सापेक्ष
मैं तुमसा नहीं हो सकता
नहीं रखो आशाएं मुझसे
मैं जैसा हुं
इसी में सुकून है
इसी में स्वीकार्य है
तुम जैसा होना
संभव नहीं मेरे लिए।
अपनी चाल ढाल, विचार
तुम्हारे अनुरूप बदलना
मुमकिन नहीं मेरे लिए।
मुझे बनाया है
मेरे इतिहास ने
तुम्हारे इतिहास के सापेक्ष।
मत कहो
बदलने के लिए
अपनापन
तुम्हारा होने को।
रहने दो अवस्थित
अपने में
खोजने दो
जीवन यात्रा का मर्म
अर्थ- अनर्थ
अपने औजारों से।
--- समीर कश्यप
13-5-2015
Sameermandi.blogspot.com
No comments:
Post a Comment