मंडी। मंगलवार की साप्ताहिक यात्रा के लिए औट के लिए रवाना हुआ तो चंडीगढ-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग सूना-2 सा दिखाई दे रहा था। भ्युली पुल चौक पर तैनात यातायात पुलिस कर्मी से सडक के बारे में पूछने पर उन्होने राजमार्ग खुल जाने के बारे में बताया कि कुल्लू से गाडियां आ रही हैं। आश्वस्त होने पर बाया कटौला जाने की बजाय सीधे पंडोह होते हुए राजमार्ग का रास्ता पकडा। लेकिन राजमार्ग पर पसरा सन्नाटा बार-बार आशंकाओं को जन्म दे रहा था। सोमवार को दवाडा और रैंस नाला के बीच पहाड का भारी हिस्सा भरभरा कर राष्ट्रीय राजमार्ग पर गिर गया था। जिसके चलते राजमार्ग बंद हो गया था। वैसे सुबह समाचार पत्रों से पता चला था कि छोटे वाहनों के लिए राजमार्ग खुल गया है और बडे वाहनों के लिए दो दिन रास्ता खुलने में लग सकते हैं। सभी लोग बाया पंडोह न जाने की सलाह दे रहे थे। लेकिन जब रास्ता खुलने और वाहनों के आने जाने के बारे में पता लगा तो रिस्क के बावजूद इसी रास्ते से गुजरने कर भूस्वखलन का मौकास्थल देखने का निर्णय लिया। रवायत के अनुसार हणोगी माता मंदिर में दर्शन के लिए रूका और यहां पर कुछ क्षणों के लिए रूकना मौकास्थल पर करीब आधा घंटे के जाम में फंसने का सबब बना। जैसे ही मौकास्थल पर पहुंचा वहां पहले ही वाहनों की कतार लग चुकी थी। यातायात संचालित करने के लिए तैनात पुलिस कर्मी ने जानकारी दी कि थोडी ही देर पहले तक ट्रैफिक छोडी हुई थी पर अब करीब आधा घंटा जाम ही रहेगा। मौकास्थल पर एक एलएनटी और एक जेसीबी राजमार्ग पर गिरे मलबे को ब्यास नदी के किनारे लगातार उंडेलती जा रही थी। एलएनटी जिस मुस्तैदी से बंद राजमार्ग को खुलवाने में अपने जबडों की ताकत को दिखा रही थी उससे सभी हतप्रभ थे। सैंकडों वाहनों में हजारों लोगों की सुविधा के लिए रिस्क में काम करने वाले सभी मेहनतकशों की वजह से राजमार्ग एक तरफा वाहनों के लिए खोल दिया गया। वाहनों के काफिले अपने गंतव्यों की ओर बढने लगे। लेकिन राजमार्ग बहाल करने का काम दिन भर चलता रहा और देर शाम जब वापिस मंडी लौटा तो एक तरफा ट्रैफिक होने के कारण जाम तो लग रहे थे लेकिन दिन भर की मशक्कत के बाद राजमार्ग के धरातल तक का मलबा उठा लेने की सफलता हासिल की जा चुकी थी। मौकास्थल पर जहां पुलिस कर्मी मौजूद थे वहीं पर विभिन्न विभागों के अधिकारी भी मौजूद रहे। यही नहीं चंडीगढ से जियोलोजिकल विभाग के जियोलोजिस्ट भी मौजूद थे। इस पहाड के स्ट्राटा के बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होने कहा कि वह इसकी विस्तृत रिपोर्ट अपने विभाग को सौंपेगें। हालांकि उनका आफ दी रिकार्ड कहना था कि पहाड के स्ट्राटा में दरारें हैं और यह अलग-2 हैं जिसके कारण इस तरह की घटनाएं फिर से हो सकती हैं। खैर यह तो विष्लेषणों के बाद ही जाहिर हो पाएगा कि यह घटना कैसे घटित हुई लेकिन यह घटना कई तरह के सवाल सामने लाती है। जिस तरह से घटना से संबंधित विडियो रिकार्डिंग सामने आई है उससे सपष्ट होता है कि पहाड का एक बडा हिस्सा भरभरा कर तेज गति से नीचे गिर गया। ये तो अच्छी बात रही कि उस समय राजमार्ग पर से कोई गुजर नहीं रहा था अन्यथा बडी हानी पहुंच सकती थी और ऐसी स्थिती में आपदा प्रबंधन की कोई भूमिका नजर नहीं आती। इस क्षेत्र के सभी पहाडों की बनावट लगभग एक जैसी है स्लेटनुमा पथरीली चट्टानों के पहाड के रूप में। लेकिन अब जबकि यह हादसा भी सामने आ चुका है ये सवाल सामने आता है कि राजमार्ग बंद हो जाने के बाद प्रशासन ने वैक्लपिक रास्ते कटौला से होते हुए जाने के निर्देश दिये थे। क्या बेहतर नहीं होता कि घटना की पूरी जांच पडताल के बाद विशेषज्ञों की राय लेकर घटना के सभी अंदेशों को दूर करने के बाद राजमार्ग को खोला जाता। लेकिन इधर एलएनटी ने कमाल क्या दिखाया प्रशासन ने अपने ही आदेशों से पल्लू झाडते हुए पहले छोटे वाहनों को और बाद में वोल्वो समेत सभी बडे-छोटे वाहनों के लिए राजमार्ग खोल दिया बिना इस बात के पडताल किए बगैर कि घटना के कारण क्या थे और क्या ऐसी घटना की इस मार्ग पर कहीं पुनरावृति भी हो सकती है। लेकिन यह भागमदौड का जमाना है। वैकल्पिक रास्ता इस काबिल नहीं है कि राजमार्ग का भार सहन कर सके। प्रशासन की संवेदनशीलता कहती है कि राजमार्ग को रोकने से बेहतर है कि लोगों को अपने रिस्क पर छोड दिया जाए। अगर कभी फिर हादसा होगा तो उस बारे में उस समय सोचा जाएगा। हादसे घटित हो रहे हैं लोग फिर भी रिस्क ले रहे हैं और रिस्क लेने में सरकार भी मदद करने में शामिल होने के लिए हमेशा तैयार हो जाती है। जब डबल लेन वाले राजमार्ग ही इतने हादसों भरे हैं प्रस्तावित फोर लेन बनेगी तो तब तक पता नहीं कितनी तबाही हमने मोल ले ली होगी।
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