Wednesday, 29 July 2015

बुद्धिजिवियों के आकर्षण का केंद्र बना है कुल्लू जिला पुस्तकालय



मंडी। कुल्लू के हृदयस्थल ढालपुर स्थित जिला पुस्तकालय में  पिछले दिनों जाने का मौका मिला तो ऐसा लगा मानो किताबों के संसार में आ गया हुं। दरअसल एक वैवाहिक आयोजन में कुल्लू के उपायुक्त राकेश कंवर जी से प्रसिद्ध कवि और मेरे पिता श्री दीनू कश्यप जी के वार्तालाप के दौरान उन्होने जिला पुस्तकालय देखने के लिए प्रेरित किया। आयोजन से लौटते समय रास्ते में ही जिला पुस्तकालय का बोर्ड दिखाई दिया तो इसे देखने का लोभ नहीं त्याग सके और इसे देखने के लिए रूक गए। परंपरागत पहाडी वास्तुशिल्प की शैली में बने पुस्तकालय भवन में प्रवेश करते ही किताबों का संसार सामने आ जाता है। पुस्तकालय को विभिन्न कक्षों में विभाजित किया हुआ है और पुस्तकों को सुरुचिपुर्ण ढंग से सजाया गया है। विभिन्न कक्षों में छात्र, शोधार्थीं, लेखक और पाठक अध्ययन करते हुए देखे जा सकते हैं। पुस्तकालय भवन में मौजूद कर्मी ने बताया कि यहां एक कांफ्रेंस हाल भी है और वहां भी जाया जा सकता है। कांफ्रेंस हाल का दरवाजा खोल कर देखा तो वहां पर प्रसिद्ध लेखक डा. निरंजन देव जी सहित कुल्लू के बहुत से साहित्यकार साहित्य चर्चा में व्यस्त थे। दरवाजा खुलते ही दीनू कश्यप जी को देखकर डा. निरंजन देव जी तपाक से उनके स्वागत के लिए उठे और पहला वाक्य कहा कि बहुत समय पर आए हैं आप क्योंकि गोष्ठी के अध्यक्ष की कुर्सी अभी खाली ही पडी है। सभी साहित्कारों से परिचय के बाद डा. निरंजन देव ने दीनू कश्यप जी को गोष्ठी की अध्यक्षता का न्यौता दिया। लेकिन मंडी वापिस लौटने की व्यस्तता के कारण उन्होने भविष्य में गोष्ठी में उपस्थित होने की स्वीकृति दी। इसके बाद डा. निरंजन देव जी ने उन्हे पूरे पुस्तकालय परिसर में घुमाया और वहां बने बुक कैफे में मौजूद साहित्यकर्मियों व बुद्धिजिवियों से मुलाकात करवाई। डा. निरंजन देव उन्हे छोडने के लिए वाहन तक गए और फिर वापिस किताबों के संसार में लौट गए। कुल्लू के जिला पुस्तकालय में जाना बेहद प्रेरणामय रहा। जिस चाव से यह पुस्तकालय बनाया गया है वह भी बेहद प्रेरणामय है। ऐसे पुस्तकालय बौधिक राजधानी मंडी सहित सभी जिलों के मुख्यालयों में शुरू किये जाने चाहिए। गौरतलब है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया की लिमिटेशन से भी यह साबित हो चुका है कि किताबों का संसार अभी भी बना रहेगा और वह किताबों की जगह नहीं ले सकते। अंधकार से रोशनी की ओर ले जाने वाली इन किताबों ने भविष्य की पीढियों के अनगिनत सवालों के जवाब देने हैं। ऐसे में कुल्लू पुस्तकालय की तर्ज पर परंपरागत परिवेश में आधुनिकता के साथ पुस्तकों का पढन पाठन सुलभ करवाना एक भागीरथी प्रयत्न की शुरूआत कही जा सकती है।
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