चुप्पी
बहुत सारे देशों की
बहुत सारी महिलाएं
हैं एक जुबान
चुप्पी की भाषा कहती।
मेरी दादी हमेशा चुप
और व्यथित रहती
पुरूष ही
कहने सुनने के
आलौकिक अधिकार का
केवल अधिपती ।
वे कहते कि
अब सब बदल गया
आखिरकार मैं जो हुं बातूनी
दादी भी तो यही सोचती
कि मैं बहुत बतियाती।
लेकिन कई बार हैरानगी होती
जब एक महिला अपना प्यार देती
जैसे अधिकतम महिलाएं
खुले दिल से हैं करती
जब एक महिला सांझा
अपना विचार करती
जैसे कई महिलाएं
हैं शालीनतापुर्वक करती
यह स्वीकार्य होती जाती।
पर जब एक महिला
धीरे-धीरे से या ऊंचे स्वर में
ताकत पाने के लिए लडती
जैसा सभी महिलाएं हैं करना चाहती
प्रश्नचिन्ह लगा विवाद का विषय
बना दी जाती।
अंततोगत्वा कुछ कहने की
हमें भी चाहिए आजादी
और हां, ताकत भी पानी हैं हमें
हमारे कहे को सुना जा सके ताकि।
जब हमारे पास दोनों होंगे
ताकत और आजादी
हमें गल्त न समझना
उनको जो व्यक्त नहीं कर पाते
शब्द
हम खोजना और सौंपना चाहेंगी।
बहुत सारे देशों की
बहुत सारी महिलाएं
हैं एक जुबान
चुप्पी की भाषा कहती।
मैं भूलना चाहती हुं
दादी मां की चुप्पी का संताप।
-समीर कश्यप
26-1-2016
Silence
बहुत सारी महिलाएं
हैं एक जुबान
चुप्पी की भाषा कहती।
मेरी दादी हमेशा चुप
और व्यथित रहती
पुरूष ही
कहने सुनने के
आलौकिक अधिकार का
केवल अधिपती ।
वे कहते कि
अब सब बदल गया
आखिरकार मैं जो हुं बातूनी
दादी भी तो यही सोचती
कि मैं बहुत बतियाती।
लेकिन कई बार हैरानगी होती
जब एक महिला अपना प्यार देती
जैसे अधिकतम महिलाएं
खुले दिल से हैं करती
जब एक महिला सांझा
अपना विचार करती
जैसे कई महिलाएं
हैं शालीनतापुर्वक करती
यह स्वीकार्य होती जाती।
पर जब एक महिला
धीरे-धीरे से या ऊंचे स्वर में
ताकत पाने के लिए लडती
जैसा सभी महिलाएं हैं करना चाहती
प्रश्नचिन्ह लगा विवाद का विषय
बना दी जाती।
अंततोगत्वा कुछ कहने की
हमें भी चाहिए आजादी
और हां, ताकत भी पानी हैं हमें
हमारे कहे को सुना जा सके ताकि।
जब हमारे पास दोनों होंगे
ताकत और आजादी
हमें गल्त न समझना
उनको जो व्यक्त नहीं कर पाते
शब्द
हम खोजना और सौंपना चाहेंगी।
बहुत सारे देशों की
बहुत सारी महिलाएं
हैं एक जुबान
चुप्पी की भाषा कहती।
मैं भूलना चाहती हुं
दादी मां की चुप्पी का संताप।
-समीर कश्यप
26-1-2016
Silence
Too many women in too many countries
speak the same language of silence.
My grandmother was always silent, always aggrieved
Only her husband had the cosmic right (or so it was said)
to speak and be heard.
They say it is different now.
(After all, I am always vocal and my grandmother
thinks I talk too much)
But sometimes I wonder.
When a woman shares her thoughts, as some women do,
graciously, it is allowed.
When a woman fights for power, as all women would like
to, quietly or loudly, it is questioned.
And yet, there must be freedom — if we are to speak
And yes, there must be power — if we are to be heard.
And when we have both (freedom and power) let us now be
understood.
We seek only to give words to those who cannot speak
(too many women in too many countries)
I seek to forget the sorrows of my grandmother's silence.
speak the same language of silence.
My grandmother was always silent, always aggrieved
Only her husband had the cosmic right (or so it was said)
to speak and be heard.
They say it is different now.
(After all, I am always vocal and my grandmother
thinks I talk too much)
But sometimes I wonder.
When a woman shares her thoughts, as some women do,
graciously, it is allowed.
When a woman fights for power, as all women would like
to, quietly or loudly, it is questioned.
And yet, there must be freedom — if we are to speak
And yes, there must be power — if we are to be heard.
And when we have both (freedom and power) let us now be
understood.
We seek only to give words to those who cannot speak
(too many women in too many countries)
I seek to forget the sorrows of my grandmother's silence.
ANASUYA SENGUPTA
हिमाचल प्रदेश विश्विद्यालय में 7 अक्तुबर 1998 को किसी अखबार में एक अंग्रेजी कविता पढी थी। उसे डायरी में उतार लिया था लेकिन लेखक का नाम लिख न पाया था। आज इसे फिर से पढा तो प्रेरित होकर इसे हिंदी में अनुवादित करने की कोशीश की है। गुगल पर सर्च करने पर पता चला है कि कविता की लेखिका का नाम अनसुया सेनगुप्त है। जिनका मानना है कि प्रतिबद्धता के बिना लेखन नहीं होता है।
हिमाचल प्रदेश विश्विद्यालय में 7 अक्तुबर 1998 को किसी अखबार में एक अंग्रेजी कविता पढी थी। उसे डायरी में उतार लिया था लेकिन लेखक का नाम लिख न पाया था। आज इसे फिर से पढा तो प्रेरित होकर इसे हिंदी में अनुवादित करने की कोशीश की है। गुगल पर सर्च करने पर पता चला है कि कविता की लेखिका का नाम अनसुया सेनगुप्त है। जिनका मानना है कि प्रतिबद्धता के बिना लेखन नहीं होता है।
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