Tuesday, 10 May 2016

मंत्रियों ने तीन साल में पेट्रोल पर खर्च दिए सवा करोड़ रूपये



मंडी। हिमाचल प्रदेश विधानसभा के सदस्यों के वेतन में जहां एक ओर भारी बढौतरी हुई है वहीं पर मुखयमंत्री व मंत्रियों ने तीन साल के कार्यकाल के दौरान सरकारी वाहनों के संचालन, पेट्रोल तथा मुरममत में करोडों रूपये खर्च किए गए हैं। इसका खुलासा सूचना के अधिकार से मिली जानकारी से हुआ है। प्रदेश सरकार को उधार का ब्याज चुकाने व कर्मचारियों का वेतन अदा करने के लिए कर्ज पर कर्ज लेना पड रहा है। वहीं पर इन कठिन आर्थिक हालातों में भी प्रदेश के मुखयमंत्री सहित दस मंत्रियों को मानो इस आर्थिक संकट से कोई सरोकार नहीं है। प्रदेश सचिवालय से सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार मुखयमंत्री तथा अन्य मंत्रियों ने सरकार की ओर से मिले वाहनों के संचालन, पेट्रोल व मुरममत के लिए पिछले तीन सालों में करीब पौने चार करोड रूपये की राशि उडा दी है। आरटीआई कार्यकर्ता व बालीचौकी क्षेत्र के खलवाहण वार्ड से जिला परिषद सदस्य संत राम ने बताया कि प्रदेश के मुखयमंत्री वीरभद्र सिंह के दो वाहनों ने तीन सालों में करीब 14 लाख रूपये की राशि का ईंधन भरवाया है। वहीं पर मंडी जिला से संबंध रखने वाले मंत्री प्रकाश चौधरी करीब साढ़े बीस लाख रूपये के राशि खर्च करके ईंधन फूंकने वालों में अव्वल रहे हैं। इसके अलावा मुकेश अगिनहोत्री ने भी करीब पौने 19 लाख का ईंधन अपनी गाडी में डाला है। सुजान सिंह पठानिया ने करीब (18 लाख), सुधीर शर्मा (16 लाख), धनी राम शांडिल्य (13 लाख), कौल सिंह (12 लाख), अनिल शर्मा (11 लाख), जी एस बाली ने दो साल में (10 लाख) और विद्या स्टोक्स (7 लाख) रूपये ईंधन पर खर्च किए हैं। मुखयमंत्री को मिले दो वाहनों की मुरममत के लिए तीन साल में सात लाख रूपये खर्च हुए हैं। जबकि जी एस बाली ने दो साल में ही एक वाहन की मुरममत पर करीब साढे चार लाख रूपये खर्च किये हैं। उसी तरह सुजान सिंह पठानिया ने अपने वाहन की मुरममत में चार लाख से अधिक राशि खर्च की है। संत राम ने बताया कि एक तरफ तो प्रदेश आर्थिक संकट से गुजर रहा है। लेकिन दूसरी तरफ सरकार की मितव्ययता का आलम यह है कि मुखयमंत्री सहित मंत्रीगण अपने वाहनों के लिए करोडों रूपये खर्च कर रहे हैं। जिला परिषद सदस्य ने कहा कि विधानसभा के माननीयों के वाहनों पर करोडों रूपये उडाए जा रहे हैं। जबकि पंचायती राज प्रतिनिधियों को मजदूरों के न्युनतम वेतन से भी कम मानदेय दिया जा रहा है। इसके अलावा प्रतिनिधियों की शक्तियों पर भी लगातार कुठाराघात किया जा रहा है।
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