मंडी। शांतिप्रिय हिमाचल प्रदेश वासियो सावधान। यहां की शांत वादियों में विलंबित गति से ही सही लेकिन बाउंसर कल्चर अवतरण ले चुका है। शुक्र है कि अभी तक यहां पर कोई स्पैशल इकनोमिक जोन (सेज) नहीं बना। लेकिन बहरहाल विकास कार्यों को करवाने के लिए केन्द्र व राज्य सरकारें कंपनियों और ठेकेदारों को ठेका देकर अपनी जिम्मेवारी से पल्लू झाड रही हैं। ठेकेदार काम लेने के लिए नेताओं की राजनिती को पोषित करते हैं और वहीं पर अफसरों व सरकारी अमले की पत्ती भी बंधी हुई है। लेकिन इस सारे कारोबार में मजदूरों के श्रम की लूट की जाती है और उन्हे अपना मेहनताना हासिल करने के लिए भारी जदोजहद और संघर्ष करना पडता है। इन मजदूरों के संघर्ष को कुचलने के लिए कंपनियां और ठेकेदार बाउंसर किराए पर लाते हैं। जिनका काम मजदूरों को डरा धमका कर अपने संघर्ष को बंद करने के लिए बाध्य करना होता है। इससे पहले भी प्रदेश में मजदूरों पर इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं। लेकिन आईआईटी कमांद की घटना ने इस तथ्य को ज्यादा मजबूती से उजागर और स्थापित किया है और साथ ही प्रदेशवासियों की सुरक्षा और शांति को लेकर भी एक गंभीर विमर्श प्रदेशवासियों के समक्ष रखा है। शांतिप्रिय प्रदर्शन करने का अधिकार देश के संविधान ने अपने नागरिकों को दिया है। लेकिन कंपनियां व ठेकेदार उन्हे सरकारों की ओर से दी गई मुनाफे की खुली छूट के चलते शोषण के अपने तमाम एजेंडों को बाहुबल की मदद से लागू करना चाहती हैं। कमांद की घटना ने साबित किया है कि कंपनियों व ठेकेदार की साजिश से बाउंसर कल्चर ने प्रदेश में अपने पैर पसार लिए हैं। इनसे जूझने के लिए आहवान है कि जाग जाओ और जागते रहो और जहां कहीं भी इस संस्कृति की आहट सुनाई दे, इसकी सूचना पुलिस व प्रशासन को अवश्य दें। लेकिन अगर पुलिस व प्रशासन सूचना की अनसुनी करे या परवाह न करे तो कमांद के मजदूरों की तरह वीरता से गोलियों का सामना करते हुए बाउंसर के हथियारों से सुसज्जित दुर्गों का भेदन करने के लिए भी अदम्य साहस से तैयार रहें।
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