मंडी। अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा महोत्सव के अतिथी देवभूमी के देवी-देवता घाटी के चहुं छोरों से कुल्लू के ढालपुर मैदान के लिए अपने-2 स्थानों से चलना शुरू हो गए हैं। ढोल, नगाडे, करनाल और शहनाई की मचलती तरंगों के साथ देवी-देवताओं के देवलुओं का उत्साह उनके बढते कदमों से साफ झलकता है। आउटर सराज के निरमंड, आनी, बंजार और सैंज घाटी के देवता मंडी जिला के बालीचौकी, लारजी, औट, पनारसा, टकोली, नगवाईं, झीडी से होते हुए बजौरा में कुल्लू जिला में प्रवेश कर रहे हैं। अधिकांश देवी-देवता अपने रथों सहित हारियानों, कारदारों व बजंतरियों सहित पैदल ही कुल्लू की ओर बढ रहे हैं। जगह-जगह पर देवी देवताओं का स्वागत हो रहा है। दुर्गम क्षेत्रों में स्थित अपने स्थानों से दशहरे के लिए आए इन देवताओं को नजदीक से देख कर उनके दर्शन करने को लोग अपना भाग्य समझ रहे हैं। मंगलवार को भी बंजार घाटी के प्रसिद्ध देवता ऋंगा ऋषि व छमाहुं शेषनाग उपतहसील औट मुख्यालय पहुंच चुके थे। देवताओं को 22 अक्तूबर तक दशहरा शुरू होने से पहले कुल्लू के ढालपुर पहुंचना है। देवताओं के ढोल नगाडों व शहनाई के समवेत स्वर की लोमहर्षक ध्वनी से मंडी की सनोर घाटी सहित कुल्लू की वादी देवमय हो गई है। हालांकि दशहरा महोत्सव में मात्र कुल्लू जिला के देवता ही शिरकत करते हैं। जबकि मंडी जिला के सनोर, बदार, उतरसाल, चौहार और इनर सराज के देवता मंडी की शिवरात्री में भाग लेते हैं। लेकिन तब भी मंडी अधिकतम निवासी कुल्लू दशहरे में जाना हमेशा पसंद करते हैं। गाडा गुसैणी निवासी एडवोकेट सुशील चौहान बताते हैं कि कुल्लू के दुर्गम क्षेत्रों के लोग शुरूआती मेलों में कम ही पहुंचते हैं। लेकिन बाद के मेलों में वह बढचढ कर भाग लेते हैं और खूब सारी खरीदारी भी करते हैं।
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