Monday, 1 June 2015

डॉक्टर को सवा तेरह लाख हर्जाना


मंडी। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नयी दिल्ली ने निजी चिकित्सक के मेडिकल नेगलिजेंस (लापरवाही) करने पर उपभोक्ता के पक्ष में 13,26,286 रूपये की राशि ब्याज सहित अदा करने का फैसला सुनाया है। इसके अलावा चिकित्सक और बीमा कंपनी को 3,30,572 रूपये की राशि संयुक्त और अलग-अलग रूप से भी अदा करनी होगी। वहीं पर उन्हें उपभोक्ता के पक्ष में 20,000 रूपये शिकायत व्यय भी अदा करना होगा। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नयी दिल्ली के अध्यक्ष वी के जैन और सदस्य डा. बी सी गुप्ता ने कुल्लू जिला के राम शिला (अखाडा) निवासी यादविन्द्र के पक्ष में दिए राज्य उपभोक्ता आयोग शिमला के फैसले को बरकरार रखते हुए कुल्लू के कलेहली (बजौरा) स्थित एस आर हास्पिटल के मालिक डा. आर एम गौतम की अपील को निरस्त कर दिया। आयोग ने कहा कि चिकित्सक पर लापरवाही बरतने और केस को सही ढंग से नहीं संभालने का आरोप साबित हुआ है। जिसके चलते राष्ट्रीय आयोग ने राज्य आयोग के फैसले के अनुरूप उपभोक्ता के पक्ष में 13,26,286 रूपये की राशि नौ प्रतिशत ब्याज दर सहित शिकायत दायर करने के वर्ष 2006 से अदा करने के फैसले को बरकरार रखा है। वहीं पर चिकित्सक और बीमा कंपनी को 3,30,572 रूपये की राशि संयुक्त और अलग- अलग रूप से अदा करनी होगी। इस मामले के तथ्यों के अनुसार कुल्लू में बतौर एडवोकेट कार्य कर रही ज्योति डोगरा ने वर्ष 2006 में अधिवक्ता अरविंद शर्मा के माध्यम से राज्य उपभोक्ता आयोग में शिकायत दायर की थी। शिकायत के मुताबिक उन्होने पेट में दर्द होने के कारण कुल्लू अस्पताल में महिला रोग विशेषज्ञ सुमेध कौल के पास परीक्षण करवाया तो उन्होने अपनी राय दी कि यह कैंसर से संबंधित लक्षण हो सकते हैं। जिसके बाद उन्होने अंजना नारू के क्लीनिक में चैक करवाया तो उन्होने भी यह संदेह जताया। ऐसे में शिकायतकर्ता ने एस आर अस्पताल बजौरा के डा. आर एम गौतम के अस्पताल में राय जाननी चाही तो उन्होने कहा कि छोटी सी सर्जरी करनी होगी। डा. गौतम ने उसी दिन 25 मार्च 2004 को ज्योति डोगरा की सर्जरी बिना किसी टैस्ट को करवाए बगैर ही कर दी। इतना ही नहीं यह सर्जरी उन्होने बिना एनस्थिसिया से ही कर दी। सर्जरी के दौरान उक्त चिकित्सक ने उनकी यूटेरस, ओवरिस, फालोपाइन टयूबस और यूरेटियरस को काट कर निकाल दिया। आपरेशन के बाद पेशाब के लिए कोई जगह नहीं होने के कारण पेट में दो जगह पर छेद कर दिये। इस सर्जरी से उनकी हालत खराब होती चली गई और उन्हे उपचार के लिए पीजीआई चंडीगढ ले जाना पडा। जहां पर यूरोलोजी विभाग अध्यक्ष डा. ए के मंडल ने उनका ईलाज किया। अपनी राय देते हुए उन्होने कहा कि कैंसर के चरण को देखे बगैर रोगी की सर्जरी नहीं की जानी चाहिए थी। ज्योति डोगरा को अपने उपचार के लिए अनेकों बार पीजीआई में दाखिल होना पडा। जिसके चलते उन्होने राज्य उपभोक्ता आयोग में डा. गौतम के खिलाफ मेडिकल नेगलिजेंस की शिकायत दायर की थी। शिकायत की सुनवाई के दौरान सात फरवरी 2008 को ज्योति डोगरा का देहांत हो जाने पर उनके पुत्र नवक्षितिज की ओर से उनके पिता यादविन्द्र ने इस शिकायत की पैरवी जारी रखी। राज्य आयोग ने कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता की ओर से पीजीआई के डा. मंडल और डा. फिरोजा पटेल के बयान दर्ज किये गए हैं। मामले के रिकार्ड से डा. गौतम पर मेडिकल नेगलिजेंस और रोगी के केस को ठीक ढंग से नहीं संभालने के आरोप साबित हुए हैं। जिसके चलते राज्य आयोग ने चिकित्सक और नेशनल इंश्योरेंस बीमा कंपनी को उक्त राशि ब्याज सहित अदा करने और शिकायत व्यय भी अदा करने का फैसला सुनाया था।
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