Saturday, 27 August 2016




।। प्रार्थनाएँ बन्द करो।।
                                                               --ज्ञानेन्द्रपति
बन्द करो ये प्रार्थनाएँ
बच्चों के स्कूलों में होने वाली प्राथनाएँ
बच्चों की किताबों में छपने वाली प्रार्थनाएँ
बच्चों को याद करायी जाने वाली प्रार्थनाएँ
बन्द करो

सामन्तों के गढ़े हुए ईश्वर को
पूँजीपतियों के पोसे हुए ईश्वर को
अत्याचारियों के अत्याचारों को ढँकने वाले
ईश्वर को
अत्याचारों के खिलाफ जब जंग हुई है तेज़
इस विप्लव-वेला में भाग रहे ईश्वर को
बच्चों के मस्तिष्क में मत टिकाने दो पैर

बच्चों का मस्तिष्क है हमारी पृथ्वी का सबसे
उर्वर टुकड़ा
बच्चों का मस्तिष्क है हमारी पृथ्वी का भविष्य
बच्चों के मस्तिष्क में इस ईश्वर को मत
आने दो
उसे मत दो छुपने की जगह बच्चों के मस्तिष्क
में
उनकी बुद्धि पर विवेक पर हांफते हुए ईश्वर को
मत बैठने दो
उनके मस्तिष्क के पिछले हिस्से में थके हुए
ईश्वर को मत लेटने दो
उनकी सोचने वाली शिराओं पर काई की
तरह मत फैलाने दो सड़े हुए ईश्वर को
उनके मस्तिष्क में जहां अग्नि का बीज है
वहां मत रखने दो धूर्त ईश्वर को अपना
ठण्ड़ा काइयाँ हाथ

अत्याचार- अन्याय- शोषण- उत्पीड़न को
ढँकने
जुल्मों को ढँकने
उनकी उमर बढ़ाने के लिए
इस संसार में जिस पाखण्डी ईश्वर
ने अत्याचारों के बीच से लिया था जन्म

इस संसार से भाग रहे उस ईश्वर को
बच्चों के मस्तिष्क में मत टिकाने दो
पैर
बच्चों के मस्तिष्क में मत फैलाने दो पैर
बच्चों के मस्तिष्क के किसी एक कोने
में भी मत होने दो उसका प्रवेश

ये प्रार्थनाएँ बन्द करो
बच्चों के स्कूलों में होने वाली प्रार्थनाएँ बन्द
करो
बच्चों से गवायी जाने वाली प्रार्थनाएँ बन्द करो
बच्चों के हाथ मत जुडने दो
बच्चों के हाथ जो उठेंगे उन अत्याचारियों पर
करने अन्तिम चोट
जिनके आगे-आगे
उनकी छाया की तरह भाग रहा है उनका ईश्वर

---ज्ञानेन्द्रपति
...यह कविता सन 1997 में एचपीयू, समरहिल शिमला में डायरी के पन्नों पर अंकित की थी। आज इसे ब्लॉग में संजो रहा हुं।
...sameermandi.blogspot.com

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