मंडी। यशस्वी लेखिका कात्यायनी जी का आज जन्मदिन है। साल 1997 के 19 सितंबर को समरहिल स्थित हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में देश की प्रसिद्ध लेखिका कात्यायनी के भाषण की दहाडती गूंज वहां मौजूद श्रोताओं के हृदय में अभी भी गुंजायमान है। जिस तरह से उन्होने अपने भाषण के माध्यम से रेडिकल प्रोबल्मस के रेडिकल स्लयुशन के लिए संघर्षरत होने का आहवान किया था। वह बेहद प्रेरणामयी था। हिमाचल प्रदेश के लोगों के स्वभाव में धीमापन है। पहाडों को फुर्ती से नहीं चढ़ा जा सकता। पहाड चढने के लिए ठहर ठहर कर ही चलना पडता है। इसी से पहाडी मानुष का स्वभाव मैदानी क्षेत्रों की आपेक्षा धीमापन लिए हुए है। लेकिन इस धीमेपन में वातावरण को जज्ब करने की बेहद क्षमता है। करीब डेढ घंटे तक चले कात्यायनी जी के अधिभाषण ने श्रोताओं को पूरी तरह से झकझोर दिया। हालांकि भाषण के उपरांत कार्यक्रम के आयोजक ही खुद कात्यायनी जी की लाइन से खफा हो गये। उनका कहना था कि भाषण में व्यवस्था को फूंक डालो, जला डालो आदि से नक्सलवादी लाइन सामने आ रही थी। लेकिन इस विचार से मेरे सहित विश्वविद्यालय के सहपाठी और युवा लेखक जितेन्द्र निराला भी सहमत नहीं थे। हुआ यह कि कार्यक्रम के बाद आयोजकों ने कन्नी काट दी। लेकिन हम कात्यायनी जी को कैफेट एरिया ले गए। जहां हमने उन्हे चाय पर आमंत्रित किया। इसी दौरान उन्होने मेरी डायरी पर एक कविता लिख कर अभिव्यक्ति दी थी। कविता यह थी कि...ऐसा किया जाय, एक साजिश रची जाय, बारूदी सुरंगे बिछाकर, उड़ा दी जाये, चुप्पी की दुनिया। चायपान के बाद कात्यायनी जी को एडवांस स्टडीस में छोडने के लिए गए। जहां पर प्रसिद्ध लेखक अरूण कमल जी से मुलाकात हुई। अरूण कमल जी को बताया कि मैं कवि दीनू कश्यप जी का बेटा हुँ तो वह बहुत खुश हुए और पिता जी के साथ बिताए अपने समय के संस्मरण बताने लगे। अरूण कमल जी और कात्यायनी जी एडवांस स्टडीस में कार्यवश आए हुए थे। इसका पता चलते ही जितेन्द्र निराला के साथ उन्हे विश्वविद्यालय में अपने विचार रखने के लिए कहने गए थे। अरूण कमल जी की कविता अपना क्या है इस दुनिया में सब तो लिया उधार सारा लोहा उन लोगों का अपनी केवल धार हमारे संगठन के पोस्टरों की कविताओं की मुख्य लेखनी होती थी। ऐसे में अरूण कमल जी का एडवांस स्टडीस में होना हमारे लिए बडा सौभाग्य था। लेकिन अरूण कमल जी के व्यस्त होने के कारण जब कात्यायनी जी से आग्रह करने पर वह सहर्ष विश्वविद्यालय आने को तैयार हो गई थी। कात्यायनी जी का विश्वविद्यालय में आगमन साहित्य प्रेमियों और छात्रों के लिए एक अहम घटना थी। कात्यायनी जी के लेख, कहानियां, बहसें अक्सर हंस सहित अन्य पत्रिकाओं में प्रमुखता में छपती थी। ऐसे में समकालीन परिदृष्य पर लेखन कर रही प्रसिद्ध लेखिका का थोडे समय के लिए ही सानिध्य प्राप्त करना साहित्य के गंभीर पाठकों के लिए अविस्मरणीय क्षण था। कात्यायनी जी की डायरी में लिखी पांच पंक्तियों की लघु कविता हमेशा प्रेरणा देती है। हाल ही में पिता जी ने बताया कि उनके पास कात्यायनी जी के साहित्य का पूरा सेट है। सबसे पहले उनकी पुस्तक कुछ जीवंत कुछ ज्वलंत हाथों में आई है तो इसी को पढना शुरू कर दिया है। अनेकों सवालों के जवाब पुस्तक को पढते हुए मिल रहे हैं। इस पुरानी किताब में जिन बातों का उल्लेख है वह फिर फिर से घटित होकर सामने आ रही हैं और यह आज भी उतनी ही प्रासांगिकता रखती हैं जितनी वह उस समय थी जब यह प्रकाशित हुई थी। जैसे मुंशी प्रेमचंद जी के साहित्य पर हाल ही में किए जाने हमले। लेकिन यह हमले मुंशी प्रेमचंद के समय को सामने रखते हुए उनकी कृतियों की समीक्षा किए बगैर किया जा रहे हैं। इनका स्वरूप समझने के लिए यह पुस्तक बेहद समसामयिक हो जाती है। यह बेहद राहत भरा संयोग है कि जिस लेखिका को हम पुस्तकों में पढते हैं वह अब सोशल मीडिया फेसबुक के माध्यम से साथी भी है। इससे उनकी बौधिकता का अनायास ही सानिध्य मिल गया है। लेकिन लेखक को समझने के लिए सोशल मीडिया ही काफी नहीं है इसके लिए उनकी पुस्तकों तक पहुंच बनाना बेहद जरूरी है।जन्मदिवस के अवसर पर कात्यायनी जी को बहुत-2 बधाई हो। यह वर्ष उनके लिए सृजनशीलता से भरा हुआ और मंगलमय हो।
...sameermandi.blogspot.com
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