मंडी। ऐसा देखा गया है कि देश के नागरिक अपने अधिकारों के प्रति तो जागरूक हैं लेकिन अपने मौलिक कर्तव्यों के प्रति अनभिज्ञ रहते हैं। संविधान के अनुच्छेद 51-ए के ए भाग में पहले मौलिक कर्तव्य के अनुसार प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। भारतीय संविधान की प्रस्तावना दी गई है कि हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। पहले मौलिक कर्तव्य के अनुसार हमें संविधान के आदर्शों (उद्देशिका के उद्देश्य) का सम्मान करना चाहिए। यह बताता है कि संविधान जनता से निकलता है तथा जनता ही अंतिम सम्प्रभु है। उदेदेशिका लोगों के लक्ष्यों-आकांक्षाओं को प्रकट करती है। इसका प्रयोग किसी विध्यमान अस्पषटता को दूर करने में हो सकता है। यह जाना जा सकता है कि संविधान किस तारीख को बना और लागू हुआ था। उद्देशिका को संविधान का भाग माना जाए इसको लेकर दो मत हैं। परंपरागत मत के अनुसार उद्देशिका को संविधान का भाग नहीं मानता क्योंकि यदि इसे विलोपित भी कर दे तो भी संविधान अपनी विशेष स्थिति बनाये रख सकता है। इस मत के अनुसार इसे पुस्तक के पूर्व परिचय की तरह समझा जा सकता है। यह मत सर्वोच्च न्यायलय ने बेरूबारी यूनियन वाद में वर्ष 1960 में दिया था। जबकि नवीन मत इसे संविधान का एक भाग बताता है। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973 में दिये निर्णय में सर्वोच्च न्यायलय ने इसे संविधान का भाग बताया है। संविधान का एक भाग होने के कारण ही संसद ने इसे 42वें संविधान संशोधन से इसे संशोधित किया था और समाजवादी, पंथनिरपेक्ष शब्द जोड दिये थे। मौजूदा समय में नवीन मत ही मान्य है। उददेशिका मे वर्णित शब्दावली का विश्लेषण करने से इनके अर्थ पारिभाषित होते हैं। सम्प्रभु का अर्थ राज्य की सर्वोपरि राजनैतिक शक्ति है, राज्य की राजनैतिक सीमाओं के भीतर इसकी सत्ता सर्वोपरि है और यह किसी बाहरी शक्ति की प्रभुता स्वीकार नहीं करती है। समाजवादी से अभिप्राय है कि भारतीय गणतंत्र आवश्यक रूप से जनतांत्रिक होना चाहिए। समाजवादी लक्ष्यों की प्राप्ती जनतांत्रिक माध्यमों से होनी चाहिए। यह शब्द भारत को एक जनकल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित कर देता है। धर्मनिरपेक्षता का मतलब है लौकिकता को अध्यात्मिकता पर वरीयता देना। धर्म पर आधारित भेदों का सम्मान करना और अन्य धर्मों के प्रति राज्य द्वारा तटस्थता बरतना ही धर्म निरपेक्षता है। ऐसे राज्य किसी एक धर्म को प्रोत्साहन न देकर विभिन्न धर्मों के मध्य सहिष्णुता तथा सहयोग बढाने का कार्य करें। यह एक कर्तव्य है जिसके पालन से विभिन्न धर्मों के बीच सहअस्तित्व स्वीकार किया जाता है। इस प्रकार के राज्य विधि के समक्ष समता बरतते हैं तथा नागरिकों के मध्य धार्मिक आधार पर विभेद नहीं बरतते और उनको समान अवसर भी उपलब्ध करवाया जाता है। इस प्रकार के राज्य धर्मविरोधी, अधार्मिक न होकर धर्मनिरपेक्ष होते हैं। वे अपने नागरिकों को इच्छा के अनुसार धर्म पालना का अधिकार देते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 इससे संबंधित हैं। पंथनिरपेक्षता शब्द भारतीय साहित्य में सर्व धर्म समभाव के आदर्श के रूप में मौजूद था। यहां धर्म पर आधारित विभेद का विरोध किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 19 और 326 जनतंत्र से संबंधित है। भारत में बहुदलीय लोकतंत्र है। गणतंत्र का अर्थ यह है कि राज्य का प्रमुख निर्वाचित होगा न कि वंशानुगत। न्याय का अर्थ है सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय। एक व्यक्ति एक वोट राजनैतिक न्याय की प्राप्ति के लिए जरूरी है। सामाजिक न्याय की प्राप्ति अस्पृश्यता और उपाधि उन्मूलन से की जानी है। जबकि आर्थिक न्याय के लिए राज्य हेतु नीति निर्देशक तत्वों का प्रावधान रखा गया है। स्वतंत्रता का अर्थ नागरिक पर बाध्यकारी तथा बाहरी प्रतिबंधों का अभाव है। एक नागरिक द्वारा दूसरे के अधिकारों का उल्लंघन करना निषेधित है। नागरिक स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 और धार्मिक स्वतंत्रता अनुच्छेद 25-28 में वर्णित है। अनुच्छेद 15 से 18 में समानता को वर्णित किया गया है। जिसका अर्थ है स्तर और अवसरों की समानता स्थापित करना। बधुंत्व का अर्थ है भारतीय नागरिकों के मध्य बंधुत्व की भावना स्थापित करना क्योंकि इसके बिना देश में एकता स्थापित नहीं की जा सकती है। संविधान के तीन प्रमुख विभाग हैं। भाग एक में संघ तथा उसका राज्य क्षेत्रों के विषय में टिप्पणी की गई है तथा यह बताया गया है कि राज्य क्या हैं और उनके अधिकार क्या हैं। दूसरे भाग में नागरिकता के विषय में बताया गया है कि भारतीय नागरिक कहलाने का अधिकार किन लोगों के पास है और किन लोगों के पास नहीं है। विदेश में रहने वाले कौन लोग भारतीय नागरिक के अधिकार प्राप्त कर सकते हैं और कौन नहीं कर सकते। तीसरे भाग में भारतीय संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों के विषय में विस्तार से बताया गया है। मूल कर्तव्य मूल संविधान में नहीं थे इन्हे 42वें संविधान संशोधन में जोडा गया है। ये रूस से प्रेरित होकर जोडे गये तथा संविधान के भाग 4 (क) के अनुच्छेद 51-अ में रखे गए हैं। ये कुल 11 हैं। सबसे पहला कर्तव्य है कि वह संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें। दूसरा कर्तव्य है कि स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रिय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे। तीसरा कर्तव्य भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसकी मर्यादा बनाए रखे। चौथा, देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे। पांचवा, भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरूद्ध हैं। छठा, हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे। सातवां, प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं उनकी रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे। आठवां, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे। नवां, सार्वजनिक संपति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे। दसवां, व्यक्तिगत और सामुहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले। ग्यारवां और अंतिम कर्तव्य शिक्षा के अधिकार से संबंधित है। इसके अनुसार यदि माता पिता या संरक्षक हैं तो वह छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे। भारत वर्ष का नागरिक होने के नाते हमें जहां मौलिक अधिकारों के प्रति जानकारी होनी चाहिए। वहीं हमें अपने मौलिक कर्तव्यों के प्रति भी सजग होना चाहिए। हम यह प्रण लें कि देश के प्रति अपने कर्तव्यों को लेकर हम देशवासियों को जागरूक करें। जिससे हमारा देश दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति कर सकें।
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