Sunday, 14 May 2017

वन अधिकार कानून लागू न होने पर केन्द्र सरकार को ज्ञापन



मंडी। जिला प्रशासन के उदासीन रवैये के चलते वन अधिकार कानून 2006 (एफआरए) ठीक ढंग से लागू नहीं हो पा रहा है। इस बारे में जिला परिषद सदस्य और जिला स्तरीय समिती के सदस्य संत राम, रजनी देवी और प्रदीप कुमार ने भारत सरकार के आदिवासी कल्याण मंत्रालय को पत्र प्रेषित किया है। संत राम ने बताया कि मंडी जिला एफआरए कानून में पारिभाषित अन्य परंपरागत वन निवासियों की श्रेणी के अंतर्गत आता है। जिसके चलते वर्ष 2014-15 में जिला के सभी मुहालों में वन अधिकार समितियों का गठन किया जा चुका है। लेकिन इस कानून का प्रचार-प्रसार न होने के कारण जिला स्तरीय समिती के पास आज तक एक भी व्यक्तिगत या सामुदायिक दावा प्रस्तुत नहीं हो पाया है। जिप सदस्यों ने केंद्र सरकार को प्रेषित अपने पत्र में कहा है कि जिला स्तरीय कमेटी की साल भर में करीब आधा दर्जन बैठकें हो चुकी हैं। लेकिन इनमें सिर्फ औपचारिकता ही निभाई गई है। इन बैठकों में एफआरए को समग्रता से लागू करने की बजाय शुन्य दावों के प्रस्तावों की फाइलें बनाने की कवायद की जाती रही है। इस कानून को लागू करने की खानापुर्ति का यह आलम है कि ग्राम सभाओं को वन अधिकार समितियों के दावे लेने के लिए अधिकृत करने के बजाय सीधे पंचायत सचिवों से शुन्य दावों के प्रस्ताव प्राप्त किए जा रहे हैं। कई ग्राम सभाओं में स्थानीयवासियों के एफआरए के तहत मिले प्रावधानों का कोई जिक्र न करके और लोगों को बताए बगैर ही जंगल में किसी व्यक्ति व परिवार के अधिकार न होने के बारे में प्रस्ताव पास किये गए हैं। जबकि लगभग हर मुहाल का अपना जंगल है और स्थानीय वासियों की इन जंगलों में पूरी तरह से निर्भरता है। लेकिन झूठे कागज तैयार करके इन जंगलों पर वन अधिकारों से लोगों को वंचित किया जा रहा है। जो एफआरए की मूल भावना के खिलाफ है और इसे धरातल पर लागू न करके गल्त तथ्य दिखाकर लीपापोती की जा रही है। जिप सदस्यों ने मांग की है कि लोगों को इन अधिकारों के आवश्यक प्रावधानों की जानकारी न देकर पास किए गए शुन्य दावों के प्रस्तावों की उच्चस्तरीय जांच की जाए और इन शुन्य दावों के प्रस्ताव पारित करने वालों पर कडी कार्यवाही की जाए। उन्होने मांग की है कि जिला में एफआरए कानून को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए जिला, उपमंडल और ग्रामीण स्तरीय समितियों सहित पंचायती राज के सभी चुने हुए प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए। वहीं पर इन कानून की जानकारी जनसाधारण तक पहुंचाने के लिए उचित प्रचार-प्रसार की व्यवस्था भी की जाए। जिससे स्थानीयवासी अपने अधिकारों का समुचित लाभ प्राप्त सकें।
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