स्कंद पुराण के हिमवान खंद के प्रथम, द्वितिय और तृतीय अध्यायों में हृदयलेश का वर्णन आता है। हृदयलेश अर्थात झीलों का राजा ( हद-तालाब, आलय- स्थान, ईश- राजा)। रिवालसर का प्राचीन नाम हृदयलेश है। पूर्व काल में लोमश ऋषि हिमालय पर तप कर रहे थे, इसी दौरान ऋषि लोमश ने ब्रह्म पर्वत पर चढ कर एक तालाब देखा जो अत्यंत सुंदर, जिसके चारों ओर सुंदर वृक्षों की छाया, विभिन्न प्रकार के पक्षियों से सुशोभित। जिसका जल अत्यंत निर्मल और शुद्ध है। जिसमें अप्सराएं क्रिडा कर रही हैं। इस सुंदर तालाब को देखकर ऋषि बहुत प्रसन्न हुए। पर्वतों में छिपे इस तालाब में स्नान कर लोमश ऋषि इसके किनारे तपस्या करने बैठ गए। कुछ देर बाद उन्हे नींद आ गई, स्वपन में उन्होने एक भस्म और रूद्राक्ष माला धारण किए हुए यति को देखा, यति ने लोमश ऋषि को इस स्थान पर तप करने को कहा। तब लोमश ऋषि ने इस तालाब की पश्चिम दिशा में कठोर तपस्या करनी शुरू की। तीन माह तक कठोर तप करने पर इंद्र भयभीत हो गए तथा उन्होेने लोमश ऋषि की तपस्या को भंग करना चाहा परंतु ऋषि विघ्न बाधओं के बावजूद तपस्या करते रहे। शिव भगवान, ऋषि की अखंड तपस्या से प्रसन्न होकर पार्वती सहित इस तालाब में भूखंड पर नहल का रूप धारण कर नौकायन करने लगे। लोमश ऋषि अपनी तपस्या समाप्त कर सरोवर की ओर देखकर हैरान हो जाते हैं कि यह कौन सी माया है। तब प्रसन्न होकर शिव पार्वती उन्हे दर्शन देते हैं लोमश ऋषि पाद्यार्थ से शिव पूजन कर गदगद वाणी से शिव स्तुती करने लगे। यह स्तुति नौ श्रलोकों वाली है जिसे शिव भगवान ने नवरत्न कहा है। तब भगवान शिव ने ऋषि को मन वांछित वर प्रदान किया तथा महाकल्प पर्यन्त जीवित रहने का वर दिया तथा मनोवेग से वायु मेें भ्रमण करने का आशीर्वाद दिया। लोमश ऋषि ने भगवान शिव से इस तालाब का महत्व पूछा तब शिव ने इसे मां पार्वती से पूछने को कहा। इस संवाद के दौरान विष्णु, ब्रह्मा, इन्द्रादि देवता, किन्नर नागादि, तीर्थराज प्रयाग, पुष्कर सहित सभी पवित्र तीर्थ तथा नदियां यहां पर उपस्थित हुए। ब्रह्मा, विष्णु, गणपति, सूर्य एवं शिव पार्वती सहित पांच देवताओं ने भूखंड में निवास कर झील में तैरने लगे तथा यहां पर टिल्लो बेडों में निवास करने का निश्चय किया जिस कारण रिवालसर को पंचपुरी अर्थात जहां पांच देवता वास करते हैं के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के आदेश से देवता हिम रूप होकर देवांगनाएं मंजुला, मालती और बेल रूप होकर पितरगण वृक्ष रूप में, निशाचर गंधर्व, किन्नर आदि गुम रूप होकर निवास करने लगो।
संकलनकर्ता- लीलाधर शर्मा, किशोरी लाल शर्मा
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