Friday, 23 January 2015

आवाजें




आवाजें

कमरे से
बाहर निकलते ही
आवाजों से मुलाकात
होती चली गई।
चिं चिं करती चिडियों के
कलरव की चहचहाट
मौसम बदलने का
पैगाम लाती।
संगीत सदन में
रियाज कर रही
छात्राओं की उठती
समवेत तानों की जुगलबंदी
जीवन के आरोह-अवरोह
का क्रम सिखलाती।
पहाड से उतरती
बयास नदी की
गूंजती सायं सायं
निरंतर प्रवाहवान का
संदेश भिजवाती।
चुप्पी को खरोंच
कहीं दूर
लकडी चीरते
आरे की क्रौंच
पूर्वज प्रकृति पर
जारी हमलों का
अहसास करवाती।
कौवों के अनुशासित
समुहगान
के बाद माइक कब्जाने
की मारामारी
उनकी संसद का
लाइव दिखलाती।
राजमार्ग से गुजरती
मोटर का प्रेशर हार्न
ध्वनि प्रदुषण से
पर्यावरण को करता हार्म।
प्रेशर कुकर की
कहीं बजती सीटी
पके भात की
खुशबू लाती।
पतंगबाजों की
काटे काटे
बसंत पंचमी की
याद दिलाती
जीवन में उत्साह जगाती।
आवाजें लगातार जारी हैं...।
समीर कश्यप
9816155600
sameermandi@gmail.com
23/1/2015

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