मंडी। बेटी है अनमोल कार्यक्रम के लिए मंडी जिला पूरे देश में प्रथम आकर सममानित हुआ है। यह गर्व की बात है लेकिन जिला की बेटियों की हालत अभी भी संतोषजनक नहीं है। सूचना के अधिकार से मिली जानकारी में खुलासा हुआ है कि जिला की 14,135 महिलाएं एनिमिया की शिकार हैं। इसके अलावा 6200 अन्य गर्भवती महिलाएं एनिमिया और कुपोषण की शिकार हैं। गत वर्ष घरेलू हिंसा, छेडखानी और बलात्कार के 446 मामले सामने आए हैं। आरटीआई कार्यकर्ता व जिला परिषद सदस्य संत राम ने बताया कि उन्होने मुखय चिकित्सा अधिकारी और जिला पुलिस अधीक्षक से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी। जिसमें मुखय चिकित्सा अधिकारी ने माना है कि जिला के विभिन्न अस्पतालों में 14135 महिलाएं रक्त की कमी के कारण एनिमिया की शिकार हैं। उसी तरह हजारों गर्भवती महिलाएं भी कुपोषण व एनिमिया की शिकार हैं। संत राम ने बताया कि महिलाओं के इतने बडे पैमाने पर एनिमिया और कुपोषण के शिकार होने के खुलासे से पता चला है कि बेटी है अनमोल जैसा कार्यक्रम जमीनी स्तर पर बेटियों के लिए कितना अनमोल साबित हो पाया है। उन्होने कहा कि गर्भवती महिलाओं के एनिमिया और कुपोषित होने से भावी पीढी भी कुपोषण से ग्रसित हो सकती है। संत राम ने बताया कि बेटी है अनमोल के तहत बेटियों के पैदा होने पर उनके परिजनों को सममानित किया जा रहा है। लेकिन बेटियों के साथ घटित हो रहे दुराचार, छेडखानी, घरेलू हिंसा के चलते उनका जीवन बेहद कठिन बना हुआ है। बेटी है अनमोल कार्यक्रम को इन घटनाओं या कुपोषण की शिकार बेटियों के प्रति संवेदनशील होकर उनकी भी सुध लेनी चाहिए। जिला पुलिस अधीक्षक से मिली जानकारी में महिलाओं के साथ घटित हो रहे अपराधों को गंभीर बयौरा मिलता है। इसके अनुसार गत एक वर्ष में महिलाओं पर घरेलू हिंसा के तहत 333, छेडखानी के 84 और बलात्कार के 29 आपराधिक हमले हुए हैं। सूचनाओं ने जाहिर किया है कि जिला की बेटियां अभी भी सुरक्षित नहीं हैं और वह पुरूष प्रधान समाज की दबंगता व दरिंदगी की शिकार हैं। संत राम ने कहा कि यह जानकारियां तो विभाग के कार्यालयों में दर्ज है लेकिन इन मामलों की संखया वास्तव में कई गुणा ज्यादा है जो सामने नहीं आ सकी है। उन्होने कहा कि बेटी है अनमोल के बहाने सिर्फ औपचारिकता नहीं निभायी जानी चाहिए। बल्कि इस कार्यक्रम के जरिये महिलाओं की एनिमिया, कुपोषण और आपराधिक घटनाओं की रोकथाम के ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। तभी इस कार्यक्रम की सार्थकता हो सकती है अन्यथा यह भी दूसरे कार्यक्रमों की तरह रस्म अदायगी का साधन बन कर रह जाएगा।
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