मंडी। हिमाचल प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद आयोग ने बीमा कंपनी को उपभोक्ता के पक्ष में 1,00,000 रूपये हर्जाना ब्याज सहित अदा करने का फैसला सुनाया है। इसके अलावा जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश के तहत अस्पताल और चिकित्सक को उपभोक्ता के पक्ष में 3000 रूपये शिकायत व्यय भी अदा करने के आदेश दिये। राज्य आयोग के अध्यक्ष न्यायमुर्ति सुरजीत सिंह और सदस्यों प्रेम चौहान व विजय पाल खाची ने
सुंदरनगर के ललित चौक स्थित सुकेत अस्पताल के प्रबंध निदेशक और सीनीयर सर्जन डा. अनिल चौहान की अपील को आंशिक रूप से स्वीकारते हुए उन्हे सर्जरी के बाद की देखभाल में दोषी मानते हुए उनकी लापरवाही को सेवाओं में कमी करार दिया। आयोग ने अपीलकर्ताओं की बीमा कंपनी न्यु इंडिया ऐशोरेंस कंपनी की मंडी और बिलासपुर शाखाओं को जिला बिलासपुर के समोह (झंडुता) गांव निवासी ज्योती देवी पत्नी
चमन लाल के पक्ष में एक लाख रूपये हर्जाना 9 प्रतिशत ब्याज दर सहित अदा करने का फैसला सुनाया है। हालांकि आयोग ने जिला उपभोक्ता फोरम के इस निष्कर्ष को निरस्त कर दिया कि अपीलकर्ताओं ने उपचार में इस हद तक लापरवाही बरती कि सर्जरी के दौरान सुई को शरीर में ही रहने दिया और जिसके चलते पांच लाख रूपये हर्जाना अदा करने के आदेश दिये गए थे। उल्लेखनीय है कि जिला फोरम ने उपभोक्ता की
शिकायत को उचित मानते हुए सुकेत अस्पताल के प्रबंध निदेशक और सीनीयर सर्जन डा. अनिल चौहान की सेवाओं में कमी और लापरवाही के लिए न्यु इंडिया एशोरेंस कंपनी को उक्त हर्जाना राशि का भुगतान 9 प्रतिशत ब्याज दर सहित करने का फैसला सुनाया था। अधिवक्ता भूपिन्द्र भरमौरिया के माध्यम से फोरम में दायर शिकायत के अनुसार 28 जून 2005 को उपभोक्ता को पेट में दर्द होने पर वह सुकेत अस्पताल में गई।
जहां पर डा. अनिल चौहान ने उनकी जांच की और बताया कि उसकी आंत में फोडा है। उपभोक्ता को एडमिट करके उसका आपरेशन किया गया। अस्पताल से छुटी के कुछ दिन बाद उपभोक्ता की आपरेशन वाली जगह पर फिर से दर्द शुरू हो गया और टांकों में से पीक निकलना शुरू हो गया। ऐसे में उपभोक्ता फिर से अस्पताल गई और उसे फिर से एडमिट किया गया। इलाज के बाद उसे आश्वस्त किया गया कि अब वह
ठीक हो जाएगी। लेकिन इसके बावजूद भी दर्द और पीक नहीं रूका तो उसे मंडी स्थित मंाडव अस्पताल को रेफर कर दिया गया। लेकिन यहां भी ठीक नहीं हो पाने पर उपभोक्ता ने नेहरू अस्पताल, पीजीआई चंडीगढ में अपना ईलाज करवाया। जहां पर उन्हे पता चला कि आंत के फोडे के आपरेशन के दौरान चिकित्सक की लापरवाही से उनके पेट में करीब 2.5 सेमी लंबी सुई रह गई है। यह सुई करीब पांच साल से उपभोक्ता के पेट में ही रही जिसके कारण उन्हे भारी दर्द सहना पडा और इसके इलाज के लिए राशि भी करनी पडी। फोरम ने अपने फैसले में कहा कि अस्पताल और चिकित्सक संयुक्त और अलग-2 रूप से यह हर्जाना देने के लिए उतरदायी हैं। लेकिन क्योंकि उन्होने बीमा की पालसियां ली हैं ऐसे में बीमा कंपनी यह हर्जाना राशि उपभोक्ता के पक्ष में ब्याज सहित अदा करे। जबकि अस्पताल और चिकित्सक को उपभोक्ता के पक्ष में शिकायत व्यय की राशि अदा करने के आदेश दिये थे।
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