ले शुरू हुई के उन्नीसवीं शताब्दी मंझ ‘राजसत्ता री केन्द्रित शक्ति स्थायी फ़ौज, पुलिस, नौकरशाही, पादरीशाही होर कचैहरियां रे आपणे सर्व-व्यापक अस्त्रा रे सौगी” विकसित हुई गयी। जिहां-जिहां पूँजी होर श्रमा रे वर्ग-विरोध बधे, तिहां-तिहां राजसत्ता री शक्ति बी श्रमा रे ऊपर पूंजी री राष्ट्रीय शक्ति रा, सामाजिक गुलामी कठे संगठित पब्लिक (सार्वजनिक) शक्ति रा, वर्ग तानाशाही रे एकी इंजिना रा रूप अधिकाधिक अख़्तियार करदी गयी। हर क्रान्ति रे बाद जे वर्ग संघर्षा री प्रगति मंझ एक नौवीं मंज़िल सूचित करहाईं, राजसत्ता री शक्ति रा निरा दमनकारी रूप अधिकाधिक उभरी आवहां।“ 1848-49 री क्रान्ति ले बाद, राजसत्ता री शक्ति “श्रमा रे ख़िलाफ़ पूँजी रे राष्ट्रीय युद्धा रा इंजिन” बणी गयी। द्वितीय साम्राज्ये* एताजो होर बी दृढ़ बणाया।
“साम्राज्य रा बिल्कुल विरोधी स्वरूप कम्यून था। ये तेस प्रजातंत्रा रा ‘ठोस स्वरूप’ था जे ना कल्हे वर्ग शासना री एकराजतंत्रवादी व्यवस्था री, बल्कि वर्ग-शासना री हे जगह लेणे वाल़ा था।“
“ कम्यूना रा सभी थे पैहला फ़रमान.....था भई स्थायी फ़ौजा जो ख़तम करी दितेया जाय होर एतारी जगहा जनता जो हथियारबंद कितेया जाये।“
“कम्यून सार्वजनिक मताधिकारा रे आधार पर शैहरा रे विभिन्न वार्डा ले चुनी कने आइरे एहड़े म्युनिसिपल कौंसिलरा ले बणया था ज्यों मतदाता रे प्रति जिम्मेवार थे होर जिन्हौ थोड़े-थोड़े बक्ता मंझ हे तिन्हारी जगहा ले वापिस बुलाया जाई सकहां था। स्वभाविक रूपा बिच तेसारे सदस्यां मंझा ले अधिकांश संख्या मज़दूरा या मज़दूर वर्गा रे मने हुए प्रतिनिधियां री थी...पुलिसा जो केन्द्रीय सरकारा री एजेण्ट बणे रैहणे देणे रे बजाय तेसारे राजनीतिक अधिकारा जो फौरन छीनी लितेया गया था, होर तेतौ कम्यूना रे प्रति जिम्मेदार होर तेसारे ऐहड़ा एजेण्ट बनाई दितेया गया था जेजो केसी भी वक्त हटाया जाई सकहां था। ये चीज़ शासन-तंत्रा रे दूजे विभागा रे कर्मचारियां रे सम्बंधा मंझ बी करी दीती गयी थी। कम्यूना रे सदस्य ले लेईके थाल्हे तका पब्लिका रा हरेक काम मज़दूरा री मज़दूरी रे बराबर तनख़ा पर करना पौहां था। राज्य रे बड़े-बड़े पदा पर काम करने वाल़े लोका (ख़ास तौरा ले पादरियां, बगैरा) रे निहित स्वार्थ होर प्रातिनिधिक भत्ते तिन्हां बड़े पदाधिकारियां रे सौगी ग़ायब हुई गये...
“स्थायी फ़ौज होर पुलिस—पुराणी सरकारा री ज़ोर-जबरदस्ती रे भौतिक तत्वा रा अन्त करी देणे ले बाद, कम्यून दमना री आध्यात्मिक शक्ति जो ‘पादरियां री ताक़ता’ जो ख़तम करने कठे उत्सुक था...
“अदालता रे कर्मचारियां री झूठी स्वतंत्रता रा अन्त करी दितेया जाणे वाल़ा था”…” तिन्हारी नियुक्ति री व्यवस्था चुनावा रे द्वारा करी दीती जाणे वाल़ी थी, तिन्हौ जिम्मेदार होर एहड़ा बणाई दितेया जाणे वाल़ा था भई तिन्हौ केसी भी बक्त वापस बुलाया जाई सके।
पूंजीपति वर्गा जो दबाणा होर तेसरे विरोधा जो कुचलणा अझी बी जरूरी हा। होर चूँकि आपणे उत्पीड़का जो जनता री बहुसंख्या आपु दबाहीं इधी कठे दबाणे री एक “विशेष शक्ति” री अब कोई ज़रूरत नीं रैही गयी। एस अर्था मंझ राजसत्ता मुर्झांदी लगाहीं।
राज्य रे ऊच्चे ले ऊच्चे अफसरा रे वेतना जो कम करी देणे री माँग “कल्हे” सीधे-साधे प्राचीन जनतंत्रा री माँग लगाहीं। एक ता, केसी ना केसी मात्रा मंझ “प्राचीन” जनतंत्रा बखौ “वापिस” जाये बग़ैर समाजवादा मंझ संक्रमण असंभव हा (क्योंकि राज्य रे कामा जो जनता री बहुसंख्या, होर पूरी के पूरी जनता तक करदी लगो, ये होर केस ढंगा के संभव हो)। दूजे, पूंजीवाद होर पूंजीवादी संस्कृति रे ऊपर आधारित “प्राचीन जनतंत्र” होर इतिहासा ले पैहलका, या पूंजीवादा ले पैहलके जमाने रा प्राचीन जनतंत्र एक हे चीज़ नीं ही। पूंजीवादी संस्कृतिए बड़े पैमाने रे उत्पादन, फैक्टरियां, रेलवे, डाक-सर्विस, टेलीफोनां बगैरा री सृष्टि करी दीतीरी, होर एस आधारा पर पुराणी “राजसत्ता” रे कामां रा बौहत बड़ा हिस्सा इतना आसान हुई गइरा होर तिन्हौ रजिस्टरा पर चढ़ाने, फाइला मंझ नत्थी करने, जाँचणे बगैरा रे कामां रे रूपा बिच होर भी इतना आसान बणाया जाई सकहां भई इन्हौ हर साक्षर आदमी काफी आसानी ले करी सकहां, इन्हौ काफी आसानी ले साधारण ‘मज़दूरा री मज़दूरी” पर कितेया जाई सकहां, होर इन्हां ले संबंधित सभ विशेषाधिकारा रा, इन्हारी सारी “अफ़सरी शान-शौकता” रा, अन्त कितेया जाई सकहां (होर करी दितेया जाणा चहिए)।
सभ अधिकारी, बिना केसी अपवादा रे, चुनीरे हो, तिन्हौ किसी भी बक्त वापस सादया जाई सके, तिन्हारी तनख़ा कम करीके साधारण मज़दूरा री मज़दूरी रे बराबर करी दीती जाए—यों आसान होर ‘स्वयं-सपष्ट” जनवादी कार्रवाइयाँ मज़दूरा होर अधिकांश किसाना रे हिता मंझ पूर्ण एकता पैदा करने रे सौगी-सौगी, पूंजीवाद होर समाजवादा रे बिच एक पुल़हा रा बी काम कराहीं। यों कार्रवाइयाँ समाजा रे कल्हे राजनीतिक पुनर्निमाण ले सम्बंधित ही, पर, निस्सन्देह, यों आपणे पूरे अर्था होर महत्वा जो “लूटणेवाल़ेयां जो लूटणे” री चालू क्रिया ले या एतौ शुरू करने री तैयारी रे सिलसिले मंझ हे, यानि उत्पादना रे साधना पर पूंजीपतियां रे स्वामित्व जो समाजा रे स्वामित्व मंझ बदलणे रे सौगी हे प्राप्त कराईं।
मार्क्से लिखेया था भई “ख़र्चे री दो सभी थे बड़ी मदा—स्थायी फ़ौज होर राज्य री अफसरशाही जो मिटाई के कम्यूने पूंजीवादी क्रान्तियां रे एस तकिये-क़लामा जो भई शासन सस्ता हो, वास्तविकता रा रूप देई दितेया था।
3. पार्लामेण्टवादा रा ख़ात्मा
मार्क्से लिखेया था, “कम्यूना जो पार्लामेण्टरी संस्था ना बणी के एक ऐहड़ी कामकाजी संस्था बणना था जे क़ानून बनाने वाल़ी बी हो होर क़ानून लागू करने वाल़ी बी।...”
“हर तीन या छेह साला बाद ये तै करी देणे रे बजाय भई शासक वर्गा रा कुण जेह सदस्य पार्लामेण्ट मंझ जाई कने जनता रा प्रतिनिधित्व होर दमन करघा, कम्यूना मंझ संगठित जनता रा काम सार्वजनिक मताधिकार करने वाल़ा था, तिहाएं जिहां आपणे बिज़िनेसा कठे मज़दूरा या मैनेजरा री तलाश करने वाल़े पूंजीपति रा काम वैयक्तिक वोट करहां।“
मार्क्स जाणहाएं थे भई क्रान्तिकारी द्वन्दवाद पूंजीवादी पार्लामेण्टवादा रे “सुअरा रे बाड़े” तका रा इस्तेमाल करने री—ख़ास तौरा पर एहड़े बक्ता बिच जेबे परिस्थिति सपष्ट रूपा ले क्रान्तकारी नीं हो—योग्यता नीं हुणे रे करूआं अराजकतावादा रे सौगी केस तरहा के निर्ममता के संबंध-विच्छेद करना चहिए, पर, सौगी हे सौगी, स्यों ये बी जाणहाएं थे भई पार्लामेण्टवादा जो सच्ची क्रान्तिकारी आलोचना पर केस ढंगा के कसया जाये।
हर कुछ साला रे बाद ये तै करी देणा भई शासक वर्गा रा कुण सदस्य पार्लामेण्टा मंझ जाईके जनता रा दमन होर उत्पीड़न करघा—ये हा पूंजीवादी पार्लामेण्टवादा रा सच्चा सार, कल्हे तिन्हां देशां मंझ हे नीं जिथी पार्लामेण्टवादी वैधानिक एकराजतंत्र हे, बल्कि ज़्यादा ले ज़्यादा जनवादी प्रजातंत्रां मंझ बी।
पार्लामेण्टवादा ले बाहर निकलणे रा रस्ता, निस्संदेह, प्रतिनिधि संस्थावां होर चुनावा रे सिद्धान्ता रा ख़तम करी देणा नीं, बल्कि, प्रतिनिधि संस्थावां जो “गपबाज़ी रे अड्डेयां” ले बदली के “कामकाजी संस्था” बणाई देणा हा। “कम्यूना जो पार्लामेण्टवादी नीं, एक कामकाजी संस्था बणना था जे क़ानून बनाने वाल़ी बी हो होर क़ानून लागू करने वाल़ी भी।
अमरीका ले स्विज़रलैण्डा तका पार्लामेण्टा वाल़े केसी बी देशा जो लेई लौ—इन्हां देशा मंझ “राज्य” रा असली काम पर्दे री ओट बिच कितेया जाहां होर विभाग, चान्सलिरयाँ होर फ़ौजी अफसर करहाएं। पार्लामेण्टा जो “आम जनता” जो बेवकूफ बनाणे रे विशेष उद्देश्या ले बकवास करने कठे छाड़ी दितेया जाहां।
नौकरशाही जो सब जगहा होर पूर्ण रूपा ले फ़ौरन ख़तम करी देणे रा ता कोई ख़याल बी नीं हुई सकदा। ये ता काल्पनिक चीज़ ही। पर पुराणी नौकरशाही मशीना जो फ़ौरन ध्वंस करीके तुरंत हे एक नौवीं मशीना रे निर्माणा बिच लगी जाणा जे सुले-सुले सारी नौकरशाही रा अन्त करने मंझ मदद देंघी-ये काल्पनिक चीज़ नीं ही , ये कम्यूना रे अनुभवा ले सिद्ध हुई चुकीरी, होर ये हे क्रान्तिकारी सर्वहारा वर्गा रा सीधा होर फ़ौरी काम हा।
पूँजीवाद “राजसत्ता” रे शासन-तंत्रा रे कामा जो आसान बनाई देहां, से एस गल्ला जो संभव करी देहां भई सारी “अफ़सरी शान-शौक़ता जो उड़ाई दितेया जाए, होर सारे कामा जो सर्वहारा वर्गा जो (शासक वर्गा रे रूपा बिच) संगठित करने भरा रा काम बणाई दितेया जाए, जे कि “मज़दूरा, फोरमैना होर कलर्का जो) पूरे समाजा रे नावां पर मज़दूरी पर रखघा।
आसे कल्पनावादी नीं हे, आसे सारे शासन-तंत्रा जो, सारी मातहती जो फ़ौरन ख़तम करी देणे रे “सुपने” नी देखदे। आसे माहणु रा जेहड़ा स्वभाव एभे हा तेता रे सौगी, माहणु रे तेस स्वभावा रे हे सौगी जे मातहती, कण्ट्रोल (नियंत्रण) होर “फोरमैन और कलर्का” जो नीं ख़तम करी सकदा, समाजवादी क्रान्ति चाहें।
पर ये मातहती हुणी चहिए सारे शोषिता, सारे मेहनतकशा रे सभी थे अग्गे बधीरे हथियार-बन्द दस्ते रे प्रति, यानि सर्वहारा वर्गा रे प्रति। राज्याधिकारियां री ख़ास “अफ़सरी शान शौक़ता” री जगहा परा “मज़दूरों होर मैनेजरा” रे कामा जो—एहड़े कामा जो जिन्हौ अब शैहरा रा हरेक औसत निवासी पूरी तरहा ले करी सकहां, होर जिन्हौ “मज़दूरा री मज़दूरी” रे बराबर वेतना पर अच्छी तरहा कितेया जाई सकहां—लागू करने कठे फ़ौरन, राती भरा मंझ हे, कार्रवाइयाँ कीती जाई सकहाईं होर कीती जाणी चहिए।
आसे मज़दूर खुद बड़े पैमाने रे उत्पादना रा संगठन करघे, राज्य रे अधिकारियां रे कामा जो आसे सिर्फ़ ये करी देंघे भई स्यों जिम्मेदार, वापस बुलाये जाई सकणे वाल़े होर साधारण वेतन पाणे वाल़े “मैनेजरा” साहीं आसारी आज्ञा रा (निस्संदेह हरेक प्रकारा रे, हर श्रेणी होर मात्रा रे टेकनीशियना [विशेषज्ञा] री मददा ले) पालन करे। ये आसारा सर्वहारा रा काम हा, सर्वहारा क्रान्ति जो पूरा करने री शुरूआत आसे एता ले करी सकहाएं होर आसौ करी देणी चहिए। बड़े पैमाने रे उत्पादना रे आधारा पर हुणे वाल़ी एस तरहा री शुरूआत आपु हे, सुले-सुले, सम्पूर्ण नौकरशाही रे “मुरझाई जाणे” होर एक नौवीं व्यवस्था री सृष्टि बखौ लेई जांघी। ये एहड़ी व्यवस्था हुणी जेतारे अन्दर नियंत्रण होर हिसाब-किताब रखणे रे आसाना ले आसान हुंदे जांदे कामा जो हरेक बारी-बारी ले करघा, फेरी स्यों एक आदत बणी जाणे होर, आखिरा बिच, आबादी रे एक विशेष भागा रे विशेष कामा रे रूपा बिच तिन्हारी समाप्ति हुई जाणी।
आसारा फ़ौरी उद्देश्य राष्ट्रा रे सम्पूर्ण अर्थ-तन्त्रा जो डाक व्यवस्था री रीति पर संगठित करना हा, जेताके विशेषज्ञा (टेक्नीशियना), मैनेजरा, होर एकाउण्टेण्टा होर सभ अफ़सरा जो “मज़दूरा री मज़दूरी” ले ज्यादा तनख़ा नी मिलघी, स्यों सभ सशस्त्र सर्वहारा वर्गा रे नियंत्रण होर नेतृत्वा बिच रैहंगे। आसौ एहड़े आर्थिक आधारा रे ऊपर संगठित एहड़ी राजसत्ता री ज़रूरत ही। ये चीज़ पार्लामेण्टवादा जो ख़तम करघी होर प्रतिनिधि संस्थावां जो क़ायम रखघी। ये मेहनतकश वर्गा जो इन्हा संस्थावां रे पूँजीपति वर्गा द्वारा गन्दा किते जाणे ले मुक्त करघी।
4. राष्ट्रीय एकता रा संगठन
“….राष्ट्रीय संगठना रे एक मोटे ख़ाके मंझ, जेतौ विकसित करने रा कम्यूना जो बक्त नीं मिली पाया था, से साफ-साफ बोल्हां भई छोटे ले छोटे ग्रावां तका रा राजनीतिक स्वरूप कम्यून हुणे वाल़ा था...” पैरिसा कठे “राष्ट्रीय प्रतिनिधि-मण्डल” कम्यून चुनणे वाल़े थे।
“…..केन्द्रीय सरकारा कठे ज्यों थोहड़े पर महत्वपूर्ण काम अजही बी बाक़ी, रैही जांदे तिन्हौ दबाई नीं देणा था—जेहड़ा जे जाणी बूछी के ग़लत बोल्या गइरा—बल्कि, स्यों संयुक्त (कम्यूनल) रूपा ले, होर इधी कठे, सख़्ती सौगी जिम्मेदार प्रतिनिधियां द्वारा किते जाणे वाल़े थे...राष्ट्रा री एकता जो तोड़ना नीं था, बल्कि, एताले विपरीत, कम्यूना रे विधाना रे द्वारा तेता जो संगठित करना था, होर राज्य री तेसा शक्ति जो जे राष्ट्रा ले—जेतारी जे से मुफ़्तख़ोर मांस-वृद्धि मात्र थी—स्वतंत्र होर श्रेष्ठतर तेसा एकता री प्रतिमूर्ति हुणे रा दावा करहाईं थी नष्ट करीके, तेसा एकता जो एक वास्तविकता बणना था। पुराणी सरकारी सत्ता रे महज़ दमनकारी अंगा जो काटी देणा था, सौगी हे एतारे सही कामा जो तेसा ताकता रे हाथा ले जे आपु समाजा रे ऊपर हावी बणी बैठीरी थी छीनी लैणा था होर समाजा रे जिम्मेदार प्रतिनिधियां जो वापिस सौंप देणा था।“
मार्क्स केन्द्रीयतावादी थे। अगर सर्वहारा वर्ग होर ग़रीब किसान राजनीतिक सत्ता जो आपणे हाथा मंझ लेई लौ, आपणे जो स्वतंत्र रूपा ले कम्यूनों मंझ संगठित करी लौ, होर पूँजी परा आक्रमण करने कठे, पूँजीपतियां रे विरोधा जो कुचलणे कठे होर रेला, कारख़ानेयां, ज़मीना बगैरा रे स्वामित्वा जो सम्पूर्ण राष्ट्रा रे हाथा मंझ, पूरे समाजा रे हाथा मंझ सौंपी देणे कठे, सभी कम्यूना रे कामा जो एकजूट कर देयो ता क्या ये केन्द्रीयतावाद नीं हुणा? क्या से हे सभी ले सुसंगत जनवादी केन्द्रीयतावाद नीं हुणा? होर से हे क्या सर्वहारा केन्द्रीयतावाद नीं हुणा?
मार्क्से इधी कठे—जिहां जे आपणे विचारा जो तोड़े-मरोड़े जाणे री संभावना जो पैहले ले ही देखी कने---जाणी बूझी के एसा गल्ला पर ज़ोर दितेया था भई ये अभियोग जे भई कम्यून राष्ट्रा री एकता जो नष्ट करना चाहां था, केन्द्रीय सत्ता जो मिटाई देणा चाहां था, इरादतन कीती गयी एक ग़लत बयानी ही। मार्क्से जानी बूझी के इन्हां शब्दा रा इस्तेमाल कितेया थाः “ राष्ट्रा री एकता जो...संगठित कितेया जाणा था”। ताकि चेतन, जनवादी सर्वहारा केन्द्रीयतावादा जो पूंजीवादी, फ़ौजी, नौकरशाही केन्द्रीयतावादा रे मुक़ाबले मंझ रखी कने तिन्हारे फ़र्का जो दसी दे।
पर...तिन्हाले ज़्यादा टौणे होर कोई नीं हुंदे ज्यों सुणना नीं चाहंदे। होर जेसा गल्ला जो आजा री सोशल-डेमोक्रेसी रे अवसरवादी नीं सुणना चाहंदे से राज्य री शक्ति जो नष्ट करी देणे री, मुफ़्तखोर मांस-वृद्धि जो काटी देणे री हे गल्ल ही।
5. मुफ़्तख़ोर राजसत्ता रा ख़ात्मा
मार्क्से लिखेया था, “ सर्वथा नौवीं ऐतिहासिक सृष्टियों रा आमतौरा ले जिहां ये भाग्य हे हुआं भई तिन्हौ सामाजिक जीवना रे पुराणे होर इथी तका भई बेकार हुई गइरे स्वरूपा रा—जिन्हारे सौगी स्यों थोड़ी-बौहत मिलदी-जुलदी हों...प्रतिरूप समझी लितेया जाहां। एस तरहा के, एस नौवें कम्यूना जो—जे कि आधुनिक राजसत्ता री ताक़ता जो तोड़हां—मध्ययुगा रे कम्यूना री पुनर्उत्पति रा...मॉण्टेस्कयू और जिरोन्दिना* रे सुपनेयां बिच देखे गइरे छोटी-छोटी रियासता रे संघा रा.., अत्यधिक-केन्द्रीयता रे विरूद्ध प्राचीन संघर्षा रा, हे अतिरंजित रूप समझी लितेया गइरा।...कम्यूनवादी विधान समाजा जो स्यों सारी शक्तियाँ वापिस सौंपी देहां जिन्हौ जे समाजा जो चूसणे वाल़ी होर एतारी स्वच्छन्द गति जो अवरूद्ध करने वाल़ी मुफ़्तखोर राजसत्ता अझी तका आपणे अन्दर समेटी रे थी। एकी कामा के से फ्रांसा के पुनर्जीवना रा आरंभ करी देंदा...कम्यूनवादी विधान ग्रावाँ रे उत्पादका जो तिन्हारे ज़िलेयां रे केन्द्रीय शहरा रे बौद्धिक नेतृत्वा बिच ली आया, होर इथी मज़दूरा रे रूपा बिच तिन्हौ तिन्हारे हिता रे स्वाभाविक रक्षका (ट्रस्टियां) के मिलाई दितेया। कम्यूना रे अस्तित्वा रा हे स्वाभाविक तौरा ले ये बी मतलब हुआं था भई स्थानीय म्युनिसिपल आज़ादी हो, पर अब से हटाई दीती गयी राज्य शक्ति पर अंकुश नीं थी।
“ कम्यूना रे ज्यों अनेक अर्थ लगाये गइरे, होर स्यों विभिन्न स्वार्थ जिन्हें आपणे पक्षा बिच एतारे अर्थ लगाइरे तिन्हां ले जाहिर हुआं भई सरकारा रे पुराणे सारे रूपा रे मुकाबले मंझ ज्यों जे भारी दमनकारी थे, कम्यूना रा राजनीतिक रूप पूर्ण रूपा ले व्यापक था। एतारा सच्चा रहस्य ये हे था। से बुनियादी तौरा ले मज़दूर-वर्गा री सरकार थी, लूटणे वाल़े वर्गा रे ख़िलाफ़ पैदा करने वाल़े वर्गा रे संघर्षा री उत्पति थी। ये से राजनीतिक रूप था जे आखिरा मंझ मिल्ही गया था जेतारे अन्तर्गत मज़दूर वर्गा री आर्थिक रूपा ले मुक्ति रा काम पूरा कितेया जाई सकहां था।
“ एसा अन्तिम शर्ता रे बिना, कम्यूनवादी विधान एक असंभावना होर मृत-मरीचिका हुंदा। “
अध्याय - 4
शेष। एंगेल्सा री बादा बिच जोड़ी गइरी टीकाएँ
1. “ घरां री समस्या”
आपणी रचना, घरां री समस्या (1872) मंझ एंगेल्से कम्यूना रे अनुभवा पर विचार कितेया था, होर राजसत्ता रे सम्बंधा बिच क्रान्ति रे कामां जो कई बार दसया था।
“ फेरी घरां री समस्या जो केस ढंगा के हल कितेया जाये? जेस ढंगा के वर्तमान समाजा मंझ दूजी केसी बी सामाजिक समस्या जो हल कितेया जाहां तिहाँएः सप्लाई होर माँगा री आर्थिक रूपा ले सुले-सुले पटरी बैठाई के। ये हल एहड़ा हा जे प्रश्ना जो हे हमेशा फेरी नौवें सिरे ले पैदा करी देहां होर इधी कठे हल हया हे नीं हा। सामाजिक क्रान्ति एस प्रश्ना जो केस तरहा के हल करघी ये कल्हे हर जगहा री विशेष परिस्थिति पर निर्भर करघा, बल्कि एतारा सम्बंध कई होर बी गैहरे प्रश्ना ले हा, जिन्हां मंझा ले एक सभी ले बुनियादी—ग्रांव होर शैहरा रे बिचा रे विरोधा रा अन्त करना हा। चूंकि आसारा काम भविष्य रे समाजा रे इन्तज़ामा रे बारे बिच काल्पनिक व्यवस्थावां री सृष्टि करना नीं हा, इधी कठे एस प्रश्ना पर इथी विचार करना एकदम व्यर्थ हुणा। पर एक चीज़ निश्चित हीः बड़े शैहरा मंझ पैहले ले ही रैहणे कठे इतनी भतेरी इमारता मौजूद ही भई तिन्हा ले “मकानां री” वास्तविक “कमी” जो फौरन दूर कितेया जाई सकहां बशर्ते जे तिन्हारा विवेका के इस्तेमाल कितेया जाय। स्वाभाविक रूपा ले ता ये तेबे हे हुई सकहां जेबे जे मकानां जो तिन्हारे मौजूदा मालिका ले छीनी लितेया जाये होर इन्हां बिच बेघरा रे लोका जो या तिन्हां मज़दूरा जो रखी दितेया जाये जिन्हारे पैहलके मकानां मंझ बौहत ज्यादा भीड़ ही। सर्वहारा वर्गा रे राजनीतिक सत्ता जो जीतणे रे फौरन बाद हे सार्वजनिक हिता ले प्रेरित एस कामा जो तितनी हे आसानी के पूरा कितेया जाई सकघा जितनी आसानी के वर्तमान राजसत्ता दूजी चीज़ा जो हड़पी लैहाईं होर लोका जो दूजेयां रे घरां बिच ठैहराई देहाईं।“ (पृ.22, जर्मन संस्करण, 1887)
“...बाकी कठे, ये दसी देणा जरूरी हा भई श्रमा रे सारे औज़ारा पर ‘वास्तविक क़ब्ज़ा करने’, सारे उद्योग-धंधेयां पर मेहनतकश जनता रे क़ब्ज़ा करने री गल्ल प्रूधों रे ‘सुले-सुले मुक्ति दुआणे’ रे सिद्धान्ता ले बिल्कुल उल्टी ही। दूजे (प्रूधों रे) सिद्धान्ता रे अनुसार वैयक्त्तिक मज़दूर मकान, किसाना रे खेत, श्रमा रे औज़ारा रा मालिक बणी जाहां , पैहले रे अनुसार मकाना, फैक्टरियां होर श्रमा रे औज़ारा री सामुहिक मालिक ‘मेहनतकश जनता’ हे रैहाई---होर, कमा ले कम संक्रमण-काला तका कठे, बिना ख़र्चे रा मुआवज़ा लेई के व्यक्तियां या संस्थावां जो तिन्हारा इस्तेमाल करने री इजाज़त से मुश्किल के हे देंघी, तिहाएं जिहां जे ज़मीना री सम्पति-व्यवस्था रे खात्मे ले ज़मीना रे लगाना रा ख़ात्मा नीं हुई जांदा, बल्कि से लगान समाजा रे हाथा मंझ, यद्यपि एकी परिवर्तित रूपा मंझ, पौहुँची जाहां। इधी कठे श्रमा रे औज़ारा पर मेहनतकश जनता रे वास्तविक क़ब्ज़ा करी लेणे रे मायने ये हर्गिज़ नीं हुंदे भई फेरी लगाना रे सम्बंध नीं बाक़ी रैही सकदे”। (पृ. 69)
2. अराजकतावादियां रे सौगी वादविवाद
ये वादविवाद 1873 बिच हुआ था। प्रूधोंपंथियां, ‘स्वायत-शासनवादियां” या ‘सत्ता-विरोधियां” रे खिलाफ मार्क्स होर एंगेल्से इटली रे एकी वार्षिक सोशलिस्ट पत्रा मंझ लेख लिखे थे, होर जर्मन भाषा बिच यों लेख 1913 मंझ न्यू ज़ीटा मंझ निकल़े थे।
“मज़दूर वर्गा रा राजनीतिक संघर्ष अगर हिंसापूर्ण रूप लेई लैहां”, अराजकतावादियां रा होर तिन्हारे द्वारा राजनीतिक कामा रे परित्यागा रा मज़ाक उड़ांदे हुए मार्क्से लिखा था, “ पूंजीपतियां री डिक्टेटरशिपा री जगहा मज़दूर अगर आपणी क्रान्तिकारी डिक्टेटरशीप कायम करी लैहाएं ता स्यों सिद्धान्तां जो तोड़ने रा जघन्य अपराध करहाएं। क्योंकि स्यों आपणे हथियारा जो डाल़ी देणे होर राजसत्ता जो मिटयाई देणे रे बजाय, राजसत्ता जो एक क्रान्तिकारी होर संक्रमण-कालीन रूप देई देहाएं...ताकि स्यों आपणी तुच्छ, गन्दी, रोजमर्रा री ज़रूरता जो सन्तुष्ट करीके पूंजीपति वर्गा रे विरोधा जो कुचले”
अराजकतावादियां रा खण्डन करदे बक्त मार्क्स राजसत्ता जो सिर्फ़ एस ढंगा के “ख़तम करने” री गल्ला रे ख़िलाफ़ लड़े थे। जेबे वर्ग ग़ायब हुई जाँघे ता राजसत्ता बी ग़ायब हुई जाणी, या भई जेबे वर्गा जो ख़तम करी दितेया जाणा ता से बी ख़तम हुई जाणी, एस सिद्धान्त रा तिन्हें विरोध नीं कितेया था। तिन्हें विरोध कितेया था एस प्रस्तावा रा जे भई मज़दूर हथियारा रे संगठित बला के, यानी राजसत्ता रे इस्तेमाल जो, जेताले जे “पूंजीपति वर्गा रे विरोधा जो कुचलणे” रा काम लैणा था—छाड़ी दे।
अराजकतावादा रे ख़िलाफ़ आपणी गल्ला जो बोलणे कठे मार्क्स बौहत हे तीव्र होर स्पष्ट तरीक़ा अख़्तियार करहाँएः पूंजीपतियां रे जुए जो उतारी फैंकणे ले बाद मज़दूर आपणे “ हथियारा जो डाल़ी दे”, या पूंजीपतियां रे खिलाफ तिन्हारे विरोधा जो कुचलणे कठे तिन्हारा इस्तेमाल करे? पर व्यवस्थित रूपा ले एक वर्गा रा दूजे वर्गा रे ख़िलाफ़ हथियारा जो इस्तेमाल करना राजसत्ता रा “संक्रमण-कालीन रूप” नीं, ता क्या है?
एंगेल्से इन्हां विचारां पर होर ब्योरे के होर, होर बी ज्यादा आसान ढंगा के लिखीरा। सभी ले पैहले ता स्यों तिन्हां प्रूधों-पंथियां रे कूढ़मग्ज़ विचारा रा मज़ाक उड़ाहें ज्यों आपणे आपु जो “सत्ता-विरोधी” बोल्हाएं थे, यानि ज्यों हर तरहा री सत्ता, हर तरहा री मातहती, हर क़िस्मा री ताक़ता जो मनणे ले इनकार करहाएं थे। एंगेल्से बोल्या, एक फैक्टरी, एक रेल, समुद्रा पर चलदे हुए एक जहाज़, केसी जो लेई लौ—क्या ये सपष्ट नहीं हा भई इन्हा जटिल टेकनीकल इकाइयां मंझा ले ज्यों मशीना रे उपयोग होर बौहत सारे लोका रे व्यवस्थित सहयोगा पर आधारित हे—एक बी, बिना एक मात्रा मंझ मातहती, होर इधी कठे, बिना एक मात्रा मंझ सत्ता या ताक़ता रे नीं चली सकदी?
“ जेबे यों दलीला मैं सभी ले कटट्टर सता-विरोधियों रे मुक़ाबले मंझ रखी ता स्यों कल्हे निम्न उत्तर मुंजो देई सके ‘ आहा। ये ता सच हा, पर इथी तेस सत्ता रा सवाल नीं हा जे आसे प्रतिनधियां (डेलीगेटां) जो सौंपहाएं, बल्कि एक कमीशन (समिति) रा सवाल हा’। यों भले माणस सोचाहें भई नांवां जो बदली के तिन्हें चीज़ा जो बदली दितिरा।
राजसत्ता रे प्रश्ना पर एंगेल्से लिखेया था,
“अगर स्वायत-शासनवादी इतना हे बोलणे तका आपु जो सीमित रखाहें भई भविष्य रा सामजिक संगठन सत्ता जो तेस हदा तक सीमित रखघा जेस हदा तक जे उत्पादना रे सम्बंध तेजो जरूरी बणाई देहाएं ता आसे लोक एकी-दूजे जो समझी सकाहें। पर स्यों तिन्हां सभ तथ्यां रे प्रति अंधे हे ज्यों सत्ता जो जरूरी बणाई देहाएं होर स्यों शब्दा रे ऊपर टूटी पौहाएं।
“ यों सत्ता-विरोधी कल्हे राजनीतिक सत्ता रे विरूद्ध, राजसत्ता रे विरूद्ध चिंगणे तका हे आपु जो की नीं सीमित रखदे? एसा गल्ला पर सभ समाजवादी एक मत हे भई आउणे वाल़ी सामाजिक क्रान्ति रे परिणाम-स्वरूप राजसत्ता होर एतारे सौगी-सौगी राजनीतिक सत्ता बी ख़तम हुई जाणी, यानि, पब्लिका रे कामा आपणा राजनीतिक रूप खोई देणा होर सच्चे सामाजिक हिता री निगरानी करने रे आसान व्यवस्था संबंधी कामा मंझ बधली जाणा। पर सता-विरोधियां री माँग ही भई राजनीतिक राजसत्ता जो तुरन्त हे, तिन्हां सामाजिक परिस्थितियों रा जिन्हें एतौ जन्म दितेया था अन्त करने ले पैहले हे, ख़तम करी दितेया जाए। तिन्हारी माँग ही भई सामाजिक क्रान्ति रा पैहला काम हुणा चाहिए भई से सत्ता जो ख़तम करी दे।
“ इन्हे भल़े माणुसे क्या कधी क्रान्ति देखीरी? क्रान्ति ता बिना केसी शका ले सभी थे ज्यादा सत्तावादी चीज़ ही, से एक ऐहड़ा काम हा जेतारे द्वारा आबादी रा एक भाग एतारे दूजे भागा पर आपणी इच्छा जो राइफला, संगीना होर तोपा री मददा ले जबरदस्ती लादहां, राइफला, संगीना, तोपा—यों सभ बौहत हे सत्तावादी साधन हे। होर विजयी पार्टी जो तेस आतंका रे आधार पर जे तेसरे हथियार प्रतिक्रियावादियां रे दिला बिच पैदा करहाएं, आपणी हुकूमता जो क़ायम रखणा चहिए। अगर पैरिस कम्यून पूंजीपति वर्गा रे ख़िलाफ हथियार-बन्द जनता री सत्ता रा इस्तेमाल ना करदा ता क्या से एकी दिन बी चली सकहां था? उल्टे, एसरी आलोचना क्या आसौ इधी कठे नी करनी चहिए भई एस सत्ता रा इस्तेमाल तिने बौहत कम कितेया था? इधी कठे, दो मंझा ले एक हे गल्ल हुई सकांहीः या ता यों सत्ता-विरोधी ये जाणदे नीं हे भई स्यों क्या बोली करहाएं होर तेस हालता मंझ स्यों कल्हे भ्रम फैलाई करहाएं, या फेरी स्यों जाणहाएं, होर तेबे तेस हालता मंझ स्यों सर्वाहारा वर्गा रे सौगी ग़द्दारी करी करहाएं। दोन्हों हे हालता मंझ ख़िदमत स्यों प्रतिक्रियावादी री हे करहाएं। (पृ.39)
3. बेबेला रे नावें पत्र
एंगेल्से ये पत्र बेबेला जो गोथा प्रोग्रामा रे तेस मसौदे री आलोचना करदे हुए लिखेया था जेतारी आलोचना मार्क्से बी ब्रेका रे नावें आपणे प्रसिद्ध पत्रा मंझ कीती थी। राजसत्ता रे प्रश्ना रा ख़ास तौरा ले ज़िक्र करदे हुए एंगेल्से लिखेया था,
“स्वतंत्र जनता री राजसत्ता स्वतंत्र राजसत्ता मंझ बधली जाहीं। अगर एतारे व्याकरणा रे अर्थ मंझ लेइयें ता स्वतंत्र राजसत्ता से राजसत्ता ही जे आपणे नागरिका रे सौगी सम्बंधा मंझ स्वतंत्र ही, होर इधी कठे एक ऐहड़ी राजसत्ता ही जेतारी सरकार निरंकुश ही। राजसत्ता रे सम्बंधा बिच सारी गल्ल बाता जो ख़तम करी देणा चहिए, कम्यूना ले बाद ता ख़ास तौरा ले—जे शब्दा रे सही मायनेयां बिच राजसत्ता नीं था। ‘जनता री राजसत्ता’ री गल्ला के आसारे मुँहा रे सामहणे पटकदे अराजकतावादियां जो ज़रूरता ले ज़्यादा दिन हुई गइरे, हालांकि मार्क्सा री प्रूधों रे खिलाफ़ कताबा मंझ, होर बाद बिच, कम्युनिस्ट घोषणापत्रा मंझ, साफ़-साफ़ ऐलान कितेया गइरा भई समाजवादी व्यवस्था री स्थापना ले बाद राजसत्ता आपणे आप घुल़दी लगणी होर बादा बिच अन्तर्धान हुई जाणी। चूँकि राजसत्ता कल्हे एक संक्रमण-कालीन संस्था ही जेतारा इस्तेमाल संघर्षा बिच, क्रान्ति रे बक्त, आपणे दुश्मणा जो शक्ति के दबाई कने रखणे कठे कितेया जाहां, इधी कठे स्वतंत्र जनता री राजसत्ता री गल्ल करना कल्हे निरर्थक प्रलाप हा। सर्वहारा वर्ग जेबे तका राजसत्ता रा इस्तेमाल करहां तेबे तका निश्चित रूपा ले तेतारा इस्तेमाल से स्वतंत्रता कठे नीं, बल्कि, आपणे दुश्मणा जो दबाणे कठे करहां, होर जिहां हे स्वतंत्रता री गल्ल करना संभव हुई जाहीं तिहां हे राजसत्ता एहड़ी चीज़ नीं रैही जांदी। इधी कठे, आसे चाहंगे भई हर जगहा ‘राजसत्ता’ री जगहा समुदाय शब्दा रा इस्तेमाल कितेया जाए—ये एक अच्छा पुराणा जर्मन शब्द हा जे फ्रांसीसी शब्द कम्यूना रा भली भांति प्रतिनिधित्व करी सकहां।“ (मूल जर्मन संस्करणका पृ.322)
“ कम्यून शब्दा रे सही मायनेयां बिच राजसत्ता नीं था”—एंगेल्से ये बौहत हे महत्वपूर्ण सैद्धान्तिक गल्ल बोलीरी। जे कुछ ऊपर बोल्या जाई चुकीरा एता ले बाद ये गल्ल बिल्कुल स्पष्ट हुई जाहीं। जिथी तका जे कम्यूना जो आबादी री बहु-संख्या जो नीं, बल्कि, एतारी एकी अल्प-संख्या जो (शोषका जो) दबाणा था, तेसरा राजसत्ता हुणा मिटी करहां था। पूंजीवादी राजसत्ता री मशीना रा तिने ध्वंस करी दितिरा था। एक विशेष दमनकारी शक्ति री जगहा अब खुद पूरी आबादीए लेई लितिरी थी। यों सभ चीज़ा शब्दा रे सही मायनेयां बिच राजसत्ता ले भिन्न थी। होर कम्यून अगर जियुंदा रैहंदा ता राजसत्ता रे एता मंझ जितने बी चिन्ह थे स्यों सभ आपणे आप “ मुरझाई जांदे”। एसजो राजसत्ता री संस्थावां जो “ ख़तम करने” री ज़रूरत नीं पौंदी। जिहां-जिहां तिन्हारे बाले कुछ काम करने जो नीं रैहंदा तिहां-तिहांए तिन्हारा काम बी ख़तम हुंदा जांदा।
4. अरफुर्ट प्रोग्रामा रे मसौदे री आलोचना*
• अरफुर्ट प्रोग्राम--से प्रोग्राम जेतौ जर्मनी री सोशल-डेमोक्रेटिक पार्टीए आपणी अरफुर्ट कांग्रेसा मंझ 1891 बिच मंजूर कितेया था।
ये आलोचना एंगेल्से काट्सकी बाले 29 जून, 1891 जो भेजी थी। पर न्यू ज़ीटा बिच ये दस साला बाद छपी थी। एसा आलोचना बिच मुख्य रूपा ले राजसत्ता रे ढांचे रे सम्बंधा बिच सोशल-डेमोक्रेटा रे अवसरवादी विचारा जो लितेया गइरा। प्रोग्रामा रे मसौदे मंझ प्रयुक्त शब्द “योजना-हीनता” जो पूंजीवादा री विशेषता दसदे हुए, एंगेल्स लिखांएः
“ जेबे आसे ज्वाइन्ट स्टॉक कम्पनियां ले तिन्हां ट्रस्टां बखौ बधाहें ज्यों उद्योग धन्धेयां री सारी की सारी शाखावां पर कण्ट्रोल होर इजारेदारी रखाहें ता कल्हे निजी उत्पादन हे नीं, बल्कि, योजना-हीनता बी ख़तम हुई जाहीं।
राजसत्ता रे प्रश्ना पर एस पत्रा मंझ एंगेल्से तीन अत्यंत मूल्यवान सुझाव रखीरेः पैहला, प्रजातंत्रा रे सम्बंधा बिच, दूजा, राष्ट्रीय समस्या होर राजसत्ता रे स्वरूपा रे सम्बंधा बिच, होर तरीजा, स्थानीय स्वायत-शासना रे सम्बंधा बिच।
एंगेल्स लिखांएः
“ मसौदे री राजनीतिक माँगां मंझ एक बौहत बड़ी कमज़ोरी ही। जे चीज़ असलियता बिच बोली जाणी चहिए थी से तिथी नीं ही...”
होर, बादा बिच, स्यों एसा गल्ला जो बी स्पष्ट करी देहाएं भई जर्मन विधान 1850 रे अत्यंत प्रतिक्रियावादी विधाना री हे एक नक़ल ही, भई रीख़स्टाग, जेहड़ा जे विल्हेम लीबनेख़्ते बोल्या था, “ निरंकुशता जो लकोहणे री मैहज़ एक चाल” ही, होर ये भई एहड़े विधाना रे आधार पर, जे कि सारी छोटी-छोटी रियासता री मौजूदगी जो होर जर्मनी री छोटी-छोटी रियासता रे संघा जो क़ानूनी मन्हां, श्रमा रे सारे औज़ारा जो सार्वजनिक सम्पत्ति बनाणे री इच्छा रखणा एक “स्पष्ट मूर्खता” ही।
स्यों अग्गे बोल्हांएः
“ पर फेरी बी, केसी ना केसी तरहा ले तेस पर आक्रमण करना ज़रूरी हा। ये काम कितना ज़रूरी हा, ये ये देखणे ले सपष्ट हुई जाहां भई ठीक आजकाले सोशल-डेमोक्रेटिक पार्टियां रे अख़बारा रे बौहत बड़े भागा रे अन्दर अवसरवादिता केस ढंगा के घुसी करहाईं। सोशलिस्ट विरोधी क़ानूना रे भी के लागू हुई जाणे रे डरा ले, होर सभ तरहा री सारी तिन्हां असामयिक गल्ला री याद करीके ज्यों तेस क़ानूना रे शासन-काला बिच तिन्हां लोका रे मुँहा ले निकल़ी गयी थी, जर्मनी मंझ आज पार्टी री क़ानूनी स्थिति जो अचानक एहड़ा मन्या जाई करहां भई पार्टी सारी माँगां जो शान्तिमय साधना ले पूरा करने कठे भतेरी ही।“
स्यों मनहाएं भई प्रजातंत्रवादी या बौहत हे स्वतंत्र देशा मंझ समाजवादा बखौ शान्तिमय विकासा री “कल्पना कीती जाई सकाहीं”। पर, जर्मनी मंझ, स्यों दोहराएं,
“...जर्मनी मंझ जिथी री सरकार लगभग सर्व-शक्तिशाली ही होर रीख़स्टाग होर बाकी प्रतिनिधि संस्थावां रे हाथा बिच कोई वास्तविक ताक़त नीं ही—जर्मनी मंझ एहड़ी गल्ला रा ऐलान करना---होर से बी तेबे जेबे एहड़ा करने री कोई ज़रूरत बी नीं ही—एतारे मायने हे निरंकुशता रे आवरणा जो हटाणा होर एतारे नंगेपना जो ढकणे कठे आपु पर्दा बणी जाणा।
“ अन्ततोगत्वा एस तरहा री नीति आपणी पार्टी जो गुमराह हे करी सकाईं। आम निराकार राजनीतिक प्रशना जो चकी कने साम्हणे रखी दितेया गइरा, होर एस तरहा तिन्हां प्रश्ना जो ज्यों फ़ौरी हे, ठोस हे, ज्यों पैहली महान घटनावां रे घटदे ही, पैहले राजनीतिक संकटा रे आउंदे हे ही कार्यक्रमा मंझ साम्हणे उपस्थित हुई जाहें, तिन्हौ लुकोई दितेया गइरा। एतारा परिणाम एताले अतिरिक्त होर क्या हुई सकहां भई ठीक निर्ण्यात्मक क्षणा पर पार्टी अचानक नेतृत्व-विहीन हुई जाए, ठीक निर्णयात्मक प्रश्ना रे सम्बंधा मंझ अस्पष्टता होर अनैक्य रा साम्राज्य छाया रौहो क्योंकि इन्हां प्रश्ना पर कधी विचार हे नीं कितेया गइरा?...
“ आपणे बक्ता रे क्षणिक हिता कठे आपणे मुख्य महान दृष्टिकोणा जो एस ढंगा के भूली जाणा, बादा रे परिणामा रा विचार किते बगैर घड़ी भरा री सफलता कठे एस ढंगा रा संघर्ष होर प्रयत्न करना, वर्तमाना जो लेई के भविष्या जो एस ढंगा के कुर्बान करी देणा, हुई सकहां भई कोई “ ईमानदारी के” करदा हो, लेकिन से अवसरवादिता हई होर रैहणी, होर “ईमानदार” अवसरवादिता संभवतः सभी ले खतरनाक अवसरवादिता ही....।
“ अगर कोई चीज़ पक्की ही ता से ये ही भई आसारी पार्टी होर मज़दूर-वर्गा कल्हे जनवादी प्रजातंत्रा रे रूपा मंझ हे आपणी सत्ता स्थापित करी सकाहें। जेहड़ा जे महान फ्रांसीसी क्रान्ति पैहले हे दसी चुकीरी, सर्वहारा री डिक्टेटरशिपा रा बी ये हे विशेष रूपा हा...।“
आबादी री जातियां रे अनुसार रचना रे सम्बंधा बिच संघवादी प्रजातंत्रा रे प्रश्ना पर एंगेल्से लिखेया था,
“ वर्तमान जर्मनी री जगहा क्या ले? ( वर्तमान जर्मनी—जेतारा विधान प्रतिक्रियावादी एकराजसत्तावादी हा, होर जे तितने हे प्रतिक्रियावादी ढंगा के छोटी-छोटी एहड़ी रियासता मंझ बँढीरा जेताले जे “ प्रशनवादा” री विशेषतावां रा सारी जर्मनी बिच ख़ातमा हुणे री जगहा स्यों स्थायी बणी जाहीं) “ मेरी राया बिच, सर्वहारा वर्ग कल्हे एक होर अविभाज्य प्रजातंत्रा रे रूपा रा हे इस्तेमाल करी सकहां। संयुक्त राष्ट्रा रे विशाल क्षेत्रा बिच संघवादी प्रजातंत्र, सभ कुछ देखदे हुए, अब बी जरूरी हा, यद्यपि पूर्वी राज्यां बिच से एभे एक बाधा बणदा लगी गइरा। इंगलैण्डा मंझ, जेतारे दो द्वीपा पर चार जातियां रे लोक रैहाएं होर जिथी पार्लामेण्टा रे एक हुणे रे बावजूद आज भी क़ानून बनाणे री तीन व्यवस्थावां सौगी-सौगी चली करहाईं—से एक अग्गे लेई जाणे वाल़ा क़दम हुणा। छोटे जेह स्विज़रलैण्डा मंझ से बौहती दिनां ले एक बाधा बणीरा, एतौ सहया गइरा ता सिर्फ इधी कठे भई योरपा री राज्य-व्यवस्था मंझ स्विज़रलैण्ड कल्हे एकी निष्क्रिय सदस्या री हैसियता ले हे संन्तुष्ट हा। जर्मनी कठे स्विज़रलैण्डा साहीं संघ एक बौहत हे बड़ा पीछे धकेलणे वाला कदम हुणा। संघवादी राजसत्ता रा इकाईवादी राजसत्ता ले दो गल्ला बिच भेद हाः पैहला ये भई संघा री हरेक रियासत, हरेक कैण्टन (जिले) री आपणी जुदा दीवानी होर फौजदारी रे क़ानून बनाणे री होर अदालती व्यवस्था हुआईं, होर, दूजी ये भई चुनी हुई एक धारासभा रे सौगी-सौगी एता मंझ एक संघा वाली धारासभा बी हुआईं जेतारे अन्दर हरेक छोटा-बड़ा कैण्टन, एक कैण्टना रे रूपा बिच वोट देहां।“
राजसत्ता रे मार्क्सवादी कार्यक्रमा सम्बंधी विचारां जो होर विस्तारा के दसदे हुए एंगेल्से लिखेया था,
“ ता फेरी, एक इकाईवादी प्रजातंत्र—पर वर्तमान फ्रांसीसी प्रजातंत्रा रे अर्था बिच नीं—क्योंकि ये ता सम्राटा जो छाड़ी कने 1798 बिच स्थापित किते गइरे साम्राज्या रे अतिरिक्त होर कुछ नीं हा। 1792 ले 1798 तका फ्रांसा रे हरेक विभागे, हरेक कम्यूने अमरीकी ढंगा ले सम्पूर्ण स्वायत-शासना रा उपभोग कितेया था, होर ये हे आसौ बी चहिए। स्वायत्त-शासना रा संगठन केस ढंगा के करना होर नौकरशाही रे बगैर आसे केस ढंगा के आपणा काम चलाई सकाहें, ये अमरीका होर प्रथम फ्रांसीसी प्रजातंत्रे दसी दितिरा, होर कनाडा, आस्ट्रेलिया होर इंगलैण्डा रे दूजेरे उपनिवेशा द्वारा आज बी दसया जाई करहां। होर एस तरहा रा प्रान्तीय होर स्थानीय स्वायत-शासन स्विस संघवादिता ले किथी ज्यादा स्वतंत्र हा। ये सही हा भई एतारे अन्तर्गत बुन्द (यानि संघ-बद्ध सम्पूर्ण राजसत्ता) “ रे सौगी आपणे सम्बंधा बिच हरेक कैण्टन बौहत स्वतंत्र हुआं, पर सौगी-सौगी से जिल्हे होर कम्यूना रे सौगी आपणे सम्बंधा मंझ बी स्वतंत्र हुआं। कैण्टनां की सरकारां ज़िलेयां रे गवर्नरां होर प्रीफेक्टां री नियुक्ति करहाईं। ये एक एहड़ी प्रथा ही जे अंग्रेज़ी बोलणेवाल़े देशा मंझ अज्ञात ही, होर भविष्या बिच एतौ इथी बी—प्रशा रे लैण्ड्राट और रैजरूंग्सराट” ( कमिसारियां, जिलेयां रे पुलिस अफ़सरा, गवर्नरा होर आम रूपा बिच ऊपरा ले नियुक्त किते जाणे वाल़े सारे अफ़सरा) “ रे सौगी-सौगी आसौ ख़तम करने पौणे।“
स्वायत-शासना सम्बंधी धारा कठे एंगेल्स निम्न इबारत सुझांएः
“ प्रान्ता” कठे (जिलेयां होर समुदायां कठे) “ सार्वजनिक मताधिकारा रे आधार पर चुनी रे अधिकारियां द्वारा पूर्ण स्वायत-शासन। राजसत्ता द्वारा नियुक्त किते गये सारे स्थानीय होर प्रान्तीय अधिकारियां रा अन्त।
5. मार्क्सा री कताब, “ फ्रांसा बिच गृह-युद्धा” कठे 1891 बिच लिखी गईरी भूमिका
फ्रांसा मंझ गृह-युद्धा रे तरीजे संस्करणा कठे लिखीरी आपणी भूमिका बिच एंगेल्स बोल्हाएं भई फ्रांसा मंझ हर क्रान्ति ले बाद मजदूर हथियार-बन्द हुई जाहें थे,
“ इधी कठे राजसत्ता रे पूंजीवादी अधिनायका रा पैहला फ़र्मान था भई मज़दूरा रे हथियार छीनी लौ। ये हे कारण था जे मज़दूरा द्वारा जीती गयी हर क्रान्ति ले बाद तिन्हौ एक नौवीं लड़ाई छेड़नी पौहाईं थी, जेतारा अन्त तिन्हारी हारा बिच हुआं था।“
तिन्हें बौहत हे सतर्कता के बोल्या थाः
“...कम्यूना मंझ चूंकि, लगभग बिना केसी अपवादा रे, कल्हे मज़दूर, या मज़दूरा रे मन्ने हुए प्रतिनिधी हे बैठाहें थे, इधी कठे एतारे फ़ैसलेयां रा बी निश्चित रूपा बिच एक सर्वहारा रूप था। या तो तिन्हें एहड़े सुधारा री आज्ञा जारी कीती जिन्हौ प्रजातांत्रिक पूंजीवादी कल्हे आपणी कायरता रे करुआं नी जारी करी सके थे, पर जिन्हाले मज़दूर वर्गा रे स्वतंत्रतापूर्वक कामा कठे ज़रूरी आधार मिलहां था, जिहां जे राजसत्ता रे सम्बंधा बिच एस सिद्धान्ता जो अमली रूप देणा भई धर्म कल्हे एक निजी चीज़ ही, या फेरी तिन्हें एहड़े क़ानून बणाये थे ज्यों सीधे-सीधे मज़दूर वर्गा रे हिता बिच थे होर कुछ हदा तक समाजा री पुराणी व्यवस्था जो गैहरी चोट पहुँचायें थे।“
“ राजसत्ता रे सम्बंधा बिच”---इन्हां शब्दा पर एंगेल्से, जर्मनी रे अवसरवादियां पर एक सीधी चोटा रे रूपा बिच,जाणी-बूझी के ज़ोर दितेया था। तिन्हें पार्टी रे सम्बंधा बिच बी एसा चीज़ा री घोषणा करी दीती थी भई धर्म एक निजी चीज़ ही होर एस तरहा ले क्रान्तिकारी सर्वहारा वर्गा री पार्टी जो अत्यंत निकृष्ट “ सभ चीज़ा ले स्वतंत्र” बाबूवादा री सतहा पर थाल्हे गिराई दितिरा था। यों निकृष्ट बाबूवादी धर्मा जो ग़ैर-सरकारी अवस्था बिच रैहणे देणे कठे ता तैयार हे, पर जनता री मति जो मन्द बनाणे वाल़ी धर्मा री अफीमा रे ख़िलाफ़ पार्टी रे संघर्षा रा परित्याग करी देहाएं।
जिन्हां सबक़ा जो एंगेल्से सभी ले ज्यादा महत्व दितेया था, स्यों यों हेः
“…पिछली केन्द्रित सरकारा री दमनकारी ताक़त---फ़ौज, राजनीतिक पुलिस होर नौकरशाही---हे ठीक से चीज़ थी जेतारा नेपोलियने 1798 मंझ निर्माण कितेया था। एताले बाद हरेक नौवीं सरकारे मनपसन्द हथियारा रे रूपा बिच एतौ अपनाया था होर आपणे विरोधियां रे ख़िलाफ़ इस्तेमाल कितेया था। ये ठीक ये हे ताक़त थी जेतारा पतन हर जगह हुणा था जेहड़ा जे पेरिसा मंझ एतारा पतन हुई बी चुकीरा था।
“ बिल्कुल शुरू ले हे कम्यून एसा चीज़ा जो मनणे कठे मजबूर हुई गया था भई, सत्ता पर अधिकार करी लैणे ले बाद मज़दूर वर्ग राजसत्ता री पुराणी मश़ीना ले काम नीं चलाई सकदा, भई अझी-अझी स्थापित किते गइरे आपणे आधिपत्या जो से फेरी भी नी गवाई दे, एता कठे मज़दूर वर्गा रे कठे ज़रूरी हा जे से एकी बखौ ता दमना री तेसा सारी पुराणी मशीनरी रा जे पैहले आपु तेसरे हे ख़िलाफ़ इस्तेमाल कीती जाहीं थी, अन्त करी दे, होर, दूजे बखौ, आपु आपणे हे डिपटियां (प्रतिनिधियां) होर अधिकारियां ले आपु जो सुरक्षित रखणे कठे, एसा गल्ला रा ऐलान करी दे भई स्यों सभ-बिना केसी अपवादा रे—केसी बी क्षण तिन्हारी जगहा ले वापिस बुलाये जाई सकाहें...”।
एंगेल्स एस गल्ला पर बार-बार ज़ोर देहाएं भई ना कल्हे एकी राजतंत्रा रे अन्दर, बल्कि, जनवादी प्रजातंत्रा रे अन्दर बी, राजसत्ता राजसत्ता हे रैहाईं, यानि आपणे अफ़सरा, “समाजा रे सेवका,” आपणे हाथा-पैरा जो, समाजा रा स्वामी बणाई देणे री एतारी बुनियादी विशेषता क़ायम रैहाईं।
“ राजसत्ता रे होर राजसत्ता रे विभिन्न अंगा रे समाजा रे सेवका ले जगहा बदली के समाजा रे स्वामी बणी जाणे रे—रूपान्तर जे कि पैहलकी सारी राजसत्ता बिच अवश्यम्भावी था---ख़िलाफ़, कम्यूने दो अचूक उपाया ले काम लितेया। पैहली चीज़ ता इने ये कीती भई सरकारी, अदालती होर शिक्षा-सम्बंधी, सारी जगहा पर लोका री नियुक्ति सार्वजनिक मताधिकारा रे आधारा पर चुनवाई के कीती होर मतदाता जो ये अधिकार देई दितेया जे स्यों जेस बक्त चाहंगे तेस बक्त आपणे प्रतिनिधि जो वापिस सादी लौ। होर दूजी चीज़ इने ये कीती भई सारे अधिकारियां जो—बड़े होर छोटे, सभी जो, दूजे मज़दूरा री मज़दूरी रे बराबर हे तनख़ा दीती गयी। कम्यूने केसी जो जे सभी से ज्यादा तनख़ा दीती थी से 6000 फ्रांक थी। एस तरहा के अच्छी जगहा कठे मार-काट होर पद-लोलुपता रे ख़िलाफ़ एक कारगर रूकावट खड़ी करी दीती गयी। ये चीज़ प्रतिनिधि संस्थावां रे प्रतिनिधियां जो दिते गये तिन्हां लाज़िमी आदेशा रे अलावा थी जिन्हौ बी खूब संख्या बिच दितेया जाहां था।...”
अग्गे एंगेल्स बोल्हांएः
“ पिछली राजसत्ता री ताक़ता रा एस ढंगा के ध्वंस किते जाणे होर एतारी जगहा पर एक नौवीं होर असली रूपा बिच जनवादी राजसत्ता री स्थापना करने री क्रिया रा गृह-युद्धा रे तरीजे भागा बिच बौहत ब्योरे बिच वर्णन कितेया गइरा। पर इथी एतारी कुछ विशेषतावां रे बारे मंझ संक्षेपा बिच एक बारी भी के विचार करना जरूरी था, क्योंकि जर्मनी मंझ ख़ास तौरा पर राजसत्ता रे सम्बंधा बिच अंध-विश्वासा री भावना दर्शना रे क्षेत्रा ले बधी कने पूंजीपति वर्गा री, होर इथी तका भई बौहत सारे मज़दूरा री बी साधारण चेतना मंझ, फैल्ही गइरी। एसा दार्शनिक कल्पना रे अनुसार राजसत्ता “ विचारा रा मूर्त रूप”, या पृथ्वी परा भगवाना री सत्ता ही। दार्शनिक शब्दा बिच बोल्या जाये ता ये से क्षेत्र हा जेतारे अन्दर अमर सत्य होर न्याय री स्थापना ही। यानि इन्हारी स्थापना करनी। होर एता ले हे राजसत्ता होर एताले सम्बंधित हरेक वस्तु रे प्रति लोका रे अन्दर एक अंध-विश्वासी आदरा री भावना पैदा हुई जाहीं। होर चूँकि लोक आपणे बाल्य काला ले हे ये सोचणे रे आदी बणी गइरे जे पूरे समाजा रे कामकाजा होर हिता री देखभाल करने रा, जेस तरहा ले से पैहले ले हुंदा आइरा---यानि राजसत्ता होर एतारे ऊच्ची-ऊच्ची तनख़ाहियां पाणे वाल़े अफ़सरा रे ज़रिए—एतारे अलावा होर कोई रस्ता नी हा। इधी कठे ये भावना होर बी आसानी ले तिन्हारे मना बिच घर करी लैहाईं। होर लोक समझाएं भई वंशानुगत एकराज-तंत्रा मंझ आपणे विश्वासा रा परित्याग करीके होर जनवादी प्रजातंत्रा री क़समा खांदे लगी कने तिन्हें एक असाधारण रूपा ले साहसिक क़दम अग्गे चकी लितिरा। पर, असलियता बिच, राजसत्ता एक वर्गा द्वारा दूजे वर्गा रा उत्पीड़न करने री मशीना ले अतिरिक्त होर कुछ नीं हा—जनवादी प्रजातंत्रा मंझ बी ये गल्ल तितनी हे ही जितनी एकराजतंत्रा बिच। एतारे बारे बिच ज्यादा ले ज्यादा खरा जे बोल्या जाई सकहां से ये हा भई ये एक एहड़ी बुराई ही जे विजयी सर्वहारा वर्गा जो तेसरे वर्ग-आधिपत्या रे विजयी संघर्षा ले बाद विरासता बिच मिलीरी। एतारे बुरे अंगां जो जल्दी ले जल्दी काटी कने हाकी देणे रे कामा ले—तिहाएं जिहां जे कम्यूने कितेया था—विजयी सर्वहारा बची नीं सकदा। एस कामा जो से छाड़ी नीं सकदा, तेबे तका जेबे तका जे एक नौवीं पीढ़ी होर स्वतंत्र सामाजिक परिस्थितियां मंझ पल़ी कने बड़ी नीं हुई जाये जे राजसत्ता रे सम्पूर्ण झाड़ झंखाड़ा जो चकी कने घूरे रे ढेरा पर हाकी सकघी।“
6. जनतंत्रा जो ख़तम करने रे प्रश्ना पर एंगेल्सा रे विचार
एंगेल्से लिखेया था भई मैं आपणे सारे लेखा बिच “सोशल-डेमोक्रेट” (सामाजिक-जनवादी) नीं, “कम्युनिस्ट” शब्दा रा प्रयोग कितिरा, क्योंकि तेस बक्त फ्रांसा रे प्रूधोंपंथी होर जर्मनी रे लासालवादी थे ज्यों आपणे जो सोशल-डेमोक्रेट बोल्हाएं थे।
“ इधी कठे, मार्क्सा रे होर मेरे कठे आपणे विशेष दृष्टिकोणा जो दसणे कठे इतने लचीले शब्दा जो पसन्द करना असंभव था। आज हालत दूजी ही होर शायद ये शब्द (“ सोशल-डेमोक्रेट”) चली सकहां—चाहे एक एहड़ी पार्टी रे कठे जेतारा आर्थिक कार्यक्रम ना कल्हे आम तौरा ले समाजवादी हा, बल्कि सीधा-सीधा कम्युनिस्ट हा, होर जेसरा अन्तिम राजनीतिक लक्ष्य पूरी राजसत्ता रा, होर इधी कठे, जनतंत्रा रा बी, अन्त करना हा, से कितना हे अनुपयुक्त की नीं हो। पर सच्ची (एंगेल्सा रा ज़ोर) राजनीतिक पार्टियां रे नावं कधी पूर्ण रूपा ले मौजूं नीं हुंगे, पार्टी विकास करहाईं, पर नावं चिपकीरा रैहां।“
आसे आपणे साम्हणे राजसत्ता जो, यानी सारी संगठित होर व्यवस्थित हिंसा जो, मनुष्य जाति रे विरूद्ध हिंसा रे सारे इस्तेमाला जो, ख़तम करने रा अन्तिम लक्ष्य रखीरा। आसे एहड़ी समाज व्यवस्था रे आउणे री आशा नीं करदे जेता मंझ बहुमता रे अग्गे अल्पमता री मातहती रे सिद्धान्ता रा पालन नीं हुणा। पर समाजवादा री स्थापना कठे कोशिश करने मंझ आसौ पूरा विश्वास रैहां भई अग्गे चली के एसा कम्युनिज़्मा बिच विकसित हुई जाणा, होर इधी कठे, आम जनता रे ख़िलाफ़ हिंसा रा इस्तेमाल करने री ज़रूरत बी, एकी माहणु रे अग्गे दूजे माहणु री होर आबादी रे एकी भागा रे अग्गे दूजे भागा री आधीनता री ज़रूरत बी, मिटी जाणी, क्योंकि तेबे लोक बिना केसी शक्ति रे प्रयोगा ले, बिना केसी ज़ोर-दबावा रे सामाजिक जीवना री सामान्य शर्ता जो मनणे रे आदी हुई जाणे।
अध्याय 5
राजसत्ता रे मुरझाई जाणे रा आर्थिक आधार
एस प्रश्ना री सभी ले पूर्ण व्याख्या मार्क्से आपणी कताब, गोथा कार्यक्रमा री आलोचना मंझ कीतीरी।
1. मार्क्से प्रश्ना जो केस ढंगा के पेश कितेया था।
आधुनिक पूंजीवादा री, विकासा रे सिद्धान्ता रे आधारा पर, सभी ले सुसंगत, पूर्ण, विचार-निष्ट होर भरी-पूरी व्याख्या करना हे मार्क्सा रा पूरा सिद्धान्त हा। इधी कठे स्वभावतः हे मार्क्सा रे साम्हणे सवाल था आपणे सिद्धान्ता रे आधार पर पूंजीवादा रे आउणे वाल़े पतना री, होर भविष्य रे कम्युनिज्मा रे भविष्या रे विकास, दोन्हों री विवेचना करना।
भविष्य रे कम्युनिज़्मा रे विकासा रे प्रश्ना जो किन्हां तथ्यां रे आधार पर चकेया जाई सकहां?
एसा गल्ला रे आधारा पर भई एसरा जन्म पूंजीवादा ले हुआं। भई ऐतिहासिक रूपा ले से पूंजीवादा रे अन्दरा ले विकसित हुआं, भई एतारी उत्पति तेस सामाजिक शक्ति रे कार्या रे परिणाम-स्वरूप हुआईं जे पूंजीवादे पैदा कितिरा। कम्युनिज़्मा रे प्रश्ना पर मार्क्स बिल्कुल तेस ढंगा ले विचार करहाएं जेहड़ा जे एक पदार्थशास्त्री केसी प्रश्ना पर, उदाहरणार्थ—प्राणिशास्त्र री एक नौवीं जाति रे प्रश्ना पर, विचार करघा अगर से जाणदा हो भई से एस ढंगा के पैदा हुई होर से एसा दिशा बिच परिवर्तित हुई करहाईं।
सभी थे पैहले मार्क्स राजसत्ता होर समाजा रे बिच सम्बंधा रे विषया मंझ गोथा कार्यक्रमा ले पैदा हुणे वाल़े भ्रमा जो हटाएं। स्यों लिखांएः
“ ‘वर्तमान समाज’ पूंजीवादी समाज हा, जे कि मध्ययुगीन मिलावटा ले कमोबेश मात्रा मंझ संशोधित हुई के, होर कमोबेश मात्रा मंझ विकसित हुई के हरेक सभ्य देशा मंझ मौजूद हा। दूजी बखौ, ‘वर्तमान राजसत्ता’ हरेक देशा री सीमा रे सौगी बधली जाहीं। प्रशो-जर्मन साम्राज्या मंझ से तेताले भिन्न ही जे से स्विज़रलैण्डा मंझ ही, इंगलैण्डा मंझ से तेताले भिन्न ही जे से संयुक्त राज्य अमरीका मंझ ही। इधी कठे ‘ वर्तमान राजसत्ता’ कल्ही एक मिथ्या कल्पना ही।
“ फेरी बी, एतारे रूपा री विविध विभिन्नतावां रे बावजूद, विभिन्न सभ्य देशा री विभिन्न राजसत्तावां मंझ, सभी मंझ, एक चीज़ समान ही, जे भई स्यों आधुनिक पूंजीवादी समाजा रे ऊपर आधारित ही। फ़र्क इतना हे हा भई इन्हां मंझा ले कोई पूंजीवादी रीति ले ज्यादा विकसित ही, होर कोई कम। इधी कठे इन्हारी कुछ खास रूप-रेखा बी एकी-समान ही। एस मायने बिच, भविष्या ले मुक़ाबला करदे हुए—जेता बिच जे तेसरी वर्तमान जड़, यानि पूंजीवादी समाज मरी चुकीरा हुणा—‘ वर्तमान राजसत्ता’ री गल्ल करना संभव हा।
“ तेबे प्रश्न उठंहाः कम्युनिस्ट समाजा मंझ राजसत्ता रा क्या रूपान्तर हुणा? दूजे शब्दों बिच, तेस बक्त तेसरे कुण जेह एहड़े सामाजिक काम मौजूद रैहणे जे राजसत्ता रे वर्तमान कामा साहीं हे? एस प्रश्ना रा उत्तर कल्हे वैज्ञानिक रूपा ले हे दितेया जाई सकहां, होर जनता शब्दा जो राजसत्ता शब्दा रे सौगी हज़ार बार जोड़ने-मिलाणे पर बी तेसा समस्या रे समाधान रे च्यूंटी बराबर बी नज़दीक नीं पहुँचेया जांदा…”
2. पूंजीवादा ले कम्युनिज़्मा बिच संक्रमण
मार्क्स अग्गे बोल्हांएः
“ पूंजीवादी होर कम्युनिस्ट समाजा रे बिचा मंझ एकी रे दूजे मंझ क्रान्तिकारी रूपा ले रूपान्तरित हुणे रा काल हा। एता रे अनुरूप एक राजनीतिक संक्रान्ति रा काल हुआं जेता मंझ राजसत्ता सर्वहारा वर्गा री क्रान्तिकारी डिक्टेटरशिपा रे अलावा होर कुछ नीं हुई सकदी।“
मार्क्से आधुनिक पूंजीवादी समाजा मंझ सर्वहारा वर्ग जे भूमिका अदा करहां एतारे विश्लेषणा रे आधारा पर, एस समाजा रे विकासा रे सम्बंधा बिच तथ्यां रे आधार पर, होर सर्वहारा होर पूंजीपति वर्गा रे परस्पर-विरोधी हिता मंझ मेल नी हुणे रे आधारा पर ये नतीजा निकाल़ेया था।
पैहले प्रश्न जो एस भांति उपस्थित कितेया गया थाः आपणे जो मुक्त करने कठे सर्वहारा वर्गा जो पूंजीपति वर्गा रा तख़्ता उलटणा चहिये, राजनीतिक सत्ता जो जीतणा चहिये होर आपणी क्रान्तिकारी डिक्टेटरशिप क़ायम करनी चहिये।
आसे देखी चुकीरे भई कम्युनिस्ट घोषणापत्र मंझ “ सर्वहारा वर्गा जो शासक वर्गा री स्थिति तका चकणा” होर “जनतंत्रा री लड़ाई जो जीतणा”—इन्हां दोन्हों जो कल्हे एकी सौगी रखेया गइरा।
पूँजीवादी समाजा रे अन्दर-एतारे विकासा कठे सभी ले ज्यादा अनुकूल परिस्थितियां मंझ—जनवादी प्रजातंत्रा मंझ लगभग पूर्ण जनतंत्र हुआं। पर ये जनतंत्र सदा पूंजीवादी शोषणा रे संकुचित दायरेयां मंझ घिरी रा रैहां, होर, इधी कठे, असलियता मंझ, से सदा कल्हे अल्प-संख्यक लोका रे कठे, कल्हे सम्पतिशाली वर्गा कठे, कल्हे रईसा रे कठे जनतंत्र रैहां। स्वतंत्रता पूंजीवादी समाजा मंझ सदा लगभग तितनी हे रैहाईं जितनी से प्राचीन यूनाना रे प्रजातंत्रां मंझ थीः दासा रे स्वामियां कठे स्वतंत्रता। पूंजीवादी शोषणा री परिस्थितियां मंझ आधुनिक मजूरी रे गुलाम भूख होर ग़रीबी के इतने कुचले जाहें भई “स्यों जनतंत्रा री फ़िक्र नीं करी सकदे”, “स्यों राजनीति री फ़िक्र नीं करी सकदे”। साधारण शान्तिपूर्ण परिस्थितियां मंझ आबादी री बहु-संख्या सामाजिक होर राजनीतिक जीवना बिच हिस्सा लैणे ले वंचित ही।
एकी तुच्छ अल्प-संख्या कठे जनतंत्र, रईसा कठे जनतंत्र—ये हा पूँजीवादी समाजा रा जनतंत्र। अगर पूँजीवादी जनतंत्रा री मशीनरी री आसे होर नेड्डे ले जांच करीयें ता आसे देखाहें भई हर जगहा---मताधिकारा री “छोटी-छोटी”—तथाकथित छोटी-छोटी चीज़ा (निवास-स्थान सम्बंधी शर्ता, औरता जो वोट देणे रे अधिकारा ले वंचित रखणा, बगैरा) मंझ, प्रतिनिधि संस्थावां री प्रणाली मंझ, सभा करने रे अधिकार-प्रयोगा रे रस्ते री वास्तविक अड़चना मंझ ( सार्वजनिक इमारता “भिखारियां” कठे नीं हीं), होर दैनिक अख़बारा रे ख़ालिस पूंजीवादी संगठना, बगैरा, बगैरा मंझ—जनतंत्रा पर पाबन्दियाँ पर पाबन्दियाँ हीं। यों पाबन्दियाँ, अपवाद, निषेध, ग़रीबा रे मार्गा मंझ यों अड़चना, तुच्छ सूझाहीं—ख़ास तौरा ले तेजो जिने आपु कधी बी तंगी रा अनुभव नीं कितिरा, होर उत्पीड़ित वर्गा रे सामूहिक जीवना ले कधी निकट सम्पर्का बिच नीं रैहीरा ( होर अगर सौ मंझा ले नड़ीनुवे नीं, ता दसा मंझा ले नौ पूंजीवादी प्रचारक होर राजनीतिज्ञ एसा श्रेणी रे हुआएं), पर इन्हा सभी प्रतिबंधा रा परिणाम ये हुआं भई ग़रीब लोक राजनीतिक जीवना ले, जनतंत्रा मंझ क्रियाशील भाग लैणे ले, अलग करी दिते जाहें, स्यों बाहर धकेली दिते जाहें।
मार्क्से जेबे कम्यूना रे अनुभवा जो विश्लेषण करदे बक्त बोल्या था भई उत्पीड़िता जो हर कुछ साला मंझ एकी बारी ये तै करने री इजाज़त दीती जाहीं भई उत्पीड़क वर्गा रे कुण जेह विशेष प्रतिनिधि पार्लामेण्टा मंझ जाई के तिन्हारा प्रतिनिधित्व करे होर तिन्हारा दमन करे, तेबे तिन्हें पूँजीवादी जनतंत्रा रे एस तत्वा जो बौहत अच्छी तरहा ले पैहचाणी लितेया था।
पर एस पूँजीवादी जनतंत्रा रा—जे अनिवार्य रूपा ले संकुचित हुआं, जे ग़रीबा जो चुपचाप दूर रखहां होर इधी कठे जेसरा रेशा-रेशा पाखण्ड होर झूठा ले सराबोर हुआं---अग्गे विकास सरलता ले, शान्तिपूर्वक होर आपणे आप “अधिकाधिक जनतंत्रा” मंझ नीं हुई जांदा, जेहड़ा जे उदारपंथी प्रोफेसर होर निम्न-पूंजीवादी चाहें भई आसे विश्वास करी लैइयें। नीं, अग्गे, यानि कम्युनिज़्मा रे बखौ विकास, सर्वाहारा वर्गा री डिक्टेटरशीपा रे जरिए हुआं, होर एताले अलावा होर केसी ढंगा ले नीं हुई सकदा, क्योंकि पूंजीवादी शोषका रे विरोधा जो होर केसी ज़रिए, या होर किसी ढंगा ले नीं तोड़ेया जाई सकदा।
पर सर्वहारा वर्गा री डिक्टेटरशिपा रा, यानी उत्पीड़का जो कुचलणे कठे उत्पीड़िता रे हिरावला जो शासक वर्गा रे रूपा बिच संगठित करने रा परिणाम कल्हे जनतंत्रा रा विस्तार नीं हुई सकदा। जनतंत्रा रे जबरदस्त विस्तारा रे सौगी हे सौगी पैहली बार ग़रीबा कठे जनतंत्र, जनता कठे जनतंत्र, होर रईसा कठे जनतंत्र नीं, बणहां---सर्वहारा वर्गा री डिक्टेटरशिप उत्पीड़का, शोषका होर पूंजीशाहा री स्वतंत्रता पर बौहत सारे बंधन बी लगाहीं। मनुष्य-जाति जो मजूरी री गुलामी ले मुक्त करने कठे आसौ तिन्हौ कुचल़ी देणा पौहां, तिन्हारे विरोधा जो बलपूर्वक तोड़ी देणा चहिए। ये ता साफ़ हा भई जिथी दमन हा, जिथी ज़ोर-ज़बरदस्ती ही, तिथी स्वतंत्रता नीं हुई सकदी, जनतंत्र नीं हुई सकदा।
एंगेल्से बेबेला रे नावें पत्रा बिच बोल्या थाः
“...सर्वहारा जेबे तका राजसत्ता रा इस्तेमाल करहां तेबे तका से एतारा इस्तेमाल स्वतंत्रता कठे नीं, बल्कि, आपणे दुश्मणा जो जिकी रखणे कठे करहां, होर जिहां हे स्वतंत्रता री गल्ल करना संभव हुई जाहीं, तिहां हे राजसत्ता साहीं चीज़ नीं रैही जांदी।
जनता री विशाल बहु-संख्या कठे जनतंत्र, होर जनता रे शोषका होर उत्पीड़का रा बल-पूर्वक दमन, यानी जनतंत्रा ले निषेध—ये हा से परिवर्तन जे जनतंत्रा मंझ पूंजीवादा ले कम्युनिज़्मा रे संक्रमण काला बिच हुआं।
कल्हे कम्युनिस्ट समाजा बिच, जेबे जे पूंजीशाहा रे विरोधा जो पूर्ण रूपा ले कुचल़ी दितेया गइरा, जेबे जे पूंजीपति ग़ायब हुई चुकीरे, जेबे जे कोई वर्ग नीं रैही गइरे ( यानी, जेबे उत्पादना रे सामाजिक साधना रे सौगी सम्बंधा रे सिलसिले बिच समाजा रे सदस्यां रे बिच कोई अन्तर नीं रैही गइरा), कल्हे तेभे “राजसत्ता रा....अस्तित्व नीं रैही जांदा,” होर “ स्वतंत्रता री गल्ल करना संभव हुआं”। कल्हे तेबे हे असला बिच पूर्ण जनतंत्र, जनतंत्र बिना केसी अपवादा रे, संभव हुणा होर एतारी स्थापना कीती जाई सकणी। होर कल्हे तेबे हे जनतंत्र मुरझाई कने ख़तम हुंदा लगणा। एतारा सबब सीधा-सादा ये हुणा भई पूंजीवादी गुलामी ले, पूंजीवादी शोषणा री अनकथ विभीषिकावां, बर्बरतावां, मूर्खतावां होर गन्दगियां ले मुक्त हुई के, लोक सुले-सुले सामाजिक आदाना-प्रदाना रे साधारण नियमां जो मनणे रे आदी हुई जाणे। यों नियम सदियां ले पता हे, हज़ारां साला ले स्यों सारी कताबां मंझ सूत्रा रे रूपा बिच दोहराये गइरे। लोक तिन्हौ बिना केसी बल-प्रयोगा रे, बिना केसी ज़ोर-ज़बरदस्ती होर दबावा रे, बिना ज़ोर-ज़बरदस्ती रे विशेष अस्त्र-जेतौ राजसत्ता बोल्या जाहां—रे प्रयोगा रे, मनणे रे आदी हुई जाणे।
पूंजीवादी समाजा मंझ जे जनतंत्र हुआं, से कटीरा-छंटीरा, निकृष्ट होर झूठा हुआं, से कल्हे रईसा कठे, अल्प-संख्यक लोका कठे जनतंत्र हुआं। अल्पसंख्यका जो---शोषका जो, जरूरी रूपा ले दबाणेे रे सौगी-सौगी, सर्वहारा वर्गा री डिक्टेटरशिप—कम्युनिज़्मा मंझ संक्रमणा रा काल हे—जनता कठे, जनता रे बहुमता कठे, पैहली बार जनतंत्रा री सृष्टि करहां। वास्तविक रूपा ले पूर्ण जनतंत्रा री स्थापना कल्हे कम्युनिज़्म हे करी सकहां। होर ये जनतंत्र जितना हे पूर्ण हुणा, तितनी ही तेजी के से अनावश्यक हुई जाणा होर मुरझाई के आपणे आप ख़तम हुई जाणा।
दूजे शब्दा बिचः पूंजीवादा रे अन्तर्गत राजसत्ता आपणे असली मायने बिच राजसत्ता यानी एकी वर्गा द्वारा दूजे वर्गा जो, होर से बी अल्पसंख्यका द्वारा बहुसंख्यक लोका जो दबाणे री विशेष मशीन, हुआईं। स्वाभाविक हे हा भई शोषक अल्पसंख्या द्वारा शोषित बहुसंख्या जो व्यवस्थित ढंगा ले दबाणे साहीं कामा जो करने कठे सभी ले ज़्यादा खूँखारी होर बर्बरता री ज़रूरत हुआईं, एता कठे खूना रे समुद्रा री ज़रूरत हुआईं जेता मंझा ले मनुष्य जाति जो गुलामी, अर्धगुलामी होर मजूरी री गुलामी री अवस्थावां ले गुज़रना हुआं।
होर अग्गे, पूंजीवादा ले कम्युनिज़्मा रे संक्रमण-काला मंझ अझी बी दबाणा ज़रूरी हुआं, पर एभे ये शोषक अल्पसंख्यका रा शोषिता री बहु-संख्या द्वारा दबाणा हा। दबाणे रे एकी विशेष यंत्रा री, एकी विशेष मशीना री, “राजसत्ता” री, एभे बी ज़रूरत हुआईं, पर एभे ये संक्रान्ति-कालीन राजसत्ता हुआईं। से सही मायनेयां बिच राजसत्ता नीं रैही जांदी, क्योंकि शोषका री अल्पसंख्या जो जनता री बहुसंख्या द्वारा, जे काला तका मजूरी री गुलाम थी, दबाणे रा काम अपेक्षाकृत इतना सरल होर स्वाभाविक हा भई तेता मंझ गुलामा, अर्ध-गुलामा या तनख़ा रे मज़दूरा रे विद्रोहा जो दबाणे री तुलना बिच बौहत कम खून बैहणा, होर एता कठे मनुष्य-जाति जो बौहत कम कीमत चुकाणी पौणी। होर आबादी री इतनी विशाल बहुसंख्या तका जनतंत्रा रा विस्तार हुई जाणे ले ये गल्ल मेल खाहीं भई दबाणे कठे एकी विशेष मशीना री आवश्यकता रा ग़ायब हुणा शुरू हुई जाणा। ये स्वाभाविक हा भई शोषक लोक एकी बौहत जटिल मशीना रे बिना जनता जो दबाणे रा काम करने मंझ असमर्थ हे, पर जनता शोषका जो एकी बौहत हे सरल “मशीना” ले हे, लगभग बिना केसी “मशीना” रे, बिना केसी विशेष यंत्रा रे हे, कल्हे हथियार-बन्द जनता रा संगठन करी के ही ( जेहड़ा जे मज़दूरा होर सैनिका रे प्रतिनिधियां री सोवियता---बिच, आसे थोह्ड़ी अग्गे आउणे वाल़ी गल्ला जो इथी हे गलाई देहाएं) दबाई सकाहीं।
आखरी गल्ल ये ही भई कल्हे कम्युनिज़्म हे राजसत्ता जो पूर्ण रूपा ले अनावश्यक बणाई देहां, क्योंकि फेरी दबाणे कठे कोई नीं रैही जांदा। ये “कोई नीं” एकी वर्गा रे अर्था बिच हा। आसे कल्पनावादी नीं हे, होर आसे एसा संभावना होर अनिवार्यता ले ज़रा बी इनकार नीं करदे भई इक्के-दुक्के लोक ज़्यादतियाँ करी सकाहें, होर ना एसा गल्ला री ज़रूरता ले भई एस तरहा री ज़्यादतियां जो रोकणा चहिए। पर, पैहली गल्ल ता ये ही भई एस कामा कठे दमना री केसी विशेष मशीना री, या विशेष यंत्रा री आवश्यकता नीं ही। एस कामा जो हथियार-बन्द जनता खुद करघी। से तेतौ तितनी हे सरलता होर तत्परता ले करघी, जितनी सरलता होर तत्परता ले आधुनिक समाजा रे अन्दर बी, सभ्य लोका रा एक समूह किन्हकी दो लड़दे लगीरे व्यक्तियां जो छुड़ाई देहां, या केसी स्त्री रे ऊपर आक्रमण रोकणे कठे हस्तक्षेप करहां। होर, दूजे, आसे जाणहाएं भई ज़्यादतियां रा, जे सामाजिक आदान-प्रदाना रे नियमा रा उल्लंघन हा, मूल सामाजिक कारण जनता रा शोषण, तेसरी तंगी होर तेसरी ग़रीबी ही। एस ख़ास कारणा रे दूर हुई जाणे ले ज़्यादतियां रा बी मुरझाई कने ख़तम हुणा अनिवार्य रूपा ले शुरू हुई जाणा। आसे ये नीं जाणदे भई कितनी जल्दी होर केस क्रमा बिच, पर ये आसे जाणहाएं भई स्यों मुरझाई के ख़तम हुई जाणी। तिन्हारे मुरझाई के ख़तम हुई जाणे पर राजसत्ता बी मुरझाई कने ख़तम हुई जाणी।
3. कम्युनिस्ट समाजा री पैहली अवस्था
गोथा कार्यक्रमा री आलोचना नावां री आपणी कताबा बिच मार्क्से लासाला री एसा धारणा जो ग़लत साबित करने कठे काफ़ी ब्योरे बिच लिखीरा था भई समाजवादा रे अन्तर्गत मज़दूरा जो “बिना घट हुईरी” या, “तेसरी मेहनता री पूरी पैदावार” मिल्हणी। मार्क्स दसाहें भई समाजा रे सम्पूर्ण सामाजिक श्रमा मंझा ले एक रिज़र्व फ़ण्ड बचाणा ज़रूरी हा। ये फ़ण्ड उत्पादना जो बधाणे कठे, “इस्तेमाल हुई चुकीरी” मशीना री जगहा दूजी मशीना जो लगाणे रे होर एहड़े हे दूजे कामा कठे हुणा। फेरी, एस ढंगा के, खपता रे साधना मंझा ले बी शासना रे खर्चे कठे, स्कूला, अस्पताला, बूढ़े लोका रे घरा, बगैरा, बगैरा कठे, फ़ण्ड बचाणा पौणा।
मार्क्स एक एहड़े समाजा री जीवना री परिस्थितियां रा, जेता मंझ पूँजीवाद नीं रैही जाणा, ठोस ढंगा ले विश्लेषण करने कठे अग्गे बधाएं, होर बोल्हांएः
“इथी (मज़दूरा री पार्टी रे कार्यक्रमा रा विश्लेषण करदे बक्त) जेस चीज़ा पर आसा विचार करना से कम्युनिस्ट समाज एहड़ा नीं हा जे खुद आपणी नींवा पर विकसित हुईरा, बल्कि, एते विपरीत, एहड़ा जे पूंजीवादी समाजा ले ऊपर निकल़हां। एस ढंगा के तेसरे ऊपर, आर्थिक रूपा ले, नैतिक रूपा ले, बौद्धिक रूपा ले, हर ढंगा ले, तेस पुराणे समाजा रे जेतारे गर्भा ले से निकल़हां, जन्म-चिन्हां री छाप लगीरी हुआईं।“
जेतौ मार्क्स कम्युनिस्ट समाजा री “पैहली” या निचली अवस्था बोल्हाएं।
उत्पादना रे साधन एभे व्यक्तियां री निजी सम्पति नीं रैही जांदे। उत्पादना रे साधना पर सम्पूर्ण समाजा रा अधिकार हा। समाजा रा हरेक सदस्य सामाजिक रूपा ले आवश्यक मेहनता रा एक हिस्सा पूरा करी के समाजा ले ये प्रमाण-पत्र पाहां भई तिने इतना-इतना काम कितिरा। होर एस प्रमाण-पत्रा रे आधार पर, से खपता रे साधना रे सामाजिक स्टॉका मंझा ले तेता रे अनुसार मात्रा बिच पैदावार पाहां। इधी कठे, श्रमा रे तितने हिस्से रे कटणे ले बाद जे सार्वजनिक फ़ण्ड बिच जाहां, हरेक मज़दूर समाजा ले तितना हे पाहां जितना तिने एतौ दितिरा।
सूझहां भई “समता” रा अखण्ड साम्राज्य हा।
मार्क्स बोल्हाएं---“समान अधिकार” निस्सन्देह इथी हए, पर स्यों अझी बी “ पूंजीवादी अधिकार” हे, जे हरेक अधिकारा साहीं, असमानता जो पैहले हे मनी के चलहां। हरेक अधिकार विभिन्न लोका पर एक हे मापा जो लागू करना हा जे कि वास्तवा मंझ एकी साहीं नीं हुंदे, एकी दूजे रे बराबर नीं हे। ये हे वजह ही जे “ समान अधिकार” असला बिच समानता रे सिद्धान्ता जो तोड़ना हा होर एक अन्याय हा। असला मंझ हरेक मनुष्य दूजे बराबर सामाजिक मेहनत करने ले बाद (ऊपर दसीरी काटा ले बाद) सामाजिक पैदावारा रा समान हिस्सा पाहां।
पर मनुष्य ता एकी साहीं नीं हेः एक ताक़तवर हा, एक कमज़ोर हा, एक शादी शुदा हा, दूजा नीं, एकी रे ज़्यादा बच्चे हे, दूजे रे कम, बगैरा। होर मार्क्स जे परिणाम निकाल़ाएं से हाः---
“समान काम करने होर इधी कठे सामाजिक खपत फण्ड मंझा ले समान हिस्सा लैणे ले वास्तवा बिच एकी जो दूजे ले ज़्यादा मिल्हणा। एकी दूजे ले ज़्यादा धनी बणी जाणा, बगैरा। इन्हां सारी कमज़ोरियां ले बचणे कठे अधिकारा जो समान हुणे रे बजाय असमान हुणा पौणा...
इधी कठे कम्युनिज़्मा री पैहली अवस्था मंझ अझी न्याय होर समानता रा जन्म नीं हुणा। धन-सम्पति रे सम्बंधा बिच फ़र्क, होर अन्यायपूर्ण फ़र्क, अझी बी मौजूद रैहणे, पर मनुष्या द्वारा मनुष्या रा शोषण असंभव हुई जाणा, क्योंकि उत्पादना रे साधना पर, फैक्टरियां, मशीनां, ज़मीन, बगैरा पर व्यक्तिगत सम्पति रे रूपा बिच क़ब्जा करना असंभव हुई जाणा। शुरू मंझ से (कम्युनिस्ट समाज) मजबूर हुआं भई कल्हे निजी व्यक्तियां द्वारा उत्पादना रे साधनां पर क़ब्जा करी लिते जाणे रे “ अन्याया” रा हे अन्त करे, होर, दूजे अन्याया जो, जे खपता री चीज़ा रा “ कीती गयी मेहनता री मात्रा रे अनुसार” (आवश्यकता रे अनुसार नीं) बँटवारा हा, से फ़ौरन ख़तम नीं करी सकदा।
मार्क्स कल्हे मनुष्यां री अनिवार्य असमानता री गल्ला रा हे नीं पूरा-पूरा ध्यान रखदे। स्यों एसा गल्ला रा बी ध्यान रखाहें भई कल्हे उत्पादना रे साधना जो सम्पूर्ण समाजा री सम्पति बणाई देणे ले ही (जेतौ आम तौरा ले “समाजवाद” बोल्या जाहां) बंटवारे री होर “पूंजीवादी अधिकारा” री असमानता री बुराइयाँ नीं दूर हुई जांदी। जेबे तका चीज़ा रा बँटवारा “कीती गई मेहनता रे अनुसार” हुआं, तेबे तका यों बुराइयाँ बी जारी रैहाईं। अग्गे मार्क्स बोल्हांएः
“पर कम्युनिस्ट समाजा री एसा पैहली अवस्था मंझ जेता बिच जे प्रसूति री एकी लम्बी पीड़ा ले बाद पूंजीवादी समाजा रे गर्भा ले अझे-अझे बाहर निकलणे ले बाद से हुआं, इन्हां बुराइया रा हुणा अनिवार्य हा। अधिकार समाजा री आर्थिक बनावट होर एताले निर्धारित सांस्कृतिक विकासा ले ऊच्चा कधी नीं हुई सकदा।“
होर एस ढंगा के, कम्युनिस्ट समाजा री पैहली अवस्था मंझ (आम तौरा ले जेतौ समाजवाद बोल्हाएं) “पूंजीवादी अधिकारा” जो पूर्ण रूपा ले नीं ख़तम करी दितेया जांदा। एतारे कल्हे एकी भागा जो हे---जे समाजा रे तेबे तका रे हुइरे, यानि उत्पादना रे साधना रे सम्बंधा बिच हुइरे आर्थिक रूपान्तरा रे अनुपाता रे बराबर भागा जो हे—ख़तम कितेया जाहां। “पूंजीवादी अधिकार” तिन्हौ (उत्पादना रे साधना जो) व्यक्तियां री निजी सम्पति मन्हां। समाजवाद तिन्हौ सभी री सम्पति बणाई देहां। तेस हदा तक—होर कल्हे तेसा हदा तक---“पूंजीवादी अधिकार” ग़ायब हुई जाहां।
पर, जिथी तका एतारे दूजे भागा रा सम्बंध हा, से अझी बी मौजूद रैहां। से समाजा रे सदस्यां रे बिच उत्पादित चीज़ा रा वितरण करने होर तिन्हारे श्रमा जो जगहा-जगहा लगाणे बिच एक निर्धारक (निश्चित करने वाल़ी शक्ति) री हैसियता मंझ मौजूद रैहां। समाजवादी सिद्धान्त भईः “जे काम नीं करदा, से खांहगा बी नीं” पूरा हुई गया, दूजा समाजवादी सिद्धान्त भई “श्रमा री बराबर मात्रा कठे उत्पादित चीज़ा री बी बराबर मात्रा” बी पूरा हुई गया। पर अझी तका ये कम्युनिज़्म नीं हा, होर ये तेस “पूंजीवादी अधिकारा” रा, जे असमान व्यक्तियां जो, मेहनता री असमान (असला बिच असमान) मात्रा रे बदले मंझ उत्पादित चीज़ा री समान मात्रा देहां, अझी तका ख़ात्मा नीं करदा।
मार्क्स बोल्हाएं भई ये एक “बुराई” ही, पर कम्युनिज़्मा री पैहली अवस्था मंझ से अनिवार्य ही। क्योंकि अगर आसा कल्पनावादा मंझ उड़ानां नीं भरनी ता आसौ ये नीं सोचणा चहिए भई पूंजीवादा रा तख़्ता उलटणे ले बाद फ़ौरन हे लोक अधिकारा रे बिना केसी मापा के समाजा कठे काम करना सीखी जांघे। होर सच्चियो मंझ, एहड़े परिवर्तना रे आर्थिक आधारा जो पूंजीवादा रा ख़ात्मा, फ़ौरन हे तैयार नी करी देंदा।
होर अझी तका “पूंजीवाद अधिकारा” रे अलावा होर कोई माप नीं हा। इधी कठे, एस हदा तक राजसत्ता री अझी बी जरूरत ही। उत्पादना रे साधना पर सार्वजनिक स्वामित्व री रक्षा करने रे सौगी-सौगी से श्रमा री समानता होर उत्पादित चीज़ा रे वितरणा री समानता री बी रक्षा करघी।
पर अझी तका राजसत्ता मुरझाई के पूर्ण रूपा ले नीं ख़तम हुईरी, क्योंकि “ पूंजीवादी अधिकारा” री---जे वास्तविक असमानता जो पवित्रता रा जामा पन्हाएं—रक्षा करने रा काम अझी बी बाक़ी हा। राजसत्ता रे मुरझाई के पूर्ण रूपा ले ख़तम हुणे कठे पूर्ण कम्युनिज़्म ज़रूरी हा।
4. कम्युनिस्ट समाजा री ज़्यादा ऊच्ची अवस्था
मार्क्स अग्गे बोल्हांएः
“कम्युनिस्ट समाजा री ज़्यादा ऊच्ची अवस्था मंझ, जेबे श्रम-विभाजना रे अन्तर्गत व्यक्तियां री दासता वाल़ी मातहती रा होर एतारे सौगी-सौगी मानसिक होर शारीरिक श्रमा रे विरोधा रा अन्त हुई जाहां, श्रम जेबे जीवना रा कल्हा एक साधन हुणे रे बजाय जीवना री आपु एक मुख्य आवश्यकता बणी जाहां, जेबे व्यक्ति रे चतुर्मुखी विकासा रे सौगी-सौगी उत्पादना रे साधना री बी मात्रा बधी जाहीं होर सहकारी सम्पत्ति रे तमाम झरने होर अधिक बहुतायता ले बैहंदे लगाहें---सिर्फ़ तेबे पूंजीवादी अधिकारा रे संकुचित दृष्टिकोणा जो पूर्ण रूपा ले पीछे छाड़ेया जाई सकहां होर समाज आपणे झण्डे परा लिखी सकंहाः “हरेक आपणी योग्यता रे अनुसार काम करे, हरेक आपणी जरूरता रे अनुसार पाये।“
एंगेल्से जिन्हां शब्दा मंझ “स्वतंत्रता” होर “राजसता” शब्दा जो मिलाणे रे प्रयत्ना री मूर्खता रा निर्ममतापूर्वक मज़ाक उड़ाया था, तिन्हां री सच्चाई जो आसे कल्हे एभे हे पूर्ण रूपा ले समझी सकाहें। जेबे तका राजसत्ता मौजूद रैहाईं तेबे तका स्वतंत्रता नीं हुई सकदी। जेबे स्वतंत्रता हुणी ता राजसत्ता नीं रैही जाणी।
राजसत्ता रे मुरझाई के पूर्ण रूपा ले ख़तम हुणे रा आर्थिक आधार कम्युनिज़्मा रे विकासा री इतनी ऊंची अवस्था हुआईं जे मानसिक होर शारीरिक श्रमा रे बिचा रा विरोध ग़ायब हुई जाहां, यानी जेबे आधुनिक सामाजिक असमानता रा एक मुख्य श्रोत ग़ायब हुई जाहां। होर फेरी ये श्रोत एहड़ा हा जेतौ उत्पादना रे साधना जो सार्वजनिक सम्पति बनाई देणे मात्रा ले, पूंजीपतियां री सम्पति जो छीनी लैणे मात्रा ले फ़ौरन नीं मिटाया जाई सकदा।
एसा सम्पत्ति रे छीने जाणे ले उत्पादना री शक्तियां रा बौहत ज़्यादा विकास करना आसान बणी जाणा। होर एसा गल्ला जो देखी के भई पूंजीवाद आज हे एस विकासा जो अकल्पित मात्रा बिच केस ढंगा के रोकी करहां, एस गल्ला जो देखी के भई आधुनिक टेकनीका रे वर्तमान आधारा पर हे कितनी ज़्यादा प्रगति कीती जाई सकाहीं थी, आसौ पूर्ण विश्वासा रे सौगी ये बोलणे रा अधिकार हा भई पूंजीपतियां री सम्पत्ति जो छीनी लैणे रा अनिवार्य परिणाम मानव समाजा री उत्पादन शक्तियां रा जबरदस्त विकास हुणा। पर ये विकास कितनी तेज़ी ले हुणा, कितनी जल्दी से श्रम-विभाजना ले नाता तोड़ने री मानसिक, होर शारीरिक श्रमा रे बिचा रा विरोध दूर करने री, या श्रमा जो “जीवना री प्रमुख आवश्यकता” मंझ बदली देणे री सीमा पर पौहँची जांघा—ये आसे नीं जाणदे, ना जाणी सकाहें।
राजसत्ता तेबे हे मुरझाई कने पूर्ण रूपा ले ख़तम हुई सकघी जेबे समाज “हरेक आपणी योग्यता रे अनुसार काम करे, हरेक आपणी ज़रूरता रे अनुसार पाये” रे नियमा जो लागू करदा लगघा, यानी जेबे लोक सामाजिक आदान-प्रदाना रे बुनियादी नियमा रा पालन करने रे इतने आदी हुई जांघे, होर जेबे तिन्हारे श्रमा ले इतना उत्पादन हुंदा लगघा जे स्यों स्वेच्छा ले आपणी योग्यता रे अनुसार काम करदे लगघे। “पूँजीवादी अधिकारा रा संकुचित दृष्टिकोण“ जे एकी व्यक्ति जो शाइलॉका री कठोरता ले ये हिसाब लगाणे कठे मज़बूर करहां जे किथकी तिने दूजेयां ले आधा घण्टा ज्यादा ता नीं काम करी दितेया, जे किथकी तेजो दूजेयां ले घट तनख़ा ता नीं मिली करहांई—ये संकुचित दृष्टिकोण तेबे पीछे छूटी जाणा। तेबे समाजा जो एसा गल्ला री जरूरत नीं रैहणी भई से हरेकी जो बाँडी जाणे वाली उत्पादित चीज़ा री मात्रा रा नियंत्रण करे, हरेक स्वतंत्रतापूर्वक “आपणी ज़रूरता रे अनुसार” लेई लैंघा।
जेबे तका कम्युनिज़्मा री “उच्च” अवस्था नीं आउंदी, तेबे तका समाजवादियों री माँग ही भई समाजा द्वारा होर राजसत्ता द्वारा श्रमा री मात्रा होर ख़पता री मात्रा दोन्हों रे ऊपर सख़्ता ले सख़्त नियंत्रण हो। पर एस नियंत्रणा री शुरूआत करनी चहिए पूंजीपतियां री सम्पति जो छीनी के, पूंजीपतियां रे ऊपर मज़दूरा रा नियंत्रण क़ायम करीके, होर एस कामा जो पूरा करना चहिए नौकरशाही री राजसत्ता रे द्वारा नीं, बल्कि हथियार-बन्द मज़दूरा री राजसता रे द्वारा।
सोशलिज़्म होर कम्युनिज़्म रा वैज्ञानिक अन्तर सपष्ट हा। आम तौरा ले जेतौ सोशलिज़्म बोल्या जाहां तेतौ मार्क्से कम्युनिस्ट समाजा री “पैहली” या निचली अवस्था बोलीरा। चूंकि उत्पादना रे साधन सभी री सम्पत्ति बणी जाहें इदी कठे “कम्युनिज़्म” शब्द बी इथी लागू हुई सकहां बशर्ते जे आसे ये नीं भूलो भई ये पूर्ण कम्युनिज्म नीं हा। मार्क्सा री व्याख्या रा महान महत्व एता मंझ हा भई इथी बी स्यों भौतिकवादी द्वन्द्ववादा रा, विकासा रे सिद्धान्ता रा, सुसंगत रूपा ले इस्तेमाल करहाएं होर कम्युनिज़्मा जो एक एहड़ी वस्तु रे रूपा बिच प्रस्तुत करहाएं जे पूंजीवादा रे अन्दरा ले विकसित हुआईं। पण्डिताऊ ढंगा ले बणायी गइरी, “गढ़ी गइरी” परिभाषा होर शब्दा रे बारे बिच विवादा (सोशलिज़्म क्या हा? कम्युनिज़्म क्या हा?) मंझ पौणे रे बजाय मार्क्से तिन्हारी व्याख्या कीतीरी जिन्हौ कम्युनिज़्मा री आर्थिक परिपक्वता री मंज़िला बोली सकाहें।
आपणी पैहली अवस्था, या पैहली मंज़िला मंझ कम्युनिज़्म आर्थिक रूपा ले पूर्णतया परिपक्व होर पूंजीवादी परम्परावां होर प्रभावां ले सर्वथा मुक्त नीं हुई सकदा। इधी कठे आसौ ये विचित्र चीज़ देखणे जो मिल्हाईं भई कम्युनिज़्म आपणी पैहली अवस्था मंझ “पूंजीवादी अधिकारा रे दृष्टिकोणा” जो क़ायम रखहां। निस्संदेह ख़पता री चीज़ा रे वितरणा रे सम्बंधा बिच पूँजीवादी अधिकार पैहले ले हे अनिवार्य रूपा ले एस गल्ला जो मन्हां भई पूंजीवादी राजसत्ता बी अझी मौजूद ही, क्योंकि अधिकारा रे उसूला जो मनवाणे रे यंत्रा रे बिना अधिकारा रे कोई मायने हे नीं रैही जांदे।
इधी कठे कम्युनिज़्मा रे अन्तर्गत ना कल्हे पूंजीवादी अधिकार, बल्कि पूंजीवादी राजसत्ता बी---पूंजीपति वर्गा रे बगैर---कुछ बक्ता तक बणीरी रैहाईं।
यथार्थ गल्ल ये ही भई प्रकृति मंझ होर समाजा मंझ, दोन्हों मंझ, नौवें रे अन्दर पुराणे रे बचीरे अवशेष आसौ जीवना रे हर क़दमा पर सूझाएं। मार्क्से कम्युनिज़्मा रे अन्दर “पूंजीवादी” अधिकारा रा एक अंश बी आपणे बखा ले, मनमाने ढंगा ले नीं घुसेड़ेया था। बल्कि से चीज़ दसी थी जेतारा पूंजीवादा रे गर्भा ले निकल़दे हुए समाजा बिच हुणा आर्थिक होर राजनीतिक रूपा ले अनिवार्य हा।
पूंजीपतियां ले मुक्ति रे आपणे संग्रामा बिच मज़दूर वर्गा रे कठे जनतंत्रा रा महान महत्व हा। पर जनतंत्र कोई एहड़ी सीमा नीं हीं जेताले अग्गे जाणा हे नीं चहिए, सामन्तवादा ले पूंजीवादा बखौ होर पूंजीवादा ले कम्युनिज़्मा बखौ रे रस्ते री मंज़िला मंझा ले से कल्ही एक मंज़िल हा।
जनतंत्रा रे मायने हए समानता। समानता कठे सर्वहारा वर्गा रे संघर्षा रा महान महत्व होर एकी नारे रे रूपा बिच समानता रा महत्व सपष्ट हुई जाणा अगर आसे एतारे अर्था जो सही रूपा मंझ, वर्गा रे ख़ात्मे रे रूपा बिच समझें। पर जनतंत्रा रे मायने हए कल्ही ऊपरी समानता। होर जिहां हे उत्पादना रे साधना रे स्वामित्व रे सम्बंधा बिच समाजा रे सारे सदस्यां रे बिच समानता री, यानी जिहां हे श्रमा री समानता होर मज़दूरी री समानता री स्थापना हुई जाणी, तिहां हे, अनिवार्य रूपा ले, मनुष्य जाति रे साम्हणे ऊपरी समानता ले वास्तविक समानता रे बखौ अग्गे बधणे रा, यानी एस सिद्धान्ता जो भई “हरेक आपणी योग्यता रे अनुसार काम करे, हरेक आपणी ज़रूरता रे अनुसार पाये” लागू करने रा प्रश्ना आई खड़ा हुणा। किन्हां मंज़िला ले, किन्हां अमली क़दमा रे द्वारा मानवता एस उच्चतर लक्ष्या रे बखौ बधगी—ये आसे नीं जाणदे होर ना हे जाणी सकाहें। पर एसा चीज़ा जो समझणा महत्वपूर्ण हा भई सोशलिज़्मा रे सम्बंधा बिच साधारण पूँजीवादी कल्पना ही भई से एक सर्वथा निर्जीव, मृत होर हमेशा कठे निश्चित चीज़ ही, कितनी बेहद मिथ्यापूर्ण ही, जेबे कि वास्तविकता ये ही भई कल्हे सोशलिज़्मा रे अन्तर्गत हे सामाजिक होर व्यक्तिगत जीवना रे प्रत्येक क्षेत्रा बिच अग्गे बधणे कठे---पैहले आबादी रे बहुमता रा, होर फेरी सम्पूर्ण आबादी रा, एक तेज, सच्चा होर यथार्था बिच सामूहिक आन्दोलन शुरू हुणा।
जनतंत्र राजसत्ता रा एक रूप हा, एतारे बौहत सारे स्वरूपा मंझा ले एक। इधी कठे, हर राजसत्ता रे साहीं, से बी एकी बखौ ता लोका रे विरूद्ध व्यवस्थित रूपा ले इस्तेमाल किते जाणे वाल़े संगठित बला री प्रतिनिधि ही, पर, दूजी बखौ, से, सारे नागरिका री समानता री, राजसत्ता रे ढांचे होर एतारी व्यवस्था रा रूप निश्चित करने रे सम्बंधा बिच तिन्हा सभी रे समान अधिकारा री ऊपरी स्वीकृति रा बी प्रमाण ही। एस चीज़ा रा सम्बंध फेरी एसा गल्ला ले हा भई जनतंत्रा रे विकासा री एकी विशेष मंज़िला मंझ पैहले लेे पूंजीवादा रे ख़िलाफ़ सर्वहारा जो एकी क्रान्तिकारी वर्गा रे रूपा बिच संगठित करहां, होर एतौ एस योग्य बणाहां भई पूंजीवादी राजसत्ता री मशीना जो---प्रजातांत्रिक पूंजीपतियां री राजसत्ता री मशीना जो बी-एतारी स्थायी फ़ौज, पुलिस होर नौकरशाही जो, कुचल़ी दे, एतारे टुकड़े-टुकड़े करी दे, एतौ दुनिया ले सदा कठे पोंछी के हाक्की दे, होर फेरी, एतारी जगहा एक ज्यादा जनवादी राजसत्ता री मशीना री स्थापना करे, पर हुणी से बी तिन्हां हथियार-बन्द मज़दूरा रे रूपा मंझ जे सार्वजनिक जनता री सेना मंझ बदलदे जाई करहाएं, राजसत्ता री एक मशीन हे।
इथी “मात्रा गुणा बिच बधली जाहीं”। जनतंत्रा री इतनी मात्रा रे मायने हुआएं पूंजीवादी समाजा री सीमा रा अतिक्रमण करना, एतारे समाजवादी निर्माणा रे कार्या जो आरंभ करना। अगर राजसत्ता री शासन-व्यवस्था मंझ सब लोक हाथ बाँडदे लगौ ता निस्सन्देह पूंजीवाद आपणे शिकंजे जो क़ायम नीं रखी सकदा। होर आपु पूंजीवादा रा विकास हे तेसा पूर्व-स्थिति जो पैदा करी देहां जेता मंझ “सभ लोक” वास्तवा मंझ एस योग्य हुआएँ जे राजसत्ता री शासन-व्यवस्था मंझ हाथ बँडाई सको। कुछ पूर्व-स्थितियाँ यों हीः—सार्वजनिक साक्षरता जे कई सभी ले ज़्यादा उन्नत पूंजीवादी देशा मंझ पैहले हे हासिल हुई चुकीरी, फेरी पोस्ट-आफिस, रेला, बड़ी फैक्टरियां, बड़े पैमाने रे व्यापार, बैंकिंग, बगैरा, बगैरा रे विशाल होर जटिल समाजीकृत यंत्रा रे द्वारा लाखां मज़दूरां जो “ट्रेनिंग देणा होर तिन्हौ अनुशासन-बद्ध बनाणा।“
अगर यों आर्थिक पूर्व-स्थितियाँ मौजूद हों ता, पूंजीपतियां होर नौकरशाहा रा तख़ता उलटणे ले बाद, ये एकदम संभव हा जे फ़ौरन, राती भरा बिच हे, अग्गे बधया जाये होर उत्पादन होर वितरणा रे नियंत्रणा मंझ, होर लोका रे श्रम होर उत्पादना रा हिसाब-किताब रखणे रे कामा मंझ सशस्त्र मज़दूरा जो, समस्त सशस्त्र आबादी जो तिन्हारी जगह बैठाई दितेया जाये। (नियंत्रण होर हिसाब-किताब रखने रे प्रश्ना रा वैज्ञानिक ढंगा ले ट्रेनिंग पाइरे इन्जीनियरा, होर खेती-किसानी रे विशेषज्ञों बगैरा रे स्टाफ़ा रे प्रश्ना रे सौगी घपला नीं करना चहिये। यों सज्जन आज काम करी करहाएं होर पूंजीपतियां री आज्ञा रा पालन करहाएं, काला स्यों होर बी अच्छी तरहा काम करघे होर सशस्त्र मज़दूरा री आज्ञा रा पालन करघे।
हिसाब-किताब रखणा होर नियंत्रण करना—ये हे से मुख्य चीज़ ही जेतारी कम्युनिस्ट समाजा री पैहली अवस्था री “स्थापना करने“ होर एतौ उचित रूपा ले चलाणे कठे ज़रूरत ही। सारे नागरिक बधली कने राजसत्ता रे—जे कि सशस्त्र मज़दूरा ले बणीरी—वैतनिक नौकर बणी जाहें। सारे नागरिक एक हे राष्ट्रीय राजसत्ता रे “सिण्डीकेटा” रे नौकर होर कार्यकर्ता हुई जाहें। कल्हे जेसा चीज़ा री ज़रूरत हुआईं से ये ही भई स्यों सभ बराबर-बराबर काम करो—आपणे उचित हिस्से रा काम करो—होर बराबर-बराबर तनख़ा पाओ। एता कठे जेस हिसाब-किताब होर नियंत्रणा री ज़रूरत हुआईं तेतौ पूंजीवादे अत्यधिक आसान बणाई के महज़ चेक करने (मिलाणे) होर चढ़ाणे (रिकार्ड करने), गणिता रे चार नियमा री जानकारी रखणे होर रसीदा देई देणे रे एकदम सीधे-साधे कामा मंझ बदली दितिरा, जिन्हौ जे कोई बी साक्षर व्यक्ति करी सकहां।
अब जनता री बहुसंख्या स्वतंत्र रूपा ले सभ जगह हिसाब-किताब होर पूँजीपतियां रे (ज्यों एभे तिन्हारे नौकरा मंझ बदली दिते गइरे) ऊपर, होर बुद्धिवादी लोका रे ऊपर, ज्यों आपणी पूंजीवादी आदता बणाई रखाहें, नियंत्रण रखणे रा काम करदी लगघी, ता ये नियंत्रण वास्तवा मंझ सर्व-व्यापक, आम होर राष्ट्रीय हुई जाणा, होर फेरी एताले भगणे रा कोई रस्ता नीं रैही जाणा, होर “किथी जाणे री जगहा नीं रैही जाणी।
पूरा समाज एक दफ्तर होर एक फैक्टरी बणी जाणा जिथी बराबर-बराबर श्रमा होर बराबर-बराबर तनख़ा रा सिद्धान्त चलणा।
पूंजीपतियां री हारा ले बाद, शोषका रा तख़्ता उलटणे ले बाद एस “फैक्टरी वाल़े” अनुशासना जो, सर्वहारा वर्गा सारे समाजा मंझ फैलाणा, पर ये हर्गिज़ आसारा आदर्श यानि आसारा अन्तिम लक्ष्य नीं हा। समाजा ले पूंजीवादी शोषणा री गन्दगी होर कुरूपता जो पूर्ण रूपा ले साफ़ करने कठे होर होर अग्गे प्रगति कठे ये एक आवश्यक क़दम हा।
जेस क्षण समाजा रे सभ सदस्यां या एतारे अधिकांश लोके हे राजसत्ता रा आपु संचालन करना सीखी लितेया, एस कामा जो आपु आपणे हाथा मंझ लेई लितेया, मुट्ठी भर पूंजीपतियां रे ऊपर होर तिन्हां बुद्धिजीवियां रे ऊपर ज्यों अझी बी आपणी पूंजीवादी आदता ले चिपकी रे रैहणा चाहें होर तिन्हां मज़दूरा रे ऊपर जिन्हौ पूंजीवादे बुरी तरहा ले भ्रष्ट करी दितिरा, आपणा कण्ट्रोल (नियंत्रण) “क़ायम करी लितेया”—तेस क्षणा ले सरकारा री ज़रूरत पूर्ण रूपा ले ख़तम हुणी शुरू हुई जाहीं। जनतंत्र जितना हे पूर्ण हुआं तितनी हे जल्दी से क्षण आवहां जेबे से अनावश्यक हुई जाहां। सशस्त्र मज़दूरा री “राजसत्ता,” जे कि “शब्दा रे असली मायने मंझ एभे राजसत्ता नीं रैही गइरी”---जितनी हे ज्यादा जनवादी हुआईं, तितनी हे जल्दी राजसत्ता रा हरेक रूप मुरझांदा होर ख़तम हुंदा लगहां।
कारण ये हा भई जेबे सभ लोक व्यवस्था करना सीखी जांघे होर वास्तवा मंझ स्वतंत्र रूपा ले सामाजिक उत्पादना री व्यवस्था करदे लगघे, स्वतंत्र रूपा ले हिसाब-किताब रखदे लगघे, होर काहिला, शरीफ़ज़ादेयां, चोर-उचक्केयां होर “पूंजीवादी परम्परावां रे“ होर एहड़े हे “रक्षका” रे ऊपर कण्ट्रोला ले बचणा अनिवार्यतः इतना अकल्पित रूपा ले कठिन हुई जाणा, एहड़ा बिरला अपवाद हुई जाणा होर शायद तेता कठे इतनी तेज़ी ले होर सख़्त सज़ा दीती जाणी (क्योंकि सशस्त्र मज़दूर व्यावहारिक लोक हे, भावनावादी बुद्धिजीवी नहीं हे, होर स्यों केसी जो आपणे सौगी खिलवाड़ करने री इजाज़त नीं देंघे), भई मानवीय आदान-प्रदाना रे साधारण, बुनियादी नियमा रा पालन करने री आवश्यकता बौहत जल्दी हे एक आदत बनी जाणी।
होर तेबे कम्युनिस्ट समाजा री पैहली अवस्था ले अग्गे एतारी उच्चतर अवस्था रे बखौ बधणे रा होर एतारे सौगी-सौगी राजसत्ता रे पूर्ण रूपा ले मुरझाई कने ख़तम हुई जाणे रा द्वार पूरी तरहा खुल्ही जाणा। *
*राजसत्ता रे सम्बंधा बिच मार्क्सवादी-लेनिनवादी सिद्धान्ता जो नौवीं ऐतिहासिक परिस्थितियां मंझ जारी रखदे हुए होर विकसित करदे हुए, कामरेड स्तालिने समाजवादी राजसत्ता रे सिद्धान्ता जो, होर विजयी समाजवादा री परिस्थितियां मंझ होर कम्युनिज़्मा रे निर्माण-कार्या रे सम्बंधा बिच एसा राजसत्ता रे कामां जो, निर्धारित कितेया।
सोवियत संघा री कम्युनिस्ट पार्टी (बोलशेविका) री अठारहवीं कांग्रेसा मंझ पार्टी री केन्द्रीय कमिटी रे कामा री रिपोर्ट देंदे हुए कामरेड स्तालिने बोल्या था,
“...लेनिने आपणी प्रसिद्ध कताब, राजसत्ता होर क्रान्ति अगस्त 1917 बिच, यानी अक्तूबर क्रान्ति होर सोवियत राज्य रे स्थापित हुणे ले कुछ हे महीने पैहले लिखी थी। लेनिने एस कताबा रा मुख्य उद्देश्य राजसत्ता रे सम्बंधा बिच मार्क्स होर एंगेल्सा रे सिद्धान्ता जो अवसरवादियां री तोड़-मरोड़ होर भ्रष्टता ले बचाणा मनया था। लेनिन राजसत्ता होर क्रान्ति रा दूजा भाग लिखणे री तैयारी करी करहाएं थे। इता बिच स्यों 1905 होर 1917 री रूसी क्रान्तियां रे अनुभवा ले मिलणे-वाल़ी मुख्य शिक्षावां रे सारांशा जो देणा चाहें थे। एता बिच ज़रा बी सन्देह नीं हा जे आपणी कताबा रे दूजे भागा बिच, लेनिन आपणे देशा मंझ सोवियत शक्ति रे अस्तित्व-काला मंझ पाये अनुभवा रे आधार पर राजसत्ता रे सिद्धान्त रा होर विस्तार करना चाहें थे। पर मृत्युए ये काम तिन्हौ पूरा नीं करने दितेया। पर जेस कामा जो लेनिन नीं पूरा करी पाये तेतौ तिन्हारे शिष्यां जो पूरा करना चहिए।
“राजसत्ता रा जन्म हुआ क्योंकि समाज विरोधी वर्गा बिच बँडही गया थाः एतारा जन्म अल्पसंख्यक शोषका रे हिता बिच शोषिता री बहुसंख्या जो दबाये रखणे कठे हुआ था। राजसत्ता रे हथियार मुख्य रूपा ले फ़ौज़, सज़ा देणे रे दूजे अस्त्र, खुफ़िया विभाग होर जेल्हा, बगैरा ही। राजसत्ता री कार्रवाई री विशेषता दो बुनियादी काम हेः देशा मंझ (ये एतारा मुख्य काम हा), शोषिता री बहुसंख्या जो दबाई कने रखणा, विदेशा बिच (ये काम मुख्य नहीं हा), दूजे राज्यां री ज़मीना जो छीनी कने आपणे वर्गा रे, शासक वर्गा रे, राज्य रे क्षेत्रा रा विस्तार करना, या खुद आपणे राज्य री भूमि री दूजे राज्यां रे आक्रमणा ले रक्षा करना। दास समाजा मंझ होर सामन्तवादा रे थाल्हे ये हालत थी। पूंजीवादा रे थाल्हे ये हे हालत ही।
“पूंजीवादा रा तख़्ता उलटणे कठे कल्हे पूंजीपति वर्गा जो सत्ता री गद्दी ले हटाणा हे नीं जरूरी था, कल्हे तिन्हारी सम्पत्ती जो ज़ब्त करी लैणा हे नीं जरूरी था, बल्कि, ये बी जरूरी था भई पूंजीवादी राजसत्ता री मशीना जो होर एतारी पुराणी फ़ौज, एतारी नौकरशाही अफ़सरा रे तामझाम होर एतारी पुलिस शक्ति रा पूर्ण रूपा ले ध्वंस करी दितेया जाये होर इन्हारी जगहा पर एक नौवीं, सर्वहारा रे स्वरूपा-वाल़ी राजसत्ता री, एक नौवीं समाजवादी राजसत्ता री स्थापना करी दीती जाये। होर ठीक एहड़ा हे, जेहड़ा जे आसे सभ जाणहाएं, बोल्शेविके कितेया था। पर एतारा मतलब ये नीं हुंदा भई नौवीं सर्वहारा री राजसत्ता, पुराणी राजसत्ता रे कुछ कामा जो, सर्वहारा वर्गा री राजसत्ता री आवश्यकतावां रे अनुसार बदली कने, क़ायम नीं रखो। होर एतारा ये मतलब ता होर बी नीं हा जे आसारी समाजवादी राजसत्ता रे रूप अपरिवर्तित रैहणे चहिए, जे आसारी राजसत्ता रे शुरू रे कामा जो भविष्या मंझ बी पूरी तरहा क़ायम रखणा चहिए। यथार्थ गल्ल ये ही भई आसारी राजसत्ता रे रूप बधली करहाएं, होर आसारे देशा रे विकास होर अन्तरराष्ट्रीय परिस्थिति मंझ परिवर्तना रे अनुसार बधलदे रैहणे।
“लेनिन बिल्कुल सही थे जेबे तिन्हें बोल्या था भई,
‘पूंजीवादी राजसत्तावां रे रूप अनेक हे, पर आपणे सार-तत्वा मंझ स्यों सभ एक हे हएः केसी ना केसी ढंगा ले आखिरा बिच स्यों सभ अनिवार्यतः पूंजीपति वर्गा री डिक्टेटरशिप हे। पूंजीवादा रा कम्युनिज़्मा बिच संक्रमणा निश्चित रूपा ले अनेक विभिन्न होर बौहत-सारे राजनीतिक रूपा री सृष्टि करनी, पर तिन्हारा सार-तत्व अनिवार्य रूपा ले एक हे हुणाः सर्वहारा वर्गा री डिक्टेटरशिप। (राजसत्ता होर क्रान्ति)
“ अक्तूबर क्रान्ति ले बाद आसारी समाजवादी राजसत्ता विकासा री दो मुख्य अवस्थावां मंझा ले गुज़री री।
“ पैहली अवस्था रा काल था अक्तूबर क्रान्ति ले लेई के शोषक वर्गा रे खात्मे तका। एस काला मंझ मुख्य काम था, तख़्ता उल्टे गइरे वर्गा रे विरोधा जो कुचलणा, विदेशी हमलावरा रे आक्रमणा ले देशा री रक्षा करना, उद्योग-धन्धेयां होर खेती-बाड़ी जो भी के चालू करना, होर पूँजीवादी तत्वा जो मिटाणे कठे परिस्थितियाँ तैयार करना। एतारे हे अनुसार, एस काला बिच आसारी राजसत्ते दो मुख्य काम किते। पैहला काम था देशा रे अन्दर तख़्ता उलटे गइरे वर्गा जो कुचलणा। इस सम्बंधा बिच आसारी राजसत्ता री तिन्हां पुराणी राजसत्तावां रे सौगी ऊपरी समानता थी, जिन्हारा काम बी विरोधियां जो कुचलणा था। पर इन्हां बिच ये बुनियादी अन्तर हा जे आसारी राजसत्ते श्रमजीवी बहुसंख्या रे हिता बिच शोषका री अल्पसंख्या जो दबाया, जब कि पुराणी राजसत्ते शोषका री अल्पसंख्या रे हिता बिच शोषिता री बहुसंख्या जो दबाया था। दूजा काम था देशा री विदेशी आक्रमणा ले रक्षा करना। एस सम्बंधा बिच बी आसारी राजसत्ता रा तिन्हां पुराणी राजसत्तावां रे सौगी एक ऊपरी समानता थी, जिन्हें आपणे देशा री सशस्त्र रूपा ले रक्षा रा काम कितेया था। पर इन्हां मंझ ये बुनियादी अन्तर हा भई आसारी राजसत्ते विदेशी आक्रमणा ले श्रमजीवी बहुसंख्या री सफलतावां री रक्षा कीती, जब कि पुराणी राजसत्ता एहड़ी परिस्थितियां मंझ शोषका री एक अल्प-संख्या री सम्पत्ति होर विशेषाधिकारा री रक्षा करहाईं थी। आसारी राजसत्ता रा एक तरीजा काम बी थाः से आर्थिक संगठन होर सांस्कृतिक शिक्षा रा काम था। एतौ आसारी राज्य-संस्थावें नौवीं समाजवादी आर्थिक व्यवस्था रे नन्हें पौधां रा विकास करने होर देशा री जनता जो समाजवादा री भावना मंझ पुनःशिक्षित करने रे उद्देश्य ले कितेया था। पर ये नौवां काम तेस काला बिच बौहत ज्यादा अग्गे नी बधी सकेया।
“दूजी अवस्था रा काल था शैहरा होर देहाता मंझ पूंजीवादी तत्वा रे अन्ता ले लेई के समाजवादी आर्थिक व्यवस्था री पूर्ण विजय होर नौवें विधाना री स्वीकृति तका। एस काला रा मुख्य काम था पूरे देशा बिच समाजवादी आर्थिक व्यवस्था री स्थापना करना होर पूंजीवादी तत्वा रे अन्तिम अवशेषा रा पूर्ण रूपा ले अन्त करना, एक सांस्कृतिक क्रान्ति ल्याउणा होर देशा री रक्षा कठे एक पूर्णतया आधुनिक सेना जो संगठित करना। एता रे हे अनुसार आसारी समाजवादी राजसत्ता रे काम बी बधली गये। देशा रे अन्दर फ़ौजी दमना रा काम बन्द हुई गया, मिटी गया। चूंकि शोषणा जो ख़तम करी दितेया गया था, इधी कठे एभे कोई शोषक बाक़ी नीं रैही गये थे होर एहड़ा कोई नीं था जेस पर दमन करना पौओ। दमना रे एस कामा री जगह आसारी राजसत्ते एक नौवां काम लितेया, ये था देशा री समाजवादी सम्पत्ति जो जनता री सम्पत्ति रे चोरा होर गिरहकटा ले बचाणा। देशा री विदेशी आक्रमणा ले रक्षा करने रा काम पूरी तरहा बणीरा रैहा, इधी कठे लाल फ़ौज होर नौसेना बी पूरी तरहा बणीरी रैही, सज़ा देणे रे अन्य अस्त्र होर खुफ़िया विभाग बी बणीरे रैहे ज्यों दूजे देशा रे खुफ़िया विभागा द्वारा आसारे देशा मंझ भेजी रे भेदियां, हत्यारेयां होर तोड़-फोड़ करने वालेयां रा सुराग़ लगाणे होर तिन्हौ सज़ा देणे रे कठे नितान्त जरूरी हे। राजसत्ता री संस्थावां द्वारा आर्थिक संगठन होर सांस्कृतिक शिक्षा रे काम बी बणीरे रैहे, होर इन्हौ पूर्ण रूपा ले विकसित कितेया गया। अब देशा रे अन्दर आसारी राजसत्ता रा मुख्य काम शान्तिपूर्ण आर्थिक संगठन करना होर सांस्कृतिक शिक्षा देणा हा। जिथी तका आसारी सेना रा, सज़ा देणे रे अन्य अस्त्रा होर खुफ़िया विभाग रा सम्बंध हा, तिन्हारी धार एभे देशा रे अन्दरा बखौ नीं ही, बल्कि बाहरा बखौ, बाहरले दुश्मणा रे बखौ हुई गइरी।
“जेहड़ा जे तुसे देखाहें, आसारी राजसत्ता एभे एक पूर्ण रूपा ले नौवीं, समाजवादी राजसत्ता ही जे इतिहासा मंझ अभूतपूर्व ही। से आपणे रूपा होर कामा री दृष्टि ले पैहली अवस्था री समाजवादी राजसत्ता ले काफी भिन्न ही।
“पर विकास इथी हे नीं रूकी सकदा। आसे अग्गे, कम्युनिज़्मा रे बखौ बधी करहाएं। क्या आसारी राजसत्ता कम्युनिज़्मा रे ज़माने मंझ बी क़ायम रैहणी?
“हाँ, से रैहणी, जेबे तका जे पूंजीवादी घेरा ख़तम नीं हुई जांदा होर जेबे तका जे विदेशी फ़ौजी रा आक्रमणा रा ख़तरा ग़ायब नीं हुई जांदा।
“होर, निस्सन्देह, देश होर विदेशा री परिस्थिति मंझ परिवर्तना रे अनुसार आसारी राजसत्ता रे रूप बी फेरी बदलघे।
“नीं, से नीं रैहणी, होर मुरझाई जाणी, अगर पूंजीवादी घेरे जो ख़तम करी दितेया जाहां होर एक समाजवादी घेरा एतारी जगहा लेई लैहां।
“समाजवादी राजसत्ता रे बारे बिच ये हे स्थिति ही।“
(देखाः लेनिनवादा री समस्याएँ, मास्को, 1945, अंग्रेजी संस्करण, पृ. 635-638)
अध्याय 6.
अवसरवादियां द्वारा मार्क्सवादा री भ्रष्टता
आम रूपा मंझ क्रान्ति री समस्या रे हे साहीं---सामाजिक क्रान्ति रे सौगी राजसत्ता रे होर राजसत्ता रे सौगी सामाजिक क्रान्ति रे सम्बंधा री समस्या री बी दूजे इण्टरनेशनला (1889-1914) रे मुख्य सैद्धान्तिका होर प्रचारका जो बौहत हे कम चिन्ता हुईरी। पर अवसरवादा री बाढ़, जेतारी वजहा ले 1914 बिच दूजा इण्टरनेशनल ख़तम हुई गया, री सभी ले ख़ास विशेषता ये थी भई जेबे ये समस्या इन्हां लोका रे साम्हणे आवहाईं थी ता स्यों एताले मुँह चुराणे री कोशिश करहाएं थे या एतौ देखी हे नीं पांदे थे।
आम तौरा ले बोल्या जाई सकहां जे राजसत्ता रे सौगी सर्वहारा क्रान्ति ले सम्बंधित एस प्रश्ना ले मुँह चुराणे री नीति रा हे परिणाम था भई मार्क्सवादा री तोड़-मरोड़ हुई होर एतौ पूर्ण रूपा ले भ्रष्ट कितेया गया। मुँह चुराणे री ये नीति अवसरवादी कठे लाभदायक थी होर एतौ बढ़ावा देहाईं थी।
एसा शोकजनक क्रिया जो दसणे कठे, संक्षेपा बिच हे सही, आसे मार्क्सवादा रे सभी ले प्रमुख सैद्धान्तिका—प्लैखानोव होर काट्स्की जो लैहाएं।
1. प्लैखानोवा रा अराजकतावादियां रे सौगी वादविवाद
प्लैखानोवे समाजवादा रे सौगी अराजकतावादा रे सम्बंधा रे प्रश्ना पर एक अलग कताब लिखी थी, जेतारा नावं अराजकतावाद होर समाजवाद था। से 1894 बिच जर्मन भाषा मंझ छपी थी।
प्लैखानोवे एस विषया पर लिखदे बक्त पता नीं केस ढंगा के अराजकतावादा रे ख़िलाफ़ संघर्षा ले सम्बंधित सभी ले महत्वपूर्ण तात्कालिक, होर राजनीतिक दृष्टि ले सभी ले जरूरी प्रश्ना जो, बिल्कुल छाड़ी दितेया था। तिन्हारी कताब दो भागा मंझ बँढीरीः एक हिस्सा ऐतिहासिक होर साहित्यिक हा, होर एता मंझ स्टर्नर, प्रूधों बगैरा रे विचारा रे इतिहासा रे सम्बंधा बिच मूल्यवान सामग्री ही, दूजा बाबूवादी हा, जेता मंझ भद्दे ढंगा ले एस विषया पर एक बड़ा भाषण दितेया गइरा भई एक अराजकतावादी होर चोरा बिच कोई फ़र्क नीं हा।
आसे देखी चुकीरे भई अराजकतावादियां रे सौगी आपणे वादविवादा मंझ मार्क्स होर एंगेल्से राजसत्ता रे सौगी क्रान्ति रे सम्बंधा बिच आपणे विचारा जो केस ढंगा ले पूरी पूर्णता रे सौगी स्पष्ट कितेया था। 1891 बिच, मार्क्सा री कताब गोथा कार्यक्रमा री आलोचना री आपणी भूमिका बिच एंगेल्से लिखेया था भई “आसे लोक”---यानि एंगेल्स होर मार्क्स—तेस बक्त, जेबे कि (पैहले) इण्टरनेशनला री हेग कांग्रेसा जो हुईरे मुश्किला ले दो साल बीतीरे थे, बाकुनिन होर तेसरे अराजकतावादियां रे ख़िलाफ़ एक अत्यंत ज़बरदस्त संघर्षा बिच जुटीरे थे।
अराजकतावादियें पेरिस कम्यूना जो तिन्हारा “आपणा” दसणे री, यानी आपणे सिद्धान्ता री सच्चाई रे प्रमाणा रे रूपा बिच दावा करने री कोशिश कीती थी। होर एतारे सबका जो होर इन्हां सबक़ा री मार्क्सा द्वारा कीतीरी व्याख्या जो समझी सकणे मंझ स्यों एकदम असफल रैहे। ठोस राजनीतिक प्रश्नां रा, यानी, क्या राजसत्ता री पुराणी मशीना रा ध्वंस करना जरूरी हा? होर एतारी जगह क्या चीज़ लेयो?—अराजकतावादियें, सच्चाई रे नजदीक पौहँचणे वाला तक बी कोई हल नीं दितिरा।
पर “अराजकतावाद और समाजवादा” री गल्ल करना, होर राजसत्ता रे प्रश्ना ले पूर्ण रूपा ले मुँह चुराणे री कोशिश करना, कम्यूना ले पैहले होर एता ले बाद हुईरे मार्क्सवादा रे पूरे विकासा जो नीं देखी पाणा, एतारा लाज़िमी तौरा ले मतलब हा अवसरवादा रे दलदला बिच सरकी जाणा। क्योंकि अवसरवादा जो जेस ख़ास चीज़ा री ज़रूरत ही से ये ही भई एभे दसे गये दो प्रश्ना जो क़तई नीं उठाया जाये। से आपु अवसरवादा री जीत ही।
2. काट्स्की रा अवसरवादियां रे सौगी वादविवाद
अवसरवादा रे ख़िलाफ़ काट्स्की री पैहली महत्वपूर्ण कताब, तिन्हारी बर्नस्टीन होर सोशल-डेमोक्रेटा रे कार्यक्रमा जो आसे लैहाएँ। काट्स्की बर्नस्टीना रा ब्योरे ले खण्डन करहां, पर तेसरी विशेषता ये हीः आपणी हेरोस्ट्रेटियन प्रसिद्धि री कताब, सोशलिज़्मा रे आधारा पर बर्नस्टीन मार्क्सवादा जो “ ब्लांकीपंथी” हुणे रा दोष लगाहां (तेबे ले क्रान्तिकारी मार्क्सवादा रे प्रतिनिधियां, बोल्शेविकां रे खिलाफ़ अवसरवादियां होर उदारपंथी पूंजीवादियां द्वारा ये अभियोग रूस मंझ हज़ारों मर्तबा दोहराया जाई चुकीरा)। एस सम्बंधा बिच बर्नस्टीन मार्क्सा री कताब फ्रांसा मंझ गृहयुद्धा रे बारे बिच ख़ास तौरा ले लिखहां होर, बिल्कुल असफलतापूर्वक---जेहड़ा जे आसे देखी चुकीरे--ये दसणे री कोशीश करहां भई कम्यूना ले मिलणे वाल़ी शिक्षावां रे सम्बंधा बिच मार्क्सा रे विचार प्रूधों रे विचारा रे एक समान हे। मार्क्से एस निष्कर्षा पर जेता पर तिन्हें कम्युनिस्ट घोषणापत्रा री 1872 री भूमिका बिच खास ज़ोर दितेया था, यानी एता पर भई “ मज़दूर वर्ग राजसत्ता री पुराणी बणी-बणाई मशीना पर इहां हे क़बज़ा करीके एतौ आपणे कामा कठे इस्तेमाल करी सकहां” बर्नस्टीन ख़ासा तौरा ले मेहरबानी करहां।
जेहड़ा जे आसे देखी चुकीरे मार्क्सा रा मतलब था भई मज़दूर वर्गा जो राजसत्ता री पूरी मशीना जो ध्वंस, नष्ट, होर छिन्न-भिन्न करी देणा चहिए (एंगेल्से उड़ाई देणे शब्दा रा प्रयोग कितेया था)। पर बर्नस्टीना रे कथनानुसार, मालूम हुआं जे, इन्हां शब्दा रे द्वारा मार्क्से मज़दूर वर्गा जो चेतावनी दीती थी भई सत्ता पर क़ब्जा करदे बक्त स्यों अतिशय क्रान्तिकारी ज़ोशा बिच नीं बैही जाये।
मार्क्सा रे विचारा री एताले ज्यादा भौंडी होर घृणित तोड़-मरोड़ा री कल्पना नीं कीती जाई सकदी।
ता फेरी, बर्नस्टीना रा ब्योरेवार खण्डन करने कठे काट्स्की केस ढंगा ले अग्गे बधया?
एस सम्बंधा बिच अवसरवादा द्वारा मार्क्सवादा री तोड़-मरोड़ा री तैह तका से नीं गया। तिने मार्क्सा री कताब, गृह-युद्धा री एंगेल्सा द्वारा लिखीरी भूमिका मंझा ले ऊपर दिते गये उद्धरणा रा हवाला दितेया होर बोल्या भई मार्क्सा रे कथनानुसार मज़दूर वर्ग राजसत्ता री पुराणी बणी-बणाई मशीना पर इहां हे नीं क़ब्ज़ा करी सकदा। पर आम तौरा ले, एता पर क़ब्ज़ा करी सकहां—होर बस इतना हे। काट्स्की एसा गल्ला रे बारे बिच एक शब्द तक नीं बोल्दा भई जे चीज़ बर्नस्टीन मार्क्सा री दसहां से मार्क्सा रे असली विचारा ले बिल्कुल उल्टी ही। एसा गल्ला रे बारे बिच बी से एक शब्द नीं बोल्दा भई 1852 बिच मार्क्से सर्वहारा क्रान्ति रा जे काम दसया था से राजसत्ता री मशीना जो “ध्वंस” करी देणा हा।
नतीजा ये हुआ जे सर्वहारा क्रान्ति रे कर्तव्यां रे सम्बंधा बिच मार्क्सवाद होर अवसरवादा रे बिच जे सभी ले बुनियादी अन्तर हा एता जो हे काट्स्की उड़ाई गया।
बर्नस्टीना रे “खिलाफ” लिखदे बक्त काट्स्कीए बोल्या, “सर्वहारा डिक्टेटरशिपा री समस्या रे हला जो निश्चिन्त हुई के आसे भविष्या कठे छाड़ी सकाहें।“ (पृ. 172, जर्मन संस्करण)
ये बर्नस्टीना रे खिलाफ़ तर्क नीं हा, बल्कि असला बिच, तेजो छूट देणा हा, अवसरवादा रे साम्हणे घुटने टेकणा हा, क्योंकि आजकले अवसरवादी एता ले ज्यादा होर कुछ नीं चाहंदे भई सर्वहारा क्रान्ति रे कामां रे बारे बिच सारे बुनियादी सवालां जो “ निश्चिन्त हुई के भविष्या कठे छाड़ी दितेया जाये”।
1852 ले 1871 तका, चाल़ी साला तका, मार्क्स होर एंगेल्से सर्वहारा वर्गा जो सिखाया था भई तेजो राजसत्ता री मशीना री ध्वंस करना चहिए। फेरी बी, 1891 मंझ जेबे एस प्रश्ना रे सम्बंधा बिच मार्क्सवादा रे प्रति अवसरवादियां री पूरी गद्दारी काट्स्की रे साम्हणे आयी ता एस सवाला रे जगहा मंझ भई राजसत्ता री मशीना रा ध्वंस करना जरूरी हा कि नीं, तिने बेईमानी ले एतारे ध्वंस करने रे निश्चित रूपा रे सवाला जो रखी दितेया होर फेरी, एस “ अकाट्य” (होर बंजर) बाबूवादी सत्या रे दामन बिच मुँह लुकोहणे री कोशिश कीती भई निश्चित रूप पैहले ले नीं जाणे जाई सकदे।
मज़दूर वर्गा जो क्रान्ति कठे तैयार करने रे सम्बंधा बिच सर्वहारा पार्टी रे कर्तव्यां बखौ मार्क्स होर काट्स्की रे दृष्टिकोणां मंझ ज़मीन-आसमाना रा फ़र्क हा।
आसे काट्स्की री अगली, ज्यादा परिपक्व रचना जो लैहाएं। अधिकांशतया ये बी अवसरवादा रा खण्डन करने रे उद्देश्या ले लिखी गयी थी। ये ही तेसरी कताब, सामाजिक क्रान्ति। एसा कताबा बिच लेखके आपणा विशेष विषय “सर्वहारा क्रान्ति” होर “सर्वहारा शासना” रे प्रश्ना जो बणाईरा। एता बिच तिने बौहत-सारी चीज़ा दीतीरी ज्यों बौहुत उपयोगी थी, पर राजसत्ता रे प्रश्ना जो से बस उड़ाई हे गया। आपणी पूरी कताबा बिच लेखक राज्य शक्ति जो जीतणे री गल्ल करहां—होर, कुछ नीं, यानी, से एक एहड़ा सूत्र चुनहां जे अवसरवादियां जो छूट देहां, क्योंकि एस सूत्रा बिच ये संभावना मनी लीती जाहीं भई राजसत्ता री मशीना जो नष्ट किते बगैर बी सत्ता पर क़ब्ज़ा करी लितेया जाई सकहां। 1872 मंझा, कम्युनिस्टा रे कार्यक्रमा बिच, ठीक जेस चीज़ा जो मार्क्से “पुराणा” घोषित कितेया था---तेता जो हे काट्स्की 1902 बिच फेरी भी के जियुंदा करहां।
कताबा मंझ एक विशेष भाग, “ सर्वहारा क्रान्ति रे रूपा होर अस्त्रा” रे बारे बिच हा। एता बिच काट्स्की राजनीतिक जन-हड़ताला री, गृह-युद्धा री, होर “आधुनिक बड़ी राजसत्ता री शक्ति रे अस्त्रा, जिहां जे नौकरशाही होर फ़ौजा” री गल्ला करहां, पर कम्यूने मज़दूरा जो जे चीज़ पैहले ही सिखाई दीती थी, एता रे बारे बिच से एक शब्द तका नीं बोलदा। राजसत्ता कठे “ अंध-विश्वासी आदरा री भावना” रे ख़िलाफ़ एंगेल्से जे चेतावनी ख़ास तौरा ले जर्मनी रे सोशलिस्टां जो दीती थी, स्पष्ट हे से निरर्थक नीं थी।
काट्स्की प्रश्ना री व्याख्या ये बोली के करहां भई विजयी सर्वहारा वर्गे “जनवादी कार्यक्रमा जो पूरा करना,” होर फेरी से एतारी धारावां जो निर्धारित करहां। पर पूंजीवादी जनतंत्रा री जगहा बिच सर्वहारा जनतंत्रा री स्थापना रे सम्बंधा बिच, साल 1871 ए आसौ जे चीज़ा सिखायी थी, तिन्हारे बारे बिच से एक शब्द बी मुँहा ले नीं काढदा। काट्स्की एस प्रश्ना जो एस ढंगा री “ठोस” खुराफ़ातां केे ख़तम करी देंहाः
“ फेरी बी, एतारी ता बोलणे री ज़रूरत नीं हीं भई, आसे वर्तमान परिस्थितियां रे अन्दर सत्ता नीं पांघे। क्रान्ति खुद पैहले ले हे एक एहड़े लम्बे होर डुग्घे संघर्षा री ज़रूरता जो मन्हांई जे आसारे वर्तमान राजनीतिक होर सामाजिक ढाँचे जो बदली देंघी।“
निस्सन्देह, “ एतारी ता बोलणे री कोई ज़रूरत नीं हीं”, तेस ढंगा के हे जिहां जे एसा सचाई जो बोलणे री कोई ज़रूरत नीं हीं भई घोड़े जई खाहें, या ये भई वोल्गा कैस्पियन सागर बिच पौहाईं। सिर्फ़ अफ़सोसा री गल्ल ये ही भई “डुग्घे जाणे वाल़े” संघर्षा रे खोखले होर भारी-भरकम शब्दां जो क्रान्तिकारी सर्वहारा वर्गा रे ख़ास हिता रे प्रश्ना बखा ले---यानि एस प्रश्ना बखा ले भई राजसत्ता रे सम्बंधा बिच, जनतंत्रा रे सम्बंधा बिच, पैहले री ग़ैर-सर्वहारा क्रान्तियां ले भिन्न, तेसरी क्रान्ति रा “डुग्घे जाणे वाल़ा” रूप केस ढंगा के ज़ाहिर हुआं---मुँह लकोहणे रे साधना रे रूपा बिच इस्तेमाल कितेया गइरा।
एस प्रश्ना ले मुँह लुकोई के असला बिच काट्स्की एसा सभी ले ख़ास गल्ला रे सम्बंधा बिच अवसरवादा जो छूट देई देहां, गोकि शब्दां बिच से एतारे ख़िलाफ़ एक भयंकर युद्धा री घोषणा करहां, होर “क्रान्ति रे विचारा” रे बड़े महत्वा पर जोर देहां (एस “विचारा” रा भला क्या मूल्य हुई सकहां जेबे जे मज़दूरां जो क्रान्ति री प्रत्यक्ष शिक्षावां जो दसणे ले से डरहां?), या से बोल्हां भई “सभी ले पैहले क्रान्तिकारी आदर्शवादा” हा, या ऐलान करहां भई अंग्रेज़ मज़दूर ता एभे “निरे निम्न-पूँजीवादी” हे।
काट्स्की लिखहां,
“ समाजवादी समाजा मंझ नाना रूपा रे धन्धे---नौकरशाही (??), मज़दूर सभावां रे, सहकारी, होर निजी...सौगी-सौगी मौजूद रैही सकाहें।.....एहड़े धन्धे भी हे ज्यों नौकरशाही (??) संगठना रे बिना नीं चली सकदे, मिसाला कठे रेला। इथी जनवादी संगठन निम्न रूप लेई सकंहाः मज़दूर आपणे प्रतिनिधियां जो चुनो, ज्यों एकी तरहा री पार्लामेण्ट बणाहें, से कामा सम्बंधी नियमां जो निर्धारित करहाईं होर नौकरशाही यंत्रा रे इन्तज़ामा री देखभाल करहाईं। दूजे धन्धेयां री व्यवस्था रे इन्तज़ामा जो मज़दूर सभावां रे हाथा बिच दितेया जाई सकहां, होर बाकी दूजे सहकारी धन्धे बणी सकाहें।“ (जेनेवा मंझ 1903 बिच छपीरा रूसी अनुवाद, पृ.148 और 115)
यों दलीला ग़लत ही, होर कम्यूना री शिक्षावां जो उदाहरणा साहीं इस्तेमाल करीके मार्क्स होर एंगेल्से पिछली शताब्दी रे सातवें दशका बिच जे कुछ दसया था, तेतारी तुलना बिच ये पीछे बखौ क़दम चकणा हा।
जिथी तका “नौकरशाही” संगठना री तथाकथित जरूरता री गल्ल ही, तिथी रेलों होर बड़े पैमाने रे मशीन उद्योगा रे केसी बी दूजे धन्धे रे—केसी फैक्टरी, बड़े स्टोर, या बड़े पैमाने रे पूंजीवादी कृषि-धन्धे रे---बिच रत्ती भर बी कोई फ़र्क नीं हा। एस तरहा रे तमाम कारोबारां री टैकनीका कठे सख़्ता ले सख़्त अनुशासना री, दिते गये कामा रे करने बिच हरेकी रे द्वारा ज़्यादा ले ज़्यादा दुरूरस्ती री ज़रूरत हुआईं, वरना पूरे कारोबारां रा हे काम बन्द हुई जाणा, या एतारी मशीनां या माला जो नुक़सान पौहँचणा। निस्सन्देह, इन्हां सभ कारबारां मंझ मज़दूर “ आपणे प्रतिनिधियां जो चुनघे ज्यों एकी तरहा री पार्लामेण्ट बनांघे”।
पर असली गल्ल ता ये ही भई ये “ एक प्रकारा री पार्लामेण्ट” पूंजीवादी पार्लामेण्टवादी संस्थावां रे ढंगा री पार्लामेण्टा नीं हुणी। असली गल्ल ता ये ही जे ये “एक प्रकारा री पार्लामेण्ट” कल्हे “कार्य सम्बंधी नियमां जो निर्धारित होर नौकरशाही यंत्रा रे इन्तज़ामा री देखभाल” हे नीं करघी, जेहड़ा जे काट्स्की—जेसरी कल्पना पूंजीवादी पार्लामेण्टवादा रे दायरे ले अग्गे नीं जांदी—सोचहां। समाजवादी समाजा मंझ मज़दूरां रे प्रतिनिधियां री “एक प्रकारा री पार्लामेण्ट”, निस्सन्देह, “कार्य सम्बंधी नियम निर्धारित करघी होर नौकरशाही यंत्रा रे इन्तज़ामा री देखभाल करघी”—पर ये यंत्र “नौकरशाही” नीं हुणा। राजनीतिक सत्ता जीतणे ले बाद, मज़दूर पुराणे नौकरशाही यंत्रा रा ध्वंस करी देंघे, स्यों एतारी जड़ा तका री चिन्दियाँ उड़ाई देंघे, स्यों एतारी एकी बी ईंटा जो खड़ा नीं रैहणे देंघे, होर स्यों एतारी जगहा पर एक नौवें यंत्रा री स्थापना करघे, जेता मंझ मज़दूर होर दफ़तरां मंझ काम करने वाल़े हुणे। स्यों नौकरशाह नीं बणी जाओ एता कठे यों कार्रवाइयाँ फ़ौरन कीती जाणी जिन्हौ मार्क्स होर एंगेल्से तफ़सीला रे सौगी दसया थाः 1. तिन्हारा ना कल्हे चुनाव हुणा बल्कि तिन्हौ केसी बी बक्त वापिस बी सादी लितेया जाई सकणा, 2. एक मज़दूरा री तनख़ा ले ज़्यादा तनख़ा नीं मिल्हणी, 3. सभीयां रे द्वारा कण्ट्रोल होर देख-रेखा री व्यवस्था फ़ौरन लागू करी दीती जाणी, ताकि थोह्ड़े बक्ता कठे सभ “नौकरशाह” बणी जाणे होर इधी कठे कोई बी “नौकरशाह” नीं बणी सकघा।
काट्स्कीए मार्क्सा रे इन्हां शब्दा पर ज़रा कर बी विचार नीं कितिरा भई, “कम्यूना जो पार्लामेण्टी संस्था ना बणी के एक एहड़ी कामकाजी संस्था बणना था जे क़ानून बनाणे वाल़ी बी हो होर क़ानून लागू करने वाल़ी बी।“
काट्स्कीए पूंजीवादी पार्लामेण्टवाद होर सर्वहारा जनतंत्रा रे फ़र्का जो बिल्कुल बी नीं समझीरा। पैहले बिच जनतंत्र (जनता कठे नीं) होर नौकरशाही (जनता रे ख़िलाफ़) सौगी-सौगी हुआएं। दूजा नौकरशाही जो समूल नष्ट करने कठे फ़ौरन क़दम चकघा होर से इन्हां कार्रवाइयां जो आखिरा तक, नौकरशाही रे पूर्ण रूपा ले ख़ात्मे तक, जनता कठे पूर्ण जनतंत्रा री स्थापना तक लेई जाणे मंझ समर्थ हुंघा।
इथी काट्स्की राजसत्ता रे संबंधा बिच से हे पुराणी “अंध-विश्वासी आदरा री भावना”, होर नौकरशाही रे सम्बंधा बिच “अंध-विश्वासी धारणा” जाहिर करहां।
एभे आसे अवसरवादियां रे ख़िलाफ़ काट्स्की री आखरी होर तेसरी रचनावां मंझ सभी ले बधिया कताब, सत्ता रा मार्ग जो लैहाएं। ये कताब काफी अग्गे तका जाहीं, क्योंकि एता मंझ 1899 बिच बर्नस्टीना रे ख़िलाफ़ लिखी गयी कताबा रे हे साहीं आम क्रान्तिकारी कार्यक्रमा री गल्ल नीं कीती गइरी, होर ना से 1902 री कताब, सामाजिक क्रान्ति रे साहीं बिना एस चीज़ा रा ख़याल करदे हुए भई सामाजिक क्रान्ति केभे हुआईं, एतारे कामा री गल्ल कराहीं। एता मंझ तिन्हां निश्चित परिस्थितियां री गल्ल कीती गइरी जे आसौ एस चीज़ा जो मनणे कठे बाध्य करी देहाईं भई “ क्रान्तिकारी युग” आई करहां।
वर्ग-विरोधां रे आम तौरा ले तेज़ हुणे बखौ होर साम्राज्यवादा बखौ—जेतारी एस सम्बंधा बिच विशेष रूपा ले महत्वपूर्ण भूमिका हुआईं—लेखक आसारा ध्यान निश्चित रूपा ले दुवाहां। से बोल्हां, पश्चिमी योरपा रे “ 1789 ले 1871 तका रे क्रान्तिकारी युगा” ले बाद, 1905 ले एस हे तरहा रे एकी युगा रा श्रीगणेश पूर्वा मंझ हुइरा। एक विश्व युद्ध भयावनी तेज़ी रे सौगी नेडे आई करहां। “सर्वहारा वर्ग एभे अपरिपक्व क्रान्ति री गल्ला नीं करी सकदा”। “ आसे क्रान्तिकारी युगा बिच पैर रखी दितिरा”। “क्रान्तिकारी युग शुरू हुई करहां”।
यद्यपि काट्स्कीए आपणी कताबा बिच---जेतारे बारे बिच तिने आपु बोल्या था भई तेसरा खास उद्देश्य “राजनीतिक क्रान्ति” रा विश्लेषण करना हा—आपु एसा गल्ला री निश्चित घोषणा करी दीती थी भई क्रान्तिकारी युग शुरू हुई चुकीरा, तेबे बी आपणी कताबा बिच राजसत्ता रे प्रश्ना ले भी के से पूरी तरहा मुँह लुकोई गया।
प्रश्ना ले एस मुँह लुकोहणे, चीज़ां जो छोड़ी जाणे होर दोरंगी गल्लां करने रा मिली जुली के कुल परिणाम अवसरवादा रे साम्हणे से पूर्ण रूपा ले आत्मसमर्पण हुआ जेतारे बारे बिच आसौ एभे अग्गे विचार करना पौणा।
काट्स्की रे रूपा बिच जर्मन सोशल-डेमोक्रेसीए जिहां एसा गल्ला रा ऐलान कितेया थाः हाऊं क्रान्तिकारी विचारां जो मन्हां (1899), हाऊं सर्वहारा वर्गा री सामाजिक क्रान्ति री अनिवार्यता जो ख़ास तौरा ले मन्हां (1902), हाऊँ मन्हां भई एक नौवां क्रान्तिकारी युग आई करहां (1909)। फेरी बी, चूंकि एभे राजसत्ता रे सम्बंधा बिच सर्वहारा क्रान्ति रे कर्तव्यां रा प्रश्न उठी करहां, हाऊं तेसा चीज़ा जो बी नीं मनदा जेतौ मार्क्से बौहत पैहले, 1852 बिच हे बोली दिता था (1912)।
3. काट्स्की रा पान्नेकोएका रे सौगी वादविवाद
काट्स्की रा विरोध करदे बक्त, पान्नेकोएक “वामदली उग्र” धारा रे एक प्रतिनिधि रे रूपा बिच साम्हणे आया। तेसरी क़तारा बिच रोज़ा लुक्सेमबुर्ग, कार्ल राडेक वग़ैरा बी थे। यों लोक ज्यों क्रान्तिकारी कार्य-नीति रा समर्थन करहाएं थे, एस विश्वासा मंझ एकमत थे भई काट्स्की “बिच” ली स्थिति बखौ जाई करहां था जे बिना केसी सिद्धान्ता रे मार्क्सवाद होर अवसरवादा रे बिच हिचकोले खाहीं थी। युद्धे एस विचारा री सत्यता जो पूर्ण रूपा ले प्रमाणित करी दितेया, जेबे जे ये “बिचा” वाल़ी (जेतौ ग़ल्ती ले मार्क्सवादी बोलेया जाहां था) धारा, या काट्स्कीवाद आपणे पूरे घृणित रूप बिच साम्हणे आई गया।
राजसत्ता रे प्रश्ना ले सम्बंधित, “सामुहिक लड़ाई होर क्रान्ति” शीर्षका रे आपणे एकी लेखा बिच ( न्यू ज़ीट 1912, भाग 30, संख्या 2), पान्नोकोएके काट्स्की री स्थिति जो “निष्क्रिय उग्रवादा” रा रवैया, “ चुपचाप इन्तज़ार करने रा सिद्धान्त” दसया था, पान्नेकोएके बोलेया था भई “ काट्स्की क्रान्ति री क्रिया जो नीं देखदा” (पृ. 616)।
प्रश्ना जो एस रूपा बिच रखदे हुए पान्नेकोएके तेस विषया जो लितेया था जेता मंझ आसौ दिलचस्पी ही, यानी तिने राजसत्ता रे सम्बंधा बिच सर्वहारा क्रान्ति रे कर्तव्यां जो लितेया था।
तिने लिखेया,
“ सर्वहारा वर्गा रा संघर्ष राज्य री सत्ता कठे कल्हे पूंजीपतियां रे हे ख़िलाफ संघर्ष नीं हा, से राज्य री सत्ता रे ख़िलाफ़ संघर्ष हा....सर्वहारा री ताक़ता रे अस्त्रां री मददा ले राज्य री सत्ता रे तमाम अस्त्रां जो नष्ट करना होर मिटाणा सर्वहारा क्रान्ति री विषय-वस्त ही।...सिर्फ़ राजसत्ता रे संगठना जो पूर्ण रूपा ले नष्ट करी देणे ले बाद हे संघर्ष बन्द हुणा। अल्प-संख्यक शासकां रे संगठना जो नष्ट करीके बहुसंख्यकां रा संगठन तेबे आपणी ज्यादा शक्तिशालिता दसी चुकीरा हुणा।“ (पृ.548)
जेस रूपा मंझ पान्नेकोएके आपणे विचारां जो रखेया था, तेता मंझ भारी कमज़ोरियाँ ही, पर तेसरा अर्थ काफी स्पष्ट हा। होर काट्सकीए केस ढंगा के तेसरा विरोध कितेया, ये देखणा मनोरंजक हा।
तिने लिखेया,
“ अझी तका सोशल-डेमोक्रेटां होर अराजकतावादियां मंझ ये हे फ़र्क रैहीरा भई सोशल-डेमोक्रेट राज्य री सत्ता जो जीतणा चाहें थे जेबे कि दूजे एतौ जो नष्ट करी देणा चाहें थे। पान्नेकोएक दोन्हों हे करना चाहां। (पृ. 714)
हालांकि पान्नेकोएका री व्याख्या बिच ठोसपना नीं हुणे री कमी ही---होर तेसरे लेखा री तिन्हां दूजी ग़ल्तियां री ता कोई गल्ल ही नीं हीं जिन्हारा वर्तमान विषया ले कोई सम्बंध नीं हा---फेरी बी पान्नेकोएके जेस विषया रे बखौ इशारा कितेया था, तेतारे सिद्धान्ता जो काट्स्कीए पकडी लितेया, होर, सिद्धान्ता रे एस बुनियादी प्रश्ना पर काट्स्कीए मार्क्सवादी स्थिति जो बिल्कुल त्यागी दितेया होर पूरी तरहा अवसरवादा ले जाई मिलेया। सोशल-डेमोक्रेटां होर अराजकतावादियां रे बिचा रे फ़र्का री तेसरी परिभाषा बिल्कुल ग़लत ही, होर तिने मार्क्सवादा जो बौहत हे बुरी तरहा ले तोड़ेया-मरोड़ेया होर भ्रष्ट कितेया।
मार्क्सवादियां होर अराजकतावादियां रे बीच फ़र्क ये हाः
1. पैहले (मार्क्सवादी) राजसत्ता जो पूरी तरह ख़तम करने रा उद्देश्य साम्हणे रखाहें, पर स्यों जाणहाएं भई ये उद्देश्य समाजवादी क्रान्ति रे द्वारा वर्गा रा अन्त करी दिते जाणे ले बाद, समाजवाद—जे राजसत्ता रे मुरझाई कने ख़तम हुई जाणे बखौ लेई जाहां—री स्थापना रे परिणाम स्वरूप हे हासिल हुई सकहां। दूजे (अराजकतावादी) तिन्हां परिस्थितियां जो नीं समझदे जिन्हां बिच राजसत्ता जो ख़त़म कितेया जाई सकहां, होर राजसत्ता जो रात भरा बिच हे पूरी तरहा ख़तम करी देणा चाहें।
2. पैहले मन्हाएं भई राजनीतिक सत्ता जो जीतणे ले बाद सर्वहारा वर्गा जो राजसत्ता री पुराणी मशीना जो पूर्ण रूपा ले नष्ट करी देणा चहिए, होर एतारी जगहा पर, हथियारबन्द मज़दूरां रे संगठना रे रूपा बिच कम्यूना हे साहीं एक नौवीं राजसत्ता री स्थापना करनी चहिए। दूजे राजसत्ता री मशीना जो नष्ट करने री गल्ला पर ज़ोर देहाएं, पर तिन्हौं एसा गल्ला री क़तई स्पष्ट कल्पना नीं ही भई एतारी जगहा सर्वहारा वर्ग केस चीज़ा री स्थापना करघा, होर आपणी क्रान्तिकारी सत्ता रा से केस ढंगा ले इस्तेमाल करघा। अराजकतावादी ता एसा चीज़ा ले बी इनकार करहाएं भई सर्वहारा वर्गा जो राज्य री सत्ता रा इस्तेमाल करना चहिए, यानी स्यों तेसरी क्रान्तिकारी डिक्टेटरशिपा ले इन्कार करहाएं।
3. पैहले माँग करहाएं भई वर्तमान राजसत्ता रा इस्तेमाल करीके सर्वहारा वर्गा जो क्रान्ति कठे तैयार करना चहिए। अराजकतावादी एतौ ठुकराई देहाएं।
एस वादविवादा मंझ मार्क्सवादा रा प्रतिनिधत्व पान्नेकोएक करहां, काट्स्की नीं, क्योंकि स्यों मार्क्स हे थे जिन्हें सिखाया था भई सर्वहारा वर्ग राज्य री सत्ता जो एस मायने बिच इहां हे नीं जीती सकदा भई पुराणी राजसत्ता रा यंत्र नौवें हाथा बिच आई जाहां। बल्कि, तेजो एस यंत्रा रा ध्वंस करना चहिए, एतौ तोड़ना चहिए होर एतारी जगहा पर एक नौवें री स्थापना करनी चहिये।
काट्स्की मार्क्सवादा जो तिलांजलि देई के अवसरवादियां रे शिविरा बिच चली जाहां, क्योंकि राजसत्ता री मशीना जो नष्ट करने री ये गल्ल, जे अवसरवादियां जो बिल्कुल हे अमान्य ही, तेसरी दलीला ले बिल्कुल ग़ायब हुई जाहीं, होर मौका मिल्ही जाहां भई “ विजय प्राप्त करने” रे मायने स्यों कल्हे आपणा बहुमत क़ायम करी लैणा, लगाई लौ।
मार्क्सवादा री आपणी एस तोड़-मरोड़ा पर पर्दा पाणे कठे काट्स्की एक पण्डिताऊ ढोंग रचहां, से आपु मार्क्सा रे हे “उद्धरणां” जो लेई के बाजीगरी दसहां। 1850 बिच मार्क्से लिखेया था भई “राजसत्ता रे हाथा बिच निर्णयात्मक रूपा ले सत्ता जो केन्द्रित करना” जरूरी हा, होर एकी विजेता रे साहीं कॉटस्की पूछंहाः क्या पान्नेकोएक “ केन्द्रीकरणा” जो नष्ट करी देणा चाहां।
ये सिर्फ एक चाल ही, तेहड़ी हे जेहड़ी जे संघवाद बनाम केन्द्रीयतावादा रे विषया बिच मार्क्सवाद होर प्रूंधोंवादा रे विचारां जो बर्नस्टीने एक समान दसया था।
काट्स्की रा “उद्धरण” ना ओरे हा, ना परे। नौवीं राजसत्ता री मशीना रे अन्तर्गत बी पुराणी राजसत्ता बराबर हे केन्द्रीकरण हुई सकहां। अगर मज़दूर स्वेच्छा ले आपणी हथियारबन्द शक्तियां जो एक करी देहाएं, ता ये हे केन्द्रीकरण हुणा। पर एस केन्द्रीकरणा रा आधार केन्द्रित राजसत्ता रे यंत्र---स्थायी फ़ौज, पुलिस होर नौकरशाही रा “ पूर्ण रूपा ले नष्ट हुई जाणा” हे हुणा। कम्यूना रे सम्बंधा बिच मार्क्स होर एंगेल्सा रे पूरी तरहा सर्व-ज्ञात तर्का जो छाड़ी के जेबे काट्स्की एक एहड़े उद्धरणा जो निकाल़ी ल्यांवहां जेतारा विषय ले कोई सम्बंध नीं हा ता से ठीक एक ठगा साहीं काम करहां।
काट्स्की अग्गे बोलहां,
पान्नेकोएक शायद अफ़सरां रे राजकीय कामां जो ख़तम करना चाहां? पर अफ़सरां रे बिना ता आसारा काम पार्टी होर मज़दूर सभावां मंझ बी नीं चलदा, फेरी राज्य-व्यवस्था मंझ ता होर बी कम चलणा। आसारा कार्यक्रम ये माँग नीं करदा भई अफ़सरां जो ख़तम करी देयो, से ये माँग करहां भई स्यों जनता द्वारा चुने जायें।...इथी आसे तेस रूपा पर नीं बैहस करी करदे, जे ‘ भविष्य री राजसत्ता’ रा शासन-यंत्र अख़्तियार करघा, बल्कि एस गल्ला पर भई क्या आसारा राजनीतिक संघर्ष राज्य री सत्ता जो, एता ले पैहले जे आसे एता पर कब्ज़ा करी पाओ, मिटाई देंघा। केस मंत्रि-विभाग होर तेतारे अफ़सरां जो ख़तम कितेया जाई सकहां?” एताले बाद शिक्षा, न्याय, अर्थ होर युद्धा रे मंत्रियां रे नांव गिणाये गइरे। “ नीं, सरकारा रे ख़िलाफ़ आसारा राजनीतिक संघर्ष इन्हां मंझा ले एक बी मंत्रि-विभागा जो नीं हटांघा...जेता ले जे कोई ग़लत-फ़ैहमी नीं हो, हाऊं दोहराई देहां, इथी आसे तेस रूपा पर नीं बहस करी करदे जे सोशल-डेमोक्रेसी री विजया रे परिणाम-स्वरूप क़ायम हुणे वाल़ी ‘ भविष्य री राजसत्ता’ लैंघी, बल्कि एस गल्ला पर भई आसारा विरोध वर्तमान राजसत्ता जो केस ढंगा के बदली देंघा” (पृ 725)
ये एक साफ़ चाल ही। पान्नेकोएके क्रान्ति रा सवाल चकया था। तेसरे लेखा रे शीर्षका होर ऊपर उदधृत अवतरणां, दोन्हों ले ये साफ़ ज़ाहिर हा। एतौ छाड़ी के विरोधा “रे सवाल” जो लेई के काट्स्की क्रान्तिकारी दृष्टिकोणा री जगह अवसरवादी दृष्टिकोणा जो रखी देहां। जे से बोलहां से ये हाः एस बक्त आसे विरोधा बिच, राजसत्ता पर क़ब्ज़ा करने ले बाद आसे क्या हुंघे, एतौ आसे बादा बिच देखघे। क्रान्ति ग़ायब हुई गयी। होर ठीक ये हे चीज़ ता अवसरवादी चाहें थे।
विरोध होर आम राजनीतिक संघर्षा री गल्ला ले इथी कोई मतलब नीं, आसे क्रान्ति री गल्ल करी करहाएं। क्रान्ति रे मायने हे भई सर्वहारा वर्ग “ शासना रे यंत्रा” जो होर राजसत्ता री पूरी मशीना जो नष्ट करी देंघा होर एतारी जगहा पर एक नौवीं सशस्त्र मज़दूरां री सता क़ायम करघा। काट्स्की मंत्रि-विभागां रे प्रति एक “अंधविश्वासी आदरा री भावना” दसहां। पर, तिन्हारी जगहा पर दूजेयां री---या बोलिएं भई विशेषज्ञां री कमेटियां री—स्थापना की नीं कीती जाई सकदी जे मज़दूरां होर सैनिकां रे प्रतिनिधियां री सर्वाधिकारी होर सर्वशक्तिशाली सोवियतां रे थाल्हे काम करघी?
गल्ल ये नीं हीं जे “मंत्रि-विभाग” रैहंगे या “विशेषज्ञां री कमेटियाँ”, या दूजी केसी तरहा री संस्थावां कायम कीती जांघी। ये गल्ल बिल्कुल महत्वहीन ही। गल्ल ये ही भई पुराणी राजसत्ता री मशीन ( जे हज़ारां सूत्रां ले पूंजीपति वर्गा ले जुड़ीरी होर जेता री रगा-रगा मंझ ढर्रेबाजी होर निश्चलता भरीरी) क़ायम रैहंगी, या नष्ट कीती जाणी होर एतारी जगहा पर एक नौवीं स्थापित कीती जांघी। क्रान्ति रे मायने ये नीं हुणे चहिए भई नौवां वर्ग पुराणी राजसत्ता री मशीना री मददा ले आज्ञा देंघा, हुकूमत चलांघा, बल्कि ये हुणा चहिए भई ये वर्ग एसा मशीना रा ध्वंस करी देंघा होर एक नौवीं मशीना री मददा ले आज्ञा देंघा, हुकूमत चलांघा। काट्स्की मार्क्सवादा री एसा बुनियादी गल्ला जो उड़ाई जाहां, या फेरी से एतौ समझणे बिच बिलकुल असफल रैहां।
अफ़सरां रे बारे बिच तेसरा सवाल साफ़-साफ़ जाहिर करी देहां भई से कम्यूना रे सबक़ या मार्क्सा री शिक्षावां जो ज़रा बी नीं समझदा। “अफ़सरां रे बिना आसे पार्टी होर मज़दूर सभावां रा बी काम नीं चलाई सकदे...”
पूंजीवादा रे अन्तर्गत, पूंजीशाहां रे शासना बिच, आसे अफ़सरां रे बिना काम नीं चलाई सकदे। पूंजीवाद सर्वहारा वर्गा रा उत्पीड़न करहां। श्रमजीवी जनता जो गुलाम रखहां। पूंजीवादा रे अन्तर्गत जनतंत्र-जनता री मजूरी री गुलामी, ग़रीबी होर मुसीबतां री सारी परिस्थितियां रे करुआं-सीमित, कुबड़ा होर कटा-छंटा होर विकृत रैहां। ये हे कारण हा, होर कल्हा ये हे कारण हा, जे पूंजीवादी परिस्थितियां ले आसारे राजनीतिक होर औद्योगिक संगठनां रे अफ़सर बेईमान बणी जाहें---या---ये बोलणा ज़्यादा सही हुणा---स्यों बेईमानी बखौ झुकदे लगाहें, होर नौकरशाह बणने री प्रवृति, यानी एहड़े विशेषाधिकारी लोक बणने री प्रवृति दसदे लगाहें जे जनता ले दूर हे होर जनता ले ऊपर खड़ही रे।
ये हा नौकरशाही रा सारः होर जेबे तका पूंजीशाहां री ज़मीन-जायदाद ज़ब्त नीं करी लीती जांदी होर पूंजीपति वर्गा रा तख़्ता नीं उलटी दितेया जांदा, तेबे तका सर्वहारा वर्गा रे अफ़सर बी अवश्यम्भावी रूपा ले केसी ना केसी हदा तका “ नौकरशाह बणी जाणे।“
पर काट्स्की रे मतानुसार—क्योंकि समाजवादा मंझ चुने हुए अफ़सर रैहंगे इधी कठे नौकरशाह बी रैहंगे, नौकरशाही रैहंगी। ठीक इथी से ग़लत हा। ये दसणे कठे भई समाजवादा बिच अफ़सर “नौकरशाह” नीं रैही जांघे मार्क्से ठीक कम्यूना रा हे उदाहरण दितेया था। अफ़सरां रे चुनावा रे सौगी-सौगी जिहां-जिहां तिन्हौ केसी बी बक्त वापिस सादी लैणे रा सिद्धान्त लागू हुणा होर, जिहां-जिहां तिन्हारी तनख़ाहां जो कम करीके औसत मज़दूरा री तनख़ाह रे बराबर करी दितेया जाणा, होर जिहां-जिहां पार्लामेण्टवादी संस्थावां री जगहा पर “ कामकाजी संस्थावां जे क़ानून बी बणांघी होर क़ानूना जो लागू बी करघी” री स्थापना हुई जाणी तिहां-तिहांए, तेस हे अनुपाता बिच, स्यों नौकरशाह बी नीं रैहणे।
सार रूपा बिच, काट्स्की रा पान्नेकोएका रे ख़िलाफ़ पूरा का पूरा तर्क होर विशेष रूपा ले तेसरी ये विलक्षण गल्ल भई आसे आपणी पार्टी होर मज़दूर सभा रे संगठनां रा बी काम अफ़सरां रे बगैर नीं चलाई सकदे—आम रूपा बिच मार्क्सवादा रे खिलाफ़ बर्नस्टीना रे पुराणे “तर्कां” री पुनरावृति मात्र ही। ग़द्दारी ले भरी री आपणी कताब, सोशलिज़्मा रे आधारा बिच बर्नस्टीन “आदिकालीन” जनतंत्रा रा विरोध करहां, तेतारा विरोध करहां जेतौ से “कठमुल्लावादी जनतंत्र”, बाध्य आज्ञाँ, अवैतनिक अफ़सर, नपुंसक केन्द्रीय प्रतिनिधि संस्थावां, बगैरा बोलहां। ये साबित करने कठे भई “आदिकालीन जनतंत्र” कमज़ोर हा, बर्नस्टीन ब्रिटिश मज़दूर सभावां रे अनुभवा री तेसा व्याख्या रा जिक्र करहां जे वैब्स दम्पतिए कीतीरी। से बोलहां भई “सम्पूर्ण स्वतंत्रता रे अन्तर्गत” सत्तर साला रे विकासे (पृ.137, जर्मन संस्करण) मज़दूर सभावां जो क़ायल करी दितेया था भई आदिकालीन जनतंत्र बेकार था, होर एतारी जगहा पर तिन्हें साधारण जनतंत्रा री, यानी मय नौकरशाही रे पार्लामेण्टवादा री स्थापना कीती।
सच गल्ल ये ही भई मज़दूर सभावां रा विकास “ सम्पूर्ण स्वतंत्रता रे अन्तर्गत” नीं, बल्कि सम्पूर्ण पूंजीवादी गुलामी रे अन्तर्गत हुआ था।---जेतारे अन्तर्गत प्रचलित बुराइयां, हिंसा, झूठ-फ़रेब, शासना रे “ऊच्चे” कामा ले ग़रीब लोकां रे अलग रखे जाणे, बगैरा री प्रथावां जो थोहड़ी-बौहत छूट देणे ले “ बचेया नीं जाई सकदा”। समाजवादा मंझ “आदिकालीन” जनतंत्रा जो अनिवार्य रूपा ले काफी हदा तका फेरी भी के जीवित कितेया जाणा। क्योंकि सभ्य समाजा रे इतिहासा बिच पैहली बार आबादी रा जनसमुदाय ना कल्हे वोट देणे होर चुनावा बिच, बल्कि शासना रे रोज़मर्रा रे कामां मंझ बी स्वतंत्र रूपा ले भाग लैणे कठे ऊपर उठणा। समाजवादा बिच सरकारा रे कामा मंझ सभ लोक बारी-बारी हिस्सा लैंघे, होर केसी रे बी द्वारा शासन ना किते जाणे रे जल्दी हे आदी हुई जाणे।
मार्क्सा री महान आलोचनात्मक-विश्लेषणात्मक प्रतिभे कम्यूना द्वारा कीती गयी व्यवहारिक कार्रवाइयां मंझ तेस नौवें मोड़ा जो देखी लितेया था, जेताले अवसरवादी डरहाएं होर जेतौ स्यों नीं मनणा चाहंदे क्योंकि स्यों पूंजीपती वर्गा ले सदा कठे सम्बंध-विच्छेद करने मंझ आनाकानी करहाएं, होर अराजकतावादी एतौ या ता जल्दबाज़ी री वजहा ले, या महान सामाजिक परिवर्तनां री परिस्थितियां जो समझणे री आम कमज़ोरी री वजहा ले देखणा नीं चांहदे। “आसौ पुराणी राजसत्ता री मशीना जो नष्ट करने री गल्ल नीं सोचणी चहिए, फेरी भला आसे मंत्रि-विभागां होर अफ़सरां रे बाजही काम चलाणे री उम्मीद किहां करी सकाहें?”---अवसरवादी—जेसरे रेशे-रेशे बिच बाबूवाद घुसी गइरा, होर जे असला बिच ना कल्हे क्रान्ति बिच, क्रान्ति री महान सृजनात्मक शक्ति बिच विश्वास नीं करदा, बल्कि (आसारे मेन्शेविकां होर सोशलिस्ट क्रान्तिकारियां रे साहीं) एतारे डरा ले मरया जाई करहां—एस ढंगा के हे तर्क करहां।
“आसौ सिर्फ़ पुराणी राजसत्ता री मशीना जो नष्ट करने री हे गल्ला पर विचार करना चहिए, पैहलकी सर्वहारा क्रान्तियां रा अध्ययन करना होर ये विश्लेषण करना भई जे चीज़ नष्ट करी दीती गइरी एतारी जगहा परा क्या रखेया जांघा होर केस ढंगा के रखेया जांघा—व्यर्थ हा”---अराजकतावादी एस ढंगा रे तर्क करहाएं। इधी कठे अराकतावादियां री कार्य-नीति एतारे बजाय जे से जन आन्दोलना री प्रत्यक्ष परिस्थितियां जो ध्यान मंझ रखदे हुए एतारे ठोस सवालां जो हल करने री दृढ़ साहसी क्रान्तिकारी कोशिश हो—निराशा री कार्यनीति बणी जाहीं।
मार्क्स आसौ दोन्हों हे तरहा री गल्तियां ले बचणा सिखाहें। स्यों आसौ सिखाहें भई पुराणी राजसत्ता री मशीना जो पूर्ण रूपा ले नष्ट करने मंझ आसौ असीम साहस दसणा चहिए, होर, सौगी हे सौगी, स्यों आसौ सिखाहें भई आसे सवाला जो एस ठोस रूपा बिच रखेः ज़्यादा व्यापक जनतंत्र स्थापित करने कठे होर नौकरशाही जो जड़ा ले उखाड़ने कठे अमुक-अमुक कार्रवाइयाँ करीके कम्यून कुछ हे हफ्तेयां रे अन्दर एक नौवीं सर्वहारा राजसत्ता री मशीन रा निर्माण-कार्य शुरू करने मंझ समर्थ हुआ था। कम्यूना रे वीरां ले आसौ क्रान्तिकारी साहसिकता सीखणी चहिए, तिन्हारी व्यावहारिक कार्रवाइयां मंझ आसौ व्यावहारिक रूपा ले फ़ौरी होर फ़ौरन संभव कार्रवाइयां री रूपरेखा देखणी चहिए, होर तेबे एस मार्ग पर चलदे हुए, आसे नौकरशाही जो पूर्ण रूपा ले ख़तम करी सकघे।
एस खात्मे री संभावना री गारंटी एस गल्ला मंझ ही भई समाजवादी कामा रे ध्याड़े जो छोटा करघा, जनता जो एक नौवें जीवना रे धरातला पर पहुँचांघा, से आबादी री बहुसंख्या कठे एहड़ी परिस्थितियाँ पैदा करी देंघा जिन्हां बिच बिना अपवादा रे हरेक एस योग्य हुणा जे “राज्य रा कारोबार” करदा लगो, होर एतारा परिणाम हुणा आम रूपा मंझ राजसत्ता रा मुरझाई के पूर्ण रूपा ले ख़तम हुई जाणा।
काट्स्की अग्गे बोलहां,
“ सामूहिक हड़ताला रा उद्देश्य राज्य री सत्ता जो नष्ट करना नीं हुई सकदा, एतारा कल्हे ये हे उद्देश्य हुई सकहां भई केसी खास सवाला पर सरकारा ले कुछ सुविधाएं हासिल करी लीती जाये, या एक विरोधी सरकारा जो हटाई के तेसरी जगहा एहड़ी सरकारा री स्थापना करी दीती जाये जे सर्वहारा री गल्ल ज़्यादा मनदी हो।...पर कधी बी, केसी बी हालता बिच, एतारे (विरोधी सरकारा रे ऊपर सर्वहारा वर्गा री विजय रे) परिणाम-स्वरूप राज्य री सत्ता नष्ट नीं हुई सकदी, एतारे परिणाम-स्वरूप सिर्फ़, राज्य री सत्ता रे अन्दर शक्तियां रा सम्बंध थोहड़ा-बौहत ऊपर-हेठ हुई सकहां।...एभे तका रे हे साहीं आसारे राजनीतिक संघर्षा रा लक्ष्य ये हे हा भई पार्लामेण्टा मंझ बहुमत प्राप्त करीके होर पार्लामेण्टा जो सरकारा री मालिक बणाई के राज्य री सत्ता जीती ली जाये।“ (पृ.726,727,732)
ये निखालिस होर निकृष्टतम अवसरवादा रे अलावा होर कुछ नीं हाः क्रान्ति जो शब्दां बिच मनी के कार्य मंझ एतौ ठुकराणा हा। एक एहड़ी “सरकार...जे सर्वहारा वर्गा री गल्ला जो ज़्यादा मनघी” ले अग्गे काट्स्की री कल्पना नीं जांदी। 1847 री तुलना बिच जेबे कम्युनिस्ट घोषणापत्रे “ सर्वहारा जो शासक वर्गा रे रूपा बिच संगठित करने” री गल्ला रा ऐलान कितेया था ये बाबूवादा बखौ पीछे भगणा हा।
काट्स्की जो आपणी ये प्रिय “ एकता” शाइडमेनां, प्लेखानोवां होर बाण्डरवाल्दां रे सौगी क़ायम करनी पौणी ज्यों, सभ के सभ, एक एहड़ी “ सरकारा री स्थापना कठे लड़ने रे प्रश्ना पर एकमत हे “ ज्यों सर्वहारा वर्गा री गल्ला जो ज़्यादा मनदी हो...”।
पर आसे समाजवादा रे इन्हां ग़द्दारां ले नाता तोड़ने री तैयारी करघे, होर पुराणी राजसत्ता री मशीना जो पूर्ण रूपा ले नष्ट करने कठे लड़घे, ताकि हथियारबन्द सर्वहारा आपु हे सरकार बणी जाये। ये एक बड़ा फ़र्क हा।
काट्स्की जो लेजियां, डेविडां, प्लेखानोवां, पोत्रेसोवां, सेरेतलियां होर शेर्नोवां रे सुखदायी सहयोगा रा उपभोग करने री पूरी आज़ादी ही जे---“राज्य री सत्ता रे अन्दर शक्तियां रे सम्बंधा बिच थोहड़ा-बौहत ऊपर-हेठ” करने कठे, “ पार्लामेण्टा मंझ आपणा बहुमत क़ायम करने कठे” होर पार्लामेण्टा जो “ सरकारा री मालिक” बनाणे कठे संघर्ष करने कठे राज़ी हे। बौहत हे ऊच्चा उद्देश्य हा, जे अवसरवादियां जो पूर्ण रूपा से मान्य हा, होर जे हर चीज़ा जो पूंजीवादी पार्लामेण्टी प्रजातंत्रा रे दायरे रे भीतर हे रखहां।
पर आसे इन्हां अवसरवादियां ले बिल्कुल नाता तोड़ने री तैयारी करघे, होर एसा लड़ाई मंझ सम्पूर्ण श्रेणी-सजग सर्वहारा वर्ग लड़ाई बिच आसारे सौगी हुणा—शक्तियां रे सम्बंधा बिच थोहड़ा-बौहत ऊपर-हेठ करने रे उद्देश्या कठे नीं, बल्कि पूंजीपति वर्ग रा तखता उलटणे, पूँजीवादी पार्लामेण्टा जो नष्ट करने रे उद्देश्या कठे , कम्यूना रे ढंगा रा एक जनवादी जनतंत्र, या मज़दूरां होर सैनिकां रे प्रतिनिधियां री सोवियतां रे एक जनतंत्रा कठे, सर्वहारा वर्गा री क्रान्तिकारी डिक्टेटरशिपा कठे।
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अन्तरराष्ट्रीय समाजवादा री दुनिया बिच काट्स्की रे दाहिणे बखौ भी धाराएं हीः जिहां जे जर्मनी रा सोशलिस्ट मासिक (लेजियें, डेविड, कोल्ब, बगैरा—और स्केण्डीनेवियन देशां रे स्टॉनिंग होर ब्रैण्टिग बी इन्हां बिच हे), फ्रांसा होर बेल्जियमा मंझ जारेज़ होर वाण्डरवाल्दा रे चेले-चाँटी, इटली री पार्टी रे दाहिणे पक्षा रे प्रतिनिधि—तुराती, त्रीव्स, बगैरा, इंगलैण्डा बिच फेबियनपंथी होर “इण्डिपेण्डेण्ट (स्वतंत्र मज़दूर पार्टी—जे असलियता बिच हमेशा उदार दला वाल़ेयां रे ऊपर निर्भर रैहीरी), बगैरा। यों सभ शरीफ़ज़ादे जिन्हारी पार्टी रे पार्लामेण्टवादी होर अख़बारां बगैरा रे कामा मंझ बड़ी होर बौहत अक्सर प्रधान भूमिका रैहाईं, सर्वहारा वर्गा री डिक्टेटरशिपा रा खुल्हे-आम विरोध करहाएं होर नांगे अवसरवादा री नीति पर चलाहें। इन्हां शरीफ़ज़ादेयां री नज़रा बिच सर्वहारा वर्गा री “डिक्टेटरशीप” जनतंत्रा री “ विरोधी” ही। असलियता बिच इन्हां मंझ होर निम्न पूंजीवादी जनवादियां मंझ कोई ख़ास फ़र्क नीं हा।
एसा परिस्थिति पर विचार करने ले बाद आसारा ये नतीजा निकालणा उचित हा भई दूजा इण्टरनेशनल—एतारे अधिकारी प्रतिनिधियां री विशाल बहुसंख्या---पूर्ण रूपा ले अवसरवादा बिच धंसी गइरी। कम्यूना रे अनुभवा जो ना कल्हे भुलाई दितेया गइरा, बल्कि एतौ तोड़ेया-मरोड़ेया गईरा। मज़दूरां रे दिमाग़ा बिच ये विचार बठालणे रे बजाए जे भई से बक्त क़रीब आई करहां जेबे तिन्हौ उठणा चहिए, पुराणी राजसत्ता री मशीना रा ध्वंस करना चहिये होर एतारी जगहा पर एक नौवीं राजसत्ता री मशीन क़ायम करनी पौणी होर, एस ढंगा के, आपणे राजनीतिक शासना जो समाजा रे समाजवादी पुनर्निर्माणा रा आधार बनाणा चहिये, तिन्हें (दूजे इण्टरनेशनला रे इन्हें अवसरवादियें) मज़दूरां जो असला बिच एताले बिल्कुल उल्टा हे पाठ पढ़ाईरा होर “ सत्ता पर विजय प्राप्त करने” री गल्ला जो एस ढंगा ले चित्रित कितीरा भई अवसरवादा कठे एतारे अन्दर हज़ारों छिद्र रैही गइरे।
एहड़े बक्ता बिच जेबे जे राजसत्तावां---जिन्हारे फ़ौजी यंत्र साम्राज्यवादी होड़ा रे करुआं पैहले ले हे क़ाफी बढ़ीरे-चढ़ीरे थे—एहड़ी फ़ौजी दानवां मंझ बधली गइरी जे एसा गल्ला रा फैसला करने कठे भई दुनिया बिच कुण हुकूमत करघा—इंगलैण्ड या जर्मनी, ये महाजनी पूंजी या से महाजनी पूँजी—लाखां आदमियां रा क़त्ले-आम करी करहांई थी, राजसत्ता रे सौगी सर्वहारा क्रान्ति रे सम्बंधा रे सवाला री तोड़-मरोड़ करने होर एतौ दबाणे-लुकोहणे री कार्रवाइयां री एक बौहत बड़ी भूमिका हुणा लाज़िमी थी।
पैहले संस्करणा बिच बादा मंझ जोड़ेया गइरा नोट
ये कताब 1917 रे अगस्त होर सितम्बरा बिच लिखी गयी थी। अगले, सातवें अध्याय, “ 1905 होर 1917 री रूसी क्रान्तियां रे अनुभवा” रा खाका मैं बणाई लितिरा था। पर शीर्षका रे अलावा अध्याया री एक पंक्ति बी मैं नीं लिखी सकेयाः राजनीतिक संकटे—1917 री अक्तूबर क्रान्ति री पूर्व-वेला—एतौ “बिच भरा हे रोकी दितेया।“ एस तरहा री “ रूकावटा” रा स्वागत हे कितेया जाई सकहां। पर कताबा रे दूजे भागा (“1905 होर 1917 री रूसी क्रान्तियां रे अनुभव”) रा लिखणा संभवतः एभे बौहत बक्ता कठे मुल्तबी करना पौणा। “क्रान्ति रे अनुभवा” ले गुज़रना एतारे बारे बिच लिखणे ले किथी ज्यादा सुखदायी होर लाभदायक हा।
पेत्रोग्राद, ---लेखक
नवम्बर 30, 1917
अगस्त-सितम्बर, 1917 मंझ लिखी गयी।
कताबा रे रूपा बिच सभी ले पैहले 1918 मंझ प्रकाशित हुई।
ये कताब हिन्दी बिच पीपुल्स पब्लिशिंग हाऊस, लि. बम्बई, 4 ले प्रकाशित हुईरी।
समाप्त।
कताबा रे बारे बिच कुछ होर गल्ला
एस कताबा रे नोट्स लैणे रे दौरान एता ले सम्बंधित कुछ होर सामग्री पढ़ने जो मिल्ही। सोवियता संघा मंझ समाजवादी प्रयोगां रे अनुभवः इतिहास होर सिद्धान्ता री समस्यावां शीर्षका ले दिशा संधान पत्रिका रे तरीजे अंका बिच छपीरे लंबे लेखा री तरीजी किस्ता बिच चार्ल्स बेतेलहाइमा री कताबा री समीक्षा करदे हुए अभिनव सिन्हा लिखांहेः
बेतेलहाइम दावा करहाएं भई बोल्शेविक क्रान्ति ले तुरन्त बाद सोवियत राज्यसत्ते जे रूप धारण कीतेया से लेनिना री ‘राज्यसत्ता होर क्रान्ति’ री अवधारणा ले काफ़ी अलग था। ये गल्ल सच ही। पर बेतेलहाइम ये नीं दसदे भई बोल्शेविक क्रान्ति रे दो सालां रे अनुभवा ले बाद लेनिने आपु स्पष्ट कितेया था भई ‘राज्यसत्ता होर क्रान्ति’ मंझ लेनिने जेस ढंगा री सर्वहारा सत्ता री कल्पना कीती थी होर एतारी स्थापना कठे आवश्यक जेसा कालावधि री अपेक्षा कीती थी, तेता मंझ काफ़ी परिवर्तना री ज़रूरत ही। ‘राज्यसत्ता होर क्रान्ति’ मंझ लेनिना रा मनणा था जे पेरिस कम्यूना साहीं मज़दूर सत्ता री स्थापना करने मंझ कुछ हे ध्याड़ेयां रा बक्त लगणा क्योंकि बुनियादी गणित समझणे वाल़ा कोई बी मज़दूर राज्यसत्ता रे कार्यकलापां जो जल्दी हे स्वायत रूपा ले सम्भाल़ी लैंघा। पर अग्गे लेनिने आपणे एस आकलना जो आपु ग़ल्त दसया होर साफ कितेया भई मज़दूर वर्ग तकनीकी कुशलतावां रे आधारा पर नीं बल्कि सही राजनीतिक वर्ग दृष्टि रे बूते राज्यसत्ता रे कार्यकलापां जो सम्भाल़ी सकहां होर उन्नता ले उन्नत देशा मंझ मज़दूर वर्ग टटपुँजिया विचारां रे प्रभावा मंझ हा, किथी ज्यादा ता किथी कम। एहड़ी हालता बिच, पार्टी सर्वहारा अधिनायकत्वा रा प्रधान उपकरण हुणी होर एतौ लम्बे बक्ता तक संस्थाबद्ध नेतृत्व प्रदान करना पौणा। एतारे बिना सर्वहारा अधिनायकत्व कुछ महीनें बी नीं टिकी सकदा। बेतेलहाइम राज्य रे प्रश्ना पर लेनिना रे चिन्तना मंझ हुइरे परिवर्तनां जो जाणी बूझी के नज़रन्दाज़ करहाएं क्योंकि राज्य रे प्रश्ना पर लेनिना रे उत्तरवर्ती चिन्तना जो तिन्हें आपणी रचना मंझ आपणी आवश्यकता रे अनुसार आपु उद्धृत कितीरा। (‘दिशा सन्धान’, अंक-3, जुलाई-सितम्बर, 2015 बिच अभिनव सिन्हा रे आलोचनात्मक लेखा रा अंश, पृ.117)
एता ले बाद बेतलहाइम लेनिन होर सौगी हे पूरी बोल्शेविक पार्टी पर ये आरोप लगाहें भई इन्हें राजकीय स्वामित्व जो हे समाजवाद समझी लितेया था। आपणी गल्ला जो पुष्ट करने कठे बेतेलहाइम लेनिना रे ‘राज्य होर क्रान्ति’ ले समाजवादी राज्य रे लगातार ‘अराज्य’ बणदे जाणे वाल़े उद्धरण होर एंगेल्सा रे लेखना ले बी एहड़े हे उद्धरण पेश करहाएं। पर समाजवादी क्रान्ति ले बाद पैहले समाजवादी प्रयोगा रे शुरूआती साला ले बाद लेनिने समाजवादी राज्यसत्ता रे बारे बिच क्या लिखेया एतारे बारे बिच बेतेलहाइम साज़िशाना चुप्पी बणाई रखाएं। लेनिने बोल्शेविक क्रान्ति रे लगभग ढाई-तीन साला बाद ये स्पष्ट कितेया था ये सोचणा नादानी हुणी भई समाजवादी राज्य समाजवादी संक्रमणा रे पूरे दौरा मंझ लगातार ‘अराज्य’ मंझ तब्दील हुंदा जाणा होर ये कोई एकरेखीय प्रक्रिया हुणा (लेनिना रे प्रासंगिक उद्धरणां कठे देखा, ‘दिशा सन्धान’, अंक-1, अप्रैल-जून 2013, पृ.103-104 होर पृ.106। समाजवादी क्रान्ति ले बाद होर विशेष तौरा पर रूसा साहीं पिछड़े पूँजीवादी देशा बिच समाजवादी क्रान्ति ले बाद एक लम्बे बक्ता तक बुर्जुआ वर्गा द्वारा नौवें रूपां मंझ छेड़े गइरे तीखे वर्ग युद्धा ले निपटणे होर सौगी हे समाजवादी निर्माणा री बेहद जटिल प्रक्रिया जो संचालित करने कठे समाजवादी राज्यसत्ता जो मज़बूत कितेया जाणा चहिए, सारी के सारी समाजवादी संक्रमणा री ऐतिहासिक अवधि कल्हे एकरेखीय रूपा ले ‘अराज्य’ रा तत्व बधाणे रा पर्याय नीं हुई सकदी। समाजवादी संक्रमणा रा पैहला लम्बा हिस्सा समाजवादी राज्यसत्ता रे सुदृढ़ीकरणा ले पैहचाणेया जाई सकहां। निश्चित तौरा पर, एतारे फलस्वरूप सर्वहारा राज्यसत्ता बिच नौकरशाहाना विचलन पैदा हुई सकाहें होर बुर्जुआ विरूपतावां जन्म लेई सकाहीं, पर ये सतत् वर्ग संघर्षा रा मामला हा होर एसा समस्या रा कोई सीधा-सरल या कार्यकारी समाधान सम्भव नीं हा, जेतारे ज़रिये सर्वहारा राज्यसत्ता री वर्ग शुचिता जो समाजवादी संक्रमणा रे दौरा बिच नौकरशाहाना भटकावां होर बुर्जुआ विरूपतावां ले साफ़-साफ़ बचाई लितेया जाए। समाजवादी संक्रमणा री उन्नतर मंज़िलां मंझ हे सर्वहारा राज्यसत्ता मंझ ‘अराज्य’ रा पहलू बधी सकहां। जेस हदा तक जनता री राजनीतिक चेतना रा स्तर उन्नत हुणा, जेस हदा तक तीन महान अन्तरवैयक्तिक असमानतावां कम हुणी, जेस हदा तक जनसमुदाय उत्पादन होर शासन सम्बन्धी निर्णय स्वतःस्फूर्त रूपा ले लैणे री मंज़िला मंझ पौंहचघे होर जेस हदा तक उत्पादन शक्तियां होर उत्पादना रा द्रुत विकास हुंघा, कल्हे तेसा हदा तक ‘अराज्य’ रे पहलू रे प्रधान हुणे री कोई कम्युनिस्ट चर्चा करी सकहां।
बेतेलहाइम एक भाववादी होर किताबी तर्क पेश करी करहाएं। ये सच्च हा जे पैहले समाजवादी प्रयोग ले पैहले एंगेल्स होर लेनिना साहीं महान शिक्षकां रे साम्हणे बी समाजवादी संक्रमणा री दीर्घकालिकता होर जटिलता जो लेई के एक सुसंगत समझदारी नीं थी होर आपु लेनिने बाद बिच एसा गल्ला जो मनेया था। अब अगर आज कोई ‘राज्य होर क्रान्ति’ रे आधारा पर केसी समाजवादी प्रयोगा ले ये उम्मीद करे भई से अगले दिना ले हे पेरिस कम्यूना रे मॉडला जो देशा रे पैमाने पर लागू करी देंघा, ता ये नादानी नीं ही ता होर क्या हा? पर बेतेलहाइम निश्चित तौरा पर नादान नीं हे क्योंकि आपणी एसा रचना बिच स्यों आपु बी कई जगहा परा लेनिना रे विचारां जो बेमना ले स्वीकार करदे हुए सुझांए। पर अलग हटी के स्यों एसा पूरी लेनिनवादी समझदारी पर हमला करहांए। से इथी प्रतीतिगत तौरा पर ‘महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति’ रे माओवादी सिद्धान्ता रे नज़रिये ले सोवियत समाजवादी प्रयोगा री आलोचना करदे सुझणे रा प्रयास करदे नज़र आवहाएं, पर असला बिच तिन्हारी ये अराजकतावादी-संघाधिपत्यवादी स्थिति माओवादी अवस्थिति ले बौहत दूर ही।
(साभारः चार्ल्स बेतेलहाइम री कताब ‘सोवियत संघा मंझ वर्ग संघर्षा’ पर ‘दिशा सन्धान’, अंक-3, जुलाई-सितम्बर, 2015 बिच अभिनव सिन्हा रे आलोचनात्मक लेखा रा अंश, पृ.187-188)
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