मंडी। दुराचार का अभियोग साबित न होने पर अदालत ने एक आरोपी को बरी करने का फैसला सुनाया है। अदालत ने आरोपी पर संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित न होने पर उसे बरी कर दिया। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश पदम सिंह ठाकुर के न्यायलय ने सरकाघाट उपमंडल के बगगी (खाहन) निवासी सुनील कुमार उर्फ रिन्टु पुत्र जगदीश चंद के खिलाफ भादंस की धारा 376 और 452 के तहत अभियोग साबित न होने पर उसे बरी करने के आदेश दिये। अभियोजन पक्ष के अनुसार पीडिता अपने पति के साथ सरकाघाट थाना में आई थी जहां उसके पति ने प्राथमिकी दर्ज करवाई थी कि 22 अप्रैल 2008 को काम पर चला गया था। इसके बाद जब वह 24 अप्रैल को अपने घर वापिस लौटा तो उसकी गुंगी पत्नी पीडिता ने इशारों से बताया कि 22 अप्रैल को जब वह अपने कमरे में बच्चों के साथ मौजूद थी तो आरोपी ने कमरे के दरवाजे पर लात मार कर घर में प्रवेश किया और उसके साथ दुराचार की घटना को अंजाम दिया। सरकाघाट थाना पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपी को हिरासत में लेने के बाद अदालत में अभियोग चलाया था। अभियोजन पक्ष की ओर से इस मामले में 12 गवाहों के बयान दर्ज करवाए गए। जबकि गुंगी पीडिता का बयान अदालत में सपीच इमपेयरमेंट टीचर के माध्यम से दर्ज किया गया। बचाव पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता आर के शर्मा का कहना था कि पीडिता सहित अभियोजन के अन्य गवाहों ने विरोधाभासी बयान दिये हैं जिससे आरोपी के खिलाफ अभियोग साबित नहीं होता है। अदालत ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से इस मामले में प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपी के खिलाफ संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित नहीं होता। ऐसे में अदालत ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए उसे पीडिता के मकान में अनाधिकृत प्रवेश करके उससे दुराचार करने के अभियोग से बरी करने का फैसला सुनाया है। Thursday, 11 July 2013
दुराचार का आरोपी साक्ष्यों के अभाव में बरी
मंडी। दुराचार का अभियोग साबित न होने पर अदालत ने एक आरोपी को बरी करने का फैसला सुनाया है। अदालत ने आरोपी पर संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित न होने पर उसे बरी कर दिया। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश पदम सिंह ठाकुर के न्यायलय ने सरकाघाट उपमंडल के बगगी (खाहन) निवासी सुनील कुमार उर्फ रिन्टु पुत्र जगदीश चंद के खिलाफ भादंस की धारा 376 और 452 के तहत अभियोग साबित न होने पर उसे बरी करने के आदेश दिये। अभियोजन पक्ष के अनुसार पीडिता अपने पति के साथ सरकाघाट थाना में आई थी जहां उसके पति ने प्राथमिकी दर्ज करवाई थी कि 22 अप्रैल 2008 को काम पर चला गया था। इसके बाद जब वह 24 अप्रैल को अपने घर वापिस लौटा तो उसकी गुंगी पत्नी पीडिता ने इशारों से बताया कि 22 अप्रैल को जब वह अपने कमरे में बच्चों के साथ मौजूद थी तो आरोपी ने कमरे के दरवाजे पर लात मार कर घर में प्रवेश किया और उसके साथ दुराचार की घटना को अंजाम दिया। सरकाघाट थाना पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपी को हिरासत में लेने के बाद अदालत में अभियोग चलाया था। अभियोजन पक्ष की ओर से इस मामले में 12 गवाहों के बयान दर्ज करवाए गए। जबकि गुंगी पीडिता का बयान अदालत में सपीच इमपेयरमेंट टीचर के माध्यम से दर्ज किया गया। बचाव पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता आर के शर्मा का कहना था कि पीडिता सहित अभियोजन के अन्य गवाहों ने विरोधाभासी बयान दिये हैं जिससे आरोपी के खिलाफ अभियोग साबित नहीं होता है। अदालत ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से इस मामले में प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपी के खिलाफ संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित नहीं होता। ऐसे में अदालत ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए उसे पीडिता के मकान में अनाधिकृत प्रवेश करके उससे दुराचार करने के अभियोग से बरी करने का फैसला सुनाया है।
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