Friday 14 December 2018

इतिहास के गवाक्ष से मंडी की शिवरात्रि - हिमाचल प्रदेश के भाषा एवं संस्कृति विभाग की द्वैमासिक पत्रिका में प्रकाशित लेख से साभार- समीर कश्यप



समाज की धार्मिक व्यवस्था को समझने के लिए उसके आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक पहलूओं का अध्ययन करना जरूरी होता है। इन सामाजिक पहलूओं के अध्ययन के लिए आवश्यक स्त्रोत मौजूद न हों तो मौजूदा परंपराओं से भी ऐतिहासिक समाजों को समझने के महत्वपूर्ण सूत्र हाथ लग सकते हैं और शोधार्थियों के लिए शोध-सामग्री भी। मंडी का शिवरात्रि महोत्सव भी इसी तरह के बहुमूल्य ऐतिहासिक स्त्रोतों को उपलब्ध करवाता है। जिसमें यहां के धार्मिक रीति रिवाजों और समृद्धशाली लोक सांस्कृतिक परंपरा का साक्षात्कार होता है। हर वर्ष मंडी में आयोजित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव का मुख्य आकर्षण मंडी जिला के सराज, चौहार, बदार, सनोर, उत्तरसाल, बल्ह, तुंगल घाटी सहित विभिन्न छोरों से आने वाले सैंकडों देवी-देवताओं का देव समागम होता है। विगत करीब दो सौ सालों से आयोजित होने वाले इस उत्सव में हालांकि बहुत बदलाव आए हैं। लेकिन देव परंपरा का तानाबाना कमोबेश अपने आप को पुनर्उत्पादित करता हुआ लगभग वैसा ही चला आ रहा है। दरअसल 18वीं शताब्दी के उतरार्ध में इस उत्सव के जन्म लेने के समय की पड़ताल से जाहिर होता है कि वह दौर पहाड़ी रियासतों के भीतर और बाह्य रूप से उथल पुथल और संगठन का दौर था। मंडी रियासत के राजा सूरमा सेन के उतराधिकारी के रूप में ईश्वरी सेन 1788 ईसवी में शासक बने। इस दौर में रियासत के भीतर हो रहे षड्यंत्रों के चलते नाबालिग राजा ने कांगड़ा के राजा संसार चंद से सहायता मांगी। लेकिन संसार चंद ने मंडी पर हमला करके इसे लूट लिया और ईश्वरी सेन को बंदी बनाकर सुजानपुर के किले में बंद कर दिया। हालांकि कमलाह का किला जीतने में संसार चंद नाकामयाब रहा। इसके बाद संसार चंद ने बिलासपुर (कहलूर) रियासत पर हमले की तैयारी की तो बिलासपुर के राजा ने नेपाल के गोरखों से संपर्क के लिए उन्हें मदद को बुलाया। जिस पर अमर सिंह थापा के साथ स्थानीय पहाड़ी राजाओं ने संसार चंद को महल मोरियां के युद्ध में हराया और ईश्वरी सेन को उसके कब्जे से छुडाया। करीब 12 साल तक कैद में रहने के बाद राजा के वापिस आने की खुशी में रियासत के सभी क्षेत्रों के देवी देवताओं को मंडी में बुलाकर शिवरात्रि की शुरूआत हुई थी। तब से इस उत्सव की परंपरा लगातार जारी है। जिला के विभिन्न क्षेत्रों के देवी देवता अपने रथों के साथ ढोल नगाडों के लोमहर्षक स्वरों से गुंजायमान करते हुए मंडी पहुंचते हैं और सबसे पहले मंडी के सबसे अधिपति देवता माधो राव को नमन करते हैं। माधो राव का मंदिर जिस भवन में स्थित है उसे राजा सूरज सेन (1637 ई.) ने बनवाया था। सूरज सेन के 18 लड़के थे लेकिन उसके जीवन काल में ही सभी की मृत्यु हो गई और उत्तराधिकार के लिए उन्होंने एक चांदी की प्रतिमा बनवा कर इसे अपना राज्य सौंप दिया। इस प्रतिमा पर संस्कृत में उकेरा गया है कि ‘सूरय सेन, जो धरती का स्वामी है और दुश्मनों का नाशक है, ने यह दोष रहित पवित्र चक्रधारी और सभी देवताओं के गुरू महान माधो राव को भीमा सुनार से वीरवार 15 फाल्गुन 1705 को यानि 1648 ईसवी में बनवाया है। लगभग इसी समय कुल्लू के राजा जगत सिंह ने भी अपने राज्य को रघुनाथ जी को इसी तरह सौंप दिया था। इन दोनों राज्यों में संभवतया इसी समय वैष्णव धर्म पहली बार राज्य के धर्म के रूप में घोषित हुआ और राज्याश्रय मिलने के कारण प्रभुत्व हासिल करता गया। जबकि इन दोनों ही रियासतों में हमेशा से शक्ति और शाक्त उपासकों का धर्म अस्तित्व में रहा है। मंडी के अधिष्ठाता देवता भूतनाथ हैं जो शैव परंपरा के प्रभुत्वशाली प्रतीक कहे जा सकते हैं। शिवरात्रि महोत्सव देवता भूतनाथ को ही समर्पित है और यहीं पर पूजा अर्चना के बाद महोत्सव का शुभारंभ होता है। यह तथ्य जाहिर करता है कि भले ही राज्य अपना राजकीय धर्म कुछ और घोषित कर दे लेकिन प्रजा का धर्म थोपे जाने से नहीं बल्कि उनकी अपनी लोक परंपराओं के अनुसार ही चलता है। मंडी की देव परंपरा के बारे में रियासत के अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी एमरसन और जे.आर.एस पारसंस द्वारा 1920 ईसवी में प्रकाशित हुए पंजाब गजेटियर मंडी स्टेट में अनेकों विवरण मिलते हैं। जो देवपरंपराओं को समझने के लिए प्रारंभिक बिंदु साबित हो सकते हैं। इन ब्रिटिश अध्येताओं की मंडी की देव परंपरा के निहितार्थ क्या समझ थी और उन्होंने इसे किस तरह से समझा था, इसे जानने के लिए गजेटियर के संक्षिप्त विवरणों को अनुवाद के रूप में निम्न रूप से सांझा करना बेहद प्रासांगिक प्रतीत हो रहा है।
मंडी के ऊपरी पहाड़ी क्षेत्र का धर्म
हिमालयन क्षेत्र में धर्म यूं तो एक विस्तृत विषय है लेकिन इसका खाका कुछ मुख्य लक्षणों से दिया जा सकता है। इसमें मुख्य तत्व निःसंदेह कुल देवता या परिवार का देवता है। हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देवता का आम अनुवाद जादू-टोने की क्रियाएं करने वाले देवता के रूप में ले लेने से उसके द्वारा पहाड़ों की धार्मिक व्यवस्था में निभाई जाने वाली महत्वपुर्ण भूमिका असपष्ट और धुंधली हो जाती है। यह सही है कि देवता का शाब्दिक अर्थ छोटा भगवान ही है। लेकिन इसका प्रयोग तिरस्कृत अर्थ में जादू टोना के क्रियाकलाप से संबंधित देवता के रूप में नहीं होता बल्कि यह छोटे देवता जिसका धर्म पैतृक देवता के इर्द गिर्द केन्द्रित होता है और वह उन बड़े देवों से भेद करता है जो आम लोगों की रोजमर्रा की पूजा से बहुत दूर कर दिये जा चुके हैं। इन पैतृक देवताओं का क्षेत्राधिकार व्यक्तिगत और भौगोलिक दोनों ही होता है। प्राचीन समय से अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले गांव, गांवों के समूह और घाटी में वह अपने प्रभुत्व और अधिकार का प्रयोग करते हैं। इतना ही नहीं वह अपनी प्रजा के पुरूष उत्तराधिकारियों पर प्राधिकार का दावा भी करते हैं। देवता लोगों को अपनी प्रजा या रिआया मानता है। इससे उसका भक्तों के साथ संबंधों का सही अनुमान लगाया जा सकता है। पहले यज्ञोपवीत के समय से ही परिवार का पुरूष सदस्य उनका अनुगामी बन जाता है। जबकि स्त्री उस समुदाय में शादी करने के बाद देवता की प्रजा बन जाती है। वंशानुगत प्रजा के सदस्य का निवास स्थान बदल जाने से भी वह देवता की सेवा से मुक्त नहीं हो सकता। उसे तब भी अपने परिवार के देवता के प्रति अपने कर्तव्य निभाने होते हैं। हालांकि वह नए घर के स्थानीय देवता को भी मान सकता है। भक्तों का यह दायित्व होता है कि वह अनाज या पैसों से देवता की पूजा के लिए होने वाले खर्चे में अपना योगदान करे। देवता के आदेशों के आज्ञाकारी होने के नाते विशेष मौकों पर परिवार के एक पुरूष सदस्य का उपस्थित होना जरूरी होता है। इसके बदले में उन्हें मंदिर के प्रबंधन के कार्यों के बारे में बोलने का, देवता के पास जाने का और सामुदायिक पर्वों में भाग लेने का हक होता है।
मंडी में स्थानीय देवता कई बार अधिपति देवता के अधीनस्थ होते हैं और वह रियासत कालीन राष्ट्रीय देवता माधो राव की प्रजा समझे जाते हैं। शिव और काली की कृपादृष्टि से यह देवता ताकत अर्जित करते हैं। पराशर और कमरूनाग भी अधिपति देवता की तरह ही हैं। इनके अंतर्गत अनेकों देवता हैं जो उनके प्रतिनिधि देवता समझे जाते हैं। इन प्रतिनिधि देवताओं के पास उनकी प्रजा सामान्य अवसरों पर आती है। लेकिन प्रतिनिधि देवता और उनकी प्रजा अधिपति देवता के पास होने वाले मेलों, त्योहारों में भाग लेती है। पराशर में यज्ञोपवीत की रस्म मंदिर में होती है तो वहीं पर उनके प्रतिनिधि देवताओं के मंदिरों में भी यह रस्म आयोजित होती है। अधीनस्थ देवता किसी नए श्रद्धालु को शामिल कर सकता है। नयी प्रतिमा बनाने पर इनमें जीवन डालने के लिए इसे देवता के रथ पर रखा जाता है।
हर देवता के आध्यात्मिक मंत्री – वजीर, द्वार-पाल और कोतवाल आदि होते हैं। इनमें से वजीर की भूमिका कई बार बहुत महत्वपूर्ण होती है। उसके मंदिर में कई बार अधिपति देवता से ज्यादा मन्नतें मांगी जाती हैं और ज्यादा भेंट चढ़ावा चढ़ता है। लोगों के अनुसार इसका कारण यह है कि उनमें यह मान्यता है कि आम कार्यों को करना वजीर का काम है और इन छोटे मोटे कार्यों से अधिपति देवता को छूट दी जाती है।
पारिवारिक देवताओं की प्रकृति
इसमें कोई संदेह नहीं है कि मंडी के अधिकांश ग्रामीण देवता तमाम पश्चिम हिमालय की तरह नाग समूह से संबंध रखते हैं। इसका यह अर्थ नहीं है कि यह आवश्यक रूप से नाग कहे जाएं। हालांकि कुछ हैं जिनके नाम से ही उनकी प्रकृति उद्घाटित हो जाती है। नाग देवता के लिए नरैण या नारायण नाम का प्रयोग होता है। जबकि इसी संप्रदाय के अन्य देवता हिंदू देवताओं के नाम का छ्द्म वेष धारण किए भी मिल जाते हैं। कई बार उनकी असली पहचान करना मुश्किल हो जाता है लेकिन उनसे संबंधित मिथकों से उनके जन्म का रहस्योद्घाटन होता है। प्राचीन समय में भगवान कैसा है और उसका चरित्र क्या है के बारे में जब लोगों को खुले संदेह थे तो एक प्रारंभिक कल्पना थी कि वह नाग के आकार का होगा और नाग उपासना उस समय दूर-दूर तक फैली हुई थी। हालांकि नाग उपासना के प्रारंभ होने के बारे में अलग-2 सिद्धांत हैं। लेकिन यह दृढ़तापूर्वक निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि हिमालय में पुरातन समय से नाग की उपासना नदी के प्रतीक के रूप में और पानी के नियंत्रक के रूप में की जाती रही है। नाग आज भी पहाडों में मौसम के देवता, झरनों, नदियों-नालों, झीलों और जल स्त्रोतों के सृजक और संरक्षक माने जाते हैं। क्या जीवित नाग की पूजा से नदी का प्रतीक मानने को स्वीकार्यता मिली? इस प्रश्न के संबंध में निश्चित रूप से जवाब नहीं दिया जा सकता। लेकिन यह संभव है कि सरीसृप के स्वभाव ने संप्रदाय के विकास को प्रभावित किया होगा। इसलिए सभी पानी के स्त्रोतों से इसका संबंध अतुलनीय रूप से महत्वपूर्ण लक्षण है। इसके अलावा अन्य विशेषताएं भी हैं जो नाग उपासना को समर्पित की जा सकती हैं।
नाग और लिंग पूजा शिव और काली की उपासना का वर्णन करती है। इनका बहुत अंतरंग संबंध है और कोई कह सकता है कि पैतृक देवता दोनों में से एक या दूसरे सहयोगी की स्थानीय अभिव्यक्ति है। शिव के रूप में जिन्होंने शैव शीर्षक धारण कर लिया है उन्हें शुद्ध और साधारण नागों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। जबकि देवियों के संदर्भ में ऐसा नहीं है। हालांकि वह नाग संप्रदाय से संयोजित और घनिष्ठ संबंध में मिलती हैं लेकिन वह अलग देवता के रूप में कल्पना की गई जाहिर होती हैं।
पैतृक देवताओं में से अधिकांश उपरोक्त दोनों समूहों के अंतर्गत आ जाते हैं। हालांकि विभिन्न प्रकृति के अन्य देवता कभी कभार ही सामने आ सकते हैं क्योंकि अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में कुल देवता के एक विभिन्न श्रेणी के देवता में बदलने के लिए बहुत शक्तिशाली कारण और आधार चाहिए होता है। कई बार यह सिद्धांत प्रतिपादित किया जाता है कि इनमें से अधिकांश देवता हिंदू पौराणिक कथाओं के ऋषि या संत रहे हैं। विसंगतिपूर्ण और असंगत होने के कारण इसे खारिज किया जाना चाहिए।
देवता के प्रतीक
मंदिर में लगभग सभी जगह पत्थर की पिंडी या लिंग होता है जो संभवतया प्राचीन प्रतिमा मानी जाती है। लेकिन इसके अलावा देवता के मंदिर के बाहर जाने और दिखने वाले प्रतीक के रूप में देवता के रथ का प्रयोग होता है। रथ के दो भाग होते हैं। प्रतिमा और दो लकड़ी के खंभे (जिन्हें स्थानीय भाषा में आगलियां कहते हैं) जिस पर प्रतिमा उठायी जाती है। यह खंभे अक्सर सिल्वर बर्च (भोजपत्र) या किसी अन्य पेड़ की बहुत लचीली लकड़ी से बनाए जाते हैं। मुख्य प्रतिमा सोना, चांदी और तांबा धातु के पंक्तिबद्ध मोहरों से बनी होती है। देवता का रथ अधिकांशतया आदमकद होता है और सामान्य तौर पर देवता का प्रतिनिधित्व करता है। त्योहारों के अवसर पर देवता जब रथ के रूप में सामने आता है तो प्रतिमा को कीमती कपडों, आभूषणों और फूलों से सजाया जाता है। अक्सर रथ के ऊपर कपड़े या याक के बालों की छतरी होती है लेकिन मंडी के कुछ देवी-देवता इससे अलग शैली में भी होते हैं और उनके रथ की प्रतिमा गोलाकार होने की बजाय तिकोनी या पिरामिडिकल होती है। प्रतिमा के बीच से गुजरे लकडी के खंभों को देवता के प्रमुख श्रद्धालुओं द्वारा कंधे पर उठाया जाता है। रथ को कंधे पर उठाने वाले को उस देवता के समाज के समूह का पुरूष सदस्य होना जरूरी है। रथ को कंधे पर उठाने वाले अक्सर हाथों में बिना उंगलियों के दस्ताने पहनते हैं क्योंकि जब देवता की आत्मा हलचल करती हुई प्रतिमा को एक ओर से दूसरी ओर को पलटती है, उछालती है तो रथ के साथ चलने वाले सहायक इसका संतुलन साधने की कोशिश करते हैं लेकिन अक्सर इससे रथ उठाने वालों के हाथ छिल जाते हैं। हरेक देवता के अपने वाद्य यंत्र होते हैं। ढोल, नगाड़े और झांझ बजाने वाले हमेशा तो नहीं पर अक्सर निम्न जाति के होते हैं जबकि करनाल, तुरही बजाने वाले हमेशा कनैत या कृषक ब्राह्मण होते हैं।
देवता की आत्मा की जीवशक्ति का संकेत रथ का कंपन और दोलन है। रथ को उठाने वाले इसके प्रभाव में होते हैं और उनकी हल्की सी हरकत रथ को पता लग जाती है और देवता ऊपर-नीचे होकर नाचने लगते हैं दोनों ओर लचकते हुए झूमने लगते हैं और अचानक तेजी से आगे बढ़ते हैं क्योंकि उससे प्रेरणा पाने वाले सेवक अपने ऊपर मजबूत होती आत्मा की ताकत को अनुभव करते हैं। कुछ श्रद्धालु दैवीय प्रेरणा के कारण मानो जड़वत हो जाते हैं और कुछ देवता की प्रेरणा के कारण प्रतिमा के सामने कांपने, उछलने और चीखने लग जाते हैं। जब एक से अधिक देवता मौजूद हों तो एक दूसरे को हमेशा सम्मान देते हैं। ऐसे अवसरों में आत्मा विशेष रूप से तीव्र होती है और दोनों देवता खुशी की भावना में एक दूसरे को नमन करते हैं। गांव के त्योहारों में तथा अन्य अवसरों पर देवता और उनके श्रद्धालु इकट्ठा होकर नृत्य करते हैं। रथ और वाद्य यंत्र बजाने वाले बजंतरी बीच में नृत्य करते हैं जबकि गूर या अन्य रथ उठाने वाले अधिकारी की अगुवाई में समूह के सदस्य उनको घेरकर नृत्य करते हैं। इस नृत्य को पहाड़ी नाटी या नाट कहा जाता है।
भविष्यवाणियां
देवता का मानवीय माध्यम उसका गूर या भविष्यवक्ता होता है और वह देवता की तरफ से बात करता है। गूर असली ताकत का दावा नहीं करता बल्कि वह अपनी शक्ति पूरी तरह से देवता से प्राप्त करता है। जिसके बिना उसकी अपनी प्रेरणा कोई मदद नहीं कर सकती। मंडी में उसका कार्य आमतौर पर वंशानुगत होता है लेकिन कई बार अपवाद भी होते हैं। लेकिन सभी मामलों में देवता ही अपने माध्यम का चुनाव करता है। बेटा तब तक उत्तराधिकारी नहीं बन सकता और जब तक पिता को इस पद से वापिस नहीं बुला लिया जाता और वापिस बुला लेने की इस प्रक्रिया में आमतौर पर कई महीने लग जाते हैं। देवता द्वारा बुलाये जाने की प्रक्रिया में अचानक उस पर आधिपत्य हो जाता है और पहला उद्वेग अक्सर उग्र तरीके का होता है। नया गूर भेड़ या बकरे की बलि देता है और उसका रक्त पीता है जिससे मान्यता के अनुसार वह देवता के नजदीकी संपर्क में जा सके। उसे देवता की देवदार की लकड़ी से बनी चौकी जो बाधा डालने वाले प्रभावों से अवरोधी का कार्य करती है, पर औपचारिक रूप से स्थापित किया जाता है। इस पर बैठकर उसे देवता की जिह्वा से सुंदर वचन कहने की अनुमति मिल जाती है। जहां देवता के गूर का पद वंशानुगत नहीं होता वहां पर देवता द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियों के विभिन्न तरीकों में से किसी तरीके का प्रयोग करके नया गूर चयनित किया जाता है। लेकिन यह कल्पना हमेशा संरक्षित की जाती है कि गूर देवता के द्वारा चुना हुआ वाहक होता है।
अधिकांशतया कनैत ही गूर होते हैं लेकिन ग्रामीण ब्राह्मण भी कई बार इस पद पर चुने जाते हैं और कभी कभार कोली भी चयनित होते हैं। कनैतों के पारिवारिक देवता का गूर कोली होने से देवता की मूल प्रकृति के बारे में निष्कर्ष निकालना न्यायोयित नहीं माना जा सकता। गूर का पद खाली होने के दौरान किसी निम्न जाति के व्यक्ति का अचानक उद्वेग में आना उसकी नियुक्ति के लिए पर्याप्त माना जा सकता है।
एक वर्ग के रूप में गूर कुछ वर्जनाओं के तहत कार्य करता है। उन्हें पद पर रहने के दौरान अपने बाल नहीं काटने होते हैं। वह चपड़े के जूते नहीं पहन सकते और जमीन पर हल चलाने या खेती-बाड़ी का काम नहीं कर सकते। कुंवारापन या ब्रह्मचर्य सामान्य नियम नहीं है लेकिन देवता से जरूरी परामर्श करने से पहले व्रत और परहेज रखा जाता है। गूर अपनी भविष्यवाणी नंगे सिर देता है और मंडी के कुछ भागों में छाती भी खुली रखी जाती है लेकिन यह रस्में अलग-2 जगह अलग हैं। कुछ गूर भविष्यवाणी करने से पहले अपने आप को लोहे की जंजीरों (सांगल) से पीटते हैं जबकि अन्य लोहे की सलाई को गालों में से गुजारते हैं। भारी जोश और उतेजना के बीच गूर और सामान्य श्रद्धालु आग पर कूदते हैं, मशालें छीन लेते हैं। वह अपने आप को देवता का अस्थाई अवतार समझते हैं और उस समय उन्हें देवता ही माना जाता है।
इस तरह की उत्प्रेरणा अचानक उद्वेग से काफी भिन्न है जो कई बार आलौकिकरण का संकेत देता है लेकिन प्रायः यह अप्रसन्नता या दोष व दुश्मनी को इंगित करता है। भूत के अप्रत्याशित प्रकटन के लिए पीड़ित का ईलाज किया जाता है और अगर यह अनिष्ट करने वाली साबित होती है तो बुरी आत्मा के लिए या तो झाड-फूंक या शांति के लिए प्रयत्न किए जाते हैं।
हिमालय के भविष्यवक्ताओं या गूरों ने शक्ति प्राप्त करने की वह स्थिति हासिल नहीं की है जो उनके कार्यों की प्रकृति को देखते हुए होनी चाहिए। ब्राह्मणों के वर्चस्व से बचाने में पहाड़ी आदमी काफी चालाक और स्वतंत्र हैं और वह अपने ही पुजारियों के हाथ में पड़ना चाहते हैं। गूर का पद लाभकारी नहीं होता और न ही यह अपनी तरह की कठिनाइयों के बगैर होता है। अगर देवता की व्यवस्था प्रजा को संतुष्ट करने में असफल होती है तो इसका दोष देवता को नहीं दिया जा सकता बल्कि यह उसके मानवीय प्रवक्ता का होता है। अगर गूर अपने तौर तरीकों को ठीक नहीं करे तो उसे पद खाली करना होता है। गूर के कपट को जांचने के लिए चालाकी से नियंत्रण रखा जाता है। गूर का कार्य देवता के फैसलों को संप्रेषित करना और संदेश की दैवीय उत्पति सुनिश्चित करना है। जबकि कई बार वह संप्रेषित किए जा रहे फैसले की प्रकृति को नजरअंदाज कर देता है। उदाहरणतया एक आदमी रोग से ग्रस्त हो गया और उसने देवता से इसके कारणों के बारे में परामर्श किया। इस मामले में या तो कोई डायन, चुड़ैल या बुरी आत्मा हो सकती है या फिर किसी देवता की दुश्मनी। इसलिए वह मिट्टी के तीन एकसमान गेंद बनाता है। पहले में वह डायन या चुड़ैल के लिए घास का एक टुकड़ा डालता है। जबकि दूसरे में भूत-प्रेत या बुरी आत्मा के लिए लकड़ी का टुकड़ा और तीसरे में देवता के लिए थोड़ा सा अन्न डाला जाता है। इसके बाद उत्प्रेरण के आवेश में बाहर इंतजार कर रहे गूर को बुलाया जाता है जो अपना हाथ एक गेंद पर रखता है। वह इसके बाद फिर से बाहर चला जाता है और गेंदों को फिर से अलग रूप में पंक्तिबद्ध किया जाता है। अगर एक ही गेंद को तीन बार छुआ जाता है तो इससे मामले की पूरी तरह से पहचान कर ली जाती है। इस तरह की योजनाओं से बहुत निश्चित सीमाएं उस हद तक बांध दी जाती हैं जिससे व्यावसायिक माध्यम अपने यजमानों को धोखा दे सकें। इसके अलावा देवता तक पहुंच बनाने के सीधे तरीके भी हैं। जैसे कि उदाहरणस्वरूप पड़ोसी से विवाद हो जाने के मामले में अपनी नीयत जाहिर करने और इसमें अपने लिए कोई वरदान या कसम इच्छित की जाती है।
इन विवरणों के माध्यम से हम देव परंपरा की विशिष्टताओं के प्रति अपनी समझ सपष्ट कर सकते हैं। पुनश्च यह दोहराना जरूरी है कि आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक संदर्भों के परिवर्तन के साथ-साथ देव परंपरा और शिवरात्रि महोत्सव में भी परिवर्तन का पहलू ज्यादा अहम हो चुका है। लेकिन इन परंपराओं में परिवर्तन के पहलू पर अभी भी सिलसिलेवार शोधकार्य नहीं हो पाए हैं। जिसके चलते इनके स्वरूप में आए बदलावों को अभी तक रेखांकित नहीं किया जा सका है। ऐसे में परिवर्तन के पहलू के अंतर्गत ही लोक जीवन से अभिन्न रूप से जुड़ी इन परंपराओं की निरंतरता के पहलू को समझे जाने की आवश्यकता और कार्यभार अभी शेष है।

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Sunday 9 December 2018

महिला ने चालाकी से बुजुर्ग महिला का मकान अपने नाम करवाया



मंडी। शहर में करीब एक करोड़ रूपये की कीमत का मकान बिना कोई राशि दिए अपने नाम करवा कर बुजुर्ग विधवा महिला को भूमीहीन करने का मामला प्रकाश में आया है। करीब 86 वर्ष की पीडित महिला ने उपायुक्त, जिला पुलिस अधीक्षक और न्यायलय से न्याय प्रदान करने की गुहार लगाई है। जानकारी के अनुसार भगवान मुहल्ला में कृष्णा देवी विध्वा राम विलास का रिहायशी मकान है जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रूपये है। लेकिन एक महिला ने कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर धोखाधड़ी से इसे अपने नाम पर विक्रय कर दिया है। हालांकि इस मकान पर कब्जा अभी तक बुजुर्ग महिला का ही है। बुजुर्ग और सन्तानहीन होने के कारण कृष्णा देवी की देखभाल उनकी बेटी की तरह पाली वन्दना कर रही है। हाल ही में वन्दना की एक बेटी भी इसी मकान में पैदा हुई है और वह इन दिनों भी बुजुर्ग महिला के साथ अपनी बच्ची के साथ रह रही हैं। दूसरों पर निर्भर बुजुर्ग महिला की संपत्ति को हड़पने के लिए एक महिला ने कुछ अन्य लोगों के साथ चालाकी से काम करते हुए उसे पहले से तैयार किए दस्तावेजों को पंजीकरण अधिकारी के सामने स्वीकार करने को कहा। हालांकि विक्रय पत्र बनाने के दिन कोई राशि बुजुर्ग महिला को अदा नहीं की गई। विक्रय पत्र के करीब एक सप्ताह के बाद उक्त महिला ने बुजुर्ग महिला के नाम पर एक खाता खुलवा कर मात्र दो हजार रूपये की राशि उसमें डलवाई। इतना ही नहीं उक्त महिला ने अपने को ही बुजुर्ग महिला के इस खाते में नामिनी बना दिया और खाते की अपडेट की जानकारी के लिए भी अपना ही नंबर बैंक को दिया। विगत 3 दिसंबर से उक्त महिला तथा अन्य लोगों ने अपने आपको मकान का मालिक घोषित करते हुए बुजुर्ग महिला को किरायेदारों सहित मकान खाली करवाने के बारे में धमकाना शुरू कर दिया। इससे बुजुर्ग महिला द्वारा पाली गई लड़की वंदना कुछ संदेह हुआ और उसने सदर तहसील में इस बारे जानकारी हासिल की तो पता चला कि उक्त महिला ने अन्य लोगों के साथ मिलकर बुजुर्ग महिला के मकान को विक्रय कर दिया है। ऐसे में बुजुर्ग महिला ने उपायुक्त मंडी, जिला पुलिस अधीक्षक और न्यायलय में अर्जियां देकर न्याय की गुहार लगाई है। बुजुर्ग महिला कृष्णा देवी के अधिवक्ता दीपक शर्मा और गीतांजली शर्मा ने बताया कि विक्रय पत्र बनवाने वाली महिला का पति गैर हिमाचली है। महिला के पति ने विक्रय पत्र के बाद करीब 1,90,000 रूपये की राशि बुजुर्ग महिला के नाम पर खोले गए उस खाते में जमा करवाई है जिसे उसकी पत्नी ही संचालित करती है। ऐसे में यह मामला टिनैंसी एंड लैंड रिफार्म एक्ट के तहत भी आता है। उन्होने बताया कि बुजुर्ग महिला को सरकारी पैंशन लगी हुई है और उसे अपना जीवन निर्वाह करने के लिए किराएदारों से भी किराए के रूप में पर्याप्त राशि मिल जाती है और उसकी इस बुढ़ापे की आयु में अपना मकान बेचने की कभी सोच नहीं रही है। उन्होने बताया कि बुजुर्ग महिला को उतराधिकारी बनाने के लिए दबाब बनाया गया और उससे धोखाधडी करके उसका कीमती मकान बिना पैसे दिए छीनने की कोशीश की गई है। इतना ही नहीं पंजीकरण अधिकारी ने भी मकान की कीमत का आकलन करने की कोशीश नहीं की और महिला को भूमिहीन हो जाने से नहीं रोका। उन्होने बताया कि इस मामले में कार्यवाही करने हेतु उपायुक्त मंडी और जिला पुलिस अधीक्षक को शिकायतें दी गई हैं। इसके अलावा न्यायलय में भी आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) की तहत प्राथमिकी दर्ज करने की अर्जी दी गई है।
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बिजली कुनेक्शन के लिए एनओसी की शर्त हटाने का किया स्वागत



मंडी। प्रदेश सरकार द्वारा बिजली कुनेक्शन के लिए संबंधित विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने की शर्त को हटाने का मंडी की संस्था पब्लिक वेलफेयर फाउंडेशन ने स्वागत किया है। संस्था ने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि इसी प्रकार की अधिसूचना सिंचाई एवं जन स्वास्थय विभाग की ओर से जारी करके प्रदेशवासियों के घरों को पानी के कुनेक्शन देकर उन्हें राहत पहुंचाई जाए। पब्लिक वेलफेयर फाउंडेशन के पदाधिकारी अमर चंद वर्मा, हितेन्द्र शर्मा, उत्तम चंद सैनी, समीर कश्यप, एम एल शर्मा और प्रदीप परमार सहित अन्य सदस्यों ने प्रदेश सरकार द्वारा हिमाचल प्रदेश इलैक्ट्रिसिटी स्पलाई कोड, 2009 में संशोधन करके पंचायत, नगर परिषद और टाउन एंड कंटरी प्लानिंग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने की शर्त को हटाने का स्वागत किया है। फाउंडेशन के अनुसार इस फैसले से निश्चित रूप से भारी संख्या में लोगों के भवनों को बिजली कुनेक्शन मिलने से उन्हें राहत मिलेगी। फाउंडेशन के पदाधिकारियों ने बताया कि टीसीपी व नगर परिषद की एनओसी न होने के कारण हजारों भवनों में बिजली और पानी के कुनेक्शन नहीं लग पाए हैं। इस फैसले से लोगों को बिजली का कुनेक्शन संभव हो जाएगा है। फाउंडेशन ने प्रदेश सरकार के इस कदम की सराहना करते हुए मांग की है कि इसी तर्ज पर जनपक्ष में फैसला लेते हुए आईपीएच विभाग में भी अधिसूचना जारी करके लोगों को पानी का कुनेक्शन देने के आदेश पारित किए जाएं।
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शहीद भगत सिंह विचार मंच ने याद किए क्रान्तिकारी और लेखक यशपाल



मंडी। यशपाल जयंती के अवसर पर शहीद भगत सिंह विचार मंच की ओर से एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और लेखक यशपाल के जीवन और उनकी कृतियों पर चर्चा की गई। इस मौके पर विचार मंच के संयोजक समीर कश्यप ने क्रान्तिकारी और लेखक के रूप में यशपाल के जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होने यशपाल की पुस्तक सिंहावलोकन और मार्क्सवाद के दो लेखों का पाठ भी किया। प्रसिद्ध साहित्यकार रवि राणा शाहिन ने इस मौके पर कहा कि यशपाल के क्रान्तिकारी जीवन मूल्यों से हमें सीख लेनी चाहिए। उनका साहित्य आज भी उतना ही प्रासांगिक है जितना पूर्व में रहा है। हिमाचल प्रदेश से संबंध रखने वाले साहित्यकारों में से चंद्रधर शर्मा गुलेरी और यशपाल ने अपने-2 लेखन से देश के उत्कृष्ठ साहित्य की श्रेणी में महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित है। भाषा एवं संस्कृति विभाग के पूर्व सचिव बी आर जसवाल ने बताया कि वह कई दशकों से यशपाल के परिवार से व्यक्तिगत रूप जुडे रहे हैं। वह कई बार उनकी धर्मपत्नी प्रकाशवती पाल और बेटे आनंद यशपाल से मिले हैं। उन्होने विभाग द्वारा समय-2 पर यशपाल की याददिहानी के लिए आयोजित कार्यक्रमों तथा सरकार की ओर से उनकी स्मृति में किये गए कार्यों का विवरण रखा। सामाजिक और आरटीआई कार्यकर्ता लवण ठाकुर ने इस अवसर पर कहा कि आजकल के साहित्यकारों में कथनी और करनी में अंतर मिलता है। जबकि यशपाल ने जिस तरह का क्रान्तिकारी जीवन जीया उसकी अभिव्यक्ति उनके लेखन में भी साफ देखी जा सकती है। अधिवक्ता रूपिन्द्र सिंह मन्हास ने कहा कि हमें यशपाल जयंती के अवसर पर उनके जीवन मूल्यों से शिक्षा और प्रेरणा लेनी चाहिए और क्रान्तिकारियों के सपनों को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। इस अवसर पर अधिवक्ता सतीश ठाकुर, कमल सैनी, विनोद ठाकुर, मनीष कुमार कटोच, हर्ष चंदेल, तेजभान सिंह, तरूण दीप और रूप लाल सहित मंच के अन्य सदस्यों ने भाग लिया।
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Monday 3 December 2018

स्त्री-पुरूष होर सदाचार (प्रसिद्ध क्रान्तिकारी होर मशहूर लेखक यशपाला री कताब मार्क्सवादा मंझ शामिल लेखा रा मंडयाली रूपांतरण)






समाज व्यक्तियां होर परिवारा रा समूह हा। समाजा री व्यवस्था मंझ आउणे वाला कोई बी परिवर्तन व्यक्तियां होर परिवारा रे गठना पर प्रभाव पाए बगैर नीं रैही सकदा। परिवार- स्त्री पुरूषा रा सम्बन्ध- समाजा रा केन्द्र हा। समाजा री आर्थिक अवस्था मनुष्यां जो जेस अवस्था मंझ रैहणे कठे मजबूर करहाईं, तेस ढंगा ले मनुष्या रा परिवार बणहां। कुछ समाजा मंझ परिवार बौहत बड़े-बड़े होर सम्मलित हुआएं, कुछ समाजा मंझ छोटे-छोटे। किथि परिवार पिता रे वंशा ले हुआएं होर किथि माता रे वंशा ले। स्त्री, समाज री उत्पति रा स्त्रोत हा पर एता रे सौगी हे से कई तरहा के शारीरिक रूपा मंझ पुरूषा ले कमजोर बी ही। पर इन्हा सभी गल्ला रा प्रभाव समाजा मंझ स्त्री री स्थिति पर पौंहां।
समाज जेबे आपणी आदि अवस्था मंझ था ता मनुष्य जंगला मंझ घूमी-फिरी के जंगली फला होर शिकारा के आपणा पेट भरी लैहां था। तेस वक्त समाजा बिच मातृसत्ता थी सम्पत्ति पर स्त्री रा अधिकार हुआँ था। पुरूष ता शिकार ल्याउणे रे कामा बिच हे संलग्न रैंहा था। आसामा रे खासी कबीलेयां मंझ आज बी मातृस्तात्मक पारिवारिक व्यवस्था चली करहाईं। जेबे मनुष्य खेती होर पशुपालना के आपणा निर्वाह करहाएं थे, तेस वक्त कबीलेयां मंझ भूमि रे भागा या उत्पति रे दूजे साधना कठे लडाईयां हुंदी लगी। इन्हां लडाइयां मंझ शारीरिक रूपा ले स्त्री रे कमजोर हुणे रे करूआं तेसारा नेतृत्व नीं रैहा। एतारे अलावा स्त्री जो लड़ाई लड़ने कठे अगे भेजणा खतरे ले खाली नीं था। स्त्रियां रे लड़ाई बिच मारे जाणे या तिन्हा रे कैदी हुई के शत्रु रे हाथा पई जाणे ले कबीले मंझ पैदा हुणे वाले पुरूषा री संख्या मंझ घाटा पई जाहां था होर कबीला कमजोर हुई जाहां था। इधी कठे स्त्री लड़ाई बिच पीछे रखणी शुरू कर दिती, बल्कि सम्पत्ति री दूजी चीजा साहीं तिन्हारी बी रक्षा करनी शुरू हुई गई। इन्हां परिस्थितियां मंझ सम्पत्ति साहीं स्त्री रा बी उपयोग बी कितेया जांदा लगेया। तेस वक्त साधना रा विकास नीं हुणे रे करूआं पैदावारा रे कामा मंझ विशेष शारीरिक श्रम करना पौहां था। स्त्री री आपेक्षा पुरूष पैदावारा रे कामा जो ज्यादा अच्छी तरहा के करी सकहां था, इधी कठे बी स्त्री जो पुरूषा री प्रधानता मनी के तेसरी सम्पत्ति बणी जाणा पया। तेस वक्त वैयक्तिक सम्पत्ति रा चलन नीं था, इधी कठे स्त्री सम्पूर्ण कबीले या कुटम्बा री सांझी सम्पति मनी जाहीं थी।
विकासा के जेबे वैयक्तिक सम्पति रा काल आया, स्त्री भी पुरूषा री वैयक्तिक सम्पति बणी गई। तेसारा काम पुरूषा रे घरेलू कामा जो करना होर आपणे स्वामी रे कठे सन्ताना रे रूपा बिच उत्तराधिकारी पैदा करना हुई गया पर स्त्री दूजे घरेलु पशुआं साहीं हे उपयोगा री वस्तु नी बणी सकी। पुरूषा साहीं हे तेसारा बी विकास हुणे रे करूआं, तेसारे बी पुरूष रे साहीं हे मनुष्य हुणे रे करूआं, पुरूषा री सम्पति मंझ ठीक पुरूषा ले बाद तेसारा दर्जा बणया। आलंकरिक भाषा बिच एता जो बोलियें ताः वैयक्तिक सम्पति या परिवारा रे राजा मंझ पुरूष राजा हा होर स्त्री मंत्री। जीवा रे विकासा रे नाते स्त्री होर पुरूषा मंझ कुछ बी अन्तर नीं हा। समाजा री रक्षा कठे स्यों दोनों एक समान जरूर हे। पुरूष अगर सामाजिक परिस्थितियां रे करूआं शारीरिक बला मंझ या मस्तिष्का रे कामा मंझ ज्यादा सफलता हासिल करी सकहां ता स्त्री रा महत्व पुरूषा जो उत्पन्न करने, परिवार होर समाजा जो संगठित होर व्यवस्थित करने मंझ कम नीं हा। पुरूष समाजा रा अस्तित्व स्त्री रे बगैर सम्भव नीं हा। आपणे व्यक्तिगत होर सामाजिक विकासा कठे पुरूषा कठे स्त्रियां जो आपणे साहीं अवस्था मंझ रखणा आवश्यक रैहिरा, इधी कठे पुरूषा रे अधीन हुई के बी स्त्री तेसरे बराबर हे आसना पर बैठदी रैहिरी।
स्त्री होर पुरूषा मंझ इतनी समानता हुणे पर भी जीवना रे उपाया जो हासिल करने कठे स्त्री आर्थिक क्षेत्रा मंझ पुरूषा रे अधीन रैही। परिवारा रे हिता रे ख्याला ले पुरूषे स्त्री जो आपणे वशा बिच रखणा जरूरी समझेया। जेबे तका समाज भूमि री उपजा ले या घरेलू धन्धेयां ले आपणे जीवन निर्वाहा रे प्रदार्थ प्राप्त करदा रैहा, स्त्री री अवस्था परिवार होर समाजा मंझ एहडी हे रैही। स्त्री री खोपड़ी मंझ बी पुरूषा साहीं सोचणे-विचारने होर उपाय तोपणे री सामर्थ्य ही इधी कठे पुरूष तेसा जो गल़े मंझ रस्सी बान्ही के नीं रखी सकया। समाजा रे कल्याणा होर हिता रे विचारा ले स्त्री जो बी पुरूषा साहीं हे सामाजिक व्यवस्था री रक्षा कठे जिम्मेदार ठहराया गइरा पर स्त्री रे व्यवहारा पर एहड़े प्रतिबंध बी लगाए गए ज्यों सम्पत्ति रे आधारा पर बणिरे परिवारा री रक्षा कठे जरूरी थे। उदाहरणा रे रूपा बिच बोली सकाहें भई स्त्री रा एकी बकता बिच एक हे पुरूषा के सम्बन्ध रखणा ताकि तेसारे दो व्यक्तियों री सम्पत्ति बणने ले झगड़ा नी उठो, समाजा मंझ सन्ताना रे बारे मंझ झगड़ा नी उठो भई सन्तान केसरी ही, केस पुरूषा तेसा सन्ताना रा पोषण करना, सन्तान केसरी उत्तराधिकारी हुणी। यों सभ एहड़े झगड़े थे जिन्हा रे करूआं परिवारा रा नाश हुई सकहां था, इधी कठे स्त्री रे आचरणा रे बारे मंझ एहड़े नियम बनाये गये भई झगड़ा उत्पन्न ना हों।
पतिव्रत धर्म--- मतलब स्त्री रा एकी हे पुरूषा के सम्बन्ध रखणा- स्त्री रा सभी थे बड़ा धर्म दसया गया ताकि व्यक्तिगत सम्पत्ति रे आधारा पर बणिरा परिवार होर समाज तहस-नहस नीं हुई जाए। जेहड़ा ऊपर दसया भई स्त्री बुद्धि री दृष्टि ले पुरूषा रे समान हे सामर्थ्यवान ही, इधी कठे पशुआं साहीं तिन्हारे गल़े मंझ रस्सी बान्ही देणे ले काम नीं चली सकदा था। तेसा जो समझाई के होर विश्वास दुआई के हे समाजा मंझ मुख्य पुरूषा रे हिता रे अनुसार चलाणे री जरूरत थी। इधी कठे पुरूष होर समाजा रे हाथा मंझ जितने बी साधन धर्म, रीति, रिवाजा बगैरा रे रूपा मंझ थे, तिन्हा के स्त्री जो पुरूषा रे अधीन हुईके चलणे री शिक्षा दिती गई। पराधीनता होर शासना जो आपुहे स्वीकार करना हे तेसा कठे सम्मान होर आदरा री कसौटी निश्चित किती गई। तेसा जो समझाया गया भई इथी चाहे से पुरूषा रा मुकाबला भले हे करी लौ पर परलोका मंझ तेसा जो पछताणा पौणा, क्योंकि तेसारी स्वतंत्रता भगवाना री आशा होर धर्मा ले विरूद्ध ही।
औद्योगिक युग आउणे पर जेबे सम्मिलित कुटुम्ब आर्थिक कारणा के बिखरी गए, जेबे पुरूषा जो जीवन निर्वाह कठे शैहरा-शैहरा भटकणा पया, तेस वक्त सम्पूर्ण कुटुम्बा जो सौगी लेईके फिरना संभव नीं रैहा। मशीना रा विकास हुई जाणे ले पैदावारा रे साधन एहड़े हुई गए भई कठोर शारीरिक परिश्रमा री जरूरत कम पौंदी लगी होर स्त्रियां बी इन्हा कामा जो करदी लगी। बौहत बार एहड़ा बी हुआ भई जीवना कठे आवश्यक पदार्था री संख्या बधी जाणे ले, जेता जो दूजे शब्दा बिच इहां बोल्या जाई सकहां भई जीवना रे माना रा दर्जा (स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग) ऊंचा हुई जाणे ले कल्हे पुरूषा री कमाई तेसरे परिवारा कठे काफी नीं रैही। तेबे स्त्री होर पुरूष दोन्हों मिली के उपार्जन करदे लगे होर घरा रा खर्चा चलांदे लगे। एसा अवस्था मंझ पुरूषा रा स्त्री पर से अधिकार नीं रैहा जे कृषि होर घरेलू उद्योग-धन्धेयां री प्रधानता रे युगा मंझ था। जेस ऐतिहासिक क्रमा रा जिक्र आसे करी करहाएं, तेतारी वर्तमान अवस्था औद्योगिक विकासा ले आईरी। यूरोपा बिच ये विकास ज्यादा तेजी के हुआ इधी कठे तिथी लोके ये ज्यादा उग्र रूपा मंझ अनुभव कितेया। एस विकासा रा प्रभाव समाजा रे रैहण-सैहणा रे ढंगा पर पौणे ले स्त्री री अवस्था पर बी पया। तिन्हा जो बी पुरूषा साहीं हे सामाजिक होर राजनैतिक अधिकार मिलधे लगे पर वैयक्तिक सम्पत्ति री प्रथा जारी रैही क्योंकि से पूँजीवादा कठे जरूरी थी। परिणामस्वरूप स्त्री री पराश्रयता बी जारी रैही। फर्क ये था भई अब स्त्री जो पुरूषा रा दास नीं बोली के तेसरा साथी बोल्या गया। तेसा जो उपदेश दितेया गया भई परिवारा री रक्षा कठे तेसा जो पुरूषा रे आश्रय मंझ रैहणा पौणा। मौजूदा पूँजीवादी प्रणाली मंझ स्त्री री स्थिति एस हे नियमा पर ही। यूरोपिय पूँजीवादी सदाचार स्त्रियां जो निर्बल होर दयनीय दसुआं तेसारे प्रति दया दिखाणे रा व्यवहार हा। पर समाजा मंझ पुरूषा रे समान तेसारी स्थिति अझी बी नीं ही। तेसा कठे घरेलू जगता री सीमा रा व्यवधान हे सम्मानजनक समझेया जाहां।
भारता बिच औद्योगिक विकासा के हुणे वाला परिवर्तन देरा ले शुरू हुआ, बल्कि सुले-सुले हुई करहां। इथी स्त्रियां री अवस्था मंझ तितना परिवर्तन नीं हुई पाया। एस देसा मंझ जमींदार श्रेणी होर पूँजीपति श्रेणी री स्त्रियां अझी पुराणी अवस्था मंझ हे ही पर मध्यम श्रेणी री अवस्था पराले आर्थिक परिवर्तना रा प्रभाव डुग्घा पइरा होर एसा श्रेणी री स्त्रियां री स्थिति मंझ परिवर्तन आई करहां।
यूरोपा मंझ पूँजीवाद पूरा विकास करी चुकणे ले बाद अब ठोकरा खांदा लगी गइरा। पुरूषा री अपेक्षा जीवन निर्वाह रे संघर्षा मंझ कम योग्य हुणे रे करूआं स्त्रियां री अवस्था पुरूषा ले बी गइरी गुजरी री ही। बेकारी होर जीवन निर्वाहा री तंगी रे करूआं लोक ब्याह होर परिवार पालणे रे झगड़े मंझ फसणा नीं चाहंदे। स्त्रियां कठे घरा बैठीके बच्चे पालणे होर निर्वाह रे कठे रोटी-कपड़ा हासिल करदे रैहणे रा मौका बी नीं रैहा। तिन्हां जो मिलां, कारखानेयां, खानां, खेतां होर दफ्तरा मंझ मजदूरी करीके पेट पालणा पौहां। अगर ब्याह हुई जाहां ता माता बणने रा तिन्हारा काम ज्यों-त्यों निभी जाहां पर एस अवस्था मंझ तिन्हा जो पुरूषा रा स्वामित्व स्वीकार करना हे पौहां। आज बी तिन्हारे श्रम रा मूल्य पुरूषा रे श्रम रे बराबर नीं समझेया जांदा होर कई क्षेत्र तिन्हा कठे वर्जित हे। अगर ब्याह नीं हुआ होर शरीरा री स्वाभाविक प्रवृति रे करूआं से माता बणी गई ता तिन्हारी मुसीबत ही। प्रसवा री अवस्था बिच तिन्हारा निर्वाह रा सवाल बौहत कठिन हुई जाहां होर प्रसवकाला मंझ हे स्त्री जो ज्यादा सहायता री जरूरत रैहाईं। प्रसवकाला मंझ अगर स्यों कामा पर नीं जाई सको ता तिन्हारी जीविका छूटी जाहीं होर प्रसवकाला ले बाद जेबे तिन्हां जो एकी रे बजाय दो जीवा री जरूरता पूरी करनी पौहाईं ता स्यों असहाय हुई जाहीं। एताके समाजा मंझ उत्पन्न हुणे वाली संताना रे पोषण होर अवस्था पर क्या प्रभाव पौहां, ये समझी लैणा कठण नीं हा।
स्त्रियां री एस अवस्था रे करूआं देशा री जनता रे स्वास्थय पर जे बुरा प्रभाव पौहां, एतारे करूआं विवश हुई के कई पूँजीवादी सरकारे स्त्रियां री रक्षा रे कठे मजदूरी सम्बन्धी कुछ नियम बनाइरे। इन्हारे अनुसार प्रसवा रे वक्त स्त्रियां जो तनख्वाह समेत छुट्टी मिल्हाईं होर बच्चा हुणे पर काम करदे वक्त माता जो दूध बगैरा प्याणे कठे सुविधा बी देणी पौहाईं। इन्हा कानूनी अड़चना ले बचणे कठे मिला ज्यादातर विवाहित स्त्रियां जो होर खास कर बच्चे वाली स्त्रियां जो नौकरी देणा पसन्द नीं करदी। यूरोपा मंझ 80 ले 90 प्रतिशत युवतियां ब्याह थे पैहले केसी ना केसी तरहा री मज़दूरी या नौकरी करिके आपणा निर्वाह करहाईं या आपणे परिवारा जो सहायता देहाईं। पर ब्याह हुई जाणे पर तिन्हा जो जीविका कमाणे री सुविधा नीं रैंहदी। इन्हा कारणा के स्त्रियां ब्याह न हुणे पर गर्भ गिराई देणे कठे मजबूर हुई जाहीं। जीविका रा कोई उपाय नीं मिलणे ले तिन्हा जो पुरूषा रे मन बहलावा कठे आपणे शरीरा जो बेची के पेट भरने कठे मजबूर हुणा पौहां।
पैदावारा रे साधना पर वैयक्तिक अधिकारा रे आधारा पर कायम पूँजीवादी समाजा मंझ जीवन निर्वाह रा ढंग एहडा हा भई स्त्री व्यक्ति री सम्पत्ति होर मिल्कियत हे रैहणी। से या ता पुरूषा रे अधिपत्या मंझ रैहीके तेसरा वंश चलाणे, तेसरे उपयोग-भोगा मंझ आउणे री वस्तु रैहणी या फेरी आर्थिक संकट या बेकारी रे शिकंजेयां मंझ निचोड़ी जांदे समाजा रे तंग हुंदे दायरे ले, आपणी शारीरिक दुर्बुलता रे करूआं- जेस गुणा रे करूआं से समाजा जो उत्पन्न करी सकहाईँ- समाजा मंझ स्वतंत्र जीविका रा स्थान नीं पाईके कल्हे पुरूषा रे शिकारा री वस्तु बणदी जाणी। अगर से एसा स्थिति जो स्वीकार नीं करघी ता माता बणने रे प्राकृतिक अधिकारा ले वंचित रैहंगी। साधनहीन ग़रीब होर मध्यम श्रेणी री स्त्रियां री एहडी हे अवस्था ही। साधनसम्पन्न होर अमीर श्रेणी री स्त्रियां हालांकि भूख होर गरीबी के नीं तड़फदी पर तिन्हारे जीवना मंझ बी आत्मनिर्णय होर विकासा रा द्वार बन्द हा। समाजा कठे स्यों एकी प्रकारा री बोझ ही क्योंकि स्यों कल्हा खर्च हे करहाईं, समाजा कठे उत्पन्न कुछ नीं करदी। संतान पैदा करने होर पुरूषा जो रिझाणे रे सिवा स्यों अक्सर कुछ बी नीं करदी इधी कठे तिन्हा जो पुरूषा रा मोहताज रैहणा पौणा। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथे इन्हा स्त्रियां रे विषया बिच लिखिरा भई सम्पन्न श्रेणी री स्त्रियां उपयोगी नीं हुईके केवल शोभा मात्र ही।
मार्क्सवादा रे विचारा ले स्त्रियां री ये अवस्था ना स्त्रियां रे विकासा रे कठे होर ना हे समाजा री बेहतरी कठे कल्याणकारी ही। स्त्रियां भी पुरूषा साहीं मनुष्य ही होर तिन्हारे कन्धेयां पर बी समाजा रा उत्तरदायित्व तितना हे हा जितना पुरूषा रे कंधेयां पर हा। जेबे तका स्त्री रा शारीरिक होर मानसिक विकास निर्बाध रूपा ले नीं हुंगा, तेसाले उत्पन्न संताना बी उचित रूपा ले उन्नत नीं हुणी। स्त्री जो केवल उपयोग होर भोगा री वस्तु बनाई के रखणा मनुष्या रे जन्मा रे स्त्रोता जो बिगाड़ना हा। समाजा री उन्नति होर वृद्धि कठे स्त्रियां रे मानसिक होर शारीरिक विकास होर समाजा मंझ स्त्रियां रे समान अवसर हुणे चहिए। मार्क्सवाद स्वीकार करहां भई सन्तान उत्पन्न करना कल्हा स्त्री रा हे उत्तरदायित्व नीं हा बल्कि ये काम सम्पुर्ण समाजा रे कामा मंझ एक महत्वपूर्ण काम हा, मनुष्य समाजा रा अस्तित्व इधी पर हे निर्भर करहां। ये महत्वपूर्ण काम ठीक रूपा ले हुणे कठे परिस्थितियां अनुकूल हुणी चहिए। स्त्री जो संतानोत्पत्ति मजबूर हुई के या दूजे रे भोगा रा साधन बणी के नी करनी पौओ, से आपणे आपा जो समाजा रा एक उत्तरदायी, स्वतंत्र अंग समझी के आपणी इच्छा के संतान पैदा करे। संतान पैदा करने कठे समाजा री स्त्रियां जो एहड़ी परिस्थितियां हुणी चहिए, ज्यों माता होर सन्ताना रे स्वास्थय होर सुविधा रे अनुकूल हों। गर्भवती हुणे री अवस्था मंझ स्त्री कठे एस तरहा री परिस्थितियां हुणी चहिए भई से आपणा स्वास्थय ठीक रखी सके होर स्वस्थ संताना जो जन्म देई सको। पूँजीवादी समाजा मंझ साधनहीन होर पूँजीपति दोन्हों हे श्रेणियां कठे एहड़ी परिस्थितियां नीं हीं। साधनहीन श्रेणी री स्त्रियां जो गर्भ हुणे री अवस्था मंझ उचिता ले ज्यादा परिश्रम करना पौहां होर पूँजीपति श्रेणी री स्त्रियां बिल्कुल निष्क्रय रैहणे करूआं स्वस्थ संतान पैदा नीं करी सकदी।
समाजवादी होर समष्टिवादी समाजा मंझ स्त्री बी समाजा रा उत्पादक या पैदावार करने वाली अंग हुणी। तेसा जो कल्हे पुरूषा रे भोग होर रिझावा रा साधन नीं समझया जाणा। मार्क्सवाद मनुष्य प्रकृति मंझ आनन्द, विनोद होर रिझावा री जगहा बी स्वीकार करहां पर से पुरूषा जो प्रधान होर स्त्री जो केवल साधन मात्र नीं मनदा। पूँजीवादी समाजा मंझ स्त्री माता बणने रे कामा रे करूआं पुरूषा (क्योंकि पुरूष जीविका कमाई के ल्यावां) रे सामहणे आत्मसमर्पण करने कठे मजबूर हुई जाहीं। समाजवादा मंझ स्त्री रे गर्भवती हुणे ले प्रसवकाला होर फेरी परिश्रम करने लायक हुई जाणे तका तेसारी आवश्यकता री पूर्ति होर स्वास्थया री देखभाला री जिम्मेवारी समाजा पर हुणी। प्रसवा ले दो-ढाई महिना पैहले ले लेईके प्रसव ले एक महीना बादा तक, चिकित्सका री राय रे मुताबिक, तेसा समाजा रे खर्चे पर उचित सुविधा के रैहणा। संतान पैदा हुणे ले बाद समाजा जे काम तेसा जो करने कठे देणा, तेता मंझ बच्चे री देख भाला रा समय होर सुविधा बी तेसा जो देणी। बच्चे रे पालने-पोसणे होर शिक्षा री जिम्मेदारी बी गरीब स्त्री री हे नीं बल्कि पूरे समाजा री हुणी। एस तरहा के संतान पैदा करना स्त्री कठे भय होर मुसीबता रा कारण नीं हुई के उत्साह होर प्रसन्नता रा विषय होर सामाजिक काम हुणा।
कई पूँजीवादी शंका करहाएं भई मार्क्सवादा मंझ स्त्री जो स्वतंत्र करिके निराश्रय बनाई दितेया जाणा, स्त्री परा ले एकी पुरूषा रा बन्धन हटाई के तेसा जो समाजा री सांझी भोग्य वस्तु बनायी दितेया जाणा। एता के अनाचार होर व्यभिचार फैल्हणा होर मनुष्या पशुआं साहीं व्यवहार करदे लगणा। मार्क्सवाद स्त्री-पुरूषा रे सम्बन्धा जो स्त्री-पुरूषा री प्राकृतिक आवश्यकता होर कर्तव्या रा सम्बन्ध मनहां। इधी कठे से दोनों मंझा केसी रा एक-दूजे रा दास बणी जाणा जरूरी नीं समझदा। एतारे सौगी हे से स्त्री-पुरूषा रे सम्बन्धा मंझ उच्छृंखलता बी ठीक नीं समझदा। केसी स्त्री या पुरूषा रा होरियां रे शारीरिक भोगा कठे आपणे शरीरा जो किराये पर देणा से अपराध समझां। समाजवादी समाजा मंझ जीविका रे साधन आपणी योग्यता होर अवस्था रे मुताबिक सभी जो समान रूपा ले प्राप्त हुणे, इधी कठे जीविका कठे तेस समाजा मंझ स्त्री जो व्यभिचारा के जीविका कमाणे री जरूरत नीं हुणी। ज्यों लोक पूँजीवादी समाजा रे संस्कारा रे करूआं एहडा करघे स्यों अपराधी समझे जाणे। संक्षेपा मंझ स्त्री-पुरूष होर ब्याह रे सम्बन्धा मंझ मार्क्सवाद समाजा रे शारीरिक होर मानसिक स्वास्थया रे विचार ले पूर्ण स्वतंत्रता देहां पर उच्छृंखलता होर गड़बड़ या भोगा रा पेशा बनाई लैणे होर एतारे सौगी आपणी वासना कठे होर व्यक्तियां होर समाजा री जीवन व्यवस्था मंझ अड़चन पाणे जो से भयंकर अपराध समझां।
--- समीर कश्यप
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Tuesday 27 November 2018

जाति व्यवस्थाः उदगम, विकास होर जाती रे अंता रा प्रश्न (मंडयाली लेख)---समीर कश्यप





प्राचीन भारता बिच जाति रा उदभव होर विकास
जाति व्यवस्था क्या ही? एता रे बारे बिच जानणे होर समझणे कठे आसा जो ऐतिहासिक स्त्रोता री मदद लैणी पौहाईं। ऐतिहासिक स्त्रोत हुआएं पुरातात्विक, साहित्यिक होर मुद्रा (सिक्के) बगैरा। इन्हा बिच साहित्यिक स्त्रोत बी कई तरहा रे हुआएं। जिंहा ऐतिहासिक, धार्मिक, लोककथा, कहावता होर लोक गीत बगैरा। जाति रे बारे बिच पैहला लिखित प्रमाण मिलहां ऋग्वेदा बिच। हालांकि ऋग्वेद लिपिबद्ध बादा बिच हुआ पर एता री ऋचा, स्मृतियां होर श्लोक 1700 ले 1100 ई. पू. रे बिच रचे गए। ऋग्वेद 10 खंडा बिच हा पर ये क्रालानुक्रमा बिच नी हा। मतलब कई बाद रे खण्डा बिच पैहलके वक्ता री ऋचा बी मिली सकाहीं।
ऋग्वेदिक काला (1700-1100 ई. पू.) जो प्रारंभिक वैदिक काल बी बोल्हाएं। ऋग्वेदा बिच पैहली बार 1100 ई. पू. री ऋचा रे एकी हिस्से बिच वर्णाश्रमा रा जिक्र आवहां पूरष सूक्ता रे 10वें मण्डला बिच। जेता बिच बोल्या जाहां भई चार वर्ण हे। ब्राह्ण, राजन्य, विष होर शुद्र। पर आजकाले री जाती व्यवस्था री विशेषता इन्हा वर्णा बिच नीं थी। आजकाले जाती व्यवस्था री विशेषता ही सजातीय ब्याह, पुश्तैनी श्रम विभाजन होर अश्पृश्यता। इन्हा तीन विशेषता मंझ सजातीय ब्याह अझी बी काफी मजबूत हा जबकि पुश्तैनी श्रम विभाजन होर अश्पृश्यता काफी हदा तका कमजोर हुई चुकीरी। पर ऋग्वैदिक काला बिच इन्हा विशेषता रा जिक्र नीं आउंदा होर ना हे जाती शब्दा रा जिक्र आवहां।
जाती शब्दा रा पैहला जिक्र 200 ई. पू. बिच पाणिनी रे अष्टाध्यायी बिच आवहां। पर इथी वर्ण और जाती दोनों शब्दा रा प्रयोग समानार्थी रे रूपा बिच हुइरा। एस हे समय रे दौरान वारहमिहिरा री बृहत संहिता बिच भी उल्लेख आवहां। पर इथी बी वर्ण होर जाती रा समानार्थी रे रूपा बिच प्रयोग हुईरा। पैहली बार याज्ञवल्क्य स्मृति बिच जाती होर वर्ण शब्दा रा एकी जगहा हे अलग इस्तेमाल हुईरा। पर 200 ई.पू. तका वर्णा बिच सजातीय जातियां री व्यवस्था नीं बणीरी थी।
कॉमन इरा (सीई) ले पैहले तक वर्ण व्यवस्था बिच भीतरी गतिकी काफी थी। उपरले वर्ण ब्राह्मण होर क्षत्रिय आनुवांशिक रूपा ले बंद नहीं हुईरे थे यानि जिनोलोजिकली ओपन थे। परिवारा रा बडा भाई ब्राह्मण हुआं था ता छोटा क्षत्रिय। देवति ब्राह्मण था ता शान्तनु क्षत्रिय, देवश्रवश होर देववास, सुमित्र होर देवोदास भाई हुणे रे बावजूद ब्राह्मण होर क्षत्रिय थे।
ऋग्वेदा बिच दासी पुत्र ब्राह्मणा रा उल्लेख बी हा। दासी रा मतलब तेस वक्त गुलाम नीं था। बल्कि दासी पुत्र तिन्हा जो बोल्या गया ज्यों वैदिक आर्या ले अलग थे। इथी रे मूल निवासी कबीले वैदिक आर्या ले पुराणे आर्या के मिश्रित हुई गईरे थे। ऋग्वेदा बिच दासी पुत्रे बौहत सारी ऋचा बी लिखिरी। ऋग्वेदा बिच ब्राह्मण कवष दाषी पुत्र इलुषा रा बेटा था। महीदास बी दास कबीले रे थे। ऐतरेय ब्राह्मणा रा रचयिता महीदासा जो मन्या जाहां। तिन्हा जो बी ब्राह्मणा रा दर्जा दितिरा था। एहडे दास कबीले रे मुखिये रा जिक्र बी आवहां जिन्हें ब्राह्मणा जो संरक्षण दितया था। मुखिये रा नावं हा बलिभूत तरूस्क होर ब्राह्मणा रा नावं हा वास अश्व। ऋग्वेदा रे 8वें खण्डा री 46 श्रुति अश्वे रची थी।
दिवोदास प्रमुख क्षत्रिय था होर दास कबीले ले हे था। तेस जो क्षत्रिय री भूमिका दितीरी थी। ऋग्वेदा रे खण्ड 1,4 होर 6 बिच जिक्र आवहां भई वैदिक आर्यां रे प्रमुख इहलौकिक देवता इन्द्रे दिवोदासा री मददा के शम्बरा रे खिलाफ युद्ध लडया था। शम्बर बी दास कबीले रा था। दो दास कबीले लडी करहाएं थे। तेता बिच वैदिका आर्यां रे कबीले दिवोदासा री मदद किती होर दिवोदासा जो क्षत्रिय रा दर्जा दितेया। ऋग्वैदिक काला री समाप्ती रे दौरा बिच समाजा मंझ तेस वक्ता रे वर्ण विभाजना रा बीज पैदा हुंदे लगी गईरे थे। वर्णाश्रमा रा जिक्र तेस काला रे वर्ग विभाजना रा प्रतिनिधित्व करहां। वर्ण आपणे जन्मकाला बिच वर्ग हे था होर असलियता बिच वर्ण अर्थव्यवस्था रे वर्ग विभाजना जो ही दसी करहां था। वर्गा री आपसी गति जो पूरी तरहा के रोकया नीं गईरा था क्योंकि अझी वर्ग पूरी तरहा के नीं बणीरे थे पर बणने री प्रक्रिया मंझ थे। एस समय पवित्र-अपवित्र (प्योरिटी एंड पोलुशन) रा कोई अर्थ नीं था। रक्त शुद्धता रा कोई मतलब नीं था। दासी पुत्र क्षत्रिय बणी जाहें थे होर तिन्हा रे वैवाहिक रिश्ते बी हुई जाहें थे।
वैदिक आर्य कबीलेयां रा इथी बसीरे लोका के टकराव होर सहकार हुआ। जेता बिच वैदिक आर्य कबीले दास कबीलेयां जो हरायें होर तिन्हा जो गुलाम बनाई देहाएं। इथी ले दास शब्दा रा अर्थ गुलाम, दस्यु, लुटेरा होर असुर शब्दा रा अर्थ राक्षस बणी जाहां। ये हुआं उत्तर वैदिक काला बिच। ये काल हा 1000 ई. पू. ले 500 ई.पू तका रा। एता बिच वैदिक आर्य समाजा मंझ पैहली बार वर्ग सपष्ट रूपा के जन्मा लैहाएं। वर्णा रे बिच आनुवांशिक श्रम विभाजन, पैहली बार सजातीय ब्याह प्रथा री गल्ल होर वर्णा बिच जातियां रे प्रकट हुणे री गल्ला रे प्रमाण मिलहाएं। एस दौरा बिच यजुर्वेद, सामवेद होर अथर्ववेद रचे गए। जातियां रे प्रकट हुणे रा कारण था दास कबीलेयां जो हटाई कने तिन्हा जो दास बनाणा। शुद्र नावां री एक जनजाती थी जेता रा मुख्य ईलाका सिंध था। वैदिक आर्या ले एसा जाति रे हरने पर हरिरे कबिलेयां रे सारे वर्गा जो तिन्हें शुद्र नांव दितेया। यानि अधिनस्थ आबादी जो शुद्र वर्णा रा नावं दितेया गया।
अर्थशास्त्रा रे खंड तीना रे प्वाइंट 13 बिच कौटिल्य बोल्हाएं- शुद्र एक आर्य हा होर एजो बेची या गिरवी नीं रखी सकदे। एता कठे बाकायदा दंड रखीरा थी। पाणिनी रे कामा पर पतंजलि महाभाष्य लिखाहें होर स्यों बोल्हाएं- शुद्र स्यों आर्य थे ज्यों गांवां री सीमा रे भीतर हे रैहाएं थे। गांवा री सीमा ले बाहर कुछ अनार्य कबीले रैहाएं थे जिन्हां जो चार वर्णा री व्यवस्था बिच जगह नीं मिली री थी। ये पांझवां वर्ण या अंत्यज जाती बोली गई। हालांकि अझी तका अछूता रा जिक्र नीं आउंदा। मनुस्मृति बिच भी शुद्रा रे आर्य हुणे रा जिक्र आवहां। पहली बार ब्रह्मा रे मुहां लेे ब्राह्मणा वाली परिकल्पना किती जाहीं।
ब्रुस लिंकन होर जॉर्नेस दुबेदिले दुनिया रे अलग-2 जगहा रे चारावाह समाजा पर अध्ययन कितिरा। स्यों बोल्हाएं भई चारावाह समाजा बिच तीन वर्ण हुआएं थे। पुरोहित, योद्धा होर आमजन यानी ब्रह्म, राजन्य होर विस्। ऋग्वेदा बिच चरवाहे समाजा रे वक्त वंशा रे मुखिया जो गृहपति बोल्हाएं थे। गृह हुआं था कबीला। चरवाहे समाजा ले 500 ई. पू. तक खेतीहर समाज बणी गया। खेतिहर समाज बणने ले जमीन होर मजदूर रा महत्व सामहणे आया। 10वीं सदी बीसी ले 7वीं सदी बीसी तक लोहा मिलणे ले वैदिक आर्य गंगा रे मैदाना बखौ बधे होर 500 बीसी तक बिहार होर बंगाला तक पौंहची जाहें। एस दौरा रे बारे बिच जानणे कठे रोमिला थापरा री गिफ्ट इकानॉमी पर कल्चुरल पास्ट होर आर एस शर्मा री वर्ग पूर्व सामाजिक संस्तरीकरण (प्री क्लास स्ट्रैटीफिकेशन) महत्वपुर्ण कताबा ही। वैदिक आर्य नौवें कबीलेयां के संघर्ष होर सहकारा के तिन्हौ बी आपणे चार वर्णा बिच समेटी करहाएं थे। अगर भारता रे समाजा जो समझणा हो ता डी डी कोशाम्बी री कताबा जरूर पढनी चहिए। जाती रे उदगमा पर इतिहासकार सुविरा जायसवाला री कताबा बी जरूर पढनी चहिए।
9वीं होर 10वीं शताब्दी रे वैदिक रिकार्ड बिच एक गांवां मंझ 36 वर्णा रे हुणे री गल्ल कीतिरी। मिथिला रा 14वीं शताब्दी रा रिकार्ड हा वर्ण रत्नाकर जेता बिच 96 वर्णा रा जिक्र कितिरा। साफ तौरा पर लगहां भई ये 96 जातियां री गल्ल करी करहाएं। 14वीं होर 15वीं शताब्दी तका वर्ण होर जाती रा कई जगहा मिक्स प्रयोग हुई करहां था पर ज्यादातर जाती रा अलग प्रयोग हुई करहां था। पहली बार अंत्यज जातियां रा प्रमाण मिलहां 500-400 ई. पू महाजनपदा रे दौरा बिच।
600 ई.पू. ले 300 ई.पू. तका वर्ण-वर्ग व्यवस्था अस्तित्वा बिच आई चुकीरी थी। सजातीय ब्याह होर जातियां रा ढांचा बणी गईरा था। सीमाबद्ध राज्या (टैरिटोरियल स्टेट) रे ढांचे बणे होर 16 महाजनपद 300 ई.पू. तका कायम रैहे। एस काला बिच पैहली बार गुलाम या दास श्रमा रा भारी पैमाने पर इस्तेमाल हुई करहां था। हालांकि एस वक्त ज्यादातर राजे जनजातियां रे राजे थे। वैदिक आर्य आए ता इन्हा जनजातियां रा भी ब्राह्मणीकरण हुआ होर तिन्हें क्षत्रिय हुणे रा दावा कितेया। ये वक्त बुद्धा रा काल था। एस वक्त मुख्य धर्मा रे तौरा पर बौध होर जैन पैदा हुए। एस समय दास श्रम मुख्य रूपा ले शुद्र होर अंत्यज जातियां करी करहाईं थी। खेती रा काम, दस्तकारी होर घरेलू काम इन्हारे जिम्मे था। वैश्य मुख्य तौरा पर मुक्त किसान थे। मौर्य साम्राज्या (400-182 ई.पू.) रा पतन 182 ई.पू. बिच हुई गया। उत्पादक वर्ग मुख्य रूपा के शुद्र होर वैष्य हे थे। कॉमन इरा (सीई) री शुरूआत हुणे तका ये व्यवस्था चलदी रैही। पैहली शहरी क्रान्ती अगर हडप्पा थी ता दूजी शहरी क्रान्ती महाजनपद थे।
राज्यसत्ता राजे रे हाथा बिच केन्द्रीत थी। भूमी लगाना कठे ब्राह्मण अधिकारी लगाईरे थे। कौटिल्ये लिखीरा भई काराधान होर सिंचाई व्यवस्था बगैरा रा प्रबंध ब्राह्मण हे करहाएं थे। होर ब्राह्मणा जो ईनामा रे तौरा पर जमीना दिती जाहीं थी। जेता जो अग्रहार बोल्हाएं थे। ब्राह्मणा री प्रशासका री भूमिका थी। एस काला बिच ये बी देखणेयो मिलहां भई सुख सुविधा री चीजा, सोम रस होर शराब बगैरा रा प्रचलन बधी जाहां। खेती रे उपकरणा री जरूरत बधाहीं होर मुद्रा अर्थव्यवस्था पैदा हुआईं। बाजार बी एस दौरान हे पैदा हुआं। पैदावार बधणे ले व्यापार होर वाणिज्य री जरूरत पैदा हुणे ले व्यापारी वर्ग उत्पन्न हुआं। इतिहासकार आर एस शर्मा एताजो शुद्र-वैष्य उत्पादन व्यवस्था या प्राक सामंती किसान अर्थव्यवस्था रा नावं देहाएं। कलियुगा रे बारे बिच दसया जाहां भई एस युगा बिच वैश्या कर देणा बंद करी देणा होर शुद्रा आदेशा री अवहेलना करनी। वैश्य वर्णा रे समृद्ध गहपति यानि अमीर वैश्य किसान व्यापार बखौ चली जाहें। जबकि गरीब वैश्य किसान (ज्यों व्यापार नीं करी पांदे) शुद्र किसान बणी जाहें। एतारा समयकाल हा 1 ई. ले 6 ई. तक। जेता जो आसे कलियुगा रे संकटा रा काल बी बोली सकाहें। बौहत ज्यादा लगाना रे दबाबा री बजह ले वैश्य बगावता करी करहाएं थे। अमीर वैश्य व्यापार बखौ जाई करहाएं थे। दास श्रमा री बगावता री वजह ले स्वतंत्र किसाना जो शुद्र जातीयां रा स्टेटस दितया गया। शुद्र पैहले बटाईदारा रे रूपा बिच पैदा हुए फेरी निर्भर स्वतंत्र किसान बणे। पैहली बार शुद्र जातीयां मुख्य तौरा पर किसान जातियां बणी। उत्तर वैदिक काला बिच खेती रा काम वैश्य करहाएं थे। पर एस संकटा ले बाद शुद्र निर्भर किसान होर वैश्य व्यापारी बणी गए। वैश्य हुणे रे बावजूद छठी सदी ई. बिच कन्नौजा रा राजा हर्षवर्धन बणहां। यानि 1 सदी ई. ले 5, 6 सदी ई. तक उत्पादन व्यवस्था बिच बदलाव हुआं। वैश्य व्यापारी बणहाएं होर शुद्रा रा किसानी मुख्य पेशा बणी जाहां। मुद्रा रा प्रचलन हुआं। बाह्मणा जो भूमी अनुदान मिल्हाएं। क्षत्रिया जो बी भूमी अनुदान दिते जाहें थे। एता के बाह्मण होर क्षत्रिय जमींदार या भूस्वामी रे रूपा बिच उभराहें। अस्पृश्यता पर विवेकानंद झा रा बौहत अच्छा अध्ययन हा। एस काला बिच अश्पृश्य जातियां अब अर्ध दास या दास श्रमा री आपूर्ती करदी लगाहीं। स्यों आपणी सेवा कृषक श्रम या सेवा प्रदाता रे रूपा बिच देहाएं। इन्हां जातियां बिच चर्मकार, चांडाल या होर चरवाही जातियां आवहाईं थी। वेदा बिच ये मिलहां भई चर्मकारा रे पेशे रे प्रति कोई हेय दृष्टि के नीं देखदा था। वैदिक कर्मकांडा री सामग्री चमडे रे झोले बिच हे रखी जाहीं थी। इधी कठे चर्मकार प्रतिष्ठित जाती थी। तरीजी सदी ई. बिच सामंतवादा रे परिपक्व हुणे पर अस्पृश्यता बडे पैमाने पर फैली। शुद्र अब हीन शुद्र होर अहीन शुद्रा बिच बंडही गया। हीन शुद्रा बिच निषाद, चांडाल बगैर जातियां शामिल किती गई। होर तिन्हा जो अस्पृश्य मनी के चार वर्णा ले बाहर करी दितया गया। प्रारंभिक बौध ग्रंथा बिच मांस खाणे वाले जो हीन बोलया गया। बुद्ध धर्म मांस भक्षणा रे खिलाफ था। पर 1000 ई. तका ब्राह्मण खुद बडे पैमाने पर मांस भक्षण करहाएं थे। होर यह 11वीं होर 12वीं सदी ई. बिच बधलेया। छठी सदी ई. बिच वराहमिहिर दसहाएं भई सभी राजाओं जो हर धार्मिक समारोहा बिच पशु रा मांस खाणा चहिए। इधी ले साबित हुआं भई मांस भक्षणा ले अछूत नीं बणे। चौथी होर पांजवीं सदी ई.पू. बिच पैहली अछूत जातियां रे प्रमाण मिलहाएं। पर अश्पृश्यता री शुरूआत मांस भक्षणा ले हुणे रा कोई प्रमाण नीं मिलदा। चौथी-पांजवीं सदी ई.पू. बिच एकी-एकी धार्मिक अनुष्ठाना मंझ हजार-हजार जानवर काटी दिते जाहें थे। तेबे हे ता बुद्ध धर्म अहिंसा री मांग करी करहां था। तेहडा हे जैन धर्म भी अहिंसा री हे गल्ल करी करहां था। पर बुद्ध धर्मा रे पतना रे कारणा जो देखणे ले पता लगहां भई कर्म होर अहिंसा रा सिद्धांत जाती व्यवस्था जो सुदृढ़ बनाणे बिच इस्तेमाल किते जाणे री संभावना थी। कर्म होर पुनर्जन्मा रे सिद्धांता रा प्रभाव बी जाती व्यवस्था जो मजबूत करने वाला था। बुद्ध धर्मा रे अहिंसा रे सिद्धांता के जीव हत्या पाप घोषित हुई गई। जेता के शिकार करने वाली होर चरवाहा जातियां एस धर्म ले बाहर हुई गई। भिक्षु बणने री शर्त थी भई सैनिक, औरत, कर्जे वाला किसाना रा दासत्व ले मुक्ति पाणा जरूरी हा। बुद्ध धर्म जाती प्रथा कठे चुनौती नीं बणी पाया। हालांकि ये धर्म ब्राह्मणा रे वर्चस्वा कठे जरूर चुनौती बणया। जैन होर बौद्ध धर्मा बिच क्षत्रियां जो वरीयता दिती जाहीं थी। क्योंकि इन्हा धर्मा री शुरूआत करने वाले क्षत्रिय राजवंशा ले हे आइरे थे। इधी कठे बुद्ध धर्मा पर ब्राह्मणे हमले किते। तेहडे हे जैना पर बी खूब हमले हुआएं थे। दरअसल हिंदुआं रे कई मत बी आपु बीच हमले करी करहाएं थे। कश्मीरा लिखीरी राजतरंगणी बिच पता लगहां भई कई राजे वैष्णव, शैव होर शाक्त समेत कई मत एकी दूजे पर धन संपदा कठे हमले करहाएं थे।
ब्राह्मणवादा रा चरित्र हर युगा बिच शासक वर्गा जो आपणे शासना जो ठीक ठहराणे रा धार्मिक होर कर्मकांडिय वैधीकरण देणा हा। डी डी कोसाम्बी री कताब मिथक होर यथार्थ एस चरित्र जो समझाणे कठे बडी उपयोगी मनी जाहीं। 1700 ई.पू. ले छठी शताब्दी ई. तक उत्पादन रे संबंध बडे पैमाने पर बधले। यों बदलाव पुराणे कर्मकांडा रे ढांचे बिच भूकंप रे झटके थे। दक्षिण भारत बिच ब्राह्मणवादे शत शुद्र होर असत शुद्रा रा विभाजन कितेया। जेता बिच शत शुद्र ब्राह्मणा रे संरक्षक मने गए होर तिन्हा री क्षत्रिया री भूमिका स्वीकार किती गई। आंध्रा बिच रेड्डी राजे पैदा हुए। हालांकि छठी सदी ई. बिच हर्षवर्धन एक वैश्य राजा था। पर दक्षिण भारत होर पूर्वी भारता बिच वैश्य होर क्षत्रिय जातियां नीं थी। मारवाडियां री वैश्य जाती बादा बिच पूर्वी भारता जो गई थी। दक्षिण होर पुर्वा बिच सिर्फ ब्राह्मण होर शुद्र हे थे। वर्ण व्यवस्था अगर केसी ग्रन्था ले निकली री हुंदी ता ये व्यवस्था हर जगहा एक बराबर ही हुंदी होर एता बिच देश-काला रे आधार पर अंतर नीं हुंदा।
जाति व्यवस्था रा उत्पादन संबंध होर वर्ग संबंधा के रिश्ता समझणे ले आसे जाती रे इन्हा परिवर्तना जो समझी सकाहें। इतिहासा री हर घटना बिच कार्य होर कारणा (कौज एंड इफेक्ट) रा संबंध हुआं। इतिहासकारा जो ये कार्य कारण संबंध समझणा चहिए ताकि इन्हा री व्याख्या भौतिक, राजनैतिक होर सामाजिक परिवर्तना रे मुताबिक किती जाई सके होर ये दसी सको भई सभी ले महत्वपुर्ण परिवर्तन क्या हा। जिंदा रैहणे कठे इंसाना जो रोटी, कपड़ा होर मकान चहिए हुआं। इंसाना री बुनियादी गतिविधी हुआईं उत्पादना री गतिविधी। उत्पादना बिच सामुहिक श्रम विभाजन, विनिमय, विनियोजना रा रिश्ता, मालिकाने रे संबंध होर मुनाफा यानि सरप्लस लूटने रे आधार पर कोई व्यवस्था खडीरी हुआईं। जटिला ले जटिल सामाजिक सांस्कृतिक ( जाति) अधिरचना हो चाहे या कोई साधारण अधिरचना इन्हा संबंधा के तेतारे रिश्ते दसे बगैर तेता बिच हुणे वाले परिवर्तन समझ नीं आई सकदे। अगर परिवर्तन समझणा जाति-वर्ण व्यवस्था बिच ता उत्पादन संबंधा बिच जाणा हे पौणा। धार्मिक ग्रंथा रे मुताबिक राजे रा धर्म हा वर्ण आश्रम व्यवस्था री हिफाजत करना। इधी कठे कई अधिकारी नियुक्त किते गइरे थे जिन्हा रा नावं हे धर्माधिकारी था। 12वीं सदी ई. बिच बंगाला रे बल्लाल सेन राजे रे काला बिच एकी अंत्यज जाति कैवर्ते विद्रोह करी दितेया था ता दबाबा बिच कैवर्त जाति जो शुद्रा रा दर्जा देणा पया था। एकी तुगलक राजे क्षत्रिय समूह सुनार बणाई दितेया था।
जाती वर्ण व्यवस्था क्या ही? वर्ग विभाजना रे तौरा पर ये वैदिक काला रे उतरार्धा बिच पैदा हुई। ब्राह्मण होर ब्राह्मणवादी विचारधारा रा इस्तेमाल करी के तेस वक्ता रे शासक वर्ग समुच्चये (ब्राह्मण, क्षत्रिय), तेस वक्ता रे वर्ग विभाजना जो आपणे वर्ग विशेषाधिकारा जो सुरक्षित रखणे कठे होर सजातीय ब्याह रे जरिये एता री निरंतरता बनायी रखणे कठे धार्मिक होर कर्मकांडीकरणा करी के एस व्यवस्था रा अश्मीभूतीकरण या जीवाश्मीकरण कितेया।
उत्पादन प्रकृति के सौगी आदमी री अंतःक्रिया ही। ये अंतःक्रिया सदा गतिमान रैहाईं। एतारे बदलने ले उत्पादना री पद्धति बदलाहीं। पद्धति बदलणे ले उत्पादना रे रिश्ते बदलाहें। विनिमया रे संबंध बधली जाहें। वर्ग संबंध बधली जाहें। पर जाति व्यवस्था तुलनात्मक रूपा के स्थिर हुई गई। बधलदे हुए उत्पादन संबंधा के जाति व्यवस्था रे पुराणे खांचे रे वर्ग संबंधा बिच घुटन आउंदी लगाहीं। एते जाती व्यवस्था रे कर्मकांडिय ढांचे मंझ भूकंप रे झटके पैदा हुआएं। जेते संलयन होर विखंडना री प्रक्रिया शुरू हुआईं। ब्राह्मणवादी विचारधारा नौवीं स्थितियां मंझ नौवें शासक वर्गा रे समुच्चय जो बनाई रखणे कठे जातिगत पदानुक्रमा जो भी के अडजस्ट करदी रैहाईं।
जाति होर वर्गा रा क्या संबंध हा? जाति आज भी आंशिक तौरा पर श्रम विभाजना जो, विनमय होर वितरणा जो प्रभावित होर निर्देशित करी करहाईं। जाति पूरी तरहा के अधिसंरचना रा अंग नीं ही। जाति पैदा हे वर्ग विभाजना ले हुईरी। जाति होर वर्गा रा रिश्ता संगति रा रिश्ता हा। बधलदे वर्ग संबंध होर उत्पादन संबंध जाति रे बदलाव बिच निर्धारक भूमिका निभाहें। विचारधारा रे चश्मे ले आसे दुनिया देखाहें।

मध्यकालीन भारता बिच जाति रा स्वरूप

1700 ई.पू.-1100 ई. तका रे काला बिच जाति व्यवस्था चारावाह समाज, प्राक सामंती किसान अर्थव्यवस्था ले सामंती व्यवस्था रे दौरा तक हुंदी हुई 1 सदी ई. ले 5वीं सदी तका परिपक्व हुआईं। जबकि अलग रूप 7,8,9वीं सदी ई. बिच धारण करहाईं जेबे गुप्त साम्राज्य रा पतन हुआं होर छोटे-2 क्षेत्रिय राज्य बणहाएं। जाति व्यवस्था बधलदे आर्थिक सामाजिक संबंधों, उत्पादन रे संबंधों होर बधलदी हुई उत्पादना री पद्धति के सौगी ढांचागत परिवर्तन किहां आवहां ये आसे अझी तका देखया।
इतिहासकार इरफान हबीब होर वी के ठाकुर री कताब ही दि वैदिक एज। तेता बिच स्यों बोल्हाएं भई तुर्क होर मुगल शासके भारता रे सरप्लस लूटणे रा तरीका बिल्कुल नीं छेडया। मुस्लिमे सिर्फ दो चीजा कठे हिंदू धर्मा री आलोचना कितिरी। स्यों थे बहुदेववाद होर मुर्तिपूजा। जबकि जाति व्यस्था री बिल्कुल बी आलोचना नीं कितिरी। सिर्फ अल्बेरूनिए कुछ आलोचनात्मक गल्ला लिखिरी भई ये ठीक नहीं हा होर आसे मुस्लिम एहडे नीं हुई सकदे। सौगी-सौगी तिन्हे एहडा बी बोल्या भई व्यवस्था ये बडी जबरदस्त ही होर बडी कारगर ही। केसी बी मुस्लिम शासके, सकॉलरे, यात्रिये जिया बर्नी (आइने तुगलक) समेत सभीयें जाति व्यवस्था री प्रशंसा हे कितिरी। मुस्लिम शासके सिर्फ इथी रे राजा हे अपदस्थ किते जबकि राजकाज रे निचले ढांचे के तिन्हें रिश्ता बनायी रखया होर सामंती भूस्वामी, ब्राह्मण होर क्षत्रिया के गठजोड बनाया। इन्हा जो सैनिक टुकडियां रखने री इजाजत दिती गई बशर्ते स्यों लगान देंदे रौहो। हालांकि इन्हा रे नावं बधली गई मनसबदार, जमींदार बगैरा यानि सिर्फ प्रशासनिक स्तरा पर नावं बदलने जो लैई के छेडछाड हुई। जबकि श्रम विभाजन, मुक्त किसान होर खेतीहर मजदूरा री व्यवस्था के तिन्हें कोई छेडछाड नीं किती।

ब्रिटिश शासना रे दौरान जाति-व्यवस्था रा चरित्र

अंग्रेजी शासना री शुरूआता बिच भारत रा स्वरूप क्या था एता रे बारे बिच सी ए बैली री कताब ही रूलर्स, टाउनमैन एंड बाजार। अंग्रेजी शासना बिच जे महत्वपुर्ण बदलाव आए तिन्हा जो आसे इहां रेखांकित करी सकाहें। पहला बदलाव आया भूमि री व्यवस्था बिच। भूमि रा स्थाई बंदोबस्त कितया जाहां। यू पी, बंगाल होर बिहारा बिच जमींदारी बंदोबस्त, हरियाणा होर पंजाबा बिच रैयतवाडी व्यवस्था होर गुजरात, पश्चिमी भारता बिच महालवाडी व्यवस्था लागू हुआईं। स्वर्ण जमींदार या मध्यम किसान जमींदारा जो जमीना रा मालिक बनाणे रा काम पैहली बार भारता रे इतिहासा बिच ब्रिटिश उपनिवेश काला बिच हुआं। 2014-15 रे आंकडेयां रे मुताबिक भारता बिच सारे भूमिहीन मजदूरा रा 48 प्रतिशत दलित मजदूर हा। कुल ग्रामीण दलित आबादी बिच 85 ले 90 प्रतिशत दलित आबादी भूमिहीन मजदूर ही। एता रा कारण हा औपनिवेशिक लगान व्यवस्था।
दूजा बदलाव ब्रिटिश काला बिच ये आया भई उद्योग होर रेलवे बगैरा रा सीमित विकास हुआ। एता के जाति व्यवस्था बिच बडा परिवर्तन आया। बम्बई, अहमदाबाद, ढाका, सूरत, कलकता, कानपूर, मद्रास, तिरूपुर साहीं कई शहरी औद्योगिक केन्द्र विकसित हुए। यातायात रे साधन विकसित हुए। दलित, शुद्र, आदीवासी होर भूमीहीन हे मुख्य रूपा के मजदूर बने। औद्योगिकरण होर शहरीकरणा के जाति री विशिष्टता आनुवांशिक श्रम होर छुआछात कमजोर हुई।
तरीजा बदलाव था एथनोग्राफिक स्टेट बणना यानि प्रजा री गिनती करना होर वर्गीकृत करना। एता रा मकसद था शासित जनता पर बेहतर तरीके के शासन करना। एच एच रिजले ब्रिटिश एथनोग्राफिक थे तिन्हें जातियां होर जनजातियां रा अध्ययन कितेया। विलियम जोन्स ओरिएंटल सोसायटी आफ इंडिया बणाहें। एता बिच स्यों दो वर्गा रे लोका जो भर्ती करहाएं ब्राह्मण होर मौलवी। भारता पर राज करने कठे भारता जो समझणा जरूरी था। धार्मिक ग्रन्था रे अनुवाद किते गए अंग्रजी बिच। जर्मन इंडोलोजिस्ट मैक्स मुलर संस्कृता रा अध्ययन करी के इन्हा रा अनुवाद करहाएं। सन 1881 ई. बिच पैहली जनगणना हुआईं। एस जनगणना बिच पैहली बार जातियां री गणना किती जाहीं ओर जातियां रा वर्गीकरण कितया जाहां। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र होर अस्पृश्य जातियां री निशानदेही साफ रूपा के रेखांकित किती गई। जाति स्थिर करी दिती गई। पैहले जाति बिच थोडी बौहत गति रैहाईं थी। पर ये गति अब कानूनी दस्तावेजा के बंद करी दिती गई। एथनोग्राफिक स्टेट रा मतलब हा एथनिक पहचान रे रूपा बिच जातिगत, राष्ट्रीय, भाषाई, क्षेत्रगत जनता जो जोडना होर वर्गीकृत करना। सबअल्टर्न इतिहासकार निकोलस डर्क बोल्हाएं भई जाति व्यवस्था जो रूढीबद्ध होर कठोर बनाणे ले जाति री गति खत्म हुई गई होर जातियां रे बिच विभाजक रेखा खींची दिती गई। यानि जाति व्यवस्था अंग्रेजे मजबूत हे किती।
अंग्रेज जेबे देश छाडी के जांदे लगीरे थे ता भारता रे सामंत, राजे रजवाडे होर जमींदार तिन्हा बाले गए होर तिन्हा जो बोल्या भई तुसे भारत छाडी के नीं जावा नीं ता सब कुछ बर्बाद हुई जाणा। ज्योति बा फूले बी अंग्रेजा रे प्रति पैहले आशावादी थे। तिन्हा री रचना गुलामगिरी बिच ये आशावाद देखणे जो मिल्हां पर वक्ता रे सौगी-सौगी तिन्हा रा अंग्रेजा ले मोह भंग हुआँ होर स्यों अंग्रेजा री कडी आलोचना करहाएं। एतारे हवाले तिन्हा री बादा बिच लिखिरी कताब किसाना रा कोड़ा बिच मिलहाएं। अंबेदकर बी फैमिन इन इंडिया बिच अंग्रेजा री आलोचना करहाएं। पर पश्चिमी शिक्षा रे दरवाजे दलिता कठे खोलणे री वजह ले अंग्रेजा रे प्रशंसक थे। (हालांकि यों दरवाजे हर जगह नहीं खोले गए थे)। आनंद तेलतुमडे री कताब महाड हाखियां खोलणे वाली कताब ही। हालांकि अंग्रेजे शुरू बिच दलिता कठे सेना री भर्ती खोली थी पर 1891-92 बिच ये बंद करी दिती थी। उच्च वर्णा री स्थिति अंग्रजी काला बिच बी उच्च हे बणीरी रैही। ब्रिटिश काला बिच जातियां री विभाजक रेखा कानूनी रूपा के रेखांकित होर पारिभाषित हुई जाहीं जे जातिगत पदानुक्रमा जो रूढ बनायी देहाईं। जाति रा एक अश्मीभूतीकरण ब्राह्मणे कितेया था फेरी ब्रिटिश शासने कितेया। एस सी होर एस टी री कैटागरी बणी जाहीं। अंग्रेज शासन काला रा फायदा दलित आबादी रे सिर्फ दो प्रतिशत लोका जो हे हुआ होर मुख्य तौरा पर दलित जातियां रा नुकसान हे हुआ।

आजादी ले बाद भारता मंझ जाति-व्यवस्था

देशा री आजादी ले बाद आसा सामहणे आवहां देशा रा संविधान। आसारा संविधान देशा जो जनवादी, धर्मनिरपेक्ष होर समाजवादी घोषित करहां। पर संविधाना जो बनाणे वाली संविधान सभा समूची जनता ले सार्विक मताधिकारा रे अधिकारा के नीं चुनी गई थी। सिर्फ 11.6 प्रतिशत लोके ज्यों सम्पतीधारी, राजे-रजवाडे होर पूंजीपति वर्गा रे थे तिन्हां जो हे वोट पाणे रा अधिकार था। तिन्हारी चुनी री संविधान सभे आसारा संविधान बणाया। पैहली गल्ल जनवादी घोषित हुणे वाला आसारा संविधान जनवादी तरीके के बणाया ही नीं गईरा था। नेहरूए पैहले चुनावा बाद ये ठीक करने कठे बोल्या था पर कधी बी ठीक नीं हुई पाया। दूजी गल्ल संविधाना रे अनुच्छेद, धारा, उपधारा बिच नौवीं गल्ला बौहत कम ही। एता बिच ज्यादातर गल्ला गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 ले ज्यों की त्यों चकी लितिरी। संविधाना बिच बिना कोई संशोधन कितिरे आपातकाल लगाया गया था। आपातकाला रा प्रावधान संविधाना बिच पैहले ले हे था। जितनी दमनकारी धारा अंग्रेजा जो हिन्दुस्तानियां पर राज करने कठे जरूरी थी स्यों सभ दमनकारी धारा संविधान बिच शामिल रखी गई। आजादी रे बाद हालांकि कानूनी रूपा ले अश्पृष्यता खत्म करी दिती गई। पर आसारा संविधान संपूर्णता बिच क्या देहां होर ये केसरी सेवा करहां ये आसा जो जरूर देखणा चहिए। आसे देखेया भई उपनिवेश काला बिच पूंजीवादा रे विकास, औद्योगिकरण होर सीमित शहरीकरणा के अश्पृश्यता होर वंशानुगत श्रम विभाजन आंशिक तौरा पर टुटणा शुरू हुआ। आजाद भारता बिच ये प्रक्रिया होर तेजी के बधी।
भारतीय पूँजीपति वर्गा रे विकासा रे रस्ते पर टाटा-बिडला प्लान 1944 बिच बणना शुरू हुआ जेता बिच विकास अर्थशास्त्री, सांख्यिकीकार, पूँजीपतियां रे प्रतिनिधी टाटा, बिडला, थापर, गोयनका बगैरा शामिल थे। ये प्लान 1945 बिच बणी के तैयार हुई गया। क्रिप्स मिशना रे आउणे बाद ये साफ हुई गईरा था भई एभे अंग्रेजा रा केभे बी भारता ले जाणा पक्का हा। हालांकि स्यों जाणे री तिथी ले पैहले ही चली गए थे। टाटा-बिडला रे प्लाना रे हिसाबे अब देश चलाया जाणा था। एस प्लाना रे मुताबिक देशा जो विदेशी कर्जे पर ज्यादा निर्भर नीं रैहणा चहिए बल्कि राष्ट्रीय बचत इकट्ठी की जाणी चहिए। यानि साम्राज्यवादी देशा रे कर्जे पर निर्भर नीं रैहणे बल्कि आपणे देशा बिच राष्ट्रीय बचत बैंकिंग होर पोस्टल सेवा रे जरिये इकट्ठी की जाणी जहिए। दूजी गल्ल एस प्लाना बिच ये थी भई आयात कम करने री नितियां लागू करनी। देशा बिच जे भी जरूरता रा सामान हा चाहे से प्रोडक्शन गुड या उपभोक्ता सामान इन्हा रा आयात खत्म करदे जाणा ताकि देश आत्मनिर्भर बणी जाओ। इधी कठे सरकारी क्षेत्रा रे पूँजीवादा री स्थापना किती जाए। आधारभूत उद्योग राष्ट्रीय संपति रे रूपा बिच रखे गए। आधारभूत ढांचा हाईवे, रेलवे, बांध होर सिंचाई बगैरा पैहले सरकारा तैयार करने होर जेबे आधारभूत ढांचा तैयार हुई जांघा तेबे तिन्हारा निजीकरण कितया जाणा।
भूमि सुधार कठे लैंड सिलिंग एक्ट आवहां 1956-57 बिच। पर इथी भूमी सुधार किसान केन्द्रीत नीं बल्कि सामंत केन्द्रीत भूमी सुधार हुआ। ये सुधार फ्रांसा री क्रान्ति रे मॉडला पर नीं हुआ बल्कि जर्मनी रे प्रशिया बिच बिस्मार्क रे वक्ता साहीं युंकर टाइपा रा हुआ। जेता बिच पुराणे भूस्वामियां जो आज्ञा दिती जाहीं भई स्यों आपणे जो बदली लौ। एसा पृष्ठभूमि पर सत्यजीत रे री खूबसूरत फिल्म बणीरी जलसाघर। इन्हां सुधारा के स्वर्ण ब्राह्मण क्षत्रिय सामंत पूँजीवादी कुलक फार्मर बणी जाहें। आजादी रे बाद खेतीहर मजदूरा री अधिकांश आबादी दलित थी। आज बी खेतीहर मजदूरा मंझ 48 प्रतिशत दलित जातियां रे मजदूर हे। भूमिहीनता री जड़ इन्हां भूमि सुधारा बिच हे ही। स्वर्ण सामंती भूस्वामी प्रमुख कुलक पूँजीवादी बणी गए। उत्पादकता बधणे ले धनी किसाना रा वर्ग पैदा हुआ। पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थाना बिच हरित क्रान्ति हुआईं। धनी काश्तकार किसाना रा वर्ग हरित क्रान्ति के 80 रे दशका तक अग्गे बधया होर तिन्हा रे भारतीय किसान यूनियना सरीखे राजनैतिक संगठन पैदा हुए। मध्यम किसान जातियां रेड्डी, कम्मा, जाट, गुज्जर, मराठे बगैरा जो लाभ पौंहचेया। दलिता जो नाममात्रा री ही जमीन दिती गई। दक्षिण होर पूर्वी भारता बिच थोडे बौहत पट्टे दिते गए। दलिता रे छोटे जेह हिस्से बाली छोटी जमीना ही। एता के तिन्हा रा गुजारा नीं हुणे रे कारण स्यों होरियां री जमीना पर मजदूरी करहाएं या शैहरा जाईके कोई नौकरी करहाएं। दलिता रा बड़ा हिस्सा खेतीहर मजदूर हा।
पूँजीवादी विकास होर प्रतिस्पर्धा खेती रे क्षेत्रा बिच हुणे ले किसाना बिच बी विभेदीकरण पैदा हुआं। किसाना रा वर्ग होर पूँजीपति कुलका रा वर्ग पैदा हुआं। पैदावार बाजारा कठे हुआईं। तिन्हा जो प्रतिस्पर्धा रा सामना करना पौहां। आपणी लागत कमा ले कम करनी पौहाईं। एस प्रतिस्पर्धा बिच 90 प्रतिशत से हे किसान जीतहां जेस बाले ज्यादा पूँजी हुआईं। जे बेहतर टैक्नोलोजी होर बीजा रा इस्तेमाल करहां। तेसरी पौहुंच सरकारी कर्जेयां होर संस्थाबद्ध कर्जेयां तक हुआईं। स्यों गांवा रे आढतियां होर सूदखोरा ले कर्जे नीं लैंदे। बैंक होर वितिय संस्थाना ले तिन्हा जो हे लोन मिलहां ज्यों साखा वाले लोक हुआएं। प्रतिस्पर्धा के छोटी होर निम्न मंझौली किसाना री तबाह हुणे री प्रक्रिया 60-70 रे दशका ले शुरू हुआईं होर अझी तका चलीरी। छोटी किसानी लगातार तबाह हुई करहाईं। नौवां डैटा आइरा भई गांवां रे भीतर गैरकृषि गतिविधियां बिच लगीरी आबादी री संख्या 50 प्रतिशता ले ज्यादा हुई गईरी। कृषि री बडी आबादी सेवा होर उद्योग क्षेत्रा बिच लगी गईरी। छोटी, निम्न मझौली होर मझौली आबादी री तबाही हुणे ले तिन्हा रा सर्वहाराकरण हुई गईरा। कृषि करने वाले कई लोक अब शैहरा रैही के काम करी करहाएं होर तिन्हा बाले जे जमीन गांवा ही तेता जो स्यों बडे किसाना जो या आपणे हे केसी भाई बाले कमाणे जो छाडी देहाएं। कुछ एहडे बी अर्धसर्वहारा हे ज्यों शैहरा कमाहें होर गांव री खेती जो बचाणे कठे पैसा भेजहाएं पर तिन्हा जो खेती बदले बिच कुछ देंदी नीं ही बल्कि उल्टा तिन्हा जो खाई करहाईं। इन्हा बिच ओबीसी जाति रे लोक ज्यादा हे। नवउदारवादी नितियां रे दौरा ले बाद 1990 ले 2011 तका विकिसानीकरण रे आंकडे बौहत कुछ बोल्हाएं। 2001 री जनगणना बिच भूमि रे मालिक किसाना री संख्या 31 प्रतिशत थी जे 2011 री जनगणना बिच 27 प्रतिशत रैही गई। यानि 10 साला बिच 4 प्रतिशत किसाना री जनसंख्या तबाह हुई गई।
दलित जातियां रे अलावा आज केसी बी जाति रा साफ दिखदा वर्ग चरित्र नीं हा। आनंद तेलतुमडे लिखाएं भई दलिता रा 89-90 प्रतिशत हिस्सा मजदूर हा पर 10-11 प्रतिशत हिस्सा साफ तौरा पर मजदूर नीं हा। ये हिस्सा मध्यम वर्गा रा संस्तर या उच्च वर्ग या कुलीन हुई चुकीरा। प्रमुख किसान जाति ओबीसी रा छोटा हिस्सा खांदा-पींदा किसान हा। जबकि ज्यादा होर बड़ा हिस्सा नवउदारवादी नितियां रे करूआं तबाह होर बर्बाद हुई के अर्धमजदूर होर मजदूरा री जमाता बिच शामिल हुई गईरा। पूँजीवादी विकासे जातिगत समुह होर वर्गगत समुहा रा आच्छादन काफी हदा तक शिफ्ट करी दितिरा यानी बदली दितिरा। इधी कठे जाति री विचारधारा रा प्रयोग करीके लोका जो बांडणे कठे तिन्हा रे साम्हणे एक छद्म दुश्मण पैदा कितया जाई करहां। जिहां मराठा होर जाट जातियां साम्हणे पैदा कितेया जाई करहां। स्यों जे कुछ झेल्ली करहाएं तिन्हारे ज्यों जिम्मेवार हे तिन्हा जो कटघरे बिच खडा न कितया जाओ इधी कठे नकली शत्रु पैदा कितेया जाहां भई दलित शत्रु हा। यों जाति अत्याचार कानूना के पीडित करहांए होर आरक्षणा के नौकरी लेई जाहें। एस नकली शत्रु रे पैदा हुणे ले मराठा मोर्चा रा निशाणा दलित आबादी बणी जाहीं। छद्म शत्रु के लडने कठे जातिगत संस्कार हिलोरा मारदे लगहाएं। क्योंकि मराठा आबादी बिच सही लाईना जो लेयी के तिन्हा जो गोलबंदी करने वाली कोई ताकत मौजूद नीं ही। वर्ग लाईना पर चली के मराठा आबादी जो टारगेट करना चहिए पर एतारे बजाये स्यों आपणी अस्मिता री लडाई बिच पई जाहें। जेता के सारेयां री अस्मिता बडी हुंदी जाहीं। छद्म दुश्मण पैदा करने कठे भारता रा पूँजीपती वर्ग कई विचारधारा रा इस्तेमाल करहां। जेता बिच एक साम्प्रदायिकता री विचारधारा बी ही। ब्राह्मणवादी, पूँजीवादी, पितृसतात्मक होर साम्प्रदायिक शासक वर्गा जो हराणे रा एक हे तरीका हा वर्ग लाईना पर जातिगत गोलबंदी बिच सेंध लगाई के जाति अंता री परियोजना पर काम कितेया जाए। वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलन हे विकल्प हा।
भारता रे 7 करोड बाल मजदूरा मंझ 40 प्रतिशत दलित परिवारा ले हे। उत्पीडन, बेरोजगारी दर, पर कैपिटा कंसंपशन यानि प्रति व्यक्ति उपभोगा री कमी बिच दलित आबादी री संख्या होरी जातियां ले दुगुणी ही। हर जाति बिच वर्ग विभाजन जटिल हुईरा होर जातियां रा चरित्र बधलिरा। हर जाति मंझ कुलीन, उच्च मध्यम, मध्यम, निम्न होर मेहनतकोश लोक हे। निम्न वर्गा बिच मेहनतकश ज्यादा हे, मध्यमा बिच किसाना रा प्रतिशत ज्यादा हा होर उच्च वर्गा बिच सबसे ज्यादा प्रतिशत पूँजीपती, नौकरशाह, उच्च मध्यम वर्ग या नेता हे। सर्वहारा आबादी औद्योगिक, खेतीहर होर सेवा प्रदाता ही। कुल शहरी होर ग्रामीण मजदूर आबादी मंझ दलित 25-27 प्रतिशत, ओबीसी इन्हा ले थोडे ज्यादा 30-32 प्रतिशत होर जनजाति, मुस्लिम होर अन्य करीब 22 प्रतिशत हे। दलिता बिच 89-90 प्रतिशत शहरी या ग्रामीण मजदूर हे। ओबीसी बिच 70 प्रतिशत मजदूर हे जबकि जनजाति, मुस्लिम होर अन्या री कुल आबादी बिच दलिता ले बी ज्यादा मजदूर हे। पिछले 30 साला बिच जातिगत उत्पीडन बौहत ज्यादा बधी गईरा। इहां ता हर मजदूर शोषित हा पर दलित मजदूर अति शोषित हा। हर दलित पीडित हा पर मजदूर दलित उत्पीडना रे बर्बरतम रूपा रा शिकार हा। सामाजिक उत्पीडन आर्थिक उत्पीडना के गुंथित हुआं। गलोरिया रहेजा रा लेख हा एस बारे बिच सेंट्रलिटी ऑफ डोमिनेंट कास्ट। देशा री आजादी बाद जाति री विशेषता मंझ वंशानुगत काम या ता लुप्त हुई चुकीरा या लुप्त हुणे रे कगार पर हा यानि मृतप्राय हा। अश्पृश्यता बी अब आम सच्चाई नीं ही। हालांकि जाति व्यवस्था री तरीजी विशेषता सजातिय ब्याह अझी तका नीं तोडया गइरा होर ये अझी बी बचीरा हा। बधलदे उत्पादना रे संबंधा होर पद्धति के जाति व्यवस्था बिच यों बदलाव आवहाएं।
शासक वर्ग जाति रा किहां इस्तेमाल करहां? शासक वर्ग दमित, शोषित होर शासित लोका जो आपु मंझ ग्रेडेड इनइक्वलिटी यानि संस्तरीबद्ध असमानता बिच बांडी रखहां। चाहे तिन्हा रा आनुवांशिक श्रम विभाजन खत्म बी क्युं नी हुई जाओ पर तेबे बे सजातिय ब्याह तिन्हा जो बान्ही रखहां होर संस्तरीबद्ध असमानता बणीरी रैहाईं। यानि 77 प्रतिशत मेहनतकश आबादी जो विभाजित रखहां। आनंद तेलतुमडे बोल्हाएं कास्ट डिवाइडस क्लास यूनाईटस। दूजी गल्ल शासक वर्ग लूटा रे माला रा बंटवारा यानि के संसाधन होर राजनैतिक सत्ता बिच केसरी भागीदारी कितनी हुणी इधी कठे आपसी प्रतिस्पर्धा बिच से आपणे जाति रे ब्लॉका रे जरिये प्रतियोगिता करहां। तरीजे वोट बैंका री राजनीति बिच जाति अस्मिता रा इस्तेमाल करहां। चुनावा बिच जीतणे रा फार्मुला जातिगत समीकरणा के तैयार हुआं। चौथे जातियां रे विघटना री प्रक्रिया कम हुई गईरी। अब कई जातियां राजनैतिक गठजोड बनाई करहाईं पर स्यों सामाजिक गठजोड नीं बनाई करदी। अब यूनिफाइड लेबर कोड बनाणे री गल्ला साम्हणे आई करहाईं। जेता रे मुताबिक अप्रैंटिस, ट्रेनी मजदूरा जो स्थायी मजदूरा री जगहा रखी सकाहें। न्यूनतम वेतना पर जितना समय काम करवाणा चाहो तो करवाई सकाहें। पैहले करीब 290 दिन पूरे हुणे पर मजदूरा जो स्थायी करना पौहां था से अब खत्म हुई जाणा। अल्पसंख्यक पूँजीपतियां री राज्य सत्ता ये जाति व्यवस्था कधी बी खत्म नीं करनी। आसे मौजूदा आरक्षणा जो खत्म करने री मांग नीं करदे पर नौवीं जातियां जो शामिल करने रे पक्षा बिच नीं हे। शिक्षा होर नौकरी बिच सीटा हे नीं ही। लगभग 2.1 प्रतिशता री रफ्तारा के सरकारी नौकरियां घटी करहाईं। वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलना रा मसला हुणा चहिए सभीयां कठे एक समान होर निःशुल्क शिक्षा होर सभी कठे रोजगार। संवैधानिक संशोधन करीके ये अधिकार मूल अधिकारा बिच शामिल कितेया जाणा चहिए। ये अधिकार कई देशा बिच दितेया गइरा। अगर राज्य ये नीं देई पाओ ता तिन्हां जो भरण-पोषणा कठे भत्ता देणा चहिए। हालांकि बेरोजगारी भत्ते रे बारे बिच संविधाना रे दिशा निर्देशक सिद्धांत बिच लिखिरा बी हा। आरक्षण आजा रे समया बिच लोकतांत्रिक अधिकार नीं हा बल्कि लोकतांत्रिक भ्रम ज्यादा हा।

अयंकाली, फुले, पेरियारा रे आंदोलना रा मुल्यांकन

जाति विरोधी आंदोलना कठे सुधारक होर जुझारू योद्धा अयंकाली, ज्योति बा फुले, पेरियार, अंबेदकर समेत बौहत सारेयां रा योगदान रैहिरा। इन्हा बिच एकी लिहाजा ले कुछ मामलेयां मंझ सभी थे महत्वपुर्ण हे अयंकाली। अयंकाली जाति विरोधी आंदोलना री लड़ाई जो आर्थिक, सामाजिक होर राजनैतिक धरातला पर लेई गए। स्यों सुधारवादी नीं थे बल्कि प्राथमिक रूपा ले जुझारू, रैडिकल होर प्रगतिशील जाति विरोधी योद्धा थे। स्यों औपनिवेशिक राज्या री कानूनी सीमा री परवाह बी नीं करदे थे। एतारा उदाहरण हा चेरियार दंगा। सन 1900 ई. बिच केरला मंझ पुलयार जाति जो सड़का पर चलणे रा अधिकार नीं था। अयंकाली गंडासा लेई के कल्हे सड़का पर निकले। तिन्हा जो रोकणे री केसी जो हिम्मत नीं हुई। एता ले बाद चेरियार दंगा हुआ होर 2-3 दिना तक युद्धा साहीं माहौल बणीरा रैहा। जेता बिच दलिता भारी पई गए। मद्रास रेजिसेंडिए घटना रा संज्ञान लितया होर दलिता रा सड़का पर चलणे रा अधिकार बहाल हुआ। अयंकाली रे सड़का रे आंदोलना के सरकारा जो कानून बनाणे कठे मजबूर हुणा पया। सन 1907 ई. बिच तिन्हें आंदोलना के दलित बच्चेयां जो स्कूला मंझ दाखिला दिलवाणे रा हक हासिल कितेया। भारता री पैहली कृषक मजदूर ट्रेड यूनियन बी इन्हें बनाई थी। हालांकि ट्रेड यूनियन एक्ट सन 1926 ई. बिच आया था। अयंकाली रैडिकल तरीके के आंदोलन करहाएं थे होर स्यों जनता री ताकता पर भरोसा करहाएं थे। आनंद तेलतुमडे बोल्हाएं भई चेरियार दंगा भारता रा पैहला दलित सशस्त्र विद्रोह था।
ज्योति बा फुले री सभी ले प्रसिद्ध रचना ही गुलामगिरी। स्यों माली जाति बिच पैदा हुआएं। क्रिश्चन मिशनरी स्कूला बिच दाखिल हुआएं। इथी स्यों पाश्चात्य आधुनिकता, तर्कपरकता होर वैज्ञानिक दृष्टिकोण कठे ब्रिटिशरा ले प्रभावित हुआएं। गुलामगिरी बिच स्यों व्यंग्यात्मक ढंगा के ब्राह्मणवादा रा खंडन करहाएं होर ब्रिटिशरा जो मुक्तिदाता रे रूपा बिच देखाहें। पर सुले-सुले तिन्हारा अंग्रेजा रे प्रति मोह भंग हुंदा जाहां। 1879 ई. बिच हंटर कमीशना सामहणे आपणी गवाही बिच स्यों सुझाव होर प्रस्ताव सौंपाहें। स्यों बोल्हाएं भई जेबे ब्रिटिशर तर्कपरकता पर यकीन करहाएं ता हर जगह ब्राह्मणा जो हे वरीयता की दिती जाहीं। ये ठीक कितेया जाणा चहिए। 1881 बिच ज्योति बा फुले किसान का कोडा कताबा बिच लिखाहें भई ब्राह्मणा होर अंग्रेजा री चमड़ी उखाड़ी जाए ता एक हे खून निकलणा। तिन्हें टैक्स प्रशासना री आलोचना किती होर दसया भई किसान किहां टैक्सा के दभदा जाहां। स्यों बोल्हाएं भई अंग्रेजे ब्राह्मण आपणे मित्र बनाई लितिरे। लोहखंडे जो ज्योति बा फूले ये कताब छापणे कठे दिती थी पर तिन्हे आखरी 3 अध्याय छापे हे नीं थे क्योंकि तिन्हारा मनणा था भई ये सरकारा री ज्यादा हे आलोचना करी दितिरी। जेता कठे फुले नाराज हुए थे पर बाद बिच इन्हा अध्याया समेत छापी दिती थी। ज्योति बा फुले मजदूरा रा एक अलग मंच बी बनाया था जेता रा नांव था मिल हैंड एसोसिएशन। ज्योति बा फुले एहडे जाति विरोधी सुधारक थे जिन्हारा रवैया बधलदे वक्ता के ब्रिटिशर समर्थका ले ब्रिटिशर विरोधी हुंदा गया। शिक्षा रे क्षेत्रा बिच तिन्हें सरकारा ले हटी कने सावित्री बा फुले सौगी काम कितेया होर जनता पर भरोसा कितेया। सत्यशोधक समाजा री स्थापना किती धार्मिक कर्मकांडा रे मुकाबले ब्याह री नौंवी संस्था बनाणे कठे योगदान कितेया।
ई.वी.रामास्वामी पेरियार निरिश्वरवादी होर जझारू भौतिकवादी थे। तिन्हारा मनणा था भई तार्किकता रा प्रचार हे जाति अंता बखौ लेई जाई सकहां। स्यों बोल्हाएं थे भई धर्मा रा सरकार, राज्यसत्ता होर सामाजिक जीवन के कोई लेणा देणा नीं हुणा चहिए होर ये निजी मसला हुणा चहिए। केसी बी तरहा री पारलौकिक सत्ता बिच यकीन केसी ना केसी किस्मा रे सामाजिक संस्तरीकरण होर सामाजिक उत्पीडना जो जन्म देई सकहां। पेरियार ब्रिटिशरा रा विरोध नीं करदे थे पर स्यों मन्हाएं थे भई ब्रिटिश सत्ता धर्मनिरपेक्ष नीं ही। इधी कठे से सांप्रदाया रा जातिगत विभेदीकरण करहाईं। पेरियार सोवियत संघा री बौहत प्रशंसा करहाएं थे होर आपु बी जाई आइरे थे रूसा। स्यों बोल्हाएं थे तिथिरी राज्यसत्ता धर्मनिरपेक्ष ही। धर्मनिरपेक्षा रे दो मतलब लिते जाहें एक ता हा सर्वधर्म समान हे होर दूजा हा धर्मा रा राज्यसत्ता या सामाजिक जीवना के लेणा देणा नीं हुणा।
आजा रे जमाने बिच धर्म केता पर टिकिरा? धर्म पैदा हुआ था मनुष्या रे अज्ञाना ले। अज्ञाना रा महाद्वीप घटदा गया होर ज्ञाना रा महाद्वीप बधदा गया। पर तेबे बी धर्म ज्युंदा हा। कि? एतारा कारण हा एक एहड़ी व्यवस्था नीं हुणा जेता बिच मनुष्य दुनिया भरा रा सब कुछ पैदा करी लैणे रे बावजूद, टैक्नोलोजी रा अभूतपूर्व विकास करी लेणे रे बाद, आज इन्सानियत रोज सिर्फ दो-अढ़ाई घंटे रा हे काम करे ता व्यक्तिगत जरूरता री हर चीज पैदा किती जाई सकहाईं होर बाकि 22 घंटे मंझ आठ घंटे सोणे जो होर बाकि 12 घंटे सांस्कृतिक वैज्ञानिक उत्पादना बिच लगाई सकहाएं जेता जो मार्क्से बोल्या था भई ये से वक्त हुणा जेबे सही मायने बिच आसा जरूरता रे साम्राज्य ले स्वतंत्रता रे साम्राज्य बिच चली जाणा। जेबे रोटी, कपडा होर मकान ता कोई मुद्दा हे नीं रैही जाणा। आज भी ये मुद्दा नहीं हुणा चहिए। लोक भूखा के इधी कठे नीं मरदे भई अनाजा री कमी ही। बल्कि ठीक उल्टा लोक इधी कठे भूखा ले मरहाएं क्योंकि अनाज ज्यादा हा। ये जे अतार्किक, अवैज्ञानिक व्यवस्था ही जे हर चीजा जो अधिकता बिच पैदा करहाईं पर तेबे बी जेस जगहा पर आक्सीजना री कमी के 63 बच्चे मरी जाहें होर तेबे बी जेस जगहा पर 9000 बच्चे हर रोज भूख होर कुपोषण के मरी जाहें। एक एहडे देशा बिच 21वीं सदी मंझ जे उभरदी हुई अर्थव्यवस्था हुणे रा दावा करहां होर दुनिया री सभी थे उन्नत श्रम शक्ति 10 साला बिच पैदा करने रा दावा करहां जेता बिच नौजवाना री आबादी प्रतिशता बिच दुनिया भरा मंझा सभी थे ज्यादा ही यानि एक युवा देशा बिच एहडा हुई करहां ता सोचणा ता पौणा हे हा भई एसा अर्थव्यवस्था रे सौगी कोई भयंकर गड़बड़ी ही। एहडी व्यवस्था मंझ अनिश्चितता होर असुरक्षा पैदा हुआईं। आसौ बोल्या जाहां भई हर कोई आपणा आपु देखे। ये शासनकारी दर्शन हा। सामाजिक डार्विनवादा री विचारधारा काम करहाईं भई जेस काबिल हुणा तेस करी लैणा। आसारी शिक्षा व्यवस्था होर मीडिया बी एहडा हे दसहां। जबकि 86 प्रतिशत दलित छात्र 12वीं ले पैहले स्कूल छाडी देहाएं। एस व्यवस्था री अनिश्चितता होर असुरक्षा धर्मा बिच, ढकोसले होर बाबेयां बिच भरोसा पैदा करवाहीं। अच्छे खासे पढे लिखे वैज्ञानिक लोक पीएसएलवी बनाई लैहें पर लाँच करने ले पैहले बाला जी लेई जाहें टिक्का लगाणे कठे। एहडा हा आसारा देश। आसारा हे देश नीं बल्कि दुनिया रे होर मुल्का बिच बी ढकोसला बधी करहां। हॉलीवुड होर बॉलीवुडा मंझ हॉरर फिल्मा बणने री रफ्तार बधी गइरी। पिछले आर्थिक संकटा ले बाद शैतानी सत्ता होर पारलौकिक सत्ता रा टकराव दसया जाई करहां। अमेरिका होर भारता रा मुकाबला हो ता अमेरिका री अच्छी खासी पढी लिखी आबादी भूतप्रेता बिच ज्यादा विश्वास करहाईं। अमेरिका अंधविश्वास, ढकोसलेबाजी, कट्टरता होर घरेलू हिंसा बिच भारता के मुकाबला करी सकहां। ये तेस देशा रे हाल हे जेता जो आसारे देशा बिच स्वर्गा रे मॉडला रा रूप मनया जाहां। पूँजीवाद जेस तरीके के 80 प्रतिशत लोका री जिन्दगियां जो असुरक्षा होर अनिश्चितता रे गर्ता बिच धकेली करहां। तेता के देश होर दुनिया मंझ अंधविश्वास, ढकोसले, तरहा-2 रे पंथ, बाबेयाँ रा केन्द्र बणया करहां। धर्म अपनाणे रा कारण आदमी री जिंदगी रे दुख हे। इधी कठे से धार्मिक बणहां। धार्मिक आदमी जो गाली देणे री कोई जरूरत नीं ही। अगर एहडा करो तो साफ तौरा पर दूजी तरफा ले बी प्रतिक्रिया आउणी। लेनिने बोल्या था भई धर्मा रे खिलाफ प्रचार हमेशा धर्मा जो मजबूत करहां। इधी कठे धर्मा री जड़ खोदो। ये समाजवादा बिच हे हुई सकहां। अगर धर्म खत्म करना हो ता समाजवादा कठे लड़ो।

ड्यूईवादी व्यवहारवादा रे मूल होर एतारी विशिष्टता
व्यवहारवादी दर्शना (प्रैगमैटिक फिलॉसफी) रा जन्म अमेरिका बिच हुआ। अमेरिका री स्थापना एक पूँजीवादी देशा रे रूपा बिच हुई। अमेरिका रा कोई सामंती अतीत नीं हा। अमेरिका बिच सन 1776 ई. रे स्वतंत्रता युद्धा मंझ लड़ने वाले ज्यादातर लोक इंगलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आयरिश प्रवासी थे। फ्रांसिसी क्रान्ति रे सिद्धांत तिन्हा जो प्रेरित करी करहाएं थे। थामस पेना रे विचार डिक्लेरेशन ऑफ राइटस ऑफ मैन, समानता, स्वतंत्रता होर भ्रातृत्वा रे उसूला ले प्रेरित थे। यों विचार सामंती जडत्वा रे खिलाफ भावना व्यक्त करी करहाएं थे। लगानजीवी या परजीवी बणने री जगहा उद्यमिता यानि एंटरप्रिनियरशीपा री गल्ल करी करहाएं थे। पूँजीवादा रे पैदा हुणे बिच सभी थे बडी भूमिका थी प्रोटेस्टैंट धर्मा रे पैदा हुणे री। उद्यमिता री भावना यानि स्पिरिट ऑफ एंटरप्रिनियरशीप पैदा हुआईं। मैक्स वैबरा रा भाववादी सिद्धांत सामहणे आवहां। उभरदे हुए पूँजीपती वर्गे हे अमेरिका बसाया। पैहली गल्ल, तिन्हा बाले कोई सामंती अतीत नीं था। दूजे अमेरिका शुरू ले हे पूँजीवादी होर साम्राज्यवादी देश था। तरीजे इथी रा पूँजीवाद इन्हा भाववादी विचारा रे विरोधाभासा बिच रेड इंडियना रे कत्लेआम होर काले लोका जो गुलाम बनाणे री ताकता पर खड़ही रा था। इथी बाह्य होर आंतरिक विस्तारा री अनंत संभावना थी। जेता के इथिरा विशिष्ट रूप बणया। इथी पूँजीवादा जो संतृप्त बिंदू तका पौंहचणे कठे लंबा वक्त लगया। यानि करीब 100 साल लगे होर 1860 तका एस लंबे वक्ता बिच एक नौंवें सामाजिक दर्शना रा जन्म हुआ। इथी लम्पट सर्वहारा वर्ग भी भग्गी के आई करहां था। लम्पट सर्वहारा बिच केसी बी किस्मा री सांगठनिक होर राजनैतिक चेतना बौहत कम मात्रा बिच हुआईं। एतारी वजहा के तेस बिच वर्ग चेतना नीं हुंदी। तेसरा एकी तरहा के विमानवीयकरण हुई गईरा हुआं होर से बौहत बिखरी रा हुआं। एहडा लम्पट सर्वहारा हर देशा बिच पाया जाहां। लम्पट टटपूँजिया वर्ग जे मिडल क्लास व्यापारियां रा वर्ग हुआं अमेरिका बिच लैंड ऑफ ओपोर्चुनिटी री गल्ला सुणुआं तिथी पौहंचा। चार्ली चैपलिन री फिल्म गोल्ड रश एस घटनाक्रमा जो दसहाईं।
अमेरिका रे सामाजिक दर्शना बिच दूजा मीला रा पात्थर हा अमेरिकन सिविल वार यानि द्वितीय अमेरिकी क्रान्ति। एस दौरा रा बडा दार्शनिक हुआ इमरसन। तिन्हारा ट्रांसिडेंटलिसमा रा सिद्धांत डिक्लेरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस होर डिक्लेरेशन ऑफ मैना ले हे निकलहां। एता रे अनुसार भूतकाल वर्तमाना रा निर्माण नीं करदा। अतीता री वर्तमाना रे उत्पादना मंझ कोई भूमिका नीं हुंदी। पर वर्तमान किहां पैदा हुआं? समकालीन मनुष्या रे सामुहिक होर व्यक्तिगत प्रयासा रे समुच्चय होर अतीता रे प्रभावा रे मेलजोला के वर्तमान बणहां। इमरसन काण्टा ले प्रेरणा लैहां था होर आपणे तरीके के सामाजिक मनोविज्ञाना जो अभिव्यक्ति देहां था। बेंजामिन फ्रेंकलिना री कताब पुअर रिचर्डस अलमानैक अमेरिकी समाजा जो प्रभावित करहाईं। व्यक्तिवाद सामहणे आवहां। व्यक्ति हे सभ कुछ हा। सब कुछ तेसरे आपणे प्रयासा पर हे निर्भर करहां। सन 1860 ई. आउंदे-2 अमेरिका मंझ मुक्त व्यापारा पर आधारित पूँजीवाद खत्म हुंदा लगी जाहां। अवसर कम हुई करहाएं थे जबकि बडी कंपनियां होर बडे पूँजीपती पैदा हुई करहाएं थे। अमेरिका इजारेदारी होर पूँजी रे केन्द्रीयकरण होर सघनीकरणा री मंजिला बिच प्रवेश करी करहां था। छोटे पूँजीपती तबाह हुई के सर्वहारा री कतारा मंझ शामिल हुई करहाएं थे। तिन्हारे अमीर हुणे रे सुपने टुटणे शुरू हुई गईरे थे। एता री राजनैतिक अभिव्यक्ति पॉपोलिस्ट मुवमेंट (1880) होर पॉपुलिस्ट पार्टी (1880-1890) बिच देखणे जो मिली करहाईं थी। एस आंदोलना रे दिशा निर्देशक दर्शन देणे वाले थे चार्ल्स पियरे होर विलियम जोन्स। यों पैहले व्यवहारवादी दार्शनिक थे। इन्हारा दर्शन मुक्त व्यापारा यानि अतीता री यादा (नोस्टेलजिया) ले निकली करहां था। पॉपुलिस्ट पार्टी जेबे भंग हुई ता तेता बिच शामिल मजदूरा रा एक हिस्सा डेमोक्रेटिक पार्टी बिच चली गया जबकि दूजा हिस्सा अमेरिका री कम्यूनिस्ट पार्टी बिच चली गया। जॉन ड्युई एस विचारधारा रे हे दार्शनिक थे। इन्हारे विचारा जो ड्युईवादी व्यवहारवाद (प्रैगमैटिसम) या ऑपरेशनलिसम, इन्ट्रुमेंटलिस्म या प्रोग्रेसिव एक्सपेरीमेंटलिस्म बी बोल्हाएं।
जॉन ड्युई रा व्यवहारवादा रा सिद्धांत पैहली गल्ल ये बोल्हां भई प्राकृतिक होर सामाजिक परिघटना रा कोई आम सिद्धांत नीं हुंदा। पर विज्ञान ता सिद्धांता पर हे चलहां। आम सिद्धांता री गल्ल नीं करी के जे सुझी करहां तेतारा सामान्यीकरण नी करने ले आसे तेतारी असलियता तक नीं पौहंची सकदे। केसी बी समस्या रे समाधाना कठे विज्ञाना रा काम हुआं सभी ते पैहले देखणा यानि प्रेक्षण करना, फेरी देखिरी चीजा पर एक मोटा मोटा विचार पैदा करना, फेरी तत्काल एक्शना कठे योजना बनाणा होर फेरी एस योजना पर काम शुरू करी देणा। एता के अगर समाधान हुई जाओ ता ठीक हा नीं ता केसी अंतिम नतीजे पर पौंहचुआं एता पर सोचणा बंद नीं करी देणा चहिए। दूजी गल्ल व्यवहारवाद बोल्हां भई कार्य-कारण संबंध स्थापित नीं कितेया जाई सकदा। यानि अतीता री कोई भूमिका नीं ही वर्तमाना बिच। ये तिन्हें इमरसना रे ट्रांसिडेंटलिसमा ले लितिरा था। ये अगस्ट कॉमटे, काण्ट, हयुमा रे प्रत्यक्षवाद यानि पाजिटिविसम होर अनुभाववाद यानि एक्सपेरिसमा ले प्रभावित था। तरीजी गल्ल जॉन ड्युई समाजा री अवधारणा रे बारे बिच करहाएं। ड्युई रे मुताबिक समाज असंगत समुहा रा समुच्चय हा जेता बिच ट्रेड यूनियन, कर्मचारी यूनियना, बास्केटबाल क्लब बगैरा रे समुह आवहाएं। जबकि मार्क्सवादा रे अनुसार समाज परस्पर विरोधी वर्गा के बणीरा हुआं। से उत्पादना रे संबंधा रे कुल योगा रा समुच्चय हुआं। एतारी गति रा तर्क हुआं एतारा अंतर्विरोध। अंतर्विरोध होर परस्पर टकरावा के हे विकास हुआं। जबकि ड्युई रा व्यवहारवाद बोल्हां भई हकीकता बिच कोई अंतर्विरोध नीं हुंदा होर ये प्रतीतीगत अंतर्विरोध हुआं जेता रा समाधान सभी थे तार्किक अभिकर्ता यानि ग्रेट मिडिएटर (महान मध्यस्थ) यानि सरकार करहाईं। व्यवहारवादा रे अनुसार समाजा मंझ हर परिवर्तन सरकारा री कार्यवाई ले हुआं। स्यों रूसो होर लॉके री सोशल कंट्रैक्ट थ्युरी रे आधारा पर बोल्हाएं भई हिंसा बेकार ही होर सोशल एंडोसमोस री गल्ल करहाएं। व्यवहारवादा रे अनुसार अगर जनता थाल्हे ले परिवर्तन करहाईं ता हिंसा हुआंई। जनता जो लड़ना नीं चहिए बल्कि सरकारा जो प्रभावित करना चहिए। बौधिक वर्गा जो परिवर्तन ल्याउणे कठे सरकारा जो सुझाव देणे चहिए। व्यवहारवाद ये बी बोल्हां भई एक मानवतावादी समानतामूलक धर्म जरूरी हा जेता के सामाजिक आचार संहिता बणीरी रैही सको। सन 1897 ईं बिच जॉन ड्युई रा लेख छपया था कॉमन फेथ। जेता बिच स्यों धर्मा री जरूरता री गल्ल करहाएं भले हे तेस धर्मा रा कोई ईश्वर हो चाहे नीं हो।

डा. अंबेदकरा रे योगदान, तिन्हारी राजनीतिक विचारधारा होर राजनीतिक प्रयोग
अंबेदकरा रा योगदान क्या हा जाति उन्मूलना रे आंदोलना बिच? ये समझी के हे आसे अग्गी बधी सकाहें। अंबेदकरा रे राजनैतिक दर्शना री भूमिका क्या थी, तिन्हा रे दर्शना री पृष्ठभूमी क्या थी होर तिन्हारी राजनैतिक रणनितियां क्या थी जाति उन्मूलना रे बारे बिच। आसौ लगहां भई अंबदकरा रे सभी थे बडे दो योगदान थे। पैहला था दलित आबादी बिच आत्मगरिमा रा बोध पैदा करना। हालांकि एता कठे फुले, पेरियार, अयंकाली समेत कम्युनिस्टा री भूमिका बी थी। पर अंबदकरा रा विशेष स्थान इधी कठे बणी गया क्योंकि स्यों पैहले दलित स्कॉलर थे ज्यों इतनी हदा तक शिक्षित थे। दूजा कारण ये था भई जाति रे प्रश्ना रे कई पहलुआं जो जेस जोरा के तिन्हें रेखांकित कितेया खास तौरा पर जेता रे बारे बिच आनंद तेलतुमडे बी ठीक लिखिहाएं से था दलिता रा सिविल होर डेमोक्रिटिक राइट यानि तिन्हारे नागरिक होर जनवादी अधिकारा रे प्रश्ना जो जेस तरीके के ऱेखांकित कितया होर एताजो विशिष्टता दिती। इधी कठे तिन्हा रा योगदान एकी रूपा के विशिष्ट बणहां। अंबेदकरा रा दूजा प्रमुख योगदान था राष्ट्रीय आंदोलना रे एजेंडे पर जाति रे प्रश्ना जो जोरा के स्थापित करना। हालांकि कम्युनिस्ट पार्टिये बी 1927-28 बिच इन्हा प्रश्ना रे बारे बिच प्रस्ताव पारित किते थे। पर अंबेदकर एते पैहले ले सक्रिय थे। सन 1919 ई. बिच स्यों साउथब्युरो कमेटी रे सामहणे आपणी टेस्टीमनी यानि ब्यान देहाएं। ये तिन्हारा भारता बिच पैहला राजनैतिक कदम था। इन्हां दोनों योगदाना के अंबेदकरा रा जाति उन्मूलना रे आंदोलना बिच एक बडा स्थान बणहां। तिन्हा रे जाति उन्मूलन आंदोलना रे प्रति सरोकार जीवन भर बणीरे रैहाएं। महाड जाति बिच पैदा हुणे रे करूआं तिन्हा जो भेदभावा रा शिकार हुणा पौहां। विदेशा बिच बडी-2 डिग्रियां लैणे रे बावजूद बी तिन्हा जो भेदभाव झेलणा पौहां। एता के तिन्हारे सरोकार होर चिंता ज्यादा मजबूत हुंदी जाहीं। स्यों अमेरिका री कोलंबिया युनिवर्सिटी पढ़े जे प्रैगमेटिसम यानि व्यवहारवादा रा गढ़ था। इथी जॉन ड्युई समेत बडे-2 प्रैगमैटिस्ट दार्शनिक थे। इथी व्यवहारवादा री एक अमिट छाप अंबेदकरा पर पई।
अंबेदकरा री आलोचना आसा जो कि नीं करनी चहिए? अंबेदकरा बिच बौहत सारे अंतर्विरोध हे। स्यों अतंर्विरोधी गल्ला करदे हुए चलहाएं। पर ये अंतर्विरोध निरंतर चलदा रैहां। एताजो आसे कंसिस्टेंट इनकंसिस्टेंसी ऑफ प्रैगमेटिसम बोल्हाएं। व्यवहारवादा री निरंतरतापुर्ण अनिरन्तरता। ये अनिरन्तरता रणकौशला रे कठे ता ठीक हुई सकहाईं पर विचारधारा रे मामले बिच ये गल्ल गल्त हुआईं। विचारधारा जो दांवपेचा रा मसला नीं बनाया जाई सकदा। दूजी गल्ल अंबेदकरा रे ईरादेयां पर कधी गल्ल या आलोचना नीं किती जाई सकदी। तिन्हारे इरादेयां बिच कोई खोट नीं था। तिन्हें कधी बी लेणदेणा कठे होर भौतिक लाभा कठे कोई पद नीं लितेया। तिन्हारा पद लेणे रा मकसद सिर्फ दलिता कठे योगदान करना हे हुआं था। इधी कठे तिन्हारी मंशा पर गल्ल नीं करनी चहिए। मंशा पर गल्ल करने री बजाय आसौ जो राजनैतिक व्यक्ति, संगठन होर आंदोलना री गल्ल करनी चहिए। आसौ गल्ल करनी चहिए भई अंबदकरा रा राजनैतिक होर विचारधारात्मक स्टैंड क्या था। अंबेदकरा री राजनैतिक होर विचारधारात्मक अवस्थिति रा मूल्यांकन करदे वक्त एक चीज ध्याना बिच रखी जाणी चहिए जे तिन्हें आपु बोली थी, तिन्हारे शिष्य के एम कदम बोली थी, तिन्हारी जीवनी लिखणे वाले खैरमोडे बोली थी होर तिन्हारी दूजी पत्नी सविता अंबेदकरे बोली थी। अंबेदकर उम्र भर एक निरंतर ड्युईवादी व्यवहारवादी थे। जॉन ड्युई तिन्हारे अध्यापक थे कोलंबिया विश्वविद्यालय बिच। जॉन ड्युई रे विचार होर तिन्हारी शिक्षा रा युवा अंबेदकरा पर बौहत डुग्घा असर पया। जॉन ड्युई री विचारधारा जो व्यवहारवादा रे नावां ले जाणेया जाहां। अंबेदकरे बोल्या था भई स्यों आपणे समस्त बौद्धिक जीवना कठे जॉन ड्युई रे ऋणी हे। तिन्हारे शिष्य के एम कदम बोल्हाएं भई अगर अंबदकरा जो समझणा हो ता तुसा जो ड्युई जो समझणा पौणा। खैरमोडे भी एहडाहे बोलहाएं। सविता अंबेदकर बोल्हाईं भई जॉन ड्युई री क्लासा मंझ बैठणे रे 30 साल बाद बी अंबेदकर आपणे भाषणा होर वक्तव्या बिच जॉन डयुई री क्लास रूमा रे मैनरिज्मा रा अनुसरण करहाएं थे। जॉन ड्युई री विचारधारा अंबदकरा रे राजनैतिक कार्यक्रमा, रणनितियां होर तिन्हारे राजनैतिक जीवना पर लागू हुआईं थी। अंबेदकरे आपणे दार्शनिक मूल्या, राजनैतिक विचारधारा होर राजनैतिक प्रयोग बिच डयुईवाद व्यवहारा बिच उतारेया।
डा. जेफरलोट क्रिस्टोबे री कताब डा. अंबेदकर एंड अनटचेबिलिटी बिच स्यों अंबेदकरा री चार राजनैतिक रणनीतियां रे बारे बिच दसहाएं। जेता मंझ पैहली रणनीति थी अस्मिता निर्माण। अंबेदकरे समाज बिच ग्रेडेड अनइक्वलिटी यानि संस्तरीकरणबद्ध असमानता रे लक्षणा री पैहचाण कीती। एस पहचाणा बाद स्यों अश्पृश्य होर शुद्रा जो एकी मंचा पर ल्याउणे री कोशीश करहाएं। तिन्हारे कोलंबिया युनिवर्सिटी रा पेपर था कास्टः मैकेनिसम, जेनेसिस, डिवेलपमेंट। एता बिच स्यों जाति व्यवस्था रे उदभवा रा सिद्धांत देहाएं। स्यों बोल्हाएं भई ब्राह्मणे आपणे बिच सजातिय ब्याह स्थापित कितेया। बाकी समाजा पर तिन्हें सजातिय ब्याह थोपेया नीं पर स्यों तिन्हे लंबी प्रक्रिया बिच सहमत करी लिते भई ब्राह्मणा रे मूल्य, परंपरा होरियां ले श्रेष्ठ ही। इधी करूआं होरी समूहे बी सजातिय ब्याह स्वीकार करी लितेया। एता के वर्ण व्यवस्था रा जन्म हुआ। पर तेबे ये सवाल पैदा हुआं भई ब्राह्मण किने पैदा किते। अगर ब्राह्मणा री उत्पति रा कोई सिद्धांत न देई पाओ तो आसे विरोधाभासा बिच पई जाहें। तिन्हारी कताब आवहाईं व्हू वर शुद्रास। तेता बिच स्यों सिद्धांत देहाएं भई शुद्र सुर्यवंशी क्षत्रिय थे। तिन्हारा ब्राह्मणा के अंतर्विरोध था। तेता करूआं ब्राह्मणे तिन्हा जो उपनयन संस्कार देणे ले इंकार करी दितेया। तेता री वजह के स्यों द्विज नीं बणी पाये होर शुद्र बणी गए। पर जाहिर जेह गल्ल ही भई ये सिद्धांत एतिहासिक शोद्धा रे मुताबिक ठीक नीं ठैहरदा। तरीजी रचना तिन्हारी आई, अनटचेबलः व्हू वर दे एंड हाउ दे बिकम अनटचेबल। एता बिच स्यों बोल्हाएं भई बौध धर्मा रे उदय हुणे ले कुछ जातियें बौद्ध धर्म अपनाया। यों जेबे अधीनस्थ हुई होर आर्यां जेबे यों जातियां आपणे राज्या ले बाहर धकेली दिती ता तिन्हा बिच विखंडन पैदा हुआ। अंबेदकर ब्रोकन मैन (जिथी ले दलित शब्द निकलेया) शब्दा रा प्रयोग करहाएं इन्हां कठे। यों ब्रोकन मैन 6वीं सदी ई.पू. बिच जेबे बुद्धे प्रवचन देणा शुरू किते थे ता ये सभी ते पैहले बौद्ध बणे होर तेबे तका बौद्ध रैहे जेबे तका बौद्ध धर्म कुचली नीं दितेया गया। पर यों तेबे बी मांस भक्षण करदे रैहे। एता के चिढ़ी के ब्राह्मणे तिन्हा पर अश्पृश्यता लगाई दिती। हालांकि प्रतिक्रिया बिच इन्हारी जातियें बी ब्राह्मण बहिष्कृत करी दिते। एता के अश्पृश्यता रा जन्म हुआ। पर अंबेदकरा री ये गल्ल बी एतिहासिक प्रमाणा री रोशनी बिच साबित नीं हुंदी। क्योंकि इतिहासिक स्त्रोता रे मुताबिक ब्राह्मण ता आपु बी 10वीं सदी ई. तका मांस भक्षण करी करहाएं थे। होर बौद्ध धर्मा मंझ ता मांस भक्षणा री साफ मनाही थी होर मांस भक्षणा वाले हीन दसीरे। दरअसल अंबेदकरा रा सारा इतिहास लेखन दरअसल इतिहास लेखन नीं हा बल्कि से राजनैतिक लेखन हा। अंबेदकरे एक एहडी पहचान दिती जेता बिच शुद्र होर दलित जातियां जो जोडी दितेया जाए ता भारता री जनता रा बहुमत बणी जाहां। ये अस्मिता निर्माणा कठे राजनैतिक कवायद थी जेता कठे स्यों एहड़ा इतिहास लेखन करहाएं। जेफरलोट होर गेल ओमवड्थ बोल्हाएं भई कुछ अपुर्ण रचना मंझ अंबेदकर लिखाहें भई ब्रिटिश प्रशासके जाति री उत्पति रे नस्लवादी सिद्धांत दिते थे। यों सिद्धांत अंबेदकरे सिरे ले खारिज किते थे। आपणे आखरी समया बिच अंबेदकर ग्रांड रेसियल थ्युरी ऑफ ओरिजन ऑफ कास्टा पर काम करी करहाएं थे। गेल ओमवड्थ बोल्हाएं भई अंबेदकर एसा थ्युरी बिच दसहाएं भई हिंदू भारता री मुस्लिम विजया या ब्रिटिश विजया ले काफी पैहले बौध भारता पर हिंदू विजय हुई थी। स्यों मौर्य राजेयां होर अशोका जो नागा राजा रे तौरा पर यानि मूल निवासी रे तौर पर रखहाएं होर अशोका रे विराट रूपा रा निर्माण करहाएं जे नागा राजा रे रूपा बिच बौद्ध धर्मा जो कायम रखणे वाला हा। अंबेदकर एसा थ्युरी जो विकसित करने री सोची करहाएं थे।
अंबेदकरा री दूजी रणनीति थी चुनावी होर संगठनात्मक। सन 1919 ई. बिच साऊथब्युरो कमेटी आवाहीं। ये कमेटी मौंटग्यु चेम्सफोर्ड सुधारा रे तहत गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 बिच चुनावी मताधिकार तय करने से मकसद ले आईरी थी। अलग-2 संगठना जो कमेटी सामहणे आपणे प्रस्ताव रखणे कठे बुलाया जाई करहां था। दलिता रा प्रतिनिधित्व करदे हुए अंबेदकर बी एसा कमेटी सामहणे गए होर तिन्हें दो गल्ला रखी कमेटी सामहणे। तिन्हें बोल्या भई हिंदू समाजा री विभाजक रेखा ही स्पर्श किते जाणे वाले लोक होर अश्पृष्य लोक। तिन्हें बोल्या भई एस लिहाजा ले अश्पृष्य अल्पसंख्यक हे इधी कठे चुनावा बिच या ता तिन्हा जो रिजर्व सीटा दिती जाए या फेरी अलग निर्वाचन क्षेत्र दितेया जाए। दूजा कदम था अंबेदकरा रा बहिष्कृत हितकारिणी सभा रा घोषणा पत्र। एस सभा रे गठना रा तिन्हारा मकसद था दलित आबादी मंझ शैक्षणिक होर सांस्कृतिक काम करना। सन 1927 बिच अंबेदकर साइमन कमीशना रे सामहणे प्रस्ताव रखहाएं भई तिन्हा जो अलग मतदान क्षेत्र दितेया जाए या फेरी रिजर्व सीटा दिती जाए जेता बिच सभी दलिता जो मताधिकारा रा अधिकार हो। साइमन कमीशने मनया भई रिजर्व सीटा देणी पर चुनावा बिच खड़ने कठे उम्मीदवारा जो तेस प्रांता रे गर्वनरा ले प्रमाण पत्र लैणा पौणा। सन 1930 होर 1931 ई. री राउंड टेबल कांफ्रेंसा बिच बी अंबेदकर भाग लैहाएं।
महाड़ा दलित जातियां री पैहली कांफ्रेंस हुआईं मार्च 1927 बिच होर दूजा सत्याग्रह हुआं 25 दिसंबर 1927 बिच। 24 साला रे आर बी मोरे 1924 बिच महाड़ दलिता जो संगठित करने रा काम शुरू करहाएं। दरअसल 1923 बिच तिथी री नगरपालिके एक प्रस्ताव पारित कितिरा था तेता जो बोले प्रस्ताव बी बोल्हाएं। एस प्रस्तावा रे अनुसार सारे सार्वजनिक कुएं, सडक, मंदिर बगैरा दलिता कठे खुले हुणे चहिए। पर ये प्रस्ताव लागू नीं हुई करदा था। एता जो लागू करने कठे तिथी बगावता हुई करहाईं थी। इधी आपणे अध्यक्षीय भाषणा बिच अंबेदकर बोल्हाएं भई अश्पृष्या जो सफेद कॉलर नौकरियां अपनाणी चहिए। 25 दिसंबरा जो मनु स्मृति रे दहन के स्यों निश्चित तौरा पर ब्राह्मणवादी सोचा पर हमला करहाएं। अंबेदकरे एतारी तुलना फ्रांसा री क्रान्ति बिच बास्तीय रे किले पर धावे के किती थी। आनंद तेलतुमडे एतारी आलोचना कितिरी होर बोलिरा भई ये एक प्रतीकात्मक कदम था जबकि बास्तीय किले पर धावा प्रतीकात्मक कदम नीं था। एता बिच जनता सडका पर आई थी होर जनते किले पर धावा बोली दितेया था। सन 1941-42 ई. मंझ अंबेदकरे शैडयुल्ड कास्ट फैडरेशना रे माध्यमा ले क्रिप्स मिशना रे सामहणे तीन प्रस्ताव रखे थे। यों प्रस्ताव थे अलग चुनाव क्षेत्र दितेया जाए, कार्यकारिणी बिच दलित प्रतिनिधित्व दितेया जाए होर अलग दलित गांव बसाये जाएं।
अंबदकरा री तरीजी रणनीति थी राज्यसत्ता के सहयोग। अंबेदकर वार कौंसिला रा समर्थन करहाएं। वायसराय री कौंसिला बिच स्यों सदस्य बणहाएं। सरकारा के सहयोगा रे दौरान तिन्हारा मुख्य योगदान रैहां इंडियन ट्रेड यूनियन संशोधन बिल 1946। एस संशोधना बिच स्यों प्रावधान करहाएं भई हर नियोक्ता यानि मालिका जो आपणे कारखाने बिच एक ट्रेड यूनियना जो मान्यता देणे री बाध्यता हुणी। तिन्हें अंग्रेज सरकारा ले इंग्लैंडा रे टैक्नीकल संस्थाना बिच दलिता कठे कुछ सीटा आरक्षित करवाई। आजादी बाद स्यों संविधान सभा रे अध्यक्ष बणे। हालांकि एस संविधाना बिच ज्यादातर प्रावधान 1936 रे गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्टा रे हे लिते गए। जेता करूआँ कई कठोर कानून आसारे संविधान बिच शामिल रैहे होर यों कानून अझी तका मौजूद हे। अंबेदकर प्रगतिशील हिंदू कोड बिल ल्याउणा चाहें थे होर स्यों तेता कठे लडे बी थे। एसते अलावा स्यों श्रम मंत्रालय चाहें थे पर स्यों कानून मंत्री बनाई दिते गए। जेता करूआं तिन्हें 1955 बिच मंत्री पदा ले इस्तीफा देई दितेया था। बादा बिच तिन्हारा संविधाना ले मोहभंग हुई गईरा था होर तिन्हें बोल्या था भई एस संविधाना जो जलाणे वाले सभी थे पैहले स्यों हे हुणे।
अंबेदकरा री चौथी रणनीति थी धर्मांतरण। एता रे बारे बिच पैहला उल्लेख मिल्हां 1929 री जलगांव दलित वर्गा री कांफ्रेसा बिच। एता ले बाद स्यों 18 जून 1936 बिच हिंदू महासभा रे मुंजे से मिल्हाएं। मुंजे तिन्हा जो सिक्ख बणने रा सुझाव देहाएं। पर जेबे सिक्ख धर्मा ले तिन्हा जो कोई खास तवज्जो नीं मिल्दी ता तिन्हारा झुकाव बौद्ध धर्मा बखौ हुई जाहां। स्यों बौद्ध धर्मा रा अध्ययन करहाएं। होर जीवना रे आखरी वक्ता बिच जेबे अंबेदकर बौद्ध बणहाएं तो तिन्हा सौगी करीब 6 लाख दलित बौद्ध बणी जाहें। पर नवबौद्धा रे रूपा बिच बौद्ध धर्मा बिच बी एक नौंवा वर्ग बणी जाहां। एता के बी जाति अंत नीं हुई पांदा। अंबेदकरा री कताब ही बुद्ध होर मार्क्स। कताबा बिच स्यों दसहाएं भई तिन्हें बौद्ध धर्मा रे त्रिपिटका रा अध्ययन कितिरा। पर स्यों ये नीं दसदे भई तिन्हें मार्क्सा रे बारे बिच क्या अध्ययन कितिरा। आनंद तेलतुमडे बोल्हाएं भई अंबेदकरे मार्क्सवादा री एक भी क्लासकीय कताबा रा अध्ययन नीं कितिरा था।

भारतीय कम्यूनिस्ट आंदोलन होर जाति प्रश्नः एक संक्षिप्त टिप्पणी
कम्यूनिस्ट आंदोलना रा जाति रे अंता कठे क्या योगदान था एता रे बारे बिच आसारा ये मनणा हा भई कम्यूनिस्ट आंदोलने जाति रे प्रश्ना पर आनुभाविक तौर पर हमेशा काम कितिरा पर सैद्धांतिक तौर पर नीं कितिरा। आनुभाविकता बिच आक्सिकता रा पैहलू मौजूद रैहां। 1920, 30 होर 40 रे दशका बिच कम्यूनिस्ट पार्टिये कई आक्समिक आनुभाविक एक्शन किते। पर तिन्हें आपणी पैहला पर सकारात्मक रूपा के पढ़ी, देखी होर समझीके जाति व्यवस्था री कोई ऐतिहासिक समझदारी नीं बनाई होर एतारे समाधाना रा कोई वैज्ञानिक रस्ता नीं निकालेया। पर जेबे बी जरूरत पई पार्टीये जाति रे प्रश्ना रा बहादुरी के सामना कितेया होर लड़ी बी। पर सकारात्मक तौरा पर जाति रे प्रश्ना जो किहां समझया जाए होर किहां एतारा वैज्ञानिक क्रान्तिकारी समाधान या कार्यक्रम निकालेया जाए, कम्यूनिस्ट ये नीं करी पाए। एतारी वजह ले आपणे तमाम मोर्चेयां होर आपणे संघर्षा बिच जाति रे प्रश्ना पर आपणे पक्षा जो रेखांकित करिके एता जो मसला बनाई के पूरे मेहनतकश वर्गा रे आंदोलना मंझ चेतना रा स्तर उन्नत नीं करी सके। पर एतारा मतलब ये नीं निकालेया जाणा चहिए भई कम्यूनिस्ट ये नीं करी पाए ता स्यों ब्राह्मणवादी थे। कम्यूनिस्ट करी सब कुछ करहाएं थे पर जाति रे प्रश्ना जो नीं समझी सके। कम्यूनिस्टा पर इल्जाम लगाया जाहां बंच ऑफ ब्राह्मिन गॉयस। पर ये इल्जाम आधारहीन हा। कोई ये बोले भई कम्यूनिस्ट पार्टी बिच कितने दलित नेता हुए ता पलटी के ये बी पूछया जाई सकहां भई दलित संगठना बिच कितने दलित मजदूर नेता हुए। रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई), इंडियन लेबर पार्टी (आईएलपी), शैडल्यूड कास्ट फेडरेशना (एससीएफ) बिच कोई दलित मजदूर नेता नीं मिलदा। एतारा कारण ये हा भई केसी बी दलित शोषित आबादी रे आंदोलना बिच प्राथमिक तौरा पर मिडल क्लास इंटैलिजैंसिया (मध्यम वर्गा रे बुद्धिजिवियां) ले नेतृत्वा री आपूर्ती हुआईं। क्योंकि ये फुर्सता वाला वर्ग हा जेस बाले वक्त हुआं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसा रे सब नेता या होरी केसी आंदोलना रा कोई भी नेता पूँजीवादी वर्गा ले नीं आउंदा स्यों आंदोलना जो वितिय सहायता हे देहें। जिहां आजादी ले पैहले कांग्रेसा रा सभी थे ज्यादा वितिय पोषण बिडले कितेया था। आज बी सभी पार्टियां रे नेतृत्वा रा वर्गमूल मिडल क्लास ही। इधी कठे यों दोन्हो हे सवाल गल्त हे। भारता री कम्यूनिस्ट पार्टी सन 1925 ई. मंझ बणी। सन 1933 ई. बिच पैहली केन्द्रीय कमेटी रा कोर चुनया गया। फिर सन 1936 ई. मंझ पैहले महासचिव चुने गए पी सी जोशी। सन 1943 ई. मंझ पार्टी री पैहली कांफ्रेंस हुआईं। पार्टी रा कोई बोल्शेविक ढांचा नीं था। सन 1951 ई. तक भारता री कम्यूनिस्ट पार्टी बाले क्रान्ति रा कोई कार्यक्रम नीं था। ये पता नीं था भई क्रान्ति री मंजिल क्या हुणी। मित्र शक्तियां होर शत्रु शक्तियां कुण-2 हुणी। क्रान्ति केस तरीके के करनी होर केस रस्ते के करनी। क्रान्ति री रणनीति होर रणकौशल क्या हुणा। पार्टी बिच भटकावा के बीटीआर रा लेफ्ट होर डांगे रा राइट दो धडे कायम हुई गए। जाति, क्रान्ति, पितृसत्ता उन्मूलन होर दमित राष्ट्रीयताओं रे प्रश्ना पर भारता री कम्यूनिस्ट पार्टिये कोई कार्यक्रम नीं दितेया। पार्टी री सैद्धांतिक कमजोरी रे करूआं एतारी बिग ब्रदर पार्टियां री विचारधारात्मकता पर निर्भरता थी। सन 1951 ई. बिच पार्टी रा एक डेलिगेशन रूसा जो गया। तिथी तिन्हें स्तालिन होर मोलोतोवा के बी मुलाकात किती। भारता री उत्पादना री पद्धति रा आपणे आप रचनात्मक रूपा के मार्क्सवादी लेनिनवादी वैज्ञानिक पद्धति के अध्ययन करने री बजाय रूसा ले मिल्हीरा सुझाव पत्र हे पार्टीये आपणा कार्यक्रम बनाई दितेया। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी मानसिक तौर पर निर्भर पार्टी थी। नक्सलवाडी रे उतरवर्ती दशक एक सिंहावलोकन नांवां ले एक कताब लिखी जाहीं करहाईं। एसा कताबा ले भारता बिच कम्यूनिस्ट आंदोलना री समस्या सपष्ट हुई जाणी। पर इतना ता सपष्ट हे हा भई भारता री कम्यूनिस्ट पार्टी बिच सैद्धांतिक कमजोरी थी जेता करूआं पार्टी जाति समेत होरी सभी मसलेयां रे प्रश्ना जो प्रमुखता के रेखांकित नीं करी सकी।

जाति उन्मूलना रा कार्यक्रमः कुछ शुरूआती प्रस्ताव
जाति रे उन्मूलना कठे आजा री जरूरत ही एक वर्ग आधारित जाति विरोध आंदोलन। क्या आसे जाति उन्मूलना री लड़ाई राज्यसत्ता रे सौगी बैरमोल लितिरे बिना लड़ी सकाहें? क्या भारता बिच राज्य सत्ता रा हमेशा ले हे जातिगत चरित्र नीं रैहिरा? क्या भारता बिच राज्य सत्ता रा पितृसतात्मक चरित्र नी रैहिरा? ये सोचणा आपणे आपा जो मुर्ख बनाणा नी हा भई राज्य सत्ता एक निष्पक्ष अभिकर्ता हुआईं, जेता रा केसी वर्गा रे सौगी कोई पक्ष नीं हुंदा होर जेता रे कोई जातिगत पूर्वाग्रह नीं हुंदे होर से वर्गा होर जातियां ले ऊपर कोई निष्पक्ष महान मध्यस्थ ही? क्या आसे उम्मीद करी सकाहें भई जाति रा उन्मूलन राज्य सत्ता रे अफर्मेटिव एक्शन यानि सामाजिक अनुशंसावादा रे जरिये हुई सकहां या सरकारी नौकरी मंझ दलित तबके ले लोक चली जाणे रे जरिये हुई सकहां, ये सोचदे हुए भई सरकारा रे सोचणे होर कार्यवाई करने जो आसे सरकारी नौकरियां बिच जाई के बदली सकाहें? क्या जाति उन्मूलना कठे कल्हा एक सामाजिक आंदोलन हुणा हे भतेरा हा? क्या जाति रा उन्मूलन पूरे सामाजिक आर्थिक ढांचे रे क्रान्तिकारी रूपान्तरणा रे बाझही संभव हा।? आसारा मनणा ये हा भई इन्हा सभी सवाला रा जबाब एक जोरदार नाह हा।
एतारा कारण ये हा भई सामाजिक अधिरचना हमेशा-हमेशा राजनैतिक अधिरचने संभाली री होर बचाई री हुआईं। सरकार होर राज्य सत्ता जातिगत उत्पीडन या दमना रा समर्थन नीं करे ता से टिकिरी किहां रैही सकाहीं। डा. अंबेदकरा रे राजनैतिक प्रयोगा रा अनुभव दसहां भई ब्राह्मणवादा जो हमेशा ले राज्य सत्ता रा संरक्षण प्राप्त था चाहे से औपनिवेशिक राज्यसत्ता हो या चाहें मुस्लिम या हिंदू राज्य सत्ता रैहिरी हो। जाति रे खिलाफ लड़ना हो ता एस सारे राजनैतिक सत्ता रे ढ़ांचे रे खिलाफ जाणा पौणा। सामाजिक उत्पीडन होर आर्थिक शोषण कधी बी अलग-अलग नीं हुंदे बल्कि स्यों अन्तर्गुन्थित रूपा के एजी दूजे के गुंथित हुआएं होर तिन्हा बिच द्वंदात्मक रिश्ता हुआं। राजनैतिक संरचना यानि सरकार जाति जो टिकाए रखणे रा मुख्य ढांचा हा। राज्य सत्ता रे बिना सामाजिक होर सांस्कृतिक अधिरचना टिकिरी नीं रैही सकदी। हालांकि ये बी सच हा भई सांस्कृतिक होर सामाजिक अधिरचना री एक सापेक्षित स्वायत्ता हुआईं होर से बी राजनैतिक अधिरचना जो प्रभावित करहाईं। कोई भी राजनैतिक अधिरचना एकी आर्थिक आधारा री सेवा करहाईं। एहडा कोई बी आर्थिक आधार जे शोषण होर दमना पर आधारित हो से विभिन्न प्रकारा रे सामाजिक उत्पीडना रे बगैर नीं चली सकदा, जेता बिच जाति उत्पीडन बी शामिल हुआं। पूँजीवादी शोषणा री सारी प्रक्रिया जातिवाद, ब्राह्मणवादी होर सामाजिक उत्पीडना रे सभी रूपा रा इस्तेमाल किते बगैर नीं चली सकदी। ये गल्ल बी सच ही भई जाति पूरी तरहा के अधिरचना रा हिस्सा नीं ही बल्कि ये आर्थिक आधारा रा हिस्सा बी बणहाईं। जाति चीजा रे वितरणा रे अनुपाता जो किथी ना किथी प्रभावित करहाईं। इधी कठे जाति उन्मूलना रा प्रश्न असलियता बिच समाजा रे क्रान्तिकारी रूपांतरणा रा प्रश्न हा। जाति रा अंत क्रान्ति रे बिना नी हुणा। आज क्रान्ति रा प्रश्न बी जाति रे प्रश्ना के तेहडा हे जुडीरा जेहडा जाति रा प्रश्न क्रान्ति के जुडीरा। क्रान्ति हुई हे नीं सकदी अगर आजा ले हे आसे वर्ग आधारित जाति विरोधा जो संगठित करने रा काम नीं करदे। वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलना रे कामा बिच केसी किस्मा रे अस्मितावाद, व्यवहारवाद होर अर्जी या आवेदनवादा री जगह नीं हुणी। हालांकि मुद्दे इन्हारे बी स्यों हुई सकाहें पर वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलना रा तरीका क्रान्तिकारी हुणा होर इन्हा ले अलग हुणा।
वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलना ले आसारा मतलब क्या हा। एस आंदोलना रा चरित्र एतारी प्राथमिकता ले निर्धारित हुआं। अस्मितावादा री राजनीति प्रतीकात्मक मुद्देयां जो वास्तविक मुद्देयां ले ज्यादा तरजीह देहाईं। हालांकि जिग्नेशा रा आंदोलन भौतिक मुद्देयां जो तरजीह देही करहां जे अच्छी गल्ल ही। जे प्रश्न वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलना उठाणे स्यों 89-90 प्रतिशत दलित आबादी जे मेहनतकश ही होर खेता खलियाना, कल-कारखानेयां बिच खट्टी करहाईं तिन्हा जो प्रभावित करने वाले हुणे। वर्ग आधारित मुद्देयां री पैहचाण किती जाणी चहिए। सभी थे बडा मुद्दा हा दलित विरोधी उत्पीडना री बधदी घटनावां रा। इन्हां मंझा 96-97 प्रतिशत घटना मजदूर वर्गा री दलित आबादी रे खिलाफ हुआईं। उत्पीडना रे माहौला रा सामना अस्मितावादी ढंगा के नीं हुई सकदा। क्योंकि एकी अस्मिता रे बडे हुणे ले दुजी अस्मिता बी आपणे आप हे बडी हुंदी जाहीं। एतारा मुकाबला वर्ग आधारित आंदोलना के हे अस्मितावादी दुश्मणा रे खेमे मंझ काम करिके तिन्हा जो बेअसर या न्युट्रेलाइज करूआँ हे कितेया जाई सकहां। एता कठे सघन होर सतत जाति विरोधी प्रचार करना पौणा। खास करूआं मध्य जातियां बिच प्रचार कितेया जाणा चहिए। दुश्मणा री पैहचाण करवाई जाणी चहिए ज्यों कुलीन वर्गा रे रूपा बिच आपणी ही जाति मंझ मौजूद हुआएं। एक लंबी प्रक्रिया के ये मसला हल कितेया जाई सकहां होर अस्मितावादा होर मध्यम जातियां रे टकराव जो बेअसर या न्युट्रेलाइज कितेया जाई सकहां।
भारता रे संबंधा बिच वर्ग होर जाति रे संबंधा जो एक वाक्यांश प्रतिबिंबित करहां। ये वाक्यांश हा भई हर दलित उत्पीडित हा पर मेहनतकश वर्गा रा दलित उत्पीडना रे बर्बरतम रूपा रा शिकार हा। दूजी गल्ल भई हर मजदूर शोषित हा पर दलित मजदूर आपणी सामाजिक रूपा के आरक्षित स्थिति रे करूआं अतिशोषित हा। इधी कठे इन्हा मसलेयां पर प्राथमिकता निर्धारित किती जाणी चहिए। दूजा प्रश्ना हा सजातीय ब्याह। ये सच्चाई ही भई सजातीय ब्याह जातियां जो पुनर्उत्पादित करदा रैहां। एता कठे कई सांस्कृतिक गतिविधियां किती जाणी चहिए। जिथी आसारी ताकत हो तिथी जाति तोडी के ब्याह करने वालेयां जो सुरक्षा देणी चहिए। जेता जो समाज प्रतिष्ठा रे खत्म हुणे होर अपमाना रा मुद्दा मनहां तेता जो आसे गरिमा के स्थापित हुणे होर सम्माना रा मुद्दा बनाई सकहाएं। एता री एक सांस्कृतिक लैहर बनायी जाणी चहिए। जाति तोडो सामुहिक भोज आयोजित किते जाणे चहिए। सामाजिक उत्पीडना रे विभिन्न रूपा रे खिलाफ जबरदस्त सांस्कृतिक आंदोलन खडा कितेया जाणा चहिए। आजा रे समकालीन समया री घटनावां रे बारे बिच वर्ग आधारित एकता रे गीत बणाये जाणे चहिए।
सभी थे महत्वपुर्ण मांग जे आसारी हुणी चहिए से ये ही भई जेहडा ग्रामीण बेरोजगारा कठे रोजगार देणा सरकारे संवैधानिक तौरा पर आपणी जिम्मेवारी मनी लितिरी। इधी कठे आसा जो सार्विक अधिकारा रे तौरा पर मांग करनी चहिए भई शिक्षा व्यवस्था बिच सभी कठे समान होर निःशुल्क शिक्षा हो। शिक्षा होर रोजगारा कठे संविधाना बिच संशोधन करूआं यों मूल अधिकार बिच लयाउणे चहिए। एता कठे आंदोलन करने जो बडा फ्रंट बनाणा चहिए सभी युवा-छात्र संगठना होर जाति विरोधा फोरमा रा। हालांकि कई पूँजीवादी देशा बिच यूनिफार्म स्कूल सिस्टम लागू हा। भारता बिच जेबे सभ समान हे ता 10 तरहा रे सरकारी स्कूल कि हे प्राइवेटा री ता गल्ल हे रैहण देयो। एक किस्मा रा सरकारी स्कूल देयो, एक हे पाठयक्रम देयो ताकि अमीर, गरीब, दलित, ब्राह्मणा रे बच्चे एकी स्तरा पर पढी सको। एक स्तर आर्थिक होर अधिसंरचना रे तौरा पर बी हुणा चहिए। यानि केसी स्कूला ता बौहत बढिया टीचर हे, स्विमिंग पुल बी हा, बास्केटबाल कोर्ट बी हा यानि सब कुछ हा पर केसी स्कूला ब्लैकबोर्ड नीं हा, बाथरूम, पीणे रा पाणी नी हा जिथी गरीब होर दलित आबादी पढदे जाहीं। क्या ये सीधा-2 जाति विरोधी आंदोलना रा मुद्दा नीं बणदा। यूनिफार्म स्कूल सिस्टमा के निश्चित तौरा पर जाति व्यवस्था पर चोट हुणी। एता ले अलावा शहरी रोजगार गारंटी कानूना कठे अभियान शुरू कितेया जाणा चहिए। क्यों कि आजकाला रे मौजूदा दौरा बिच बेरोजगारी री दर बौहत ज्यादा बधदी जाई करहाईं। एक मांग होर किती जाणी चहिए स्टेट हाउसिंगा री। रिहायशी पार्थक्य एता के हे टुटणा। लोका जो मकाना रा मालिकाना नीं देयो पर तिन्हा री रिहायशी रा प्रबंध कितेया जाणा चहिए। हालांकि आसौ पता हा भई एस पूँजीवादी व्यवस्था बिच यों मांगा पूरी नीं हुणी पर आसे एहडी मांगा तेबे बी उठाहें क्योंकि आसे पूँजीवादी वायदेयां जो अति अभिज्ञान यानि ओवर आइडेंटिफिकेश देहाएं। आसे बोल्हाएं भई एभे तुसे इन वायदेयां रे बारे बिच बोली देतिरी इधी कठे आसारी मांगा जो पूरी करा। अगर आसा बाले ताकत हो ता आसे सडका पर आंदोलना के इन्हां मांगा जो मनवाणे कठे सरकारा पर दबाब बनायी सकाहें। पर एस ताकता जो हासिल करने कठे संगठना जो विकसित करने री जरूरत हुआईं। स्टेट हाउसिंग, सभी कठे समान शिक्षा होर रोजगारा सरीखे यों मुद्दे उठघे ता जाति रा मुद्दा भौतिक रूपा ले बडा मुद्दा बणी जाणा। तेबे जाति रा मुद्दा सिर्फ मुर्ति टुटणे होर यूनिवर्सिटी रा नावं बदलणे तका रा मुद्दा हे नी रैहणा। दूजी गल्ल एता के आसा जो मौका मिलणा भई जनता री गैर दलित आबादी बिच जे जातिगत पूर्वाग्रह हे तिन्हारे खिलाफ संघर्ष कितेया जाई सको। हर आंदोलना बिच जाति रे प्रश्न एजेंडे बिच ल्याउणा चहिए। होर एता रे खिलाफ लगातार प्रचार करना चहिए। जातिगत मैटरीमोनियला रे खिलाफ बी लगातार आंदोलन, प्रचार होर चोट करनी चहिए। यों कुछ मुद्दे हे पर ये एक पूरी सूचि नीं ही एता बिच होर भौतिक मुद्दे बी जुडी सकाहें।
इन्हा मुद्देयां पर वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलन खड़ा कितेया जाए ता एहड़ी एकता पैदा करी सकाहीं जे क्रान्तिकारी गोलबंदी होर संगठना के आसा जो अग्गे क्रान्ति री मंजिला तका पौहंचायी सकहां होर बिना क्रान्ति के जाति उन्मूलन नीं हुई सकदा। क्रान्ति ले बाद बी एकदम जाति उन्मूलन नीं हुई जाणा। समाजवादी क्रान्ति हुई बी जाओ ता जाति पर सभी थे बड़ी चोट ये हुणी भई तुरंत हे राज्या रे अधिन सामुहिक किसानी हुई जाणी होर सारी जागीरा भंग हुई जाणी। सारे स्वर्ण बड़े भूस्वामी री जमीना छीनी लेती जाणी होर स्टेट फार्मिंग या सामुहिक फार्मिंगा बिच तब्दील हुई जाणी। स्टेट फार्मिंगा ले दलित, शुद्र होर गरीब जनता जो तिथी काम मिलणा। मजदूर खेता बिच छैह घंटे काम करघा, फेरी घरा जाईके बच्चेयां जो प्यार करघा, धूमदे-फिरदे जांघा, फिल्मा देखघा, सभ कुछ करघा। क्योंकि तेबे तेस बाले पूरा वक्त हुणा। भूमीहीनता होर आर्थिक असमानता जातिगत उत्पीडना जो टिकाई रखाहीं। जाति रे कुछ मामलेयां पर ता समाजवादी क्रान्ति तुरंत हे भयंकर चोट करी देणी। सारी जमीना, सारे कारखाने, खदाना होर निजी बैंका रा राष्ट्रीयकरण हुई जाणा। जेता के जातिगत विभेद जो चोट पौंहचणी। जातिगत मानसिकता री जमीन ही शारीरिक श्रम होर मानसिक श्रमा मंझ अंतर। एता रे अलावा गांव होर शैहरा रा अंतर होर उद्योग होर कृषि रे अंतरा के बी असमानता बणहाईं समाजा बिच। समाजवादी क्रान्ती ले बाद लंबे समया तक चलने वाले कई सांस्कृतिक आंदोलना रे जरिये ये असमानता होर अंतर खत्म हुणे। जाति जो जड़ ले खत्म करने कठे समाजवादी समाजा जो 100 साल बी लगी सकाहें तेबे जाई के ये खत्म हुणी। प्रसिद्ध इतिहासकार सुविरा जायसवाल बोल्हाईं “ जाति निजी संपति पितृसत्ता होर वर्गा के सौगी पैदा हुई थी होर जाति निजी संपति पितृसत्ता होर वर्गा रे सौगी हे खत्म हुई सकाहीं”। पूरी तरह के जाति रा समाप्त हुणा एक समाजवादी समाजा मंझ हे संभव हा। पर क्रान्ती करने कठे एक वर्ग आधारित जाति विरोधी आंदोलन आजा ले ही खड़ा करना पौणा जे सड़का पर लड़ने री ताकत रखदा हो। सही दिशा ये ही।
(ये लेख मजदूर बिगूल अखबारा रे संपादक अभिनव सिन्हा रे यू टयूब लैक्चरा ले लितिरे नोटस पर आधारित हा।)
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