चील के पेडों को पीछे छोड घणाहाटी पहुंचते ही देवदार, कैल, बान के पेडों के बीच से गुजरते हुए शिमला की खुशबू आनी शुरू हो जाती है। जहां से घने जंगलों में से चढाई शुरू होती है वह गेटवे ऑफ शिमला लगता है। सर्दियों में जब शिमला में भारी बर्फबारी होती है तो वाहन यहीं रूक जाते हैं और आगे शिमला तक का रास्ता पैदल ही पार करना पडता है। कई बार जब मंडी से रात को पुजारली बस में बैठ कर यहां पहुंचते थे तो बर्फबारी के कारण यहीं से पैदल यात्रा करके समर विश्विद्यालय या फिर किसी परीक्षा के सिलसिले में निगम विहार तक की यात्रा करनी होती थी। टुटू में अपने रिश्तेदारों के घर में रात्रि विश्राम करने के बाद अगले दिन इस बार की यात्रा का आगाज़ सबसे पहले बालूगंज से होते हुए समरहिल पहुंच कर किया। विश्वविद्यालय में कानून स्नातक की पढाई कर रहे मंडी के छात्र मिले और उनसे कुछ देर बातचीत के बाद चौडा मैदान का रूख किया। चौडा मैदान में स्थित ब्रिटिश कालीन भारत का राष्ट्रपति निवास वायस रीगल लॉज है। इस भवन में अब एडवांस स्टडी संस्थान है। यहां पर अक्सर लेखकों, साहित्यकारों का आना जाना रहता है। जब विश्वविद्यालय में पढते थे तो यहीं पर प्रसिद्ध लेखक अरूण कमल और कात्यायनी जी से भी मिलना हुआ था। कात्यायनी जी ने हमारे आग्रह को स्वीकार करके विश्विद्यालय में छात्रों को संबोधित किया था। उस समय एडवांस स्टडी पहुंचने के हमारे रास्ते ज्यादातर समरहिल और बालूगंज की पगडंडियां होती थी। लेकिन इस बार जब मुख्य द्वार की सडक से होते हुए एडवांस स्टडी को चले तो कुछ अलग सा प्रतीत हो रहा था। इस सडक पर चलने वाले बग्घी में महात्मा गांधी और पैदल चले जवाहर लाल नेहरू, जिन्हा, अबुल कलाम आजाद जैसे अनेकों राष्ट्रीय नेताओं व अंग्रेज हुक्मरानों के पांवों की छापें अब गुम हैं। पर उन छापों पर से गुजरना एक अलग सा रोमांच भरता जा रहा था। भवन को भीतर से देखने के लिए करीब एक घंटा इंतजार करने की बात का पता चलने पर इसे बाहर से ही निहार कर अगले गंतव्य की ओर बढने का निर्णय लिया। विक्टरी टनल से मुड कर लक्कड बाजार होते हुए जैसे ही आईजीएमसी में से गुजरे तो ध्यान आया कि पूरे सूबे में जब भी कोई गंभीर रूप से बीमार होता है तो उसे इसी भवन यानि आईजीएमसी को रेफर किया जाता है। कहीं मुडने या पीछे हटने का दिल नहीं कर रहा था बल्कि जहां तक शिमला है वहां तक बढ जाने की आतुरता लगातार हावी थी। ढली पहुंच कर मील पत्थर ने कुफरी की दूरी कुछ ही किलोमीटर बतायी तो इसे देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाया। कुफरी को जाने वाली सडक खूबसूरत जंगलों में से गुजरती है। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य के बीच आप रूक कर स्थानीय वेशभूषा पहन याक की सवारी भी कर सकते हैं। कुफरी के देवदार, बान और कैल के जंगलों में स्थित हिमालयन नेचर पार्क पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहां पर पहली बार सफेद बालों वाले बंदर देखे। ऐसा अनुभव हुआ कि यह बंदर अपने सफेद बालों की विशिष्टता से वाकिफ हैं और अपनी सुंदरता को नजदीक से दिखाने के लिए पर्यटकों के बहुत नजदीक तक इठलाते हुए चले जाते हैं पर जाखू के बंदरों की तरह व्यवहार किए बगैर। कुफरी से लौटने पर ढली के पास साइन बोर्ड पर नालदेहरा की दूरी पता चलता है तो इसे देखने की ललक यात्रा का रूख बदल कर वहां को चल पडती है। मशोबरा से गुजरते हुए नालदेहरा पहुंचकर यहां के प्रसिद्ध गोल्फ कोर्स के गिर्द घने जंगलों में पर्यटक घुडसवारी और पिकनिक का आनंद उठाते हैं। इन पर्यटन स्थलों के विकसित होने से पर्यटक सीजन में स्थानीय लोगों के लिए निश्चित रूप से रोजगार विकसित हुआ है। शिमला शहर में लौटने पर लक्कड बाजार से तिब्बती मार्केट होते हुए रिज की ओर चढना शुरू किया तो वास्तुकला से उत्कृष्ट लेकिन जीर्णशीर्ण भवन पर नज़र पडी। शिमला में इस तरह की अनेकों पुरानी इमारतें देखने को मिल जाती है। इनका संरक्षण और संवर्धन होना चाहिए जिससे वास्तुकला के यह नमूने लुप्त न हो जाएं। थोडा और आगे चढते हैं तो एक अन्य भवन दिखता है। इस सूने भवन में कभी पूरा शिमला टूट पडता था लेकिन अब यहां सन्नाटा है। यह शिमला का मशहुर सिनेमाहाल रिवौली है। लेकिन किसी विवाद के कारण इन दिनों बंद पडा है। सूरज जब पश्चिम की ओर बढता है तो इतनी खूबसूरती पैदा करता है मानो कोई चित्रकार लगातार कैनवास पर रंग से अपनी तूलिका चला रहा है। एडवांस स्टडी, कामना देवी, रिज या कहीं से भी यह नजारा देखा जा सकता है। ऐसा लगता है कि अंग्रेजों ने शिमला के प्राकृतिक नज़ारों की खूबसूरती के कारण ही इसे ब्रिटिश भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी के लिए चुना होगा और सौ से अधिक सुरंगों का निर्माण करके रेल के माध्यम से यहां तक पहुंच कर श्यामला गांव की जगह शिमला की नींव रखी होगी। रिज का चर्च शिमला की पहचान है। अगर आप चर्च के इर्द गिर्द पिक्चर या सैल्फी खिंचवा लें तो कोई भी बता देगा कि आप शिमला में हैं। मालरोड पर चहलकदमी, गेयटी थियेटर की हलचलें, बालजीस के बडे-2 गर्म गुलाब जामुन, रात की रोशनियों के बीच युरोप के किसी स्थान सा अहसास दिलाता स्कैंडल प्वाइंट आपके समय को कब पंख लगा देता है कि पता ही नहीं चलता कि कब रात गहरा गई है। दूर स्थित अपने ठौर ठिकाने तक पहुंचने की मजबूरी कदमों को वापिस लौटाने के लिए मोड देती है। माल पर पहुंचे लोगों में से कोई संजौली पहुंचेगा तो कोई समरहिल या फिर कोई करीब 50 किलोमीटर तक छितराए शहर के विभिन्न हिस्सों में। वैसे संजौली और ढली के घरों का वास्तुशिल्प देखने योग्य और आश्चर्य चकित करने वाला है। घरों के उपर घर। घरों का पहाड। पहाड का कोई भी हिस्सा घर विहिन नहीं। देखने में तो बहुत आकर्षक लगता है पर सुरक्षा की दृष्टि से पता नहीं कितना ठीक है। शिमला से लौटते समय टुटू से एक बार फिर से समरहिल में विश्वविद्यालय का नज़ारा दिखता है। विश्विद्यालय समरहिल शिमला की पढ़ाई रोजगार ही नहीं देती बल्कि बेहतर समाज के लिए संघर्ष के योद्धा के रूप में तैयार होने की प्रेरणा भी देती है। समरहिल बहुत प्रेरणामय स्थल है। शिमला में पेयजल आपुर्ती के लिए सडक उखाड कर पाईप की लाइनें बिछायी जा रही है। पाइपों के काम में लगे मजदूरों ने अपनी पूरी ताकत काम में झोंक रखी है। शिमला मंडी मार्ग पर शालाघाट के नजदीक स्थित एक धार्मिक स्थल दुर्गाघाटी में कुछ देर के लिए रूकना बहुत सुकून भरा लगता है। भारी गर्मी के बावजूद सभी दिशाओं से हवा का प्राकृतिक एयर कंडीशर राहत देता है। शिमला मार्ग पर सोलन जिला का भ्राडीघाट अपने खाने व कढी के लिए बहुत मशहुर है। प्रसिद्ध कहानीकार योगेश्वर शर्मा ने एक खूबसूरत कहानी भ्राडीघाट आ गया है लिखी है। लेकिन जब से विश्वविद्यालय में पढाई के सिलसिले शिमला जाना शुरू हुआ है उस दौर में ही भ्राडीघाट की जगह चमाकडी पुल ने ले ली थी। हमारी ओर से आने वाली बसें यात्रियों को खाना खिलाने के लिए चमाकडी पुल में ही रूकती हैं। छात्र जीवन की परिपाटी को जारी रखता हुआ चमाकडी पुल में रूककर भोजन किया तो कई साल बाद फिर से यहां का खाना खा कर तसल्ली हो गई। जिला बिलासपुर के बरमाणा को पार करके मंडी जिला में प्रवेश किया तो सामने एक बार फिर से बडी चुनौती थी। यह चुनौती थी कांगू से लेकर सुंदरनगर तक का सफर। कीरतपुर-मनाली फोरलेन का काम मंडी जिला में कांगू से लेकर सुंदरनगर तक पिछले करीब तीन सालों से चल रहा है। इस काम में जहां लोगों के घर, देवस्थल, खेत खलिहान, बाग बगीचे, व्यवसायिक स्थल, बावडियां व अन्य पेयजल स्त्रोत उखाडे जा रहे हैं वहीं पर शिमला, चंडीगढ जाने वाले लोग खराब सडक से हिचकोले खाते हुए गंतव्य तक पहुंच रहे हैं। खासकर मरीजों को भारी असुविधा उठानी पडती है। पता नहीं कब यह फोरलेन बनेगा और लोगों को राहत मिलेगी। क्या यह काम छोटे-2 टुकडों को तैयार करके नहीं किया जा सकता था। जिससे लोगों को राहत मिलती। लेकिन अधिग्रहण की आड में एक तो पुरानी सडक का नामोनिशान मिटा दिया गया है वहीं पर पैच में काम न करने से लोगों को भारी असुविधाओं के हवाले कर दिया गया है। टूटे हुए आशियानों को देखकर व्यथा सी होने लगती है कि पता नहीं इन घरों में रहने वालों का आजकल क्या हाल है। खैर किसी तरह इस सफर को पूरा करने के बाद डडौर चौक पहुंचा तो यहां पर वाहनों को फोरलेन के मार्ग से गुजरते देखा। गुजरने पर पता चला कि मजदूरों की ताकत, पूंजीवादी के पैसे व तकनीक और सरकार के भू अधिग्रहण से डडौर- नागचला फोरलेन बन कर तैयार है जिसका अभी उदघाटन नहीं हुआ है। यह फोरलेन जिस उपजाऊ बल्ह घाटी की भूमी पर बना है उसे अंग्रेजों ने भारत के आयरलैंड की संज्ञा दी है। इस उपजाऊ बल्ह घाटी में से गुजरने वाली सुकेती खड्ड की सीर और महासीर मछली बीबीएमबी की सिल्ट के कारण पहले ही गुम हो गई है। वहीं पर करीब दो दर्जन चावलों की किस्मों की खेती करने वाली इस घाटी की भूमी का एक बडा हिस्सा भी यह फोरलेन लील गया है। हालांकि बाइपास होने के कारण यहां सुंदरनगर-सलापड मार्ग की तरह लोगों की आवाजाही की समस्या नहीं है। लेकिन जमीन की लूट के कागजात मनाली तक बन चुके हैं। जिसमें हजारों लोगों के प्रभावित होने का अनुमान है। बहरहाल पहाडों की रानी शिमला की यह पर्यटन यात्रा चिरस्मरणीय रहेगी।
-समीर कश्यप
...sameermandi.blogspot.com
Good account of journey and thoughtful observations.
ReplyDeleteGood account of journey and thoughtful observations.
ReplyDeleteधन्यावाद सर...
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