मंडी। नाबालिगा से दुराचार का अभियोग साबित नहीं होने पर अदालत ने दो आरोपियों को बरी करने का फैसला सुनाया है। आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण उन्हें संदेह का लाभ देते हुए उन्हे बरी करने के आदेश दिये हैं। जिला एवं सत्र न्यायधीश बलदेव सिंह की विशेष अदालत ने सदर तहसील के सिहनाल (बिजणी) निवासी प्रवीन कुमार के खिलाफ भादंस की धारा 376, 323, 506 व पोकसो अधिनियम की धारा 4 के तहत और सुहडा मुहल्ला निवासी मोहित बंसल पुत्र देव राज के खिलाफ भादंस की धारा 363 के तहत अभियोग साबित न होने पर उन्हे बरी करने का फैसला सुनाया है। अभियोजन पक्ष के अनुसार नाबालिग पीडिता मंडी के खलियार स्थित एक निजी स्कूल में पढ रही थी। वह भूतनाथ की गली में टयुशन पढने जाती थी। तथ्यों के मुताबिक 6 मार्च 2015 को पीडिता के घर न लौटने पर परिजनों ने संदेह के आधार पर आरोपी मोहित के खिलाफ प्राथमिक दर्ज करवाई थी। आरोपी मोहित भी सात मार्च से गायब था। मामले की तहकीकात में जाहिर हुआ था कि उस रोज पीडिता टयुशन नहीं गई थी बल्कि वह मोहित के साथ घूमने के लिए कमांद की ओर चली गई थी। जब वह दोनों कमांद में एक पत्थर पर बैठे थे तो इसी दौरान आरोपी प्रवीण कुमार हाथ में डंडा लेकर वहां आया और पीडिता व आरोपी मोहित से मारपीट करने लग गया। प्रवीण ने उन दोनों को वहां से जाने से रोक दिया और उन्हे इसके बदले एक लाख रूपये अदा करने को कहा। उनके पास राशि न होने के कारण आरोपी प्रवीण ने मोहित को पैसों का इंतजाम करने के लिए भेज दिया। इसी दौरान आरोपी प्रवीण ने मोहित के जाने के बाद नाबालिगा से जबरन दुराचार किया। कुछ समय बाद मोहित व अन्य लोगों के मौकास्थल पर पहुंचते ही आरोपी प्रवीण वहां से फरार हो गया। इस घटना में डर व शर्म के चलते पीडिता अपने घर वापिस नहीं गई और आरोपी मोहित के साथ पंजाब चली गई। पुलिस जांच के दौरान पीडिता और आरोपी मोहित पंजाब के फरीदकोट में मिले थे। पुलिस ने इन मामले में प्रवीण और मोहित को नामजद करते हुए अदालत में अभियोग चलाया था। अभियोजन पक्ष की ओर से इस मामले में 21 गवाहों के बयान कलमबंद किये गए। जबकि बचाव पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता आर के शर्मा का कहना था कि अभियोजन पक्ष का केस भारी विरोधाभासों से भरा है और गवाहों के बयान मेल नहीं खाते हैं। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों से आरोपियों के खिलाफ संदेह की छाया से दूर अभियोग साबित नहीं हुआ है। जिसके चलते अदालत ने आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए उन्हे बरी करने का फैसला सुनाया है।
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