आती हुई कविता
देख रहा हुं
आती हुई कविता
शब्दों के रथ पर
आरूढ
सबसे आगे मशाल बन
रोशनी दिखाती
देश के
अंधकारमय
कोनों की शिनाख्त करवाती।
कि अब लेखनी थामे
हाथों ने
लिया है निर्णय
देश की
नियती की परिभाषा
रचने का।
आजादी सबकी सुरक्षित
रहे।
कलबुर्गी, पनसारे
या
डाभोलकर विचारों की
उन्मुक्त उडान में
न कर दिए जाएं कलम।
असहिष्णुता के
विषधरों
को कर सकें बेनकाब।
लौटा रहे हैं
अपनी प्रसव पीडा से
उपजी रचनाओं की
बहुमुल्य थाती
भविष्य की
कविता के लिए।
बता सकें
दुनिया से जुडा है देश
का
सत्य, विज्ञान और इतिहास।
इससे पहले कि
नफरत के निर्बाध
बढते
जहरीले पेडों का
दानवी
जंगल सब आगोश में
ले,
जंग लगी कुल्हाडी को
धार देने के लिए
लिखी जा रही है
आती हुई कविता।
....समीर कश्यप
22/11/2015
Sameermandi.blogspot.com
No comments:
Post a Comment