Monday, 3 December 2018

स्त्री-पुरूष होर सदाचार (प्रसिद्ध क्रान्तिकारी होर मशहूर लेखक यशपाला री कताब मार्क्सवादा मंझ शामिल लेखा रा मंडयाली रूपांतरण)






समाज व्यक्तियां होर परिवारा रा समूह हा। समाजा री व्यवस्था मंझ आउणे वाला कोई बी परिवर्तन व्यक्तियां होर परिवारा रे गठना पर प्रभाव पाए बगैर नीं रैही सकदा। परिवार- स्त्री पुरूषा रा सम्बन्ध- समाजा रा केन्द्र हा। समाजा री आर्थिक अवस्था मनुष्यां जो जेस अवस्था मंझ रैहणे कठे मजबूर करहाईं, तेस ढंगा ले मनुष्या रा परिवार बणहां। कुछ समाजा मंझ परिवार बौहत बड़े-बड़े होर सम्मलित हुआएं, कुछ समाजा मंझ छोटे-छोटे। किथि परिवार पिता रे वंशा ले हुआएं होर किथि माता रे वंशा ले। स्त्री, समाज री उत्पति रा स्त्रोत हा पर एता रे सौगी हे से कई तरहा के शारीरिक रूपा मंझ पुरूषा ले कमजोर बी ही। पर इन्हा सभी गल्ला रा प्रभाव समाजा मंझ स्त्री री स्थिति पर पौंहां।
समाज जेबे आपणी आदि अवस्था मंझ था ता मनुष्य जंगला मंझ घूमी-फिरी के जंगली फला होर शिकारा के आपणा पेट भरी लैहां था। तेस वक्त समाजा बिच मातृसत्ता थी सम्पत्ति पर स्त्री रा अधिकार हुआँ था। पुरूष ता शिकार ल्याउणे रे कामा बिच हे संलग्न रैंहा था। आसामा रे खासी कबीलेयां मंझ आज बी मातृस्तात्मक पारिवारिक व्यवस्था चली करहाईं। जेबे मनुष्य खेती होर पशुपालना के आपणा निर्वाह करहाएं थे, तेस वक्त कबीलेयां मंझ भूमि रे भागा या उत्पति रे दूजे साधना कठे लडाईयां हुंदी लगी। इन्हां लडाइयां मंझ शारीरिक रूपा ले स्त्री रे कमजोर हुणे रे करूआं तेसारा नेतृत्व नीं रैहा। एतारे अलावा स्त्री जो लड़ाई लड़ने कठे अगे भेजणा खतरे ले खाली नीं था। स्त्रियां रे लड़ाई बिच मारे जाणे या तिन्हा रे कैदी हुई के शत्रु रे हाथा पई जाणे ले कबीले मंझ पैदा हुणे वाले पुरूषा री संख्या मंझ घाटा पई जाहां था होर कबीला कमजोर हुई जाहां था। इधी कठे स्त्री लड़ाई बिच पीछे रखणी शुरू कर दिती, बल्कि सम्पत्ति री दूजी चीजा साहीं तिन्हारी बी रक्षा करनी शुरू हुई गई। इन्हां परिस्थितियां मंझ सम्पत्ति साहीं स्त्री रा बी उपयोग बी कितेया जांदा लगेया। तेस वक्त साधना रा विकास नीं हुणे रे करूआं पैदावारा रे कामा मंझ विशेष शारीरिक श्रम करना पौहां था। स्त्री री आपेक्षा पुरूष पैदावारा रे कामा जो ज्यादा अच्छी तरहा के करी सकहां था, इधी कठे बी स्त्री जो पुरूषा री प्रधानता मनी के तेसरी सम्पत्ति बणी जाणा पया। तेस वक्त वैयक्तिक सम्पत्ति रा चलन नीं था, इधी कठे स्त्री सम्पूर्ण कबीले या कुटम्बा री सांझी सम्पति मनी जाहीं थी।
विकासा के जेबे वैयक्तिक सम्पति रा काल आया, स्त्री भी पुरूषा री वैयक्तिक सम्पति बणी गई। तेसारा काम पुरूषा रे घरेलू कामा जो करना होर आपणे स्वामी रे कठे सन्ताना रे रूपा बिच उत्तराधिकारी पैदा करना हुई गया पर स्त्री दूजे घरेलु पशुआं साहीं हे उपयोगा री वस्तु नी बणी सकी। पुरूषा साहीं हे तेसारा बी विकास हुणे रे करूआं, तेसारे बी पुरूष रे साहीं हे मनुष्य हुणे रे करूआं, पुरूषा री सम्पति मंझ ठीक पुरूषा ले बाद तेसारा दर्जा बणया। आलंकरिक भाषा बिच एता जो बोलियें ताः वैयक्तिक सम्पति या परिवारा रे राजा मंझ पुरूष राजा हा होर स्त्री मंत्री। जीवा रे विकासा रे नाते स्त्री होर पुरूषा मंझ कुछ बी अन्तर नीं हा। समाजा री रक्षा कठे स्यों दोनों एक समान जरूर हे। पुरूष अगर सामाजिक परिस्थितियां रे करूआं शारीरिक बला मंझ या मस्तिष्का रे कामा मंझ ज्यादा सफलता हासिल करी सकहां ता स्त्री रा महत्व पुरूषा जो उत्पन्न करने, परिवार होर समाजा जो संगठित होर व्यवस्थित करने मंझ कम नीं हा। पुरूष समाजा रा अस्तित्व स्त्री रे बगैर सम्भव नीं हा। आपणे व्यक्तिगत होर सामाजिक विकासा कठे पुरूषा कठे स्त्रियां जो आपणे साहीं अवस्था मंझ रखणा आवश्यक रैहिरा, इधी कठे पुरूषा रे अधीन हुई के बी स्त्री तेसरे बराबर हे आसना पर बैठदी रैहिरी।
स्त्री होर पुरूषा मंझ इतनी समानता हुणे पर भी जीवना रे उपाया जो हासिल करने कठे स्त्री आर्थिक क्षेत्रा मंझ पुरूषा रे अधीन रैही। परिवारा रे हिता रे ख्याला ले पुरूषे स्त्री जो आपणे वशा बिच रखणा जरूरी समझेया। जेबे तका समाज भूमि री उपजा ले या घरेलू धन्धेयां ले आपणे जीवन निर्वाहा रे प्रदार्थ प्राप्त करदा रैहा, स्त्री री अवस्था परिवार होर समाजा मंझ एहडी हे रैही। स्त्री री खोपड़ी मंझ बी पुरूषा साहीं सोचणे-विचारने होर उपाय तोपणे री सामर्थ्य ही इधी कठे पुरूष तेसा जो गल़े मंझ रस्सी बान्ही के नीं रखी सकया। समाजा रे कल्याणा होर हिता रे विचारा ले स्त्री जो बी पुरूषा साहीं हे सामाजिक व्यवस्था री रक्षा कठे जिम्मेदार ठहराया गइरा पर स्त्री रे व्यवहारा पर एहड़े प्रतिबंध बी लगाए गए ज्यों सम्पत्ति रे आधारा पर बणिरे परिवारा री रक्षा कठे जरूरी थे। उदाहरणा रे रूपा बिच बोली सकाहें भई स्त्री रा एकी बकता बिच एक हे पुरूषा के सम्बन्ध रखणा ताकि तेसारे दो व्यक्तियों री सम्पत्ति बणने ले झगड़ा नी उठो, समाजा मंझ सन्ताना रे बारे मंझ झगड़ा नी उठो भई सन्तान केसरी ही, केस पुरूषा तेसा सन्ताना रा पोषण करना, सन्तान केसरी उत्तराधिकारी हुणी। यों सभ एहड़े झगड़े थे जिन्हा रे करूआं परिवारा रा नाश हुई सकहां था, इधी कठे स्त्री रे आचरणा रे बारे मंझ एहड़े नियम बनाये गये भई झगड़ा उत्पन्न ना हों।
पतिव्रत धर्म--- मतलब स्त्री रा एकी हे पुरूषा के सम्बन्ध रखणा- स्त्री रा सभी थे बड़ा धर्म दसया गया ताकि व्यक्तिगत सम्पत्ति रे आधारा पर बणिरा परिवार होर समाज तहस-नहस नीं हुई जाए। जेहड़ा ऊपर दसया भई स्त्री बुद्धि री दृष्टि ले पुरूषा रे समान हे सामर्थ्यवान ही, इधी कठे पशुआं साहीं तिन्हारे गल़े मंझ रस्सी बान्ही देणे ले काम नीं चली सकदा था। तेसा जो समझाई के होर विश्वास दुआई के हे समाजा मंझ मुख्य पुरूषा रे हिता रे अनुसार चलाणे री जरूरत थी। इधी कठे पुरूष होर समाजा रे हाथा मंझ जितने बी साधन धर्म, रीति, रिवाजा बगैरा रे रूपा मंझ थे, तिन्हा के स्त्री जो पुरूषा रे अधीन हुईके चलणे री शिक्षा दिती गई। पराधीनता होर शासना जो आपुहे स्वीकार करना हे तेसा कठे सम्मान होर आदरा री कसौटी निश्चित किती गई। तेसा जो समझाया गया भई इथी चाहे से पुरूषा रा मुकाबला भले हे करी लौ पर परलोका मंझ तेसा जो पछताणा पौणा, क्योंकि तेसारी स्वतंत्रता भगवाना री आशा होर धर्मा ले विरूद्ध ही।
औद्योगिक युग आउणे पर जेबे सम्मिलित कुटुम्ब आर्थिक कारणा के बिखरी गए, जेबे पुरूषा जो जीवन निर्वाह कठे शैहरा-शैहरा भटकणा पया, तेस वक्त सम्पूर्ण कुटुम्बा जो सौगी लेईके फिरना संभव नीं रैहा। मशीना रा विकास हुई जाणे ले पैदावारा रे साधन एहड़े हुई गए भई कठोर शारीरिक परिश्रमा री जरूरत कम पौंदी लगी होर स्त्रियां बी इन्हा कामा जो करदी लगी। बौहत बार एहड़ा बी हुआ भई जीवना कठे आवश्यक पदार्था री संख्या बधी जाणे ले, जेता जो दूजे शब्दा बिच इहां बोल्या जाई सकहां भई जीवना रे माना रा दर्जा (स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग) ऊंचा हुई जाणे ले कल्हे पुरूषा री कमाई तेसरे परिवारा कठे काफी नीं रैही। तेबे स्त्री होर पुरूष दोन्हों मिली के उपार्जन करदे लगे होर घरा रा खर्चा चलांदे लगे। एसा अवस्था मंझ पुरूषा रा स्त्री पर से अधिकार नीं रैहा जे कृषि होर घरेलू उद्योग-धन्धेयां री प्रधानता रे युगा मंझ था। जेस ऐतिहासिक क्रमा रा जिक्र आसे करी करहाएं, तेतारी वर्तमान अवस्था औद्योगिक विकासा ले आईरी। यूरोपा बिच ये विकास ज्यादा तेजी के हुआ इधी कठे तिथी लोके ये ज्यादा उग्र रूपा मंझ अनुभव कितेया। एस विकासा रा प्रभाव समाजा रे रैहण-सैहणा रे ढंगा पर पौणे ले स्त्री री अवस्था पर बी पया। तिन्हा जो बी पुरूषा साहीं हे सामाजिक होर राजनैतिक अधिकार मिलधे लगे पर वैयक्तिक सम्पत्ति री प्रथा जारी रैही क्योंकि से पूँजीवादा कठे जरूरी थी। परिणामस्वरूप स्त्री री पराश्रयता बी जारी रैही। फर्क ये था भई अब स्त्री जो पुरूषा रा दास नीं बोली के तेसरा साथी बोल्या गया। तेसा जो उपदेश दितेया गया भई परिवारा री रक्षा कठे तेसा जो पुरूषा रे आश्रय मंझ रैहणा पौणा। मौजूदा पूँजीवादी प्रणाली मंझ स्त्री री स्थिति एस हे नियमा पर ही। यूरोपिय पूँजीवादी सदाचार स्त्रियां जो निर्बल होर दयनीय दसुआं तेसारे प्रति दया दिखाणे रा व्यवहार हा। पर समाजा मंझ पुरूषा रे समान तेसारी स्थिति अझी बी नीं ही। तेसा कठे घरेलू जगता री सीमा रा व्यवधान हे सम्मानजनक समझेया जाहां।
भारता बिच औद्योगिक विकासा के हुणे वाला परिवर्तन देरा ले शुरू हुआ, बल्कि सुले-सुले हुई करहां। इथी स्त्रियां री अवस्था मंझ तितना परिवर्तन नीं हुई पाया। एस देसा मंझ जमींदार श्रेणी होर पूँजीपति श्रेणी री स्त्रियां अझी पुराणी अवस्था मंझ हे ही पर मध्यम श्रेणी री अवस्था पराले आर्थिक परिवर्तना रा प्रभाव डुग्घा पइरा होर एसा श्रेणी री स्त्रियां री स्थिति मंझ परिवर्तन आई करहां।
यूरोपा मंझ पूँजीवाद पूरा विकास करी चुकणे ले बाद अब ठोकरा खांदा लगी गइरा। पुरूषा री अपेक्षा जीवन निर्वाह रे संघर्षा मंझ कम योग्य हुणे रे करूआं स्त्रियां री अवस्था पुरूषा ले बी गइरी गुजरी री ही। बेकारी होर जीवन निर्वाहा री तंगी रे करूआं लोक ब्याह होर परिवार पालणे रे झगड़े मंझ फसणा नीं चाहंदे। स्त्रियां कठे घरा बैठीके बच्चे पालणे होर निर्वाह रे कठे रोटी-कपड़ा हासिल करदे रैहणे रा मौका बी नीं रैहा। तिन्हां जो मिलां, कारखानेयां, खानां, खेतां होर दफ्तरा मंझ मजदूरी करीके पेट पालणा पौहां। अगर ब्याह हुई जाहां ता माता बणने रा तिन्हारा काम ज्यों-त्यों निभी जाहां पर एस अवस्था मंझ तिन्हा जो पुरूषा रा स्वामित्व स्वीकार करना हे पौहां। आज बी तिन्हारे श्रम रा मूल्य पुरूषा रे श्रम रे बराबर नीं समझेया जांदा होर कई क्षेत्र तिन्हा कठे वर्जित हे। अगर ब्याह नीं हुआ होर शरीरा री स्वाभाविक प्रवृति रे करूआं से माता बणी गई ता तिन्हारी मुसीबत ही। प्रसवा री अवस्था बिच तिन्हारा निर्वाह रा सवाल बौहत कठिन हुई जाहां होर प्रसवकाला मंझ हे स्त्री जो ज्यादा सहायता री जरूरत रैहाईं। प्रसवकाला मंझ अगर स्यों कामा पर नीं जाई सको ता तिन्हारी जीविका छूटी जाहीं होर प्रसवकाला ले बाद जेबे तिन्हां जो एकी रे बजाय दो जीवा री जरूरता पूरी करनी पौहाईं ता स्यों असहाय हुई जाहीं। एताके समाजा मंझ उत्पन्न हुणे वाली संताना रे पोषण होर अवस्था पर क्या प्रभाव पौहां, ये समझी लैणा कठण नीं हा।
स्त्रियां री एस अवस्था रे करूआं देशा री जनता रे स्वास्थय पर जे बुरा प्रभाव पौहां, एतारे करूआं विवश हुई के कई पूँजीवादी सरकारे स्त्रियां री रक्षा रे कठे मजदूरी सम्बन्धी कुछ नियम बनाइरे। इन्हारे अनुसार प्रसवा रे वक्त स्त्रियां जो तनख्वाह समेत छुट्टी मिल्हाईं होर बच्चा हुणे पर काम करदे वक्त माता जो दूध बगैरा प्याणे कठे सुविधा बी देणी पौहाईं। इन्हा कानूनी अड़चना ले बचणे कठे मिला ज्यादातर विवाहित स्त्रियां जो होर खास कर बच्चे वाली स्त्रियां जो नौकरी देणा पसन्द नीं करदी। यूरोपा मंझ 80 ले 90 प्रतिशत युवतियां ब्याह थे पैहले केसी ना केसी तरहा री मज़दूरी या नौकरी करिके आपणा निर्वाह करहाईं या आपणे परिवारा जो सहायता देहाईं। पर ब्याह हुई जाणे पर तिन्हा जो जीविका कमाणे री सुविधा नीं रैंहदी। इन्हा कारणा के स्त्रियां ब्याह न हुणे पर गर्भ गिराई देणे कठे मजबूर हुई जाहीं। जीविका रा कोई उपाय नीं मिलणे ले तिन्हा जो पुरूषा रे मन बहलावा कठे आपणे शरीरा जो बेची के पेट भरने कठे मजबूर हुणा पौहां।
पैदावारा रे साधना पर वैयक्तिक अधिकारा रे आधारा पर कायम पूँजीवादी समाजा मंझ जीवन निर्वाह रा ढंग एहडा हा भई स्त्री व्यक्ति री सम्पत्ति होर मिल्कियत हे रैहणी। से या ता पुरूषा रे अधिपत्या मंझ रैहीके तेसरा वंश चलाणे, तेसरे उपयोग-भोगा मंझ आउणे री वस्तु रैहणी या फेरी आर्थिक संकट या बेकारी रे शिकंजेयां मंझ निचोड़ी जांदे समाजा रे तंग हुंदे दायरे ले, आपणी शारीरिक दुर्बुलता रे करूआं- जेस गुणा रे करूआं से समाजा जो उत्पन्न करी सकहाईँ- समाजा मंझ स्वतंत्र जीविका रा स्थान नीं पाईके कल्हे पुरूषा रे शिकारा री वस्तु बणदी जाणी। अगर से एसा स्थिति जो स्वीकार नीं करघी ता माता बणने रे प्राकृतिक अधिकारा ले वंचित रैहंगी। साधनहीन ग़रीब होर मध्यम श्रेणी री स्त्रियां री एहडी हे अवस्था ही। साधनसम्पन्न होर अमीर श्रेणी री स्त्रियां हालांकि भूख होर गरीबी के नीं तड़फदी पर तिन्हारे जीवना मंझ बी आत्मनिर्णय होर विकासा रा द्वार बन्द हा। समाजा कठे स्यों एकी प्रकारा री बोझ ही क्योंकि स्यों कल्हा खर्च हे करहाईं, समाजा कठे उत्पन्न कुछ नीं करदी। संतान पैदा करने होर पुरूषा जो रिझाणे रे सिवा स्यों अक्सर कुछ बी नीं करदी इधी कठे तिन्हा जो पुरूषा रा मोहताज रैहणा पौणा। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथे इन्हा स्त्रियां रे विषया बिच लिखिरा भई सम्पन्न श्रेणी री स्त्रियां उपयोगी नीं हुईके केवल शोभा मात्र ही।
मार्क्सवादा रे विचारा ले स्त्रियां री ये अवस्था ना स्त्रियां रे विकासा रे कठे होर ना हे समाजा री बेहतरी कठे कल्याणकारी ही। स्त्रियां भी पुरूषा साहीं मनुष्य ही होर तिन्हारे कन्धेयां पर बी समाजा रा उत्तरदायित्व तितना हे हा जितना पुरूषा रे कंधेयां पर हा। जेबे तका स्त्री रा शारीरिक होर मानसिक विकास निर्बाध रूपा ले नीं हुंगा, तेसाले उत्पन्न संताना बी उचित रूपा ले उन्नत नीं हुणी। स्त्री जो केवल उपयोग होर भोगा री वस्तु बनाई के रखणा मनुष्या रे जन्मा रे स्त्रोता जो बिगाड़ना हा। समाजा री उन्नति होर वृद्धि कठे स्त्रियां रे मानसिक होर शारीरिक विकास होर समाजा मंझ स्त्रियां रे समान अवसर हुणे चहिए। मार्क्सवाद स्वीकार करहां भई सन्तान उत्पन्न करना कल्हा स्त्री रा हे उत्तरदायित्व नीं हा बल्कि ये काम सम्पुर्ण समाजा रे कामा मंझ एक महत्वपूर्ण काम हा, मनुष्य समाजा रा अस्तित्व इधी पर हे निर्भर करहां। ये महत्वपूर्ण काम ठीक रूपा ले हुणे कठे परिस्थितियां अनुकूल हुणी चहिए। स्त्री जो संतानोत्पत्ति मजबूर हुई के या दूजे रे भोगा रा साधन बणी के नी करनी पौओ, से आपणे आपा जो समाजा रा एक उत्तरदायी, स्वतंत्र अंग समझी के आपणी इच्छा के संतान पैदा करे। संतान पैदा करने कठे समाजा री स्त्रियां जो एहड़ी परिस्थितियां हुणी चहिए, ज्यों माता होर सन्ताना रे स्वास्थय होर सुविधा रे अनुकूल हों। गर्भवती हुणे री अवस्था मंझ स्त्री कठे एस तरहा री परिस्थितियां हुणी चहिए भई से आपणा स्वास्थय ठीक रखी सके होर स्वस्थ संताना जो जन्म देई सको। पूँजीवादी समाजा मंझ साधनहीन होर पूँजीपति दोन्हों हे श्रेणियां कठे एहड़ी परिस्थितियां नीं हीं। साधनहीन श्रेणी री स्त्रियां जो गर्भ हुणे री अवस्था मंझ उचिता ले ज्यादा परिश्रम करना पौहां होर पूँजीपति श्रेणी री स्त्रियां बिल्कुल निष्क्रय रैहणे करूआं स्वस्थ संतान पैदा नीं करी सकदी।
समाजवादी होर समष्टिवादी समाजा मंझ स्त्री बी समाजा रा उत्पादक या पैदावार करने वाली अंग हुणी। तेसा जो कल्हे पुरूषा रे भोग होर रिझावा रा साधन नीं समझया जाणा। मार्क्सवाद मनुष्य प्रकृति मंझ आनन्द, विनोद होर रिझावा री जगहा बी स्वीकार करहां पर से पुरूषा जो प्रधान होर स्त्री जो केवल साधन मात्र नीं मनदा। पूँजीवादी समाजा मंझ स्त्री माता बणने रे कामा रे करूआं पुरूषा (क्योंकि पुरूष जीविका कमाई के ल्यावां) रे सामहणे आत्मसमर्पण करने कठे मजबूर हुई जाहीं। समाजवादा मंझ स्त्री रे गर्भवती हुणे ले प्रसवकाला होर फेरी परिश्रम करने लायक हुई जाणे तका तेसारी आवश्यकता री पूर्ति होर स्वास्थया री देखभाला री जिम्मेवारी समाजा पर हुणी। प्रसवा ले दो-ढाई महिना पैहले ले लेईके प्रसव ले एक महीना बादा तक, चिकित्सका री राय रे मुताबिक, तेसा समाजा रे खर्चे पर उचित सुविधा के रैहणा। संतान पैदा हुणे ले बाद समाजा जे काम तेसा जो करने कठे देणा, तेता मंझ बच्चे री देख भाला रा समय होर सुविधा बी तेसा जो देणी। बच्चे रे पालने-पोसणे होर शिक्षा री जिम्मेदारी बी गरीब स्त्री री हे नीं बल्कि पूरे समाजा री हुणी। एस तरहा के संतान पैदा करना स्त्री कठे भय होर मुसीबता रा कारण नीं हुई के उत्साह होर प्रसन्नता रा विषय होर सामाजिक काम हुणा।
कई पूँजीवादी शंका करहाएं भई मार्क्सवादा मंझ स्त्री जो स्वतंत्र करिके निराश्रय बनाई दितेया जाणा, स्त्री परा ले एकी पुरूषा रा बन्धन हटाई के तेसा जो समाजा री सांझी भोग्य वस्तु बनायी दितेया जाणा। एता के अनाचार होर व्यभिचार फैल्हणा होर मनुष्या पशुआं साहीं व्यवहार करदे लगणा। मार्क्सवाद स्त्री-पुरूषा रे सम्बन्धा जो स्त्री-पुरूषा री प्राकृतिक आवश्यकता होर कर्तव्या रा सम्बन्ध मनहां। इधी कठे से दोनों मंझा केसी रा एक-दूजे रा दास बणी जाणा जरूरी नीं समझदा। एतारे सौगी हे से स्त्री-पुरूषा रे सम्बन्धा मंझ उच्छृंखलता बी ठीक नीं समझदा। केसी स्त्री या पुरूषा रा होरियां रे शारीरिक भोगा कठे आपणे शरीरा जो किराये पर देणा से अपराध समझां। समाजवादी समाजा मंझ जीविका रे साधन आपणी योग्यता होर अवस्था रे मुताबिक सभी जो समान रूपा ले प्राप्त हुणे, इधी कठे जीविका कठे तेस समाजा मंझ स्त्री जो व्यभिचारा के जीविका कमाणे री जरूरत नीं हुणी। ज्यों लोक पूँजीवादी समाजा रे संस्कारा रे करूआं एहडा करघे स्यों अपराधी समझे जाणे। संक्षेपा मंझ स्त्री-पुरूष होर ब्याह रे सम्बन्धा मंझ मार्क्सवाद समाजा रे शारीरिक होर मानसिक स्वास्थया रे विचार ले पूर्ण स्वतंत्रता देहां पर उच्छृंखलता होर गड़बड़ या भोगा रा पेशा बनाई लैणे होर एतारे सौगी आपणी वासना कठे होर व्यक्तियां होर समाजा री जीवन व्यवस्था मंझ अड़चन पाणे जो से भयंकर अपराध समझां।
--- समीर कश्यप
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