Friday, 31 January 2014

बीमा कंपनी को 1,76,950 रूपये मुआवजा अदा करने के आदेश


मंडी। जिला उपभोक्ता फोरम ने बीमा कंपनी को उपभोक्ता के पक्ष में 1,76,950 रूपये की मुआवजा राशि ब्याज सहित अदा करने का फैसला सुनाया। कंपनी की सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई परेशानी के बदले 5000 रूपये हर्जाना और 2000 रूपये शिकायत व्यय भी अदा करने के आदेश दिये। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष जे एन यादव और सदस्य रमा वर्मा ने सदर तहसील के सिहन (गागल) गांव निवासी देविन्द्रा देवी पत्नी इंद्र देव की शिकायत को उचित मानते हुए नेशनल इंश्योरेंस कंपनी को उक्त मुआवजा राशि 9 प्रतिशत ब्याज दर सहित अदा करने के आदेश दिये। अधिवक्ता लोकेश कपूर के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने अपने वाहन को कंपनी के पास बीमाकृत करवाया था। बीमा अवधि के दौरान ही वाहन एक सडक दुर्घटना में बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया। उपभोक्ता ने दुर्घटना के बारे में रपट दर्ज करवाई थी। इसके बाद उपभोक्ता ने वाहन की मुरममत में खर्च की गई राशि के बिल सहित अन्य दस्तावेज कंपनी को सौंप कर मुआवजा तय करने को कहा था। लेकिन कंपनी ने इस आधार पर मुआवजा खारिज कर दिया कि वाहन के मालिक की बीमा करवाने से पहले ही मृत्यु हो गई थी। ऐसे में उपभोक्ता ने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि बीमा कंपनी यह साबित करने में नाकाम रही कि वाहन मालिक के देहांत के बाद उनके नाम पर प्रीमियम वसूल करके पालिसी का नवीनीकरण कैसे किया गया था। फोरम ने कहा कि कंपनी ने यह तथ्य जानते हुए कि वाहन का मालिक इंद्र देव का देहांत हो गया है लेकिन इसके बावजूद भी उपभोक्ता से प्रीमियम वसूल करके पालिसी का नवीनीकरण किया गया था। ऐसे में बीमा कंपनी का मुआवजा खारिज करना सेवाओं में कमी को दर्शाता है। जिसके चलते फोरम ने बीमा कंपनी को उक्त मुआवजा राशि ब्याज सहित अदा करने के अलावा सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई असुविधा और परेशानी के बदले हर्जाना व शिकायत व्यय भी अदा करने का फैसला सुनाया।

Thursday, 30 January 2014

उपभोक्ता को नया मोबाइल 20 दिनों में देने के आदेश


मंडी। जिला उपभोक्ता फोरम ने उपभोक्ता के पक्ष में नया मोबाइल फोन 20 दिनों के भीतर देने का फैसला सुनाया। ऐसा न करने पर विक्रेता और निर्माता को मोबाईल की कीमत 5900 रूपये ब्याज सहित अदा करनी होगी। वहीं पर उनकी सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई मानसिक यंत्रणा के बदले 2000 रूपये हर्जाना और 2000 रूपये शिकायत व्यय भी अदा करने के आदेश दिये। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष जे एन यादव और सदस्य रमा वर्मा ने सुंदरनगर के सलाह पेट्रोल पंप के समीप रहने वाले नरेश कुमार पुत्र राम लाल की शिकायत को उचित मानते हुए मंडी के महामृत्युंजय मंदिर के नजदीक स्थित एशियन कमयुनिकेशन, नयी दिल्ली स्थित इनफोर्मेटिक लिमिटेड और सुंदरनगर के भोजपुर स्थित मयुजिक वल्र्ड के नितिन को उपभोक्ता के पक्ष में नया मोबाइल फोन 20 दिनों में देने के आदेश दिये। ऐसा न करने पर मोबाइल की मुल्य राशि 9 प्रतिशत ब्याज सहित अदा करनी होगी। अधिवक्ता के पी शर्मा के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने भोजपुर में विक्रेता से माइक्रो मैक्स ए-87 मोबाइल फोन 23 नवंबर 2012 को 5900 रूपये में खरीदा था। लेकिन एक माह के भीतर ही मोबाइल फोन ने काम करना बंद कर दिया। ऐसे में उपभोक्ता ने विक्रेता से संपर्क करके शिकायत की थी। विक्रेता ने उन्हे जॉब कार्ड जारी करके उनका मोबाइल फोन एशियन कमयुनिकेशन के पास भिजवाया था। लेकिन न तो मोबाइल रिपेयर के बाद उनको लौटाया गया न ही इसके बदले में उन्हे कोई और फोन दिया गया। जिसके चलते उन्होने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि विक्रेता और निर्माता की ओर से यह कहा गया कि वह उपभोक्ता को बदले में मोबाइल देना चाहते थे लेकिन उपभोक्ता ने इंकार कर दिया। फोरम ने इस तर्क को असत्य और अविश्वसीय मानते हुए कहा कि उपभोक्ता ने नया मोबाइल लेने से इंकार कर दिया हो यह अविश्वसनीय है। ऐसे में फोरम ने विक्रेता और निर्माता की सेवाओं में कमी आंकते हुए नया फोन 20 दिनों में दिनों के आदेश दिये। इसके अलावा उनकी सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई असुविधा और परेशानी के बदले हर्जाना और शिकायत व्यय भी अदा करने का फैसला सुनाया।

Wednesday, 29 January 2014

संगीतकार जयप्रकाश के निधन पर कला प्रेमियों की श्रद्धांजली


मंडी। हिमाचल प्रदेश के प्रतिभाशाली संगीतकार व गायक जयप्रकाश (जेपी) के देहावसान पर कला प्रेमियों ने शोक व्यक्त किया है। सुंदरनगर के रहने वाले जयप्रकाश (40) का बीमारी के कारण इसी सप्ताह नागपुर में देहांत हो गया था। जेपी के नाम से मशहुर जयप्रकाश गायन और वादन दोनों में महारत रखते थे। जेपी ने क्लासिकल, सेमीक्लासिकल, गज़ल, भजन गायन और हरमोनियम व तबला वादन की संगीत साधना अपने गुरू डा. गंगा राम के सानिध्य में प्राप्त की। अपनी गायकी और वादन में उन्होने संगीत के क्षेत्र में खूब यश कमाया और वह संगीत प्रेमियों के दिलों में बसते थे। जेपी के देहांत की सूचना मिलते ही संगीत के क्षेत्र में शोक की लहर दौड गई है। प्रदेश भर से उन्हे शोक संदेश प्रेषित किये जा रहे हैं। जयप्रकाश के निधन पर समीर कश्यप, इंद्र पाल सिंह इंदू, उमेश भारद्वाज, कपिल शर्मा, नवनीत शर्मा, प्रत्युष गुलेरी, राकेश कुमार, विनायक शर्मा, संजीव कौशल, जितेन्द्र रघुवंशी, चेत राम, रितेश चौहान, रवि कुमार सांखयान, शशी भूषण पुरोहित, रजनी बाला, शैलेष दीक्षित, संगीता कौशल, भूपेन्द्र जमवाल भूपी, दिनेश चौधरी, रविन्द्र राणा, नवीन कुमार, शशी कांत द्विज, विजय शर्मा, रमेश चोपडा, यजनीश कुमार, गुरबचन सिंह, मुनीश ठाकुर, मनीश शर्मा, संजीव शर्मा, संजय ठाकुर, प्रियव्रत कश्यप, संदीप सांखयान, अरूण जान सिंह, विनोद कुमार भावुक, राकेश कुमार, रूपेश परमार, सतीश कुमार जस्पा, राजतिलक शर्मा, शिव शर्मा, नारायण ठाकुर, नरेन्द्र ठाकुर, जय कुमार भारदवाज, अरूण शर्मा, अदीप सोनी, नवीन शर्मा, सुरेन्द्र ठाकुर, प्रवीण भारद्वाज, अशोक शर्मा, प्रकाश ठाकुर, जय वर्धन, मनीष कपूर, लवण ठाकुर, यशकांत कश्यप, बलविन्द्र सोढी, हंसराज सैनी, शमीम शेख, मंजू, बिट्टू, तरूण नीकू, शैलजा शर्मा, नरेन्द्र ठाकुर, ज्योति बिष्ट, सन्नी कश्यप, पारस वैद्या और राजेश जोशी ने उन्हे विनम्र श्रद्धांजली अर्पित की है।

Tuesday, 28 January 2014

चैक बाउंस अपील में सजा का फैसला निरस्त


मंडी। चैक बाउंस के मामले में अदालत ने आरोपी की अपील को स्वीकारते हुए सजा और जुर्माने के फैसले को निरस्त करने का फैसला सुनाया है। अदालत ने आरोपी की जमा करवाई गई जुर्माना राशि को भी लौटाने के आदेश दिये हैं। अतिरिक्त सत्र न्यायधीश पदम सिंह ठाकुर के न्यायलय ने अपीलकर्ता पैलेस मुहल्ला स्थित महाजन मेडिकल एजेंसी के तरूण महाजन पुत्र मनोहर लास महाजन की अपील को स्वीकारते हुए निचली अदालत के सजा और जुर्माने के फैसले को निरस्त करने का फैसला सुनाया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि शिकायतकर्ता यह साबित करने में असफल रहा है कि आरोपी ने यह चैक किसी कानूनन देनदारी के लिए दिया था। जबकि आरोपी की ओर से यह साबित किया गया है कि यह चैक बिना किसी कानूनी देनदारी के बतौर सिक्योरिटी दिया गया था। अधिवक्ता राजेश शर्मा और प्रेम सिंह राणा के माध्यम से अदालत में दायर अपील में आरोपी ने न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी कोर्ट नंबर दो के 27 अप्रैल 2012 के फैसले को चुनौती दी गई थी। निचली अदालत ने मंडी के वार्ड नंबर चार निवासी जितेन्द्र कुमार सोनी पुत्र श्याम लाल सोनी की शिकायत के फैसले में आरोपी के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट अधिनियम की धारा 138 के तहत अभियोग साबित होने पर एक माह के साधारण कारावास और 2,70,000 रूपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। आरोपी ने इस फैसले को अपील में चुनौती दी थी। अपील में आरोपी का कहना था कि उनकी शिकायतकर्ता के प्रति कोई देनदारी नहीं थी। अपीलकर्ता आरोपी के मुताबिक उनका शिकायतकर्ता के साथ अनुबंध हुआ था जिसमें शिकायतकर्ता संकन गार्डन में स्थित अपनी शॉप नंबर 110 दवाईयों की दुकान के लिए देने को सहमत हुआ था। आरोपी को दुकान की पगडी के लिए 2,70,000 रूपये देने थे। शिकायतकर्ता ने यह दुकान खाली करके आरोपी को सौंपनी थी जिसकी एवज में आरोपी ने उन्हे दो चैक बतौर सिक्योरिटी जारी किये थे। शिकायतकर्ता समझौते पर कायम नहीं रह सका ऐसे में आरोपी ने बैंक में पेमैंट स्टॉप करवा दी थी। जबकि शिकायतकर्ता का कहना था कि उसने यह राशि बतौर ऋण आरोपी को दी थी जिसके बदले यह चैक जारी किये थे। अदालत ने अपीलकर्ता आरोपी की अपील को स्वीकारते हुए निचली अदालत के सजा और जुर्माने के फैसले को निरस्त करने का आदेश दिया। जबकि आरोपी द्वारा अपील करते समय जमा करवाई गई राशि भी वापिस लौटाने के आदेश दिये हैं।

संगीत छात्र संगठन की कार्यकारिणी गठित


मंडी। यहां के भगवान मुहल्ला स्थित संगीत सदन में जिला स्तरीय संगीत छात्र संगठन का गठन किया गया। जिला महिला सेल की प्रभारी लतेश की अध्यक्षता में संगठन का गठन हुआ और कार्यकारिणी चयनित की गई। जिसमें उमेश भारद्वाज को संगठन का प्रधान, चितरंजन महासचिव, लतेश कश्यप वरिष्ठ उपप्रधान लतेश कश्यप, ईशा कोषाध्यक्ष और समीर कश्यप को प्रेस सचिव चुना गया है। इसके अलावा कार्यकारिणी सदस्य के रूप में नंदिनी, रश्मि, भीम सेन, नरेन्द्र, संजय कुमार, कंवलजीत सिंह, प्रवीण और सुशील को चयनित किया गया है। प्रेस सचिव ने बताया कि यह हास्यास्पद है कि संगीत के छात्रों को इस विषय को पढने का मौका पहली बार बीए प्रथम में मिलता है। जबकि दस जमा दो और दसवीं तक यह विषय स्कूलों में पढाया ही नहीं जाता है। जिससे इस विषय में रूची रखने वाले छात्रों का समुचित विकास नहीं हो रहा है। संगठन ने मांग की है कि दस जमा दो तक की कक्षाओं में भी संगीत को अनिवार्य विषय के रूप में पढाया जाए। हालांकि कई पाठशालाओं में संगीत अध्यापक कार्य भी कर रहे हैं। लेकिन अधिकांश पाठशालाओं में संगीत शिक्षकों के पद रिक्त पडे हुए हैं। जबकि निजी स्कूलों में संगीत शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है। इसी तरज पर संगीत को दस जमा दो तक की कक्षाओं में भी नियमित विषय बना कर पढाया जाए और छात्रों के समुचित विकास के लिए संगीत शिक्षकों की तैनाती की जाए। संगीत छात्रों के समक्ष आने वाली कठिनाइयों के मुददों को लेकर आवाज बुलंद करने के मकसद से संगठन का गठन किया गया है।

विप्लव ठाकुर को राज्यसभा टिकट देने पर सराज कांग्रेस में खुशी


 मंडी। प्रदेश से राज्यसभा का टिकट विप्लव ठाकुर को देने पर सराज कांग्रेस ने खुशी जाहिर की है। सिराज कांग्रेस ने राष्ट्रिय अध्यक्ष सोनिया गांधी, मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खु का यह उचित निर्णय लेने पर आभार व्यक्त किया है। सराज ब्लाक कांग्रेस के विशेष आमंत्रित सदस्य विजय पाल सिंह ने कहा कि विप्लव ठाकुर की उममीदवारी से आने वाले लोकसभा चुनावों में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस और अधिक सुदृढ होकर उभरेगी। 

Saturday, 25 January 2014

विक्रेता को नयी मशीनरी 20 दिनों में देने के आदेश


मंडी। जिला उपभोक्ता फोरम ने विक्रेता को उपभोक्ता के पक्ष में नयी मशीनरी 20 दिनों में निशुल्क देने का फैसला सुनाया। ऐसा न करने पर विक्रेता को मशीनरी की मूल्य राशि 1,20,750 रूपये ब्याज सहित लौटाने के आदेश दिये। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष जे एन यादव और सदस्य रमा वर्मा ने जिला कुल्लू के आनी निवासी ब्रिकम चंद पुत्र दतु राम की शिकायत पर फैसला सुनाते हुए नेरचौक में स्थित विक्रेता सोम आटो ट्रेडर्ज को नयी मशीनरी 20 दिन में न बदलने पर मशीनरी की मूल्य राशि 9 प्रतिशत ब्याज दर सहित अदा करने के आदेश दिये। फोरम ने विक्रेता की सेवाओं में कमी के कारण पहुंची मानसिक यंत्रणा और परेशानी के बदले उपभोक्ता के पक्ष में 3000 रूपये हर्जाना और 2000 रूपये शिकायत व्यय भी अदा करने का आदेश दिया। अधिवक्ता दिनेश शर्मा के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने मई 2012 में विक्रेता से 1,20,750 रूपये अदा करके कार वॉशर उपकरण सहित अन्य मशीनरी खरीदी थी। उपभोक्ता ने यह उपकरण अपने औट स्थित सर्विस स्टेशन में लगाए थे। लेकिन कुछ ही समय के भीतर मशीनरी में खराबी आ गई। जिस पर उपभोक्ता ने विक्रेता को संपर्क किया और उनसे खराबी दूर करने की प्रार्थना की थी। लेकिन विक्रेता की ओर से कोई कार्यवाही न होने पर उन्होने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। शिकायत के फैसले में फोरम ने कहा कि विक्रेता ने यह माना है कि उपभोक्ता ने यह मशीनरी उनसे खरीदी थी लेकिन उनके मुताबिक यह ठीक काम कर रही है। हालांकि शिकायत के विचाराधीन रहने के दौरान भी विक्रेता ने मशीनरी को चैक करवाने के लिए मैकेनिक भेजकर रिर्पोट पेश करने की जरूरत नहीं समझी। विक्रेता फोरम के समक्ष परचेस बॉचर प्रस्तुत नहीं कर सका जिससे बेची गई मशीनरी के नये या पुराने होने के बारे में साबित होना था। ऐसे में फोरम ने पुरानी मशीनरी बेचने को सेवाओं में कमी करार देते नयी मशीनरी 20 दिनों में देने के अलावा हर्जाना और शिकायत व्यय भी अदा करने का फैसला सुनाया।

Friday, 24 January 2014

जिला में सात लीगल एड क्लीनिकों का शुभारंभ


मंडी। जिला के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को न्याय घर द्वार सुलभ करवाने के लिए शुक्रवार को 7 लीगल एड क्लीनिकों का शुभारंभ हुआ। राष्ट्रिय विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष उच्चतम न्यायलय के न्यायमुर्ति आर एम लोढा वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से देश भर के क्लीनिकों का शुभारंभ किया। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष एस सी कैंथला ने शुक्रवार को यहां की तल्याहड पंचायत में आयोजित एक कार्यक्रम में लीगल एड क्लीनिक का विधिवत शुभारंभ किया। इस अवसर पर संबोधित करते हुए उन्होने कहा कि राष्ट्रिय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के निर्देशों के तहत जिला न्यायलय सहित सभी उपमंडलों में पांच हजार से अधिक आबादी वाले गांवों में सात लीगल एड क्लीनिक शुरू किये गए हैं। उन्होने बताया कि लीगल एड क्लीनिक लोगों को न्याय सुलभ करवाने के उदेश्य से खोले जा रहे हैं जिससे उन्हें घर दवार न्याय हासिल हो और कोई भी व्यक्ति न्याय हासिल करने से वंचित न रह सके। उन्होने बताया कि जिला की पधर तहसील में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश पदम सिंह ठाकुर, जोगिन्द्रनगर के लोअर चौंतडा में न्यायिक अधिकारी विवेक खेनाल , सरकाघाट के नबाही में विवेक शर्मा, गोहर के चैलचौक में मोहित बंसल, सुंदरनगर के महादेव में रणजीत सिंह, करसोग के अपर करसोग में सुर्य प्रकाश ने इन क्लीनिकों का शुभारंभ किया। तल्याहड पंचायत में क्लीनिक शुरू करने के लिए आयोजित क्रार्यक्रम में सदर उपमंडल के रिटेनर लॉयर अधिवक्ता आकाश शर्मा ने क्लीनिक के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि लोगों को न्याय मुहैया करवाने और मार्गदर्शन करने के लिए हर मंगलवार को रिटेनर लॉयर, पैरा लीगल वालंटियर मनीष कटोच और जया कुमारी दिन भर लोगों की सहायता के लिए मौजूद रहेंगे। लीगल एड क्लीनिक के लिए तल्याहड पंचायत का चयन करने के लिए पंचायत प्रधान अमित गुलेरिया ने जिला एवं सत्र न्यायधीश का आभार व्यक्त किया। इस मौके पर बलबीर शर्मा, कर्म सिंह गुलेरिया, उजाला पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्य, अधिवक्ता विनोद ठाकुर व समीर कश्यप और तल्याहड पंचायत के स्थानिय वासी मौजूद रहे।

सेहली पंचायत के प्रधान का चुनाव निरस्त


मंडी। सरकारी भूमि पर अतिक्रमण साबित होने पर अदालत ने सदर उपमंडल की ग्राम पंचायत सेहली के प्रधान का चुनाव निरस्त करने का फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि उक्त प्रधान चुनाव में निर्वाचित होने की पात्रता नहीं रखता था। इसके अलावा प्रधान पर उनका नामांकन गल्त ढंग से प्राप्त करने से इस पद का चुनाव प्रभावित हुआ है। उपमंडलाधिकारी (सिविल) सदर शुभ करण सिंह के न्यायलय ने उपतहसील कोटली के सेहली निवासी हिममत राम पुत्र दुर्गा की चुनाव याचिका को स्वीकारते हुए ग्राम पंचायत सेहली के प्रधान भूरी सिंह पुत्र अच्छर सिंह का निर्वाचन निरस्त करने का फैसला सुनाया। उपमंडलाधिकारी ने अपने फैसले में कहा कि उक्त प्रधान का सेहली मुहाल के खसरा नंबर 900 में स्थित 5-5-7 बीघा सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा पाया गया है। जिसके कारण वह प्रधान पद के चुनाव में निर्वाचित होने की पात्रता नहीं रखता था। इतना ही नहीं उक्त प्रधान का नामांकन पत्र गल्त ढंग से स्वीकार करने के कारण प्रधान पद का चुनाव बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। याचिकाकर्ता हिममत राम के मुताबिक उन्होने तथा अन्य प्रत्याशियों ने ग्राम पंचायत सेहली के प्रधान पद का चुनाव लडा था। इस चुनाव के लिए 30 दिसंबर 2010 को मतदान हुआ था और इसी दिन निकले परिणाम में भूरी सिंह को निर्वाचित घोषित कर दिया गया था। याचिकाकर्ता ने इस चुनाव परिणाम को चुनाव याचिका के माध्यम से चुनौती दी थी। याचिककर्ता का कहना था कि उक्त प्रधान ने सरकारी भूमि पर कब्जा कर रखा है जिसके कारण वह चुनाव लडने की पात्रता नहीं रखता था। अदालत ने याचिकाकर्ता के तर्कों को स्वीकारते हुए ग्राम पंचायत सेहली के प्रधान का निर्वाचन निरस्त करने का फैसला सुनाया। यह फैसला अपील की अवधि समाप्त होने के बाद अमल में लाया जाएगा।

Thursday, 23 January 2014

कातिलाना हमले के दो आरोपियों को 7-7 साल कठोर कैद


मंडी। कातिलाना हमला करने के दो आरोपियों को अदालत ने सात-सात साल के कठोर कारावास और दस-दस हजार रूपये जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया है। आरोपियों के निश्चित समय में जुर्माना अदा न करने पर उन्हे एक-एक साल के अतिरिक्त कठोर कारावास की सजा भुगतनी होगी। अतिरिक्त सत्र न्यायधीश पदम सिंह ठाकुर के न्यायलय ने सुंदरनगर सर्किट बेंच के दौरान सुनाए फैसले में आरोपी मलोह गांव निवासी पुष्प राज पुत्र हरि राम और उसके भाई राज कुमार के खिलाफ भादंस की धारा 307, 341, 506, और 323 के तहत अभियोग साबित होने पर क्रमश: 7 वर्ष और छह-छह माह के कठोर कारावास और क्रमश: 10,000 रूपये और एक-एक हजार रूपये जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना राशि समय पर अदा न करनी की सूरत में उन्हे एक-एक वर्ष के अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी। ये सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। अभियोजन पक्ष के अनुसार 24 अप्रैल 2012 को मलोह गांव में शादी के आयोजन में आरोपियों का स्थानिय वासी कर्म सिंह के साथ झगडा शुरू हो गया। इसी दौरान आरोपी राजकुमार ने कर्म सिंह को पकड लिया जबकि आरोपी पुष्प राज ने उस पर लकडी से प्रहार किया। जिससे कर्म सिंह गंभीर रूप से घायल हो गया और अभी तक कौमा की हालत में है। कर्म सिंह के भाई धनी राम की शिकायत पर सुंदरनगर थाना पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज करके अदालत में अभियोग चलाया था। अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए सहायक लोक अभियोजक कुलभूषण गौतम ने 15 गवाहों के बयान कलमबंद करवा कर मामले को साबित किया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपियों के खिलाफ कातिलाना हमला करने, रास्ता रोक कर मारपीट करने और जान से धमकी देने का अभियोग संदेह की छाया से दूर साबित हुआ है। ऐसे में अदालत ने आरोपियों को उक्त कारावास और जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया है।

छपरयुट


हियुंदा री बरखे लाई कबहली हे झडी
छपरयुट बोलहांई आज ता हाउंए बडी...

Wednesday, 22 January 2014

वाहन विक्रेता को मार्जिन मनी और एक लाख हर्जाना अदा करने के आदेश


मंडी। जिला उपभोक्ता फोरम ने विक्रेता को उपभोक्ता के वाहन की 1,70,000 रूपये मार्जिन मनी ब्याज सहित लौटाने का फैसला सुनाया। इसके अलावा विक्रेता की सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई मानसिक परेशानी के बदले 1,00,000 रूपये हर्जाना और 2000 रूपये शिकायत व्यय भी अदा करने के आदेश दिये। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष जे एन यादव और सदस्य रमा वर्मा ने लडभडोल तहसील के भ्राण (ऊटपुर) निवासी सपना देवी पत्नी संजय कुमार की शिकायत को उचित मानते हुए मंडी के लुनापानी स्थित वाहन विक्रेता मैसर्ज सतलुज मोटरस को उपभोक्ता के पक्ष में उक्त राशि 9 प्रतिशत ब्याज दर सहित अदा करने का फैसला सुनाया। अधिवक्ता देविन्द्र शर्मा के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार उपभोक्ता ने बेरोजगार होने के कारण अपनी जीविका कमाने के लिए उक्त विक्रेता से टाटा सफारी डिकोर वाहन खरीदा था। उपभोक्ता ने विक्रेता को 1,70,000 रूपये मार्जिन मनी अदा की थी। जबकि बकाया राशि वितिय कंपनी को अदा की जानी थी। वाहन की डिलीवरी लेने के कुछ समय बाद ही इसमें खराबी आ गयी। जिसके चलते उपभोक्ता ने वाहन को विक्रेता के पास ठीक करने को दिया था। लेकिन इसके बाद विक्रेता ने वाहन को ठीक करके उपभोक्ता को नहीं लौटाया। ऐसे में उपभोक्ता ने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि विक्रेता ने यह माना है कि उक्त वाहन उपभोक्ता ने विक्रेता सेे मार्जिन मनी अदा करके खरीदा था। विक्रेता इस बेच दिये गए वाहन का कब्जा कानून के प्रावधानों के तहत ही ले सकता था। अगर उपभोक्ता ने वाहन की कोई बकाया राशि अदा न की थी तो भी विक्रेता को राशि की वसूली के लिए कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए थी। कानून के किसी प्रावधान में विक्रेता को यह अधिकार नहीं है कि वह बिना कार्यवाही के वाहन को अपने कब्जे में लेे। उपभोक्ता का वाहन वापिस न लौटाना विक्रेता की सेवाओं में कमी को दर्शाता है। ऐसे में फोरम ने विक्रेता को उपभोक्ता के वाहन की मार्जिन मनी ब्याज सहित लौटाने के आदेश दिये।

एक कविता



नफ़रतज़दा लगे सब भीतर से

टटोला जब वो प्यार ही निकले,

धोखों की आंधी बही जब भी

टकरा के इनसे पार हो निकले,

दूरियां भुला गई तस्वीर उनकी

मिले तो लगा अपने ही निकले,

क्या फर्क पडता है कोई हो कहीं

यादों के बिल्कुल पास ही निकले,

साजिश ढुंढते रहे वो सादापन में

देखा खुद को शर्मशार हो निकले,

जीवन की धुरी में हैं कई गोलार्ध

अस्तित्व से जुडे-जुडे हुए निकले,

नदी की तरह प्रवाहमान है जीवन

बहाव चीरने के फनकार हो निकले,

गुजर जाएगी घनघोर रात अंधेरी

चिंगारी बनके इंकलाब हो निकले,

समीर कश्यप

22-1-2014

sameermandi@gmail.com  

Monday, 20 January 2014

युको बैंक को 4000 रूपये हर्जाना अदा करने के आदेश


मंडी। बैंक की सेवाओं में कमी आंकते हुए जिला उपभोक्ता फोरम ने उपभोक्ता के पक्ष में 4000 रूपये बतौर हर्जाना अदा करने का फैसला सुनाया। इसके अलावा बैंक को उपभोक्ता के पक्ष में 2000 रूपये शिकायत व्यय भी अदा करना होगा। जिला उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष जे एन यादव और सदस्य रमा वर्मा ने सदर तहसील के दौंधी स्थित हाउसिंग बोर्ड कलौनी निवासी नंद लाल आरोरा पुत्र तारा चंद आरोरा की शिकायत को उचित मानते हुए यूको बैंक की स्कूल बाजार शाखा के प्रभारी, धर्मशाला के श्याम नगर स्थित जोनल कार्यालय के जोनल प्रबंधक और कोलकता के साल्ट लेक सिटी स्थित मुखयालय के प्रबंध निदेशक को संयुक्त रूप से उपभोक्ता के पक्ष में उक्त हर्जाना राशि अदा करने के आदेश दिये। फोरम में अपनी शिकायत की पैरवी खुद करते हुए उपभोक्ता नंद लाल आरोरा का कहना था कि उन्होने अपनी 10,000 रूपये की फिक्स डिपोजिट रसीद (एफडीआर) फरवरी 2011 में बैंक के पास रिन्यु (नवीनीकरण) के लिए दी थी। लेकिन बैंक ने इसका नवीनीकरण नहीं किया। उपभोक्ता का कहना था कि वह हृदय रोगी हैं और इन दिनों अखिल भारतीय मेडिकल साईंस संस्थान (एमस) में उपचाराधीन हैं। उनका कहना था कि कई बार बैंक को प्रार्थना करने के बाद एफडीआर के नवीनीकरण के लिए उन्होने कानूनी नोटिस भी दिया था। लेकिन बैंक के कार्यवाही न करने पर उन्होने उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि बैंक ने यह माना है कि जून 2012 में उपभोक्ता एफडीआर के नवीनीकरण के लिए बैंक आया था लेकिन उनके पास पहचान से संबंधित दस्तावेज न होने के कारण नवीनीकरण नहीं हो सका था। फोरम ने कहा कि बैंक ने नवीनीकरण के कार्य में करीब एक साल की देरी की और जून 2013 में उपभोक्ता को राशि मिल सकी। जहां तक उपभोक्ता की पहचान का सवाल था तो एफडीआर में साफ दर्शाया गया है कि उपभोक्ता ही इसके अभिभावक हैं। ऐसे में फोरम ने बैंक के एफडीआर नवीनीकरण में देरी को सेवाओं में कमी करार देते हुए उक्त हर्जाना राशि और शिकायत व्यय अदा करने का फैसला सुनाया।

Saturday, 18 January 2014

बीमा कंपनी को 11,90,000 रूपये ब्याज सहित अदा करने के आदेश


मंडी। जिला उपभोक्ता फोरम कुल्लू ने बीमा कंपनी को उपभोक्ता के पक्ष में 11,90,000 रूपये ब्याज सहित अदा करने का फैसला सुनाया। इसके अलावा कंपनी की सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई मानसिक परेशानी और यंत्रणा के बदले 5000 रूपये हर्जाना और 2000 रूपये शिकायत व्यय भी अदा करने के आदेश दिये। जिला उपभोक्ता फोरम कुल्लू के अध्यक्ष जे एन यादव और सदस्य सत्यभामा ने कुल्लू तहसील के शमशी निवासी मंगल चंद पुत्र लक्ष्मण दास की शिकायत को उचित मानते हुए ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी को उक्त राशि का भुगतान 9 प्रतिशत ब्याज दर सहित अदा करने के आदेश दिये हैं। अधिवक्ता डी एस ठाकुर के अनुसार उपभोक्ता मंगल चंद ठेकेदार हैं और वह रोलर एल एंड टी के मालिक हैं। उन्होने अपने रोलर को कंपनी के पास बीमाकृत करवाया था। बीमा की अवधि के दौरान यह रोलर 22 अक्तुबर 2009 को पांगी में कार्य कर रहा था। इसी बीच चंद्रभागा नदी में गिर कर रोलर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया। उपभोक्ता ने दुर्घटना की सूचना बीमा कंपनी को देकर सभी दस्तावेज मुहैया करवाए थे और मुआवजा तय करने को कहा था। लेकिन कंपनी ने मुआवजा तय नहीं किया। ऐसे में उपभोक्ता ने फोरम में शिकायत दर्ज करवाई थी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि हालांकि कंपनी की ओर से यह माना गया है कि रोलर दुर्घटना में पूरी तरह से नष्ट हो गया है और नदी में गिरने के कारण उसका कोई पता नहीं लग पाया है। लेकिन कंपनी ने रोलर की मुआवजा राशि में कमी करके नुकसान का आकलन किस आधार पर किया था यह सपष्ट नहीं हो पाया है। ऐसे में फोरम ने बीमा कंपनी द्वारा आंकी गई मुआवजा राशि को अनुचित करार देते हुए वाहन की कीमत ब्याज सहित अदा करने के आदेश दिये। वहीं पर कंपनी की सेवाओं में कमी के कारण उपभोक्ता को हुई परेशानी के बदले हर्जाना और शिकायत व्यय भी अदा करने का फैसला सुनाया।

Friday, 17 January 2014

रेलवे के मामलों के लिए एडवोकेट पैनेल नियुक्त


मंडी। जिला की अदालतों में रेलवे के मामलों की देखरेख के लिए तीन अधिवक्ताओं को नियुक्त किया गया है। उतरी रेलवे के मुखयालय बडौदा हाउस दिल्ली से जारी पत्र में इस आशय की पुष्टि हुई है। रेलवे ने जिला एवं उपमंडलीय न्यायलयों में मामलों की देखरेख के लिए मंडी जिला के तीन अधिवक्ताओं का पैनेल बनाया है। इस पैनेल में मंडी के अधिवक्ता लोकेन्द्र कुटलैहडिया, रमेश कुमार और लाल सिंह देशबंधु को नियुक्त किया है। यह पैनेल तीन साल के लिए चयनित किया गया है।

औद्योगिक पैकेज बढाने पर मुख्यमंत्री का आभार जताया


मंडी। हिमाचल प्रदेश का विशेष औद्योगिक पैकेज 2017 तक बढाने के लिए सदर कांग्रेस के महासचिव आकाश शर्मा ने मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह और प्रतिभा सिंह का आभार प्रकट किया है। उन्होने कहा किपैकेज बढाने से प्रदेश के लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया होंगे। उन्होने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा कौशल विकास भता, छात्रों को मुफत यात्रा व वर्दी देने आदि के संबंध में लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए योजनाएं चलाई जा रही हैं। मार्केटिंग फीस खत्म करना सरकार की उपलब्धी है। वहीं पर विपक्ष अपनी भूमिका भूल कर मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह को निशाना बनाकर उनका इस्तीफा बिना सबूतों के मांग रहा है। महासचिव ने कहा कि भाजपा के कुछ लोग अपने कद को समझे बगैर मर्यादा को दरकिनार करके ब्यानबाजी कर रहे हैं जो निंदनीय है।

Thursday, 16 January 2014

चरस तस्करी के दो आरोपियों को दस-2 साल कठोर कैद एक-2 लाख जुर्माना


मंडी। चरस तस्करी के दो आरोपियों को अदालत ने दस-दस वर्ष की कठोर कारावास और एक-एक लाख रूपये जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया है। आरोपियों के जुर्माना राशि निश्चित समय मेें अदा न करने पर उन्हे एक-एक साल के कठोर कारावास की सजा भुगतनी होगी। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश पदम सिंह ठाकुर की विशेष अदालत ने उतर प्रदेश के बागपत जिला के भगवानपुर (बदौट) निवासी फिरोज खान उर्फ अमजद खान पुत्र अखताल और बदौट तहसील के बिजरोल गांव निवासी साजिद पुत्र यामिन के खिलाफ मादक एवं नशीले पदार्थ अधिनियम की धारा 20 के तहत अभियोग साबित होने पर उन्हे उक्त कारावास और जुर्माने का फैसला सुनाया। अभियोजन पक्ष के अनुसार 19 जून 2012 को नारकोटिक कंट्रोल ब्युरो (एनसीबी) के अन्वेषण अधिकारी वीरेन्द्र सिंह को गुप्त सूचना मिली कि दो लोग चरस तस्करी में संलिप्त हैं और वे लोग बस से चरस ले जा रहे हैं और उनकी ढेलू मोड पर उतरने की संभावना है। सूचना के आधार पर एनसीबी के दल ने अधीक्षक कुलदीप शर्मा और वीरेन्द्र सिंह की अगुवाई में ढेलु चौक पर स्वतंत्र गवाहों के साथ नाकाबंदी की। इसी दौरान एनसीबी ने जब बस को तलाशी के लिए रोका तो इसमें बैठे आरोपियों के बैग से 4 किलो 700 ग्राम चरस बरामद की थी। एनसीबी ने आरोपियों को हिरासत में लेकर अदालत में अभियोग चलाया था। अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए एनसीबी के विशेष लोक अभियोजक जी पी गुलेरिया ने 6 गवाहों के बयान कलमबंद करवा कर आरोपियों के खिलाफ अभियोग को साबित किया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपियों के खिलाफ संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित हुआ है। सजा की अवधि पर हुई सुनवाई के बाद अदालत का कहना था कि चरस तस्करी के मामलों से समाज का ताना बाना प्रभावित हो रहा है ऐसे में आरोपियों के प्रति नरम रूख नहीं अपनाया जा सकता। जिसके चलते अदालत ने आरोपियों से बरामदशुदा चरस की मात्रा को देखते हुए उक्त कारावास और जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया।

बंदी ने बस के आगे छलांग लगा ईहलीला समाप्त की


मंडी। अदालत से उपजेल मंडी ले जाए जा रहे एक विचाराधीन बंदी ने बस के आगे छलांग लगाकर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौका पर पहुंच कर कार्यवाही में जुट गई है। जानकारी के अनुसार बिहार के जिला सूपोल के थुमहा (पिपरा) गांव निवासी संजय कुमार पुत्र शिव नंद को पुलिस ने एनडीपीएस के एक मामले में उसकी न्यायिक हिरासत बढाने के लिए अदालत में पेश किया था। जहां पर अदालत ने पुलिस की अर्जी पर आरोपी की न्यायिक हिरासत 29 जनवरी तक बढाने के आदेश दिये थे। अदालत में कार्यवाही समाप्त होनेे के बाद आरोपी संजय कुमार को पुलिस हिफाजत में उपजेल मंडी ले जाया जा रहा था। जेल के नजदीक पहुंचने पर आरोपी ने सडक से आ रही एक बस के आगे छलांग लगा दी। जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गया। उसे उपचार के लिए क्षेत्रीय अस्पताल में ले जाया गया। जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इधर, घटना की सूचना मिलते ही शहरी चौकी के मुखय आरक्षी नंद लाल की अगुवाई में पुलिस दल ने मौका पर पहुंच कर मामले की छानबीन शुरू कर दी है। उल्लेखनीय है कि सुंदरनगर थाना पुलिस ने सात जनवरी को पुंघ के पास नाका लगाया हुआ था। इसी दौरान केलांग डिपो की मनाली-हरिदवार बस की तलाशी लेने पर इसमें सफर कर रहे संजय कुमार की टांगों से बंधी 2 किलो 113 ग्राम चरस बरामद करके उसे मादक एवं नशीले पदार्थ अधिनियम के तहत हिरासत में लिया था। आरोपी के चार दिन के पुलिस रिमांड के बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। बुधवार को उसे इसी मामले में न्यायिक हिरासत बढाए जाने के लिए अदालत में पेश किया गया था। दोपहर बाद अदालत से वापिस जेल ले जाने के दौरान उक्त घटना में आरोपी संजय कुमार की मौत हो गई।

Wednesday, 15 January 2014

मनरेगा के प्रचार-प्रसार फंड में भारी धांघली की आशंका


मंडी। जिला में मनरेगा के कार्यान्वय के लिए होने वाले प्रचार-प्रसार के फंड में भारी धांधली की आशंका है। इसका खुलासा सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से हुआ है। ग्रामीण कामगार संगठन के अध्यक्ष व आरटीआई कार्यकर्ता संतराम ने मनरेगा के प्रचार-प्रसार में व्यय हुई राशि के बारे में उपायुक्त मंडी से सूचना मांगी थी। उपायुक्त ने जिला ग्रामीण विकास अभिकरण (डीआरडीए) को यह जानकारी मुहैया करने को कहा था। जिस पर डीआरडीए की ओर से उन्हे आधी-अधूरी सूचना मुहैया करवाई गई। ऐसे में संतराम ने आरटीआई की प्रथम अपील अतिरिक्त उपायुक्त के पास की थी। जिस पर उन्हे जब सूचना मुहैया करवाई गई तो इसमें चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। संतराम ने वर्ष 2011 से 2013 तक मनरेगा के कार्यान्वय और प्रचार-प्रसार के बारे में सूचना मांगी थी। जिसमें उन्हे बताया गया कि इस कार्य के लिए जिला स्तर पर 9841640 रूपये की राशि खर्च गई है। जबकि खंड स्तर पर 8827244 रूपये की राशि खर्च हुई है। इसके अलावा मंडी साक्षरता एवं जन विकास समिति ने 8143051 रूपये प्रचार-प्रसार पर खर्च किये हैं। वहीं पर हरडप्पा एनजीओ के माध्यम से 8,59050 रूपये की राशि खर्च हुई है। इनमें चौंकाने वाला तथ्य यह है कि जिला स्तर पर खर्च की गई राशि में से 8385545 रूपये कहां खर्च किये गए हैं इसके बारे में प्रशासन के पास कोई जानकारी नहीं है। हालांकि मनरेगा की रिर्पोट हर वर्ष केन्द्र सरकार को प्रेषित की जाती है। लेकिन इतनी भारी राशि के बारे में कोई ब्यौरा न होना एक बडे घोटाले की ओर संकेत करता है। इसके अलावा मंडी साक्षरता एवं जनविकास समिति की ओर से प्रचार प्रसार में खर्च किये गए 1413431 रूपये की राशि के खर्च का भी कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं है। जबकि एनजीओ हरडप्पा के माध्यम से राशि के खर्च किये जाने के बारे में भी कोई रिकार्ड नहीं है। विकास खंडों को दी गई राशि में भी भारी बंदरबांट हुई है। जहां वर्ष 2011-12 में एक ओर सुंदरनगर खंड में 4442339, चौंतडा खंड में 3227850 रूपये की राशि खर्च की गई है। वहीं दूसरी ओर गोपालपूर खंड में इसी वित वर्ष में एक पाई भी खर्च नहीं हुई है। संतराम ने बताया कि हैरानी की बात है कि मनरेगा जैसी देश की महत्वाकांक्षी योजना में प्रचार-प्रसार के नाम पर इतने भारी स्तर पर वितिय अनियमितताएं और घोटाले हैं। इससे मनरेगा का लाभ आम लोगों तक नहीं पहुंच रहा है और बिना रिकार्ड के खर्च की गई राशि का दुरूपयोग किया गया है। उन्होने आरोप लगाया कि खर्च की राशि का ब्यौरा न होना मनरेगा फंड में हो रहे भारी घोटाले की ओर इंगित करता है। उन्होने कहा कि प्रशासन और उनके चहेते गैरसरकारी संगठनों को लाभ पहुंचाने के लिए लोगों के पैसे का दुरूपयोग किये जाने की आशंका है। उन्होने कहा कि इस वितिय अनियमितता और फर्जीवाडे की जांच की जानी चाहिए और इसमें संलिप्त दोषी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किये जाएं। इस बारे में संतराम ने प्रदेश ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के सचिव को शिकायत भी प्रेषित की है। उन्होने कहा कि इन धांधलियों की जांच समयबध ढंग से न करवाई गई तो उन्हे विवश होकर न्यायलय का दरवाजा खटखटाना पडेगा।

Tuesday, 14 January 2014

जिला के सभी उपमंडलों में 24 से शुरू होंगे लीगल एड क्लीनिक


मंडी। जिला के पांच हजार से अधिक आबादी वाले गांवों में लोगों को न्याय घर द्वार सुलभ करवाने के लिए 7 लीगल एड क्लीनिक शुरू किये जा रहे हैं। इन लीगल एड क्लीनिकों का शुभारंभ 24 जनवरी को किया जाएगा। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष एस सी कैंथला ने बताया कि राष्ट्रिय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के निर्देशों के तहत सभी उपमंडलों में पांच हजार से अधिक आबादी वाले गांवों में सात लीगल एड क्लीनिक शुरू किये जा रहे हैं। जिसका शुभारंभ 24 जनवरी को राष्ट्रिय विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष उच्चतम न्यायलय के न्यायमुर्ति आर एम लोढा वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से करेंगे। यह लीगल एड क्लीनिक लोगों को न्याय सुलभ करवाने के उदेश्य से खोले जा रहे हैं जिससे उन्हें घर दवार न्याय हासिल हो। जिला एवं सत्र न्यायधीश एस सी कैंथला ने बताया कि मंडी जिला में यह क्लीनिक सदर उपमंडल के तल्याहड, जोगिन्द्रनगर के लोअर चौंतडा, सरकाघाट के नबाही, गोहर के चैलचौक, सुंदरनगर के महादेव, करसोग के अपर करसोग और पधर में शुरू किये जा रहे हैं। उन्होने बताया कि इन क्लीनिकों के लिए सदर उपमंडल में अधिवक्ता आकाश शर्मा, जोगिन्द्रनगर में सुनील ठाकुर, सरकाघाट में राकेश कुमार, गोहर में नवीन वशिष्ट, सुंदरनगर में वीरेन्द्र सिंह, करसोग में रमेश कुमार को रिटेनर लॉयर नियुक्त किया गया है। वहीं पर क्लीनिकों में लोगों को जागरूक करने के लिए और उनकी समस्याओं के निदान के लिए सदर उपमंडल में मनीष कुमार, जया कुमारी, जोगिन्द्रनगर में सरोज, सुमेष कुमारी, सरकाघाट में नरेन्द्र सिंह, संजय ठाकुर, गोहर में हुक्म चंद, धनंजय शर्मा, सुंदरनगर में लाभ सिंह, वीना देवी, करसोग में अमर सिंह, पूजा कुमारी, पधर में प्रताप सिंह और वीरेन्द्र पाल को बतौर पैरा लीगर वालंटियर के रूप में नियुक्त किया गया है।

Monday, 13 January 2014

बच्ची से छेडखानी पर 6 माह कैद 2000 जुर्माना


 मंडी। घर के आंगन में अनाधिकृत प्रवेश करके 6 साल की बच्ची से छेडखानी करने का अभियोग साबित होने पर अदालत ने एक आरोपी को 6 माह के साधारण कारावास और 2000 रूपये जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया है। मुखय न्यायिक दंडाधिकारी अजय मैहता के न्यायलय ने उतर प्रदेश के जिला मुजफरनगर की शामली तहसील के ज्वालाबाद गांव निवासी आलीम पुत्र राईस अहमद के खिलाफ भादंस की धारा 451 और 354 के तहत घर के आंगन में अनाधिकार प्रवेश करके छेडखानी करने का अभियोग साबित होने पर क्रमश: छह-छह माह के साधारण कारावास और एक-एक हजार रूपये जुर्माने की सजा सुनाई है। जुर्माना राशि निश्चित समय में अदा न करने पर आरोपी को क्रमश: एक-एक माह के साधारण कारावास की सजा भुगतनी होगी। ये दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपी पर आपराधिक नीयत से घर के आंगन में प्रवेश करके 6 वर्ष की बालिका से छेडखानी का अभियोग संदेह की छाया से दूर साबित हुआ है। अभियोजन पक्ष के अनुसार 14 नवंबर 2009 को शिकायतकर्ता सुभाष चंद ने सदर थाना पुलिस को दूरभाष पर अपराध की सूचना दी थी। जिस पर पुलिस का दल मुखय आरक्षी राजपाल की अगुवाई में शिकायतकर्ता के घर भयुली पहुंचा था। जहां पर शिकायतकर्ता ने बयान दर्ज करवाया था कि करीब 5 बजे उनकी 6 वर्षीय बेटी यामिनी (काल्पनिक नाम) घर के आंगन में साईकिल चला रही थी। इसी बीच उसके चीखने की आवाज सुनने पर शिकायतकर्ता ने जब खिडकी से झांक कर देखा तो आरोपी उनकी बेटी से छेडखानी कर रहा था। इसके बाद आरोपी ने उनकी बेटी को गेट की ओर घसीटने की कोशीश की। जिस पर शिकायतकर्ता ने बाहर आकर अपनी बेटी को आरोपी के चंगुल से छुडवा कर घटना की सूचना पुलिस को दी थी। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज करके अदालत में अभियोग चलाया था। अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए सहायक लोक अभियोजक राज रानी ने 7 गवाहों के बयान कलमबंद करके आरोपी के खिलाफ अभियोग साबित किया। 

Sunday, 12 January 2014

संगीत सदन


हाल ही में संगीत सदन में वार्षिक परीक्षा आयोजित की गई। इस वर्ष मैं भी संगीत प्रभाकर के छठे वर्ष की परीक्षा में बैठा। संगीत सदन मंडी शहर के सबसे पुराने संस्थानों में से एक है जहां पर कई पीढियों ने शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सीखी हैं। पहले इस संस्थान को पियुष स्वामी जी चलाते थे। लेकिन बाद में उन्होने संस्थान को चलाने का जिम्मा उमेश भारद्वाज को सौंप दिया था। उमेश के संगीत के प्रति समर्पण ने इस संस्थान को और अधिक लोकप्रिय कर दिया है। उमेश के पिता जी गुरू नारायण सिंह जी भी संगीत के मर्मज्ञ थे और उन्ही की संगीत विरासत को अब उमेश ने संभाला है। हम उमेश और संगीत सदन की दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति की कामना करते हैं...

जलौणी गणपति मंदिर के कपाट एक माह के लिए बंद


मंडी। जिला मंडी की सनोर घाटी के अराध्य देवता जलौणी गणपति के मंदिर के कपाट हर वर्ष की भांती माघ संक्रांती को एक माह के लिए बंद हो जाएंगे। देवता कमेटी के सदस्य अतुल शर्मा ने बताया कि मकर संक्राती से फाल्गुन संक्राती तक जला गांव में स्थित देव जलौणी गणपति के मंदिर के कपाट एक माह के लिए बंद हो जाएंगे। उन्होने बताया कि मान्यता के अनुसार इस दौरान देव गणपति अपने माता-पिता भगवान शिव और पार्वती की सेवा में उपस्थित रहते हैं और एक माह के बाद फाल्गुन संक्रांती के समय वह वापिस मंदिर को लौटते हैं। श्रदधालु देवता के दर्शन अब एक माह बाद ही कर सकेंगे। 

Friday, 10 January 2014

भाजपा की अनापशनाप ब्यानबाजी पर लताड लगाई


मंडी। सदर कांग्रेस के महासचिव व मनोनीत पार्षद आकाश शर्मा ने भाजपा की अनापशनाप बयानबाजी पर लताड लगाई है। उन्होने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी(एआईसीसी)के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से आग्रह किया है कि भाजपा एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत कांग्रेस शासित राज्यों व मजबूत मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह पर आरोप लगाए जा रहे हैं। उन्होने कहा कि प्रदेश सरकार के जनहित के कार्यों को भूलाने और भाजपा नेताओं के खिलाफ चल रही जांच की तपिश कम करने के लिए व्यक्तिगत आरोपों की राजनिति की जा रही है। उन्होने कहा कि भाजपा का राष्ट्रिय नेतृत्व येदुरप्पा व अन्य भ्रष्टाचारियों का सहयोग लेकर सरकार बनाने के सपने देख रहे हैं जो कभी पूरे नहीं होंगे।

Thursday, 9 January 2014

चरस-अफीम बरामदगी पर 10 साल कडी कैद 1,30,000 जुर्माना


मंडी। चरस और अफीम सहित पकडे जाने के आरोपी को अदालत ने 10 साल के कठोर कारावास और एक लाख तीस हजार रूपये जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया। वहीं पर मामले के सहआरोपी के खिलाफ अफीम बरामद होने पर उसे तीन साल के कठोर कारावास और बीस हजार रूपये जुर्माने की सजा सुनाई है। अतिरिक्त सत्र न्यायधीश पी पी रांटा की विशेष अदालत ने जिला बिलासपुर की उपतहसील नैना देवी के कलारी (नकराना) गांव निवासी प्रदीप कुमार पुत्र महेन्द्र सिंह के खिलाफ मादक एवं नशीले पदार्थ अधिनियम की धारा 20 और 18 के तहत चरस व अफीम बरामद होने का अभियोग साबित होने पर क्रमश: 10 साल और 5 साल के कठोर कारावास और एक लाख तथा तीस हजार रूपये जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना उचित समय पर न देने पर उसे क्रमश: एक साल और 6 माह के साधारण कारावास की सजा भुगतनी होगी। वहीं पर मामले के सहआरोपी पंजाब के अमृतसर जिला के गुरू बाजार (छतराटा) निवासी रोहित गौतम पुत्र इंद्रजीत गौतम के खिलाफ धारा 18 के तहत अफीम बरामदगी का अभियोग साबित होने पर 3 साल के कठोर कारावास और 20 हजार रूपये जुर्माने और जुर्माना राशि निश्चित समय में अदा न करने पर 5 माह के साधारण कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपियों के खिलाफ संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित होने पर उन्हे सजा का फैसला सुनाया गया। अभियोजन पक्ष के अनुसार औट थाना पुलिस का दल 15 अगस्त 2010 को रूटीन ट्रैफिक चैकिंग के लिए लारजी डैम के पास तैनात था। इसी दौरान एक मारूती वैन को चैकिंग के लिए रोका गया तो इसमें बैठे आरोपी पुलिस को देख कर घबरा गए। पुलिस ने संदेह के आधार पर आरोपियों की तलाशी ली तो प्रदीप की टांगों में नीकैप से बंघी हुई एक किलोग्राम 50 ग्राम चरस और 525 ग्राम अफीम बरामद हुई थी। जबकि आरोपी रोहित से 100 ग्राम अफीम मिली थी। पुलिस ने आरोपियों को हिरासत में लेकर अदालत में अभियोग चलाया था। अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए सहायक लोक अभियोजक अजय ठाकुर ने 8 गवाहों के बयान कलमबंद करवा कर आरोपियों के खिलाफ अभियोग को साबित किया। सजा की अवधि पर सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि तस्करी के मामलों से समाजिक तानेबाने पर पडने वाले दुष्प्रभाव को देखते हुए आरोपियों के प्रति नरम रूख नहीं अपनाया जा सकता। जिसके चलते अदालत ने आरोपियों से बरामशुदा नारकोटिकस की मात्रा को देखते हुए उक्त कारावास और जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया।

Wednesday, 8 January 2014

युकां ने फूंके अनुराग धूमल और जेटली के पुतले


मंडी। राजा वीरभद्र सिंह के उपर भाजपा दवारा लगाए गए झूठे आरोपों से बिफरी युवा कांग्रेस ने मंडी जिला मुखयालय में अनुराग धूमल और जेटली के पुतले जलाए। मंडी संसदीय क्षेत्र युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा की अध्यक्षता में गांधी भवन में जिला स्तरीय युकां पदाधिकारियों की बैठक की गई। जिसे संबोधित करते हुए अनिल शर्मा ने कहा कि प्रदेश के पूर्व मुखयमंत्री प्रेम कुमार धूमल व उनके सपुत्र अनुराग ठाकुर अपनी डुबती राजनैतिक साख को बचाने के लिए राजा वीरभद्र सिंह के उपर भ्रष्टाचार के झूठे आरोप लगा रहे हैं। लोकसभा चुनाव की आहट सुनते ही अनुराग धूमल बौखला गए हैं। ऐसे में जब हिमाचल के भोले भाले लोगों को ठगने के लिए कोई रास्ता न दिखा तो पहले की तरह इस बार भी झूठ के सहारे अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने लग गए। प्रदेश सरकार जब भाजपा कार्यकाल के काले चिट्ठे खोलने लगी तो भाजपा के आला नेताओं की नींद उडने लगी। एचपीसीए की चल रही जांच से घबरा कर अनुराग ठाकुर ऐसी घटिया हरकतें कर रहे हैं। गौरतलब है कि पूर्व में भाजपा के इन नेताओं दवारा दो बार राजा वीरभद्र सिंह के उपर ऐसे झूठे आरोप लगाए गए। लेकिन हिमाचल के इस जननायक का दामन हर बार पाक साफ निकला। जैसे-2 एचपीसीए की जांच तेज होने लगी धूमल और उनके पुत्र अपने आप को इस जांच में घिरता देख राजा वीरभद्र सिंह के उपर लांछन लगाने लगे। युवा कांग्रेस ने इन तमाम आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि राजा वीरभद्र सिंह की अटूट लोकप्रियता से घबरा कर भाजपा ऐसे झूठे हथकंडे अपना रही है। इन्होने कहा कि पूर्व मुखयमंत्री के सुपुत्र अरूण धूमल और अनुराग धूमल की संपति की जांच की जाए। जिन्होने भाजपा कार्यकाल में हिमाचल के भोले भाले लोगों की करोडों रूपये की जमीन कौडियों के भाव बेच दी। इन्होने आरोप लगाते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश में निजी विश्वविद्यालयों के नाम पर ठगी करके करोडों रूपये की जमीन दूसरे राज्यों के बडे व्यापारियों को बेच डाली। एचपीसीए के अध्यक्ष के रूप में लंबे समय से हिमाचल प्रदेश के नौजवानों के साथ खिलवाड कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश की क्रिकेट टीम में दूसरे राज्यों के खिलाडी खेल रहे हैं। युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने जिला मुखयालय में राजा वीरभद्र सिंह के पक्ष में जोरदार नारेबाजी की तथा चौहट्टा बाजार में अनुराग धूमल और अरूण जेटली के पुतले जलाए। इस मौके पर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष पुर्ण चंद ठाकुर, एपीएमसी मंडी के अध्यक्ष हरेन्द्र सेन, युकां महासचिव अजय मोदगिल, सदर मंडी युकां अध्यक्ष रविन्द्र सिंह, अखिल गुप्ता, मोहित ठाकुर, राकेश कुमार, यादविंद्र सिंह, प्रवीन कुमार, यशकांत कश्यप, अभिजीत डोगरा सहित सैंकडों कार्यकर्ता मौजूद थे। जारीकर्ता- अनिल शर्मा, उपाध्यक्ष, मंडी संसदीय क्षेत्र, युवा कांग्रेस।

Tuesday, 7 January 2014

संतमत सत्संग का ध्यानयोग उत्सव 9-10 मार्च को


मंडी। अखिल भारतीय संतमत सत्संग दिल्ली की ओर से यहां के भयुली स्थित विपाशा सदन में 9 और 10 जनवरी को अध्यात्मिक उत्सव का आयोजन किया जाएगा। इस मौके पर परम संत महात्मा सुरेश जी के भी उपस्थित रहने की संभावना है। आयोजन की संयोजक समिति के सदस्य के एल मल्होत्रा ने बताया कि ध्यानयोग पर आधारित इस उत्सव में 9 जनवरी सुबह से अखण्ड शांति पाठ शुरू होगा। जिसमें विचार के जरिये ओम शांति का 24 घंटे तक पाठ किया जाएगा। वहीं पर वीरवार सुबह और सायं के सत्रों में ध्यान योगाभयास और इसके सिधांतों पर प्रकाश डाला जाएगा। शुक्रवार को रामधुन, सामुहिक शांति पाठ और श्रधांजली का आयोजन किया जाएगा। उन्होने बताया कि आयोजन में श्रधालुओं के लिए निशुल्क प्रवेश रखा गया है।

औट में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन।


नगवाईं। मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह पर लगाए गए आरोपों के विरोध में कांगे्रस कार्यकर्ताओं ने द्रंग हलके के औट में भाजपा नेताओं के पुतले जलाए। कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने औट में जमकर प्रदर्शन तथा नारेबाजी की तथा भाजपा नेता अरूण जेटली, भाजपा के पूर्व मुखयमंत्री प्रेम कुमार घूमल , भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्टीय अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के पुतले जलाकर प्रर्दशन किया। कांग्रेस कार्यकर्ता कर्मवीर सिंह पठानिया ने कहा की भारतीय जनता पार्टी मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह की साफ सुथरी छवी पर बेवजह कीचड उछाल रही है। उन्होंने भाजपा को चेतावनी देते हुए कहा की इस ओछी राजनीती को अगर बंद नहीं किया गया तो भाजपा को इसका मुहतोड जबाज दिया जाएगा। इस मौके पर एनएसयुआई के पूर्व प्रदेश महासचिव अंकुश शर्मा ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि भााजपा ने अपने कार्यकाल में अफसरों को डरा धमका कर एचपीसीए को फायदा पहुंचाया है और अनुराग ठाकुर ने इसी सोसाईटी को कंपनी में बदल कर प्रदेश की जमीनों पर कब्जा किया है। द्रंग कांग्रेस प्रवक्ता कैलाश शर्मा ने कहा कि भाजपा अपने शासन काल में हुए भ्रष्ट कार्यों को दबाने के लिए तथा जनता का ध्यान बांटने के लिए वीरभद्र सिंह पर कीचड उछााल रही है। इस मौके पर युथ बोर्ड के डायरेक्टर तथा एनएसयूआई के प्रदेश प्रवक्ता उदय नंद और द्रंग युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता मौजूद थे।

Monday, 6 January 2014

सीपीआई के ज्ञापन पर प्रशासन ने 16 विभागों से तलब की रिपोर्ट


मंडी। भारतीय कमयुनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की शहरी कमेटी के ज्ञापन पर कार्यवाही करते हुए जिला प्रशासन ने 16 विभागों से रिर्पोट तलब की है। अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी के कार्यालय ने इस आशय में ज्ञापन के प्रतियों सहित पत्र जारी करके अपने-2 विभागों से संबंधित समस्याओं पर उचित और आवश्यक कार्यवाही करने और अपनी रिर्पोट पेश करने के आदेश दिये हैं। सीपीआई शहरी कमेटी के महासचिव समीर कश्यप ने बताया कि प्रशासन की ओर से मिले पत्र में कार्यवाही किये जाने के बारे में पुष्टि हुई है। उन्होने बताया कि 28 दिसंबर को पार्टी की ओर से मंडी शहर में पदयात्रा के बाद उजागर हुई करीब 130 समस्याओं के निराकरण के लिए उपायुक्त मंडी देवेश कुमार को ज्ञापन सौंपा था। सीपीआई ने मंडी के मंदिरों को पर्यटन की दृष्टि से उभारने, प्राकृतिक स्त्रोतों को बचाने, ट्रैफिक जाम से निजात दिलाने, एंबुलैंस योगय रोड बनाने, सफाई, स्ट्रीट लाईट, सडकों की हालत ठीक करने, चौहटा बाजार को बंद न करने, प्रेक्षागृह बनाने, धरोहरें और विक्टोरिया पुल बचाने, घाटों को संरक्षित करने, टारना मेला बहाल करने, सिध शंभू मंदिर के दर्शन 24 घंटे मुहैया करवाने, पडल को बचाने आदि से संबंधित सभी मुहल्लों की करीब 130 मांगों के निराकरण के लिए यह ज्ञापन दिया है। जिला प्रशासन की ओर से ज्ञापन पर कार्यवाही करते एडीएम मंडी पंकज राय के कार्यालय ने जिला पुलिस अधीक्षक, अरण्यपाल वन, जिला पर्यटन एवं विकास अधिकारी, लोनिवि, विद्युत विभाग और आई पी एच के अधिक्षण अभियंता, मुखय चिकित्सा अधिकारी, मंडलीय प्रबंधक एच आर टी सी, प्रधानाचार्य वल्लभ महाविदयालय, प्रधानाचार्य आईटीआई, उप निदेशक उच्च शिक्षा, जिला खेल अधिकारी, कार्यकारी अधिकारी, जिला भाषा अधिकारी, जिला दूर संचार अभियंता और प्रभारी पुरातत्व विभाग को अपने-2 विभाग से संबंधित समस्याओं पर उचित और आवश्यक कार्यवाही करके अपनी रिर्पोट जिला प्रशासन का सौंपने और सीपीआई शहरी कमेटी को कार्यवाही के बारे में सूचित करने के निर्देश दिये हैं।
पिक्चर- कमल सैनी एडवोकेट

चरस तस्करी के आरोपी को पांच साल कठोर कारावास


मंडी। चरस सहित पकडे जाने के आरोपी को अदालत ने पांच साल के कठोर कारावास और 30,000 रूपये जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया। आरोपी के जुर्माना राशि निश्चित समय में अदा न करने पर उसे 6 माह के अतिरिक्त साधारण कारावास की सजा भुगतनी होगी। अतिरिक्त सत्र न्यायधीश(दो) पी पी रांटा की विशेष अदालत ने जिला ऊना की बंगाणा तहसील के तलयारा (खुरैण) गांव निवासी सुखविंद्र सिंह पुत्र करतार सिंह के खिलाफ मादक एवं नशीले पदार्थ अधिनियम की धारा 20 के तहत अभियोग साबित होने पर सजा का फैसला सुनाया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपी के खिलाफ संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित हुआ है। ऐसे में अदालत ने आरोपी से बरामदशुदा चरस की मात्रा व्यवसायिक होने के कारण उक्त अवधि के कारावास और जुर्माने की सजा का फैसला सुनाया। अभियोजन पक्ष के अनुसार सदर थाना पुलिस का दल उपनिरिक्षक भगवान दास की अगुवाई में राष्ट्रिय राजमार्ग 21 पर सुक्की बाईं के पास नाकाबंदी के लिए तैनात था। इसी दौरान कुल्लू की ओर से आ रही हरियाणा रोडवेज की मनाली-चंडीगढ बस को तलाशी के लिए रोका गया। तलाशी के दौरान सीट नंबर 29 पर बैठे आरोपी ने खिडकी की ओर भागने की कोशीश की। जिस पर पुलिस दल ने आरोपी को काबू करके संदेह की आधार पर तलाशी ली तो आरोपी के शरीर से बंधी हुई दो किलो चरस बरामद हुई थी। पुलिस ने आरोपी को मादक एवं नशीले पदार्थ अधिनियम के तहत हिरासत में लेकर अदालत में अभियोग चलाया था। अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए सहायक लोक अभियोजक अजय ठाकुर ने इस मामले में 12 गवाहों के बयान कलमबंद करवा कर मामले को साबित किया।

Sunday, 5 January 2014

पंजाब में आतंकवाद के दौरान शहीद हुए क्रांतीकारी लेखक अवतार सिंह पाश की प्रसिद्ध कविता- हम लडेंगे साथी


हम लडेंगे साथी उदास मौसम के लिए

हम लडेंगे साथी गुलाम इच्छाओं के लिए

हम चुनेंगे साथी जिन्दगी के टुकडे

हथौडा अब भी चलता है उदास निहाई पर

हल की लीक अब भी बनती है चीरती

हुई धरती पर

फिर भी कुछ नहीं होता सवाल नाचता

रहता है

सवाल के कन्धों पर चढ कर हम लडेंगे साथी

कत्ल हो चुकी भावनाओं की कसम खा कर

बुझी हुई नजरों की कसम खा कर

हथेलियों के गट्टों की कसम खा कर

हम लडेंगे साथी

हम लडेंगे तब तक

जब तक बीरू बकरीहा

बकरियों का रक्त पीता है

खिले हुए सरसों के फूलों को जब तक

हलवाहे खुद नहीं सुंघते

सुने आंखों वाली गांव की अध्यापिका का पति

जब तक जंग से वापिस नहीं आता

जब तक पुलिस के सिपाही

अपने ही भाईयों का गला घोंटने को

मजबूर हैं

कि दफ्तरों के बाबू जब तक लिखते

अपने ही लहु से अक्षर

हम लडेंगे जब तक दुनिया में लडने की

जरूरत बाकि है

जब बंदूक न होगी तब तलवार होगी

जब तलवार न हुई तब लडने की

लगन होगी

लडने का ढंग न हुआ तो लडने की जरूरत होगी

और हम लडेंगे साथी

हम लडेंगे कि लडने के बगैर कुछ नहीं मिलता

हम लडेंगे कि अभी तक लडे क्यों नहीं

हम लडेंगे

अपनी सजा कबूल करने के लिए

या लडते हुए जो मर गए

उनकी याद जिन्दा रखने के लिए

हम लडेंगे साथी।

लेखकः- अवतार सिंह पाश

पूस की रात- प्रेमचंद


पूस की रात- प्रेमचंद

हल्कू ने आकर स्त्री से कहा- सहना आया है, लाओ, जो रुपये रखे हैं, उसे दे दूँ, किसी तरह गला तो छूटे । मुन्नी झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिरकर बोली- तीन ही तो रुपये हैं, दे दोगे तो कम्मल कहाँ से आवेगा ? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी ? उससे कह दो, फसल पर दे देंगे। अभी नहीं । हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा । पूस सिर पर आ गया, कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह नहीं जा सकता। मगर सहना मानेगा नहीं, घुड़कियाँ जमावेगा, गालियाँ देगा। बला से जाड़ों में मरेंगे, बला तो सिर से टल जाएगी । यह सोचता हुआ वह अपना भारी- भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठ सिद्ध करता था ) स्त्री के समीप आ गया और खुशामद करके बोला- ला दे दे, गला तो छूटे। कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूँगा। मुन्नी उसके पास से दूर हट गयी और आँखें तरेरती हुई बोली- कर चुके दूसरा उपाय ! जरा सुनूँ तो कौन-सा उपाय करोगे ? कोई खैरात दे देगा कम्मल ? न जाने कितनी बाकी है, जों किसी तरह चुकने ही नहीं आती । मैं कहती हूँ, तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते ? मर-मर काम करो, उपज हो तो बाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई । बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जनम हुआ है । पेट के लिए मजूरी करो । ऐसी खेती से बाज आये । मैं रुपये न दूँगी, न दूँगी । हल्कू उदास होकर बोला- तो क्या गाली खाऊँ ? मुन्नी ने तड़पकर कहा- गाली क्यों देगा, क्या उसका राज है ? मगर यह कहने के साथ ही उसकी तनी हुई भौहें ढीली पड़ गयीं । हल्कू के उस वाक्य में जो कठोर सत्य था, वह मानो एक भीषण जंतु की भाँति उसे घूर रहा था । उसने जाकर आले पर से रुपये निकाले और लाकर हल्कू के हाथ पर रख दिये। फिर बोली- तुम छोड़ दो अबकी से खेती । मजूरी में सुख से एक रोटी तो खाने को मिलेगी । किसी की धौंस तो न रहेगी । अच्छी खेती है ! मजूरी करके लाओ, वह भी उसी में झोंक दो, उस पर धौंस । हल्कू ने रुपये लिये और इस तरह बाहर चला मानो अपना हृदय निकालकर देने जा रहा हो । उसने मजूरी से एक-एक पैसा काट-कपटकर तीन रुपये कम्मल के लिए जमा किये थे । वह आज निकले जा रहे थे । एक-एक पग के साथ उसका मस्तक अपनी दीनता के भार से दबा जा रहा था । 2 पूस की अंधेरी रात ! आकाश पर तारे भी ठिठुरते हुए मालूम होते थे। हल्कू अपने खेत के किनारे ऊख के पतों की एक छतरी के नीचे बाँस के खटोले पर अपनी पुरानी गाढ़े की चादर ओढ़े पड़ा काँप रहा था । खाट के नीचे उसका संगी कुत्ता जबरा पेट मे मुँह डाले सर्दी से कूँ-कूँ कर रहा था । दो में से एक को भी नींद न आती थी । हल्कू ने घुटनियों कों गरदन में चिपकाते हुए कहा- क्यों जबरा, जाड़ा लगता है? कहता तो था, घर में पुआल पर लेट रह, तो यहाँ क्या लेने आये थे ? अब खाओ ठंड, मैं क्या करूँ ? जानते थे, मै यहाँ हलुवा-पूरी खाने आ रहा हूँ, दौड़े-दौड़े आगे-आगे चले आये । अब रोओ नानी के नाम को । जबरा ने पड़े-पड़े दुम हिलायी और अपनी कूँ-कूँ को दीर्घ बनाता हुआ एक बार जम्हाई लेकर चुप हो गया। उसकी श्वान-बुध्दि ने शायद ताड़ लिया, स्वामी को मेरी कूँ-कूँ से नींद नहीं आ रही है। हल्कू ने हाथ निकालकर जबरा की ठंडी पीठ सहलाते हुए कहा- कल से मत आना मेरे साथ, नहीं तो ठंडे हो जाओगे । यह राँड पछुआ न जाने कहाँ से बरफ लिए आ रही है । उठूँ, फिर एक चिलम भरूँ । किसी तरह रात तो कटे ! आठ चिलम तो पी चुका । यह खेती का मजा है ! और एक-एक भगवान ऐसे पड़े हैं, जिनके पास जाड़ा जाय तो गरमी से घबड़ाकर भागे। मोटे-मोटे गद्दे, लिहाफ- कम्मल । मजाल है, जाड़े का गुजर हो जाय । तकदीर की खूबी ! मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटें ! हल्कू उठा, गड्ढ़े में से जरा-सी आग निकालकर चिलम भरी । जबरा भी उठ बैठा । हल्कू ने चिलम पीते हुए कहा- पियेगा चिलम, जाड़ा तो क्या जाता है, जरा मन बदल जाता है। जबरा ने उसके मुँह की ओर प्रेम से छलकती हुई आँखों से देखा । हल्कू- आज और जाड़ा खा ले । कल से मैं यहाँ पुआल बिछा दूँगा । उसी में घुसकर बैठना, तब जाड़ा न लगेगा । जबरा ने अपने पंजे उसकी घुटनियों पर रख दिये और उसके मुँह के पास अपना मुँह ले गया । हल्कू को उसकी गर्म साँस लगी । चिलम पीकर हल्कू फिर लेटा और निश्चय करके लेटा कि चाहे कुछ हो अबकी सो जाऊँगा, पर एक ही क्षण में उसके हृदय में कम्पन होने लगा । कभी इस करवट लेटता, कभी उस करवट, पर जाड़ा किसी पिशाच की भाँति उसकी छाती को दबाये हुए था । जब किसी तरह न रहा गया तो उसने जबरा को धीरे से उठाया और उसक सिर को थपथपाकर उसे अपनी गोद में सुला लिया । कुत्ते की देह से जाने कैसी दुर्गंध आ रही थी, पर वह उसे अपनी गोद मे चिपटाये हुए ऐसे सुख का अनुभव कर रहा था, जो इधर महीनों से उसे न मिला था । जबरा शायद यह समझ रहा था कि स्वर्ग यहीं है, और हल्कू की पवित्र आत्मा में तो उस कुत्ते के प्रति घृणा की गंध तक न थी । अपने किसी अभिन्न मित्र या भाई को भी वह इतनी ही तत्परता से गले लगाता । वह अपनी दीनता से आहत न था, जिसने आज उसे इस दशा को पहुँचा दिया । नहीं, इस अनोखी मैत्री ने जैसे उसकी आत्मा के सब द्वा र खोल दिये थे और उनका एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था । सहसा जबरा ने किसी जानवर की आहट पायी । इस विशेष आत्मीयता ने उसमे एक नयी स्फूर्ति पैदा कर दी थी, जो हवा के ठंडें झोकों को तुच्छ समझती थी । वह झपटकर उठा और छपरी से बाहर आकर भूँकने लगा । हल्कू ने उसे कई बार चुमकारकर बुलाया, पर वह उसके पास न आया । हार में चारों तरफ दौड़-दौड़कर भूँकता रहा। एक क्षण के लिए आ भी जाता, तो तुरंत ही फिर दौड़ता । कर्तव्य उसके हृदय में अरमान की भाँति ही उछल रहा था । 3 एक घंटा और गुजर गया। रात ने शीत को हवा से धधकाना शुरु किया। हल्कू उठ बैठा और दोनों घुटनों को छाती से मिलाकर सिर को उसमें छिपा लिया, फिर भी ठंड कम न हुई | ऐसा जान पड़ता था, सारा रक्त जम गया है, धमनियों मे रक्त की जगह हिम बह रहा है। उसने झुककर आकाश की ओर देखा, अभी कितनी रात बाकी है ! सप्तर्षि अभी आकाश में आधे भी नहीं चढ़े । ऊपर आ जायँगे तब कहीं सबेरा होगा । अभी पहर से ऊपर रात है । हल्कू के खेत से कोई एक गोली के टप्पे पर आमों का एक बाग था । पतझड़ शुरु हो गयी थी । बाग में पत्तियों को ढेर लगा हुआ था । हल्कू ने सोचा, चलकर पत्तियाँ बटोरूँ और उन्हें जलाकर खूब तापूँ । रात को कोई मुझे पत्तियाँ बटोरते देख तो समझे कोई भूत है । कौन जाने, कोई जानवर ही छिपा बैठा हो, मगर अब तो बैठे नहीं रहा जाता । उसने पास के अरहर के खेत में जाकर कई पौधे उखाड़ लिए और उनका एक झाड़ू बनाकर हाथ में सुलगता हुआ उपला लिये बगीचे की तरफ चला । जबरा ने उसे आते देखा तो पास आया और दुम हिलाने लगा । हल्कू ने कहा- अब तो नहीं रहा जाता जबरू । चलो बगीचे में पत्तियाँ बटोरकर तापें । टाँठे हो जायेंगे, तो फिर आकर सोयेंगें । अभी तो बहुत रात है। जबरा ने कूँ-कूँ करके सहमति प्रकट की और आगे-आगे बगीचे की ओर चला। बगीचे में खूब अँधेरा छाया हुआ था और अंधकार में निर्दय पवन पत्तियों को कुचलता हुआ चला जाता था । वृक्षों से ओस की बूँदे टप-टप नीचे टपक रही थीं । एकाएक एक झोंका मेहँदी के फूलों की खूशबू लिए हुए आया । हल्कू ने कहा- कैसी अच्छी महक आई जबरू ! तुम्हारी नाक में भी तो सुगंध आ रही है ? जबरा को कहीं जमीन पर एक हडडी पड़ी मिल गयी थी । उसे चिंचोड़ रहा था । हल्कू ने आग जमीन पर रख दी और पत्तियाँ बटोरने लगा । जरा देर में पत्तियों का ढेर लग गया। हाथ ठिठुरे जाते थे । नंगे पाँव गले जाते थे । और वह पत्तियों का पहाड़ खड़ा कर रहा था । इसी अलाव में वह ठंड को जलाकर भस्म कर देगा । थोड़ी देर में अलाव जल उठा । उसकी लौ ऊपर वाले वृक्ष की पत्तियों को छू-छूकर भागने लगी । उस अस्थिर प्रकाश में बगीचे के विशाल वृक्ष ऐसे मालूम होते थे, मानो उस अथाह अंधकार को अपने सिरों पर सँभाले हुए हों अंधकार के उस अनंत सागर मे यह प्रकाश एक नौका के समान हिलता, मचलता हुआ जान पड़ता था । हल्कू अलाव के सामने बैठा आग ताप रहा था । एक क्षण में उसने दोहर उताकर बगल में दबा ली, दोनों पाँव फैला दिए, मानों ठंड को ललकार रहा हो, तेरे जी में जो आये सो कर । ठंड की असीम शक्ति पर विजय पाकर वह विजय-गर्व को हृदय में छिपा न सकता था । उसने जबरा से कहा- क्यों जब्बर, अब ठंड नहीं लग रही है ? जब्बर ने कूँ-कूँ करके मानो कहा- अब क्या ठंड लगती ही रहेगी ? 'पहले से यह उपाय न सूझा, नहीं इतनी ठंड क्यों खाते ।' जब्बर ने पूँछ हिलायी । 'अच्छा आओ, इस अलाव को कूदकर पार करें । देखें, कौन निकल जाता है। अगर जल गए बच्चा, तो मैं दवा न करूँगा ।' जब्बर ने उस अग्निराशि की ओर कातर नेत्रों से देखा ! मुन्नी से कल न कह देना, नहीं तो लड़ाई करेगी । यह कहता हुआ वह उछला और उस अलाव के ऊपर से साफ निकल गया । पैरों में जरा लपट लगी, पर वह कोई बात न थी । जबरा आग के गिर्द घूमकर उसके पास आ खड़ा हुआ । हल्कू ने कहा- चलो-चलो इसकी सही नहीं ! ऊपर से कूदकर आओ । वह फिर कूदा और अलाव के इस पार आ गया । 4 पत्तियाँ जल चुकी थीं । बगीचे में फिर अंधेरा छा गया था । राख के नीचे कुछ-कुछ आग बाकी थी, जो हवा का झोंका आ जाने पर जरा जाग उठती थी, पर एक क्षण में फिर आँखें बंद कर लेती थी ! हल्कू ने फिर चादर ओढ़ ली और गर्म राख के पास बैठा हुआ एक गीत गुनगुनाने लगा । उसके बदन में गर्मी आ गयी थी, पर ज्यों-ज्यों शीत बढ़ती जाती थी, उसे आलस्य दबाये लेता था । जबरा जोर से भूँककर खेत की ओर भागा । हल्कू को ऐसा मालूम हुआ कि जानवरों का एक झुंड खेत में आया है। शायद नीलगायों का झुंड था । उनके कूदने-दौड़ने की आवाजें साफ कान में आ रही थी । फिर ऐसा मालूम हुआ कि खेत में चर रहीं हैं। उनके चबाने की आवाज चर-चर सुनाई देने लगी। उसने दिल में कहा- नहीं, जबरा के होते कोई जानवर खेत में नहीं आ सकता। नोच ही डाले। मुझे भ्रम हो रहा है। कहाँ! अब तो कुछ नहीं सुनाई देता। मुझे भी कैसा धोखा हुआ! उसने जोर से आवाज लगायी- जबरा, जबरा। जबरा भूँकता रहा। उसके पास न आया। फिर खेत के चरे जाने की आहट मिली। अब वह अपने को धोखा न दे सका। उसे अपनी जगह से हिलना जहर लग रहा था। कैसा दंदाया हुआ था। इस जाड़े-पाले में खेत में जाना, जानवरों के पीछे दौड़ना असह्य जान पड़ा। वह अपनी जगह से न हिला। उसने जोर से आवाज लगायी- लिहो-लिहो !लिहो! ! जबरा फिर भूँक उठा । जानवर खेत चर रहे थे । फसल तैयार है । कैसी अच्छी खेती थी, पर ये दुष्ट जानवर उसका सर्वनाश किये डालते हैं। हल्कू पक्का इरादा करके उठा और दो-तीन कदम चला, पर एकाएक हवा का ऐसा ठंडा, चुभने वाला, बिच्छू के डंक का-सा झोंका लगा कि वह फिर बुझते हुए अलाव के पास आ बैठा और राख को कुरेदकर अपनी ठंडी देह को गर्माने लगा । जबरा अपना गला फाड़ डालता था, नीलगायें खेत का सफाया किए डालती थीं और हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था । अकर्मण्यता ने रस्सियों की भाँति उसे चारों तरफ से जकड़ रखा था। उसी राख के पास गर्म जमीन पर वह चादर ओढ़ कर सो गया । सबेरे जब उसकी नींद खुली, तब चारों तरफ धूप फैल गयी थी और मुन्नी कह रही थी- क्या आज सोते ही रहोगे ? तुम यहाँ आकर रम गए और उधर सारा खेत चौपट हो गया । हल्कू ने उठकर कहा- क्या तू खेत से होकर आ रही है ? मुन्नी बोली- हाँ, सारे खेत का सत्यानाश हो गया । भला, ऐसा भी कोई सोता है। तुम्हारे यहाँ मड़ैया डालने से क्या हुआ ? हल्कू ने बहाना किया- मैं मरते-मरते बचा, तुझे अपने खेत की पड़ी है। पेट में ऐसा दरद हुआ कि मै ही जानता हूँ ! दोनों फिर खेत के डाँड़ पर आये । देखा, सारा खेत रौंदा पड़ा हुआ है और जबरा मड़ैया के नीचे चित लेटा है, मानो प्राण ही न हों । दोनों खेत की दशा देख रहे थे । मुन्नी के मुख पर उदासी छायी थी, पर हल्कू प्रसन्न था । मुन्नी ने चिंतित होकर कहा- अब मजूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी। हल्कू ने प्रसन्न मुख से कहा- रात को ठंड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा। 

मुंशी प्रेमचंद की कहानी- पंच परमेश्वर


पंच परमेश्वर- मुंशी प्रेमचंद

जुम्मन शेख अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी साझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गये थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गये थे, और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ देते थे। उनमें न खाना-पाना का व्यवहार था, न धर्म का नाता; केवल विचार मिलते थे। मित्रता का मूलमंत्र भी यही है। इस मित्रता का जन्म उसी समय हुआ, जब दोनों मित्र बालक ही थे, और जुम्मन के पूज्य पिता, जुमराती, उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे। अलगू ने गुरू जी की बहुत सेवा की थी, खूब प्याले धोये। उनका हुक्का एक क्षण के लिए भी विश्राम न लेने पाता था, क्योंकि प्रत्येक चिलम अलगू को आध घंटे तक किताबों से अलग कर देती थी। अलगू के पिता पुराने विचारों के मनुष्य थे। उन्हें शिक्षा की अपेक्षा गुरु की सेवा-शुश्रूषा पर अधिक विश्वास था। वह कहते थे कि विद्या पढ़ने ने नहीं आती; जो कुछ होता है, गुरु के आशीर्वाद से। बस, गुरु जी की कृपा-दृष्टि चाहिए। अतएव यदि अलगू पर जुमराती शेख के आशीर्वाद अथवा सत्संग का कुछ फल न हुआ, तो यह मानकर संतोष कर लेना कि विद्योपार्जन में मैंने यथाशक्ति कोई बात उठा नहीं रखी, विद्या उसके भाग्य ही में न थी, तो कैसे आती? मगर जुमराती शेख स्वयं आशीर्वाद के कायल न थे। उन्हें अपने सोटे पर अधिक भरोसा था, और उसी सोटे के प्रताप से आज-पास के गॉँवों में जुम्मन की पूजा होती थी। उनके लिखे हुए रेहननामे या बैनामे पर कचहरी का मुहर्रिर भी कदम न उठा सकता था। हल्के का डाकिया, कांस्टेबिल और तहसील का चपरासी--सब उनकी कृपा की आकांक्षा रखते थे। अतएव अलगू का मान उनके धन के कारण था, तो जुम्मन शेख अपनी अनमोल विद्या से ही सबके आदरपात्र बने थे। २ जुम्मन शेख की एक बूढ़ी खाला (मौसी) थी। उसके पास कुछ थोड़ी-सी मिलकियत थी; परन्तु उसके निकट संबंधियों में कोई न था। जुम्मन ने लम्बे-चौड़े वादे करके वह मिलकियत अपने नाम लिखवा ली थी। जब तक दानपत्र की रजिस्ट्री न हुई थी, तब तक खालाजान का खूब आदर-सत्कार किया गया; उन्हें खूब स्वादिष्ट पदार्थ खिलाये गये। हलवे-पुलाव की वर्षा- सी की गयी; पर रजिस्ट्री की मोहर ने इन खातिरदारियों पर भी मानों मुहर लगा दी। जुम्मन की पत्नी करीमन रोटियों के साथ कड़वी बातों के कुछ तेज, तीखे सालन भी देने लगी। जुम्मन शेख भी निठुर हो गये। अब बेचारी खालाजान को प्राय: नित्य ही ऐसी बातें सुननी पड़ती थी। बुढ़िया न जाने कब तक जियेगी। दो-तीन बीघे ऊसर क्या दे दिया, मानों मोल ले लिया है ! बघारी दाल के बिना रोटियॉँ नहीं उतरतीं ! जितना रुपया इसके पेट में झोंक चुके, उतने से तो अब तक गॉँव मोल ले लेते। कुछ दिन खालाजान ने सुना और सहा; पर जब न सहा गया तब जुम्मन से शिकायत की। तुम्मन ने स्थानीय कर्मचारी—गृहस्वांमी—के प्रबंध देना उचित न समझा। कुछ दिन तक दिन तक और यों ही रो-धोकर काम चलता रहा। अन्त में एक दिन खाला ने जुम्मन से कहा—बेटा ! तुम्हारे साथ मेरा निर्वाह न होगा। तुम मुझे रुपये दे दिया करो, मैं अपना पका-खा लूँगी। जुम्मन ने घृष्टता के साथ उत्तर दिया—रुपये क्या यहाँ फलते हैं? खाला ने नम्रता से कहा—मुझे कुछ रूखा-सूखा चाहिए भी कि नहीं? जुम्मन ने गम्भीर स्वर से जवाब़ दिया—तो कोई यह थोड़े ही समझा था कि तु मौत से लड़कर आयी हो? खाला बिगड़ गयीं, उन्होंने पंचायत करने की धमकी दी। जुम्मन हँसे, जिस तरह कोई शिकारी हिरन को जाली की तरफ जाते देख कर मन ही मन हँसता है। वह बोले—हॉँ, जरूर पंचायत करो। फैसला हो जाय। मुझे भी यह रात-दिन की खटखट पसंद नहीं। पंचायत में किसकी जीत होगी, इस विषय में जुम्मन को कुछ भी संदेह न थ। आस-पास के गॉँवों में ऐसा कौन था, उसके अनुग्रहों का ऋणी न हो; ऐसा कौन था, जो उसको शत्रु बनाने का साहस कर सके? किसमें इतना बल था, जो उसका सामना कर सके? आसमान के फरिश्ते तो पंचायत करने आवेंगे ही नहीं। ३ इसके बाद कई दिन तक बूढ़ी खाला हाथ में एक लकड़ी लिये आस-पास के गॉँवों में दौड़ती रहीं। कमर झुक कर कमान हो गयी थी। एक-एक पग चलना दूभर था; मगर बात आ पड़ी थी। उसका निर्णय करना जरूरी था। बिरला ही कोई भला आदमी होगा, जिसके समाने बुढ़िया ने दु:ख के ऑंसू न बहाये हों। किसी ने तो यों ही ऊपरी मन से हूँ-हॉँ करके टाल दिया, और किसी ने इस अन्याय पर जमाने को गालियाँ दीं। कहा—कब्र में पॉँव जटके हुए हैं, आज मरे, कल दूसरा दिन, पर हवस नहीं मानती। अब तुम्हें क्या चाहिए? रोटी खाओ और अल्लाह का नाम लो। तुम्हें अब खेती-बारी से क्या काम है? कुछ ऐसे सज्जन भी थे, जिन्हें हास्य-रस के रसास्वादन का अच्छा अवसर मिला। झुकी हुई कमर, पोपला मुँह, सन के-से बाल इतनी सामग्री एकत्र हों, तब हँसी क्यों न आवे? ऐसे न्यायप्रिय, दयालु, दीन-वत्सल पुरुष बहुत कम थे, जिन्होंने इस अबला के दुखड़े को गौर से सुना हो और उसको सांत्वना दी हो। चारों ओर से घूम-घाम कर बेचारी अलगू चौधरी के पास आयी। लाठी पटक दी और दम लेकर बोली—बेटा, तुम भी दम भर के लिये मेरी पंचायत में चले आना। अलगू—मुझे बुला कर क्या करोगी? कई गॉँव के आदमी तो आवेंगे ही। खाला—अपनी विपद तो सबके आगे रो आयी। अब आनरे न आने का अख्तियार उनको है। अलगू—यों आने को आ जाऊँगा; मगर पंचायत में मुँह न खोलूँगा। खाला—क्यों बेटा? अलगू—अब इसका कया जवाब दूँ? अपनी खुशी। जुम्मन मेरा पुराना मित्र है। उससे बिगाड़ नहीं कर सकता। खाला—बेटा, क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे? हमारे सोये हुए धर्म-ज्ञान की सारी सम्पत्ति लुट जाय, तो उसे खबर नहीं होता, परन्तु ललकार सुनकर वह सचेत हो जाता है। फिर उसे कोई जीत नहीं सकता। अलगू इस सवाल का काई उत्तर न दे सका, पर उसके हृदय में ये शब्द गूँज रहे थे- क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे? ४ संध्या समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी। शेख जुम्मन ने पहले से ही फर्श बिछा रखा था। उन्होंने पान, इलायची, हुक्के-तम्बाकू आदि का प्रबन्ध भी किया था। हॉँ, वह स्वय अलबत्ता अलगू चौधरी के साथ जरा दूर पर बैठेजब पंचायत में कोई आ जाता था, तब दवे हुए सलाम से उसका स्वागत करते थे। जब सूर्य अस्त हो गया और चिड़ियों की कलरवयुक्त पंचायत पेड़ों पर बैठी, तब यहॉँ भी पंचायत शुरू हुई। फर्श की एक-एक अंगुल जमीन भर गयी; पर अधिकांश दर्शक ही थे। निमंत्रित महाशयों में से केवल वे ही लोग पधारे थे, जिन्हें जुम्मन से अपनी कुछ कसर निकालनी थी। एक कोने में आग सुलग रही थी। नाई ताबड़तोड़ चिलम भर रहा था। यह निर्णय करना असम्भव था कि सुलगते हुए उपलों से अधिक धुऑं निकलता था या चिलम के दमों से। लड़के इधर-उधर दौड़ रहे थे। कोई आपस में गाली-गलौज करते और कोई रोते थे। चारों तरफ कोलाहल मच रहा था। गॉँव के कुत्ते इस जमाव को भोज समझकर झुंड के झुंड जमा हो गए थे। पंच लोग बैठ गये, तो बूढ़ी खाला ने उनसे विनती की-- ‘पंचों, आज तीन साल हुए, मैंने अपनी सारी जायदाद अपने भानजे जुम्मन के नाम लिख दी थी। इसे आप लोग जानते ही होंगे। जुम्मन ने मुझे ता-हयात रोटी-कपड़ा देना कबूल किया। साल-भर तो मैंने इसके साथ रो-धोकर काटा। पर अब रात-दिन का रोना नहीं सहा जाता। मुझे न पेट की रोटी मिलती है न तन का कपड़ा। बेकस बेवा हूँ। कचहरी दरबार नहीं कर सकती। तुम्हारे सिवा और किसको अपना दु:ख सुनाऊँ? तुम लोग जो राह निकाल दो, उसी राह पर चलूँ। अगर मुझमें कोई ऐब देखो, तो मेरे मुँह पर थप्पड़ मारी। जुम्मन में बुराई देखो, तो उसे समझाओं, क्यों एक बेकस की आह लेता है ! मैं पंचों का हुक्म सिर-माथे पर चढ़ाऊँगी।’ रामधन मिश्र, जिनके कई असामियों को जुम्मन ने अपने गांव में बसा लिया था, बोले—जुम्मन मियां किसे पंच बदते हो? अभी से इसका निपटारा कर लो। फिर जो कुछ पंच कहेंगे, वही मानना पड़ेगा। जुम्मन को इस समय सदस्यों में विशेषकर वे ही लोग दीख पड़े, जिनसे किसी न किसी कारण उनका वैमनस्य था। जुम्मन बोले—पंचों का हुक्म अल्लाह का हुक्म है। खालाजान जिसे चाहें, उसे बदें। मुझे कोई उज्र नहीं। खाला ने चिल्लाकर कहा--अरे अल्लाह के बन्दे ! पंचों का नाम क्यों नहीं बता देता? कुछ मुझे भी तो मालूम हो। जुम्मन ने क्रोध से कहा--इस वक्त मेरा मुँह न खुलवाओ। तुम्हारी बन पड़ी है, जिसे चाहो, पंच बदो। खालाजान जुम्मन के आक्षेप को समझ गयीं, वह बोली--बेटा, खुदा से डरो। पंच न किसी के दोस्त होते हैं, ने किसी के दुश्मन। कैसी बात कहते हो! और तुम्हारा किसी पर विश्वास न हो, तो जाने दो; अलगू चौधरी को तो मानते हो, लो, मैं उन्हीं को सरपंच बदती हूँ। जुम्मन शेख आनंद से फूल उठे, परन्तु भावों को छिपा कर बोले--अलगू ही सही, मेरे लिए जैसे रामधन वैसे अलगू। अलगू इस झमेले में फँसना नहीं चाहते थे। वे कन्नी काटने लगे। बोले--खाला, तुम जानती हो कि मेरी जुम्मन से गाढ़ी दोस्ती है। खाला ने गम्भीर स्वर में कहा--‘बेटा, दोस्ती के लिए कोई अपना ईमान नहीं बेचता। पंच के दिल में खुदा बसता है। पंचों के मुँह से जो बात निकलती है, वह खुदा की तरफ से निकलती है।’ अलगू चौधरी सरपंच हुएं रामधन मिश्र और जुम्मन के दूसरे विरोधियों ने बुढ़िया को मन में बहुत कोसा। अलगू चौधरी बोले--शेख जुम्मन ! हम और तुम पुराने दोस्त हैं ! जब काम पड़ा, तुमने हमारी मदद की है और हम भी जो कुछ बन पड़ा, तुम्हारी सेवा करते रहे हैं; मगर इस समय तुम और बुढ़ी खाला, दोनों हमारी निगाह में बराबर हो। तुमको पंचों से जो कुछ अर्ज करनी हो, करो। जुम्मन को पूरा विश्वास था कि अब बाजी मेरी है। अलग यह सब दिखावे की बातें कर रहा है। अतएव शांत-चित्त हो कर बोले--पंचों, तीन साल हुए खालाजान ने अपनी जायदाद मेरे नाम हिब्बा कर दी थी। मैंने उन्हें ता-हयात खाना-कप्ड़ा देना कबूल किया था। खुदा गवाह है, आज तक मैंने खालाजान को कोई तकलीफ नहीं दी। मैं उन्हें अपनी मॉँ के समान समझता हूँ। उनकी खिदमत करना मेरा फर्ज है; मगर औरतों में जरा अनबन रहती है, उसमें मेरा क्या बस है? खालाजान मुझसे माहवार खर्च अलग मॉँगती है। जायदाद जितनी है; वह पंचों से छिपी नहीं। उससे इतना मुनाफा नहीं होता है कि माहवार खर्च दे सकूँ। इसके अलावा हिब्बानामे में माहवार खर्च का कोई जिक्र नही। नहीं तो मैं भूलकर भी इस झमेले मे न पड़ता। बस, मुझे यही कहना है। आइंदा पंचों का अख्तियार है, जो फैसला चाहें, करे। अलगू चौधरी को हमेशा कचहरी से काम पड़ता था। अतएव वह पूरा कानूनी आदमी था। उसने जुम्मन से जिरह शुरू की। एक-एक प्रश्न जुम्मन के हृदय पर हथौड़ी की चोट की तरह पड़ता था। रामधन मिश्र इस प्रश्नों पर मुग्ध हुए जाते थे। जुम्मन चकित थे कि अलगू को क्या हो गया। अभी यह अलगू मेरे साथ बैठी हुआ कैसी-कैसी बातें कर रहा था ! इतनी ही देर में ऐसी कायापलट हो गयी कि मेरी जड़ खोदने पर तुला हुआ है। न मालूम कब की कसर यह निकाल रहा है? क्या इतने दिनों की दोस्ती कुछ भी काम न आवेगी? जुम्मन शेख तो इसी संकल्प-विकल्प में पड़े हुए थे कि इतने में अलगू ने फैसला सुनाया-- जुम्मन शेख तो इसी संकल्प-विकल्प में पड़े हुए थे कि इतने में अलगू ने फैसला सुनाया-- जुम्मन शेख ! पंचों ने इस मामले पर विचार किया। उन्हें यह नीति संगत मालूम होता है कि खालाजान को माहवार खर्च दिया जाय। हमारा विचार है कि खाला की जायदाद से इतना मुनाफा अवश्य होता है कि माहवार खर्च दिया जा सके। बस, यही हमारा फैसला है। अगर जुम्मन को खर्च देना मंजूर न हो, तो हिब्वानामा रद्द समझा जाय। यह फैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में आ गये। जो अपना मित्र हो, वह शत्रु का व्यवहार करे और गले पर छुरी फेरे, इसे समय के हेर-फेर के सिवा और क्या कहें? जिस पर पूरा भरोसा था, उसने समय पड़ने पर धोखा दिया। ऐसे ही अवसरों पर झूठे-सच्चे मित्रों की परीक्षा की जाती है। यही कलियुग की दोस्ती है। अगर लोग ऐसे कपटी-धोखेबाज न होते, तो देश में आपत्तियों का प्रकोप क्यों होता? यह हैजा-प्लेग आदि व्याधियॉँ दुष्कर्मों के ही दंड हैं। मगर रामधन मिश्र और अन्य पंच अलगू चौधरी की इस नीति-परायणता को प्रशंसा जी खोलकर कर रहे थे। वे कहते थे--इसका नाम पंचायत है ! दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। दोस्ती, दोस्ती की जगह है, किन्तु धर्म का पालन करना मुख्य है। ऐसे ही सत्यवादियों के बल पर पृथ्वी ठहरी है, नहीं तो वह कब की रसातल को चली जाती। इस फैसले ने अलगू और जुम्मन की दोस्ती की जड़ हिला दी। अब वे साथ-साथ बातें करते नहीं दिखायी देते। इतना पुराना मित्रता-रूपी वृक्ष सत्य का एक झोंका भी न सह सका। सचमुच वह बालू की ही जमीन पर खड़ा था। उनमें अब शिष्टाचार का अधिक व्यवहार होने लगा। एक दूसरे की आवभगत ज्यादा करने लगा। वे मिलते-जुलते थे, मगर उसी तरह जैसे तलवार से ढाल मिलती है। जुम्मन के चित्त में मित्र की कुटिलता आठों पहर खटका करती थी। उसे हर घड़ी यही चिंता रहती थी कि किसी तरह बदला लेने का अवसर मिले। ५ अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी दरे लगती है; पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं होती; जुम्मन को भी बदला लेने का अवसर जल्द ही मिल गया। पिछले साल अलगू चौधरी बटेसर से बैलों की एक बहुत अच्छी गोई मोल लाये थे। बैल पछाहीं जाति के सुंदर, बडे-बड़े सीगोंवाले थे। महीनों तक आस-पास के गॉँव के लोग दर्शन करते रहे। दैवयोग से जुम्मन की पंचायत के एक महीने के बाद इस जोड़ी का एक बैल मर गया। जुम्मन ने दोस्तों से कहा--यह दग़ाबाज़ी की सजा है। इन्सान सब्र भले ही कर जाय, पर खुदा नेक-बद सब देखता है। अलगू को संदेह हुआ कि जुम्मन ने बैल को विष दिला दिया है। चौधराइन ने भी जुम्मन पर ही इस दुर्घटना का दोषारोपण किया उसने कहा--जुम्मन ने कुछ कर-करा दिया है। चौधराइन और करीमन में इस विषय पर एक दिन खुब ही वाद-विवाद हुआ दोनों देवियों ने शब्द-बाहुल्य की नदी बहा दी। व्यंगय, वक्तोक्ति अन्योक्ति और उपमा आदि अलंकारों में बातें हुईं। जुम्मन ने किसी तरह शांति स्थापित की। उन्होंने अपनी पत्नी को डॉँट-डपट कर समझा दिया। वह उसे उस रणभूमि से हटा भी ले गये। उधर अलगू चौधरी ने समझाने-बुझाने का काम अपने तर्क-पूर्ण सोंटे से लिया। अब अकेला बैल किस काम का? उसका जोड़ बहुत ढूँढ़ा गया, पर न मिला। निदान यह सलाह ठहरी कि इसे बेच डालना चाहिए। गॉँव में एक समझू साहु थे, वह इक्का-गाड़ी हॉँकते थे। गॉँव के गुड़-घी लाद कर मंडी ले जाते, मंडी से तेल, नमक भर लाते, और गॉँव में बेचते। इस बैल पर उनका मन लहराया। उन्होंने सोचा, यह बैल हाथ लगे तो दिन-भर में बेखटके तीन खेप हों। आज-कल तो एक ही खेप में लाले पड़े रहते हैं। बैल देखा, गाड़ी में दोड़ाया, बाल-भौरी की पहचान करायी, मोल-तोल किया और उसे ला कर द्वार पर बॉँध ही दिया। एक महीने में दाम चुकाने का वादा ठहरा। चौधरी को भी गरज थी ही, घाटे की परवाह न की। समझू साहु ने नया बैल पाया, तो लगे उसे रगेदने। वह दिन में तीन-तीन, चार-चार खेपें करने लगे। न चारे की फिक्र थी, न पानी की, बस खेपों से काम था। मंडी ले गये, वहॉँ कुछ सूखा भूसा सामने डाल दिया। बेचारा जानवर अभी दम भी न लेने पाया था कि फिर जोत दिया। अलगू चौधरी के घर था तो चैन की बंशी बचती थी। बैलराम छठे-छमाहे कभी बहली में जोते जाते थे। खूब उछलते-कूदते और कोसों तक दौड़ते चले जाते थे। वहॉँ बैलराम का रातिब था, साफ पानी, दली हुई अरहर की दाल और भूसे के साथ खली, और यही नहीं, कभी-कभी घी का स्वाद भी चखने को मिल जाता था। शाम-सबेरे एक आदमी खरहरे करता, पोंछता और सहलाता था। कहॉँ वह सुख-चैन, कहॉँ यह आठों पहर कही खपत। महीने-भर ही में वह पिस-सा गया। इक्के का यह जुआ देखते ही उसका लहू सूख जाता था। एक-एक पग चलना दूभर था। हडिडयॉँ निकल आयी थी; पर था वह पानीदार, मार की बरदाश्त न थी। एक दिन चौथी खेप में साहु जी ने दूना बोझ लादा। दिन-भरका थका जानवर, पैर न उठते थे। पर साहु जी कोड़े फटकारने लगे। बस, फिर क्या था, बैल कलेजा तोड़ का चला। कुछ दूर दौड़ा और चाहा कि जरा दम ले लूँ; पर साहु जी को जल्द पहुँचने की फिक्र थी; अतएव उन्होंने कई कोड़े बड़ी निर्दयता से फटकारे। बैल ने एक बार फिर जोर लगाया; पर अबकी बार शक्ति ने जवाब दे दिया। वह धरती पर गिर पड़ा, और ऐसा गिरा कि फिर न उठा। साहु जी ने बहुत पीटा, टॉँग पकड़कर खीचा, नथनों में लकड़ी ठूँस दी; पर कहीं मृतक भी उठ सकता है? तब साहु जी को कुछ शक हुआ। उन्होंने बैल को गौर से देखा, खोलकर अलग किया; और सोचने लगे कि गाड़ी कैसे घर पहुँचे। बहुत चीखे-चिल्लाये; पर देहात का रास्ता बच्चों की ऑंख की तरह सॉझ होते ही बंद हो जाता है। कोई नजर न आया। आस-पास कोई गॉँव भी न था। मारे क्रोध के उन्होंने मरे हुए बैल पर और दुर्रे लगाये और कोसने लगे--अभागे। तुझे मरना ही था, तो घर पहुँचकर मरता ! ससुरा बीच रास्ते ही में मर रहा। अब गड़ी कौन खीचे? इस तरह साहु जी खूब जले-भुने। कई बोरे गुड़ और कई पीपे घी उन्होंने बेचे थे, दो-ढाई सौ रुपये कमर में बंधे थे। इसके सिवा गाड़ी पर कई बोरे नमक थे; अतएव छोड़ कर जा भी न सकते थे। लाचार वेचारे गाड़ी पर ही लेटे गये। वहीं रतजगा करने की ठान ली। चिलम पी, गाया। फिर हुक्का पिया। इस तरह साह जी आधी रात तक नींद को बहलाते रहें। अपनी जान में तो वह जागते ही रहे; पर पौ फटते ही जो नींद टूटी और कमर पर हाथ रखा, तो थैली गायब ! घबरा कर इधर-उधर देखा तो कई कनस्तर तेल भी नदारत ! अफसोस में बेचारे ने सिर पीट लिया और पछाड़ खाने लगा। प्रात: काल रोते-बिलखते घर पहँचे। सहुआइन ने जब यह बूरी सुनावनी सुनी, तब पहले तो रोयी, फिर अलगू चौधरी को गालियॉँ देने लगी--निगोड़े ने ऐसा कुलच्छनी बैल दिया कि जन्म-भर की कमाई लुट गयी। इस घटना को हुए कई महीने बीत गए। अलगू जब अपने बैल के दाम मॉँगते तब साहु और सहुआइन, दोनों ही झल्लाये हुए कुत्ते की तरह चढ़ बैठते और अंड-बंड बकने लगते—वाह ! यहॉँ तो सारे जन्म की कमाई लुट गई, सत्यानाश हो गया, इन्हें दामों की पड़ी है। मुर्दा बैल दिया था, उस पर दाम मॉँगने चले हैं ! ऑंखों में धूल झोंक दी, सत्यानाशी बैल गले बॉँध दिया, हमें निरा पोंगा ही समझ लिया है ! हम भी बनिये के बच्चे है, ऐसे बुद्धू कहीं और होंगे। पहले जाकर किसी गड़हे में मुँह धो आओ, तब दाम लेना। न जी मानता हो, तो हमारा बैल खोल ले जाओ। महीना भर के बदले दो महीना जोत लो। और क्या लोगे? चौधरी के अशुभचिंतकों की कमी न थी। ऐसे अवसरें पर वे भी एकत्र हो जाते और साहु जी के बराने की पुष्टि करते। परन्तु डेढ़ सौ रुपये से इस तरह हाथ धो लेना आसान न था। एक बार वह भी गरम पड़े। साहु जी बिगड़ कर लाठी ढूँढ़ने घर चले गए। अब सहुआइन ने मैदान लिया। प्रश्नोत्तर होते-होते हाथापाई की नौबत आ पहुँची। सहुआइन ने घर में घुस कर किवाड़ बन्द कर लिए। शोरगुल सुनकर गॉँव के भलेमानस घर से निकाला। वह परामर्श देने लगे कि इस तरह से काम न चलेगा। पंचायत कर लो। कुछ तय हो जाय, उसे स्वीकार कर लो। साहु जी राजी हो गए। अलगू ने भी हामी भर ली। ६ पंचायत की तैयारियॉँ होने लगीं। दोनों पक्षों ने अपने-अपने दल बनाने शुरू किए। इसके बाद तीसरे दिन उसी वृक्ष के नीचे पंचायत बैठी। वही संध्या का समय था। खेतों में कौए पंचायत कर रहे थे। विवादग्रस्त विषय था यह कि मटर की फलियों पर उनका कोई स्वत्व है या नही, और जब तक यह प्रश्न हल न हो जाय, तब तक वे रखवाले की पुकार पर अपनी अप्रसन्नता प्रकट करना आवश्यकत समझते थे। पेड़ की डालियों पर बैठी शुक-मंडली में वह प्रश्न छिड़ा हुआ था कि मनुष्यों को उन्हें वेसुरौवत कहने का क्या अधिकार है, जब उन्हें स्वयं अपने मित्रों से दगां करने में भी संकोच नहीं होता। पंचायत बैठ गई, तो रामधन मिश्र ने कहा-अब देरी क्या है ? पंचों का चुनाव हो जाना चाहिए। बोलो चौधरी ; किस-किस को पंच बदते हो। अलगू ने दीन भाव से कहा-समझू साहु ही चुन लें। समझू खड़े हुए और कड़कर बोले-मेरी ओर से जुम्मन शेख। जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू चौधरी का कलेजा धक्-धक् करने लगा, मानों किसी ने अचानक थप्पड़ मारा दिया हो। रामधन अलगू के मित्र थे। वह बात को ताड़ गए। पूछा-क्यों चौधरी तुम्हें कोई उज्र तो नही। चौधरी ने निराश हो कर कहा-नहीं, मुझे क्या उज्र होगा? अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है। जब हम राह भूल कर भटकने लगते हैं तब यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ-प्रदर्शक बन जाता है। पत्र-संपादक अपनी शांति कुटी में बैठा हुआ कितनी धृष्टता और स्वतंत्रता के साथ अपनी प्रबल लेखनी से मंत्रिमंडल पर आक्रमण करता है: परंतु ऐसे अवसर आते हैं, जब वह स्वयं मंत्रिमंडल में सम्मिलित होता है। मंडल के भवन में पग धरते ही उसकी लेखनी कितनी मर्मज्ञ, कितनी विचारशील, कितनी न्याय-परायण हो जाती है। इसका कारण उत्तर-दायित्व का ज्ञान है। नवयुवक युवावस्था में कितना उद्दंड रहता है। माता-पिता उसकी ओर से कितने चितिति रहते है! वे उसे कुल-कलंक समझते हैंपरन्तु थौड़ी हीी समय में परिवार का बौझ सिर पर पड़ते ही वह अव्यवस्थित-चित्त उन्मत्त युवक कितना धैर्यशील, कैसा शांतचित्त हो जाता है, यह भी उत्तरदायित्व के ज्ञान का फल है। जुम्मन शेख के मन में भी सरपंच का उच्च स्थान ग्रहण करते ही अपनी जिम्मेदारी का भाव पेदा हुआ। उसने सोचा, मैं इस वक्त न्याय और धर्म के सर्वोच्च आसन पर बैठा हूँ। मेरे मुँह से इस समय जो कुछ निकलेगा, वह देववाणी के सदृश है-और देववाणी में मेरे मनोविकारों का कदापि समावेश न होना चाहिए। मुझे सत्य से जौ भर भी टलना उचित नही! पंचों ने दोनों पक्षों से सवाल-जवाब करने शुरू किए। बहुत देर तक दोनों दल अपने-अपने पक्ष का समर्थन करते रहे। इस विषय में तो सब सहमत थे कि समझू को बैल का मूल्य देना चाहिए। परन्तु वो महाशय इस कारण रियायत करना चाहते थे कि बैल के मर जाने से समझू को हानि हुई। उसके प्रतिकूल दो सभ्य मूल के अतिरिक्त समझू को दंड भी देना चाहते थे, जिससे फिर किसी को पशुओं के साथ ऐसी निर्दयता करने का साहस न हो। अन्त में जुम्मन ने फैसला सुनाया- अलगू चौधरी और समझू साहु। पंचों ने तुम्हारे मामले पर अच्छी तरह विचार किया। समझू को उचित है कि बैल का पूरा दाम दें। जिस वक्त उन्होंने बैल लिया, उसे कोई बीमारी न थी। अगर उसी समय दाम दे दिए जाते, तो आज समझू उसे फेर लेने का आग्रह न करते। बैल की मृत्यु केवल इस कारण हुई कि उससे बड़ा कठिन परिश्रम लिया गया और उसके दाने-चारे का कोई प्रबंध न किया गया। रामधन मिश्र बोले-समझू ने बैल को जान-बूझ कर मारा है, अतएव उससे दंड लेना चाहिए। जुम्मन बोले-यह दूसरा सवाल है। हमको इससे कोई मतलब नहीं ! झगडू साहु ने कहा-समझू के साथं कुछ रियायत होनी चाहिए। जुम्मन बोले-यह अलगू चौधरी की इच्छा पर निर्भर है। यह रियायत करें, तो उनकी भलमनसी। अलगू चौधरी फूले न समाए। उठ खड़े हुए और जोर से बोल-पंच-परमेश्वर की जय! इसके साथ ही चारों ओर से प्रतिध्वनि हुई-पंच परमेश्वर की जय! यह मनुष्य का काम नहीं, पंच में परमेश्वर वास करते हैं, यह उन्हीं की महिमा है। पंच के सामने खोटे को कौन खरा कह सकता है? थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आए और उनके गले लिपट कर बोले-भैया, जब से तुमने मेरी पंचायत की तब से मैं तुम्हारा प्राण-घातक शत्रु बन गया था; पर आज मुझे ज्ञात हुआ कि पंच के पद पर बैठ कर न कोई किसी का दोस्त है, न दुश्मन। न्याय के सिवा उसे और कुछ नहीं सूझता। आज मुझे विश्वास हो गया कि पंच की जबान से खुदा बोलता है। अलगू रोने लगे। इस पानी से दोनों के दिलों का मैल धुल गया। मित्रता की मुरझाई हुई लता फिर हरी हो गई।

जो सच सच बोलेंगे मारे जाएंगे। - राजेश जोशी की एक कविता


जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे

मारे जाएंगे।

कठघरे मे खडे् कर दिए जाएंगे जो विरोध में बोलेंगे

जो सच सच बोलेंगे मारे जाएंगे।

बर्दाश्त नहीं किया जाएगा कि किसी की कमीज हो

उनकी कमीज से ज्यादा सफेद

कमीज पर जिनके दाग नहीं होंगे मारे जाएंगे।

धकेल दिए जाएंगे कला की दुनिया से बाहर

जो चारण नहीं होंगे

जो गुण नही गाएंगे मारे जाएंगे।

धर्म की ध्वजा उठाने जो नहीं जाएंगे जुलूस में

गोलियां भून डालेंगीं उन्हें काफिर करार दिए जाएंगे।

सबसे बडा् अपराध है इस समय में

निहत्थे और निरपराधी होना

जो अपराधी नही होंगे मारे जायेंगे

- राजेश जोशी मौजूदा दौर के महत्वपूर्ण कवि

ब्रह्मराक्षस का शिष्य


ब्रह्मराक्षस का शिष्य

कहानी : मुक्तिबोध

उस महाभव्य भवन की आठवीं मंजिल के जीने से सातवीं मंजिल के जीने की सूनी-सूनी सीढियों पर उतरते हुए, उस विद्यार्थी का चेहरा भीतर से किसी प्रकाश से लाल हो रहा था। वह चमत्कार उसे प्रभावित नहीं कर रहा था, जो उसने हाल-हाल में देखा। तीन कमरे पार करता हुआ वह विशाल वज्रबाहु हाथ उसकी आँखों के सामने फिर से खिंच जाता। उस हाथ की पवित्रता ही उसके खयाल में जाती किन्तु वह चमत्कार, चमत्कार के रूप में उसे प्रभावित नहीं करता था। उस चमत्कार के पीछे ऐसा कुछ है, जिसमें वह घुल रहा है, लगातार घुलता जा रहा है। वह कुछ क्या एक महापण्डित की जिन्दगी का सत्य नहीं है? नहीं, वही है! वही है! पाँचवी मंजिल से चौथी मंजिल पर उतरते हुए, ब्रह्मचारी विद्यार्थी, उस प्राचीन भव्य भवन की सूनी-सूनी सीढियों पर यह श्लोक गाने लगता है। मेघैर्मेदुरमम्बरं वनभवः श्यामास्तमालद्रुमैः - इस भवन से ठीक बारह वर्ष के बाद यह विद्यार्थी बाहर निकला है। उसके गुरू ने जाते समय, राधा-माधव की यमुना-कूल-क्रीडा में घर भूली हुई राधा को बुला रहे नन्द के भाव प्रकट किये हैं। गुरू ने एक साथ श्रृंगार और वात्सल्य का बोध विद्यार्थी को करवाया। विद्याध्ययन के बाद, अब उसे पिता के चरण छूना है। पिताजी! पिताजी! माँ! माँ! यह ध्वनि उसके हृदय से फूट निकली। किन्तु ज्यों-ज्यों वह छन्द सूने भवन में गूँजता, घूमता गया त्यों-त्यों विद्यार्थी के हृदय में अपने गुरू की तसवीर और भी तीव्रता से चमकने लगी। भाग्यवान् है वह जिसे ऐसा गुरू मिले! जब वह चिडियों के घोंसलों और बर्रों के छत्तों-भरे सूने ऊँचे सिंहाद्वार के बाहर निकला तो एकाएक राह से गुजरते हुए लोग भूत भूत कह कर भाग खडे हुए। आज तक उस भवन में कोई नहीं गया था। लोगों की धारणा थी कि वहाँ एक ब्रह्मराक्षस रहता है। बारह साल और कुछ दिन पहले -- सडक़ पर दोपहर के दो बजे, एक देहाती लडक़ा, भूखा-प्यासा अपने सूखे होठों पर जीभ फेरता हुआ, उसी बगल वाले ऊँचे सेमल के वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था। हवा के झोकों से, फूलों के फलों का रेशमी कपास हवा में तैरता हुआ, दूर-दूर तक और इधर-उधर बिखर रहा था। उसके माथे पर फिक्रें गुँथ-बिंध रही थीं। उसने पास में पडी हुई एक मोटी ईंट सिरहाने रखी और पेड-तले लेट गया। धीरे-धीरे, उसकी विचार-मग्नता को तोडते हुए कान के पास उसे कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी। उसने ध्यान से सुनने की कोशिश की। वे कौन थे? उनमें से एक कह रहा था, ''अरे, वह भट्ट। नितान्त मूर्ख है और दम्भी भी। मैंने जब उसे ईशावास्योपनिषद् की कुछ पंक्तियों का अर्थ पूछा, तो वह बौखला उठा। इस काशी में कैसे-कैसे दम्भी इकठ्ठे हुए हैं? वार्तालाप सुनकर वह लेटा हुआ लडक़ा खट से उठ बैठा। उसका चेहरा धूल और पसीने से म्लान और मलिन हो गया था, भूख और प्यास से निर्जीव। वह एकदम, बात करनेवालों के पास खडा हुआ। हाथ जोडे, माथा जमीन पर टेका। चेहरे पर आश्चर्य और प्रार्थना के दयनीय भाव! कहने लगा, हे विद्वानों! मैं मूर्ख हूँ। अपढ देहाती हूँ किन्तु ज्ञान-प्राप्ति की महत्वाकांक्षा रखता हूँ। हे महाभागो! आप विद्यार्थी प्रतीत होते हैं। मुझे विद्वान गुरू के घर की राह बताओ। पेड-तले बैठे हुए दो बटुक विद्यार्थी उस देहाती को देखकर हँसने लगे; पूछा - कहाँ से आया है? दक्षिण के एक देहात से! ...पढने-लिखने से मैंने बैर किया तो विद्वान् पिताजी ने घर से निकाल दिया। तब मैंने पक्का निश्चय कर लिया कि काशी जाकर विद्याध्ययन करूँगा। जंगल-जंगल घूमता, राह पूछता, मैं आज ही काशी पहुँचा हूँ। कृपा करके गुरू का दर्शन कराइए। अब दोनों विद्यार्थी जोर-जोर से हँसने लगे। उनमें-से एक, जो विदूषक था, कहने लगा -- देख बे सामने सिंहद्वार है। उसमें घुस जा, तुझे गुरू मिल जायेगा। कह कर वह ठठाकर हँस पडा। आशा न थी कि गुरू बिलकुल सामने ही है। देहाती लडक़े ने अपना डेरा-डण्डा सँभाला और बिना प्रणाम किये तेजी से कदम बढाता हुआ भवन में दाखिल हो गया। दूसरे बटुक ने पहले से पूछा, तुमने अच्छा किया उसे वहाँ भेज कर? उसके हृदय में खेद था और पाप की भावना। दूसरा बटुक चुप था। उसने अपने किये पर खिन्न होकर सिर्फ इतना ही कहा, आखिर ब्रह्मराक्षस का रहस्य भी तो मालूम हो। सिंहद्वार की लाल-लाल बरें गूँ-गूँ करती उसे चारों ओर से काटने के लिए दौडी; लेकिन ज्यों ही उसने उसे पार कर लिया तो सूरज की धूप में चमकनेवाली भूरी घास से भरे, विशाल, सूने आँगन के आस-पास, चारों ओर उसे बरामदे दिखाई दिये -- विशाल, भव्य और सूने बरामदे जिनकी छतों में फानूस लटक रहे थे। लगता था कि जैसे अभी-अभी उन्हें कोई साफ करके गया हो! लेकिन वहाँ कोई नहीं था। आँगन से दीखनेवाली तीसरी मंजिल की छज्जेवाली मुँडेरे पर एक बिल्ली सावधानी से चलती हुई दिखाई दे रही थी। उसे एक जीना भी दिखाई दिया, लम्बा-चौडा, साफ-सुथरा। उसकी सीढियाँ ताजे गोबर से पुती हुई थीं। उसकी महक नाक में घुस रही थी। सीढियों पर उसके चलने की आवाज गूँजती; पर कहीं, कुछ नहीं! वह आगे-आगे चढता-बढता गया। दूसरी मंजिल के छज्जे मिले जो बीच के आँगन के चारों ओर फैले हुए थे। उनमें सफेद चादर लगी गद्दियाँ दूर-दूर तक बिछी हुई थीं। एक ओर मृदंग, तबला, सितार आदि अनेक वाद्य-यन्त्र करीने से रखे हुए थे। रंग-बिरंगे फानूस लटक रहे थे और कहीं अगरबत्तियाँ जल रही थीं। इतनी प्रबन्ध-व्यवस्था के बाद भी उसे कहीं मनुष्य के दर्शन नहीं हुए। और न कोई पैरों की आवाजें सुनाई दीं, सिवाय अपनी पग-ध्वनि के। उसने सोचा शायद ऊपर कोई होगा। उसने तीसरी मंजिल पर जाकर देखा। फिर वही सफेद-सफेद गद्दियाँ, फिर वही फानूस, फिर वही अगरबत्तियाँ। वही खाली-खालीपन, वही सूनापन, वही विशालता, वही भव्यता और वही मनुष्य-हीनता। अब उस देहाती के दिल में से आह निकली। यह क्या? यह कहाँ फँस गया; लेकिन इतनी व्यवस्था है तो कहीं कोई और जरूर होगा। इस खयाल से उसका डर कम हुआ और वह बरामदे में से गुजरता हुआ अगले जीने पर चढने लगा। इन बरामदों में कोई सजावट नहीं थी। सिर्फ दरियाँ बिछी हुई थीं। कुछ तैल-चित्र टँगे थे। खिडक़ियाँ खुली हुई थीं जिनमें-से सूरज की पीली किरणें आ रही थीं। दूर ही से खिडक़ी के बाहर जो नजर जाती तो बाहर का हरा-भरा ऊँचा-नीचा, माल-तलैयों, पेडों-पहाडों वाला नजारा देखकर पता चलता कि यह मंजिल कितनी ऊँची हैं और कितनी निर्जन। अब वह देहाती लडक़ा भयभीत हो गया। यह विशालता और निर्जनता उसे आतंकित करने लगी। वह डरने लगा। लेकिन वह इतना ऊपर आ गया था कि नीचे देखने ही से आँखों में चक्कर आ जाता। उसने ऊपर देखा तो सिर्फ एक ही मंजिल शेष थी। उसने अगले जीने से ऊपर की मंजिल चढना तय किया। डण्डा कन्धे पर रखे और गठरी खोंसे वह लडक़ा धीरे-धीरे अगली मंजिल का जीना चढने लगा। उसके पैरों की आवाज उसी से जाने क्या फुसलाती और उसकी रीढ क़ी हड्डी में-से सर्द संवेदनाएँ गुजरने लगतीं। जीन खत्म हुआ तो फिर एक भव्य बरामदा मिला, लिपा-पुता और अगरू-गन्ध से महकता हुआ। सभी ओर मृगासन, व्याघ्रासन बिछे हुए। एक ओर योजनों विस्तार-दृश्य देखती, खिडक़ी के पास देव-पूजा में संलग्न-मन मुँदी आँखोंवाले ॠषि-मनीषि कश्मीर की कीमती शाल ओढे ध्यानस्थ बैठे। लडक़े को हर्ष हुआ। उसने दरवाजे पर मत्था टेका। आनन्द के आँसू आँखों में खिल उठे। उसे स्वर्ग मिल गया। ध्यान-मुद्रा भंग नहीं हुई तो मन-ही-मन माने हुए गुरू को प्रणाम कर लडक़ा जीने की सर्वोच्च सीढी पर लेट गया। तुरन्त ही उसे नींद आ गयी। वह गहरे सपनों में खो गया। थकित शरीर और सन्तुष्ट मन ने उसकी इच्छाओं को मूर्त-रूप दिया। ..वह विद्वान् बन कर देहात में अपने पिता के पास वापस पहुँच गया है। उनके चरणों को पकडे, उन्हें अपने आँसुओं से तर कर रहा है और आर्द्र-हृदय हो कर कह रहा है, पिताजी! मैं विद्वान बन कर आ गया, मुझे और सिखाइए। मुझे राह बताइए। पिताजी! पिताजी! और माँ अंचल से अपनी आँखें पोंछती हुई, पुत्र के ज्ञान-गौरव से भर कर, उसे अपने हाथ से खींचती हुई गोद में भर रही है। साश्रुमुख पिता का वात्सल्य-भरा हाथ उसके शीश पर आशीर्वाद का छत्र बन कर फैला हुआ है। वह देहाती लडक़ा चल पडा और देखा कि उस तेजस्वी ब्राह्मण का दैदिप्यमान चेहरा, जो अभी-अभी मृदु और कोमल होकर उस पर किरनें बिखेर रहा था, कठोर और अजनबी होता जा रहा है। ब्राह्मण ने कठोर होकर कहा, तुमने यहाँ आने का कैसे साहस किया? यहाँ कैसे आये?लडक़े ने मत्था टेका, भगवन्! मैं मूढ हूँ, निरक्षर हूँ, ज्ञानार्जन करने के लिए आया हूँ। ब्राह्मण कुछ हँसा। उसकी आवाज धीमी हो गयी किन्तु दृढता वही रही। सूखापन और कठोरता वही। तूने निश्चय कर लिया है? जी! नहीं, तुझे निश्चय की आदत नहीं है; एक बार और सोच ले! ...ज़ा फिलहाल नहा-धो उस कमरे में, वहाँ जाकर भोजन कर लेट, सोच-विचार! कल मुझ से मिलना। दूसरे दिन प्रत्युष काल में लडक़ा गुरू से पूर्व जागृत हुआ। नहाया-धोया। गुरू की पूजा की थाली सजायी और आज्ञाकारी शिष्य की भांति आदेश की प्रतीक्षा करने लगा। उसके शरीर में अब एक नई चेतना आ गयी थी। नेत्र प्रकाशमान थे। विशालबाहु पृथु-वक्ष तेजस्वी ललाटवाले अपने गुरू की चर्या देखकर लडक़ा भावुक-रूप से मुग्ध हो गया था। वह छोटे-से-छोटा होना चाहता था कि जिससे लालची चींटी की भाँति जमीन पर पडा, मिट्टी में मिला, ज्ञान की शक्कर का एक-एक कण साफ देख सके और तुरन्त पकड सके! गुरू ने संशयपूर्ण दृष्टि से देख उसे डपट कर पूछा; सोच-विचार लिया? जी! की डरी हुई आवाज! कुछ सोच कर गुरू ने कहा, नहीं, तुझे निश्चय करने की आदत नहीं है। एक बार पढाई शुरू करने पर तुम बारह वर्ष तक फिर यहाँ से निकल नहीं सकते। सोच-विचार लो। अच्छा, मेरे साथ एक बजे भोजन करना, अलग नहीं! और गुरू व्याघ्रासन पर बैठकर पूजा-अर्चा में लीन हो गये। इस प्रकार दो दिन और बीत गये। लडक़े ने अपना एक कार्यक्रम बना लिय था, जिसके अनुसार वह काम करता रहा। उसे प्रतीत हुआ कि गुरू उससे सन्तुष्ट हैं। एक दिन गुरू ने पूछा, तुमने तय कर लिया है कि बारह वर्ष तक तुम इस भवन के बाहर पग नहीं रखोगे? नतमस्तक हो कर लडक़े ने कहा, जी! गुरू को थोडी हँसी आयी, शायद उसकी मूर्खता पर या अपनी मूर्खता पर, कहा नहीं जा सकता। उन्हें लगा कि क्या इस निरे निरक्षर के आँखें नहीं है? क्या यहाँ का वातावरण सचमुच अच्छा मालूम होता है? उन्होंने अपने शिष्य के मुख का ध्यान से अवलोकन किया। एक सीधा, भोला-भाला निरक्षर बालमुख! चेहरे पर निष्कपट, निश्छल ज्योति! अपने चेहरे पर गुरू की गडी हुई दृष्टि से किंचित विचलित होकर शिष्य ने अपनी निरक्षर बुध्दिवाला मस्तक और नीचा कर लिया। गुरू का हृदय पिघला! उन्होंने दिल दहलाने वाली आवाज से, जो काफी धीमी थी, कहा, देख! बारह वर्ष के भीतर तू वेद, संगीत, शास्त्र, पुराण, आयुर्वेद, साहित्य, गणित आदि-आदि समस्त शास्त्र और कलाओं में पारंगत हो जावेगा। केवल भवन त्याग कर तुझे बाहर जाने की अनुज्ञा नहीं मिलेगी। ला, वह आसन। वहाँ बैठ। और इस प्रकार गुरू ने पूजा-पाठ के स्थान के समीप एक कुशासन पर अपने शिष्य को बैठा, परंपरा के अनुसार पहले शब्द-रूपावली से उसका विद्याध्ययन प्रारम्भ कराया। गुरू ने मृदुता ने कहा, -- बोलो बेटे -- रामः, रामौ, रामाः और इस बाल-विद्यार्थी की अस्फुट हृदय की वाणी उस भयानक निःसंग, शून्य, निर्जन, वीरान भवन में गूँज-गूँज उठती। सारा भवन गाने लगा -- रामः रामौ रामाः -- प्रथमा! धीरे-धीरे उसका अध्ययन सिध्दान्तकौमुदी तक आया और फिर अनेक विद्याओं को आत्मसात् कर, वर्ष एक-के-बाद-एक बीतने लगे। नियमित आहार-विहार और संयम के फलस्वरूप विद्यार्थी की देह पुष्ट हो गयी और आँखों में नवीन तारूण्य की चमक प्रस्फुटित हो उठी। लडक़ा, जो देहाती था अब गुरू से संस्कृत में वार्तालाप भी करने लगा। केवल एक ही बात वह आज तक नहीं जान सका। उसने कभी जानने का प्रयत्न नहीं किया। वह यह कि इस भव्य-भवन में गुरू के समीप इस छोटी-सी दुनिया में यदि और कोई व्यक्ति नहीं है तो सारा मामला चलता कैसे है? निश्चित समय पर दोनों गुरू-शिष्य भोजन करते। सुव्यवस्थित रूप से उन्हें सादा किन्तु सुचारू भोजन मिलता। इस आठवीं मंजिल से उतर सातवीं मंजिल तक उनमें से कोई कभी नहीं गया। दोनों भोजन के समय अनेक विवादग्रस्त प्रश्नों पर चर्चा करते। यहाँ इस आठवीं मंजिल पर एक नई दुनिया बस गयी। जब गुरू उसे कोई छन्द सिखलाते और जब विद्यार्थी मन्दाक्रान्ता या शार्दूल्विक्रीडित गाने लगता तो एकाएक उस भवन में हलके-हलके मृदंग और वीणा बज उठती और वह वीरान, निर्जन, शून्य भवन वह छन्द गा उठता। एक दिन गुरू ने शिष्य से कहा, बेटा! आज से तेरा अध्ययन समाप्त हो गया है। आज ही तुझे घर जाना है। आज बारहवें वर्ष की अन्तिम तिथि है। स्नान-सन्ध्यादि से निवृत्त हो कर आओ और अपना अन्तिम पाठ लो। पाठ के समय गुरू और शिष्य दोनों उदास थे। दोनों गम्भीर। उनका हृदय भर रहा था। पाठ के अनन्तर यथाविधि भोजन के लिए बैठे। दूसरे कक्ष में वे भोजन के लिए बैठे थे। गुरू और शिष्य दोनों अपनी अन्तिम बातचीत के लिए स्वयं को तैयार करते हुए कौर मुँह में डालने ही वाले थे कि गुरू ने कहा, बेटे, खिचडी में घी नहीं डाला है? शिष्य उठने ही वाला था कि गुरू ने कहा, नहीं, नहीं, उठो मत! और उन्होंने अपना हाथ इतना बढा दिया कि वह कक्ष पार जाता हुआ, अन्य कक्ष में प्रवेश कर क्षण के भीतर, घी की चमचमाती लुटिया लेकर शिष्य की खिचडी में घी उडेलने लगा। शिष्य काँप कर स्तम्भित रह गया। वह गुरू के कोमल वृध्द मुख को कठोरता से देखने लगा कि यह कौन है? मानव है या दानव? उसने आज तक गुरू के व्यवहार में कोई अप्राकृतिक चमत्कार नहीं देखा था। वह भयभीत, स्तम्भित रह गया। गुरू ने दुःखपूर्ण कोमलता से कहा, शिष्य! स्पष्ट कर दूँ कि मैं ब्रह्मराक्षस हूँ किन्तु फिर भी तुम्हारा गुरू हूँ। मुझे तुम्हारा स्नेह चाहिए। अपने मानव-जीवन में मैंने विश्व की समस्त विद्या को मथ डाला किन्तु दुर्भाग्य से कोई योग्य शिष्य न मिल पाया कि जिसे मैं समस्त ज्ञान दे पाता। इसीलिए मेरी आत्मा इस संसार में अटकी रह गयी और मैं ब्रह्मराक्षस के रूप में यहाँ विराजमान रहा। तुम आये, मैंने तुम्हें बार-बार कहा, लौट जाओ। कदाचित् तुममें ज्ञान के लिए आवश्यक श्रम और संयम न हो किन्तु मैंने तुम्हारी जीवन-गाथा सुनी। विद्या से वैर रखने के कारण, पिता-द्वारा अनेक ताडनाओं के बावजूद तुम गँवार रहे और बाद में माता-पिता-द्वारा निकाल दिये जाने पर तुम्हारे व्यथित अहंकार ने तुम्हें ज्ञान-लोक का पथ खोज निकालने की ओर प्रवृत्त किया। मैं प्रवृत्तिवादी हूँ, साधु नहीं। सैंकडों मील जंगल की बाधाएँ पार कर तुम काशी आये। तुम्हारे चेहरे पर जिज्ञासा का आलोक था। मैंने अज्ञान से तुम्हारी मुक्ति की। तुमने मेरा ज्ञान प्राप्त कर मेरी आत्मा को मुक्ति दिला दी। ज्ञान का पाया हुआ उत्तदायित्व मैंने पूरा किया। अब मेरा यह उत्तरदायित्व तुम पर आ गया है। जब तक मेरा दिया तुम किसी और को न दोगे तब तक तुम्हारी मुक्ति नहीं। शिष्य, आओ, मुझे विदा दो। अपने पिताजी और माँजी को प्रणाम कहना। शिष्य ने साश्रुमुख ज्यों ही चरणों पर मस्तक रखा आशीर्वाद का अन्तिम कर-स्पर्श पाया और ज्यों ही सिर ऊपर उठाया तो वहाँ से वह ब्रह्मराक्षस तिरोधान हो गया। वह भयानक वीरान, निर्जन बरामदा सूना था। शिष्य ने ब्रह्मराक्षस गुरू का व्याघ्रासन लिया और उनका सिखाया पाठ मन-ही-मन गुनगुनाते हुए आगे बढ ग़या।

मंडी में बनाया जाए आधुनिक पुस्तकालयः शहीद भगत सिंह विचार मंच

मंडी। प्रदेश की सांस्कृतिक और बौद्धिक राजधानी मंडी में आधुनिक और बेहतरीन पुस्तकालय के निर्माण की मांग की गई है। इस संदर्भ में शहर की संस्...