अभी-2 लोकवाद्यों की ध्वनि नज़दीक आते जान पड़ा कि माधो राव फाग बरध्वाने के लिए हमारे भगवान मुहल्ला में पहुंचने ही वाले हैं। मुहल्लावासी पहले ही उनके स्वागत में एकत्र हैं। गिट्ठा जल रहा है और फाग (कांभल का पेड) अलग से रखा गया है। राजमाधव राय के मुहल्ला में प्रवेश करते ही सभी ने उन्हें गुलाल लगाया। माधो राय के फाग की परिक्रमा के दौरान इसका दहन किया गया। इसके बाद माधो राय अगले मुहल्ले की ओर फाग बरध्वाने और मंडी वासियों से घर द्वार जाकर होली खेलने के लिए रवाना हो गए। ये परंपरा बहुत पुरानी है और बचपन से होली की इस विशिष्टता को देखता आया हुं। पर मुझे आज के दिन के माधो राय सचमुच के जननायक नजर आते हैं जो होली खेलने लोगों के बीच जाते हैं। जबकि जो आजकल राज संभाले हैं वह अपने घरों में ही अपने चहेतों को बुलाकर होली का जश्न मना लेते हैं। अगर वह भी लोगों के बीच ऐसे तीज त्योहारों पर पहुंचे तो वह भी जननायक बन सकते हैं।
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