साम्राज्यवादी दासता के कारण भारत में कोई प्रबोधन काल(रैनेसां)नहीं हुआ है। ऐसे में भारत में लंगडा पूंजीवाद ही पनपा है। यहां पूंजीवाद और सामंतवाद एक साथ मौजूद हैं। लंगडे पूंजीवाद के कारण सामंतवाद की जडें उखडने के बजाय यह पूंजीवाद को सशक्त करने के उपकरण के रूप में काम कर रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान विभिन्न धर्मों, क्षेत्रों के क्रांतीकारी जिन परिवेशों से आते थे वहां के समाजों का सामंती असर उन पर होना स्वभाविक है। लेकिन क्रांतीकारियों की भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद की धारा सामंती मुल्यों को परिवर्तन के लिए बाधक मानती थी और इसलिए इन संकीर्णताओं में समय खराब किए बगैर सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक स्वतंत्रता के लिए काम कर रही थी। यही कारण था कि क्रांतीकारियों की गतिविधियों में सामंती संस्कार बाधक नहीं बन पाते थे। भगत सिंह दुनिया भर का साहित्य अपनी छोटी सी जिंदगी में पढ कर इस नतीजे पर पहुंचे थे कि जब तक गैर बराबरी पर आधारित समाज मौजूद रहेगा तब तक स्वतंत्रता हासिल नहीं होगी और इसी आजादी के लिए इन क्रांतीकारियों ने अपनी शहादत दी थी। लेकिन राजनैतिक आजादी मिले तो साठ से अधिक साल बीत गए पर अभी भी देशवासी आजादी की सांस नहीं ले पाए हैं। बल्कि पूंजीवाद और सामंतवाद की कडी जकडन के कारण और ज्यादा संकट में आ गए हैं। इधर, साम्राज्यवादी अब एक बार फिर से देश के प्राकृतिक और मानव संसाधन को लूटने की मंशा में देश के हुक्मरानों द्वारा आमंत्रित किए जा रहे हैं। इन आमंत्रणों से लगता है देशवासी अपने ही देश में फिर से गुलाम बना दिये जाएंगे। जिसके लिए देशवासियों को आजादी के तीसरे संग्राम की तैयारी में जुट जाना चाहिए और इस अधिक भीष्ण संग्राम के विभिन्न मोर्चों पर लडाई के लिए नामालूम कितने क्रांतीकारियों की जरूरत है। आओ, शहीदों की जीवन व उनके विचारों के साथ दोस्ती करके उनके अनुभवों से वर्तमान की चुनौतियों से जुझने का साहस और समझ पैदा कर प्रेरणा हासिल करें।
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