Wednesday, 22 March 2017

मैं नास्तिक क्यों हुं ? को पढते हुए



मैं नास्तिक क्यों हुं ? को पढते हुए


क्यों नहीं आज ही

ईश्वर की उपस्थिती पर

तर्कपूर्ण सवाल खडे किये जाएं

क्यों नहीं संसार और मनुष्य के जन्म

और निर्माण की प्रक्रिया के तत्व खंगाले जाएं

मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना से

क्यों नहीं जवाब तलब किये जाएं

मनुष्य की दीनता और शोषण पर आंख मुंद लेने वाले

सर्वशक्तिमान पर क्यों नहीं विश्वास करना छोड दिया जाए

क्यों नहीं ईश्वर के अस्तित्व के बारे में

उदारतापूर्वक सोच विचार कर उसकी आलोचना शुरू की जाए।

ना और अधिक रहस्यवाद ना और अधिक अंधविश्वास

क्यों ना यथार्थवाद को अपना आधार बनाया जाए

क्यों ना सर्वशक्तिमान परम आत्मा की बात

ब्रह्मांड के सृजक, दिग्दर्शक और संचालक को

एक कोरी बकवास मान लिया जाए

क्यों नहीं अनासक्त भाव से अपने जीवन को

मानव स्वतंत्रता के ध्येय पर समर्पित कर दिया जाए।

मानवता की गर्दन से दासता का जुआ उतार फैंक

मुक्ति और शांति का मार्ग क्यों नहीं अपनाया जाए।

क्यों नहीं रूढिगत विश्वासों को चुनौती देकर

प्रचलित मतों को तर्क की कसौटी पर कसा जाए।

क्यों नहीं चेतन परम आत्मा का

प्रकृति की गति के दिग्दर्शन और संचालन में

कोई अस्तित्व नहीं है पर विश्वास किया जाए।

क्यों नहीं सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सर्वज्ञानी ईश्वर से

असंख्य दुखों के शाश्वत अनन्त गठबंधनों से ग्रसित

दुनिया की रचना करने पर सवाल किया जाए।

उस शाश्वर नीरो को, जो हर दिन, हर घंटे और हर मिनट

असंख्य दुख देता रहा और अभी भी दे रहा है

न्यायोचित ठहराना कैसे स्वीकार किया जाए।

काल कोठरियों से लेकर झोपडियों की बस्तियों तक

भूख से तडपते लाखों इन्सानों, मजदूरों,

पूंजीवादी पिशाच द्वारा खून चूसने की क्रिया को

धैर्यपूर्वक निरूत्साह से चुप्पी साधे

देखते रहने पर क्यों नहीं सवाल किया जाए।

क्यों नहीं श्रद्धा को एक ओर फैंक कर

सभी कष्टों, परेशानियों का पुरूषत्व से सामना किया जाए।

ईश्वर में विश्वास और रोज़-ब-रोज़ की प्रार्थना को

मनुष्य के लिए सबसे स्वार्थी और

गिरा हुआ काम माना जाए।

क्यों नहीं शहीदे-आज़म भगत सिंह की तरह

विपदाओं का बहादुरी से सामना करने वाले

नास्तिकों के बारे में पढा जाए।

स्वार्थी कारणों से मैं प्रार्थना नहीं करूंगा पाठको और दोस्तो

अगर यह अहंकार है तो क्यों न स्वीकार किया जाए।

(भगत सिंह के लेख मैं नास्तिक क्यों हुं ? को पढते हुए इस कविता का सृजन हुआ है)

समीर कश्यप

29-9-2013

sameermandi@gmail.com

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