मंडी। बार कौंसिल आफ इंडिया के सर्टिफिकेट आफ प्रैक्टिस के विवादास्पद नियमों को लागू करने का जिला बार एसोसिएशन ने कडा विरोध जताया है। इन नियमों के तहत अधिवक्ताओं को पांच साल के वकालतनामे भेजने के लिए कहा गया है। नियमों को लेकर बार एसोसिएशन में गहरी प्रतिक्रिया के चलते सोमवार को दोपहर बाद इस विषय पर जिला बार एसोसिएशन की आम सभा का आयोजन किया गया। बार एसोसिएशन ने प्रस्ताव पारित करके इन नियमों को विरोध किया है। सभा की अध्यक्षता करते हुए एसोसिएशन के प्रधान नीरज कपूर ने नियमों को जानकारी देते हुए बताया कि बार कौंसिल आफ इंडिया के संशोधित नियम 2015 को लेकर प्रदेश बार कौंसिल ने अधिवक्ताओं की अर्जियां मांगी गई हैं। जिसके लिए फीस भी अदा करनी होगी और साथ ही उन्हे पांच साल के वकालतनामे व अन्य दस्तावेज भी संलगन करने होंगे। इन नियमों के तहत सभी अधिवक्ताओं को अपने लाइसैंस का नवीनीकरण हर पांच वर्ष बाद करवाना होगा। बार एसोसिएशन के सदस्यों ने इन नियमों का कडा विरोध किया है। हालांकि अधिवक्ता प्रदेश बार कौंसिल को अर्जियां भेजने को तैयार हैं लेकिन वह पांच सालों के वकालतनामे जैसी शर्तों को मानने को तैयार नहीं हैं। अधिवक्ताओं का कहना है कि जिला बार एसोसिएशन अधिवक्ताओं का पूरा रिर्काड रखती है। जहां पर हर साल अधिवक्ताओं का नवीनीकरण करके चुनाव आयोजित किए जाते हैं। उस समय उन अधिवक्ताओं का नाम बार एसोसिएशन से कट जाता है जिसकी मृत्यु हो गई हो या फिर कोई अधिवक्ता अन्य वयवसाय में कार्यरत हो गये हों। अधिवक्ताओं का कहना है कि बार कौंसिल आफ इंडिया द्वारा इन नियमों को लागू करने का उदेश्य फेक लॉयर और नॉन प्रैक्टिस एडवोकेट की शिनाखत करना है। अधिवक्ताओं का मानना है कि अधिवक्ताओं से वकालतनामे मांग कर फेक लॉयर और नॉन प्रैक्टिस लॉयर की शिनाखत नहीं हो सकती। क्योंकि जिला बार एसोसिएशन के पास दर्ज अधिवक्ताओं की सूचि पूरी तरह से दुरूस्त होती है क्योंकि सिर्फ उन्ही अधिवक्ताओं को चुनावों में भाग लेने दिया जाता है जिनकी वेरिफिकेश हो जाती है। बार एसोसिएशन से जारी अनुभव प्रमाण पत्र के आधार पर ही न्यायिक सेवा व अन्य पदों पर नियुक्ती दी जाती है। ऐसे में अधिवक्ताओं की वेरीफिकेशन के लिए वकालतनामे मांगना उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है। अधिवक्ताओं का कहना है कि यह नियम अवैज्ञानिक और अव्यवहारिक हैं। अधिवक्ताओं को वकालतनामे हासिल करने में भारी परेशानी का सामना करना पडेगा। इसके अलावा कुछ ऐसे अधिवक्ता भी हैं जो कोर्ट में हाजिर न होकर अन्यत्र कार्य परामर्शदाता, नोटरी पब्लिक, रजिस्ट्री आदि अनेकों कार्यों को करते हैं लेकिन इन कार्यों में वकालतनामों का प्रयोग नहीं होता। ऐसे में यह नियम पूरी तरह से अव्यवहारिक हैं। इन नियमों के तहत अवैज्ञानिक तरीके से वेरिफिकेशन की जा रही है। अधिवक्ताओं की ओर से भेजे जाने वाले दस्तावेजों की पडताल करना संभव नहीं है और शपथ पत्र देने से भी उनके फेक या नॉन प्रैक्टिस होने का पता नहीं चल सकता। इन शपथ पत्रों की वेरिफिकेश बार कौंसिल किस तरह से करेगी यह सपष्ट नहीं है। अधिवक्ताओं पर हर पांच साल बाद नवीनीकरण की शर्त लादना पुर्ण रूप से अव्यवहारिक है। बार एसोसिएशन के सदस्यों ने मांग की है कि अधिवक्ताओं के प्रैक्टिस करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने वाले इन नियमों को जल्द से जल्द निरस्त किया जाए। इसके अलावा बार एसोसिएशन ने एक अन्य प्रस्ताव पारित करते हुए जिला बार एसोसिएशन वेलफेयर फंड बनाने के लिए एक कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी इस फंड के लिए संविधान बनाने का काम करेगी। आम सभा में अधिवक्ता अरविंद कपूर, लोकेन्द्र कुटलैहडिया, ललित ठाकुर, रवि वर्धन, राजकुमार शर्मा व समीर कश्यप ने चर्चा में भाग लिया। इस मौके पर जिला बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष दिनेश सकलानी, महासचिव नंदलाल तथा पदाधिकारी व सदस्य मौजूद थे।
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