मंडी। भले ही हिन्दी भाषा विश्व की तीसरी सबसे बडी भाषा बन गई है। लेकिन आलम यह है कि अभी तक उच्चतम न्यायलय और उच्च न्यायलयों में हिन्दी को मान्यता देने की दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाया है। हिन्दी राजभाषा दिवस पर यह कहना है जिला एवं सत्र न्यायलय में हिंदी में वकालत करने वाले अकेले अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा का। विगत 1999 से कार्यरत अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा विधि व्यवसाय का पूरा कार्य मसलन वाद, प्रतिवाद, पुर्ननिरिक्षण याचिकाओं को बनाने और अन्य कार्यवाहियों को देवनागरी हिन्दी में ही करते हैं। सुंदरनगर में उपमंडलीय न्यायिक दंडाधिकारी के रूप में तैनात डी एस खनाल के कार्यकाल के दौरान नरेन्द्र शर्मा को हिन्दी में कार्य करने के प्रेरणा मिली थी जो उनके लिए बहुमुल्य साबित हुई। हालांकि हिन्दी में कार्य करने के कारण उन्हें कई बार अडचनों का सामना भी करना पडा। लेकिन इसके बावजूद भी उन्होने हिममत न हारते हुए हिंदी में कार्य करना नहीं छोडा। हिन्दी भाषा के प्रशासनिक पहलुओं के बारे में नरेन्द्र बताते हैं कि अंग्रेजी शासन में पंजाब सरकार ने 18 जनवरी 1906 की अधिसूचना संखया 316 जारी की थी। जिसके तहत हिन्दी भाषी क्षेत्र के जिला न्यायलयों की भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता दी थी। जिसकी झलक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 345 में देखी जा सकती है। साल 1976 में सीपीसी में जिला न्यायलय के कार्य की भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता दी गई है। प्रदेश उच्च न्यायलय के न्यायमुर्ति एम आर वर्मा ने साल 2000 में एक अपील के फैसले में जिला न्यायलय की भाषा हिन्दी घोषित की है। नरेन्द्र के अनुसार पंजाब भू राजस्व नियम 44 के तहत एसडीएम, तहसीलदार को हिन्दी में निर्णय करने के निर्देश हंै। भारतीय संविधान व राजभाषा अधिनियम की धारा 7 के तहत हिन्दी भाषी क्षेत्र के राज्य उतर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने उच्च न्यायलय में हिन्दी भाषा को राष्ट्रपति की मंजुरी से मान्यता दिलवायी है। लेकिन हिन्दी भाषी राज्य होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश की सरकार ने प्रदेश उच्च न्यायलय में हिन्दी की मान्यता को लेकर आज तक कोई पहल नहीं की है। इसके लिए सरकार की ओर से केन्द्र सरकार को राष्ट्रपति से मंजूरी लेने के लिए कभी कोई अनुरोध नहीं किया गया। अधिवक्ता नरेन्द्र शर्मा का कहना है कि प्रदेश सरकार को राष्ट्रपति से मंजूरी के लिए आवेदन करना चाहिए जिससे प्रदेश उच्च न्यायलय में भी हिन्दी को मान्यता मिल सके। उल्लेखनीय है कि हिंदी में कार्य करने वाले अकेले अधिवक्ता होने के नाते नरेन्द्र को हिमाचली एक्सीलेंसी अवार्ड से भी सममानित किया चुका है। हिंदी दिवस के अवसर पर नरेन्द्र का कहना है कि भारतीय संविधान की धारा 348 के तहत उच्चतम न्यायलय और सभी उच्च न्यायलयों में हिंदी को मान्यता दी जानी चाहिए। जिससे हिंदी भाषा सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय भाषा का प्रतीक बन सके और संविधान निर्माताओं का हिंदी को राजभाषा बनाने का सपना साकार हो सके।
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