बजंतरी
लौटने लगी है
शहनाई की मचलती
बारिक आवाज
ढोल नगाडों की
दीपचंदी ताल में
उठते कदमों के साथ।
सात दिनों तक
करनाल- नरसिंघे-बाम के
उदघोष से गुंजायमान
जनपद के सभी छोर
अब साल भर
इंतजार करेंगे
इन समवेत
स्वर लहरियों का।
बजंतरी लौटने लगे हैं
देवताओं के आदेश के
संवाहक बन
फिर से देवभूमि के
उन उतंग
शिखरों की ओर
जहां से उतर
आए थे वह
सैंकडों साल की
परंपरा का निर्वहन
करते हुए जनपद के
लोगों को आशीर्वाद
देने के लिए।
लौटते कदम छोड
जा रहे है
लोमहर्षक दृश्यों का
एक ऐसा कैनवास
जिसके रंग
साल भर अपनी
छटा बिखराते रहेंगे
जहनों के सुप्त संसार में।
तुम्हारा आना और
लौट जाना
तुम्हारी मौजुदगी का
अहसास दिलाता है
इतिहास के उन
काल खंडों का
जिनमें देवता के
साथ तुम भी रहे
होंगे अंग-संग ही
हंसी-खुशी,
सुख-दुख के
साथी बनकर। लौट रहे हो तुम कि
बदलते समय की
चुनौतियों के बीच
देव परंपरा के
ताने बाने और
अस्तित्व को
सुरक्षित रख सको
ताकि लौट के
फिर आ सकें
अगली साल
जनपद को अपनी
पवित्र बाजे की
स्वर लहरियों से
सरोबार करने के लिए।
फेसबुक के स्टेटस पर आज लिखी एक कविता
-समीर कश्यप
चित्र- चंदन भाटिया
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