दुख के साथ बताना पड रहा है कि प्रोफेसर कृपाल सिंह जी का दिल्ली में देहांत हो गया। वह 70 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। प्रोफेसर कृपाल सिंह जी के देहावसान की सूचना उनके अभिन्न दोस्त मेरे पिता जी श्री दीनू कश्यप जी ने दी तो आसन्न रह गया। मेरे जीवन में गुरू जी का एक अहम स्थान है। एक वक्त था जब नानमेडिकल की पढाई में 85 एमए 86 की रजिस्ट्रेशन के साथ मंडी के वल्लभ कालेज में दाखिले के बाद बीएससी वन तक पहुंचते-2 पांच बार असफलताओं का सामना करना पडा और जब साईंस में फिर से एडमीशन मिलना नामुमकिन हो गया तो पढाई छोड कर कुछ छोटा मोटा काम सीखने की दिशा में सोचने लगा था। इसी दौरान एक बडा मोड जिंदगी में उस समय आया जब प्रोफेसर कृपाल सर एक दिन मेरे पिता जी से मिलने मेरे घर आए थे। इस बीच मेरा भी उनसे आमना सामना हो गया तो उन्होने पूछा कि आजकल क्या कर रहा है। इस पर मैंने उन्हे बताया कि एक क्लास में दो बार असफल रहने के कारण अब आगे साईंस में एडमिशन नहीं मिलेगी। उन्होने मेरे पिता जी से कहा कि इसे मेरे पास आर्टस में डालो और साधारण बीए करवाओ। इसके बाद मैंने 22 साल पूरे होने से कुछ महीने पहले ही बीए वन में एडमिशन ले ली और गणित व समाजशास्त्र का विषय चुना और लगातार सभी क्लासें अच्छे नंबरों से पास करके बीए और बाद में शिमला विश्विद्यालय से एलएलबी करके अब वकालत से अपना जीवन यापन कर रहा हुं। आर्टस में एडमिशन लेने के बाद प्रोफेसर कृपाल सर और डी एन कपूर सर मेरे लोकल गार्जियन बने जबकि प्रोफेसर अरविंद सहगल सर ने समाजशास्त्र के प्रति जिज्ञासा पैदा करके मुझे पढाई में अव्वल बना दिया। प्रोफेसर कृपाल सिंह और प्रोफेसर रवि शर्मा ने कालेज की नाटक टीम में चयनित किया तो मानो सोई पडी सारी इंद्रियां जाग्रित हो उठी। गुरू जी के निर्देशित नाटकों में भाग लेकर कालेज व विश्विद्यालय के विभिन्न आयोजनों में हमेशा प्रथम और द्वितिय स्थान अर्जित किए। प्रोफेसर कृपाल और रवि की जोडी ने मंडी कालेज में नाटक की विधा को संजोने, संवारने, संरक्षित और संवर्धित करने में एक संस्थान की तरह योगदान दिया है। हालांकि गुरूजन अंग्रेजी और वाणिज्य के विषय पढाते थे लेकिन इसके अलावा कालेज के नाटक, स्कीट, माईम, लोक नाटय और सांस्कृतिक गतिविधियों को मुर्त रूप देने में उनकी ही मुख्य भूमिका होती थी। उनके गुरूत्व में तैयार हुए अनेकों शिष्य इस समय फिल्म, टीवी, नाटक, अखबार और चैनलों के माध्यम से हर जगह अपने गुरूजनों से अर्जित ज्ञान के लिए अहोभागी समझते हैं और उन्हे हमेशा याद करते हैं। यह गुरूजनों के निर्देश और प्रेरणाएं ही थी जिन्होने मेरे छात्र जीवन में पढाई के साथ सभी गतिविधियों खेल, नाटक, कविता, संगीत और राजनिती के क्षेत्रों में अपनी क्षमताओं को निखारने का अवसर प्रदान किया। प्रोफेसर कृपाल सिंह मेरे जैसे उनके शिष्यों की अनेकों पीढियों के हृदय में हमेशा जीवित रहेंगे। हम सभी उन्हे विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करते हैं।
Sunday, 4 January 2015
प्रोफेसर कृपाल सिंह के देहावसान पर श्रद्धांजली
दुख के साथ बताना पड रहा है कि प्रोफेसर कृपाल सिंह जी का दिल्ली में देहांत हो गया। वह 70 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। प्रोफेसर कृपाल सिंह जी के देहावसान की सूचना उनके अभिन्न दोस्त मेरे पिता जी श्री दीनू कश्यप जी ने दी तो आसन्न रह गया। मेरे जीवन में गुरू जी का एक अहम स्थान है। एक वक्त था जब नानमेडिकल की पढाई में 85 एमए 86 की रजिस्ट्रेशन के साथ मंडी के वल्लभ कालेज में दाखिले के बाद बीएससी वन तक पहुंचते-2 पांच बार असफलताओं का सामना करना पडा और जब साईंस में फिर से एडमीशन मिलना नामुमकिन हो गया तो पढाई छोड कर कुछ छोटा मोटा काम सीखने की दिशा में सोचने लगा था। इसी दौरान एक बडा मोड जिंदगी में उस समय आया जब प्रोफेसर कृपाल सर एक दिन मेरे पिता जी से मिलने मेरे घर आए थे। इस बीच मेरा भी उनसे आमना सामना हो गया तो उन्होने पूछा कि आजकल क्या कर रहा है। इस पर मैंने उन्हे बताया कि एक क्लास में दो बार असफल रहने के कारण अब आगे साईंस में एडमिशन नहीं मिलेगी। उन्होने मेरे पिता जी से कहा कि इसे मेरे पास आर्टस में डालो और साधारण बीए करवाओ। इसके बाद मैंने 22 साल पूरे होने से कुछ महीने पहले ही बीए वन में एडमिशन ले ली और गणित व समाजशास्त्र का विषय चुना और लगातार सभी क्लासें अच्छे नंबरों से पास करके बीए और बाद में शिमला विश्विद्यालय से एलएलबी करके अब वकालत से अपना जीवन यापन कर रहा हुं। आर्टस में एडमिशन लेने के बाद प्रोफेसर कृपाल सर और डी एन कपूर सर मेरे लोकल गार्जियन बने जबकि प्रोफेसर अरविंद सहगल सर ने समाजशास्त्र के प्रति जिज्ञासा पैदा करके मुझे पढाई में अव्वल बना दिया। प्रोफेसर कृपाल सिंह और प्रोफेसर रवि शर्मा ने कालेज की नाटक टीम में चयनित किया तो मानो सोई पडी सारी इंद्रियां जाग्रित हो उठी। गुरू जी के निर्देशित नाटकों में भाग लेकर कालेज व विश्विद्यालय के विभिन्न आयोजनों में हमेशा प्रथम और द्वितिय स्थान अर्जित किए। प्रोफेसर कृपाल और रवि की जोडी ने मंडी कालेज में नाटक की विधा को संजोने, संवारने, संरक्षित और संवर्धित करने में एक संस्थान की तरह योगदान दिया है। हालांकि गुरूजन अंग्रेजी और वाणिज्य के विषय पढाते थे लेकिन इसके अलावा कालेज के नाटक, स्कीट, माईम, लोक नाटय और सांस्कृतिक गतिविधियों को मुर्त रूप देने में उनकी ही मुख्य भूमिका होती थी। उनके गुरूत्व में तैयार हुए अनेकों शिष्य इस समय फिल्म, टीवी, नाटक, अखबार और चैनलों के माध्यम से हर जगह अपने गुरूजनों से अर्जित ज्ञान के लिए अहोभागी समझते हैं और उन्हे हमेशा याद करते हैं। यह गुरूजनों के निर्देश और प्रेरणाएं ही थी जिन्होने मेरे छात्र जीवन में पढाई के साथ सभी गतिविधियों खेल, नाटक, कविता, संगीत और राजनिती के क्षेत्रों में अपनी क्षमताओं को निखारने का अवसर प्रदान किया। प्रोफेसर कृपाल सिंह मेरे जैसे उनके शिष्यों की अनेकों पीढियों के हृदय में हमेशा जीवित रहेंगे। हम सभी उन्हे विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करते हैं।
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