Monday, 10 October 2016

मेरी दिल्ली यात्राः एक वृतांत --- समीर कश्यप




मंडी। पिछले दिनों मिडिएशन की राष्ट्रीय मीट के सिलसिले में दिल्ली जाने का कार्यक्रम तय हुआ तो अपनी जन्मभूमी पर एक बार फिर से कदम रखने की चाहत से खुशी की लहर दौड पडी। मेरा जन्म दिल्ली के मिलटरी अस्पताल में हुआ है। पिता जी सेना में कार्यरत थे और हमारा परिवार सरोजनी नगर में रहता था। जन्म के करीब डेढ महीने बाद ही मंडी आ गया था। वैसे दिल्ली अपने जीवन में इससे पहले चार बार गया हुं। पिता जी जब दानापुर (पटना) और सागर (म.प्र.) में पोस्टेड थे तो दो महीने की छुटिट्यों के खत्म होने पर घर लौटते समय उन्होने दिल्ली के सभी महत्वपुर्ण स्थल दिखाए हैं। करीब 10 साल पहले अपने बचपन के दोस्त जी न्युज के वरिष्ठ संवाददाता नीरज ठाकुर के पास भी फिल्म सिटी नोइडा में मिलने एक बार मिलने गया था। सुना है कि कॉमनवेल्थ खेलों में भारी भ्रष्टाचार के बावजूद दिल्ली बहुत बदल गई है। इस बदली हुई दिल्ली में जाने का मेरा यह पहला मौका था। हालांकि दिल्ली के लिए 29 सितंबर की शाम को मंडी से रवाना होना था। लेकिन इसी बीच मेरे पास एमएसीटी का एक नया केस आया जिसमें मुझे 28 अक्तूबर को एमएसीटी न्यायलय, नवां शहर में ड्राइवर की पेशी करवानी थी। ड्राइवर और उनके परिजनों के आग्रह पर 27 सितंबर को यात्रा की पूरी तैयारी करने के बाद 28 सितंबर को तडके चार बजे यात्रा शुरू करना तय हुआ। तय समय पर सुबह चार बजे चौहट्टा बाजार में पहुंचा। रोशनियों में नहा रहे चौहट्टा बाजार और भूतनाथ मंदिर तक कुछ देर चहल कदमी की। कुछ ही देर बाद मुव्वकील ड्राइवर के अपनी टैक्सी कार व परिजनों सहित चौहट्टा पहुंचते ही मंडी से नवांशहर की यात्रा शुरू हुई। रोपड से टैक्सी पंजाब के अंदरूनी गांवों, कस्बों में से गुजरने लगी तो गुजरता जा रहा हर लम्हा एक नयापन लिए थे। पंजाब के भीतरी इलाकों से बावस्ता न होने के कारण हर चीज देखने लायक थी। लंबा सफर करके गढ़शंकर पहुंचे जहां से इस मामले के कुछ दस्तावेज हासिल होने थे। दस्तावेज मिले तो पता चला कि हमें नवांशहर के भगत सिंह नगर में स्थित जिला न्यायलय पहुंचना है। याद आया कि कुछ संदर्भों में भगत सिंह जयंती 28 सितंबर बतायी जाती है और कुछ में 27 सितंबर। शहीद भगत सिंह का जन्म 27 या 28 सितंबर को पंजाब के जिला लायलपुर के बंगा (जो अब पाकिस्तान में पडता है) में हुआ था। इस संयोग से खुशी बहुत बढती जा रही थी कि भगत सिंह जयंती के दिन पंजाब में से गुजर रहा हुं और नवां शहर के शहीद भगत सिंह नगर जा रहा हुं। नवां शहर अदालत में पहुंचा और पेशी करवायी तो इसी दौरान वहां की स्थानीय बार के अधिवक्ताओं ने शहीद भगत सिंह दिवस की छुट्टी मनाने की बात रखी। अदालत में मौजूद न्यायिक कर्मियों का भी कहना था कि पंजाब सरकार को इस दिन के महत्व को समझते हुए अवकाश घोषित करना चाहिए। पेशी करवाने के बाद मुव्वकील को नवां शहर में मामले की पैरवी के लिए अधिवक्ता नियुक्त करवाकर यहां से चंडीगढ की यात्रा शुरू हुई। मुव्वकील के साथ यह तय था कि नवां शहर में पेशी करवाने के बाद वह मुझे चंडीगढ में छोडेगा और वहां पर मेरे रहने की व्यवस्था करेगा। चंडीगढ पहुंचते ही मुव्वकील ने सूद धर्मशाला में कमरा बुक करवा कर रहने की व्यवस्था की और खुद परिजनों सहित मंडी के लिए रवाना हो गया। अब 28 और 29 सितंबर की रात चंडीगढ में बिताने के बाद 30 की सुबह दिल्ली को रवाना होने का कार्यक्रम तय था। चंडीगढ में 28 की शाम को सेक्टर 22-डी की शास्त्री मार्केट में गया। रेहडी फडी बाजार के साथ-2 मार्केट में खूब भीड थी। लोग दूर-2 से चल कर मार्केट खोजते हुए वहां पहुंच रहे थे। सामान सस्ता, रोजमर्रा के प्रयोग का और आम आदमी के बस का। घूमने के बाद धर्मशाला वापिस पहुंचा और कैंटीन में खाना खाने के बाद जब बिस्तर पर सोया तो भारी थकान होने के कारण सुबह करीब 10 बजे तक सोता ही रह गया। नहाया धोया, खाना खाया और फिर से चंडीगढ पैदल घूमने निकल पडा। पता चला कि पैदल चलते रहें तो धर्मशाला से चंडीगढ बस स्टैंड पहुंचा जा सकता है। चंडीगढ के सैक्टरों में बडे-2 शोरूम भरे पडे हैं लेकिन ग्राहकों के लिहाज से अधिकतम शोरूम में सन्नाटे ही दिखाई पडे हैं। चमकदार शीशों में से वहां सिर पर सिर जोडे बैठे मंथन कर रहे कर्मचारी शायद इस सोच में हैं कि इतने सारे सामान को बिकवाने के लिए लोगों की भीड को कैसे बुलाया जाए। उमस भरे दिन में कई लाल बतियों व टर्नों से गुजरते हुए बस स्टैंड पहुंचा। वहां जाकर हरियाणा रोडवेज काउंटर पर दिल्ली के लिए बस के बारे में पता किया तो उन्होने बताया कि थोडी-2 देर बाद सारा दिन बसें चलती रहती हैं। टांगों में ताकत शेष होने के कारण बस स्टैंड से पैदल ही सूद धर्मशाला पहुंचने का निर्णय लेते हुए वापिस लौटना शुरू करता हुं। लेकिन चौकों की भूल भुलैया में भटक कर धर्मशाला के पिछवाडे में पहुंचता हुं। कमरे में थोडी देर विश्राम करने के बाद धर्मशाला के बाहर धोबी की दुकान में कपडों को इस्त्री के लिए देता हुं। इतने में वहां पर मंडी के कैहनवाल के पप्पी और मंडी के अज्जू भाई दिखायी पडते हैं। परदेश में अचानक अपना दिख जाने पर उन्हें आवाज लगाता हुं। हालचाल पूछता हुं तो पता चलता है कि वह दिल्ली से आए हैं और धर्मशाला में कमरा ढुंढ रहे हैं। कमरा न मिल पाने पर कहीं और खोज करने जा रहे हैं। उनसे अलविदा होने के बाद वहां खडे रिक्शा वाले से पूछता हुं कि नजदीक हेयर ड्रेसर की दूकान कहां है। वह बताता है कि धर्मशाला की सडक पर सीधे चलते जाओ। आगे रेहडी मार्केट के पास हेयर ड्रेसर की दुकान मिल जाएगी। मार्केट में पहुंच कर एक दूकान में कटिंग करवाता हुं और कुछ खा पी कर फिर से धर्मशाला लौट आता हुं। धर्मशाला की कैंटिन में रात का खाना खाता हुं और बिस्तर पर लेट कर धर्मशाला के बारे में सोचने लगता हुं। पुराने जमाने में लोगों को सुविधायें जुटाने के लिए पीपल लगाने, बावडियां खुदवाने और धर्मशालाएं बनवाने आदि के अनेकों परोपकारी कार्य भी किये जाते थे। धर्मशाला में गरीबों से लेकर अमीरों तक के रहने की व्यवस्था रहती थी। यहां की धर्मशाला में 50 रूपये वाली डोरमैटरी से लेकर सौ - दो सौ से डीलक्स कमरे तक की व्यवस्था है। जहां पर राहगीर अपनी हैसियत के मुताबिक कमरा लेकर ठहर सकते हैं। यहां अलग-2 जगहों से अपने-2 कार्यों के सिलसिले में आए लोग ठहरते हैं। खासकर पीजीआई में इलाज के लिए मरीज और उनके अटैंडेंट के लिए यह धर्मशालाएं बहुत सहायक साबित होती हैं। सुबह जल्दी उठने पर नहा धोकर कमरा छोडने की तैयारियों में होता हुं तो इसी बीच धर्मशाला परिसर में विश्विद्यालय के समय में साथ पढी और मंडी में बतौर अधिवक्ता कार्य कर चुकी रजनी पारस व उनके पति पारस से मुलाकात होती है। रजनी अपने पति से परिचय करवाती है तो मैं उन्हे कहता हुं कि मैं फेसबुक के माध्यम से उनसे वाकिफ हो चुका हुं। वह दोनों मुझे दिल्ली यात्रा की शुभकामनाएं देते हैं। धर्मशाला के बाहर खडा रिक्शा वाला बस स्टैंड ले जाने के लिए 60 रूपये में तैयार है। उन्हीं रास्तों से जहां से पैदल बस स्टैंड गया था में से रिक्शा थोडी ही देर बाद बस स्टैंड पहुंचाता है। बस काउंटर पर हरियाणा रोडवेज की दिल्ली के लिए बस खडी हुई है। हरियाणा रोडवेज की बस से यात्रा करना भी कम रोमांचकारी नहीं है। चंडीगढ जैसे भीड भरे रास्ते में जिस तरह वाहनों के पीछे बस लगभग चिपक कर बगैर किसी टक्कर से चलती रही उससे बस चालक की योग्यता दंग करती रहती है। हरियाणा रोडवेज की बस में सफर का फायदा यह था कि बस में बैठते ही हरियाणवी बोली के शब्द कानों में पडने शुरू हो गए थे। हरियाणा में प्रवेश करते ही बस फ्लाई ओवर छोडकर स्थानीय बस अड्डों तक पहुंच रही थी। जिससे हरियाणा के अलग-2 शहरों और कस्बों में से भी गुजरने का मौका मिल रहा था। दिल्ली पहुंचने की कोई जल्द न थी क्योंकि मैं समय पर चल पडा था इसलिए चाहता था कि बस में जितना समय गुजर जाए अच्छा है क्योंकि इस समय में हरियाणा को और ज्यादा देखने का मौका मिलेगा। कुरूक्षेत्र, पानीपत और सोनीपत की परस्पर दूरियां पार करते-2 दिल्ली की दूरी अपने आप घटती जा रही थी। सोनीपत के नजदीक गन्नौर चौक पर पहुंचने पर ड्राइवर ने ऐलान किया कि 20 मिनट में खाना खा लो। ड्राइवर से किसी सवारी ने पूछा तो उन्होने हरियाणवी में बोला कि अब दिल्ली के लिए एक घंटा लगेगा। रास्ते में मुरथल में से गुजरा तो जाट आंदोलन और सामुहिक बलात्कार की कथित घटना कौंध पडी। आगे चल रही झज्जर की गाडी देखी तो अमित और उनके पिता भूप सिंह याद आ गए। अमित एनडीपीएस के केस में मंडी में विचाराधीन बंदी था। उसके पिता भूप सिंह हर पेशी में मंडी आते थे और उनसे हरियाणा, जाट आंदोलन और खाप के बारे में बातचीत होती रहती थी। भूप सिंह जी ने खूब मेहनत करवा कर अमित का केस मेरे से लडवाया था। उसे करीब तीन महिने पहले अदालत ने बरी किया है और अब वह पशु चिकित्सक के रूप में झज्जर में अपनी सेवाएं दे रहा है। दिल्ली के नजदीक पहुंचने का मेरा इससे पहले का अनुभव यह था कि जब वातावरण में फैली बदबु नाक में प्रवेश करना शुरू हो जाए तो समझ लो कि दिल्ली आ गई है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। मेरा खोजी नाक बदबू ढुंढता रहा लेकिन इसका नामोनिशान नहीं मिल रहा था और पता ही नहीं चला कि कब बस मजनू का टिला होते हुए आईएसबीटी में प्रवेश कर गई। आईएसबीटी पर उतर कर दिल्ली में पहला कदम रखा तो पता नहीं लग रहा था कि किस ओर कदम बढाये जाएं। खैर जहां अन्य सवारियां जा रही थी मैं भी उसी रूझान का पीछा करते हुए एक पीछे की संकरे फुटपाथ पर चल पडा। फुटपाथ के किनारे खंबों पर लगे हीरो हौंडा की दिवाली के अवसर पर धोखा के स्टिकर पोस्टरों ने मानो दिल्ली में मेरा सबसे पहले स्वागत किया। इस आंदोलन के बारे में फेसबुक साथियों खासकर अभिनव सिन्हा के पोस्टों से जानकारी मिलती रहती है। अभिनव का बिगुल मजदूर संगठन इस आंदोलन को समर्थन दे रहा है। अभिनव, कात्यायनी, सत्यम वर्मा, कविता कृष्णा पल्लवी, आनंद सिंह और मनन विज जैसे अनेकों साथियों से साहित्य की बदौलत जहनी रूप से जुडा हुं। उनके तमाम साहित्य को पढने की कोशीश में रहता हुं। दिशा संधान और नान्दीपाठ जैसी पत्रिकाओं व यू टयूब के माध्यम से मार्क्सवादी- लेनिनवादी विचारधारा का पाठ नये ढंग से सीखने के लिए प्रयासरत रहता हुं। खंबे पर लगे पोस्टर ने पहले से सोची हुई अपनी इस बात को दिमागी रूप से पुख्ता किया कि अगर समय ने इजाजत दी और जंतर मंतर में से गुजरना हुआ तो वहां पर अनिश्चितकालीन हडताल कर रहे हौंडा मजदूरों से मिलकर उनके आंदोलन को समर्थन देने जरूर जाउंगा। अपनी बुआ जी के बेटे राहुल शर्मा को बस से उतरते ही फोन कर दिया था। राहुल इन दिनों टाटा मोटरस में कार्यरत हैं और दिल्ली में रहते हैं। इस संकरे फुटपाथ पर चलते हुए दूसरी तरफ निकला तो अपने आपको कश्मीरी गेट पर पाया। जहां से दिल्ली के सभी क्षेत्रों के लिए बसें जा रही थी। कुछ देर कश्मीरी गेट पर बैठकर लोगों का बस पकडने के लिए जदोजहद करना देखता रहा। हर मिनट में कई बसें वहां पर आ रही थी और सवारियों को भर कर अपने गंतव्य की ओर बढ रही थी। सवारियां भी थी कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी। थोडी देर बाद ही राहुल ने काल बैक में कहा कि कश्मीरी गेट के उसी संकरे रास्ते में से आईएसबीटी के दूसरी ओर वापिस आओ। यहां पर बने फ्लाई ओवर को पार करके सडक के दूसरी ओर पहुंचो। ऐसा करते ही सामने राहुल भाई अपनी कार सहित इंतजार में खडा मिला। दुआ सलाम के बाद राहुल की कार से नोएडा के गगनचुंबी टावरों के बीच पहुंचा तो सबसे पहले शुक्र मनाया कि पहाडी टोपी पहन कर नहीं आया था नहीं तो आज जरूर गिर गई होती। सेक्टर 76 नोइडा आम्रपाली सिलीकॉन सिटी में राहुल भाई और ऋचा भाभी के नवीं मंजिल पर स्थित फ्लैट में पहुंच कर बालकॉनी से नीचे देखने पर कलेजा मुंह को आ गया। रियल एस्टेट मार्केट में संकट जारी होने के बावजूद भी दिल्ली के नजदीकी क्षेत्रों में बने इन बहुमंजिला टावरों में तीन कमरे के फ्लैट की कीमत करीब 40 लाख से शुरू होती है। तमाम सुविधाएं देने वाले इन टावरों में अधिकतम उच्च व उच्च मध्यम वर्ग के लोग रहते हैं। यहां पर रहन सहन का हर क्रियाकलाप तथा अनुभव मुझ जैसे पहाडी मानुष के लिए अभूतपूर्व था। राहुल ने मुझे अपने टावर के चारों ओर बाइक पर घुमाया और कुछ देर तक इस सिलिकॉट सिटी की मार्केट में चहल कदमी की। डीनर के बाद राहुल भाई के साथ चर्चाओं के दौर देर रात तक चलता रहा। सुबह जब उठे तो लगा कि देर से उठे हैं और हडबडा कर मिडिएशन की कांफ्रेंस की तैयारियां शुरू कर दी। हमें साढे आठ बजे तक नयी दिल्ली के राजाजी मार्ग स्थित डीआरडीओ भवन पहुंचना था। भाभी ने जल्दी से टोस्ट बनाकर पैक कर दिये और राहुल भाई की गाडी 100 से उपर की स्पीड में अक्षर धाम मंदिर से गुजरती हुई दिल्ली में प्रवेश कर गई। ठीक सवा आठ बजे हम डीआरडीओ पहुंचे तो वहां पर हिमाचल के अन्य मिडिएटर ऊना से मनीष शर्मा और कुल्लू से कृष्ण लाल ठाकुर के साथ पटना हाईकोर्ट के मिडिएटर विनय कुमार भी गेट में प्रवेश के इंतजार में मिले। राहुल को शाम पांच बजे मिलने के लिए कह कर उसे वापिस भेज दिया और खुद अन्य मिडिएटरों के साथ शामिल हो गया। हमारे पहचान पत्र और निमंत्रण पत्र देख कर डीआरडीओ भवन के बाहर खडे सेना के जवानों ने हमें डॉ. डी एस कोठारी भवन में प्रवेश दिया। जल्द ही सभागार में मुख्य अतिथी और विशेष अतिथी के प्रवेश के साथ मिडिएशन की चुनौतियां और भविष्य का रास्ता विषय पर राष्ट्रीय परामर्श कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश न्यायमुर्ति टी एस ठाकुर थे। जबकि केन्द्रीय विधि एवं न्याय तथा इलैक्ट्रोनिक व इंफोरमेशन टैक्नोलोजी मंत्री रवि शंकर प्रसाद विशेष अतिथि थे। इस मौके पर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के कार्यकारी अध्यक्ष उच्चतम न्यायलय के न्यायधीश न्यायमुर्ति अनिल आर. दवे, न्यायमुर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमुर्ति मदन बी लोकुर भी मंच पर विराजमान थे। सबसे पहले मंच पर विराजमान मुख्य अतिथि व अन्य अतिथियों ने ज्योति प्रज्जवलित करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया। नालसा की ओर से सभी गणमान्य न्यायधीशों को पौधों के गमले भेंट किए गए। न्यायमुर्ति अनिल आर दवे ने इस मीट में उपस्थित मुख्य अतिथि सहित सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। जबकि न्यायमुर्ति दीपक मिश्रा ने अपना विशेष संबोधन दिया। केन्द्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने की नोट के रूप में अपना वक्तव्य रखा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश न्यायमुर्ति टी एस ठाकुर ने इस अवसर पर कहा कि न्याय प्रदान करने की प्रणाली इन दिनों संकट से गुजर रही है। जिला अदालतों में इस समय करीब तीन करोड मामले लंबित हैं। ऐसे में यह जरूरत बन जाती है कि इन मामलों को जल्द निस्तारित करने की परियोजनाओं को खोजा जाए और उन्हे पक्षों की संतुष्टि के मुताबिक निस्तारित किया जाए। विवादों के वैकल्पिक निस्तारण के लिए सीपीसी की धारा 89 में प्रावधान किया गया है। लोक अदालत और मिडिएशन भी ऐसा ही एक वैकल्पिक तरीका है। उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश आर सी लोहाटी द्वारा साल 2005 में मिडिएशन एंड कौंसिलिएशन कमेटी (एमसीपीसी) का गठन करके कोर्ट में लंबित मामलों के लिए मिडिएशन शुरू की गई थी जो अब देश भर में संस्थागत हो गई है। पिछले एक साल में ही देश भर के न्यायलयों में करीब एक लाख लंबित मामलों को मिडिएशन के माध्यम से निस्तारित किया गया है। मिडिएशन की सफलता का ग्राफ साल दर साल बढता जा रहा है। जिससे लगता है कि मिडिएशन अब भारत में पूरी तरह से आने को तैयार है। उन्होने कहा कि मिडिएशन के सामने कुछ दिक्कतें व चुनौतियां हैं। जिनमें मिडिएशन के लिए कम रैफरल भेजे जाना, मिडिएशन केन्द्रों के प्रबंधन में समान व्यवस्था की कमी, मिडिएटरों को मानदेय राशि देने की समानता में कमी और कुछ राज्यों के पास फंड की उपलब्धता की कमियां आदि प्रमुख चुनौतियां हैं। जिसके लिए मिडिएशन की यह पहली राष्ट्रीय मीट आयोजित की जा रही है। उन्होने इस मीट में उच्चतम न्यायलय के न्यायमुर्तियों सहित भाग ले रहे देश भर के सभी उच्च न्यायलयों के मुख्य न्यायधीशों, न्यायधीशों, सदस्य सचिवों व मिडिएटरों को इन चुनौतियों के बारे में विस्तार की चर्चा करने का आहवान करते हुए कार्यक्रम का शुभारंभ कर अपनी शुभकामनाएं दी। मुख्य न्यायधीश ने संबोधन के बाद नालसा की वेबसाइट, वेब पोर्टल और थीम सांग को रिलीज किया। लेकिन तकनीकी खराबी के कारण यह रिलीज थोडी देर के लिए टाल दी गई और असुविधा के लिए खेद जताते हुए थोडी देर बाद खराबी दूर कर इन्हे विधिवत रूप से रिलीज किया गया। तकनीकी मंत्री के कार्यक्रम में मौजूद होने और तकनीक के फेल हो जाने के कारण प्रतिभागियों में चाय ब्रेक के दौरान चर्चा होती देखी गई। चाय ब्रेक के दौरान ही न्यायमुर्ति अनिल आर दवे और प्रसिद्ध फिल्म निर्माता प्रकाश झा ने एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए बताया कि एक मुट्ठी आसमान थीम सांग बनाने के लिए मुख्य न्यायधीश टी एस ठाकुर ने उस समय कहा था जब वह नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष थे। उन्होने बताया कि देश के कई जगहों पर नालसा की स्कीमें लोगों के लिए वरदान साबित हो रही हैं। प्रकाश झा ने मिडिया को बताया कि उन्होने राजस्थान सहित कई राज्यों में भ्रमण करके नालसा की स्कीमों से लोगों को हो रहे फायदे व न्याय की पहुंच सब तक की उम्मीद को इस थीम सांग व कुछ अन्य डाक्यूमेंटरी में संजोया है। चाय ब्रेक के दौरान मुख्य न्यायधीश, कानून मंत्री, कानून की किताबों में पढे जाने वाले न्यायमुर्तियों और प्रसिद्ध फिल्म निर्माता प्रकाश झा को नजदीक से देखने के यह पल अविस्मरणीय और अभूतपूर्व थे। उन्हे देखकर लग रहा था कि हैं तो वह भी इंसान ही पर अपनी काबलियत और विशिष्ट गुणों के कारण अतिविशिष्ट हो गये हैं। निर्णय लेने की प्रस्थितियों में विराजमान इन अतिविशिष्टों का निर्णय इस महादेश की सारी व्यवस्थाओं पर लागू हो जाता है। इसलिए इनका अतिसंयमित होना बेहद लाजमी हो जाता है। जब यह कोई बात कहते हैं तो एक-2 शब्द का महत्व हो जाता है। ऐसे में इनका कुछ कहना न कहना, कुछ करना या न करना हमेशा व्याख्याओं की परिभाषाएं रचता जाता है। कार्यक्रम के शुभारंभ सत्र संपन्न होने पर न्यायमुर्ति मदन बी लोकुर ने मुख्य अतिथि तथा विशेष अतिथि का धन्यावाद करते हुए अगले सत्र की शुरूआत की। इस सत्र की अध्यक्षता न्यायमुर्ति अनिल आर दवे और न्यायमुर्ति मदन बी लोकुर ने की। इस खुले सत्र में प्रतिभागियों ने विभिन्न राज्यों में मिडिएशन के लिए फंड और जिला अदालतों के मिडिएटरों को मानदेय की जरूरतों और उपलब्धता पर चर्चा की गई। इस संदर्भ में हिमाचल प्रदेश के न्यायमुर्ति संजय करोल ने भी अपने विचार रखे। सत्र के बाद हुए भोजनावकाश के दौरान हिमाचल प्रदेश के दल के सदस्यों न्यायमुर्ति संजय करोल, धर्मचंद चौधरी, सी बी बारोवालिया, सदस्य सचिव यशवंत सिंह चोगल, मिडिएटर डी डी वर्मा (उच्च न्यायलय), मनीष शर्मा (ऊना), कृष्ण लाल ठाकुर (कुल्लू) और समीर कश्यप (मंडी) ने एक सामुहिक चित्र लिया। दूसरे सत्र की अध्यक्षता न्यायमुर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमुर्ति डी वाई चंद्रचूड ने की। इस सत्र में जिला न्यायलयों में न्यायिक अधिकारियों को मिडिएटर की ट्रेनिंग देने के बारे में चर्चा की गई। न्यायमुर्ति चंद्रचूड का कहना था कि दिल्ली और मुम्बई में मिडिएटर न्यायिक अधिकारियों ने बेहतरीन कार्य किया है ऐसे में देश भर के न्यायिक अधिकारियों को मिडिएटर की ट्रेनिंग दी जाए। न्यायधीशों को मिडिएटर की ट्रेनिंग के विषय पर ध्यान में कौंधा कि उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश टी एस ठाकुर ने हाल में ही कहा है कि अदालतों में लंबित मामलों को देखते हुए लॉ कमीशन ने रिकोमेंडेशन दी है कि दस लाख की आबादी पर कम से कम 50 जज होने चाहिए। लेकिन कम जज होने के कारण उन पर मामलों को बोझ लगातार बढता जा रहा है। ऐसे में ध्यान आया कि अगर जजों को मिडिएशन भी करना पडे तो यह उन पर अतिरिक्त बोझ होगा। दिमाग में चल रही खलबली से बैठा नहीं गया और प्रश्न पूछने के लिए खडा हो गया। न्यायमुर्ति मदन बी लोकुर ने समय न होने के बावजदू मुझे अपनी बात रखने की अनुमति दी। मैंने हिंदी में अपनी बात रखते हुए कहा कि मेरे जिला की आबादी 10 लाख है वहां पर 13 जज हैं। जजों को मिडिएटर बनाने से उन पर अतिरिक्त बोझ पडेगा। ऐसे में जजों की बजाय जिला तथा उपमंडल स्तर के अधिवक्ताओं को ही मिडिएटर के रूप में प्रशिक्षित किया जाए। मुझे मालूम नहीं है कि मेरी बात का क्या असर हुआ होगा। क्या पता सुनकर अनसुना ही कर दिया हो। लेकिन मुझे बहुत संतुष्टी हुई कि मैंने इस मीट में अपनी बात रखी। साथ ही बैठे पटना के मिडिएटर विनय कुमार ने कहा कि आपने बहुत अच्छा सवाल उठाया है। हालांकि बाद में केरल, चेन्नई और कर्नाटक से आए मिडिएटरों ने भी इस विषय पर मिलती जुलती बात रखी। सत्र में बिहार के मिडिएटर मांझी जी ने भी अपनी बात हिंदी में ही रखी। बात रखने के बाद वह विनय कुमार जी के पास आ कर बैठे तो उन्होने पूछा कि मेरा प्रश्न कैसा था। इस पर मेरा कहना था कि मांझी जी जब आप बोल रहे थे तो ऐसा लग रहा था कि मानो मगध बोल रहा है। जिस पर हम सबने खूब जोर का ठहाका लगाया। तीसरे सत्र की अध्यक्षता न्यायमुर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमुर्ति ए एम खानविलकर ने की। इस सत्र में मिडिएशन केन्द्रों की कार्यप्रणाली और प्रबंधन को लेकर चर्चा की गई। दोपहर बाद की चाय के बाद चौथे सत्र में न्यायमुर्ति मदन बी लोकुर व न्यायमुर्ति ए के सिकरी की अध्यक्षता में मिडिएशन के माध्यम से सफलतापुर्वक निस्तारित मामलों में रैफरल भेजने वाले न्यायिक अधिकारियों को यूनिट देने व प्रोत्साहित करने की चर्चा की गई। समापन सत्र में नालसा के सदस्य सचिव आलोक अग्रवाल ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए मुख्य अतिथि, विशेष अतिथि, सभी न्यायधीशों और देश भर से आए मिडिएटरों का धन्यावाद किया। कार्यक्रम का संचालन नालसा की निदेशक गीतांजली गोयल ने किया। कार्यक्रम में भाग ले रहे सभी प्रतिभागियों को न्यायमुर्ति अनिल आर दवे के आवास में रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया गया था। कार्यक्रम के बाद अतिविशिष्ट लोगों की कारों का काफिला निकलने के बाद डीआरडीओ भवन से इंडिया गेट की ओर प्रस्थान किया। राहुल को फोन पर बताया कि इंडिया गेट की ओर चल रहा हुं वहीं मिलते हैं। डीआरडीओ से राष्ट्रपति भवन होते हुए इंडिया गेट की ओर उस बडी सडक पर चल पडा जहां पर 26 जनवरी की परेड होती है। सडक के किनारे दिल्ली के युवक फुटबाल खेल रहे हैं। अभी इंडिया गेट पहुंचने ही वाला था कि सामने की ओर से राहुल की कार आ गयी। कार में बैठते ही राहुल ने पूछा कि कहां जाना है क्या जंतर मंतर ले चलुं। मेरी तो जैसे मन की हो आई और कहा कि जरूर वहां पर हौंडा के मजदूरों की हडताल में उन्हें समर्थन देना है। जंतर मंतर पहुंचने पर राहुल ने कहा कि पहले कुछ खा पी लेते हैं। राहुल और आफिस में काम करने वाले बिहार के कालू ने इडली-बडा लिया और मैंने मसाला डोसा। खा पीकर जंतर मंतर में हडताल कर रहे विभन्न पंडालों से गुजरते हुए हौंडा मजदूरों के पंडाल पर पहुंचे और अपना हिमाचल का परिचय देते हुए उनसे बातचीत शुरू की। तो पता चला कि यहां पर हिमाचल के भी मजदूर पिछले 7 दिनों से बिना कुछ खाये पिये अनिश्चितकालीन हडताल पर बैठे हैं। हिमाचल के कांगडा और हमीरपुर के दो मजदूर साथी वहां पर मिले। उनमें से एक ने बताया कि आज उसकी तबीयत कुछ खराब हो गई थी। दूसरा साथी ठीक है। उन्होने बताया कि हौंडा में कार्य कर रहे हिमाचल के करीब सौ लोगों को नौकरी से निकाला गया है। उन्होने बताया कि राजस्थान के हौंडा प्लांट में करीब तीन हजार लोगों को नौकरी से निकाला गया है। हमने इन साथियों के संघर्ष को सलाम करते हुए उन्हे हौंसला बंधाया कि आपके संघर्ष की जरूर जीत होगी। हम सभी आपके इस संघर्ष में आपके साथ हैं और हौंडा की इस करतूत को जग जाहिर करेंगे। पता चला है कि हौंडा सहित कई कंपनियों के लोग हिमाचल की विभिन्न आईटीआई में पलेसमैंट के लिए आते हैं और यहां के नवयुवकों को चुनकर उन्हें दो तीन साल तक नौकरी पर रखने के बाद उन्हें निकाल देते हैं। इस साजिश को बेनकाब किया जाना चाहिए जिससे प्रदेश के नौजवान इन कंपनियों के झांसे में आकर शोषण का शिकार न हों। उन्हें अपना विजिटिंग कार्ड देकर साथी ईच्छा पूर्ण सिंह (कांगडा) व जितेश हांडा के फोन नंबर लिये हैं। उनसे संपर्क जारी रहेगा। साथियों को बताया कि यहां पर गिटार बजाकर क्रांतीकारी गीत सुनाने वाले अभिनव सिन्हा जी का फेसबुक साथी हुं और उनकी पोस्टों से आपके संघर्ष के बारे में पता चला है। इस पर साथियों ने बताया कि वह यहां रोज आते हैं और अभी थोडी ही देर पहले यहां से गए हैं। अब जबकि यह संस्मरण लिख रहा हुं हौंडा के इन साथियों ने 20 दिन तक अनिश्चित कालीन हडताल करने के बाद इसे तोडकर अब क्रमिक हडताल शुरू की है। जो एक अच्छा कदम है। मजदूर साथियों का संघर्ष कामयाब हो इसी उम्मीद के साथ उन्हे क्रांतीकारी सलाम करते हुए राहुल भाई के साथ घर की ओर लौटना शुरू किया। रास्ते में लौटते हुए राहुल दिल्ली की व्युह रचना से भी जटिल सडकों के बारे में जानकारी देते हुए गंतव्य की ओर बढता जा रहा है। आफिस के कर्मी कालू को उसके घर के चौक पर छोडने के बाद आम्रपाली के नवें फ्लोर पर पहुंचे। फ्रेश होने के बाद राहुल भाई और ऋचा भाभी के साथ नीचे मार्केट में आकर कुछ खरीददारी और चहलकदमी की। रात का खाना खाने के बाद दिन भर की गंभीर चर्चाओं से थके दीमाग ने शरीर को कब नींद के हवाले कर दिया पता ही नहीं चला। सुबह नहा धो कर तैयार हुए और खाना खाकर घर से निकल पडे। राहुल भाई और ऋचा भाभी के साथ नये बन रहे कुछ फ्लैट देखे। इसके बाद हम दरियागंज पहुंचे जहां पर किताबों की लंबी चौडी मार्केट घूमी। लेकिन काम की कोई किताब न मिल सकी। यहीं से जामा मस्जिद होते हुए चांदनी चौक पहुंचे। लालकिला देखकर 15 अगस्त याद आ गया। चांदनी चौक के बाजार में जल्दबाजी में बच्चों के लिए कुछ सामान खरीदा। राहुल अमृसरी नॉन खिलाने के लिए वहां की पुरानी दुकान में ले गया। राहुल बताता है कि यहां पर सस्ते होटल मिल जाते हैं और खाने पीने की बहुत पुरानी दुकानें हैं। समय की कमी के कारण चांदनी चौक के छोटे से हिस्से में से गुजर सका और शीशगंज गुरूद्वारा, जामा मस्जिद और लाल किला को बाहर से निहार पाया। यात्रा के अंतिम भाग में राहुल की गाडी मजनू का टिला की ओर बढ रही है। वहां पहुंच कर पंजाब की एक वोल्वो बस में साधारण बस के किराए पर ही सीट मिल जाती है। राहुल भाई और ऋचा भाभी अगली बार परिवार सहित दिल्ली आने का वादा लेते हैं और मैं उन्हे इस यात्रा को बहुत सुखद और सुगम बनाने के लिए उनका दिल से आभार, शुक्रिया और अभिवादन कर मंडी वापिसी की यात्रा आरंभ करता हुं। आरामदेह बस कब कुरूक्षेत्र के नजदीक पहुंचती है पता ही नहीं चलता। बस वहां एक शानदार मोटल के बाहर खडी होती है। मोटल की भारी चकाचौंध देख कर इसके भीतर घबराते हुए प्रवेश करता हुं। मीनू पर नजर डालते ही लगता है कि यहां बहुत महंगा खाना है और वहां से उठकर चल देता हुं। बाहर आकर मोटल के ही परिसर में बनी फास्ट फूड की दूकान पर पाव भाजी व चाय पीकर भूख को शांत करता हुं। इसके बाद बस में गहरी नींद में पहुंच जाता हुं। इसके बाद नींद खुलती है तो पता चला है कि बस स्वारघाट में कुछ देर के लिए सवारियों के शौच आदि के लिए रूकी है। आगे की करीब तीन घंटे की यात्रा फिर से नींद के आगोश में ही पूरी हो जाती है सिवाय सुंदरनगर की झील में झिलमिलाती रोशनियों की झलक भर देखने के। इसके बाद तब आंख खुलती है जब कंडक्टर आवाज देता है - मंडी की सवारियां तैयार हो जाओ।
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