एक थी रानी खैरीगढ़ी उपन्यास का पाठ हाल ही में पूरा हुआ। स्वतंत्रता संघर्ष की एक ऐतिहासिक गाथा के रूप में लेखक गंगा राम राजी ने इस उपन्यास का विन्यास किया है। देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन से पहाड़ भी अनभिज्ञ नहीं थे। बल्कि वह तो देश भर के विभिन्न हिस्सों में चल रहे संग्राम का अभिन्न हिस्सा थे और उन्होने भी अपने स्तर पर सक्रिय भूमिका अदा की थी। उपन्यास के बहाने यह पुस्तक स्वतंत्रता संग्राम का एक दस्तावेज बनकर भी उभरती है। दरअसल रानी खैरगढ़ी के नाम से लगभग हर मंडी वासी परिचित भली भांती परिचित है। लेकिन किसी ऐतिहासिक पात्र के बारे में लिखने के लिए भारी शोध की जरूरत होती है। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि पुस्तक के लेखक ने श्रमसाध्य कार्य करते हुए ऐतिहासिक विवरणों के साथ पात्रों का खूबसूरत प्रयोग किया है। रानी खैरीगढ़ी जिसे मंडी वासी खैरगढ़ी कहते हैं के बहाने इस पुस्तक में मंडी रियासत के इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान घटित घटनाओं और आंदोलन में शामिल कान्तिकारियों के बारे में बहुमुल्य जानकारियां मिलती हैं। लेखक ने अपनी शोध दृष्टि के चलते घटनाओं की बाकायदा तिथियां उजागर करते हुए उस समय के दौर को तथ्यात्मक रूप से सामने लाया है। मंडी के राजा विजय सेन के पुत्र भवानी सेन इस रियासत के पहले पढे लिखे राजा थे। रानी खैरगढ़ी जो खैरागढ़ (उतर प्रदेश) से संबंध रखती थी उनकी तीसरी रानी बनी। इस पढी लिखी रानी के मंडी आने पर उन्होने अंग्रेजों व स्थानीय बजीर के शोषण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सरकाघाट के टिकरी गांव के शोभा राम के बलवे के समय भी उन्होने मंडी के राजा को प्रजा के दुखदर्द की ओर ध्यान देने और शोभाराम से बात करने को कहा था। शोभाराम का 20 हजार लोगों के साथ मंडी आना और वजीर को जेल में डाल देने का घटनाक्रम हो या अन्य कान्तिकारियों सिधु खराडा, हरदेव, हिरदा राम आदि से पुस्तक में पात्रों के रूप में मिलना एक बहुत खूबसूरत अनुभव है। गदर पार्टी के डा. मथुरा सिंह और गदर पार्टी के समाचार पत्रों का वितरण, मंडी के तल्याहड के नजदीक बम बनाना, पंजाब के क्रान्तिकारियों को बम भेजना, नागचला में राजकोष को लूटने की योजना, क्रान्तिकारियों का पकडे जाना, उन्हे सजा होना और रानी को रियासत से निष्कासित करने के घटनाएं मानो सचित्र सामने आ जाती हैं। हाल में पढ़ा गया यह मेरा तीसरा उपन्यास है। इससे पहले चीनी लेखिका यांग मो का तरूणाई का तराना और फ्रांस के लेखक स्तान्धाल का यथार्थवादी उपन्यास सुर्ख और स्याह पढ़ चुका हुं। इन दोनों विश्व साहित्य की कृतियों को पढते हुए मुझे अनुभव हुआ कि उपन्यास लेखक किसी काल विशेष के घटनाक्रम को पात्रों के माध्यम से सामने रखता है। जिसमें उस काल विशेष के दौर का शब्दों के माध्यम से चित्रण किया होता है और इन शब्दों की उष्मा ऐसी होती है कि मानो कोई चलचित्र पन्नों पर चल रहा है। इन दोनों उपन्यासों सहित इस तीसरे उपन्यास मेें भी मुझे उपन्यास लेखन की यह सब विशेषताएं मौजूद मिली। मुझे अनुभव हुआ कि उपन्यास एक ऐसी विधा है कि जब पुस्तक को हाथ में थाम लिया जाए तो पन्ने कहते हैं कि अभी न जाओ छोड़ कर कुछ और पन्ने पढ लो, मतलब पुस्तक को छोडने का मन नहीं करता लेकिन समय की जरूरतों को देखते हुए पुस्तक के पढ़े हुए पन्नों के बीच पेंसिल को छोड कर इसे अपने से दूर हटाना ही पड़ता है। एक थी रानी खैरीगढ़ी के लेखक गंगा राम राजी को मंडी रियासत की ओर से स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के ऐतिहासिक संदर्भों को पुस्तक में समेटते हुए भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए धन्यावाद, आभार, शुक्रिया और सलाम। पुस्तक के सुंदर प्रकाशन के लिए नमन प्रकाशन और पुस्तक को मुझे पढ़ने के लिए सुलभ करवाने हेतु पिता जी श्री दीनू कश्यप का आभार।
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