मंडी। हिमाचल प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम 2006 (एफआरए) को अमली जामा पहनाए जाने तक वन व राजस्व विभाग के कब्जा हटाओ अभियान व वन भूमि के हस्तांतरण की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए। इस बारे में जिला परिषद तथा वन अधिकार जिला स्तरीय समिति के सदस्य संत राम ने प्रदेश सरकार के मुखय सचिव व राज्य स्तरीय निगरानी समिति के अध्यक्ष को उपायुक्त मंडी के माध्यम से ज्ञापन प्रेषित किया है। संत राम ने मांग की है कि सभी वन निवासियों के वन अधिकारों के दावों को वन अधिकार कानून के अनुसार अमली जामा पहनाया जाए। उन्होने कहा कि इस बीच अवैध कब्जे हटाने की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए तथा लोगों के घरों के बिजली पानी के काटे गए कनेक्शनों को बहाल किया जाए। संत राम ने मांग की है कि वन अधिकार कानून की जागरूकता के लिए अभियान चलाया जाये तथा सरकार के संबद्ध विभागों को सक्रियता के साथ इस पूरे अभियान में शामिल किया जाए। उन्होने कहा कि उप मण्डल, जिला स्तर की समितियों व वन अधिकार समितियों को प्रशिक्षण दिया जाए। इसके अलावा प्रदेश में जिन वन अधिकारों को बर्तनदारी के रूप में वन तथा राजस्व दस्तावेजों में दर्ज किया गया है उन्हें वन अधिकार कानून के तहत मान्यता दी जाए। वहीं पर ग्राम सभाओं से दावे पेश करने की प्रक्रिया को भी तीव्र किया जाए। उन्होने कहा कि आदिवासी व गैर आदिवासी क्षेत्रों में प्रस्तुत दावों के सत्यापन व मान्यता की प्रक्रिया अभी तक लंबित पड़ी है, जिसे तुरंत पूरा किया जाए। संत राम ने कहा कि इस प्रक्रिया का कानूनन संचालन न होने व वन विभाग के दबाव के कारण प्रदेश के सभी वन अधिकार के दावेदार अपने दावे पेश नहीं कर पाए हैं। दावा पेश करने के लिए भय मुक्त वातावरण का निर्माण किया जाए तथा पूरे प्रदेश में फिर से वन अधिकार के दावे लेने की प्रक्रिया शुरू की जाए और लंबित पड़े दावों को निपटा कर वन अधिकार पत्र वन निवासियों को सौंपे जाएं। उन्होने कहा कि वन संरक्षण व प्रबंध समितियों का गठन किया जाए। इन समितियों द्वारा वन प्रबंधन व संरक्षण के लिए नियम कायदे बनाए जाएँ तथा वन प्रबंध की योजना बनाई जाए । इसके अलावा वन अधिकार कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने व वन अधिकार प्रदान करने में अवरोध करने वाले अधिकारियों पर वैधानिक अवहेलना की कार्यवाही की जाए। संत राम ने कहा कि मंडी जिला प्रशासन की ओर से वर्ष 2014-15 में जिला में कोई दावे न होने के ग्राम सभा के पारित प्रस्तावों की जांच की जाए। प्रदेश में आदिवासी विकास विभाग जो इस कानून को लागू करने की नोडल एजेंसी है की पहुंच पुरे प्रदेश में न होने के कारण राजस्व विभाग को इस कानून को लागू करने का कार्य सौंपा जाए। इसके अलावा एफआरए कानून लागू करने के संदर्भ में सहमति बनाने के लक्ष्य से आम जनता, सभी राजनैतिक दलों और सामाजिक संगठनों से चर्चा की जाए।
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