मंडी। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिला में स्थित किन्नर कैलास की यात्रा प्रत्येक वर्ष अगस्त के महिने में आयोजित होती है। पहली अगस्त से शुरू होने वाली यह यात्रा 12 अगस्त तक जारी रहती है। देशभर के श्रद्धालु सावन महिने में आयोजित होने वाली इस दुर्गम यात्रा में भाग लेकर भगवान शिव के शीतकालीन निवास किन्नर कैलाश के दर्शन करते हंै। इस साल आयोजित होने वाली किन्नर कैलाश यात्रा में मंडी जिला बार एसोसिएशन के चार सदस्यीय दल ने भी भाग लिया।
हाल ही में किन्नर कैलाश यात्रा से सकुशल लौटे अधिवक्ता नीरज कपूर, कमल सैनी, राजकुमार सेन और भूपिन्द्र शर्मा ने बताया कि उनका चार सदस्यीय दल 3 अगस्त को मंडी से किन्नर कैलाश की यात्रा के लिए रवाना हुआ था। अपने यात्रा वृतांत में उन्होने बताया कि भगवान शिव के शीतकालीन प्रवास स्थल किन्नर कैलाश सदियों से हिंदू व बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का केंद्र है। वहीं भक्त भी हर्षोल्लास के साथ किन्नर कैलाश दर्शन करने जाते हैं।
इस यात्रा के लिए देश भर से लाखों भक्त किन्नर कैलाश के दर्शन के लिए आते हैं। शिव की तपोस्थली किन्नौर के बौद्ध लोगों और हिंदू भक्तों की आस्था का केंद्र किन्नर कैलाश समुद्र तल से 21,325 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग की ऊंचाई 70 फुट और चौड़ाई 16 फुट है।
हर वर्ष सैकड़ों शिव भक्त जंगल व खतरनाक दुर्गम मार्ग से हो कर किन्नर कैलाश पहुंचते हैं। यात्रा के दौरान शिव भक्त प्रकृति के मनोहारी दृश्य का नेत्रपान करते हुए निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। किन्नर कैलाश की यात्रा शुरू करने के लिए भक्तों को जिला मुखयालय से करीब सात किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-5 स्थित पोवारी से सतलुज नदी पार कर तंगलिंग गांव से हो कर जाना पडता है। गणेश पार्क से कुछ दूरी पर पार्वती कुंड है।
इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें श्रद्धा से सिक्का डाल दिया जाए तो मुराद पूरी होती है। ऐसे में हर वर्ष बहुत से प्रेमी पार्वती कुंड में सिक्का फेंककर मन्नत मांगते हैं। भक्त इस कुंड में पवित्र स्नान करने के बाद करीब तीन घंटे की कठिन राह पार कर किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग के दर्शन करने पहुंचते हैं।
उन्होने बताया कि किन्नर कैलाश पर्वत की एक खासियत है कि दिन में यह पर्वत कई बार अपना रंग बदलता है। इस यात्रा में पार्वती कुंड, गुफा, गणेश पार्क के भी दर्शन होते हैं। दल के सदस्यों नेे श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि वह पॉलीथिन न लाएं और किन्नर कैलाश पर्वत पर गंदगी न फैलाएं। उन्होने बताया कि कैलाश की परिक्रमा भी की जाती है। यह परिक्रमा कई दिनों में पूरी होती है। विश्व प्रसिद्ध सांगला घाटी के अन्तिम छोर पर बसे है छितकुल गांव में इसकी परिक्रमा समाप्त होती है।
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