मंडी। आज न्यायलय परिसर से गुजर ही रहा था तो देखा कि मंडी का प्रेस किसी कवरेज के लिए तैनात है। पता चला कि आला साहब एक उदघाटन करने आने वाले हैं। थोडी देर में साहब वहां पहुंचे। पूजा के लिए बाकायदा पंडित जी धोती लगाकर उदघाटन स्थल पर मौजूद थे। साहब ने पूजा अर्चना के बाद नारियल फोड कर विधिवत शुभारंभ किया। लेकिन पूजा अर्चना के दौरान साहब अपने जुते उतारना भूल गए। मौका पर मौजूद लोगों ने पत्रकारों का ध्यान इस ओर दिलाया तो कमेंट सुनने को मिला कि आजकल इंस्टेंट जमाना है। हर चीज इंस्टेंट होती है इसलिए पूजा भी अब इंस्टैंट होने लगी है। इसलिए जूते उतारे बगैर भी काम चल पडता है। यह तो ठीक ही कहा कहने वालों ने। अब साहब को दिन भर में अनेकों काम करने को पडे हैं वो कहां जूते उतारने के चक्कर में पडेंगे। वैसे भी पूजा तो मात्र रस्म ही है। इसे निभाने में बडे उद्देश्य आडे नहीं आने चाहिए। जैसे इस उदघाटन से भी लोगों को राहत पहुंचाने का बडा उद्देश्य है। लेकिन क्या यह रस्म अदायगी गल्त परंपराओं का नतीजा नहीं है। एक तो बडे उद्देश्य को देखते हुए रस्म निभाई ही नहीं जानी चाहिए। और अगर रस्मी परंपरा जारी ही रखनी हो तो या इसे ठीक ढंग से निभाया जाना चाहिए। ठीक ढंग से रस्म निभाने का मतलब यह नहीं है कि ठीक ढंग से पूजा कर ली जाए। एक ही धर्म की पूजा नहीं अपितु अन्य सभी धर्मों के अनुरूप भी रस्में निभाई जानी चाहिए। अन्यथा इस धर्म निरपेक्ष देश के नागरिकों में क्या यह संदेश नहीं जाता कि सरकार सिर्फ बहुसंख्यक धर्म को ही सरकारी काम का धर्म मानती है। अन्य धर्मों के नागरिकों में क्या एक असुरक्षा और अपने धर्म की ओर ज्यादा कट्टरवादी होने का संकेत नहीं जाता। जब सरकारी कार्यालयों में एक ही धर्म को तवज्जो दी जाती हो तो अल्पसंख्यकों में यह बात तो घर करेगी ही कि यह देश, सरकार और प्रशासन बहुसंख्यक धर्म को ही पोषित करता है तथा अन्य धर्मों की उपेक्षा। ऐसे में क्या यह नहीं होना चाहिए कि संविधान के मुताबिक धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को मानते हुए किसी धर्म विशेष को तवज्जो नहीं दी जाए। अक्सर सरकारी कार्यालयों में देवी देवताओं के कैलेंडर और धार्मिक प्रतीक देखे जा सकते हैं। ऐसे कार्यालयों में प्रवेश करने वाले अल्पसंख्यक क्या अपने आप को असुरक्षित और अपने कार्य के लिए आशंकित महसूस नहीं करते होंगे। अगर देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाए रखना है तो सरकार व प्रशासन को धर्म विशेष को तवज्जो दिये बगैर या तो सर्वधर्म रस्में करवानी चाहिए या फिर रस्म अदायगी का यह खेल संविधान के प्रावधान के तहत राज्य के कार्यों में धर्म का हस्ताक्षेप न होने के सार को समझते हुए बंद कर देना चाहिए। Thursday, 7 May 2015
...और साहब ने जुतों के साथ ही कर दी उदघाटन की पूजा अर्चना
मंडी। आज न्यायलय परिसर से गुजर ही रहा था तो देखा कि मंडी का प्रेस किसी कवरेज के लिए तैनात है। पता चला कि आला साहब एक उदघाटन करने आने वाले हैं। थोडी देर में साहब वहां पहुंचे। पूजा के लिए बाकायदा पंडित जी धोती लगाकर उदघाटन स्थल पर मौजूद थे। साहब ने पूजा अर्चना के बाद नारियल फोड कर विधिवत शुभारंभ किया। लेकिन पूजा अर्चना के दौरान साहब अपने जुते उतारना भूल गए। मौका पर मौजूद लोगों ने पत्रकारों का ध्यान इस ओर दिलाया तो कमेंट सुनने को मिला कि आजकल इंस्टेंट जमाना है। हर चीज इंस्टेंट होती है इसलिए पूजा भी अब इंस्टैंट होने लगी है। इसलिए जूते उतारे बगैर भी काम चल पडता है। यह तो ठीक ही कहा कहने वालों ने। अब साहब को दिन भर में अनेकों काम करने को पडे हैं वो कहां जूते उतारने के चक्कर में पडेंगे। वैसे भी पूजा तो मात्र रस्म ही है। इसे निभाने में बडे उद्देश्य आडे नहीं आने चाहिए। जैसे इस उदघाटन से भी लोगों को राहत पहुंचाने का बडा उद्देश्य है। लेकिन क्या यह रस्म अदायगी गल्त परंपराओं का नतीजा नहीं है। एक तो बडे उद्देश्य को देखते हुए रस्म निभाई ही नहीं जानी चाहिए। और अगर रस्मी परंपरा जारी ही रखनी हो तो या इसे ठीक ढंग से निभाया जाना चाहिए। ठीक ढंग से रस्म निभाने का मतलब यह नहीं है कि ठीक ढंग से पूजा कर ली जाए। एक ही धर्म की पूजा नहीं अपितु अन्य सभी धर्मों के अनुरूप भी रस्में निभाई जानी चाहिए। अन्यथा इस धर्म निरपेक्ष देश के नागरिकों में क्या यह संदेश नहीं जाता कि सरकार सिर्फ बहुसंख्यक धर्म को ही सरकारी काम का धर्म मानती है। अन्य धर्मों के नागरिकों में क्या एक असुरक्षा और अपने धर्म की ओर ज्यादा कट्टरवादी होने का संकेत नहीं जाता। जब सरकारी कार्यालयों में एक ही धर्म को तवज्जो दी जाती हो तो अल्पसंख्यकों में यह बात तो घर करेगी ही कि यह देश, सरकार और प्रशासन बहुसंख्यक धर्म को ही पोषित करता है तथा अन्य धर्मों की उपेक्षा। ऐसे में क्या यह नहीं होना चाहिए कि संविधान के मुताबिक धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को मानते हुए किसी धर्म विशेष को तवज्जो नहीं दी जाए। अक्सर सरकारी कार्यालयों में देवी देवताओं के कैलेंडर और धार्मिक प्रतीक देखे जा सकते हैं। ऐसे कार्यालयों में प्रवेश करने वाले अल्पसंख्यक क्या अपने आप को असुरक्षित और अपने कार्य के लिए आशंकित महसूस नहीं करते होंगे। अगर देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाए रखना है तो सरकार व प्रशासन को धर्म विशेष को तवज्जो दिये बगैर या तो सर्वधर्म रस्में करवानी चाहिए या फिर रस्म अदायगी का यह खेल संविधान के प्रावधान के तहत राज्य के कार्यों में धर्म का हस्ताक्षेप न होने के सार को समझते हुए बंद कर देना चाहिए।
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