Wednesday, 22 October 2014

मैंने देखा...



मैंने देखा...

मैंने देखा
बयास नदी को बंधते 
पंडोह और लारजी बांध में,
रोके हुए पानी को फैंकने से
पैदा हुई बिजली की
चमकती रोशनियों के बीच।
मैंने देखा
खूबसूरत झरने, सुंदर अगिनत वनस्पति
फूल, पौधे, जीव,जन्तु
दूधिया हरे रंग में
बार बार निहारने को
विवश करती
कल कल बहती
शांत बयास नदी
और इसकी सुरम्य घाटी।
पहाडों को काट कर बनी सडकें,
तीखी धुमावदार,
ऊंची-नीची, ढलानदार
रास्ते के देवस्थल
कठिन यात्रा के पहरेदार।
कितने साल लगे होंगे
बयास को अपने कोमल जल से
संकरी घाटी को चीरने में,
काटने में, घिसने में
और फिर आगे बढने में।
नदी किनारे की बडी बडी
चट्टानें लुढकाने में,
डवार तथा कंदराएं बनाने में।
नदी किनारे का ताजा बालू
एकबारगी सिहरन पैदा करता
8 जून 2014
याद दिलाता
हैदराबाद के इंजिनियरिंग
कालेज के 24 युवा छात्रों का
दल नदी की खूबसूरती से
वशीभूत
चट्टानों पर
गर्मी के मौसम में
कल कल बहते पानी की
ठंडी ब्यारों के आगोश में
पर्यटन का आनंद उठाता।
अचानक
लारजी बांध से आए
फलैश फल्ड का जलप्रवाह
जिंदगी की जदोजहद के बाद
सभी छात्रों को लीलता जाता।
हादसे को हो गए चार माह
तो भी नहीं बदली है राह।
मौका को तारें लगा दी हैं
कई जगह चेतावनी दर्शा दी है
पर नदी तट के सौंदर्य का क्या करें...
वह तो अटखेलियां को
हर बार भरमाता,
सम्मोहन में खींचा सा
हर कोई नदी तट में
उतरता जाता।
नहीं समझ पाता कि
भाई यह जीवनदायनी नदियों की
मर्यादा हनन का दौर है।
बयास नदी विपाशा है
पाश को तोडने वाली।
माना कि
बांध आधुनिक विज्ञान का
मानवीय आविषकार है।
तो फिर इससे
मानव जीवन की सुरक्षा का
क्यों कर परिष्कार है।
समीर कश्यप
22-10-2014
sameermandi@gmail.com
9816155600

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